सामाजिक न्याय
खाद्य सुरक्षा तथा वर्तमान परिदृश्य
- 27 May 2022
- 14 min read
यह एडिटोरियल 24/05/2022 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित “Climate Change Threatening Food Security” लेख पर आधारित है। इसमें वैश्विक स्तर पर हो रहे परिवर्तनों से खाद्य सुरक्षा के संबंध और इस स्थिति से निपटने के लिये किये जा सकने वाले उपायों के बारे में चर्चा की गई है।
यूरोप में अप्रत्याशित रूस-यूक्रेन युद्ध ने सभी आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर दिया और गेहूं से लेकर जौ, खाद्य तेल और उर्वरकों तक प्रत्येक वस्तु की कमी की स्थिति उत्पन्न की। हालाँकि, अधिक गहरी, दीर्घकालिक चिंता जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ बढ़ते तापमान को लेकर है जो फसलों को और खाद्य आत्मनिर्भरता को प्रभावित करेंगे।
सरकार यह भी समझती है कि कोविड-19 महामारी के कारण लोगों के व्यय करने की शक्ति में भारी गिरावट आई है और कुछ के लिये भूख एक लगातार बढ़ता संकट बनता जा रहा है। इसलिये, सरकार ने मुफ्त राशन योजना की अवधि को सितंबर 2022 तक के लिये छह माह और बढ़ा दिया है।
वृहत परिप्रेक्ष्य में देखें तो विश्व के तीसरे सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक और जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे संवेदनशील देशों में से एक के रूप में भारत के लिये अपने आर्थिक विकास को निम्न कार्बन गहन बनाना उसके व्यापक हित में है।
जलवायु परिवर्तन खाद्य सुरक्षा से कैसे संबंधित है?
- जलवायु परिवर्तन और खाद्य प्रणाली का अंतर्संबंध: जलवायु संकट वैश्विक खाद्य प्रणाली के सभी अंगों को—उत्पादन से लेकर उपभोग तक, प्रभावित करता है।
- यह भूमि एवं फसलों को नष्ट करता है, पशुधन की हानि करता है, मत्स्य पालन को कम करता है और बाज़ारों की ओर परिवहन को बाधित करता है जो आगे खाद्य उत्पादन, उपलब्धता, विविधता, पहुँच और सुरक्षा को प्रभावित करता है।
- इसके साथ ही, खाद्य प्रणालियाँ पर्यावरण को भी प्रभावित करती हैं और जलवायु परिवर्तन की वाहक होती हैं। आकलन बताते हैं कि खाद्य क्षेत्र वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 30% का योगदान करता है।
- यह भूमि एवं फसलों को नष्ट करता है, पशुधन की हानि करता है, मत्स्य पालन को कम करता है और बाज़ारों की ओर परिवहन को बाधित करता है जो आगे खाद्य उत्पादन, उपलब्धता, विविधता, पहुँच और सुरक्षा को प्रभावित करता है।
- वैश्विक समस्या: भारत और पाकिस्तान के साथ-साथ कई अन्य देशों में भीषण गर्मी की घटनाएँ प्रकट हो रही हैं। मई 2022 में फ्रांस में कई दिनों 30-35 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया।
- इसके अतिरिक्त, वर्षा में सामान्य से एक तिहाई की कमी आई है और इससे गेहूँ एवं जौ जैसी शीतकालीन फसलें प्रभावित होंगी।
- अनाज उत्पादन में गिरावट: कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विश्व के अन्य हिस्सों ने भी पिछले दो-तीन वर्षों में असामान्य रूप से शुष्क एवं गर्म मौसम का अनुभव किया है।
- दूसरी बड़ी अनिश्चितता यह है कि क्या ‘ला नीना’ तीसरे वर्ष भी जारी रहेगी और अमेरिका के अनाज उत्पादन को आगे और प्रभावित करेगी।
जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा की वर्तमान स्थिति
- भारतीय मौसम विभाग (IMD) द्वारा मार्च 2022 को 122 वर्ष पूर्व रिकॉर्ड-कीपिंग शुरू किये जाने के बाद से अब तक का सबसे गर्म माह घोषित किया गया।
- औसत तापमान से लगातार ऊपर का तापमान: अध्ययन के अनुसार तापमान में औसत तापमान से लगातार 3-8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है जिसने देश के कई हिस्सों में कई दशकों के और कुछ सर्वकालिक रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।
- भारत ने अप्रैल 2022 में वनाग्नि की लगभग 300 घटनाएँ देखी।
- इसने भारतीय उपमहाद्वीप में भविष्य में ग्रीष्म लहरों की स्थिति के बारे में कुछ अनुमान भी प्रकट किये हैं।
- चरम मौसम और इसका प्रभाव: चरम मौसमी घटनाएँ, जिनके बारे में माना जाता था कि वे 100 वर्षों में एक बार घटित होती हैं, अब पहले की तुलना में 30 गुना अधिक (अथवा प्रत्येक तीन से पाँच वर्ष के मध्य) होने की संभावना रखती हैं।
- मार्च 2022 सबसे शुष्क दर्ज माहों में से एक रहा और अप्रैल 2022 में उत्तर भारत के फसल उत्पादन क्षेत्रों में सामान्य से कम वर्षा हुई।
- केरल के कुछ हिस्सों में बेमौसम बारिश ने किसानों को जलमग्न खेतों से धान की कटाई के लिये मज़बूर किया, जिसके परिणामस्वरूप निम्न-गुणवत्ता की फसलें प्राप्त हुई।
- मार्च 2022 सबसे शुष्क दर्ज माहों में से एक रहा और अप्रैल 2022 में उत्तर भारत के फसल उत्पादन क्षेत्रों में सामान्य से कम वर्षा हुई।
- विदेशी बिक्री प्रतिबंध: अत्यधिक कम वर्षा के साथ चरम ग्रीष्म लहर ने भारत के पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान और उत्तर प्रदेश के अनाज उत्पादन क्षेत्रों में गेहूँ की फसल को प्रभावित किया।
- फसल की पैदावार में 20% की कमी आई है और इसके कारण सरकार को ‘दुनिया का पेट भरने’ (‘feed the world’) का अपना प्रस्ताव वापस लेना पड़ा क्योंकि निर्यातित गेहूँ की हाजिर कीमतों में माह-दर-माह 60% की वृद्धि हुई। सरकार द्वारा गेहूँ की विदेशी बिक्री पर प्रतिबंध के बाद इनकी कीमतों में नरमी आ सकी।
खाद्य सुरक्षा पर रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव
- मुद्रास्फीति की वृद्धि: विश्व के गेहूँ, मक्का एवं जौ का एक महत्त्वपूर्ण अंश युद्ध के कारण रूस और यूक्रेन में अटक गया है, जबकि विश्व के उर्वरकों का इससे भी बड़ा अंश रूस और बेलारूस में फँस गया है।
- इसके परिणामस्वरूप वैश्विक खाद्य और उर्वरकों की कीमतें बढ़ रही हैं। रूसी आक्रमण के बाद से गेहूँ की कीमतों में 21%, जौ की कीमतों में 33% और कुछ उर्वरकों की कीमतों में 40% वृद्धि दर्ज की गई है।
- उर्वरक बाज़ारों पर प्रभाव: प्रतिबंधों ने रूस के सबसे निकट सहयोगी बेलारूस को भी प्रभावित किया है, जो पोटाश-आधारित उर्वरक का एक प्रमुख उत्पादक है। सोयाबीन और मकई सहित कई प्रमुख फसलों के लिये पोटाश अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार, उर्वरक बाज़ारों पर युद्ध का प्रत्यक्ष प्रभाव सर्वप्रथम भारत और ब्राजील में खाद्य उत्पादन के मौसम में अनुभव किया जाएगा।
- ईंधन की कीमतों में उछाल: रूस-यूक्रेन संघर्ष ईंधन की बढ़ती कीमतों के लिये ज़िम्मेदार है क्योंकि आपूर्ति शृंखला (विशेष रूप से कच्चे तेल की) बाधित हो गई है, जो पहले से ही दबावग्रस्त वैश्विक आपूर्ति और विश्व भर में निम्न भंडारण स्तर पर और भी अधिक दबाव बढ़ाएगी।
जलवायु परिवर्तन के बीच खाद्य सुरक्षा को कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है?
- प्रौद्योगिकी का विकास: सरकार नए बीज विकसित कर सकती है और प्रौद्योगिकी में सुधार कर सकती है जो अनाज भंडारण की समस्या को दूर करने, सिंचाई कवरेज में सुधार लाने, उर्वरक का अधिक प्रभावी उपयोग करने और मृदा का बेहतर प्रबंधन करने में मदद करेगी।
- कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य और लाभदायक बनाना भी आवश्यक है।
- निर्धनों के लिये प्रत्यास्थता का निर्माण: निर्धन और कमज़ोर समुदायों के लिये अनुकूलन और प्रत्यास्थता-निर्माण खाद्य सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि बढ़ते तापमान के साथ लोगों और प्रकृति पर जलवायु चरमता के प्रतिकूल प्रभाव बढ़ते रहेंगे, कार्रवाई और समर्थन (वित्त, क्षमता-निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण) की वृद्धि के लिये तत्काल बल दिया जाना उपलब्ध सर्वोत्कृष्ट विज्ञान के अनुरूप अनुकूलन क्षमता को बढ़ाने, प्रत्यास्थता को सुदृढ़ करने और जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता को कम करने के लिये आवश्यक है।
- संवहनीय खाद्य प्रणाली: उत्पादन, मूल्य शृंखला और उपभोग में संवहनीयता हासिल करनी होगी। जलवायु-प्रत्यास्थी फसल पैटर्न को बढ़ावा देना होगा। संवहनीय/सतत कृषि के लिये किसानों को इनपुट सब्सिडी देने के बजाय नकद हस्तांतरण किया जा सकता है।
- जलवायु-भूख संकट (Climate-Hunger Crisis) से निपटने के लिये बहु-आयामी दृष्टिकोण: कमज़ोर समुदायों की आजीविका की रक्षा और उसमें सुधार के माध्यम से प्रत्यास्थी आजीविका एवं खाद्य सुरक्षा समाधानों का निर्माण करना।
- जलवायु जानकारी एवं तैयारियों के साथ छोटे किसानों के लिये सतत अवसरों, वित्त तक पहुँच और नवाचार के माध्यम से एक प्रत्यास्थी कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना।
- खाद्य सुरक्षा और जलवायु जोखिम के बीच के संबंध को संबोधित कर खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिये भेद्यता विश्लेषण हेतु नागरिक समाज और सरकारों की क्षमता एवं ज्ञान का निर्माण।
- भारत की भूमिका: राष्ट्रीय और राज्य स्तरों पर चल रहे और अब पर्याप्त नीतिगत कार्य के साथ भारत को एक बड़ी भूमिका निभानी है।
- भारत को अपनी खाद्य प्रणालियों को रूपांतरित करना होगा ताकि उच्च कृषि आय और पोषण सुरक्षा के लिये उन्हें अधिक समावेशी और संवहनीय बनाया जा सके।
- जल के अधिक समान वितरण और संवहनीय एवं जलवायु-प्रत्यास्थी कृषि के लिये मोटे अनाज, दलहन, तिलहन और बागवानी की ओर फसल पैटर्न के विविधीकरण की आवश्यकता है।
- अनुकूलन वित्त: विकासशील देशों में अनुकूलन का समर्थन करने के लिये विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्त को बढ़ाने पर हाल में जताई गई प्रतिबद्धता स्वागतयोग्य है।
- हालाँकि, अनुकूलन के लिये वर्तमान जलवायु वित्त और हितधारकों का आधार बिगड़ते जलवायु परिवर्तन प्रभावों पर कार्रवाई के लिये अपर्याप्त है।
- बहुपक्षीय विकास बैंक, अन्य वित्तीय संस्थान और निजी क्षेत्र जलवायु योजनाओं की पूर्ति के लिये (विशेष रूप से अनुकूलन के लिये) आवश्यक संसाधनों के वृहत स्तर पर वितरण हेतु वित्तपोषण में वृद्धि कर सकते हैं।
निष्कर्ष
नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में प्रगति, इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को अपनाने और भारत को हरित ऊर्जा पावरहाउस में बदलने के साथ भारत सरकार एक शुरुआत कर रही है। इसके साथ ही, लाखों लोगों को निर्धनता से बाहर निकालने की भी तत्काल आवश्यकता है और इस स्थिति को अभी संबोधित करना अनिवार्य है क्योंकि कृषि उत्पादकता में गिरावट के परिणामस्वरूप खाद्य कीमतों में वृद्धि होगी और इसका अर्थ होगा उनके लिये अधिक आर्थिक कठिनाइयाँ।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘वैश्विक स्तर उभरते मौजूदा संकट प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर रहे हैं।" चर्चा कीजिये।