सामाजिक न्याय
भारत में दत्तक ग्रहण
- 12 Apr 2022
- 10 min read
प्रिलिम्स के लिये:दत्तक ग्रहण (प्रथम संशोधन) विनियम, 2021 मेन्स के लिये:भारत में बाल दत्तक ग्रहण एवं संबंधित मुद्दे, बच्चों से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में बच्चों को गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया को सरल बनाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के लिये सहमति व्यक्त की है।
- वर्ष 2021 में सरकार द्वारा दत्तक ग्रहण (प्रथम संशोधन) विनियम, 2021 को अधिसूचित किया गया था, जिसने विदेशों में भारतीय राजनयिक मिशनों को गोद लिये गए ऐसे बच्चों की सुरक्षा के प्रभारी होने की अनुमति दी थी, जिनके माता-पिता गोद लेने के दो वर्ष के भीतर बच्चे के साथ विदेश चले जाते हैं।
भारत में बच्चे को गोद लेने से संबंधित मुद्दे:
- घटती सांख्यिकी और संस्थागत उदासीनता:
- गोद लेने वाले बच्चों की संख्या एवं भावी माता-पिता की संख्या के बीच एक व्यापक अंतर मौजूद है, जो गोद लेने की प्रक्रिया को काफी लंबा कर सकता है।
- आँकड़ों से पता चलता है कि जहाँ 29,000 से अधिक संभावित माता-पिता गोद लेने के इच्छुक हैं, वहीं गोद लेने के लिये केवल केवल 2,317 बच्चे उपलब्ध हैं।
- गोद लेने के बाद बच्चा लौटना:
- केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017-19 के बीच दत्तक ग्रहण करने के बाद बच्चों को वापस करने वाले दत्तक माता-पिता में एक असामान्य उछाल दर्ज की गई।
- ‘केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण’ (CARA), महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का एक वैधानिक निकाय है। यह भारतीय बच्चों को गोद लेने के लिये नोडल निकाय के रूप में कार्य करता है और देश में गोद लेने की प्रकिया की निगरानी व विनियमन के लिये उत्तरदायी है।
- आँकड़ों के अनुसार, लौटाए गए सभी बच्चों में 60% लड़कियाँ थीं, 24% दिव्यांग बच्चे थे और कई बच्चे छह से अधिक वर्ष के थे।
- इसका प्राथमिक कारण यह है कि विकलांग बच्चों एवं बड़े बच्चों को अपने दत्तक परिवारों के साथ तालमेल बिठाने में अधिक समय लगता है।
- यह मुख्य रूप से इसलिये है, क्योंकि बड़े बच्चों को नए वातावरण में समायोजित करना चुनौतीपूर्ण लगता है, क्योंकि संस्थान बच्चों को नए परिवार के साथ रहने के लिये तैयार नहीं करता है।
- केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017-19 के बीच दत्तक ग्रहण करने के बाद बच्चों को वापस करने वाले दत्तक माता-पिता में एक असामान्य उछाल दर्ज की गई।
- विकलांगता और दत्तक ग्रहण:
- वर्ष 2018 और 2019 के बीच केवल 40 विकलांग बच्चों को गोद लिया गया था, जो वर्ष में गोद लिये गए बच्चों की कुल संख्या का लगभग 1% है।
- वार्षिक प्रवृत्तियों से पता चलता है कि हर गुज़रते वर्ष के साथ विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के घरेलू दत्तक ग्रहण की संख्या में कमी आ रही है।
- अवैध गोद और बाल तस्करी:
- वर्ष 2018 में रांची की मदर टेरेसा की मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी अपने "बेबी-सेलिंग रैकेट" के लिये विवादों में घिर गई, जब आश्रय की एक नन ने चार बच्चों को बेचने की बात कबूल की।
- इसी तरह के उदाहरण तेज़ी से सामान्य होते जा रहे हैं क्योंकि गोद लेने के लिये उपलब्ध बच्चों का पूल कम हो रहा है तथा प्रतीक्षा सूची में शामिल माता-पिता बेचैन हो रहे हैं।
- साथ ही कोविड-19 के दौरान बाल तस्करी और अवैध गोद लेने के रैकेट के खतरे के मामले सामने आए।
- ये रैकेट आमतौर पर गरीब या हाशिये के परिवारों के बच्चों को शिकार बनाते हैं तथा अविवाहित महिलाओं को अपने बच्चों को तस्करी करने वाले संगठनों में भेजने के लिये राजी या गुमराह किया जाता है।
- वर्ष 2018 में रांची की मदर टेरेसा की मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी अपने "बेबी-सेलिंग रैकेट" के लिये विवादों में घिर गई, जब आश्रय की एक नन ने चार बच्चों को बेचने की बात कबूल की।
- LGBTQ+ पितृत्व और प्रजनन स्वायत्तता:
- एक परिवार की परिभाषा के निरंतर विकास के बावजूद 'आदर्श' भारतीय परिवार के केंद्र में अभी भी एक पति, एक पत्नी और बेटी (बेटियाँ) व पुत्र (पुत्रों) शामिल होते हैं।
- फरवरी 2021 में LGBTQI+ विवाहों की कानूनी मान्यता की मांग वाली याचिकाओं को संबोधित करते हुए सरकार ने कहा कि LGBTQI+ संबंधों की तुलना पति, पत्नी और बच्चों की “भारतीय परिवार इकाई अवधारणा” से नहीं की जा सकती।
- LGBTQI+ विवाहों की अमान्यता और कानून की नज़र में संबंध LGBTQI+ व्यक्तियों को माता-पिता बनने से रोकते हैं क्योंकि एक जोड़े के लिये बच्चा गोद लेने की न्यूनतम योग्यता उनकी शादी का प्रमाण है।
- इन प्रतिकूल वैधताओं पर बातचीत करने के लिये समुदायों के बीच अवैध रूप से गोद लेना आम होता जा रहा है।
- इसके अलावा सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2020 और सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक, 2020 के प्रावधान LGBTQI+ परिवारों को पूरी तरह से बाहर कर देते हैं, जिससे उनकी प्रजनन स्वायत्तता समाप्त हो जाती है।
- एक परिवार की परिभाषा के निरंतर विकास के बावजूद 'आदर्श' भारतीय परिवार के केंद्र में अभी भी एक पति, एक पत्नी और बेटी (बेटियाँ) व पुत्र (पुत्रों) शामिल होते हैं।
भारत में बच्चे को गोद लेने से संबंधित कानून:
- भारत में दत्तक ग्रहण, हिंदू दत्तक ग्रहण एवं रखरखाव अधिनियम, 1956 (HAMA) तथा किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत होता है।
- हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम, 1956 कानून एवं न्याय मंत्रालय के क्षेत्र में आता है तथा किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice Act), 2015 महिला और बाल विकास मंत्रालय से संबंधित है।
- सरकारी नियमों के अनुसार, हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख को बच्चा गोद लेने का वैध अधिकार हैं।
- किशोर न्याय अधिनियम, गैर-हिंदू व्यक्तियों के लिये उनके समुदाय के बच्चों के अभिभावक बनने हेतु अभिभावक और वार्ड अधिनियम (जीडब्ल्यूए), 1980 एकमात्र साधन था।
- हालांँकि जीडब्ल्यूए व्यक्तियों को कानूनी अभिभावक के रूप में नियुक्त करता है, न कि प्राकृतिक माता-पिता के रूप में नाबालिक के 21 वर्ष के हो जाने और व्यक्तिगत पहचान ग्रहण करने के बाद उसकी संरक्षकता समाप्त कर दी जाती है।
आगे की राह
- बाल कल्याण को प्राथमिकता देने की आवश्यकता:
- बच्चे को गोद लेने का प्राथमिक उद्देश्य उसका कल्याण और परिवार के उसके अधिकार को बहाल करना है।
- ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (कारा) और मंत्रालय को संस्थानों में पीड़ित बच्चों के कमज़ोर और अदृश्य समुदाय पर ध्यान देना चाहिये।
- संस्थागत जनादेश को मज़बूत करने की आवश्यकता:
- गोद लेने वाले पारिस्थितिकी तंत्र को माता-पिता-केंद्रित दृष्टिकोण से बाल-केंद्रित दृष्टिकोण में बदलने की आवश्यकता है।
- समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता:
- एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है जो स्वीकृति, विकास और कल्याण का वातावरण निर्मित कर बच्चे की ज़रूरतों पर ध्यान केंद्रित करता हो तथा इस प्रकार गोद लेने की प्रक्रिया में बच्चों को समान हितधारकों के रूप में मान्यता देता हो।
- दत्तक ग्रहण प्रक्रिया को सरल बनाने की आवश्यकता:
- गोद लेने की प्रक्रिया को निर्देशित करने वाले विभिन्न विनियमों पर बारीकी से विचार कर गोद लेने की प्रक्रिया को सरल बनाने की आवश्यकता है।
- मंत्रालय इस क्षेत्र में कार्य करने वाले संबंधित विशेषज्ञों के साथ काम कर सकता है ताकि संभावित माता-पिता के सामने आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों पर प्रतिक्रिया प्राप्त की जा सके।