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नैदानिक परीक्षण नियमों का नया मसौदा

  • 26 Mar 2019
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नैदानिक परीक्षण नियमों का एक नया मसौदा जारी किया गया जिसमें नई दवाओं को त्वरित स्वीकृति प्रदान करने और देश में नैदानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये कदम उठाते हुए सरकार ने दवा कंपनियों को भारत में नई दवाओं के परीक्षण में छूट देने का फैसला किया है लेकिन यह छूट केवल ऐसे मामलों में दी जाएगी जिसमें दवाओं को भारत के शीर्ष औषधि नियामक केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation-CDSCO) द्वारा मान्यता प्राप्त है तथा CDSCO द्वारा निर्दिष्ट देशों में उनका विपणन किया जाता है।

  • यह छूट उन दवाओं के परीक्षण के लिये भी मिलेगी, जिनके विपणन के लिये अनुमोदन मिल चुका है लेकिन भारत में उन पर परीक्षण चल रहा है।

क्या कहते हैं नए नियम?

  • स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा अधिसूचित नए नैदानिक परीक्षण नियमों के अनुसार, भारत में किये जाने वाले किसी नैदानिक परीक्षण के दौरान घायल होने वाले मरीज़ों को ‘जब तक आवश्यक हो’ या जब तक यह सिद्ध नहीं हो जाता कि चोट का संबंध परीक्षण से नहीं है, तब तक के लिये चिकित्सकीय देख-रेख प्राप्त करने का अधिकार होगा।
  • नए नियमों के अनुसार, जिन रोगियों ने किसी नई दवा की जाँच के लिये किये जाने वाले नैदानिक परीक्षण में भाग लिया है, परीक्षण समाप्त होने के बाद उन्हें प्रायोजक द्वारा वह दवा नि:शुल्क लेकिन कुछ संशोधनों के साथ प्राप्त हो सकती है।
    यदि किसी मरीज़ को एक अनुसंधान भागीदार के रूप में नामांकित किया जाता है, तो शोधकर्त्ता का यह कर्त्तव्य है कि वह उस प्रतिभागी की देखभाल करे।
  • एक प्रतिभागी जो किसी नैदानिक परीक्षण में अधिकतम जोखिम उठा रहा है, उसे पर्याप्त उपचार प्राप्त करने, अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने और पर्याप्त मुआवज़ा प्राप्त करने का अधिकार है (चोटों या मृत्यु के मामले में)।
  • उल्लेखनीय है कि भारत के नैदानिक परीक्षण नियमों के पिछले मसौदे में प्रायोजक को रोगी की मृत्यु या स्थायी विकलांगता के मामले में क्षतिपूर्ति का 60 प्रतिशत भुगतान करने का आदेश दिया गया था।

विशेषताएँ

  • इंडियन सोसाइटी ऑफ़ क्लिनिकल रिसर्च (Indian Society of Clinical Research-ISCR) के अनुसार, नए नियम बहुत संतुलित हैं। यह उन रोगियों के अधिकारों, सुरक्षा और भलाई को ध्यान में रखेगा जो नैदानिक परीक्षणों में भाग लेते हैं इसके अलावा यह नैतिक और गुणवत्तापूर्ण नैदानिक परीक्षणों के संचालन में वृद्धि करेगा जिससे रोगियों के लिये आवश्यक नई दवाओं के विकास में मदद मिलेगी।
  • ऐसे नियम पहली बार परिभाषित किये गए हैं जो रोगियों के लिये आवश्यक दवाओं की जाँच के बाद पहुँच प्रदान करने की शर्तें निर्धारित करते हैं।
  • वैश्विक नैदानिक परीक्षणों के लिये अनुमोदन की समय-सीमा 90 कार्य दिवस है। नए नियम वैश्विक दवा विकास में भारत की भागीदारी का समर्थन करेंगे क्योंकि यह समय-सीमा भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में बढ़त प्रदान करती है और नैदानिक परीक्षण के संबंध में भारत के ये नियम विकसित देशों के नियमों के अनुरूप हैं।
  • कुछ कार्यकर्त्ताओं द्वारा निःशुल्क परीक्षण के बाद दवा तक निःशुल्क पहुँच या पोस्ट-ट्रायल एक्सेस को एक अच्छा कदम माना गया है, क्योंकि अक्सर ये दवाएँ सस्ती नहीं होती हैं। कार्यकर्त्ताओं ने नए नियमों में अन्य प्रावधानों को शामिल किये जाने के साथ ही कुछ चिंताओं को भी व्यक्त किया है जिसमें मुआवज़ा मानदंड और परीक्षण संबंधी कुछ छूट शामिल हैं।
  • नए नियमों पर सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, मृत्यु और स्थायी विकलांगता के मामलों में क्षतिपूर्ति या किसी परीक्षण में भाग लेने वाले प्रतिभागी की अन्य प्रकार की चोटों का निर्धारण भारत की सर्वोच्च दवा नियामक संस्था, भारतीय औषधि महानियंत्रक (Drug Controller General of India-DCGI) द्वारा किया जाएगा। लेकिन रोगियों के लिये कार्य करने वाले कुछ कार्यकर्त्ताओं का मानना है कि परीक्षण में भाग लेने वाले प्रतिभागी हेतु किसी भी प्रकार की क्षतिपूर्ति तय करने के लिये एक समिति होनी चाहिये जो पारदर्शी तरीके से कार्य करे।

समस्याएँ

रोगियों के लिये कार्य करने वाले कुछ कार्यकर्त्ताओं का मानना है कि ऐसी छूट से समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

  • समस्या यह है कि भारत विशाल नस्लीय विविधता वाला देश है और इस प्रकार के परीक्षण अधिकांशतः पश्चिमीं देशों में किये जाते हैं। उदाहरण के लिये यदि किसी दवा की खोज अमेरिका जैसे देश में की जाती है तो इस दवा का परीक्षण एक श्वेत आबादी पर किया जाता है, इसलिये भारत की विविधता को देखते हुए नस्लीय रूप से विविध आबादी के लिये परीक्षण की आवश्यकता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या यह दवा हमारी विविध आबादी के अनुरूप होगी।
  • यदि सरकार उस स्थिति के लिये सचेत नहीं है जिसमें वह इस प्रकार की छूट देती है तो ऐसे मामलों में दी जाने वाली छूट खतरनाक हो सकती है। इस प्रकार यह छूट केवल आवश्यक दवाओं के लिये होनी चाहिये जैसे कि पहले दी जाती थी।
  • नए नियमों के अनुसार, जब तक यह सिद्ध नहीं हो जाता कि चोट नैदानिक परीक्षण के कारण नहीं है, तब तक चिकित्सा प्रबंधन प्रदान करने संबंधी नियम में हेर-फेर किया जा सकता है। क्योंकि जिस दवा का परीक्षण/अध्ययन किया जा रहा है वह अच्छी तरह से ज्ञात नहीं है, ऐसे में यह यह सिद्ध करना मुश्किल हो सकता है कि चोट किसी परीक्षण के दौरान लगी है या नहीं।

केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO)

  • केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation-CDSCO) भारतीय दवाओं एवं चिकित्सा उपकरणों के लिये एक राष्ट्रीय विनियामक निकाय है।
  • औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा सौंपे गए कृत्यों का निर्वहन करने के लिये यह केंद्रीय औषधि प्राधिकरण है।
  • CDSCO में भारतीय औषधि महानियंत्रक (Drug Controller General of India-DCGI) औषधि एवं चिकित्सा उपकरणों का विनियमन करता है।

CDSCO के कार्य

  • औषधि के आयात पर विनियामक नियंत्रण, नई औषधियों एवं नैदानिक परीक्षणों का अनुमोदन औषधि परामर्शीय समिति एवं औषधि तकनीकी सलाहकारी बोर्ड की बैठकें, केंद्रीय लाइसेंस अनुमोदन प्राधिकरण के तौर पर कुछ विशिष्ट लाइसेंसों की अनुमति देना आदि।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस

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