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डेली न्यूज़

  • 05 Jul, 2021
  • 58 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

स्वतंत्र निदेशकों के लिये नए मानदंड

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड

मेन्स के लिये:

एक कंपनी में स्वतंत्र निदेशकों का महत्त्व एवं उनसे संबंधित सेबी के दिशा-निर्देश

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति से संबंधित कड़े मानदंडों को मंज़ूरी दे दी है और अन्य उपायों के साथ-साथ मान्यता प्राप्त निवेशकों के लिये एक रूपरेखा प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है।

  • सेबी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार स्थापित एक वैधानिक निकाय है। सेबी का मूल कार्य प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा करना तथा प्रतिभूति बाज़ार को बढ़ावा देने के साथ ही इसे विनियमित करना है।

प्रमुख बिंदु:

स्वतंत्र निदेशक:

  • शेयरधारकों द्वारा पारित एक विशेष प्रस्ताव के माध्यम से ही स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति की जा सकती है। एक विशेष प्रस्ताव को पारित होने के पक्ष में 75% मतों की आवश्यकता होती है।
  • नियामक ने स्वतंत्र निदेशक बनने के लिये आवश्यक कौशल प्रकटीकरण आवश्यकताओं को भी विस्तृत और मज़बूत किया है।
  • निदेशक मंडल की नामांकन और पारिश्रमिक समिति, जो नियुक्तियों और मुआवजे से संबंधित निर्णय लेती है एवं लेखा परीक्षा समिति में अब साधारण बहुमत की तुलना में दो-तिहाई स्वतंत्र निदेशक होने चाहिये।
    • संबंधित पार्टी के सभी लेन-देन (एक कंपनी और उसकी संबंधित संस्थाओं के बीच) को ऑडिट समिति में केवल स्वतंत्र निदेशकों द्वारा अनुमोदित किया जाएगा।
  • साथ ही एक सूचीबद्ध कंपनी को एक स्वतंत्र निदेशक के त्यागपत्र का खुलासा करना आवश्यक होगा।
    • साथ ही एक स्वतंत्र निदेशक के लिये एक ही कंपनी/होल्डिंग/सहायक/सहयोगी कंपनी या प्रमोटर समूह से संबंधित किसी भी कंपनी में पूर्णकालिक निदेशक के रूप में संक्रमण के लिये एक वर्ष की ‘कूलिंग अवधि’ होगी।

स्वतंत्र निदेशक

  • स्वतंत्र निदेशक (जिसे प्रायः बाह्य निदेशक के रूप में भी जाना जाता है) अल्पसंख्यक शेयरधारकों का प्रतिनिधित्व करने वाले निदेशक मंडल में शामिल एक निदेशक होता है और जिसका कंपनी या संबंधित व्यक्तियों के साथ कोई आर्थिक संबंध (बैठक शुल्क के अतिरिक्त) नहीं होता है।
  • स्वतंत्र निदेशक का प्राथमिक कार्य स्वतंत्र पक्ष लेना होता है, ताकि बहुसंख्यक शेयरधारकों पर नियंत्रण और संतुलन स्थापित किया जा सके, जो कंपनी को अनुचित जोखिमों में डाल सकता है।
  • कंपनी अधिनियम, 2013 ने सभी सूचीबद्ध सार्वजनिक कंपनियों के लिये कुल निदेशकों में से कम-से-कम एक-तिहाई को स्वतंत्र निदेशक के रूप में नियुक्त करना अनिवार्य किया है।
  • स्वतंत्र निदेशक के तौर पर उनकी भूमिका उन्हें सैंद्धांतिक होने को मजबूर करती है, वहीं व्यवसाय उनसे व्यावहारिक होने की उम्मीद करता है, जिसके कारण उनके लिये संतुलन स्थापित करना चुनौतीपूर्ण होता है।

​मान्यता प्राप्त निवेशक 

  • सेबी ने समृद्ध एवं जानकार निवेशकों की इस नई श्रेणी को मंज़ूरी दी है, जिन्हें जोखिम वाले उत्पादों में निवेश करने की अनुमति दी जाएगी, जबकि आमतौर पर निजी व्यक्तियों को इसकी अनुमति नहीं दी जाती है।
  • ये संस्थाएँ (मान्यता प्राप्त निवेशक) व्यक्ति, पारिवारिक ट्रस्ट, स्वामित्व आदि हो सकती हैं।
  • उन्हें सेबी के नियमों में अनिवार्य न्यूनतम राशि से कम निवेश करने की छूट दी जाएगी और कुछ हद तक नियामक आवश्यकताओं से छूट भी मिलेगी।
  • यह ‘वैकल्पिक निवेश कोष’ (AIFs) के आकर्षण को बढ़ाएगा।
    • ‘वैकल्पिक निवेश कोष’ का आशय भारत में स्थापित किसी भी ऐसे फंड से है, जो अपने निवेशकों के लाभ के लिये एक परिभाषित निवेश नीति के अनुसार निवेश करने हेतु परिष्कृत निवेशकों, चाहे भारतीय हो या विदेशी, से धन एकत्र करता है।

अन्य महत्त्वपूर्ण परिवर्तन:

  • विभिन्न भुगतान माध्यमों का उपयोग करके निवेशकों को सार्वजनिक/अधिकार के मुद्दों में भाग लेने हेतु आसान पहुँच प्रदान करने तथा सेबी ने अनुसूचित बैंकों के अलावा अन्य बैंकों को ऐसे मुद्दों के लिये बैंकर के रूप में कार्य करने की अनुमति देने का भी निर्णय लिया है।
    • प्रारंभिक और अनुवर्ती सार्वजनिक प्रस्तुतीकरण के विपरीत राइट्स इश्यू आम जनता  हेतु नहीं बल्कि कंपनी के मौजूदा शेयरधारकों के लिये खुला है।
  • भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने इनसाइडर ट्रेडिंग निषेध नियमन के तहत सूचना देने वालों के लिये इनाम की राशि को 1 करोड़ रुपए से बढ़ाकर अधिकतम 10 करोड़ रुपए कर दिया है।
    • इनसाइडर ट्रेडिंग में किसी सार्वजनिक कंपनी के स्टॉक में किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा व्यापार करना शामिल है जिसके पास किसी भी कारण से उस स्टॉक के बारे में गैर-सार्वजनिक, भौतिक जानकारी है।
  • नियामक ने अपने म्यूचुअल फंड नियमों में संशोधन को भी मंज़ूरी दे दी है, जिसके लिये परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों (AMC) को जोखिम वाली योजनाओं (नए फंड) में अधिक धन का उपयोग करने की आवश्यकता होती है।
    • वर्तमान में AMC को नए फंड ऑफर में एकत्रित की गई राशि का केवल 1% या 50 लाख रुपए, जो भी कम हो, का निवेश करना होता है।
  • नए मानदंड 1 जनवरी, 2022 से प्रभावी होंगे।

महत्त्व:

  •  ये परिवर्तन कॉर्पोरेट गवर्नेंस के कार्यों को मज़बूत करने के साथ-साथ अधिक निवेशकों को आकर्षित करना चाहते हैं।
  • यह कॉरपोरेट कार्यालय (Boardroom) में अल्पसंख्यक शेयरधारकों के हित को बनाए रखने में मदद करेगा जहाँ उनका प्रतिनिधित्व न्यूनतम है।
  • आशा है कि इसके माध्यम से स्वतंत्र निदेशक वास्तव में 'स्वतंत्र' हो सकेंगे और उनके पास केवल नाम की स्वतंत्रता नहीं होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

आर्कटिक के 'लास्ट आइस एरिया' का पिघलना

प्रिलिम्स के लिये:

ध्रुवीय भंवर, ग्रीष्म लहर, लास्ट आइस एरिया की विश्व के मानचित्र में स्थिति 

मेन्स के लिये:

आर्कटिक बर्फ के पिघलने का कारण और प्रभाव

चर्चा में क्यों?

ग्रीनलैंड के उत्तर में आर्कटिक क्षेत्र में स्थित 'लास्ट आइस एरिया' (Last Ice Area- LIA) वैज्ञानिकों की अपेक्षा से पहले ही पिघलने लगा है।

Last-Ice-Area

प्रमुख बिंदु:

लास्ट आइस एरिया:

  • यह क्षेत्र कनाडा के नुनावुत क्षेत्र में ग्रीनलैंड और एलेस्मेरे द्वीप (Ellesmere Island) के उत्तर में स्थित है।
  • इस क्षेत्र को  ग्लोबल वार्मिंग को सहन करने के लिये मज़बूत माना जाता था।
    • आर्कटिक में ग्रीष्मकालीन बर्फ के वर्ष 2040 तक पूरी तरह से गायब होने का अनुमान लगाया गया था, हालाँकि 'लास्ट आइस एरिया' इसका अपवाद है।
  • विश्व वन्यजीव कोष (WWF)-कनाडा ने इस क्षेत्र को पहली बार 'लास्ट आइस एरिया' कहा।

महत्त्व:

  • यह क्षेत्र बर्फ पर निर्भर प्रजातियों की मदद करने में सक्षम माना जाता था क्योंकि इसके आसपास के क्षेत्रों में बर्फ पिघल गई थी जिसके कारण वहाँ जीवन निर्वाह असंभव था।
  • इसका उपयोग ध्रुवीय भालुओं द्वारा उन सीलों (Seals) का शिकार करने के लिये किया जाता है जो अपनी संतानों के लिये मांद बनाने हेतु बर्फ का उपयोग करते हैं। वालरस भी बर्फ की सतह का उपयोग भोजन की खोज के लिये करते हैं।
  • समुद्री बर्फ इनुइतों (Inuit) के लिये एक राजमार्ग का कार्य करती है, जो इसका उपयोग यात्रा और शिकार करने के लिये करते हैं।
    • इनुइत शब्द मोटे तौर पर अलास्का, कनाडा और ग्रीनलैंड की आर्कटिक स्वदेशी आबादी को संदर्भित करता है।

बर्फ पिघलने का कारण:

  • लगभग 80% विरलन (Thinning) के लिये मौसम संबंधित कारकों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है जैसे कि हवाएँ बर्फ को तोड़कर उसे चारों ओर फैलाती हैं।
  • शेष 20% हेतु ग्लोबल वार्मिंग को लंबे समय तक बर्फ के विरलन के लिये  ज़िम्मेदार ठहराया गया है।

आर्कटिक के बारे में:

  • आर्कटिक पृथ्वी के सबसे उत्तरी भाग में स्थित एक ध्रुवीय क्षेत्र है।
  • आर्कटिक के अंतर्गत आर्कटिक महासागर, निकटवर्ती समुद्र और अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड (डेनमार्क), आइसलैंड, नॉर्वे, रूस और स्वीडन को शामिल किया जाता है।
  • आर्कटिक क्षेत्र के भीतर की भूमि में मौसमी रूप से अलग-अलग बर्फ का आवरण है।
  • वर्ष 2013 से भारत को आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है जो आर्कटिक के पर्यावरण और विकास पहलुओं पर सहयोग के लिये प्रमुख अंतर-सरकारी मंच है।

आर्कटिक बर्फ के पिघलने का प्रभाव:

  • वैश्विक जलवायु: वैश्विक स्तर पर आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्र एक प्रशीतक की तरह कार्य करते हैं, चूँकि ये क्षेत्र बर्फ और हिमपात की सफेद चादर से ढके हैं जो ऊष्मा की मात्रा को वापस अंतरिक्ष में भेज देते हैं (अल्बेडो प्रभाव)। ये विश्व  के उन अन्य हिस्सों को संतुलित करते हैं जो गर्मी को अवशोषित करने का कार्य करते हैं।
  • तटीय समुदाय: वर्ष1900 के बाद वैश्विक रूप से समुद्र के औसत स्तर में लगभग 7-8 इंच की वृद्धि हुई है तथा दिनोंदिन यह स्थिति और भी खतरनाक होती जा रही है। समुद्र जल का बढ़ता स्तर तटीय शहरों और छोटे द्वीपीय राष्ट्रों में तटीय बाढ़ और तूफानों की बारंबारता में वृद्धि कर सकता है।
  • खाद्य सुरक्षा: ध्रुवीय भँवर/पोलर वोर्टेक्स (Polar vortexes), ग्रीष्म लहर (Heat Waves) तथा बर्फ के पिघलने के कारण मौसम की अप्रत्याशितता पहले से ही फसलों को नुकसान पहुंँचा रही है, जिन पर वैश्विक खाद्य प्रणालियांँ निर्भर हैं।
  • पर्माफ्रॉस्ट और ग्लोबल वार्मिंग: आर्कटिक क्षेत्र में पर्माफ्रॉस्ट (ज़मीन जो स्थायी रूप से जमी हुई है) बड़ी मात्रा में मीथेन का भंडारण करती है, जो ग्रीनहाउस गैस तथा जलवायु परिवर्तन में योगदान करती है।
  • जैव विविधता का खतरा: आर्कटिक की बर्फ का पिघलना आर्कटिक क्षेत्र की जीवंत जैव विविधता को गंभीर खतरे में डालता है।

आर्कटिक में भारत के हित:

  • हाल ही में भारत ने तीसरे आर्कटिक विज्ञान मंत्रिस्तरीय (Arctic Science Ministerial- ASM) में भाग लिया और आर्कटिक क्षेत्र में अनुसंधान एवं दीर्घकालिक सहयोग के लिये योजनाओं को साझा किया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कृषि

एंटी-मेथेनोजेनिक फीड सप्लीमेंट: हरित धारा

प्रिलिम्स के लिये: 

राष्ट्रीय पशुधन मिशन, राष्ट्रीय गोकुल मिशन, पशुपालन अवसंरचना विकास कोष, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, हरित धारा, एंटी-मिथेनोजेनिक फीड सप्लीमेंट

मेन्स के लिये: 

पशुधन और इससे संबंधित उद्योगों का विकास तथा पर्यावरणीय चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) ने  'हरित धारा' (Harit Dhara) नामक एक एंटी-मिथेनोजेनिक फीड सप्लीमेंट (Anti-Methanogenic Feed Supplement) विकसित किया है, जो मवेशियों द्वारा किये जाने वाले मीथेन उत्सर्जन में 17-20% की कटौती कर सकता है और इसके परिणामस्वरूप दूध का उत्पादन भी बढ़ सकता है।

प्रमुख बिंदु 

हरित धारा के विषय में:

  • हरित धारा हाइड्रोजन उत्पादन के लिये ज़िम्मेदार आमाशय/रुमेण (Rumen) में प्रोटोजोआ रोगाणुओं की आबादी को कम करता है और मीथेन तथा कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की कमी हेतु आर्किया (बैक्टीरिया समान संरचना) को उपलब्ध कराता है।
  • इसे टैनिन युक्त पौधों पर आधारित स्रोतों से बनाया गया है। टैनिन, कड़वे और कसैले रासायनिक यौगिकों वाले उष्णकटिबंधीय पौधों को रुमेण से प्रोटोजोआ को हटाने के लिये जाना जाता है।
  • हरित धारा का उपयोग करने के बाद किण्वन अधिक प्रोपियॉनिक अम्ल (Propionic Acid) का उत्पादन करने में मदद करेगा, जो लैक्टोज (दूध शर्करा) के उत्पादन और शरीर के वज़न को बढ़ाने के लिये अधिक ऊर्जा प्रदान करता है।

मवेशियों में मीथेन का उत्पादन:

  • रुमेण, चार कोष्ठ (Stomachs) में से पहला है जहाँ मवेशी द्वारा खाए गए पदार्थ का  सेलूलोज़, फाइबर, स्टार्च, शर्करा आदि पचता है। ये आगे पाचन और पोषक तत्त्वों के अवशोषण से पहले सूक्ष्मजीवों द्वारा किण्वित कर दिये जाते हैं।
  • कार्बोहाइड्रेट किण्वन से कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन का उत्पादन होता है। इनका उपयोग रुमेण में मौजूद रोगाणुओं (आर्किया) द्वारा मीथेन का उत्पादन करने के लिये किया जाता है।

मवेशियों द्वारा मीथेन उत्सर्जन:

  • वैश्विक स्तर पर कुल 90 मिलियन टन से अधिक पशुधन में से भारत में बेल्चिंग मवेशी, भैंस, भेड़ तथा बकरियाँ वार्षिक अनुमानित 9.25 मिलियन टन  से 14.2 मिलियन टन मीथेन का उत्सर्जन करती हैं।
  • 2019 की पशुधन जनगणना के अनुसार भारत की मवेशियों की आबादी में 193.46 मिलियन गाय के साथ-साथ 109.85 मिलियन भैंसे, 148.88 मिलियन बकरियाँ, 74.26 मिलियन भेड़ें थी।

Livestock-Headcount

  • बड़े पैमाने पर कृषि अवशेषों- गेहूँ / धान की भूसी और मक्का, ज्वार या बाजरा को चारे के रूप में खिलाए जाने के कारण भारत में जुगाली करने वाले पशु अपने समकक्ष औद्योगिक देशों  की तुलना में 50-100% अधिक मीथेन का उत्पादन करते हैं, जिन्हें अधिक आसानी से किण्वित / पचने योग्य सांद्रता, साइलेज और हरा चारा दिया जाता है।
  • मीथेन की ग्लोबल वार्मिंग क्षमता इसे 100 वर्षों में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का 25 गुना अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस बनाती है।

पशुधन से संबंधित सरकारी पहल:

  • पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (AHIDF): इसकी स्थापना डेयरी प्रोसेसिंग, वैल्यू एडिशन और पशु आहार इंफ्रास्ट्रक्चर में निजी निवेश को सपोर्ट करने के लिये की गई थी।
  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन: इसका उद्देश्य गोजातीय आबादी की स्वदेशी नस्लों का विकास और संरक्षण करना है, साथ ही दूध उत्पादन को बढ़ाना और इसे किसानों के लिये अधिक लाभकारी बनाना है।
  • राष्ट्रीय पशुधन मिशन: इसे वर्ष 2014-15 में पशुधन उत्पादन प्रणालियों और सभी हितधारकों के क्षमता निर्माण में मात्रात्मक तथा गुणात्मक सुधार सुनिश्चित करने के लिये शुरू किया गया था।
  • राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम: इसे कुछ रोगों के प्रसार को रोकने के लिये शुरू किया गया था जो कि जननांग प्रकृति के होते हैं, जिससे नस्ल की दक्षता में वृद्धि होती है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

UDISE+ 2019-20 रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

यूनाइटेड इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+)

मेन्स के लिये:

भारत में स्कूली शिक्षा की स्थिति और इसमें सुधार हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने भारत में स्कूली शिक्षा के लिये ‘यूनाइटेड इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस’ (UDISE+) 2019-20 रिपोर्ट जारी की है।

यूनाइटेड इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+)

  • यह स्कूली शिक्षा पर सबसे बड़ी प्रबंधन सूचना प्रणाली में से एक है। इसे वर्ष 2018-2019 में डेटा प्रविष्टि में तेज़ी लाने, त्रुटियों को कम करने, डेटा गुणवत्ता में सुधार करने और डेटा सत्यापन को आसान बनाने हेतु लॉन्च किया गया था।
  • यह स्कूल और उसके संसाधनों से संबंधित कारकों के विषय में विवरण एकत्र करने संबंधी एक एप्लीकेशन है।
    • यह UDISE का एक अद्यतित और उन्नत संस्करण है, जिसे शिक्षा मंत्रालय द्वारा वर्ष 2012-13 में शुरू किया गया था।
  • इसमें 1.5 मिलियन से अधिक स्कूल, 8.5 मिलियन शिक्षक और 250 मिलियन बच्चे शामिल हैं।
  • यह भारत भर के सरकारी और निजी स्कूलों में कक्षा 1 से 12 तक के शिक्षा मानकों को मापने में मदद करता है।

प्रमुख बिंदु: 

कुल छात्र:

  • वर्ष 2019-20 में प्री-प्राइमरी से लेकर हायर सेकेंडरी तक स्कूली शिक्षा में कुल विद्यार्थियों की संख्या 26.45 करोड़ के पार पहुँच गई है। यह 2018-19 की तुलना में 42.3 लाख अधिक है।

सकल नामांकन अनुपात:

  • स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर सकल नामांकन अनुपात (GER) में 2018-19 की तुलना में 2019-20 में सुधार हुआ है।
    • उच्च प्राथमिक स्तर 87.7% से बढ़कर 89.7% हो गया।
    • प्राथमिक स्तर 96.1% से बढ़कर 97.8% हो गया।
    • माध्यमिक स्तर 76.9% से बढ़कर 77.9% हो गया।
    • हायर सेकेंडरी लेवल 50.1% से बढ़कर 51.4% हो गया।
  • GER शिक्षा के किसी दिये गए स्तर में नामांकित छात्रों की संख्या है, चाहे वह किसी भी उम्र के हों, शिक्षा के समान स्तर के अनुरूप आधिकारिक स्कूल-आयु की आबादी के प्रतिशत के रूप में व्यक्त की जाती है।

छात्र अध्यापक अनुपात:

  • वर्ष 2019-20 में 96.87 लाख शिक्षक विद्यालयी शिक्षा में संलग्न थे। यह वर्ष 2018-19 की तुलना में लगभग 2.57 लाख अधिक हैं।
  • स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर छात्र शिक्षक अनुपात में सुधार हुआ है।

दिव्यांग छात्रों का नामांकन:

  • वर्ष 2018-19 की तुलना में दिव्यांग छात्रों के नामांकन में 6.52% की वृद्धि हुई है।

लड़कियों का नामांकन:

  • वर्ष 2019-20 में प्राथमिक से उच्च माध्यमिक तक लड़कियों का नामांकन 12.08 करोड़ से अधिक है। इसमें वर्ष 2018-19 की तुलना में 14.08 लाख की वृद्धि हुई है।

लिंग समानता सूचकांक:

  • वर्ष 2012-13 और 2019-20 के बीच माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक दोनों स्तरों पर लिंग समानता सूचकांक (GPI) में सुधार हुआ है।
    • प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक शिक्षा में GPI, शिक्षा के प्राथमिक, माध्यमिक व तृतीयक स्तरों पर नामांकित महिला छात्रों की संख्या तथा प्रत्येक स्तर पर पुरुष छात्रों की संख्या का अनुपात है।
  • उच्चतर माध्यमिक स्तर पर GPI में सर्वाधिक सुधार हुआ है, जो वर्ष 2012-13 के 0.97 से 2019-20 में 1.04 हो गया है।

स्कूलों में सुविधाएँ:

  • विद्युत: 2019-20 में भारत के 80% से अधिक स्कूलों में कार्यात्मक बिजली थी। इसमें पिछले वर्ष 2018-19 की तुलना में 6% से अधिक का सुधार है।
  • कंप्यूटर: कार्यात्मक कंप्यूटर वाले स्कूलों की संख्या 2018-19 में 4.7 लाख से बढ़कर 2019-20 में 5.2 लाख हो गई।
  • इंटरनेट: इंटरनेट सुविधा वाले स्कूलों की संख्या 2018-19 के 2.9 लाख से बढ़कर 2019-20 में 3.36 लाख हो गई।
  • हाथ धोने की सुविधा: 2019-20 में भारत के 90% से अधिक स्कूलों में हाथ धोने की सुविधा थी। यह एक बड़ा सुधार है क्योंकि 2012-13 में यह सुविधा केवल 36.3% थी।
  • मेडिकल चेक-अप: 2019-20 में 82% से अधिक स्कूलों ने छात्रों का मेडिकल चेक-अप किया, जो पिछले वर्ष 2018-19 की तुलना में 4% से अधिक है।

कुछ महत्त्वपूर्ण सरकारी पहलें:

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय राजव्यवस्था

पंजाब सूबा आंदोलन

प्रिलिम्स के लिये:

धारा 144, अनुच्छेद-3 

मेन्स के लिये:

पंजाब सूबा आंदोलन की प्रमुख मांगें, भारत में राज्य के दर्जे को लेकर वर्तमान मांगें   

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (Shiromani Gurdwara Parbandhak Committee- SGPC) ने  4 जुलाई, 1955 को पंजाब सूबा आंदोलन (मोर्चा) के दौरान स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) के अंदर पुलिस बल द्वारा की गई कार्यवाही को याद करते हुए एक कार्यक्रम आयोजित  किया।

प्रमुख बिंदु: 

पंजाब सूबा आंदोलन के बारे में:

  • आज़ादी के तुरंत बाद पंजाब में इस आंदोलन की शुरुआत हुई। शिरोमणि अकाली दल (राजनीतिक दल) द्वारा एक पंजाबी भाषी राज्य को लेकर इस आंदोलन का नेतृत्व किया गया।
    • हालाँकि इस विचार का विरोध भी हुआ।
    • जो लोग इसकी मांग के पक्ष में थे उनके द्वारा पंजाबी सूबा अमर रहे (Punjabi Suba Amar Rahe) का नारा लगाया गया तथा मांग का विरोध करने वाले  लोग 'महा-पंजाब' (Maha-Punjab) के समर्थन में नारे लगा रहे थे।
    • अप्रैल 1955 में सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC) की धारा 144 के तहत कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिये नारों पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • पंजाबी सूबे के निर्माण की मांग ने स्वतः ही अलग हरियाणा राज्य की मांग का आधार निर्मित कर दिया।

आंदोलन की मांग:

  • एक पंजाबी भाषी राज्य का निर्माण जिसमें पंजाबी भाषी क्षेत्रों की जनसंख्या शामिल होगी।
  • किसी भी स्थायी तरीके से इसके आकार को बढ़ाने या घटाने हेतु कोई उग्र/हिंसक प्रयास न करना। पंजाबी भाषी राज्य भारतीय संविधान के अधीन होगा।

पंजाब का गठन (Formation of Punjab):

  • पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 (और राज्य पुनर्गठन आयोग की पूर्व सिफारिशों के अनुसार) के पारित होने के साथ हरियाणा वर्ष 1966 में पंजाब से अलग होकर भारत का 17वाँ राज्य बन गया।
  • इस प्रकार पूर्वी पंजाब का पूर्व राज्य अब दो राज्यों हरियाणा और पंजाब में विभाजित हो गया था।
  • कुछ क्षेत्र केंद्रशासित प्रदेश हिमाचल प्रदेश में भी स्थानांतरित कर दिया गया था।
  • पंजाब और हरियाणा दोनों की अस्थायी राजधानी के रूप में सेवा करने के लिये चंडीगढ़ को एक केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया।

राज्यों के निर्माण के लिये संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान केंद्र सरकार को मौजूदा राज्यों में से एक नया राज्य बनाने या दो राज्यों का विलय करने का अधिकार देता है। इस प्रक्रिया को राज्यों का पुनर्गठन कहा जाता है।
    • पुनर्गठन का आधार भाषायी, धार्मिक, जातीय या प्रशासनिक हो सकता है।
  • अनुच्छेद 3 निम्नलिखित प्रक्रिया प्रदान करता है:
    • राष्ट्रपति का संदर्भ (Reference) राज्य विधानसभा को भेजा जाता है।
    • राष्ट्रपति के संदर्भ के बाद एक प्रस्ताव विधानसभा में पेश किया जाता है और पारित किया जाता है।
    • विधानसभा को नए राज्य/राज्यों के निर्माण के लिये एक विधेयक पारित करना होता है।
    • एक अलग विधेयक को संसद द्वारा अनुमोदित किया जाता है।

नए राज्यों के निर्माण के फायदे और नुकसान

          लाभ

      नुकसान

आर्थिक संसाधनों का बेहतर प्रबंधन

अंतर्राज्यीय जल, विद्युत एवं सीमा विवाद में वृद्धि की संभावना

अधिक निवेश के अवसर

क्षेत्रीय स्वायत्तता के नारे में राष्ट्रवाद की भावना कम होगी

तेज़ आर्थिक विकास

छोटे राज्य वित्तीय सहायता के लिये काफी हद तक केंद्र सरकार पर निर्भर हैं

छोटे राज्य के लोग अपने राज्य के मामलों में राय अच्छी तरह से रख सकेंगे

अलग-अलग राज्य का दर्जा प्रमुख समुदाय के आधिपत्य की ओर ले जा सकता है

भारत में राज्य के दर्जे को लेकर वर्तमान मांगें:

  • विदर्भ
    • इसमें पूर्वी महाराष्ट्र के अमरावती और नागपुर डिवीज़न शामिल हैं।
  • दिल्ली
    • विभिन्न मौलिक एवं बुनियादी शक्तियों पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिये दिल्ली सरकार पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग कर रही है।
  • हरित प्रदेश
    • इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कृषि प्रधान ज़िले शामिल हैं।
  • पूर्वांचल
    • यह उत्तर-मध्य भारत का एक भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें उत्तर प्रदेश राज्य का पूर्वी हिस्सा शामिल है।
  • बोडोलैंड 
    • बोडो उत्तरी असम में सबसे बड़ा जातीय और भाषायी समुदाय है, जो अपने लिये अलग राज्य की मांग कर रहा है।
  • सौराष्ट्र
    • दक्षिण-पश्चिमी गुजरात राज्य में काठियावाड़ प्रायद्वीप, जिसे सौराष्ट्र प्रायद्वीप भी कहा जाता है, के लिये भी अलग राज्य की मांग की जा रही है।
  • गोरखालैंड
    • यह एक प्रस्तावित राज्य है, जिसमें गोरखा (नेपाली) लोगों के निवासित स्थान जैसे- पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में दार्जिलिंग पहाड़ियाँ और डुआर्स आदि शामिल हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

मानव तस्करी-रोधी विधेयक का मसौदा

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 23 (1)

मेन्स के लिये:

भारत में मानव तस्करी को प्रतिबंधित करने हेतु किये गए प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मानव तस्करी विरोधी विधेयक, व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, देखभाल और पुनर्वास) विधेयक, 2021 का मसौदा जारी किया।

  • इस विधेयक को अंतिम रूप देने और कानून बनने के लिये कैबिनेट की मंज़ूरी तथा संसद के दोनों सदनों से सहमति की आवश्यकता होगी।
  • इससे पूर्व वर्ष 2018 में  एक मसौदा पेश किया गया था, लेकिन सांसदों और विशेषज्ञों के कड़े विरोध के बीच इसे राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सका।

प्रमुख बिंदु 

पूर्व विधेयक की आलोचना:

  • संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों के अनुसार, यह अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के अनुरूप नहीं था।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि यह विधेयक यौन संबंधी कार्यों और प्रवासन को तस्करी के साथ जोड़ता है।
  • मानव अधिकार आधारित और पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ पूरक होने के बजाय आपराधिक कानून परिप्रेक्ष्य के माध्यम से तस्करी को संबोधित करने के लिये विधेयक की आलोचना की गई थी।
  •  पुलिस द्वारा "रेस्क्यू रेड" को बढ़ावा देने के साथ-साथ पुनर्वास के नाम पर पीड़ितों के संस्थागतकरण के लिये भी इसकी आलोचना की गई थी।
  • यह बताया गया था कि कुछ अस्पष्ट प्रावधानों से उन गतिविधियों का व्यापक अपराधीकरण हो जाएगा जो अनिवार्य रूप से तस्करी से संबंधित नहीं हैं।

नए विधेयक में प्रावधान:

  • यह भारत के अंदर और साथ ही भारत के बाहर सभी नागरिकों तक विस्तृत है।
    • भारत में पंजीकृत किसी भी जहाज़ या विमान पर सवार व्यक्ति, चाहे वह कहीं भी हो या भारतीय नागरिकों को कहीं भी ले जा रहा हो।
    • एक विदेशी नागरिक या एक राज्यविहीन व्यक्ति जिसका इस अधिनियम के तहत अपराध किये जाने के समय भारत में निवास है। और
    • यह कानून सीमा पार प्रभाव वाले व्यक्तियों की तस्करी के मामले में प्रत्येक अपराध पर लागू होगा।
  • इसके अंतर्गत आने वाले पीड़ित:
    • यह पीड़ितों के रूप में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा से परे है और अब इसमें ट्रांसजेंडर के साथ-साथ कोई भी ऐसा व्यक्ति शामिल है जो तस्करी का शिकार हो सकता है।
    • यह इस प्रावधान को भी समाप्त करता है कि पीड़ित के रूप में परिभाषित करने के लिये पीड़ित को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की आवश्यकता होती है।
  • शोषण:
    • वेश्यावृत्ति शोषण या अश्लील साहित्य सहित यौन शोषण के अन्य रूप, शारीरिक शोषण से संबंधित कोई भी कार्य, जबरन श्रम या सेवाएँ, दासता या दासता के समान व्यवहार, अंगों को जबरन अलग करना, अवैध नैदानिक ​​​​दवा परीक्षण या अवैध जैव-चिकित्सा अनुसंधान।
  • अपराधियों के रूप में सरकारी अधिकारी:
    • अपराधियों में रक्षाकर्मी और सरकारी कर्मचारी, डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ या प्राधिकार की स्थिति में कोई भी शामिल होगा।
  • दंड/जुर्माना (Penalty): 
    • तस्करी के अधिकतर मामलों में कम-से-कम सात वर्ष की सज़ा का प्रावधान है जिसे 10 वर्षों तक की कैद और 5 लाख रुपए के जुर्माने तक बढ़ाया जा सकता है।
    • एक से अधिक बच्चों की तस्करी के मामले में वर्तमान में आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान है।
  • धन शोधन अधिनियम से समानता:
    • इस तरह की आय के माध्यम से खरीदी गई संपत्ति के साथ-साथ तस्करी के लिये उपयोग की जाने वाली संपत्ति को अब धन शोधन अधिनियम के समान प्रावधानों के साथ ज़ब्त किया जा सकता है।
  • जाँच एजेंसी:
    • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency- NIA) मानव तस्करी की रोकथाम और उससे निपटने हेतु उत्तरदायी राष्ट्रीय जाँच और समन्वय एजेंसी के रूप में कार्य करेगी।
  • राष्ट्रीय मानव तस्करी विरोधी समिति:
    • एक बार कानून बन जाने के बाद केंद्र इस कानून के प्रावधानों के समग्र प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये एक राष्ट्रीय मानव तस्करी विरोधी समिति को अधिसूचित और स्थापित करेगा।
    • इस समिति में विभिन्न मंत्रालयों का प्रतिनिधित्व होगा, जिसमें गृह सचिव अध्यक्ष और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव सह-अध्यक्ष के रूप में होंगे।
    • राज्य एवं ज़िला स्तर पर मानव तस्करी-रोधी समितियों का भी गठन किया जाएगा।

महत्त्व:

  • विधेयक ट्रांसजेंडर समुदाय (Transgender Community) और किसी भी अन्य व्यक्ति को शामिल करता है जो स्वचालित रूप से अंगों की अवैध विक्री  जैसी गतिविधियों को अपने दायरे में लाएगा।
  • साथ ही ज़बरन मज़दूरी जैसे मामले, जिसमें लोग नौकरी के लालच में दूसरे देशों में चले जाते हैं, जहांँ उनके पासपोर्ट और दस्तावेज़ छीनकर उन्हें काम पर लगाया जाता है, भी इस नए कानून के दायरे में आएंगे।

भारत में मानव तस्करी को प्रतिबंधित करने वाले कानून:

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 23 (1) मानव तस्करी और ज़बरन श्रम पर रोक लगाता है।
  • अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम (ITPA), 1956 व्यावसायिक यौन शोषण के लिये मानव तस्करी को दंडित करता है।
  • बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 और किशोर न्याय अधिनियम के माध्यम से बंधुआ एवं ज़बरन श्रम को प्रतिबंधित किया गया है।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 336 (A) और 337 क्रमशः नाबालिगों के अपहरण और वेश्यावृत्ति पर रोक लगाती हैं।

अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, प्रोटोकॉल और अभियान:

  • अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के एक भाग के रूप में वर्ष 2000 में व्यक्तियों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने, अपराधियों को पकड़ने और दंडित करने के लिये प्रोटोकॉल। संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय (United Nations Office on Drugs and Crime- UNODC) प्रोटोकॉल को लागू करने के लिये ज़िम्मेदार है। यह राज्यों को कानूनों मसौदा तैयार करने, व्यापक राष्ट्रीय तस्करी विरोधी रणनीति बनाने और उन्हें लागू करने के लिये संसाधन उपलब्ध कराकर व्यावहारिक सहायता प्रदान करता है। 
  • भूमि, समुद्र और वायु मार्ग से प्रवासियों की तस्करी के खिलाफ प्रोटोकॉल: यह 28 जनवरी, 2004 को लागू हुआ था। यह अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन का भी पूरक है। प्रोटोकॉल का उद्देश्य प्रवासियों के अधिकारों की सुरक्षा और प्रवासियों का दुरुपयोग करने वाले संगठित आपराधिक समूहों की शक्ति एवं प्रभाव को कम करना है।
  • मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (1948) एक गैर-बाध्यकारी घोषणा है जो प्रत्येक मनुष्य को सम्मान के साथ जीने का अधिकार प्रदान करती है और दासता को प्रतिबंधित करती है।
  • ब्लू हार्ट अभियान: ब्लू हार्ट अभियान, UNODC द्वारा शुरू किया गया एक अंतर्राष्ट्रीय तस्करी-रोधी कार्यक्रम है।
  • सतत् विकास लक्ष्य: विभिन्न SDG का उद्देश्य इसकी जड़ों और साधनों को लक्षित कर तस्करी को समाप्त करना है, जैसे- लक्ष्य 5 (लैंगिक समानता हासिल करना और सभी महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाना), लक्ष्य 8 (निरंतर, समावेशी और सतत् आर्थिक विकास, पूर्ण  एवं उत्पादक रोज़गार तथा सभी के लिये अच्छे काम को बढ़ावा देना), लक्ष्य 16 (सतत् विकास के लिये शांतिपूर्ण और समावेशी समाजों को बढ़ावा देना, सभी के लिये न्याय तक पहुँच प्रदान करना व सभी स्तरों पर प्रभावी, जवाबदेह और समावेशी संस्थानों का निर्माण करना)।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

फ्लाई ऐश

प्रिलिम्स के लिये:

फ्लाई ऐश

मेन्स के लिये:

फ्लाई ऐश का उपयोग और इसके हानिकारक प्रभाव

चर्चा में क्यों?

नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (NTPC) लिमिटेड ने फ्लाई ऐश के शत-प्रतिशत उपयोग के लक्ष्य को प्राप्त करने के अपने प्रयासों के तहत मध्य-पूर्व और अन्य क्षेत्रों के नामित संयंत्रों से फ्लाई ऐश की बिक्री के लिये ‘रुचि की अभिव्यक्ति’ (Expression of Interest-EOI) आमंत्रित की है।

  • ‘फ्लाई ऐश’ तापीय विद्युत उत्पादन में कोयले के जलने से उत्पन्न उपोत्पाद है।

प्रमुख बिंदु

फ्लाई ऐश

  • परिचय
    • फ्लाई ऐश (Fly Ash) प्राय: कोयला संचालित विद्युत संयंत्रों से उत्पन्न प्रदूषक है, जिसे दहन कक्ष से निकास गैसों द्वारा ले जाया जाता है।
    • इसे इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर या बैग फिल्टर द्वारा निकास गैसों से एकत्र किया जाता है।
      • इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर (ESP) को एक फिल्टर उपकरण के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसका उपयोग प्रवाहित होने वाली गैस से धुएँ और धूल जैसे महीन कणों को हटाने के लिये किया जाता है।
      • इस उपकरण को प्रायः वायु प्रदूषण नियंत्रण संबंधी गतिविधियों के लिये प्रयोग किया जाता है। 
  • संयोजन
    • फ्लाई ऐश में पर्याप्त मात्रा में सिलिकॉन डाइऑक्साइड (SiO2), एल्युमीनियम ऑक्साइड (Al2O3), फेरिक ऑक्साइड (Fe2O3) और कैल्शियम ऑक्साइड (CaO) शामिल होते हैं।
  • गुण:
    • यह पोर्टलैंड सीमेंट के समान दिखता है परंतु रासायनिक रूप से अलग है।
      • पोर्टलैंड सीमेंट का निर्माण एक महीन पाउडर के रूप में एक संयोजनकारी सामग्री है जो चूना पत्थर और मिट्टी के मिश्रण को जलाने तथा पीसने से प्राप्त होता है।
      • इसकी रासायनिक संरचना में कैल्शियम सिलिकेट, कैल्शियम एल्युमिनेट और कैल्शियम एल्युमिनोफेराइट शामिल हैं।
    • यह सीमेंट युक्त गुण प्रदर्शित करता है। 
      • एक सीमेंट युक्त सामग्री वह है जो जल के साथ मिश्रित होने पर कठोर हो जाती है।
  • अनुप्रयोग: 
    • इसका उपयोग कंक्रीट और सीमेंट उत्पादों, रोड बेस, मेटल रिकवरी और मिनरल फिलर आदि में किया जाता है।
  • हानिकारक प्रभाव
    • फ्लाई ऐश के कण ज़हरीले वायु प्रदूषक हैं। वे हृदय रोग, कैंसर, श्वसन रोग और स्ट्रोक को बढ़ा सकते हैं।
    • ये जल के साथ मिलाने पर भूजल में भारी धातुओं के निक्षालन का कारण बनते हैं।
    • यह मृदा को भी प्रदूषित करता है और पेड़ों की जड़ विकास प्रणाली को प्रभावित करता है।

फ्लाई ऐश का उपयोग:

  •  एनटीपीसी ने फ्लाई ऐश की आपूर्ति के लिये पूरे देश के सीमेंट निर्माताओं के साथ सहभागिता की है।
  •  एनटीपीसी ने भवन निर्माण में फ्लाई ऐश ईंटों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये अपने कोयला आधारित ताप-विद्युत संयंत्रों में फ्लाई ऐश ईंट निर्माण संयंत्र स्थापित किये हैं।
    • इन ईंटों का उपयोग संयंत्रों के साथ-साथ टाउनशिप निर्माण गतिविधियों में विशेष रूप से किया जा रहा है।
    • एनटीपीसी के स्वयं के फ्लाई ऐश ईंट संयंत्रों द्वारा औसतन 60 मिलियन फ्लाई ऐश ईंटों का निर्माण प्रतिवर्ष किया जा रहा है।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार, ईंट/ब्लॉक/टाइल निर्माताओं को निःशुल्क फ्लाई ऐश उपलब्ध कराने के लिये एनटीपीसी स्टेशनों को कुल उत्पादित फ्लाई ऐश का कम-से-कम 20%  हिस्सा रिज़र्व में रखना चाहिये।
    • एनटीपीसी के स्टेशनों में उत्पादित कुल फ्लाई ऐश का लगभग 9% वार्षिक फ्लाई ऐश ईंटों/ब्लॉकों और टाइल निर्माण इकाइयों द्वारा उपयोग किया जा रहा है।
  • वर्ष 2020-21 के दौरान लगभग 15 एनटीपीसी स्टेशनों ने विभिन्न सड़क परियोजनाओं के निर्माण हेतु फ्लाई ऐश की आपूर्ति की और राख का उपयोग लगभग 20 मिलियन टन को पार कर गया। 
  • विगत पाँच वर्षों में देश में फ्लाई ऐश के उपयोग में 80% की वृद्धि हुई है।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) ने नई निर्माण प्रौद्योगिकियों (उदाहरण के लिये फ्लाई ऐश ईंटों का उपयोग) पर ध्यान केंद्रित किया है जो अभिनव, पर्यावरण के अनुकूल और आपदा के प्रति लचीले हैं।
  • यहाँ तक कि राज्य सरकारें ने भी अपनी फ्लाई ऐश उपयोग नीतियाँ प्रस्तुत की हैं जैसे- इस नीति को अपनाने वाला महाराष्ट्र पहला राज्य था।
  • सरकार द्वारा फ्लाई ऐश उत्पादन और उपयोग की निगरानी के लिये एक वेब पोर्टल और "ऐश ट्रैक" (ASHTRACK) नामक एक मोबाइल आधारित एप लॉन्च किया गया है।
  • फ्लाई ऐश और उसके उत्पादों पर जीएसटी की दरों को घटाकर 5% कर दिया गया है।

राष्ट्रीय ताप-विद्युत निगम लिमिटेड (NTPC)

  • NTPC लिमिटेड विद्युत मंत्रालय के अंतर्गत एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (Public Sector Undertaking- PSU) है। 
  • उद्देश्य : इसका मिशन नवप्रवर्तन एवं स्फूर्ति द्वारा संचालित रहते हुए किफायती, दक्षतापूर्ण एवं पर्यावरण-हितैषी तरीके से विश्वसनीय विद्युत-ऊर्जा एवं संबद्ध सेवाएँ प्रदान करना है।
  • NTPC को मई 2010 में महारत्न कंपनी का दर्जा प्राप्त हुआ। 
  • यह भारत की सबसे बड़ी विद्युत उत्पादन कंपनी है।

स्रोत: पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमेरिका की वापसी और अफगान शांति वार्ता

प्रिलिम्स के लिये: 

अफगानिस्तान और संबंद्ध क्षेत्रों की भौगौलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये: 

अमेरिका और तालिबान के मध्य समझौते की शर्तें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी सैनिकों ने 20 वर्ष के लंबे युद्ध के बाद अफगानिस्तान के सबसे बड़े एयरबेस को खाली कर अपने सैन्य अभियानों को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया है।

Afghanistan

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि:

  • 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में हुए आतंकवादी हमलों में लगभग 3,000 लोगों की मृत्यु हुई थी।
    • इस्लामिक आतंकवादी समूह अल-कायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन को इन हमलों के लिये उत्तरदायी ठहराया गया था।
  • कट्टरपंथी इस्लामवादी तालिबान, जो कि उस समय अफगानिस्तान पर शासन कर रहा था ने लादेन की रक्षा की और उसे सौंपने से इनकार कर दिया। इसलिये 9/11 हमले के एक महीने बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान के विरुद्ध हवाई हमले (ऑपरेशन एंड्योरिंग फ्रीडम) शुरू कर दिये।
  • इसके पश्चात् नाटो गठबंधन ने भी अफगानिस्तान के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।
  • लंबी कार्रवाई के पश्चात् अमेरिका ने तालिबान शासन को उखाड़ फेंका और अफगानिस्तान में एक ट्रांज़ीशनल सरकार की स्थापना की।

अमेरिका की वापसी के कारण

  • अमेरिका का मानना है कि तालिबान के विरुद्ध चल रहा यह युद्ध अजेय है।
  • अमेरिकी प्रशासन ने वर्ष 2015 में ‘मुरी’ में पाकिस्तान द्वारा आयोजित तालिबान और अफगान सरकार के बीच पहली बैठक के लिये अपना एक प्रतिनिधि भेजा था।
    • हालाँकि ‘मुरी’ वार्ता से कुछ प्रगति हासिल नहीं की जा सकी थी।
  • दोहा वार्ता: तालिबान के साथ सीधी बातचीत के उद्देश्य से अमेरिका ने अफगानिस्तान के लिये एक विशेष दूत नियुक्त किया। उन्होंने दोहा में तालिबान प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की जिसके परिणामस्वरूप फरवरी 2020 में अमेरिका और विद्रोहियों के बीच समझौता हुआ। 
    • दोहा वार्ता शुरू होने से पहले तालिबान ने कहा था कि वह केवल अमेरिका के साथ सीधी बातचीत करेगा, न कि काबुल सरकार के साथ, जिसे उन्होंने मान्यता नहीं दी थी।
    • अमेरिका ने प्रक्रिया से अफगान सरकार को अलग रखते हुए इस मांग को प्रभावी ढंग से स्वीकार कर लिया और विद्रोहियों के साथ सीधी बातचीत शुरू की।

अमेरिका और तालिबान के मध्य समझौते की शर्तें:

  • इस समझौता विवाद के चार प्रमुख पहलू- हिंसा, विदेशी सैनिकों, अंतर-अफगान शांति वार्ता तथा अल-कायदा एवं  इस्लामिक स्टेट (IS की एक अफगान इकाई) जैसे आतंकवादी समूहों द्वारा अफगान धरती के उपयोग पर आधारित हैं। 
  • समझौते के तहत यह तय किया गया था कि अमेरिकी प्रशासन 1 मई, 2021 तक अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों को वापस बुला लेगा।
    • लेकिन फिलहाल इस समयसीमा को बढ़ाकर 11 सितंबर, 2021 कर दिया गया है।
  • तालिबान ने हिंसा को कम करने, अंतर-अफगान शांति वार्ता में शामिल होने तथा विदेशी आतंकवादी समूहों के साथ अपने सभी संबंधों को समाप्त करने पर सहमति व्यक्त की है।

तालिबान तक भारत की पहुंँच:

  • भारत ने दोहा में तालिबान से संपर्क किया।
    • यह भारतीय पक्ष की ओर से देर से ही सही लेकिन तालिबान को एक यथार्थवादी स्वीकृति देने का संकेत है कि आने वाले वर्षों में तालिबान अफगानिस्तान में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
  •  तालिबान से वार्ता करने  के भारत के तीन महत्त्वपूर्ण  हित हैं:
    • अफगानिस्तान में अपने निवेश की रक्षा करना, जो अरबों रुपए का है।
    • भावी तालिबान शासन को पाकिस्तान का मोहरा बनने से रोकना।
    • यह सुनिश्चित करना कि पाकिस्तान समर्थित भारत विरोधी आतंकवादी समूहों को तालिबान का समर्थन न मिले।
  • अतीत में भारत ने तालिबान को शामिल नहीं करने का विकल्प चुना (भारत द्वारा नॉर्दन अलायंस का समर्थन किया गया था) और तालिबान के सत्ता में आने पर यह भारत के लिये सही साबित नहीं हुआ।
    • नवंबर 2001 में नॉर्दन अलायंस (Northern Alliance) ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर नियंत्रण कर लिया। नॉर्दर्न एलायंस ने तालिबान सरकार के खिलाफ एक रक्षात्मक युद्ध लड़ा जिसे अमेरिका और उन अन्य देशों द्वारा मदद की जा रही थी जो इससे सहमत थे, जिसमें ब्रिटेन भी शामिल था।

अफगानिस्तान के लिये संभावित परिदृश्य:

  • अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी ने युद्ध के मैदान में शक्ति संतुलन को बदलते हुए इसे तालिबान के पक्ष में ला दिया है।
  • वे पहले से ही बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं औरअमेरिकी सेना के देश से बाहर होने के बाद शहर के केंद्रीय भागों और प्रांतीय राजधानियों को निशाना बनाते हुए एक बड़ा हमला शुरू कर सकते हैं।
  • अफगानिस्तान के लिये इसके संभवतः तीन परिदृश्य हो सकते हैं:
    • एक राजनीतिक समझौता हो सकता है जिसमें तालिबान और सरकार शक्ति-साझाकरण तंत्र के लिये कुछ हद तक सहमत हो जाएँ तथा संयुक्त रूप से अफगानिस्तान के भविष्य को आकार दें लेकिन फिलहाल यह संभावना बहुत दूर नज़र आ रही है।
    • एक चौतरफा गृहयुद्ध संभव हो सकता है, जिसमें आर्थिक रूप से समर्थित और पश्चिमी देशों द्वारा सैन्य रूप से प्रशिक्षित सरकार प्रमुख शहरों में बनी रहेगी तथा तालिबान ग्रामीण इलाकों में अपनी पहुँच का विस्तार करेगा जबकि अन्य जातीय मिलिशिया/लड़ाके समूह अपनी जागीर के लिये लड़ते रहेंगे। यह संभावना पहले से ही पूरी होती नज़र आ रही है।
    • पूरे देश पर तालिबान का कब्ज़ा हो सकता है।

निष्कर्ष:

  • समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद अमेरिका ने अफगान सरकार पर हज़ारों तालिबानी कैदियों को रिहा करने का दबाव बनाया।
    • यह अंतर-अफगान वार्ता शुरू करने के लिये तालिबान की एक प्रमुख शर्त थी।
  • तालिबान प्रतिनिधियों और अफगान सरकार के बीच सितंबर 2020 में दोहा (Doha) में बातचीत तो शुरू हुई लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। फिलहाल शांति प्रक्रिया रुकी हुई है।
  • तालिबान ने विदेशी सैनिकों के खिलाफ शत्रुता कम कर दी लेकिन समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भी अफगान बलों पर हमला करना जारी रखा।
  • काबुल का कहना है कि तालिबान को पाकिस्तान का समर्थन विद्रोहियों को सैन्य दबाव से उबरने और अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद कर रहा है।

स्रोत: द हिंदू


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