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डेली न्यूज़

  • 03 Nov, 2023
  • 59 min read
शासन व्यवस्था

भारत की शहर-प्रणालियों का वार्षिक सर्वेक्षण, 2023

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की शहर-प्रणालियों का वार्षिक सर्वेक्षण 2023, स्थानीय सरकारें, पंचायती राज संस्थान (PRI), 74वाँ संशोधन अधिनियम।

मेन्स के लिये:

भारत की शहर-प्रणालियों का वार्षिक सर्वेक्षण 2023, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप व उनके डिज़ाइन एवं  कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

एक गैर-लाभकारी संस्थान जनाग्रह सेंटर फॉर सिटिज़नशिप एंड डेमोक्रेसी द्वारा प्रकाशित भारत के सिटी-सिस्टम्स (ASICS) 2023 का वार्षिक सर्वेक्षण भारतीय शहरों में स्थानीय सरकारों के समक्ष आने वाली चुनौतियों और बाधाओं पर प्रकाश डालता है।

ASICS रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:

  • पूर्वी राज्यों में बेहतर शहरी कानून:
    • पूर्वी राज्यों, जिनमें बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल शामिल हैं, में दक्षिणी राज्यों के बाद अपेक्षाकृत बेहतर शहरी कानून मौजूद हैं।
  • पारदर्शिता की कमी:
    • शहरी विधान सार्वजनिक डोमेन में सुलभ प्रारूप में उपलब्ध नहीं हैं। केवल 49% राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने संबंधित राज्य शहरी विभागों की वेबसाइटों पर नगरपालिका कानून प्रदर्शित किये हैं।
  • सक्रिय मास्टर प्लान का अभाव:
    • भारत में राज्यों की लगभग 39% राजधानियों में सक्रिय मास्टर प्लान का अभाव है।
  • स्थानीय सरकारों का वित्त पर सीमित नियंत्रण:
    • भारतीय शहरों में अधिकांश स्थानीय सरकारें वित्तीय रूप से अपनी संबंधित राज्य सरकारों पर निर्भर हैं, जिससे उनकी वित्तीय स्वायत्तता सीमित हो गई है।
    • भारतीय शहरों में स्थानीय सरकारों का कराधान, उधार और बजट अनुमोदन सहित प्रमुख वित्तीय मामलों पर सीमित नियंत्रण है, ज़्यादातर मामलों में राज्य सरकार की स्वीकृति की आवश्यकता होती है।
      • केवल असम ही अपनी शहरी सरकारों को सभी प्रमुख कर वसूलने का अधिकार देता है। पाँच राज्यों- बिहार, झारखंड, ओडिशा, मेघालय और राजस्थान को छोड़कर- अन्य सभी की शहरी सरकारों को धनराशि उधार लेने से पूर्व राज्य से स्वीकृति लेनी होगी।
  • शहरी श्रेणियों में विषमता:
    • विभिन्न शहरी श्रेणियों में वित्त पर प्रभाव और नियंत्रण के स्तर में असमानताएँ हैं, जिनमें मेगासिटी (>4 मिलियन जनसंख्या), बड़े शहर (1-4 मिलियन), मध्यम शहर (0.5 मिलियन-1 मिलियन), छोटे शहर (<0.5 मिलियन) शामिल हैं। 
    • मेगासिटी में मेयर सीधे नहीं चुने जाते हैं और उनका कार्यकाल पाँच वर्ष का नहीं होता है, जबकि छोटे शहरों में मेयर सीधे चुने जाते हैं लेकिन शहर के वित्त पर उनका अधिकार सीमित होता है।

  • कर्मचारियों की नियुक्तियों पर सीमित अधिकार:
    • मेयर और नगर परिषदों के पास वरिष्ठ प्रबंधन टीमों सहित कर्मचारियों की नियुक्ति तथा पदोन्नति से संबंधित सीमित अधिकार हैं, जिससे जवाबदेही तथा कुशल प्रशासन में चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • वित्तीय पारदर्शिता चुनौतियाँ:
    • त्रैमासिक वित्तीय लेखापरीक्षित विवरणों की कमी और वार्षिक लेखापरीक्षित वित्तीय विवरणों के सीमित प्रसार के कारण भारतीय शहरों को वित्तीय पारदर्शिता में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यह समस्या बड़े शहरों में अधिक है।
    • देश के केवल 28% शहर ही अपने वार्षिक लेखापरीक्षित वित्तीय विवरण प्रसारित करते हैं। यदि केवल मेगासिटी पर विचार किया जाए तो यह संख्या और भी कम होकर 17% हो जाती है।
    • जबकि बड़े शहर अपने शहर का बजट प्रकाशित करते हैं, छोटे शहर पिछड़ जाते हैं और उनमें से केवल 40% -65% ही उस जानकारी को प्रकाशित करते हैं।
  • स्टाफ की कमी:
    • भारत के नगर निगमों में 35% पद खाली हैं। नगर पालिकाओं में 41% पद रिक्त होने और नगर पंचायतों में 58% पद रिक्त होने से रिक्ति उत्तरोत्तर बदतर होती जा रही है।
  • वैश्विक महानगरों के साथ तुलना:
    • न्यूयॉर्क, लंदन और जोहान्सबर्ग जैसे वैश्विक महानगरों के साथ तुलना करने पर प्रति एक लाख आबादी पर शहर के कर्मचारियों की संख्या तथा इन शहरों को दी गई प्रशासनिक शक्तियों में महत्त्वपूर्ण अंतर दिखाई देता है।
    • प्रत्येक एक लाख की आबादी पर न्यूयॉर्क में 5,906 और लंदन में 2,936 शहरी कर्मचारी हैं, जबकि बेंगलुरु में इनकी संख्या केवल 317, हैदराबाद में 586 और मुंबई में 938 है। न्यूयॉर्क जैसे शहरों को भी कर लगाने, अपने स्वयं के बजट को मंज़ूरी देने, निवेश करने और अनुमोदन के बिना उधार लेने का अधिकार दिया गया है।

स्थानीय सरकार:

  • परिचय:
    • स्थानीय स्वशासन ऐसे स्थानीय निकायों द्वारा स्थानीय मामलों का प्रबंधन है जो स्थानीय लोगों द्वारा चुने गए हैं।
    • स्थानीय स्वशासन में ग्रामीण और शहरी दोनों सरकारें शामिल हैं।
    • यह सरकार का तृतीय स्तर है।
    • इस संचालन में 2 प्रकार की स्थानीय सरकारें हैं - ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतें और शहरी क्षेत्रों में नगर पालिकाएँ।
  • ग्रामीण स्थानीय सरकारें:
  • शहरी स्थानीय सरकारें:
    • शहरी स्थानीय सरकारों की स्थापना लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के उद्देश्य से की गई थी।
    • भारत में आठ प्रकार की शहरी स्थानीय सरकारें हैं- नगर निगम, नगर पालिका, अधिसूचित क्षेत्र समिति, शहरी क्षेत्र समिति, छावनी बोर्ड, टाउनशिप,  पोर्ट ट्रस्ट तथा विशेष प्रयोजन एजेंसी।
    • शहरी स्थानीय सरकार से संबंधित 74वाँ संशोधन अधिनियम पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार के शासनकाल के दौरान पारित किया गया था। यह 1 जून, 1993 को लागू हुआ।
      • इसमें भाग IX-A को जोड़ा गया और इसमें अनुच्छेद 243-P से 243-ZG तक प्रावधान शामिल हैं।
      • संविधान में 12वीं अनुसूची जोड़ी गई। इसमें नगर पालिकाओं के 18 कार्यात्मक अनुच्छेद शामिल हैं जो अनुच्छेद 243 W से संबंधित हैं।

भारतीय शहरों में स्थानीय शासन को बढ़ाने हेतु आवश्यक कार्य: 

  • राजकोषीय स्वायत्तता का सुदृढ़ीकरण:
    • स्थानीय सरकारों को करों की एक विस्तृत शृंखला एकत्र करने के लिये सशक्त बनाने की आवश्यकता है, जिससे वे स्वतंत्र रूप से राजस्व एकत्रित कर सकें। स्थानीय सरकारें उधार प्राप्त करने के लिये बेहतर ढंग से प्रबंधित नगर पालिकाओं के लिये राज्य सरकार की मंज़ूरी की आवश्यकता को कम करें।
  • प्रशासनिक शक्तियों का विकेंद्रीकरण:
    • विशेष रूप से नगर निगम आयुक्तों और वरिष्ठ प्रबंधन टीमों के लिये प्रमुख कर्मचारियों की नियुक्तियाँ तथा पदोन्नति करने हेतु स्थानीय सरकारों को प्रशासनिक शक्तियाँ सौंपी जानी चाहिये। इनसे शहर मज़बूत, जवाबदेह संगठनों के निर्माण में सक्षम होंगे।
  • पारदर्शिता और नागरिक सहभागिता:
    • आंतरिक ऑडिट रिपोर्ट, वार्षिक रिपोर्ट, बैठकों के मिनट और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं सहित नागरिक जानकारी के नियमित प्रकाशन को सुनिश्चित करने के लिये सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में सार्वजनिक प्रकटीकरण कानून को समान रूप से लागू करने की आवश्यकता है। ऐसी जानकारी तक नागरिकों की आसान पहुँच के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म स्थापित की जाने चाहिये।
  • वैश्विक महानगरों से तुलना और सीख:
    • वित्तीय प्रबंधन, स्टाफिंग स्तर और शहरी प्रशासन के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं को निर्धारित करने के लिये भारतीय शहरों की वैश्विक महानगरों से तुलना करने के लिये एक प्रणाली निर्धारित करने की आवश्यकता है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों से प्रभावी रणनीति अपनाने को बढ़ावा देना चाहिये।
  • नागरिक भागीदारी और प्रतिक्रिया:
    • सार्वजनिक परामर्श, फीडबैक प्रणाली और बजटिंग में सहभागिता के माध्यम से नागरिक सहभागिता को बढ़ावा देना चाहिये। नागरिकों को उनकी चिंताओं और सुझावों को व्यक्त करने के लिये मंच प्रदान करने की आवश्यकता है, जिससे एक अधिक उत्तरदायी स्थानीय सरकार सुनिश्चित हो सके।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग:
    • प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने, पारदर्शिता में सुधार करने और नागरिकों को ऑनलाइन सेवाएँ प्रदान करने के लिये डिजिटल गवर्नेंस टूल एवं प्लेटफॉर्म को अपनाने की आवश्यकता है। नौकरशाही बाधाओं को कम करने के लिये ई-गवर्नेंस पहल लागू करना भी आवश्यक है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है (2017)

(a) संघवाद का 
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का 
(c) प्रशासनिक प्रत्यायोजन का 
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र का 

उत्तर: (b)


जैव विविधता और पर्यावरण

पश्चिम अंटार्कटिका की हिम परत का पिघलना

प्रिलिम्स के लिये:

अंटार्कटिक संधि, राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र, भारतीय अंटार्कटिक अधिनियम 2022, मैत्री, भारती, दक्षिण गंगोत्री

मेन्स के लिये:

पश्चिम अंटार्कटिक में हिम परत पिघलने की प्रक्रियाएँ, भारत द्वारा उठाए गए कदम, संरक्षण।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

एक हालिया अध्ययन में समुद्री जल का तापमान बढ़ने के परिणामस्वरुप पश्चिम अंटार्कटिक की हिम परत के अपरिहार्य रूप से पिघलने के संदर्भ में चिंताजनक पूर्वानुमान सामने आए हैं। 

  • हिम परत के पिघलने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिसमें वैश्विक औसत समुद्र जल स्तर 5.3 मीटर तक बढ़ने की संभावना भी शामिल है, जो भारत सहित विश्व भर के सुभेद्य तटीय शहरों में रहने वाले लाखों लोगों पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा।

हिम परत का अभिप्राय एवं समुद्र के जलस्तर पर उनका प्रभाव:

  • परिचय: 
    • हिम परत मूलतः हिमानी बर्फ की एक मोटी परत है जो 50,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक भूमि को कवर करती है।
      • हिम परत, जैसे कि पश्चिम अंटार्कटिक हिम परत, विशाल भू क्षेत्रों को समाहित करती है, इसमें पर्याप्त मात्रा में मीठा जल होता है।
      • पृथ्वी पर मीठे जल का लगभग दो तिहाई भाग विश्व की दो सबसे बड़ी हिम परतों, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में समाहित है।
    • जब हिम परतों का द्रव्यमान बढ़ता या घटता है, तो वे क्रमशः वैश्विक औसत समुद्री स्तर में गिरावट या वृद्धि में योगदान करते हैं।

नोट: वर्तमान अंटार्कटिक हिम परत पृथ्वी पर मौजूद कुल बर्फ की मात्रा का 90% हिस्सा है।

  • पश्चिम अंटार्कटिक हिम परत को पिघलाने वाली प्रक्रियाएँ:
    • हिम परतें अपने ठीक पीछे भूमि-आधारित ग्लेशियरों को स्थिर करती हैं। हिम परतों का पिघलना विभिन्न तरीकों से होता है। समुद्री जल के गर्म होने के कारण हिम परतों का पिघलना एक प्रमुख प्रक्रिया है
    • जैसे ही ये हिम परतें पतली या विघटित होती हैं, उनके पीछे के ग्लेशियर तेज़ी से आगे बढ़ते हैं, जिससे समुद्र में बर्फीले जल का स्त्राव होता है और परिणामस्वरूप समुद्र का स्तर बढ़ जाता है।

नोट: हिम परतें और हिम समूह समुद्री बर्फ से भिन्न होते हैं, जो ध्रुवीय क्षेत्रों में स्वतंत्र-तैरती बर्फ का निर्माण करती है। समुद्री बर्फ तब बनती है जब समुद्री जल जम जाता है।

  • वर्तमान प्रवृत्ति और परिणाम:
    • हाल के परिणाम अमुंडसेन सागर के व्यापक, बड़े पैमाने पर गर्म होने और मूल्यांकन किये गए सभी परिदृश्यों में बर्फ के पिघलने में तेज़ी लाने से संबंधित हैं।
    • इस प्रत्याशित बर्फ के पिघलन के कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि का अनिवार्य रूप से विश्वभर के तटीय समुदायों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
  • भारत और संवेदनशील तटीय क्षेत्रों के लिये निहितार्थ:
    • भारत विस्तृत तटरेखा और घनी आबादी के साथ समुद्र जल के स्तर में वृद्धि के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है।
    • बढ़ते समुद्री जलस्तर के कारण तटीय समुदायों को विस्थापन का सामना करना पड़ सकता है या जलवायु शरणार्थी बन सकते हैं, जो सुरक्षात्मक बुनियादी ढाँचे के निर्माण जैसी अनुकूली रणनीतियों की आवश्यकता को उजागर करता है।

भारत द्वारा अंटार्कटिका से संबंधित कार्रवाई:

  • भारत वर्ष 1983 में अंटार्कटिक संधि में शामिल हुआ, 12 सितंबर, 1983 को इसे परामर्शदाता का दर्जा प्राप्त हुआ।
  • राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (तत्कालीन राष्ट्रीय अंटार्कटिक और महासागर अनुसंधान केंद्र) भारत का प्रमुख अनुसंधान एवं विकास संस्थान है जो ध्रुवीय तथा दक्षिणी महासागर क्षेत्रों में देश की अनुसंधान गतिविधियों के लिये ज़िम्मेदार है।
  • भारतीय अंटार्कटिक अधिनियम, 2022 अंटार्कटिका में यात्राओं और गतिविधियों को नियंत्रित करता है, जिसमें खनिज संरक्षण, देशी पौधों का संरक्षण एवं गैर-देशीय पक्षियों के परिचय पर प्रतिबंध शामिल है।
  • वर्तमान में भारत के अंटार्कटिका में दो परिचालन अनुसंधान स्टेशन हैं - मैत्री और भारती।
    • दक्षिण गंगोत्री पहला स्टेशन था जो वर्ष 1985 से पहले बनाया गया था लेकिन अब चालू नहीं है।

आगे की राह:

  • पर्यावरण सुरक्षा और संरक्षण: महाद्वीप के अद्वितीय पर्यावरण और पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण के लिये अंटार्कटिक संधि तथा संबंधित समझौतों का कड़ाई से पालन करना।
    • इसमें मानवीय गतिविधियों को विनियमित करना, अपशिष्ट प्रबंधन और पर्यावरणीय पदचिह्न को कम करना शामिल है।
  • नवीन सामग्री और बुनियादी ढाँचा: न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव सुनिश्चित करते हुए कठोर ध्रुवीय परिस्थितियों में कार्य करने वाले अनुसंधान स्टेशनों और जहाज़ों के लिये अधिक कुशल सामग्री एवं बुनियादी ढाँचा विकसित करना।
  • जियोइंजीनियरिंग तकनीक: शोधकर्ता हिम के पिघलने को संभावित रूप से धीमा करने के लिये सौर विकिरण प्रबंधन की खोज कर रहे हैं। मध्यम उत्सर्जन के परिदृश्य मे सौर विकिरण प्रबंधन हिम परत के क्षरण के विरुद्ध एक शक्तिशाली हथियार हो सकता है।
    • उपयोग किये जाने से पूर्व इन प्रायोगिक तकनीकों की प्रभावकारिता एवं पर्यावरणीय प्रभावों की और अधिक जाँच की जानी चाहिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. पृथ्वी ग्रह पर जल के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. नदियों और झीलों में जल की मात्रा भू-जल की मात्रा से अधिक है।
  2. ध्रुवीय हिमच्छद और हिमनदों में जल की मात्रा भू-जल की मात्रा से अधिक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय रेलवे की राजस्व समस्याएँ

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रेलवे (IR), पूंजीगत व्यय (capex), सकल बजटीय सहायता (GBS), अतिरिक्त बजटीय संसाधन (EBS), भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG), नेट टन किलोमीटर (NTKM), परिचालन अनुपात

मेन्स के लिये:

आर्थिक वृद्धि और विकास में भारतीय रेलवे की महत्त्वपूर्ण भूमिका एवं योगदान।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारतीय रेलवे (IR) ने अपने रेल बजट को मुख्य बजट में विलय करने के बाद से अपने पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) में उल्लेखनीय वृद्धि की है। हालाँकि इसका परिचालन अनुपात, जो राजस्व के विरुद्ध व्यय का मापन करता है, में संशोधन नहीं हुआ है।

भारतीय रेलवे की वर्तमान चिंताएँ:

  • ऋण जाल की चिंताएँ:
    • भारतीय रेलवे (IR) बढ़ते कर्ज़ से संबंधित समस्या का सामना कर रहा है। अधिशेष निधि के अभाव में भारतीय रेलवे सकल बजटीय सहायता (GBS) और अतिरिक्त बजटीय संसाधन (EBS) के माध्यम से बढ़ी हुई निधि पर निर्भर रहा है।
      • हालाँकि EBS पर यह निर्भरता एक महत्त्वपूर्ण लागत के साथ आती है। मूलधन और ब्याज के पुनर्भुगतान पर भारतीय रेलवे का खर्च राजस्व प्राप्तियों का 17% है, जिसने सत्र 2015-16 तक 10% से भी कम वृद्धि की है।
  • अनुत्पादक निवेश की तुलना में आर्थिक विकास से संबंधित चिंताएँ:
    • बढ़ते कर्ज़ के बावज़ूद भी पूंजीगत व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि इस विश्वास पर आधारित है कि रेलवे क्षेत्र में निवेश का विनिर्माण, सेवाओं, सरकारी कर राजस्व और रोज़गार के अवसरों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
      • हालाँकि यह ज़रूरी है कि भारतीय रेलवे एक महत्त्वपूर्ण संगठन के रूप में एयर इंडिया जैसी संस्थाओं में देखी जाने वाली वित्तीय अस्थिरता से बचने पर ध्यान केंद्रित करे।

  • घटते शेयर:

    • पिछले कुछ वर्षों में प्रमुख वस्तुओं के परिवहन में अपनी हिस्सेदारी घटने के कारण भारतीय रेलवे (IR) को एक महत्त्वपूर्ण चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
      • उदाहरण के लिये, वर्ष 2011 में कोयला परिवहन 602 मिलियन टन (MT) था, जिसमें रेलवे हिस्सेदारी 70% थी, लेकिन वर्ष 2020 तक कोयले की खपत बढ़कर 978 मिलियन टन हो गई, जबकि रेलवे हिस्सेदारी घटकर 60% रह गई।
      • इसी तरह बंदरगाहों से आने-जाने वाले एक्ज़िम (निर्यात-आयात) कंटेनरों की हिस्सेदारी में वर्ष 2009-10 के बाद से 10 से 18% के बीच उतार-चढ़ाव आया है, वर्ष 2021-22 में4 यह आँकड़ा 13% है।
  • निवल टन किलोमीटर (NTKM) से संबंधित चिंताएँ:
    • वर्ष 2015-16 और 2016-17 में NTKM में क्रमशः 4% तथा 5% की अभूतपूर्व गिरावट दर्ज की गई।
      • वर्ष 2021-22 में समाप्त होने वाली सात वर्ष की अवधि में NTKM ने 3.5% की वार्षिक वृद्धि दर दिखाई, जो सड़क परिवहन में वृद्धि दर से काफी कम है।

भारतीय रेलवे प्रणाली में दीर्घकालिक मुद्दे:

  • वित्तीय प्रदर्शन में चुनौतियाँ:
    • भारतीय रेलवे को अपने वित्तीय प्रदर्शन के साथ एक समस्या का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से इसके लाभदायक माल खंड और घाटे में चल रहे यात्री खंड के बीच काफी अंतर है।
      • भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की वर्ष 2023 की रिपोर्ट में यात्री सेवाओं में 68,269 करोड़ रुपए के भारी नुकसान पर प्रकाश डाला गया, जिसे माल ढुलाई से होने वाले मुनाफे से कवर किया जाना था।
  • माल ढुलाई व्यवसाय में चुनौतियाँ:
    • अप्रैल से जुलाई 2023 तक माल ढुलाई की मात्रा और राजस्व में वार्षिक वृद्धि क्रमशः 1% तथा 3% रही, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था 7% की दर से बढ़ रही है।
      • भारत के माल ढुलाई कारोबार में भारतीय रेलवे की मॉडल हिस्सेदारी अत्यधिक कमी के साथ लगभग 27% रह गई है, जो कि भारत की आज़ादी के समय 80% से अधिक थी।   
  • कार्गो का कृत्रिम विभाजन:
    • माल और पार्सल में कार्गो का कृत्रिम विभाजन दक्षता में बाधा डाल रहा है। टैरिफ नियमों, हैंडलिंग प्रक्रियाओं और निगरानी प्रथाओं द्वारा संचालित ये प्रभाग शिपर्स की चिंताओं से समानता नहीं रखते हैं।
      • IR के लिये यह आवश्यक है कि वह इस कृत्रिम विभाजन को छोड़ दे और कार्गो को उसकी विशेषताओं के आधार पर थोक या गैर-थोक के रूप में वर्गीकृत करें, जिसे मूल्य-वर्धित कहा जा सकता है।
  • सड़क परिवहन से प्रतिस्पर्धा में चुनौतियाँ:
    • भारतीय रेलवे को सड़क परिवहन से भी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है, जो रेल परिवहन की तुलना में तेज़ी से बढ़ रहा है। निवल टन किलोमीटर (NTKM) में उतार-चढ़ाव के साथ इस प्रतिस्पर्धा ने IR के लिये माल परिवहन में अपनी हिस्सेदारी को बनाए रखना और विस्तारित करना चुनौतीपूर्ण बना दिया है, इसलिये रेलवे परिवहन में सुधार की आवश्यकता है।
  • कंटेनरीकरण की अपर्याप्तता:
    • निजीकरण के 15 वर्षों के बाद कंटेनरीकृत घरेलू माल भारतीय रेल की कुल लोडिंग का केवल 1% और देश के कुल माल का 0.3% है।
      • उच्च ढुलाई दर और संभावित नुकसान के साथ बाज़ार विकास का जोखिम इस खराब प्रदर्शन में योगदान दे रहा है।

भारतीय रेलवे द्वारा माल वहन को आसान एवं बेहतर बनाने के उपाय:

  • पार्सल ट्रेनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की आवश्यकता:
    • भारतीय रेलवे को पार्सल ट्रेनों और विशेष भारी पार्सल वैन (VPH) ट्रेनों का उपयोग करके सामान्य माल ले जाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
      • इन चुनौतियों का एक प्रमुख कारण उच्च सीमा शुल्क है, जो अक्सर ट्रक सीमा शुल्क दरों से अधिक होता है।
    • भारी पार्सल ढुलाई के लिये VPH पार्सल ट्रेनों को प्रतिकूल पाया गया है, कवर किये गए वैगन एक अधिक प्रभावी विकल्प हैं जो VPH पार्सल ट्रेनों की तुलना में अधिक माल वहन कर सकते हैं।
  • जहाज़ कंपनियों के लिये लचीलेपन की आवश्यकता:
    • भारतीय रेलवे के लिये एक बड़ी समस्या यह है कि शिपर्स को माल ढुलाई सीमा शुल्क अथवा पार्सल सीमा शुल्क के तहत न्यूनतम कुछ हज़ार टन माल ही भेजना होता है जिससे यह सामान्य माल की ज़रूरतों के लिये अनुपयुक्त हो जाता है।
      • शिपर्स को अधिक लचीले और उपयुक्त विकल्प की आवश्यकता होती है जो उनके माल क्षमता के उपयुक्त हो, जैसे किसी यात्री ट्रेन में बर्थ बुक करने से पहले यात्रियों को बहुत सारे यात्रियों के साथ आने पर छूट प्रदान करना।
  • माल वहन में चुनौतियों पर काबू पाना:
    • थोक माल में भारतीय रेलवे की घटती हिस्सेदारी आंशिक रूप से रेलवे साइडिंग की उच्च लागत और पूंजी-गहन प्रकृति के कारण है, जो छोटे उद्योगों को उनका उपयोग करने से हतोत्साहित करती है।
      • इसके समाधान के लिये विशेषकर खनन समूहों, औद्योगिक क्षेत्रों और बड़े शहरों में माल एकत्रीकरण एवं वितरण बिंदुओं पर आम-उपयोगकर्ता सुविधाओं की आवश्यकता है।
  • रेल और सड़क द्वारा माल वहन के बीच समान अवसर सुनिश्चित करना:
    • रेल लोडिंग/अनलोडिंग सुविधाओं के लिये पर्यावरण मंज़ूरी अनिवार्य कर दी गई है, किंतु सड़क लोडिंग/अनलोडिंग सुविधाओं पर इसे लागू नहीं किया गया है। इसलिये एक समान  सतत् पर्यावरणीय नियमों की आवश्यकता है।
  • सीमा शुल्कों का अनुकूलन:
    • वॉल्यूमेट्रिक लोडिंग को प्रोत्साहित करने के लिये लोड की गई मात्रा के आधार पर सीमा शुल्क में छूट दी जा सकती है। भारतीय रेलवे को कार्गो एग्रीगेटर्स को भी प्रोत्साहित करना चाहिये और लंबे समय में बेहतर दक्षता के लिये पेलोड एवं गति को अनुकूलित करना चाहिये।
  • आधारभूत अवसंरचना का आधुनिकीकरण:
    • सुरक्षा, दक्षता और लागत में कमी के लिये हाई-स्पीड रेल, स्टेशन पुनर्विकास, ट्रैक डब्लिंग, कोच नवीनीकरण, जी.पी.एस. ट्रैकिंग तथा डिजिटलीकरण सहित रेलवे में बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण की तत्काल आवश्यकता है।
  • परिचालन लागत में कमी:
    • भारतीय रेलवे ने 98.14% का परिचालन अनुपात हासिल किया है जिसे ऊर्जा संरक्षण, श्रमबल को अनुकूलित करने तथा खरीद प्रथाओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करके और बेहतर बनाया जा सकता है।

थोक माल वहन क्षमता बढ़ाने हेतु भारतीय रेल की विभिन्न पहलें:

  • भारतीय रेलवे (IR) ने थोक माल क्षेत्र में कई पहल की हैं, जिनमें ब्लॉक रेक मूवमेंट नियमों में लचीलापन, मिनी रेक की अनुमति देना और प्राइवेट फ्रेट टर्मिनल (PFT) शुरू करना शामिल है।
  • गति शक्ति टर्मिनल (GCT) नीति इन टर्मिनलों के संचालन को सरल बनाती है, इसके लिये निजी साइडिंग को GCT में परिवर्तित किया जा रहा है।
  • भारत सरकार ने दो प्रमुख नीतियाँ प्रस्तुत की हैं: PM गतिशक्ति (PMGS) नीति, जिसका उद्देश्य एक निर्बाध मल्टी-मॉडल परिवहन नेटवर्क बनाना है और राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP), जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स पोर्टल बनाने एवं विभिन्न मंत्रालयों में प्लेटफार्मों को एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करना है।
  • रेलवे बुनियादी ढाँचे में निवेश: सरकार ने बंदरगाह आधारित विकास एवं सड़क विकास के लिये क्रमशः 'सागरमाला' और 'भारतमाला' जैसी योजनाएँ भी शुरू की हैं जिन्हें भारतीय रेलवे के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
  • डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर: सरकार ने 'डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर' जैसी योजनाएँ भी शुरू की हैं, जिनका लाभ माल परिवहन को बढ़ाने के लिये उठाया जाना चाहिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय रेलवे द्वारा प्रयोग किये जाने वाले जैव-शौचालयों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. जैव-शौचालय में मानव अपशिष्ट का अपघटन एक कवक इनोकुलम द्वारा शुरू किया जाता है।
  2. इस अपघटन में अमोनिया और जलवाष्प ही एकमात्र अंतिम उत्पाद हैं जो वायुमंडल में छोड़े जाते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (d)


शासन व्यवस्था

राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक 2022- 2023

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण, राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक

मेन्स के लिये:

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण, खाद्य एवं पोषण असुरक्षा- संरचनात्मक असमानताओं का परिणाम

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा जारी राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक (SFSI) 2022-2023 खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में भारतीय राज्यों के प्रदर्शन पर प्रकाश डालता है।

  • वर्ष 2022- 2023 सूचकांक ने एक नया पैरामीटर, 'SFSI रैंक में सुधार' पेश किया, जो विगत वर्ष से तुलना कर राज्य की प्रगति का आकलन करता है। इस परिवर्तन को समायोजित करने के लिये अन्य मापदंडों के भार को संशोधित किया गया।

राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक (SFSI): 

  • यह एक वार्षिक मूल्यांकन है जो खाद्य सुरक्षा पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करता है।
  • सूचकांक एक गतिशील बेंचमार्किंग दृष्टिकोण है जो सभी राज्यों और क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा का आकलन करने हेतु एक निष्पक्ष रूपरेखा प्रदान करने के लिये मात्रात्मक एवं गुणात्मक विश्लेषण को जोड़ता है।
  • देश में खाद्य सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में प्रतिस्पर्द्धी और सकारात्मक बदलाव लाने के लिये SFSI की शुरुआत वर्ष 2018-19 में की गई थी।

सूचकांक के प्रमुख निष्कर्ष:

  • राज्य खाद्य सुरक्षा स्कोर में सामान्य गिरावट:
    • पिछले पाँच वर्षों में महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात और आंध्र प्रदेश सहित 20 बड़े भारतीय राज्यों में से 19 ने वर्ष 2019 की तुलना में अपने 2022-2023 के SFSI स्कोर में गिरावट का अनुभव किया है।

  • 2023 के सूचकांक मापदंड समायोजन का प्रभाव:
    • सत्र 2022- 2023 के सूचकांक में पेश किये गए एक नए मापदंड के समायोजन के बाद 20 में से 15 राज्यों ने वर्ष 2019 की तुलना में 2022-2023 में कम SFSI स्कोर अर्जित किया।
  • राज्यों की उनकी संबंधित श्रेणियों में समग्र रैंकिंग:

  • खाद्य परीक्षण अवसंरचना' में गिरावट:
    • 'खाद्य परीक्षण अवसंरचना' पैरामीटर खाद्य नमूनों के परीक्षण के लिये प्रत्येक राज्य में प्रशिक्षित कर्मियों के साथ पर्याप्त परीक्षण बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता को मापता है।
    • इस पैरामीटर में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई, सभी बड़े राज्यों का औसत स्कोर वर्ष 2019 में 20 में से 13 से गिरकर वर्ष 2022 - 2023 में 17 में से 7 रह गया।
      • वर्ष 2022-2023 में इस पैरामीटर में गुजरात और केरल का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा जबकि आंध्र प्रदेश का प्रदर्शन सबसे खराब रहा।
  • अनुपालन स्कोर में कमी:
    • यह पैरामीटर प्रत्येक राज्य के खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण द्वारा किये गए खाद्य व्यवसायों के लाइसेंस और पंजीकरण, किये गए निरीक्षण, आयोजित विशेष अभियानों, शिविरों व ऐसे अन्य अनुपालन-संबंधित कार्यों को मापता है।
    • इसके साथ ही 'अनुपालन' पैरामीटर के स्कोर में भी गिरावट दर्ज की गई।
      • इस पैरामीटर में पंजाब और हिमाचल प्रदेश को सबसे अधिक अंक प्राप्त हुए और झारखंड को सबसे कम अंक प्राप्त हुए।
    • सभी बड़े राज्यों के लिये वर्ष 2022-2023 का औसत अनुपालन स्कोर 28 में से 11 रहा, जबकि वर्ष 2019 में यह 30 में से 16 था।
  • विविध उपभोक्ता सशक्तीकरण:
    • 'उपभोक्ता सशक्तीकरण' पैरामीटर, FSSAI की विभिन्न उपभोक्ता सशक्तीकरण पहलों में राज्य के प्रदर्शन को मापता है, जिसमें फूड फोर्टिफिकेशन, ईट राइट कैंपस, भोग (भगवान को चढ़ावा), रेस्तरां की स्वच्छता रेटिंग और स्वच्छ स्ट्रीट फूड हब में साझेदारी  शामिल है।
      • केरल और मध्य प्रदेश के बाद तमिलनाडु शीर्ष प्रदर्शनकर्ता के रूप में उभरा।
    • कुल मिलाकर वर्ष 2022-2023 में औसत स्कोर 19 में से 8 अंक है, जबकि वर्ष 2019 में यह 20 में से 7.6 अंक था।
  • मानव संसाधन और संस्थागत डेटा स्कोर में गिरावट:
    • 'मानव संसाधन और संस्थागत डेटा' पैरामीटर प्रत्येक राज्य में खाद्य सुरक्षा अधिकारियों, अन्य नामित अधिकारियों की संख्या और निर्णय तथा अपीलीय न्यायाधिकरणों की सुविधा सहित मानव संसाधनों की उपलब्धता को मापता है। 
      • इस पैरामीटर के लिये औसत स्कोर वर्ष 2019 में 20 में से 11 अंक से गिरकर 2022-2023 में 18 में से 7 अंक हो गया।
      • यहाँ तक कि वर्ष 2019 में तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश जैसे शीर्ष प्रदर्शन करने वाले राज्यों को भी वर्ष 2022-2023 में कम अंक मिले।
  • 'प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण' में सुधार:
    • औसत स्कोर वर्ष 2019 में 10 में से 3.5 से बढ़कर वर्ष 2022-2023 में 8 में से 5 हो गया।
  • SFSI रैंक में सुधार:
    • नए पैरामीटर 'SFSI की रैंक' में केवल पंजाब में ही उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
    • SFSI रैंक पैरामीटर में सुधार, जिसका वर्ष 2022-2023 में 10% वेटेज था, में 20 बड़े राज्यों में से 14 राज्यों को 0 अंक प्राप्त हुए।


भारतीय अर्थव्यवस्था

चावल के निर्यात प्रतिबंध का प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

चावल, मानसून, खरीफ और रबी क्रिब्स, खाद्य सुरक्षा, बासमती तथा गैर-बासमती चावल के निर्यात प्रतिबंध का प्रभाव।

मेन्स के लिये:

चावल के निर्यात प्रतिबंध का प्रभाव, देश के विभिन्न हिस्सों में प्रमुख फसलों के फसल पैटर्न, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधनों को जुटाने, वृद्धि, विकास एवं रोज़गार से संबंधित मुद्दे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

जुलाई 2023 में भारत ने केंद्रीय पूल में सार्वजनिक स्टॉक में कमी, अनाज की ऊँची कीमतों और असमान मानसून के बढ़ते खतरे के बीच गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसने वैश्विक एवं घरेलू स्तर पर कीमतों को प्रभावित किया है।

भारत द्वारा चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के कारण:

  • घरेलू खाद्य सुरक्षा:
    • चावल के निर्यात को प्रतिबंधित करने से भारत की बड़ी आबादी की खाद्य सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये देश में विशेष रूप से केंद्रीय पूल में पर्याप्त स्टॉक बनाए रखने में सहायता मिलती है।
    • कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2023-24 सीज़न में प्रमुख खरीफ फसलों के उत्पादन के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, चावल का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में 3.7% कम होने का अनुमान है।
  • बढ़ती घरेलू कीमतें:
    • सरकार ने घरेलू चावल की कीमतों में वृद्धि को नियंत्रित करने के लिये निर्यात प्रतिबंध लगाए। जब घरेलू बाज़ार में चावल की कमी होती है, तो कीमतें बढ़ने लगती हैं और प्रतिबंध कीमतों को स्थिर करने तथा उपभोक्ताओं को मुद्रास्फीति से बचाने में सहायता कर सकते हैं।
  • मानसून से संबंधित अनिश्चितता:
    • भारत कृषि उत्पादन के लिये मानसून के मौसम पर अत्यधिक निर्भर रहता है। अप्रत्याशित अथवा असमान मानसून फसल की पैदावार को प्रभावित कर सकता है।
    • खराब मॉनसून सीज़न की स्थिति में चावल के स्टॉक को संरक्षित करने के लिये निर्यात प्रतिबंधों को एहतियाती उपाय के रूप में माना गया था।

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध का प्रभाव:

  • चावल की वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव:
    • भारत के चावल प्रतिबंधों से पिछले कुछ महीनों में घरेलू और वैश्विक बाज़ारों में आपूर्ति, उपलब्धता एवं कीमतों पर प्रभाव पड़ा है।
    • भारत द्वारा गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद चावल की वैश्विक कीमतों में तत्काल प्रभाव से पर्याप्त वृद्धि हुई।
    • हालाँकि आगामी महीनों में कीमतों में थोड़ी नरमी आई, किंतु वे कीमतें प्रतिबंध-पूर्व अवधि की तुलना में अभी भी अधिक हैं।
  • घरेलू मूल्य वृद्धि:
    • निर्यात प्रतिबंध के बावजूद भारत में घरेलू चावल की कीमतों में वृद्धि जारी है।
    • अक्तूबर 2023 तक प्रति क्विंटल चावल का औसत थोक मूल्य विगत अवधि की तुलना में काफी अधिक था, जो पिछले महीने की तुलना में 27.43% की वृद्धि दर्शाता है।
    • वर्ष 2022 की तुलना में खुदरा कीमतों में वृद्धि हुई है, अक्तूबर 2023 में प्रति किलोग्राम चावल की औसत कीमत एक वर्ष पहले की तुलना में 12.59% अधिक है तथा सरकार द्वारा निर्यात नियमों को लागू किये जाने की तुलना में 11.72% अधिक है।
  • समग्र आर्थिक प्रभाव:
    • चावल निर्यात पर प्रतिबंधों के दूरगामी आर्थिक परिणाम सामने आए हैं, जिससे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाज़ार प्रभावित हुए हैं।
    • इन परिणामों में कीमतों में उतार-चढ़ाव, वैश्विक व्यापार में व्यवधान और आयात करने वाले देशों में खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव शामिल हैं।

चावल के बारे में मुख्य तथ्य:

  • चावल भारत की अधिकांश आबादी का मुख्य भोजन है।
  • यह एक खरीफ फसल है जिसके लिये उच्च तापमान (25°C से ऊपर), उच्च आर्द्रता और 100 सेमी. से अधिक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
    • न्यून वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे अधिक सिंचाई करके उगाया जाता है।
  • दक्षिणी राज्यों और पश्चिम बंगाल में जलवायु परिस्थितियाँ एक कृषि वर्ष में चावल की दो या तीन फसलें उगाने में सहायक साबित होती हैं।
    • पश्चिम बंगाल के किसान चावल की तीन फसलें उगाते हैं जिन्हें 'औस', 'अमन' और 'बोरो' कहा जाता है।
  • भारत में कुल फसली क्षेत्र के लगभग एक-चौथाई भाग में चावल की खेती की जाती है।
    • अग्रणी उत्पादक राज्य: पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पंजाब।
    • उच्च उपज वाले राज्य: पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और केरल।
  • चीन के बाद भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।

भारत द्वारा चावल का निर्यात:

  • भारत विश्व में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग (USDA) के अनुसार, वर्ष 2022 के दौरान कुल वैश्विक चावल निर्यात (56 मिलियन टन) में भारत का योगदान लगभग 40% था।
  • भारत के चावल निर्यात को मोटे तौर पर बासमती और गैर-बासमती चावल में वर्गीकृत किया गया है।
    • बासमती चावल: सत्र 2022-23 में भारत ने 45.61 लाख मीट्रिक टन बासमती चावल का निर्यात किया।
      • भारत से बासमती चावल के शीर्ष आयातकों में ईरान, सऊदी अरब, इराक, संयुक्त अरब अमीरात और यमन शामिल हैं।
    • गैर-बासमती चावल: वित्त वर्ष 2022-23 में भारत ने 177.91 लाख मीट्रिक टन गैर-बासमती चावल का निर्यात किया।
      • गैर-बासमती चावल में सोना मसूरी और जीरा चावल जैसी किस्में शामिल हैं।
  • गैर-बासमती श्वेत चावल का शीर्ष गंतव्य: बेनिन, मेडागास्कर, केन्या, कोटे डी' आइवर, मोज़ाम्बिक, वियतनाम।
  • देश में गैर-बासमती चावल श्रेणी में 6 उप-श्रेणियाँ शामिल हैं- बीज के गुणों वाले भूसी युक्त चावल; भूसी युक्त अन्य चावल; भूसी (भूरा) चावल; उसना (Parboiled) चावल; गैर-बासमती सफेद चावल; और टूटे हुए चावल।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा देश पिछले पाँच वर्षों के दौरान विश्व में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक रहा है? (2019)

(a) चीन 
(b) भारत 
(c) म्याँमार 
(d) वियतनाम 

उत्तर: (b)


प्रश्न. जैव ईंधन पर भारत की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किसका उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है? (2020)

  1. कसावा 
  2. क्षतिग्रस्त गेहूंँ के दाने 
  3. मूंँगफली के बीज 
  4. चने की दाल 
  5. सड़े हुए आलू 
  6. मीठे चुकंदर

निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 5 और 6
(b) केवल 1, 3, 4 और 6
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 क्षतिग्रस्त खाद्यान्न जो मानव उपभोग के लिये अनुपयुक्त हैं जैसे- गेहूंँ, टूटे चावल आदि से इथेनॉल के उत्पादन की अनुमति देती है। 
  • यह नीति राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति के अनुमोदन के आधार पर खाद्यान्न की अधिशेष मात्रा को इथेनॉल में परिवर्तित करने की भी अनुमति देती है।
  • यह नीति इथेनॉल उत्पादन में प्रयोग होने वाले तथा मानव उपभोग के लिये अनुपयुक्त पदार्थ जैसे- गन्ने का रस, चीनी युक्त सामग्री- चुकंदर, मीठा चारा, स्टार्च युक्त सामग्री तथा मकई, कसावा, गेहूंँ, टूटे चावल, सड़े हुए आलू के उपयोग की अनुमति देकर इथेनॉल उत्पादन हेतु कच्चे माल के दायरे का विस्तार करती है। अत: 1, 2, 5 और 6 सही हैं।

अत: विकल्प (a) सही उत्तर है।


शासन व्यवस्था

राज्य पुलिस महानिदेशकों की नियुक्ति हेतु नियमों में सख्ती

प्रिलिम्स के लिये:

संघ लोक सेवा आयोग, राज्य पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति के लिये समिति, प्रकाश सिंह मामला, 2006, पुलिस स्थापना बोर्ड

मेन्स के लिये:

भारत में पुलिस सुधार, पुलिस महानिदेशक चयन के लिये यूपीएससी के दिशानिर्देशों में प्रमुख संशोधन

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा राज्य पुलिस महानिदेशकों (DGP) की नियुक्ति हेतु विशिष्ट मानदंडों पर ज़ोर देते हुए संशोधित दिशानिर्देश जारी किये गए हैं।

डी.जी.पी चयन हेतु यूपीएससी दिशानिर्देशों में किये गए प्रमुख संशोधन: 

  • चयन मानदंडों में स्पष्टता:
    • यूपीएससी द्वारा पेश किये गए संशोधनों का उद्देश्य राज्य पुलिस महानिदेशकों (DGP) की चयन प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले पहले से निहित मानदंडों में पारदर्शिता लाना है।
    • इन दिशानिर्देशों में अब पक्षपात और अनुचित नियुक्तियों को रोकने के लिये स्पष्ट रूप से मानदंड शामिल किये गए हैं।
  • सेवा कार्यकाल की आवश्यकता: 
    • दिशानिर्देशों में कहा गया है कि केवल सेवानिवृत्ति से पूर्व न्यूनतम छह महीने की शेष सेवा वाले अधिकारियों को राज्य के DGP का पद प्रदान करने के लिये विचार किया जाएगा।
      • इस कदम का उद्देश्य सेवानिवृत्ति के अंतिम पड़ाव में "पसंदीदा अधिकारियों" को नियुक्त करके कार्यकाल बढ़ाने की प्रथा को हतोत्साहित करना है, जिससे निष्पक्ष चयन को बढ़ावा दिया जा सके।
    • पूर्व में कई राज्यों ने ऐसे DGP नियुक्त किये थे जो सेवानिवृत्त होने वाले थे और कुछ ने यूपीएससी चयन प्रक्रिया से बचने के लिये कार्यवाहक DGP नियुक्त करने का सहारा लिया था।
  • संशोधित अनुभव मानदंड:
    • इनके लिये पहले न्यूनतम 30 वर्ष की सेवा निर्धारित की गई थी, लेकिन अब दिशानिर्देश 25 वर्ष के अनुभव वाले अधिकारियों को DGP पद के लिये अर्हता प्राप्त करने की अनुमति देते हैं। यह परिवर्तन योग्य उम्मीदवारों के दायरे को विस्तृत करता है।
  • शॉर्टलिस्ट किये गए अधिकारियों की सीमा:
    • दिशानिर्देशों में DGP पद के लिये तीन बार शॉर्टलिस्ट किये गए अधिकारियों की सीमा निर्धारित की गई है, केवल विशिष्ट परिस्थितियों में अपवादों की अनुमति दी गई है।
    • यह स्वैच्छिक भागीदारी पर ज़ोर देता है, जिससे अधिकारियों को इस पद के लिये विचार किये जाने की इच्छा व्यक्त करने की आवश्यकता होती है।
  • विशेषज्ञता के निर्दिष्ट क्षेत्र:
    • नए दिशानिर्देश राज्य पुलिस विभाग का नेतृत्व करने के इच्छुक आईपीएस अधिकारी के लिये आवश्यक अनुभव के क्षेत्रों को परिभाषित करते हैं।
    • इन क्षेत्रों में कानून और व्यवस्था, अपराध शाखा, आर्थिक अपराध शाखा या खुफिया विंग जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में न्यूनतम दस वर्ष का अनुभव शामिल है।
    • विशिष्ट क्षेत्रों के साथ-साथ दिशानिर्देश इंटेलिजेंस ब्यूरो, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग या केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो जैसे केंद्रीय निकायों में प्रतिनियुक्ति की आवश्यकता पर भी ज़ोर देते हैं।
      • इसका लक्ष्य DGP पद के लिये आवेदन करने वाले उम्मीदवारों के बीच व्यापक और विविध अनुभव सुनिश्चित करना है।
  • मूल्यांकन पर पैनल समिति की सीमाएँ:
    • राज्य के DGP की नियुक्ति के लिये UPSC द्वारा गठित पैनल समिति राज्य के DGP पद के लिये केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर IPS अधिकारियों का आकलन करने से परहेज़ करेगी।

पुलिस सुधार पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश:

  • प्रकाश सिंह वाद, 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिकरण, जवाबदेही की कमी और समग्र पुलिस प्रदर्शन को प्रभावित करने वाली प्रणालीगत कमज़ोरियों जैसे व्यापक मुद्दों को स्वीकार करते हुए भारत में पुलिस सुधारों को आगे बढ़ाने के लिये सात दिशानिर्देश जारी किये।
  • इन निर्देशों में शामिल हैं:
    • पुलिस पर अनुचित सरकारी प्रभाव को रोकने, नीति दिशानिर्देशों की रूपरेखा तैयार करने और राज्य पुलिस के प्रदर्शन का आकलन करने के उद्देश्यों के साथ एक राज्य सुरक्षा आयोग (SSC) की स्थापना करना।
    • न्यूनतम दो वर्ष का कार्यकाल सुनिश्चित करते हुए पारदर्शी, योग्यता-आधारित प्रक्रिया के माध्यम से DGP की नियुक्ति सुनिश्चित करना।
      • राज्य के DGP की नियुक्ति हेतु समिति:
        • राज्य के DGP की नियुक्ति करने वाली समिति की अध्यक्षता संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के अध्यक्ष करते हैं और इसमें केंद्रीय गृह सचिव, राज्य के मुख्य सचिव एवं DGP तथा गृह मंत्रालय द्वारा नामित केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के प्रमुखों में से एक शामिल होता है।
      • चयन की प्रक्रिया: 
        • संबंधित राज्य सरकारों को मौजूदा DGP के सेवानिवृत्त होने से तीन महीने पूर्व संभावितों के नाम यूपीएससी को भेजने होंगे।
        • यूपीएससी DGP बनने लायक तीन अधिकारियों का पैनल तैयार कर वापस भेजेगी।
        • राज्य बदले में यूपीएससी द्वारा शॉर्टलिस्ट किये गए अधिकारियों में से एक को नियुक्त करेगा।
    • ज़िला अधीक्षकों और स्टेशन हाउस अधिकारियों सहित अन्य परिचालन पुलिस अधिकारियों के लिये न्यूनतम दो वर्ष का कार्यकाल सुनिश्चित किया जाएगा।
    • पुलिस बल के भीतर जाँच और कानून प्रवर्तन कर्त्तव्यों का पृथक्करण लागू किया जाएगा।
    • पुलिस उपाधीक्षक स्तर से नीचे के अधिकारियों के स्थानांतरण, पोस्टिंग, पदोन्नति और अन्य सेवा-संबंधित मामलों को संभालने के लिये एक पुलिस स्थापना बोर्ड (PEB) का गठन किया जाएगा, साथ ही उच्च रैंकिंग वाले स्थानांतरणों के लिये सिफारिशें भी की जाएँगी।
    • गंभीर कदाचार के लिये वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सार्वजनिक शिकायतों की जाँच के लिये एक राज्य-स्तरीय पुलिस शिकायत प्राधिकरण (PCA) की स्थापना की जाएगी और महत्त्वपूर्ण कदाचार में शामिल निचले-रैंकिंग के अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों के समाधान के लिये ज़िला-स्तरीय PCA की स्थापना भी की जाएगी।
    • केंद्रीय पुलिस संगठनों (CPO) प्रमुखों के चयन और नियुक्ति हेतु एक पैनल बनाने के लिये संघ स्तर पर एक राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग (NSC) का गठन किया जाएगा, जिसमें न्यूनतम दो वर्ष का कार्यकाल सुनिश्चित हो।


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एसएमएस अलर्ट
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