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डीजीपी की नियुक्ति और पदविमुक्ति

  • 22 Sep 2018
  • 9 min read

संदर्भ

हाल ही में जम्मू-कश्मीर में गवर्नर प्रशासन ने जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक एस पी वेद को उनके पद से हटा दिया सरकार के प्रधान सचिव (गृह मंत्रालय) ने मध्यरात्रि में जारी संक्षिप्त आदेश में कहा कि ‘प्रशासन के हित में’ वेद को स्थानांतरित किया गया है तथा उन्हें परिवहन आयुक्त के रूप में तैनात किया गया है। इसी बीच 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी दिलबाग सिंह जो जेल विभाग संभाल रहे थे, को नियमित व्यवस्था किये जाने तक डीजीपी पद का प्रभार संभालने के लिये कहा गया। दरअसल, सरकार ने 31 दिसंबर, 2016 से पदभार संभालने वाले पुलिस प्रमुख को अचानक हटाने का कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया। जिसके कारण डीजीपी की नियुक्ति और पदविमुक्ति  चर्चा का प्रमुख विषय बन गया।

संबंधित प्रमुख दिशा-निर्देश

  • जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल प्रशासन ने मुख्य सचिव के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश में "संशोधन" की मांग की है, जो राज्य सरकारों द्वारा पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति और पदविमुक्ति के संबंध में व्यापक दिशा-निर्देश निर्धारित करता है। हाल ही में हुई सुनवाई जो वेद की पदविमुक्ति से संबंधित है, में दिये गए दिशा-निर्देशों से डीजीपी की नियुक्ति और पदविमुक्ति पर भी प्रकाश पड़ता है।
  • वर्ष 2006 में प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ (1996 में दायर) मामले में अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने डीजीपी की नियुक्ति और हटाने के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित किये थे।
  • इसके अलावा जुलाई 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों द्वारा डीजीपी की नियुक्ति के लिये दिशा-निर्देशों को और आगे बढ़ाने हेतु एक अन्य आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया कि एक कार्यवाहक डीजीपी की कोई अवधारणा नहीं है।

नियुक्ति की प्रक्रिया

  • राज्य के पुलिस महानिरीक्षक को राज्य सरकार द्वारा विभाग के तीन वरिष्ठ अधिकारियों में से चुना जाएगा जिन्हें संघ लोक सेवा आयोग द्वारा उनकी सेवा की अवधि के आधार पर उस रैंक पर पदोन्नति के लिये सूचीबद्ध किया जाता है, साथ ही यह ज़रूरी है कि पुलिस बल का नेतृत्व करने के लिये संबंधित व्यक्ति का अच्छा रिकॉर्ड और अनुभव रहा हो।
  • एक बार जब वह पदभार के लिये चुने जाने के बाद सेवानिवृति की तारीख के बावज़ूद उसका न्यूनतम कार्यकाल कम-से-कम दो वर्ष का होगा।

पदविमुक्ति/निष्कासन

  • डीजीपी को राज्य सुरक्षा आयोग के परामर्श से राज्य सरकार द्वारा अखिल भारतीय सेवाओं (अनुशासन और अपील) के नियमों के तहत उसके पद से निम्न शर्तों के आधार विमुक्त किया जा सकता है –
  • अपराध या भ्रष्टाचार के मामले में तथा अदालत द्वारा इस कृत्य के सत्यापन के आधार पर।
  • यदि वह अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन में अक्षम हो।
  • सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2018 के आदेश में यह कहा था कि सभी राज्य, संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को डीजीपी के पद पर मौजूदा सेवानिवृत्ति की तारीख से कम से कम तीन महीने पूर्व रिक्तियों के संबंध में अपने प्रस्ताव भेज देंगे।
  • यूपीएससी प्रकाश सिंह के मामले दिये गए अदालत के निर्देशों के अनुसार पैनल तैयार करेगा और सैट्स को सूचित करेगा।
  • राज्य यूपीएससी द्वारा बनाए गए पैनल में से शामिल व्यक्तियों में से एक को तत्काल नियुक्त करेगा।
  • प्रकाश सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार, कोई भी राज्य कार्यवाहक के तौर पर डीजीपी के पद पर किसी भी व्यक्ति की नियुक्ति के विचार की कल्पना नहीं करेगा क्योंकि फैसले के अनुसार, पुलिस के कार्यकारी महानिदेशक की कोई अवधारणा नहीं है।

वर्तमान प्रसंग

  • वेद को डीजीपी पद से हटाने और दिलबाग सिंह को कार्यवाहक डीजीपी के रूप में नियुक्त करने के एक दिन बाद जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल प्रशासन ने कहा है कि यह निर्णय "कुछ उभरती परिस्थितियों के कारण" लिया गया था।
  • जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि वहाँ स्थिति पर नियंत्रण बनाए रखने के लिये मौजूदा डीजीपी को हटाना और एक प्रभारी डीजीपी नियुक्त करने का निर्णय अनिवार्य था।
  • हालाँकि, याचिका में किस स्थिति पर नियंत्रण बनाए रखने की तत्काल अनिवार्यता थी और कौन-सी उभरती परिस्थितियाँ थीं जिनके कारण ऐसा निर्णय लेना अनिवार्य हो गया, की स्पष्ट व्याख्या नहीं की गई है।
  • अंतरिम नियुक्ति के बारे में सरकार का कहना है कि आगामी पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव, विद्रोही और आतंक संबंधी गतिविधियों, कानून और व्यवस्था तथा इनसे राज्य की जटिल सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए यह आवश्यक है कि जम्मू-कश्मीर में हर समय पुलिस बल का मुखिया बना रहे।
  • इस तरह पूरे प्रकरण को ध्यान में रखते हुए अंतरिम उपाय के रूप में जेल विभाग के डीजी दिलबाग सिंह को प्रभारी डीजीपी के रूप में नियुक्त किया गया है।
  • उल्लेखनीय है किइसके बाद, राज्य सरकार ने यूपीएससी को पाँच अधिकारियों का एक पैनल प्रस्तुत किया है जिनमें – डी.आर.डोले, नवीन अग्रवाल, वी.के.सिंह, शिव मुरारी सहाय और दिलबाग सिंह शामिल हैं।
  • जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल प्रशासन ने वेद के खिलाफ ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं किया है जिससे उन्हें उनके पद से हटाया जा सकता था।
  • उन्हें हटाने से पूर्व, सरकार ने कानून और व्यवस्था की देखभाल करने के लिये अतिरिक्त महानिदेशक नियुक्त किया था।
  • दिलबाग सिंह ने राज्य पुलिस के विभिन्न पदों पर कार्य किया है, लेकिन घाटी में पुलिस की जवाबी कार्रवाई में उनका अनुभव सीमित ही है।
  • इसके अलावा, वर्ष 1998 में जब वह अतिरिक्त डीआईजी के रूप में अनंतनाग में कार्यरत थे, तो उन्हें पुलिस भर्ती घोटाले की उच्चस्तरीय जाँच में दोषी ठहराते हुए निलंबित कर दिया गया था।

निष्कर्ष

  • उपर्युक्त प्रकरण से ऐसा प्रतीत होता है कि डीजीपी की तत्काल नियुक्ति राजनैतिक इच्छापूर्ति का परिणाम है क्योंकि जम्मू-कश्मीर शासन द्वारा इस तत्काल नियुक्ति के पीछे कोई ठोस तर्क नहीं दिया गया है। यह सर्वविदित है कि जम्मू-कश्मीर राज्य के लिये आतंकवादी गतिविधियाँ कोई नई नहीं हैं।
  • हालाँकि, इस निर्णय का दूसरा पहलू यह भी हो सकता है कि वहाँ की स्थिति काबू पाने के लिये राज्य सरकार द्वारा एक नवीन पहल की गई हो, जिसके परिणाम आने अभी शेष हों।
  • बहरहाल, इसका ध्यान रखा जाना चाहिये कि डीजीपी जैसे प्रमुख पद की गरिमा को इन नियुक्तियों से कोई हानि न हो और इस प्रकार की नियुक्तियों का अंतिम उद्देश्य जनहित हो, न कि कोई राजनैतिक विवाद या मंशा।
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