अंतर्राष्ट्रीय संबंध
डूरंड रेखा: अफगानिस्तान और पाकिस्तान
प्रिलिम्स के लियेडूरंड रेखा, मैकमोहन रेखा, रैडक्लिफ रेखा मेन्स के लियेअफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति और सीमा क्षेत्र विवाद |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में तालिबान ने कहा है कि अफगान लोग पाकिस्तान द्वारा डूरंड रेखा पर बनाई गई बाड़ (Fence) का विरोध करते हैं।
- अफगानिस्तान के साथ 2,640 किमी. लंबी सीमा पर बाड़ या घेराव का काम मार्च 2017 में शुरू हुआ था, जब एक के बाद एक सीमा पार से कई हमले हुए थे।
प्रमुख बिंदु
- डूरंड रेखा को 1893 में हिंदूकुश क्षेत्र में स्थापित किया गया, यह अफगानिस्तान और ब्रिटिश भारत के बीच आदिवासी भूमि से होकर गुज़रती है। आधुनिक समय में इसने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच की सीमा को चिह्नित किया है।
- डूरंड रेखा रूसी और ब्रिटिश साम्राज्यों के बीच 19वीं शताब्दी के ग्रेट गेम्स की एक विरासत है, जिसमें अफगानिस्तान को भयभीत अंग्रेज़ों द्वारा पूर्व में रूसी विस्तारवाद के खिलाफ एक बफर ज़ोन के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
- वर्ष 1893 में ब्रिटिश सिविल सेवक सर हेनरी मोर्टिमर डूरंड और उस समय के अफगान शासक अमीर अब्दुर रहमान के बीच डूरंड रेखा के रूप में एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- द्वितीय अफगान युद्ध की समाप्ति के दो साल बाद 1880 में अब्दुर रहमान राजा बने, जिसमें अंग्रेज़ों ने कई क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया जो अफगान साम्राज्य का हिस्सा थे। डूरंड के साथ उनके समझौते ने भारत के साथ अफगान "सीमा" पर उनके और ब्रिटिश भारत के "प्रभाव क्षेत्र" की सीमाओं का सीमांकन किया।
- ‘सेवन क्लॉज़’ एग्रीमेंट ने 2,670 किलोमीटर की रेखा को मान्यता दी, जो चीन के साथ सीमा से लेकर ईरान के साथ अफगानिस्तान की सीमा तक फैली हुई है।
- इसने रणनीतिक खैबर दर्रा को भी ब्रिटिश पक्ष में कर दिया।
- यह पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच की सीमा पर हिंदूकुश में एक पहाड़ी दर्रा है।
- यह दर्रा लंबे समय तक वाणिज्यिक और रणनीतिक महत्त्व का था, जिस मार्ग से लगातार आक्रमणकारियों ने भारत में प्रवेश किया था और वर्ष 1839 एवं 1947 के बीच अंग्रेज़ों द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया था।
- यह रेखा पश्तून आदिवासी क्षेत्रों से होकर गुज़रती है, जिससे गाँवों, परिवारों और भूमि को दो प्रकार से प्रभावित क्षेत्रों के बीच विभाजित किया जाता है।
- वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के साथ पाकिस्तान को डूरंड रेखा विरासत में मिली और इसके साथ ही पश्तून ने रेखा को अस्वीकार कर दिया तथा अफगानिस्तान ने इसे मान्यता देने से इनकार कर दिया।
- जब तालिबान ने पहली बार काबुल में सत्ता हथिया ली, तो उन्होंने डूरंड रेखा को खारिज़ कर दिया। उन्होंने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का निर्माण करने के लिये एक इस्लामी कट्टरपंथ के साथ पश्तून पहचान को भी मज़बूत किया, जिसके चलते वर्ष 2007 के आतंकवादी हमलों ने देश को हिलाकर रख दिया।
अन्य महत्त्वपूर्ण सीमा रेखाएँ
- मैकमोहन रेखा
- ब्रिटिश भारतीय सेना के अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल सर ‘आर्थर हेनरी मैकमोहन’ (जो ब्रिटिश भारत में एक प्रशासक भी थे) के नाम से प्रसिद्ध ‘मैकमोहन रेखा’ एक सीमांकन है जो तिब्बत और उत्तर-पूर्व भारत को अलग करती है।
- इसे कर्नल मैकमोहन द्वारा 1914 के शिमला सम्मेलन में तिब्बत, चीन और भारत के बीच की सीमा के रूप में प्रस्तावित किया गया था।
- यह हिमालय के शिखर के साथ भूटान की पूर्वी सीमा से शुरू होती है और ब्रह्मपुत्र नदी में तक पहुँचती है, जहाँ यह नदी अपने तिब्बती हिस्से से असम घाटी में निकलती है।
- इसे तिब्बती अधिकारियों और ब्रिटिश भारत द्वारा स्वीकार किया गया था तथा अब इसे भारत गणराज्य द्वारा आधिकारिक सीमा के रूप में स्वीकार किया जाता है।
- हालाँकि चीन मैकमोहन लाइन की वैधता को लेकर विवाद उत्पन्न करता रहा है।
- चीन दावा करता है कि तिब्बत एक संप्रभु सरकार नहीं है और इसलिये तिब्बत के साथ की गई कोई भी संधि अमान्य है।
- पूर्वी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) का संरेखण (Alignment) वर्ष 1914 की मैकमोहन रेखा के साथ ही है।
- LAC वह सीमांकन है, जो भारतीय-नियंत्रित क्षेत्र को चीनी-नियंत्रित क्षेत्र से अलग करता है।
- रैडक्लिफ रेखा:
- इसने ब्रिटिश भारत को भारत और पाकिस्तान में विभाजित कर दिया।
- इसका नाम इस लाइन के वास्तुकार सर सिरिल रैडक्लिफ के नाम पर रखा गया है, जो सीमा आयोग के अध्यक्ष भी थे।
- रेडक्लिफ रेखा पश्चिमी पाकिस्तान (अब पाकिस्तान) और भारत के मध्य पश्चिम की तरफ तथा उपमहाद्वीप के पूर्वी हिस्से में भारत एवं पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के बीच खींची गई थी।
- रेडक्लिफ रेखा का पश्चिमी भाग अभी भी भारत-पाकिस्तान सीमा के रूप में तथा पूर्वी भाग भारत-बांग्लादेश सीमा के रूप में कार्य करता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
EPF में योगदान पर कर लगाने का नियम
प्रिलिम्स के लियेकर्मचारी भविष्य निधि, बज़ट, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड मेन्स के लियेEPF में योगदान पर कर लगाने के नियम का कार्यान्वयन एवं उसका प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त मंत्रालय ने कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) में किये गए योगदान से प्राप्त ब्याज़ की राशि पर कर लगाने के नियमों को अधिसूचित किया है।
कर्मचारी भविष्य निधि योजना
- कर्मचारी भविष्य निधि और विविध अधिनियम, 1952 के तहत EPF मुख्य योजना है।
- यह योजना कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में कार्य करने वाले कर्मचारियों को संस्थागत भविष्य निधि प्रदान करती है।
- कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) योजना में नियोक्ता (Employer) और कर्मचारी (Employee) दोनों द्वारा कर्मचारी के मासिक वेतन (मूल वेतन और महँगाई भत्ता) के 12% का योगदान किया जाता है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में सुझाव दिया गया था कि कर्मचारियों को यह चुनने की अनुमति दी जानी चाहिये कि वे अपने वेतन का 12% EPF में बचाएँ या इसे टेक होम पे (Take Home Pay) के रूप में रखें।
- EPF योजना उन कर्मचारियों के लिये अनिवार्य है जिनका मूल वेतन प्रतिमाह 15,000 रुपए तक है।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- फरवरी 2021 में बजट में प्रस्तावित किया गया कि भविष्य निधि (PF) में एक वर्ष में 2.5 लाख रुपए से अधिक के योगदान पर ब्याज़ आय पर कर छूट उपलब्ध नहीं होगी।
- मार्च 2021 में सरकार ने वित्त विधेयक, 2021 में एक संशोधन पेश किया, जिसमें उसने कर मुक्त ब्याज़ आय के लिये योगदान की सीमा को 2.5 लाख रुपए से बढ़ाकर 5 लाख रुपए करने का प्रस्ताव रखा यदि योगदान किसी ऐसे फंड में किया जाता है, जहाँ नियोक्ता द्वारा कोई योगदान नहीं दिया जाता है।
- इसके साथ ही सरकार ने सामान्य भविष्य निधि में किये गए योगदान के लिये राहत प्रदान की जो केवल सरकारी कर्मचारियों हेतु उपलब्ध है और नियोक्ता द्वारा कोई योगदान नहीं दिया जाता है।
- नए नियम:
- कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) में 2.5 लाख रुपए (निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिये) और 5 लाख रुपए (सरकारी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिये) से अधिक के योगदान पर ब्याज आय पर कर लगेगा।
- वित्तीय वर्ष 2021-22 की शुरुआत से सरकार इन सीमाओं से अधिक के योगदान के मामले में ब्याज पर कर लगाएगी, जिसमें अलग-अलग खातों को भविष्य निधि खाते में 2021-22 एवं आगमी वर्षों में कर योग्य योगदान तथा एक व्यक्ति द्वारा किया गया योगदान को गैर-कर योग्य के लिये बनाए रखा जाएगा।
- एक वित्तीय वर्ष, जिसे बजट वर्ष के रूप में भी जाना जाता है, सरकार और व्यवसायों द्वारा वार्षिक वित्तीय विवरण एवं रिपोर्ट तैयार करने हेतु लेखांकन उद्देश्यों के लिये उपयोग की जाने वाली अवधि है।
- केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने आयकर नियम, 1962 में नियम 9D का सृजन किया है, जिसके अनुसार पिछले वर्ष के दौरान अर्जित ब्याज के माध्यम से जिस आय पर छूट प्राप्त नहीं है (निजी कर्मचारी के लिये 2.5 लाख रुपए से अधिक तथा सरकारी कर्मचारी के लिये 5 लाख रुपए से अधिक) उसकी गणना कर योग्य योगदान खाते में विगत वर्ष के दौरान अर्जित ब्याज के रूप में की जाएगी।
- कर की निरंतरता:
- अधिसूचना के अनुसार, एक वर्ष के लिये अतिरिक्त योगदान (निजी के लिये 2.5 लाख रुपए से अधिक और सरकारी कर्मचारियों के लिये 5 लाख रुपए) पर ब्याज आय पर प्रत्येक वर्ष कर लगेगा।
- इसका मतलब यह है कि अगर वित्त वर्ष 2021-22 में PF में वार्षिक योगदान 10 लाख रुपए है, तो 7.5 लाख रुपए की ब्याज आय पर न केवल वित्त वर्ष 2021-22 हेतु बल्कि आगामी सभी वर्षों के लिये भी कर लगेगा।
- अधिसूचना के अनुसार, एक वर्ष के लिये अतिरिक्त योगदान (निजी के लिये 2.5 लाख रुपए से अधिक और सरकारी कर्मचारियों के लिये 5 लाख रुपए) पर ब्याज आय पर प्रत्येक वर्ष कर लगेगा।
- आवश्यकता :
- बजट प्रस्ताव में कहा गया था कि सरकार को ऐसे उदाहरण मिले हैं जहाँ कुछ कर्मचारी इन फंडों में व्यापक मात्रा में योगदान दे रहे हैं और सभी चरणों (योगदान, ब्याज संचय और निकासी) में कर छूट का लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
- उच्च निवल मूल्य वाले व्यक्तियों (HNIs) को उनके व्यापक योगदान पर उच्च कर मुक्त ब्याज आय के लाभ से बाहर करने के उद्देश्य से सरकार ने कर छूट के लिये एक सीमा निर्धारित करने का प्रस्ताव किया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय इतिहास
उधम सिंह
प्रिलिम्स के लिये:सरदार उधम सिंह, जलियांवाला बाग स्मारक, रॉलेट एक्ट मेन्स के लिये:उधम सिंह का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान |
चर्चा में क्यों?
जीर्णोद्धार किये गए जलियांवाला बाग स्मारक की आलोचना के बीच बाग में स्थापित शहीद उधम सिंह की प्रतिमा पर कुछ लोगों ने सवाल उठाए हैं।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- वे वर्ष 1899 में पंजाब के संगरूर ज़िले के सुनाम में पैदा हुए, उन्हें ‘शहीद-ए-आजम’ सरदार उधम सिंह भी कहा जाता है जिसका अर्थ है 'महान शहीद'।
- इन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है।
- 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला हत्याकांड के बाद वे क्रांतिकारी गतिविधियों और राजनीति में सक्रिय हो गए। वे भगत सिंह से बहुत प्रभावित थे।
- वे वर्ष 1924 में औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से प्रवासी भारतीयों को संगठित करने के लिये गदर पार्टी में शामिल हुए।
- वर्ष 1927 में क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिये सहयोगियों और हथियारों के साथ भारत लौटते समय उन्हें अवैध रूप से आग्नेयास्त्र रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया तथा पाँच साल की जेल की सज़ा सुनाई गई।
- 13 मार्च, 1940 को उधम सिंह ने ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसाइटी की कैक्सटन हिल में एक बैठक में जनरल डायर के स्थान पर माइकल ओ'डायर को गोली मार दी।
- जनरल डायर ने रॉलेट एक्ट का विरोध कर रहे लोगों पर फायरिंग का आदेश दिया था।
- उधम सिंह को मौत की सज़ा सुनाई गई और 31 जुलाई, 1940 को लंदन के पेंटनविले जेल में फाँसी दे दी गई।
- गदर पार्टी:
- यह एक भारतीय क्रांतिकारी संगठन था, जिसका उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना था।
- 'गदर' विद्रोह के लिये प्रयुक्त एक उर्दू शब्द है।
- वर्ष 1913 में पार्टी का गठन संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवासी भारतीयों द्वारा किया गया जिसमें ज़्यादातर पंजाबी शामिल थे । हालांँकि पार्टी में भारत के सभी हिस्सों से भारतीय भी शामिल थे।
- गदर पार्टी की स्थापना का मकसद भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी सशस्त्र संघर्ष छेड़ना था।
- पार्टी के अध्यक्ष बाबा सोहन सिंह भकना को बनाया गया तथा लाला हरदयाल के नेतृत्व में प्रशांत तट पर सैन फ्रांसिस्को में हिंदी संघ के रूप में इसे स्थापित किया गया था।
- पार्टी के योगदान को भविष्य में भारतीय क्रांतिकारी आंदोलनों की नींव रखने के लिये जाना जाता है जिसने स्वतंत्रता संग्रम में एक और कदम के रूप में कार्य किया।
- गदर पार्टी के अधिकांश सदस्य किसान वर्ग से संबंधित थे, जिन्होंने पहली बार 20वीं सदी की शुरुआत में पंजाब से एशिया के शहरों जैसे- हॉन्गकॉन्ग, मनीला और सिंगापुर में प्रवास करना शुरू किया था।
- बाद में कनाडा और अमेरिका में लकड़ी उद्योग के विकसित होने के साथ कई लोग उत्तरी अमेरिका चले गए जहांँ उन्होंने अपना प्रसार किया लेकिन उन्हें संस्थागत नस्लवाद का भी सामना करना पड़ा।
- ग़दर आंदोलन ने 'औपनिवेशिक भारत के सामाजिक ढांँचे में अमेरिकी संस्कृति के समतावादी मूल्यों (समतावाद) को स्थानांतरित करने का कार्य किया था।
- समतावाद समानता की धारणा पर आधारित एक सिद्धांत है, अर्थात् सभी लोग समान हैं और उनका सभी वस्तुओं पर समान अधिकार है।
- यह एक भारतीय क्रांतिकारी संगठन था, जिसका उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना था।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
राजकीय पशु एवं पक्षी: लद्दाख
प्रिलिम्स के लिये:हिम तेंदुआ, ब्लैक-नेक्ड क्रेन मेन्स के लिये:हिम तेंदुआ का पारिस्थितिकी महत्त्व एवं लद्दाख की भौगोलिक विशेषताएँ |
चर्चा में क्यों?
लद्दाख के तत्कालीन राज्य जम्मू-कश्मीर (जम्मू और कश्मीर) से एक अलग केंद्रशासित प्रदेश (UT) के रूप में स्थापना के दो वर्ष बाद हाल ही में लद्दाख ने ‘हिम तेंदुआ’ और ‘ब्लैक-नेक्ड क्रेन’ को राजकीय पशु एवं राजकीय पक्षी के रूप में अपनाया है।
प्रमुख बिंदु
- हिम तेंदुआ:
- परिचय:
- हिम तेंदुए (पैंथेरा यूनिया) खाद्य शृंखला में शीर्ष शिकारी के रूप में अपनी स्थिति के कारण उस पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के संकेतक के तौर पर कार्य करते हैं जिसमें वे रहते हैं।
- आवास;
- मध्य और दक्षिणी एशिया के पर्वतीय क्षेत्र। भारत में उनकी भौगोलिक सीमा में शामिल हैं:
- पश्चिमी हिमालय: जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश।
- पूर्वी हिमालय: उत्तराखंड और सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश।
- विश्व की हिम तेंदुआ राजधानी: हेमिस, लद्दाख।
- हेमिस नेशनल पार्क भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है और इसमें हिम तेंदुओं की अच्छी उपस्थिति भी है।
- मध्य और दक्षिणी एशिया के पर्वतीय क्षेत्र। भारत में उनकी भौगोलिक सीमा में शामिल हैं:
- खतरे:
- शिकार की आबादी में कमी।
- अवैध शिकार और प्रजातियों के आवास में मानव आबादी की घुसपैठ में वृद्धि।
- वन्यजीवों के अंगों और उत्पादों का अवैध व्यापार।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN: सुभेद्य
- CITES: अनुसूची- I
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972: अनुसूची- I
- यह ‘कन्वेंशन ऑन माइग्रेटरी स्पीशीज़’ (CMS) में भी सूचीबद्ध है, जो विश्व स्तर पर और भारत में प्रजातियों को उच्चतम संरक्षण का दर्जा प्रदान करता है।
- ब्लैक-नेक्ड क्रेन:
- परिचय:
- ‘ब्लैक-नेक्ड क्रेन’ (ग्रस निग्रीकोलिस), जिसे तिब्बती क्रेन भी कहा जाता है, एक बड़ा पक्षी और मध्यम आकार का क्रेन है।
- नर और मादा दोनों लगभग एक ही आकार के होते हैं लेकिन नर मादा से थोड़ा बड़ा होता है।
- इसके सिर पर एक विशिष्ट रेड क्राउन मौजूद होता है।
- आवास:
- तिब्बती पठार, सिचुआन (चीन) और पूर्वी लद्दाख (भारत) की उच्च ऊंँचाई वाली आर्द्रभूमि भूमि इन प्रजातियों के मुख्य प्रजनन स्थल हैं। यह पक्षी सर्दी का मौसम कम ऊंँचाई वाले स्थानों पर बिताता है।
- भूटान और अरुणाचल प्रदेश में यह केवल सर्दियों के दौरान आता है।
- खतरा:
- जंगली कुत्तों के कारण अंडे और चूजों को नुकसान।
- आर्द्रभूमि पर बढ़ते मानव दबाव (विकास परियोजनाएंँ) के कारण आवास का नुकसान।
- आर्द्रभूमि के पास सीमित चरागाहों पर बढ़ता चराई का दबाव।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट: संकट के निकट (Near Threatened)
- CITES: परिशिष्ट- I
- भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
लद्दाख
- इसे जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के अधिनियमन के बाद 31 अक्तूबर 2019 को भारत के केंद्रशासित प्रदेश (UT) का दर्जा दिया गया था।
- इससे पहले यह जम्मू और कश्मीर राज्य का हिस्सा था।
- यह भारत का सबसे बड़ा और दूसरा सबसे कम आबादी वाला केंद्रशासित प्रदेश है।
- यह काराकोरम रेंज में सियाचिन ग्लेशियर से उत्तर में मुख्य महान हिमालय के दक्षिण तक फैला हुआ है।
- इसका पूर्वी छोर निर्जन अक्साई चिन के मैदानों (Aksai Chin Plains) से मिलकर बना है जिस पर भारत सरकार द्वारा लद्दाख के हिस्से के रूप में दावा किया जाता है, वर्ष 1962 से यह चीन के नियंत्रण में है।
- लद्दाख का सबसे बड़ा शहर लेह है, इसके बाद कारगिल है, जिसमें से प्रत्येक का मुख्यालय एक ज़िला है।
- लेह ज़िले में सिंधु, श्योक और नुब्रा नदी घाटियाँ शामिल हैं।
- कारगिल ज़िले में सुरू, द्रास और ज़ांस्कर नदी घाटियाँ शामिल हैं।
- इससे पहले वर्ष 2020 में भारतीय और चीनी सैनिकों के मध्य नकु ला (सिक्किम) में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) और पैंगोंग त्सो झील (पूर्वी लद्दाख) के पास एक अस्थायी और छोटी झड़प सामने आई।
- हालाँकि हाल ही में भारत और चीन ने सैद्धांतिक रूप से पूर्वी लद्दाख में एक प्रमुख गश्ती बिंदु पर अलगाव को लेकर सहमति व्यक्त की है।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स ट्रीज़ रिपोर्ट’: BGCI
प्रिलिम्स के लियेस्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स ट्रीज़ रिपोर्ट मेन्स के लियेभारत में विभिन्न वन प्रजातियों की स्थिति और संरक्षण संबंधी उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘बॉटैनिकल गार्डन्स कंज़र्वेशन इंटरनेशनल’ (BGCI) ने ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स ट्रीज़ रिपोर्ट’ लॉन्च की है।
- इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि दुनिया भर में लगभग एक-तिहाई वृक्ष प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है, जबकि सैकड़ों प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
- BGCI एक सदस्यता संगठन है, जो दुनिया भर के 100 से अधिक देशों में वनस्पति उद्यान का प्रतिनिधित्व करता है। यह ब्रिटेन आधारित एक स्वतंत्र चैरिटी है, जिसकी स्थापना वर्ष 1987 में विश्व के वनस्पति उद्यानों को पादप संरक्षण के लिये एक वैश्विक नेटवर्क से जोड़ने हेतु की गई थी।
प्रमुख बिंदु
- जोखिमपूर्ण स्थिति वाली प्रजातियाँ
- रिपोर्ट के मुताबिक, पेड़ों की 17,500 प्रजातियाँ, जो कि कुल प्रजातियों का लगभग 30% है, के विलुप्त होने का खतरा है, जबकि 440 प्रजातियों के 50 से भी कम वृक्ष बचे हैं।
- प्रत्येक देश के वनस्पतियों का 11% हिस्सा संकटग्रस्त श्रेणी में है।
- समग्र तौर पर संकटग्रस्त वृक्ष प्रजातियों की संख्या संकटग्रस्त स्तनधारियों, पक्षियों, उभयचरों और सरीसृपों की संयुक्त संख्या से दोगुनी है।
- रिपोर्ट के मुताबिक, पेड़ों की 17,500 प्रजातियाँ, जो कि कुल प्रजातियों का लगभग 30% है, के विलुप्त होने का खतरा है, जबकि 440 प्रजातियों के 50 से भी कम वृक्ष बचे हैं।
- सबसे अधिक जोखिम वाले वृक्ष:
- सबसे अधिक जोखिम वाले वृक्षों में ‘मैगनोलिया’ और ‘डिप्टरोकार्प्स’ जैसी प्रजातियाँ शामिल हैं, जो प्रायः दक्षिण-पूर्व एशियाई वर्षावनों में पाई जाती हैं। इसके अलावा ओक के वृक्ष, मेपल के वृक्ष और आबनूस भी समान खतरों का सामना कर रहे हैं।
- उच्चतम जोखिम वाले देश:
- वृक्ष-प्रजातियों की विविधता के लिये प्रसिद्ध दुनिया के शीर्ष छह देशों में पेड़ों की हज़ारों किस्मों के विलुप्त होने का खतरा है।
- सबसे अधिक खतरा ब्राज़ील में है, जहाँ 1,788 प्रजातियाँ खतरे में हैं। अन्य पाँच देश इंडोनेशिया, मलेशिया, चीन, कोलंबिया और वेनेज़ुएला हैं।
- ऐसे कुल 27 देश हैं, जहाँ पेड़ों की कोई संकटग्रस्त प्रजाति नहीं है।
- द्वीपीय वृक्ष:
- यद्यपि अधिक विविधता वाले देशों में विलुप्ति के जोखिम से प्रभावित किस्मों की संख्या सबसे अधिक है, किंतु द्वीपीय वृक्ष प्रजातियाँ आनुपातिक रूप से अधिक जोखिम में हैं।
- यह विशेष रूप से चिंता का विषय है, क्योंकि कई द्वीपों में पेड़ों की कई ऐसी प्रजातियाँ भी हैं, जो कहीं और नहीं पाई जाती हैं।
- प्रमुख खतरे:
- पेड़ प्रजातियों के समक्ष शीर्ष तीन खतरों में- फसल उत्पादन, लकड़ी की कटाई और पशुधन खेती शामिल हैं, जबकि जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम संबंधी उभरते खतरे हैं।
- बढ़ते समुद्र स्तर और गंभीर मौसम संबंधी घटनाओं के कारण कम-से-कम 180 प्रजातियों को प्रत्यक्ष तौर पर खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
- वृक्ष बचाने की आवश्यकता:
- समर्थन प्रणाली:
- वृक्ष पारिस्थितिकी तंत्र का प्राकृतिक रूप से समर्थन करने में मदद करते हैं और ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
- वृक्ष प्रजातियों के विलुप्त होने के दूरगामी प्रभाव (Domino Effect) हो सकते हैं, जिससे कई अन्य प्रजातियों का नुकसान हो सकता है।
- बफर के रूप में कार्य करना:
- आवास और भोजन:
- कई संकटग्रस्त वृक्ष प्रजातियाँ पक्षियों, स्तनधारियों, उभयचरों, सरीसृपों, कीड़ों और सूक्ष्मजीवों की लाखों अन्य प्रजातियों के लिये आवास एवं भोजन प्रदान करती हैं।
- समर्थन प्रणाली:
- नीति निर्माताओं हेतु सुझाव:
- सुरक्षा बढ़ाना:
- उन संकटग्रस्त वृक्ष प्रजातियों के लिये संरक्षित क्षेत्र कवरेज का विस्तार करना जो वर्तमान में संरक्षित क्षेत्रों में अच्छी तरह से प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं।
- संरक्षण:
- जहाँ तक संभव हो विश्व स्तर पर संकटग्रस्त वृक्ष प्रजातियों, वनस्पति उद्यान और बीज बैंक संग्रहण केंद्रों का संरक्षण सुनिश्चित करना।
- फंडिंग बढ़ाना:
- संकटग्रस्त वृक्ष प्रजातियों के लिये सरकार और कॉर्पोरेट वित्तपोषण की उपलब्धता बढ़ाना।
- योजनाओं का विस्तार करना:
- वृक्षारोपण योजनाओं का विस्तार करना और संकटग्रस्त तथा देशी प्रजातियों का लक्षित रोपण सुनिश्चित करना।
- सहयोग बढ़ाना:
- अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों में भाग लेकर वृक्षों को विलुप्त होने से रोकने के लिये वैश्विक सहयोग बढ़ाना।
- सुरक्षा बढ़ाना:
- संबंधित भारतीय पहलें:
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिये सहायता अनुदान
प्रिलिम्स के लिये :15वाँ वित्त आयोग, ग्रामीण स्थानीय निकाय, अनुदान, 73वाँ संविधान संशोधन मेन्स के लिये :ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिये आवंटित सहायता अनुदान का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त मंत्रालय ने ग्रामीण स्थानीय निकायों (Rural Local Bodies-RLBs) को सहायता अनुदान प्रदान करने हेतु 25 राज्यों को 13,385.70 करोड़ रुपए की राशि जारी की है।
- यह सहायता अनुदान वर्ष 2021-22 के बद्ध अनुदान (Tied Grants) की पहली किस्त है।
- 15वें वित्त आयोग की अनुशंसा के आधार पर यह अनुदान जारी किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- वित्त आयोग (FC) के अनुदान :
- संघीय बजट स्थानीय निकायों को धन, राज्य आपदा राहत कोष प्रदान करता है और FC की सिफारिश पर करों के हस्तांतरण के बाद राज्यों के किसी भी राजस्व हानि की भरपाई करता है।
- 73वें संविधान संशोधन, 1992 में केंद्र और राज्यों दोनों को पंचायती राज संस्थाओं को निधि, कार्य और पदाधिकारियों को सौंपकर स्वशासन की एक इकाई के रूप में विकसित करने में मदद करने की आवश्यकता है।
- 15वें वित्त आयोग ने 2021-22 से 2025-26 की अवधि के दौरान पंचायतों को 'जल आपूर्ति और स्वच्छता' के लिये 1 लाख 42 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक की राशि आवंटित करने की सिफारिश की है।
- संघीय बजट स्थानीय निकायों को धन, राज्य आपदा राहत कोष प्रदान करता है और FC की सिफारिश पर करों के हस्तांतरण के बाद राज्यों के किसी भी राजस्व हानि की भरपाई करता है।
- बद्ध बनाम खुला अनुदान :
- पंचायती राज ( Panchayati Raj) संस्थाओं के लिये आवंटित कुल सहायता अनुदान (grants) में से 60 प्रतिशत 'बंधन या बद्ध अनुदान' है। केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत खुले में शौच मुक्त (ODF) स्थिति की स्वच्छता और रखरखाव में सुधार , पेयजल की आपूर्ति, वर्षा जल संचयन और जल पुनर्चक्रण के लिये केंद्र द्वारा आवंटित धन के अलावा ग्रामीण स्थानीय निकायों को अतिरिक्त धन की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु बद्ध अनुदान प्रदान किया जाता है।
- शेष 40 प्रतिशत ‘अनटाइड या खुला ग्रांट‘ है और वेतन के भुगतान को छोड़कर, स्थान–विशिष्ट ज़रूरतों के लिये पंचायती राज संस्थानों के स्वविवेक पर इसका उपयोग किया जाता है।
- संसाधनों का आवंटन : राज्यों को केंद्र सरकार से अनुदान प्राप्त होने के 10 कार्य दिवसों के भीतर ग्रामीण स्थानीय निकायों को अनुदान हस्तांतरित करना आवश्यक है।
- 10 कार्य दिवसों से अधिक समय लगने पर राज्य सरकारों को ब्याज सहित अनुदान जारी करने की आवश्यकता होती है।
वित्त आयोग (Finance Commission)
- वित्त आयोग (FC) एक संवैधानिक निकाय है, जो केंद्र और राज्यों के बीच तथा राज्यों के मध्य संवैधानिक व्यवस्था एवं वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप कर से प्राप्त आय के वितरण के लिये विधि तथा सूत्र निर्धारित करता है।
- संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत भारत के राष्ट्रपति को प्रत्येक पाँच वर्ष या उससे पहले एक वित्त आयोग का गठन करना आवश्यक है।
- 15वें वित्त आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा नवंबर 2017 में एन.के. सिंह की अध्यक्षता में किया गया था।
- इसकी सिफारिशें वर्ष 2021-22 से वर्ष 2025-26 तक पाँच वर्ष की अवधि के लिये मान्य होंगी।
FC अनुदान का विभाजन:
- ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिये अनुदान: संविधान में परिकल्पित शासन का त्रिस्तरीय मॉडल ग्राम पंचायतों को स्पष्ट भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ प्रदान करता है।
- FC की सिफारिशें यह सुनिश्चित करती हैं कि इन स्थानीय निकायों को पर्याप्त रूप से वित्तपोषित किया गया है।
- वास्तव में केंद्रीय बजट में FC अनुदान का लगभग आधा ग्राम स्थानीय निकायों को जाता है।
- शहरी स्थानीय निकायों के लिये अनुदान: ग्राम स्तर पर स्वशासन की इकाइयों के अलावा संविधान में शहरों को स्वशासन की इकाइयों के रूप में भी परिकल्पित किया गया है।
- शहरी स्थानीय निकायों जैसे- नगर परिषदों को ग्रामीण स्थानीय निकायों और राज्यों को हस्तांतरण के बाद FC अनुदान का सबसे बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) को सहायता: केंद्र सरकार राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के वित्तपोषण के अलावा राज्य आपदा राहत कोष में भी धन मुहैया कराती है।
- FC की सिफारिशों के अनुसार राज्य सरकार के आपदा राहत अधिकारियों को सहायता प्रदान की जाती है।
- हस्तांतरण के बाद राजस्व घाटा अनुदान: केंद्र द्वारा एकत्र किये गए कुल राजस्व का लगभग एक-तिहाई हिस्सा विभाज्य पूल में उनके हिस्से के रूप में सीधे राज्यों को हस्तांतरित किया जाता है।
- हालाँकि FC राज्यों द्वारा किये गए किसी भी नुकसान के मुआवज़े के लिये एक तंत्र भी प्रदान करता है, जिसे पोस्ट-डिवोल्यूशन राजस्व घाटा अनुदान कहा जाता है।
- यह अनुदान स्थानीय ग्रामीण निकायों को सहायता के बाद FC हस्तांतरण का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा है।
- FC अनुदान के तहत चार मुख्य हस्तांतरणों के अलावा केंद्र अपने स्वयं के संसाधनों से राज्यों और कमज़ोर समूहों को काफी राशि हस्तांतरित करता है।
- उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और सिक्किम के लिये संसाधनों का केंद्रीय पूल
- बाहरी सहायता प्राप्त परियोजना अनुदान
- बाहरी सहायता प्राप्त परियोजना ऋण
- उत्तर-पूर्व परिषद के लिये योजनाएँ
- संविधान के अनुच्छेद 275(1) के तहत योजनाएँ
- अनुसूचित जातियों को विशेष केंद्रीय सहायता तथा जनजातीय क्षेत्रों को विशेष केंद्रीय सहायता।
स्रोत: पी.आई.बी
जैव विविधता और पर्यावरण
मौसम आपदाओं पर रिपोर्ट: डब्ल्यूएमओ
प्रिलिम्स के लिये:विश्व मौसम विज्ञान संगठन मेन्स के लिये:डब्ल्यूएम द्वारा जारी मौसम आपदाओं पर रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization- WMO) द्वारा एक रिपोर्ट जारी की गई है जिसमें कहा गया है कि पिछले 50 वर्षों में मौसम संबंधी आपदाओं के चलते 20 लाख लोगों की मौत हुई है।
- WMO ने ‘एटलस ऑफ मॉर्टेलिटी एंड इकोनॉमिक लॉस फ्रॉम वेदर, क्लाइमेट एंड वॉटर एक्सट्रीम, फ्रॉम 1970 से 2019' (Atlas of Mortality and Economic Losses from Weather, Climate and Water Extremes, from 1970 to 2019) को प्रकाशित किया है।
- WMO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
प्रमुख बिंदु
- रिपोर्ट का निष्कर्ष:
- आपदाओं की संख्या: 50 वर्षों की अवधि में आपदाओं की संख्या में पांँच गुना की वृद्धि हुई है जिनका कारण जलवायु परिवर्तन, अधिक चरम मौसम और बेहतर रिपोर्टिंग को बताया गया है।
- वर्ष 1970 से 2019 तक मौसम, जलवायु और पानी से संबंधित आपदाएँ सभी प्रकार की आपदाओं का 50%, आपदाओं से होने वाली कुल मौतें 45% तथा सभी प्रकार की आपदाओं की रिपोर्ट के अनुसार हुए आर्थिक नुकसान का 74% रही।
- इनमें से 91% से अधिक मौतें विकासशील देशों में हुईं।
- सूखा, तूफान, बाढ़ और अत्यधिक तापमान इसके प्रमुख कारण थे।
- मौतों की घटती संख्या: बेहतर प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और आपदा प्रबंधन के कारण 1970 और 2019 के बीच मौतों की संख्या लगभग तीन गुना कम हो गई।
- सर्पिल लागत: 50 वर्ष की अवधि के दौरान औसतन हर दिन 202 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ। 1970 के दशक से वर्ष 2010 तक आर्थिक नुकसान सात गुना बढ़ गया है।
- तूफान जो कि इस क्षति का सबसे प्रचलित कारण है, से दुनिया भर में सर्वाधिक आर्थिक नुकसान हुआ।
- जलवायु परिवर्तन फुटप्रिंट: जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप दुनिया के कई हिस्सों में मौसम और चरम जलवायु की घटनाएँ बढ़ रही है और ये दुनिया के कई हिस्सों में लगातार से और गंभीर हो जाएगी।
- वायुमंडल में अधिक जल वाष्प ने अत्यधिक वर्षा और बाढ़ की घटनाओं को बढ़ा दिया है तथा गर्म होते महासागरों ने तीव्र उष्णकटिबंधीय तूफानों की आवृत्ति एवं सीमा को प्रभावित किया है।
- इसने दुनिया के कई हिस्सों में निचले इलाकों, डेल्टा, तटों और द्वीपों की भेद्यता को बढ़ा दिया है।
- सेंडाई फ्रेमवर्क की विफलता: रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि सेंडाई फ्रेमवर्क 2015 में निर्धारित आपदा नुकसान को कम करने में विफलता, विकासशील देशों की गरीबी उन्मूलन और अन्य महत्त्वपूर्ण सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने की क्षमता को खतरे में डाल रही है।
- सेंडाई फ्रेमवर्क 2015 को सेंडाई, मियागी, जापान में आयोजित आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन में अपनाया गया था।
- वर्तमान ढाँचा प्राकृतिक या मानव निर्मित खतरों के साथ-साथ संबंधित पर्यावरणीय, तकनीकी और जैविक खतरों तथा जोखिमों के कारण छोटे एवं बड़े पैमाने पर, बार-बार व कम, अचानक और धीमी गति से शुरू होने वाली आपदाओं के जोखिम पर लागू होता है।
- आपदाओं की संख्या: 50 वर्षों की अवधि में आपदाओं की संख्या में पांँच गुना की वृद्धि हुई है जिनका कारण जलवायु परिवर्तन, अधिक चरम मौसम और बेहतर रिपोर्टिंग को बताया गया है।
- अनुशंसाएँ:
- अनुकूलन क्षमता की आवश्यकता: WMO के 193 सदस्य देशों में से केवल आधे के पास बहु-खतरा पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ हैं और अफ्रीका, लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्सों तथा प्रशांत एवं कैरेबियाई द्वीप राज्यों में मौसम व हाइड्रोलॉजिकल अवलोकन नेटवर्क में गंभीर अंतराल मौजूद हैं।
- इस प्रकार विकासशील और अल्प विकसित देशों में पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है।
- व्यापक आपदा जोखिम प्रबंधन: व्यापक आपदा जोखिम प्रबंधन में अधिक निवेश की आवश्यकता है, यह सुनिश्चित करने के लिये जलवायु परिवर्तन अनुकूलन राष्ट्रीय और स्थानीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों का एकीकरण हो।
- जोखिम की समीक्षा: रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि देशों को बदलते मौसम पर विचार करने के लिये जोखिम और भेद्यता की समीक्षा करनी चाहिये ताकि यह दर्शाया जा सके कि उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में अतीत की तुलना में अलग-अलग ट्रैक, तीव्रता और गति हो सकती है।
- सक्रिय नीतियाँ: यह सूखे जैसी धीमी गति से शुरू होने वाली आपदाओं पर एकीकृत और सक्रिय नीतियों के विकास का भी आह्वान करती है।
- अनुकूलन क्षमता की आवश्यकता: WMO के 193 सदस्य देशों में से केवल आधे के पास बहु-खतरा पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ हैं और अफ्रीका, लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्सों तथा प्रशांत एवं कैरेबियाई द्वीप राज्यों में मौसम व हाइड्रोलॉजिकल अवलोकन नेटवर्क में गंभीर अंतराल मौजूद हैं।
- भारत द्वारा हाल ही में की गई पहलें:
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
‘एडिशनल टियर-1’ बाॅण्ड
प्रिलिम्स के लियेभारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, बाॅण्ड, ‘AT1’ बाॅण्ड, बेसल-III मानदंड मेन्स के लियेबेसल-III मानदंड और महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने 7.72% की कूपन दर पर ‘बेसल अनुपालन एडिशनल टियर-1’ (AT1) बाॅण्ड से 4,000 करोड़ रुपए जुटाए हैं।
- सेबी के नए नियमों के बाद घरेलू बाज़ार में यह पहला AT1 बाॅण्ड है।
- यह वर्ष 2013 में ‘बेसल-III’ पूंजी नियमों के लागू होने के बाद से किसी भी भारतीय बैंक द्वारा जारी किये गए इस तरह के ऋण पर अब तक की सबसे कम कीमत है।
बाॅण्ड
- बाॅण्ड, कंपनियों द्वारा जारी कॉर्पोरेट ऋण की इकाइयाँ होती हैं, जो प्रतिभूति संपत्ति के रूप में व्यापार योग्य होती हैं।
- बाॅण्ड को एक निश्चित आय वाले वित्तीय उपकरण के रूप में संदर्भित किया जाता है, क्योंकि बाॅण्ड पारंपरिक रूप से देनदारों को एक निश्चित ब्याज दर (कूपन) का भुगतान करते हैं। हालाँकि अब परिवर्तनीय या अस्थायी ब्याज़ दरें भी काफी सामान्य हो गई हैं।
- बाॅण्ड की कीमतें ब्याज दरों के साथ विपरीत रूप से सह-संबद्ध होती हैं: जब दरें बढ़ती हैं, बाॅण्ड की कीमत गिरती है और जब दरें घटती हैं, तो बाॅण्ड की कीमत बढ़ती है।
- बाॅण्ड की एक निर्धारित परिपक्वता अवधि होती है, जिस पर मूल राशि का भुगतान पूर्ण या जोखिम डिफाॅल्ट रूप से किया जाना होता है।
प्रमुख बिंदु
- ‘AT1’ बाॅण्ड
- ‘AT1 बाॅण्ड’ जिसे ‘परपेचुअल बाॅण्ड’ भी कहा जाता है, की कोई परिपक्वता तिथि नहीं होती है, किंतु इनमें कॉल विकल्प होता है। ऐसे बाॅण्ड के जारीकर्त्ता बाॅण्ड को कॉल या रिडीम कर सकते हैं यदि उन्हें सस्ती दर पर पैसा मिल रहा है, खासकर तब जब ब्याज दरें गिर रही हों।
- ये बैंकों और कंपनियों द्वारा जारी किये गए किसी भी अन्य बाॅण्ड्स की तरह ही हैं, लेकिन अन्य बाॅण्डों की तुलना में इनमें थोड़ी अधिक ब्याज़ दर का भुगतान किया जाता है।
- बैंक ये बाॅण्ड ‘बेसल-III’ मानदंडों को पूरा करने के उद्देश्य से अपने मूल पूंजी आधार को बढ़ाने के लिये जारी करते हैं।
- ये बाॅण्ड भी सूचीबद्ध होते हैं और एक्सचेंजों पर इन्हें खरीदा या बेचा जाता है। इसलिये यदि किसी ‘AT1’ बाॅण्डधारक को पैसे की ज़रूरत है, तो वह इसे सेकेंडरी मार्केट में बेच सकता है।
- निवेशक इन बाॅण्ड्स को जारीकर्त्ता बैंक को वापस नहीं कर सकते हैं यानी इसके धारकों के लिये कोई ‘पुट ऑप्शन’ उपलब्ध नहीं है।
- ‘AT-1’ बाॅण्ड जारी करने वाले बैंक किसी विशेष वर्ष के लिये ब्याज भुगतान को रोक भी सकते हैं या बाॅण्ड के अंकित मूल्य को भी कम कर सकते हैं।
- ‘AT1 बाॅण्ड’ जिसे ‘परपेचुअल बाॅण्ड’ भी कहा जाता है, की कोई परिपक्वता तिथि नहीं होती है, किंतु इनमें कॉल विकल्प होता है। ऐसे बाॅण्ड के जारीकर्त्ता बाॅण्ड को कॉल या रिडीम कर सकते हैं यदि उन्हें सस्ती दर पर पैसा मिल रहा है, खासकर तब जब ब्याज दरें गिर रही हों।
- बाॅण्ड प्राप्त करने के लिये मार्ग:
- ऐसे दो मार्ग हैं जिनके माध्यम से इन बाॅण्ड्स को प्राप्त किया जा सकता है:
- धन जुटाने की मांग करने वाले बैंकों द्वारा AT-1 बाॅण्ड के आरंभिक निजी प्लेसमेंट ऑफर।
- द्वितीयक बाज़ार में पहले से कारोबार कर रहे AT-1 बाॅण्ड्स की खरीदारी होती है।
- ऐसे दो मार्ग हैं जिनके माध्यम से इन बाॅण्ड्स को प्राप्त किया जा सकता है:
- विनियमन:
- AT-1 बाॅण्ड भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा विनियमित होते हैं। अगर RBI को लगता है कि किसी बैंक को बचाव की ज़रूरत है, तो वह बैंक को अपने निवेशकों से परामर्श किये बिना अपने बकाया AT-1 बाॅण्ड को बट्टे खाते में डालने के लिये कह सकता है।
बेसल- III मानदंड
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय नियामक समझौता है जिसने वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद बैंकिंग क्षेत्र के भीतर विनियमन, पर्यवेक्षण और जोखिम प्रबंधन में सुधार के लिये डिज़ाइन किये गए सुधारों का एक सेट पेश किया।
- बेसल- III मानदंडों के तहत बैंकों को पूंजी का एक निश्चित न्यूनतम स्तर बनाए रखने के लिये कहा गया था और उन्हें जमा से प्राप्त होने वाले सभी धन को उधार नहीं देने के लिये कहा गया था।
- बेसल- III मानदंडों के अनुसार, बैंकों की नियामक पूंजी को टियर-1 और टियर-2 में बाँटा गया है, जबकि टियर-1 को कॉमन इक्विटी टियर-1 (CET-1) और अतिरिक्त टियर-1 (AT-1) पूंजी में विभाजित किया गया है।
- सामान्य इक्विटी टियर-1 पूंजी में इक्विटी उपकरण शामिल होते हैं जहाँ रिटर्न, बैंकों के प्रदर्शन से जुड़ा होता है और इसलिये शेयर की कीमत का प्रदर्शन होता है। उनकी कोई परिपक्वता अवधि नहीं होती है।
- CET और AT-1 को सामान्य इक्विटी कहा जाता है। बेसल- III मानदंडों के तहत सामान्य इक्विटी पूंजी की न्यूनतम आवश्यकता को परिभाषित किया गया है।
- टियर-2 पूंजी में कम-से-कम पाँच वर्ष की मूल परिपक्वता अवधि के साथ असुरक्षित अधीनस्थ ऋण होता है।
- बेसल मानदंडों के अनुसार, यदि न्यूनतम टियर-1 पूंजी 6% से कम हो जाती है, तो यह इन बाॅण्ड्स को बट्टे खाते में डालने की अनुमति देता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजव्यवस्था
ई-आईएलपी प्लेटफॉर्म : मणिपुर
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मणिपुर के मुख्यमंत्री ने राज्य में इनर लाइन परमिट (ILP) प्रणाली के प्रभावी नियमन हेतु ई-आईएलपी (e-ILP ) प्लेटफॉर्म को वर्चुअली लॉन्च किया।
- ILP प्रणाली 1 जनवरी, 2020 को मणिपुर में लागू हुई।
- मणिपुर में चार तरह के परमिट जारी किये जाते हैं- अस्थायी, नियमित, विशेष और श्रमिक या लेबर परमिट।
प्रमुख बिंदु
- ILP प्रणाली की पृष्ठभूमि :
- ‘बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन एक्ट, 1873’ के तहत अंग्रेज़ों ने निर्दिष्ट क्षेत्रों में बाहरी लोगों के प्रवेश और ठहरने को नियंत्रित करने वाले नियमों को तैयार किया।
- यह 'ब्रिटिश विषयों' (भारतीयों) को अपने क्षेत्रों में व्यापार करने से रोककर क्राउन के वाणिज्यिक हितों की रक्षा के लिये लागू किया गया था।
- 1950 में भारत सरकार ने 'ब्रिटिश विषयों' को 'सिटीज़न ऑफ इंडिया' या भारत के नागरिक से प्रतिस्थापित कर दिया।
- यह अन्य भारतीय राज्यों से संबंधित बाहरी लोगों से स्वदेशी लोगों के हितों की रक्षा के बारे में स्थानीय चिंताओं को दूर करने के लिये था।
- परिचय :
- इनर लाइन परमिट (ILP) एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज़ है, जिसे अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, नगालैंड और मणिपुर जैसे राज्यों में प्रवेश करने के लिये अन्य राज्यों के भारतीय नागरिकों के पास ILP होना आवश्यक है।
- यह पूर्णतः यात्रा के प्रयोजन से संबंधित राज्य सरकार द्वारा जारी किया जाता है।
- ऐसे राज्यों को नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के प्रावधानों से छूट दी गई है।
- CAA, भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले तीन देशों के प्रवासियों की कुछ श्रेणियों के लिये पात्रता मानदंड में छूट प्रदान करता है। यह इनर लाइन सिस्टम द्वारा संरक्षित क्षेत्रों सहित कुछ श्रेणियों को छूट देता है।
- विदेशी लोगों के लिये नियम:
- विदेशियों को पर्यटन स्थलों का दौरा करने के लिये ‘संरक्षित क्षेत्र परमिट’ (PAP) की आवश्यकता होती है, जो घरेलू पर्यटकों के लिये आवश्यक ILPs से भिन्न होता है।
- विदेशी (संरक्षित क्षेत्र) आदेश 1958 के तहत उक्त आदेश में परिभाषित 'इनर लाइन' के तहत आने वाले क्षेत्रों और विभिन्न राज्यों के अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगे सभी क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है।
- एक विदेशी नागरिक को आमतौर पर किसी संरक्षित/प्रतिबंधित क्षेत्र में जाने की अनुमति नहीं दी जाती है जब तक कि यह स्थापित न हो जाए कि इस तरह की यात्रा को उचित ठहराने के लिये उस व्यक्ति के पास विशिष्ट कारण है।
- विदेशियों को पर्यटन स्थलों का दौरा करने के लिये ‘संरक्षित क्षेत्र परमिट’ (PAP) की आवश्यकता होती है, जो घरेलू पर्यटकों के लिये आवश्यक ILPs से भिन्न होता है।