जैव विविधता और पर्यावरण
विकसित होता भारत का कार्बन बाज़ार
प्रिलिम्स के लिये:कार्बन क्रेडिट बाज़ार, NDCs, GHG, क्योटो प्रोटोकॉल, नेट ज़ीरो, PLI स्कीम, एनर्जी कंज़र्वेशन। मेन्स के लिये:भारत का विकसित होता कार्बन बाज़ार और इसका महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय देश को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को पूरा करने में मदद के लिये कार्बन क्रेडिट बाज़ार स्थापित करने हेतु कदम उठा रहा है।
कार्बन बाज़ार:
- कार्बन क्रेडिट:
- कार्बन क्रेडिट (इसे कार्बन ऑफ़सेट के रूप में भी जाना जाता है) वातावरण में ग्रीनहाउस उत्सर्जन में कमी लाने के सापेक्ष दिया जाने वाला एक क्रेडिट है, जिसका उपयोग सरकारों, उद्योग या व्यक्तियों द्वारा उत्सर्जन के लिये क्षतिपूर्ति के रुप में किया जा सकता है।
- इसके द्वारा आसानी से उत्सर्जन को कम नहीं कर पाने वाले उद्योग वित्तीय लागत वहन कर अपना संचालन कर सकते हैं।
- कार्बन क्रेडिट "कैप-एंड-ट्रेड" मॉडल पर आधारित हैं जिसका उपयोग 1990 के दशक में सल्फर प्रदूषण को कम करने के लिये किया गया था।
- एक कार्बन क्रेडिट, एक मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर है या कुछ बाज़ारों में कार्बन डाइऑक्साइड समकक्ष गैसों (CO2-eq) के बराबर है।
- नवंबर 2021 में ग्लासगो में COP26 जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन के दौरान वार्ताकारों ने वैश्विक कार्बन क्रेडिट ऑफसेट ट्रेडिंग मार्केट बनाने पर सहमति व्यक्त की।
- क्योटो प्रोटोकॉल द्वारा ग्रीनहाउस गैस में कमी करने वाले देशों या विकसित देशों के ऑपरेटरों को क्रेडिट प्रदान करने के लिये तीन तंत्र दिये गए हैं:
- संयुक्त कार्यान्वयन (JI) के तहत घरेलू ग्रीनहाउस कटौती की अपेक्षाकृत उच्च लागत वाला एक विकसित देश दूसरे विकसित देश में परियोजना स्थापित करेगा।
- स्वच्छ विकास तंत्र (CDM) के तहत विकसित देश विकासशील देश में ग्रीनहाउस गैस कटौती परियोजना को "प्रायोजित" कर सकता है, जहाँ ग्रीनहाउस गैस कटौती परियोजना गतिविधियों की लागत आमतौर पर बहुत कम होती है, लेकिन वायुमंडलीय प्रभाव विश्व स्तर पर बराबर प्रदर्शित होते हैं। विकसित देश को अपने उत्सर्जन में कमी लाने के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये क्रेडिट दिया जाएगा, जबकि इससे विकासशील देश को पूंजी निवेश और स्वच्छ प्रौद्योगिकी का लाभ प्राप्त होगा।
- अंतर्राष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार (IET) के तहत देश,अपने आवंटित उत्सर्जन लक्ष्य को संतुलित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय कार्बन क्रेडिट बाज़ार मे व्यापार कर सकते है। कार्बन उत्सर्जन कम करने वाले देश क्योटो प्रोटोकॉल के अनुबंध बी के तहत अपने क्रेडिट को उन देशों को बेच सकते हैं जिन्होंने उत्सर्जन लक्ष्य से अधिक उत्सर्जन किया है।
- कार्बन बाज़ार:
- कार्बन बाज़ार से उत्सर्जन में कमी और निष्कासन को व्यापार योग्य संपत्तियों में बदला जाता है, इस प्रकार उत्सर्जन को कम करने या ऊर्जा दक्षता में सुधार के लिये प्रोत्साहन मिलता है। कार्बन बाज़ार स्वैच्छिक (voluntary) हो सकते हैं।
- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के क्योटो प्रोटोकॉल के तहत वर्ष 1997 में कार्बन व्यापार औपचारिक रूप से शुरू हुआ, जिसमें 150 से अधिक राष्ट्र हस्ताक्षरकर्ता थे।
- समझौते के तहत प्रतिबद्धता वाले पक्ष वर्ष 2008-2012 के बीच अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित या कम करने के लिये सहमत हुए जो कि वर्ष 1990 के स्तर से काफी नीचे थे।
- उत्सर्जन व्यापार जैसा कि क्योटो प्रोटोकॉल में निर्धारित है, यह देशों को उत्सर्जन इकाइयों की अतिरिक्त क्षमता को उन देशों को बेचने की अनुमति देता है जिनके पास अपने लक्ष्य से अधिक उत्सर्जन करते हैं।।
कार्बन बाज़ार का महत्त्व:
- कार्बन बाज़ार उन संगठनों के लिये नए रास्ते खोलेगा जो कार्बन क्रेडिट के विकास, व्यापार और परामर्श कार्य में लगे हुए हैं, जबकि जीवाश्म-ईंधन उत्पादन क्षमता के विकास को रोक रहे हैं।
- कार्बन क्रेडिट भारत जैसे विकासशील देशों को देश के कार्बन लक्ष्यों को परिप्रेक्ष्य में रखते हुए आर्थिक गतिविधियों को अंजाम देने में मदद करेगा।
- वर्ष 2021 में वैश्विक कार्बन क्रेडिट बाज़ार में 164% की वृद्धि हुई और वर्ष 2030 तक इसके 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार करने की उम्मीद है।
- कार्बन क्रेडिट उन उद्योगों और अन्य क्षेत्रों को पुरस्कृत करने का एक तरीका प्रदान करता है जिन्होंने उत्सर्जन को कम करने एवं जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये तकनीकी नवाचारों को शामिल करते हुए विधियों को विकसित किया है।
- कार्बन बाज़ार डीकार्बोनाइज़ेशन की दिशा में संचालितअभियान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, लंबी अवधि में शुद्ध शून्य प्राप्त करने के अंतिम लक्ष्य के साथ अल्पावधि में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से उत्सर्जन में कमी को प्रोत्साहित करेगा।
- कार्बन बाज़ार उत्सर्जन को कम करने के सबसे प्रभावी चालकों में से एक है, जो सबसे कम लागत के साथ उत्सर्जन में कटौती की पेशकश करता है और भारत को 35 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के नुकसान को रोकने में सक्षम बनाता है।
भारतीय उत्सर्जन लक्ष्य:
- भारत ने अगस्त 2022 में संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) को पेरिस समझौते के तहत अपने अद्यतन NDC को प्रस्तुत किया, जिसमें उसने इस तथ्य पर ज़ोर दिया कि यह वर्ष 2070 में नेट ज़ीरो के दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने में एक कदम आगे है।
- अद्यतन NDC के तहत भारत अपने सकल घरेलू उत्पादों की उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक 45% तक कम करने और वर्ष 2030 तक ऊर्जा के गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से अपनी संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता का 50% प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- देश सोलर मैन्युफैक्चरिंग डिवीज़न में अपनी सप्लाई चेन के विस्तार पर काम कर रहा है।
संबंधित भारतीय पहल:
- PLI योजना:
- मॉड्यूल में पॉलीसिलिकॉन सेल के निर्माण के लिये उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना शुरू करके आपूर्ति शृंखला का विविधीकरण।
- स्वच्छ विकास तंत्र:
- भारत में क्योटो प्रोटोकॉल के तहत स्वच्छ विकास तंत्र ने अभिकर्त्ताओं के लिये प्राथमिक कार्बन बाज़ार प्रदान किया है।
- द्वितीयक कार्बन बाज़ार प्रदर्शन-उपलब्धि-व्यापार योजना (जो ऊर्जा दक्षता श्रेणी के अंतर्गत आता है) और नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र द्वारा कवर किया गया है।
- ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022:
- यह 100 किलोवाट (kW) से अधिक के कनेक्टेड लोड या 15 किलोवोल्ट-एम्पीयर (kVA) से अधिक की संविदात्मक मांग वाले उपकरणों, औद्योगिक उपकरणों और भवनों के लिये ऊर्जा दक्षता के मानदंडों एवं मानकों को निर्दिष्ट करने हेतु केंद्र को अधिकृत करता है।
आगे की राह
- भारत राष्ट्रीय स्तर पर कार्बन बााज़ार स्थापित करने की राह पर है, यह स्वैच्छिक कार्बन बााज़ार की शुरुआत के साथ अनुपालन-आधारित बाज़ार की ओर बढ़ रहा है।
- जलवायु परिवर्तन में कमी के प्रभाव अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, परिवहन, अपशिष्ट, पुनर्रोपण और वनीकरण जैसे क्षेत्रों के अनुकूल होने चाहिये।
- उपयुक्त विनियमों और नीति द्वारा समर्थित कार्बन क्रेडिट बाज़ार आने वाले दशक के लिये उचित अवसरों के सृजन में मदद करेगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. कार्बन क्रेडिट की अवधारणा निम्नलिखित में से किससे उत्पन्न हुई है? (2009) (a) पृथ्वी शिखर सम्मेलन, रियो डी जनेरियो उत्तर: (b) प्रश्न. "कार्बन क्रेडिट" के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा सही नहीं है? (2011) (a) कार्बन क्रेडिट प्रणाली क्योटो प्रोटोकॉल के संयोजन में सम्पुष्ट की गई थी। उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. क्या कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट के बावजूद जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) के तहत स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास तंत्र को बनाए रखा जाना चाहिये? आर्थिक विकास के लिये भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के संबंध में चर्चा कीजिये। (2014) प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने हेतु नियंत्रण उपायों की व्याख्या कीजिये। (2022) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
शासन व्यवस्था
सोशल मीडिया और चुनाव
प्रिलिम्स के लिये:मुख्य चुनाव आयुक्त, भारत निर्वाचन आयोग मेन्स के लिये:सोशल मीडिया और चुनाव की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त ने संयुक्त राज्य अमेरिका के 'समिट फॉर डेमोक्रेसी' मंच के तत्त्वावधान में भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा आयोजित चुनाव प्रबंधन निकायों (EMB) के लिये अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया।
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए आयुक्त ने सोशल मीडिया साइटों से फर्जी खबरों को सक्रिय रूप से चिह्नित करने के लिये अपनी "एल्गोरिदम शक्ति" का उपयोग करने का आग्रह किया।
फर्जी सूचना के प्रसार के संबंध में चिंताएँ:
- रेड-हेरिंग (भ्रामक): गलत सूचना का मुकाबला करने के लिये सभी प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की सामग्री मॉडरेशन-संचालित रणनीति एक रेड-हेरिंग है जिसे व्यापार मॉडल के हिस्से के रूप में दुष्प्रचार के प्रवर्धित वितरण की कहीं बड़ी समस्या से ध्यान हटाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की अस्पष्टता: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तेज़ी से सार्वजनिक अभिव्यक्ति का प्राथमिक आधार बनते जा रहे हैं, जिस पर मुट्ठी भर व्यक्तियों का नियंत्रण होता है।
- गलत सूचनाओं पर अंकुश लगाने में सक्षम होने के मार्ग में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पारदर्शिता की कमी है।
- अपर्याप्त उपाय: विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म गलत सूचनाओं को रोकने के लिये एक सुसंगत ढाँचा विकसित करने में असमर्थ रहे हैं और घटनाओं एवं सार्वजनिक दबाव के चलते गलत तरीके से प्रतिक्रिया दी है।
- एक समान आधारभूत दृष्टिकोण, प्रवर्तन और जवाबदेही के अभाव ने सूचना पारिस्थितिकी तंत्र को दूषित कर दिया।
- भ्रामक सूचनाओं का अनुप्रयोग: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने निश्चित प्रारूप वाले विकल्पों को अपनाया है, जिसका उपयोग प्रभावशाली और शक्तिशाली व्यक्तियों द्वारा निजी राजनीतिक और व्यावसायिक लाभ के लिये भ्रामक सूचनाओं का प्रसार सरलता से किया जाने लगा है।
- दुष्प्रचार, घृणा और लक्षित धमकी के मुक्त प्रवाह ने भारत में वास्तविक स्थिति को नुकसान पहुँचाया है और लोकतंत्र का ह्रास किया है।
- सोशल मीडिया अनुप्रयोगों के माध्यम से फैलाई गई गलत सूचनाएँ अल्पसंख्यक के प्रति घृणा, व्याप्त सामाजिक ध्रुवीकरण, हिंसा जैसे वास्तविक जीवन के मुद्दों से जुडी हैं।
- दुष्प्रचार, घृणा और लक्षित धमकी के मुक्त प्रवाह ने भारत में वास्तविक स्थिति को नुकसान पहुँचाया है और लोकतंत्र का ह्रास किया है।
- बच्चों में डिजिटल मीडिया की साक्षरता की कमी: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पाठ्यक्रम में मीडिया साक्षरता को शामिल न करना एक चूक है।
- हालाँकि उस नीति में एक बार 'डिजिटल साक्षरता' का उल्लेख है, लेकिन सोशल मीडिया साक्षरता पूरी तरह से नगण्य है।
- यह एक गंभीर अंतर है क्योंकि सोशल मीडिया छात्रों की साक्षरता का प्राथमिक स्रोत है।
- नाम गुप्त रखने की स्थिति से उत्पन्न खतरे: गोपनीयता बनाए रखते हुए इसका उपयोग प्रतिशोधी सरकारों के विरुद्ध अपनी अभिव्यक्ति में सक्षम होने में है।
- जहाँ एक ओर यह किसी के लिये बिना किसी असुरक्षा के अपने विचार साझा करने में सहायक होता है, वहीं यह इस पहलू में अधिक नुकसानदायक है कि उपयोगकर्त्ता किसी भी हद तक गैर -ज़िम्मेदाराना झूठी जानकारी फैला सकता है।
चुनाव में सोशल मीडिया के लाभ और हानि:
- लाभ:
- घोषणापत्र की योजना:
- हाल के वर्षों में राजनीतिक रैलियों और पार्टी घोषणापत्रों की योजना बनाने में डिजिटल रणनीतियाँ तेज़ी से महत्त्वपूर्ण हो गई हैं।
- अब तक जनसमूह की भावना की समझ प्रस्तुत करने वाले चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों की जगह ट्वीट सर्वेक्षण ने ले लिया है।
- जनता की राय को प्रभावित करने की क्षमता:
- सोशल मीडिया राजनीतिक दलों की अनिर्णीत मतदाताओं की राय को प्रभावित करने में मध्यम वर्ग को मतदान करने की वजह प्रदान करने में मदद करता है।
- यह बड़ी संख्या में वोट करने हेतु समर्थन आधार जुटाने और दूसरों को वोट देने के लिये प्रभावित करने में भी मदद करता है।
- जानकारी का प्रसार:
- राजनेता इस नए सोशल मीडिया को तेज़ी से प्रचार, प्रसार या जानकारी प्राप्त करने या तर्कसंगत और महत्त्वपूर्ण बहस में योगदान देने के लिये अपना रहे हैं।
- लोगों की समस्याओं का समाधान:
- सोशल मीडिया लोगों के लिये आगामी कार्यक्रमों, पार्टी कार्यक्रमों और चुनाव एजेंडा पर अद्यतित रहना आसान बनाता है।
- सोशल मीडिया को प्रबंधित करने और लोगों से जुड़ने तथा उनके मुद्दों के बारे में जानने के लिये इसका इस्तेमाल करने हेतु एक तकनीकी रूप से सक्षम उम्मीदवार को चुना जाना चाहिये।
- घोषणापत्र की योजना:
- हानि:
- ध्रुवीकरण:
- सोशल मीडिया राजनेताओं को लोकप्रिय बनाने और अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने का साधन बन गया है।
- गलत बयानवाजी में वृद्धि:
- विपक्षी दलों को दोष देने और आलोचना करने के लिये सोशल मीडिया का बहुत उपयोग किया जाता है, इसके साथ ही भ्रामक एवं गलत तथ्यों द्वारा जानकारी को गलत तरीके से भी प्रस्तुत किया जाता है।
- राजनीतिक गतिरोध पैदा करने के लिये भी सोशल मीडिया का उपयोग किया जाता है।
- लोगों के दृष्टिकोण को प्रभावित करना:
- सोशल मीडिया पर विज्ञापन के लिये बहुत अधिक खर्च की आवश्यकता होती है। केवल संपन्न दल ही इतना खर्च कर सकते हैं और वे अधिकांश मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं।
- चुनावों के दौरान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फेक न्यूज़ का प्रसार लोगों के दृष्टिकोण को प्रभावित करता है।
- ध्रुवीकरण:
आगे की राह
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, राजनीतिक दलों, नागरिक समाज और चुनाव अधिकारियों को इस बात पर अधिक ध्यान देना चाहिये कि चुनाव के दौरान राजनेताओं द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग कैसे किया जाए तथा इसके लिये व्यापक दिशानिर्देश तैयार किये जाएँ जिससे मतदाताओं को लाभ मिले।
- अगर सही तरीके से सोशल मीडिया का उपयोग किया जाए तो वोट बैंक पर फर्क पड़ेगा लेकिन इसका दूसरा पहलू हमेशा बना रहेगा। इसलिये, व्यक्तिगत अधिकारों के उल्लंघन के बिना चुनावों में सोशल मीडिया के प्रभावी उपयोग के लिये कुछ उपाय करने की आवश्यकता है।
- समय की मांग है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि सोशल मीडिया से मतदान प्रभावित न हो और देश में स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव हो सकें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नQ. ‘सामाजिक संजाल साईटें’ (Social Networking Sites) क्या होती है और इन साईटों से क्या सुरक्षा उलझने प्रस्तुत होती हैं? (2013) Q. आदर्श आचार-संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका की विवेचना कीजिये। (2022) |
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना का विकेंद्रीकरण
प्रिलिम्स के लिये:मनरेगा, मुद्दे, न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948. मेन्स के लिये:सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
ग्रामीण विकास मंत्रालय के एक आंतरिक अध्ययन के अनुसार, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS) को ज़मीनी स्तर पर अधिक "लचीलापन" की अनुमति देने के लिये विकेंद्रीकृत किया जाना चाहिये।
अध्ययन के निष्कर्ष:
- मुद्दे:
- विगत कुछ वर्षों में,ग्राम सभाओं को अग्रिम भुगतान करने के बजाय कोष प्रबंधन को केंद्रीकृत कर दिया गया है ताकि वे उस कार्य को तय कर सकें जो वे करना चाहते हैं।
- कोष वितरण में देरी की एक पुरानी समस्या है, जहाँ लाभार्थी परियोजनाओं को पूरा करने के लिये निर्माण सामग्री खुद ही खरीद लेते हैं।
- हिमाचल प्रदेश और गुजरात में मज़दूरी देने में तीन या चार महीने और निर्माण सामग्री उपलब्धता में छह महीने की देरी हुई थी।
- कई राज्यों में मनरेगा की मज़दूरी बाज़ार दर से काफी कम थी, जो सुरक्षा जाल के रूप में कार्य करने के उद्देश्य को विफल कर रही थी।
- वर्तमान में गुजरात में एक खेतिहर मज़दूर की न्यूनतम मज़दूरी 324.20 रुपए है, लेकिन मनरेगा के तहत उनकी मज़दूरी 229 रुपए है।
- निजी ठेकेदार मज़दूरों को अधिक भुगतान करते हैं।
- अनुमेय कार्यों के प्रकारों को सूचीबद्ध करने के बजाय अनुमेय कार्यों का अधिक विविधीकरण होना चाहिये, इसके साथ ही कार्यों की व्यापक श्रेणियों को सूचीबद्ध किया जा सकता है और व्यापक श्रेणियों के अनुसार कार्यों के प्रकार का चयन करने के लिये ज़मीनी स्तर पर लचीलापन प्रदान किया जाना चाहिये।
- ग्राम सभाएँ अपने लिये निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने के बजाय स्थानीय परिस्थितियों और समुदाय की आवश्यकताओं को ध्यान में रख सकती हैं।
- समय पर संवितरण करने के लिये रिवॉल्विंग फंड (एक अतिरिक्त आंतरिक मौद्रिक पूल) होना चाहिये जिसका उपयोग केंद्रीय निधि में देरी होने पर किया जा सकता है।
मनरेगा:
- परिचय:
- मनरेगा, जिसे वर्ष 2005 में लॉन्च किया गया था, दुनिया के सबसे बड़े कार्य गारंटी कार्यक्रमों में से एक है।
- योजना का प्राथमिक उद्देश्य किसी भी ग्रामीण परिवार के अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी देना है।
- वर्ष 2022-23 तक मनरेगा के तहत 15.4 करोड़ सक्रिय श्रमिक हैं।
- कार्य का कानूनी अधिकार:
- पहले की रोज़गार गारंटी योजनाओं के विपरीत मनरेगा का उद्देश्य अधिकार-आधारित ढाँचे के माध्यम से चरम निर्धनता के कारणों का समाधान करना है।
- लाभार्थियों में कम-से-कम एक-तिहाई महिलाएँ होनी चाहिये।
- मज़दूरी का भुगतान न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 के तहत राज्य में कृषि मज़दूरों के लिये निर्दिष्ट वैधानिक न्यूनतम मज़दूरी के अनुरूप किया जाना चाहिये।
- मांग-प्रेरित योजना:
- मनरेगा की रूपरेखा का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग यह है कि इसके तहत किसी भी ग्रामीण वयस्क को मांग करने के 15 दिनों के भीतर काम पाने की कानूनी रूप से समर्थित गारंटी प्राप्त है, जिसमें विफल होने पर उसे 'बेरोज़गारी भत्ता' प्रदान किया जाता है।
- यह मांग-प्रेरित योजना श्रमिकों के स्व-चयन (Self-Selection) को सक्षम बनाती है।
- विकेंद्रीकृत योजना: इन कार्यों के योजना निर्माण और कार्यान्वयन में पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) को महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ सौंपकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया को सशक्त करने पर बल दिया गया है।
- अधिनियम में आरंभ किये जाने वाले कार्यों की सिफारिश करने का अधिकार ग्राम सभाओं को सौंपा गया है और इन कार्यों को कम-से-कम 50% उनके द्वारा ही निष्पादित किया जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभान्वित होने के पात्र हैं? (2011) (a) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों के वयस्क सदस्य उत्तर: (d) |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय समाज
वर्ल्ड सिटीज़ डे
प्रिलिम्स के लिये:वर्ल्ड सिटीज़ डे मेन्स के लिये:शहरीकरण और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
वैश्विक शहरीकरण को बढ़ावा देने और इसकी चुनौतियों का समाधान करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता को उजागर करने हेतु हर वर्ष 31 अक्तूबर को वर्ल्ड सिटीज़ डे मनाया जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2050 तक विश्व स्तर पर हर 10 में से सात लोग शहरों में रहेंगे।
वर्ल्ड सिटीज़ डे का इतिहास:
- 2022 की थीम:
- एक्ट लोकल टू गो ग्लोबल
- इतिहास:
- 27 दिसंबर, 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने एक प्रस्ताव के माध्यम से वर्ल्ड सिटीज़ डे का प्रस्ताव रखा।
- इसे पहली बार वर्ष 2014 में आयोजित किया गया था।
- वर्ष 1976 में मानव आवास पर दूसरे संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा वर्ल्ड सिटीज़ डे की स्थापना से संबंधित UNGA का निर्णय प्रभावित हुआ।
- यूएन-हैबिटेट कार्यक्रम एसडीजी 11 लक्ष्यों के अनुरूप स्थायी शहरों के विकास को बढ़ावा देता है।
- संयुक्त राष्ट्र मानव आवास कार्यक्रम (UN-Habitat) मानव बस्तियों और सतत् शहरी विकास के लिये संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी है।
- यह इस उद्देश्य के लिये वार्षिक शहरी अक्तूबर कार्यक्रम आयोजित करता है जो महीने के पहले सोमवार को शुरू होता है और 31 अक्तूबर को वर्ल्ड सिटीज़ डे के साथ समाप्त होता है।
- महत्त्व:
- विश्व शहर दिवस स्थानीय और वैश्विक शहरी विकास के सभी हितधारकों को एक साथ लाकर शहरीकरण से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने में मदद करता है।
- शहरीकरण राष्ट्रीय आर्थिक विकास का सूचक है।
- हालाँकि, इस तरह के विकास को सामाजिक, आर्थिक, जनसांख्यिकीय और पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- तेज़ी से शहरीकरण के चलते सबसे अधिक देखी जाने वाली चुनौतियों में मूल निवासियों का विस्थापन, पेड़ों की कटाई, जानवरों का अपना आवास खोना, स्वास्थ्य देखभाल के मुद्दे, खाद्य आपूर्ति और प्रदूषण शामिल हैं।
संबंधित पहल:
- शहरीकरण हेतु भारत की पहल:
- शहरी विकास से संबंधित योजनाएंँ/कार्यक्रम:
- मलिन बस्तियों में रहने वालों/शहरी गरीबों के लिये सरकार की पहल:
आगे की राह
- भले ही वाहन-केंद्रित विकास के कारण भारतीय शहर विस्फोटक मोटरीकरण की चपेट में हैं, लेकिन भारत के अधिकांश शहरों में सार्वजनिक परिवहन, पैदल और साइकिल ट्रैक का उच्च उपयोग इसका मज़बूत पक्ष हैं।।
- समय आ गया है कि सक्रिय नीतियाँ के तहत सभी आय स्तरों और अमीरों के लिये टिकाऊ तरीके से काम किया जाए।
- परिवहन क्षेत्र की नीतियाँ भारत में अधिक प्रगतिशील और समावेशी हैं लेकिन इस क्षेत्र में कार्यान्वयन एवं निवेश धीमा है।
- भारत को यात्रा दुरी कम करने और सुविधाजनक बनाने तथा आय विकास के साथ पारगमन उन्मुख विकास को बढ़ावा देने के लिये अपने कॉम्पैक्ट शहरी रूपों को बनाए रखने हेतु सक्रिय नीतियों की भी आवश्यकता है ताकि शहरों को सभी के लिये अधिक सुलभ व रहने योग्य बनाया जा सके।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. बेहतर नगरीय भविष्य की दिशा में कार्यरत संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र पर्यावास (UN-Habitat) की भूमिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) 1, 2 और 3 उत्तर: (b) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
SCO परिषद के प्रमुखों की बैठक
प्रिलिम्स के लिये:बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर, क्लाइमेट चेंज। मेन्स के लिये:शंघाई सहयोग संगठन। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शासनाध्यक्षों की बैठक की मेज़बानी की।
- संगठन के व्यापार और आर्थिक एजेंडे पर ध्यान केंद्रित करने एवं SCO के वार्षिक बजट को मंज़ूरी देने के लिये SCO के शासनाध्यक्षों की बैठक सालाना आयोजित की जाती है।
- भारत ने वर्ष 2023 के लिये SCO के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला है और 2023 के मध्य में दिल्ली में एक शिखर सम्मेलन में सभी SCO देशों के नेताओं की मेज़बानी करेगा।
- इससे पहले SCO शिखर सम्मेलन 2022 हाल ही में उज़्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- SCO सदस्य देशों के प्रतिनिधिमंडलों के प्रमुखों ने वैश्विक और क्षेत्रीय विकास के प्रमुख मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान किया, SCO के भीतर व्यापार, आर्थिक, सांस्कृतिक व मानवीय सहयोग बढ़ाने के लिये प्राथमिकता वाले कदमों पर चर्चा की।
- भारत ने कहा कि SCO सदस्यों के साथ उसका कुल व्यापार केवल 141 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का है, जिसंके कई गुना बढ़ने की क्षमता है।
- SCO देशों के साथ भारत का अधिकांश व्यापार चीन के साथ है, जो वर्ष 2022 में 100 बिलियन अमेरिकी डाॅलर को पार कर गया, जबकि रूस के साथ व्यापार 20 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से कम है।
- मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार 2 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से कम है और पाकिस्तान के साथ यह लगभग 500 मिलियनअमेरिकी डाॅलर है।
- चीन के BRI (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव) पर निशाना साधते हुए, जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) के कुछ हिस्सों से होकर गुज़रता है, भारत ने कहा कि कनेक्टिविटी परियोजनाओं को सदस्य राज्यों की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिये और अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करना चाहिये।
- भारत ने मध्य एशियाई राज्यों के हितों की केंद्रीयता पर निर्मित SCO क्षेत्र में बेहतर कनेक्टिविटी की आवश्यकता को रेखांकित किया, जो इस क्षेत्र की आर्थिक क्षमता को बढ़ाएगा जिसमें चाबहार बंदरगाह और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) सक्षम बन सकते हैं।
- भारत ने जलवायु परिवर्तन की चुनौती से लड़ने की अपनी प्रतिबद्धता और इस दिशा में हासिल की गई उपलब्धियों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया।
- भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह और आईएनएसटीसी के माध्यम से अधिक व्यापार के लिये ज़ोर दिया, जिसका भारत हिस्सा है, इसका लक्ष्य मध्य एशियाई देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार में सुधार करना है।
- बैठक के बाद भारत को छोड़कर सभी देशों का नाम लेते हुए एक संयुक्त विज्ञप्ति जारी की गई, जिसमें "यूरेशियन आर्थिक संघ के निर्माण के साथ 'बेल्ट एंड रोड' निर्माण के संरेखण को बढ़ावा देने के काम सहित बीआरआई के लिये उनके समर्थन की पुष्टि की गई।"
शंघाई सहयोग संगठन:
- परिचय:
- यह एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसे वर्ष 2001 में बनाया गया था।
- SCO चार्टर वर्ष 2002 में हस्ताक्षरित किया गया था और वर्ष 2003 में लागू हुआ।
- यह एक यूरेशियाई राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य संगठन है जिसका लक्ष्य इस क्षेत्र में शांति, सुरक्षा तथा स्थिरता बनाए रखना है।
- इसे उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के प्रतिकार के रूप में देखा जाता है, यह नौ सदस्यीय आर्थिक और सुरक्षा ब्लॉक है तथा सबसे बड़े अंतर-क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में से एक के रूप में उभरा है।
- आधिकारिक भाषाएँ:
- रूसी और चीनी।
- स्थायी निकाय:
- बीजिंग में SCO सचिवालय।
- ताशकंद में क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS) की कार्यकारी समिति।
- अध्यक्षता:
- अध्यक्षता एक वर्ष पश्चात् सदस्य देशों द्वारा रोटेशन के माध्यम से की जाती है।
- उत्पत्ति:
- वर्ष 2001 में SCO के गठन से पहले कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़स्तान, रूस और ताजिकिस्तान शंघाई फाइव के सदस्य थे।
- शंघाई फाइव (1996) सीमाओं के सीमांकन और विसैन्यीकरण वार्त्ता की एक शृंखला से उभरा, जिसे चार पूर्व सोवियत गणराज्यों ने चीन के साथ सीमाओं पर स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये आयोजित किया था।
- वर्ष 2001 में संगठन में उज़्बेकिस्तान के शामिल होने के बाद शंघाई फाइव का नाम बदलकर SCO कर दिया गया।
- भारत और पाकिस्तान 2017 में इसके सदस्य बने।
- वर्तमान सदस्य: कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़स्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान।
- ईरान 2023 में SCO का स्थायी सदस्य बनने के लिये तैयार है।
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना (BRI):
- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है जो एशिया, अफ्रीका और यूरोप महाद्वीप में फैले कई देशों के बीच कनेक्टिविटी एवं सहयोग पर केंद्रित है। बीआरआई लगभग 150 देशों (चीन का दावा) में फैला हुआ है।
- वर्ष 2013 में प्रारंभ में इस परियोजना में रोडवेज़, रेलवे, समुद्री बंदरगाहों, पावर ग्रिड, तेल और गैस पाइपलाइन तथा संबंधित बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के नेटवर्क का निर्माण शामिल है।
- इस परियोजना के दो भाग हैं।
- सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट: यह चीन को मध्य एशिया, पूर्वी यूरोप और पश्चिमी यूरोप से जोड़ने हेतु भूमि मार्ग है।
- 21वीं सदी का समुद्री रेशम मार्ग: यह चीन के दक्षिणी तट को भूमध्यसागर, अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य एशिया से जोड़ने हेतु समुद्री मार्ग है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सQ. कभी-कभी समाचारों में 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है? (2016) (a) अफ्रीकी संघ उत्तर: (d) Q. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त में से भारत किसका सदस्य है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्सQ. SCO के उद्देश्यों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। भारत के लिये इसका क्या महत्व है? (2021) |
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
कुपोषण, भूख और खाद्य असुरक्षा से निपटना
प्रिलिम्स के लिये:कुपोषण, भूख, खाद्य असुरक्षा, पोषण अभियान मेन्स के लिये:कुपोषण, भूख, खाद्य असुरक्षा से निपटना और संबंधित पहल |
चर्चा में क्यों?
भारत भूख, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण को मिटाने हेतु वर्ष 2030 के लक्ष्य को हासिल करने की राह पर नहीं है।
- वर्ष 2021 की वैश्विक पोषण रिपोर्ट के अनुसार, भारत छह वैश्विक लक्ष्यों स्टंटिंग, वेस्टिंग, एनीमिया, मातृ, नवजात और छोटे बच्चे के पोषण, जन्म के समय कम वज़न और बचपन के मोटापे को दूर करने में से पाँच को प्राप्त करने की राह पर नहीं है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2012 में छह वैश्विक पोषण लक्ष्य निर्धारित किये गए थे, जिन्हें 2025 तक हासिल किया जाना है।
खाद्य असुरक्षा और कुपोषण में योगदान देने वाले कारक:
- वर्तमान नीतियाँ:
- वर्तमान नीतियों ने आधुनिक कृषि-खाद्य प्रणालियों को प्रोत्साहित किया है जिससे मुख्य अनाज पर निर्भर आहारों की तुलना में स्वस्थ आहारों की कीमत कई गुना वृद्धि हुई है।
- इन प्रतिबंधों ने उच्च ऊर्जा घनत्व और कम पौष्टिक मूल्य के कम लागत वाले खाद्य पदार्थों को अधिक लोकप्रिय बना दिया है।
- पारंपरिक फसलों का विलुप्त होना:,
- भविष्य की स्मार्ट फसलें जैसे कि ऐमारैंथस, एक प्रकार का अनाज, माइनर बाजरा, फिंगर बाजरा, प्रोसो बाजरा, फॉक्सटेल बाजरा और दालें पारंपरिक रूप से भारत में उगाई जाती थीं, जिससे वे खाद्य और पोषण सुरक्षा का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गए।
- ये पारंपरिक फसलें विभिन्न कारणों से धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं।
- उनके पोषण मूल्य, उत्पादन के लिये व्यवहार्य स्थानीय बाज़ारों और नकदी फसलों की बढ़ती मांग के बारे में ज्ञान की कमी उनके विलुप्त होने को बढ़ावा दे रही है।
- असंतुलित आहार:
- हाल के वर्षों में सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य प्रणाली ने अप्रत्याशित रूप से दुनिया भर में खाने की आदतों और आहार को बदल दिया है।
- विभिन्न कारक:
- ऐसे कारकों में शामिल हैं - संघर्ष, जलवायु चरम सीमा, आर्थिक संकट और बढ़ती असमानता।
- ये कारक अक्सर संयोजन में होते हैं, राजकोषीय स्थितियों को जटिल बनाते हैं और इसे कम करने की दिशा में प्रयास करते हैं।
- पहल:
- पोषण अभियान: भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक "कुपोषण मुक्त भारत" सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय पोषण मिशन (NNM) या पोषण अभियान शुरू किया है।
- एनीमिया मुक्त भारत अभियान: इसे वर्ष 2018 में शुरू किया गया, मिशन का उद्देश्य एनीमिया की वार्षिक दर को एक से तीन प्रतिशत अंक तक कम करना है।
- मध्याह्न भोजन (MDM) योजना: इसका उद्देश्य स्कूली बच्चों के बीच पोषण स्तर में सुधार करना है, जिसका स्कूलों में नामांकन, प्रतिधारण और उपस्थिति पर प्रत्यक्ष एवं सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013: इसका उद्देश्य अपनी संबद्ध योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से सबसे कमज़ोर लोगों के लिये खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जिससे भोजन तक पहुँच कानूनी अधिकार बन जाए।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी के लिये बेहतर सुविधाएँ प्राप्त करने हेतु 6,000 रुपए सीधे उनके बैंक खातों में स्थानांतरित किये जाते हैं।
- समेकित बाल विकास सेवा (ICDS) योजना: इसे वर्ष 1975 में शुरू किया गया था और इस योजना का उद्देश्य 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों तथा उनकी माताओं को भोजन, पूर्व स्कूली शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच और अन्य सेवाएँ प्रदान करना है।
आगे की राह
- कृषि-खाद्य प्रणालियों में निवेश:
- भारत जैसे विकासशील देशों को आर्थिक मंदी, घरेलू आय में कमी, अनियमित कर राजस्व और मुद्रास्फीति के दबाव के बावजूद बढ़ी हुई खाद्य आवश्यकता एवं पोषण के लिये कृषि-खाद्य प्रणालियों में भारी निवेश करना होगा।
- सार्वजनिक निधियों के आवंटन पर पुनर्विचार करना:
- यह भी पुनर्विचार करना आवश्यक है कि कृषि उत्पादकता, आपूर्ति शृंखला और उपभोक्ता व्यवहार के संदर्भ में खाद्य एवं कृषि नीतियों के संदर्भ में सार्वजनिक धन कैसे आवंटित किया जाना चाहिये।
- पोषाहार संरचना में अंतराल को पाटना:
- भारतीय आहार में फल, फलियाँ, मेवा, मछली और डेयरी वस्तुओं विशेष रूप से कमी है. ये सभी स्वस्थ विकास और गैर-संचारी रोगों की रोकथाम के लिये आवश्यक हैं।
- इस प्रकार दैनिक भोजन की पोषण गुणवत्ता में अंतराल को पाटने के रुप में भारत को कुपोषण, पोषण असमानता और खाद्य असुरक्षा के तिहरे बोझ से निपटने के लिये कदम उठाना चाहिये।
- भविष्य की फसलों का उत्पादन:
- स्थानीय, पारिस्थितिक, सामाजिक-सांस्कृतिक एवं आर्थिक संदर्भों से जुड़े होने के कारण पारंपरिक खाद्य प्रणालियाँ आम जनता के स्वास्थ्य और पोषण सुरक्षा को बनाए रखने के लिये सबसे अच्छी स्थिति में हैं।
- मुख्य खाद्य फसलों की तुलना में भविष्य की स्मार्ट फसलें अधिक पौष्टिक होती हैं।
- मज़बूत डेटा प्रबंधन:
- भारत को वर्ष 2030 तक वैश्विक पोषण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अधिक मज़बूत डेटा प्रबंधन प्रणाली, खाद्य वितरण प्रणाली में बेहतर ज़िम्मेदारी, प्रभावी संसाधन प्रबंधन, पर्याप्त पोषण शिक्षा, कर्मचारियों में वृद्धि और कठोर निगरानी की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन का उद्देश्य देश के चिह्नित ज़िलों में स्थायी तरीके से क्षेत्र विस्तार और उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से कुछ फसलों के उत्पादन में वृद्धि करना है। वे फसलें कौन-सी हैं? (2010) (a) केवल चावल और गेहूँ उत्तर: (b) प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत में आज भी सुशासन के लिये भूख और गरीबी सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं. मूल्यांकन कीजिये कि इन विशाल समस्याओं से निपटने में सरकारों ने कितनी प्रगति की है। सुधार के उपाय सुझाइये। (मुख्य परीक्षा, 2017) प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? खाद्य सुरक्षा विधेयक ने भारत में भूख और कुपोषण को खत्म करने में कैसे मदद की है? (मुख्य परीक्षा, 2021) प्रश्न. भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? इसे कैसे प्रभावी और पारदर्शी बनाया जा सकता है? (मुख्य परीक्षा, 2022) |