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डेली न्यूज़

  • 02 Jul, 2022
  • 40 min read
शासन व्यवस्था

वन (संरक्षण) नियम, 2022

प्रिलिम्स के लिये:

वनीकरण, भारत राज्य वन रिपोर्ट, 2019, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006। 

मेन्स के लिये:

वन के प्रावधान (संरक्षण) नियम, 2022, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, राष्ट्रीय वन नीति, 1988, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने वन (संरक्षण) नियम, 2022 जारी किया है। 

  • यह वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 4 और वन (संरक्षण) नियम, 2003 के अधिक्रमण (Supersession) में प्रदान किया गया है। 

वन (संरक्षण) नियम, 2022 के प्रावधान: 

  • समितियों का गठन: 
    • इसने एक सलाहकार समिति, प्रत्येक एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालयों में एक क्षेत्रीय अधिकार प्राप्त समिति और राज्य/केंद्रशासित प्रदेश (UT) सरकार के स्तर पर एक स्क्रीनिंग समिति का गठन किया। 
  • सलाहकार समिति: 
    • सलाहकार समिति की भूमिका इसके लिये संदर्भित प्रस्तावों और केंद्र सरकार द्वारा संदर्भित वनों के संरक्षण से जुड़े किसी भी मामले के संबंध में संबंधित धाराओं के तहत अनुमोदन प्रदान करने के संबंध में सलाह देने या सिफारिश करने तक सीमित है। 
  • परियोजना स्क्रीनिंग समिति: 
    • MoEFCC ने वन भूमि के अंतरण से जुड़े प्रस्तावों की प्रारंभिक समीक्षा के लिये प्रत्येक राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश में एक परियोजना स्क्रीनिंग समिति के गठन का निर्देश दिया है। 
    • पांँच सदस्यीय समिति प्रत्येक महीने कम-से-कम दो बार बैठक करेगी और राज्य सरकारों को समयबद्ध तरीके से परियोजनाओं पर सलाह देगी। 
    • 5-40 हेक्टेयर के बीच की सभी गैर-खनन परियोजनाओं की समीक्षा 60 दिनों की अवधि के भीतर की जानी चाहिये और ऐसी सभी खनन परियोजनाओं की समीक्षा 75 दिनों के भीतर की जानी चाहिये। 
    • बड़े क्षेत्र वाली परियोजनाओं के लिये समिति को कुछ और समय मिलता है, जिसमें 100 हेक्टेयर से अधिक की गैर-खनन परियोजनाओं के लिये 120 दिन और खनन परियोजनाओं के लिये 150 दिन शामिल है। 
  • क्षेत्रीय अधिकार प्राप्त समितियाँ: 
    • सभी रैखिक परियोजनाओं (सड़कों, राजमार्गों आदि), 40 हेक्टेयर तक की वन भूमि से जुड़ी परियोजनाएंँ और जिन्होंने सर्वेक्षण के प्रयोजन के लिये उनकी सीमा के बावजूद 0.7 तक कैनोपी घनत्व वाली वन भूमि के उपयोग का अनुमान लगाया है, उनकी एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालय में जांँच की जाएगी। 
  • प्रतिपूरक वनीकरण: 
    • पर्वतीय या पहाड़ी राज्य वन भूमि को अपने भौगोलिक क्षेत्र के दो-तिहाई से अधिक कवर करने वाले हरित आवरण के साथ, या राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश अपने भौगोलिक क्षेत्र के एक-तिहाई से अधिक को कवर करने वाले वन भूमि केअंतरण में सक्षम होंगे,  इसके अलावा अन्य राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों, जहांँ कवर 20% से कम है, में प्रतिपूरक वनरोपण करना। 

वन संरक्षण के लिये अन्य पहलें: 

  • भारतीय वन नीति, 1952: 
    • यह औपनिवेशिक वन नीति का एक सरल विस्तार थाहालांकि इसमें कुल भूमि क्षेत्र का एक- तिहाई तक वन आवरण बढ़ाने का प्रावधान शामिल था 
      • उस समय जंगलों से प्राप्त अधिकतम वार्षिक राजस्व राष्ट्र की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता थीदो विश्व युद्धों, रक्षा की आवश्यकता, विकासात्मक परियोजनाएँ जैसे- नदी घाटी परियोजनाएँ, लुगदी, कागज़ और प्लाईवुड जैसे उद्योग तथा राष्ट्रीय हित की वन उपज पर बहुत अधिक निर्भरता के परिणामस्वरूप जंगलों के विशाल क्षेत्रों से राजस्व जुटाने के लिये राज्यों को मंज़ूरी दे दी गई 
  • वन संरक्षण अधिनियम, 1980: 
    • वन संरक्षण अधिनियम, 1980 ने निर्धारित किया कि वन क्षेत्रों में स्थायी कृषि वानिकी का अभ्यास करने के लिये केंद्रीय अनुमति आवश्यक हैइसके अलावा उल्लंघन या परमिट की कमी को एक अपराध माना गया 
      • इसने वनों की कटाई को सीमित करने, जैवविविधता के संरक्षण और वन्यजीवों को बचाने का लक्ष्य रखा। हालांँकि हाँंकि यह अधिनियम वन संरक्षण के प्रति अधिक आशा प्रदान करता है लेकिन यह अपने लक्ष्य में सफल नहीं था 
  • राष्ट्रीय वन नीति, 1988: 
    • राष्ट्रीय वन नीति का अंतिम उद्देश्य एक प्राकृतिक विरासत के रूप में वनों के संरक्षण के माध्यम से पर्यावरणीय स्थिरता और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखना था 
      • इसने वाणिज्यिक सरोकारों से वनों की पारिस्थितिक भूमिका और भागीदारी प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने के लिये एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और स्पष्ट बदलाव किया 
      • इसमें देश के भौगोलिक क्षेत्र के 33% हिस्से को वन और वृक्षों से आच्छादित करने के लक्ष्य की परिकल्पना की गई है। 
  • राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम: 
    • इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2000 से निम्नीकृत वन भूमि के वनीकरण के लिये लागू किया गया है। 
  • अन्य संबंधित अधिनियम: 

भारत में वन: 

  • परिचय: 
    • भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2021 के अनुसार, भारत का कुल वन और वृक्षावरण क्षेत्र अब 7,13,789 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है, जो 2019 के 21.67% से अधिक है 
    • वनावरण (क्षेत्रफल में): मध्य प्रदेश> अरुणाचल प्रदेश> छत्तीसगढ़> ओडिशा> महाराष्ट्र। 
  • वर्गीकरण: 
    • आरक्षित वन: 
      • आरक्षित वन: आरक्षित वन सबसे अधिक प्रतिबंधित वन हैं और किसी भी वन भूमि या बंजर भूमि जो कि सरकार की संपत्ति है, राज्य सरकार द्वारा आरक्षित होती है 
      • आरक्षित वनों में किसी वन अधिकारी द्वारा विशेष रूप से अनुमति के बिना स्थानीय लोगों की आवाजाही निषिद्ध है। 

संरक्षित वन:  

  • राज्य सरकार को आरक्षित भूमि के अलावा अन्य  किसी भी भूमि को, जो कि सरकार की संपत्ति है, संरक्षित करने का अधिकार है 
  • इस शक्ति का उपयोग ऐसे वृक्षों जिनकी लकड़ी, फल या अन्य गैर-लकड़ी उत्पादों में राजस्व बढ़ाने की क्षमता है, पर राज्य का नियंत्रण स्थापित करने के लिये किया जाता है। 

ग्राम वन: 

  • ग्राम वन वे हैं जिनके संबंध में राज्य सरकार “किसी भी ग्राम समुदाय को किसी भूमि या आरक्षित वन के रूप में सूचीबद्ध भूमि के संबंध में सरकार के अधिकार सौंप सकती है।” 
  • सुरक्षा का स्तर: 
    • आरक्षित वन > संरक्षित वन > ग्राम वन। 
  • संवैधानिक प्रावधान: 
    • 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से शिक्षा, नापतौल एवं न्याय प्रशासन, वन, वन्यजीवों तथा पक्षियों के संरक्षण को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया था। 
    • संविधान के अनुच्छेद 51A (g) में कहा गया है कि वनों एवं वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा। 
    • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत अनुच्छेद 48A के मुताबिक, राज्य पर्यावरण संरक्षण व उसको बढ़ावा देने का काम करेगा और देश भर में जंगलों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा की दिशा में कार्य करेगा। 

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. भारत का एक विशेष राज्य निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त हैः 

  1. यह उसी अक्षांश पर स्थित है, जो उत्तरी राजस्थान से होकर गुज़रता है 
  2. इसका 80% से अधिक क्षेत्र वनाच्छादित है। 
  3. 12% से अधिक वनाच्छादित क्षेत्र इस राज्य के रक्षित क्षेत्र नेटवर्क के रूप में है 

निम्नलिखित राज्यों में से किसमें उपर्युक्त सभी विशेषताएँ हैं? 

A. अरुणाचल प्रदेश 
B. असम 
C. हिमाचल प्रदेश 
D. उत्तराखंड 

उत्तर: A 

  •  अरुणाचल प्रदेश 26.28° उत्तरी से 29.30° उत्तरी अक्षांश के बीच स्थित है। यह उसी अक्षांश पर स्थित है जो उत्तरी राजस्थान से होकर गुज़रता है (राजस्थान का अक्षांशीय विस्तार लगभग 23° उत्तरी से 30° उत्तरी तक है)। 
  • वर्ष 2011 के आँंकड़ों के अनुसार अरुणाचल प्रदेश का वनावरण 80.50 प्रतिशत था, जो वर्तमान आंँकड़ों के अनुसार  79.63% है। 2 राष्ट्रीय उद्यान और 11 वन्यजीव अभयारण्य राज्य के संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क का गठन करते हैं, जो इसके भौगोलिक क्षेत्र का 11.68% है। 

अतः विकल्प A सही उत्तर है।

स्रोत : द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

एशिया में जल सुरक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

जल संसाधन, वर्षा संचयन।

मेन्स के लिये:

जल सुरक्षा की चुनौतियाँ और इससे निपटने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के वैज्ञानिकों के निष्कर्ष बताते हैं कि दिल्ली सहित एशियाई शहरों में शहरी जल सुरक्षा में गिरावट आई है।

  • टोक्यो, शंघाई और दिल्ली जैसे वैश्विक मेगा शहर नई एशियाई सदी के उदय के प्रतीक हैं क्योंकि वे दुनिया के तीन सबसे बड़े शहर और आर्थिक विकास के इंजन हैं, जो अपने निवासियों एवं विश्व के लिये अरबों की आर्थिक गतिविधियों का संचालन करते हैं।
  • लेकिन उनकी एक गंभीर समस्या है, यानी प्रति व्यक्ति उनकी दैनिक ज़रूरतों के लिये पर्याप्त ताज़ा जल उपलब्ध नहीं है।

Water-Security

चुनौतियाँ:

  • मीठे जल की मात्रा:
    • एशिया में मीठे जल की उपलब्धता विश्व स्तर पर उपलब्ध मीठे जल की तुलना में आधा है।
  • जल की कम दक्षता:
    • कृषि उत्पादन में जल की तुलनात्मक रूप से बड़ी मात्रा का उपयोग होने के बावजूद (जल की दक्षता भी दुनिया में सबसे कम है) जल की दक्षता कम होने से फसल की पैदावार कम होती है।
  • शहरी प्रदूषण:
    • कई बड़े शहरों में पानी की समस्या आम है, इसका कारण पर्यावरण का ह्रास, जनसंख्या और आर्थिक विकास के लिये औद्योगिक गतिविधियाँ और जल निकायों में औद्योगिक अपशिष्ट का निर्वहन है।
    • सिर्फ मौज़ूदा जल संसाधन बढ़ती मांग को पूरा नहीं कर सकते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन:
    • जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे और बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाएंँ अधिक देखी जा रही हैं, जो समस्या को बढ़ाती हैं।
  • उदाहरण:
  • बैंकॉक, थाईलैंड में अति-दोहन ने भूजल स्तर को गंभीर रूप से कम कर दिया है।
    • घरेलू सीवेज के सीधे नालों और नहरों में छोड़े जाने से शहर के आसपास के जल स्रोत भी प्रदूषित हो जाते हैं।
    • इसी तरह बैंकॉक की अपर्याप्त जल निकासी क्षमता और चाओ फ्राया नदी के बाढ़ के मैदानों में इसकी स्थिति इसे बाढ़ के लिये अतिसंवेदनशील बनाती है।
  • हनोई, वियतनाम सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि के मामले में सबसे तेज़ी से बढ़ते शहरों में से है, जो देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद में 19% से अधिक का योगदान देता है।
    • इस वृद्धि के परिणाम आवासीय और औद्योगिक क्षेत्रों से अपशिष्ट जल के कारण इसकी प्रदूषित झीलों और नदियों में सीधे महसूस किये जाते हैं।
  • जॉर्डन में मदाबा जल की कमी वाला शहर है:
    • हालांँकि शहर की 98% आबादी की पानी तक पहुंँच है, लेकिन अनुचित जल आपूर्ति के कारण निवासियों को अक्सर अपनी ज़रूरतों को पूरा करने हेतु बड़े टैंक या निजी जल विक्रेताओं जैसे भंडारण के वैकल्पिक स्रोतों पर निर्भर होने के लिये मजबूर होना पड़ता है।

सुझाव:

  • नीति हस्तक्षेप:
    • एकीकृत शहरी जल सुरक्षा मूल्यांकन ढांँचे की तरह व्यावहारिक हस्तक्षेप मददगार साबित हो सकते हैं। इसका उपयोग किसी शहर की शहरी जल सुरक्षा के पूर्ण स्पेक्ट्रम का आकलन करने हेतु किया जा सकता है जो कि ड्राइविंग फोर्स (Driving Forces) जो कि इसे प्रभावित कर सकते हैं, पर विचार कर सकता है।
  • विकसित प्रौद्योगिकी:
    • थाईलैंड के एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Asian Institute of Technology- AIT) के शोधकर्त्ताओं ने वैटसैट विकसित किया है, जो एक वेब-आधारित जल सुरक्षा मूल्यांकन उपकरण है, यह शहरी जल सुरक्षा के पांँच (जल आपूर्ति, स्वच्छता, जल उत्पादकता, जल पर्यावरण और जल शासन) अलग-अलग पहलुओं को मापकर शहरों की स्थिति का मूल्यांकन कर सकता है।
  • स्थानीय समाधान:
    • जल प्रबंधन के नए तरीकों को अपनाने वाले शहर अपनी आबादी की आजीविका में सुधार कर निरंतर विकास का समर्थन कर सकते हैं। उदाहरण के लिये बैंकॉक ने अपशिष्ट जल को सार्वजनिक जल स्रोतों में छोड़ने से पहले घरेलू स्तर पर अपशिष्ट जल के उपचार को शामिल करने हेतु जल प्रबंधन के लिये प्रोत्साहनों को अपनाया है।
      • बैंकॉक विज़न 2032 के एक हिस्से के रूप में यह कार्यक्रम नहरों में पानी के रासायनिक गुणों की निगरानी भी करेगा और बीमारियों को रोकने तथा पर्यावरण की सुरक्षा के लिये स्वच्छता में सुधार करेगा।
  • जॉर्डन की जल कार्ययोजना में जल आपूर्ति के पूरक के रूप वर्षा जल संचयन या अपशिष्ट जल उपचार जैसे विकेन्द्रीकृत बुनियादी ढाँचे का निर्माण शामिल है। इसका उद्देश्य मीठे पानी के बजाय उपचारित अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग हेतु व्यवसायों को प्रोत्साहित करने के लिये वित्तीय या कर प्रोत्साहन द्वारा दक्षता का प्रबंधन करना है।
  • योजना और कार्यान्वयन:
    • लीकेज पाइप के कारण पानी की आपूर्ति के नुकसान को रोकने के लिये योजनाओं की तत्काल आवश्यकता है जिससे उत्पादकता भी बढ़ेगी।
    • इनमें जल शुल्क के माध्यम से वित्तीय स्थिरता बढ़ाना, नए मीटरिंग उपकरण स्थापित करना, पानी की पाइपलाइनों में अनधिकृत उपयोग का पता लगाने का प्रयास करना और निगरानी प्रणालियों का उपयोग करना शामिल है।
    • रणनीति में बेहतर सुधार के लिये जंगलों, दलदलों और नदियों जैसे महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों की मरम्मत हेतु पानी का आवंटन भी शामिल है, जो इस बात का एक और उदाहरण है कि प्रकृति-आधारित समाधान कैसी भूमिका निभाते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन 2022

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन 2022, महासागर पारिस्थितिकी तंत्र, विश्व महासागर दिवस, महासागर का दशक, जलवायु परिवर्तन।

मेन्स के लिये:

संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, महासागरों का महत्त्व, महासागर की रक्षा के लिये पहल।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (UN) महासागर सम्मेलन 2022 को दुनिया के महासागर पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और निर्वाह के उद्देश्य से वैश्विक सहयोग सुनिश्चित करने हेतु आयोजित किया गया था।

  • इस सम्मेलन की सह-मेज़बानी केन्या और पुर्तगाल की सरकारों द्वारा की गई थी।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्त्व किया। भारत ने साझेदारी और पर्यावरण के अनुकूलन के माध्यम से लक्ष्य 14 के कार्यान्वयन के लिये विज्ञान एवं नवाचार आधारित समाधान प्रदान करने का वादा किया।
  • संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन 2022 सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 14, 'जल के नीचे जीवन' से जुड़ा हुआ है तथा समुद्र के लचीलेपन के निर्माण हेतु वैज्ञानिक ज्ञान और समुद्री प्रौद्योगिकी की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पर ज़ोर देता है।

CO2

सम्मेलन का प्रमुख एजेंडा:

  • गहरे समुद्र में खनन पर रोक:
    • बूम इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी निर्माण के लिये आवश्यक दुर्लभ धातुओं के गहरे समुद्र में खनन पर रोक।
    • मशीनों द्वारा समुद्र तल की खुदाई और मापन गहरे-समुद्री आवासों को बदल या नष्ट कर सकता है।
  • कार्बन पृथक्करण:
    • मैंग्रोव जैसे प्राकृतिक सिंक को बढ़ाकर या भू-इंजीनियरिंग योजनाओं के माध्यम से CO2 को सोखने के लिये समुद्र की क्षमता को बढ़ावा देने हेतु कार्बन पृथक्करण (Carbon Sequestration) पर बल।
  • ब्लू डील:
    • आर्थिक विकास के लिये समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग को सक्षम करने हेतु "ब्लू डील" (Blue Deal) को बढ़ावा दिया गया।
    • इसमें एक सतत् और लचीली समुद्री अर्थव्यवस्था बनाने हेतु वैश्विक व्यापार, निवेश और नवाचार शामिल हैं।
    • सभी स्रोतों से समुद्री फसल को टिकाऊ बनाने और सामाजिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के लिये समुद्री खाद्यों पर ध्यान देना।
  • समुद्रीय अनियमितता:
    • कोई व्यापक कानूनी ढांँचा उच्च समुद्रों को कवर नहीं करता है। महासागर पृथ्वी की सतह के लगभग 70% भाग को कवर करते हैं और अरबों लोगों के लिये भोजन एवं आजीविका प्रदान करते हैं।
    • कुछ कार्यकर्त्ता उन्हें ग्रह पर सबसे बड़े अनियमित क्षेत्र के रूप में संदर्भित करते हैं।
  • महासागर हेतु खतरा:

सतत् महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित करने हेतु पहलें:

  • सतत् विकास हेतु महासागर विज्ञान दशक:
    • संयुक्त राष्ट्र ने समुद्र के संतुलन में गिरावट के चक्र को उलटने और एक सामान्य ढांँचे में दुनिया भर में महासागर हितधारकों को शामिल करने के प्रयासों का समर्थन करने  के लिये 2021-2030 के रूप में सतत् विकास हेतु महासागर विज्ञान दशक की घोषणा की है।
  • विश्व महासागर दिवस:
    • 8 जून को पूरी दुनिया में विश्व महासागर दिवस (World Ocean Day) के रूप में मनाया गया। यह दिवस महासागरों के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के लिये मनाया जाता है।
  • समुद्री संरक्षित क्षेत्र:  
    • सामान्य शब्दों में समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA), समुद्री क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षा प्रदान करता है।
  • ग्लोलिटर पार्टनरशिप प्रोजेक्ट:
  • भारत-नॉर्वे महासागर वार्ता:
    • जनवरी 2019 में भारत और नॉर्वे की सरकारों द्वारा महासागरीय क्षेत्रों में मिलकर कार्य करने के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्‍ताक्षर किये गए।
  • भारत का डीप ओशन मिशन:
    • यह भारत सरकार की ‘ब्लू इकॉनमी’ पहल का समर्थन करने हेतु एक मिशन मोड परियोजना है।
  • भारत की इंडो-पैसिफिक ओशन पहल (IPOI):
    • यह देशों के लिये एक खुली, गैर-संधि आधारित पहल है जो इस क्षेत्र में आम चुनौतियों के लिये सहकारी और सहयोगी समाधान हेतु मिलकर काम करती है।

Healthy-Ocean

आगे की राह

  • कोविड-19 के बाद की अर्थव्यवस्था को महासागर आधारित मूल्य शृंखलाओं में स्थिरता और लचीलेपन को प्राथमिकता देनी चाहिये। कोविड -19 महामारी ने समुद्री मत्स्य पालन, समुद्री और तटीय पर्यटन तथा समुद्री परिवहन जैसे क्षेत्रों को असमान रूप से प्रभावित किया।
  • विकासशील देशों में व्यापार के लिये लागत कम करने, निवेश के लिये एक ब्लू बैंक स्थापित करने और ब्लू फाइनेंस के नियमों में सुधार के लिये डिजिटलीकरण प्रयासों का विस्तार करना।
  • इन सभी सुझावों को ब्लू न्यू डील के लिये आह्वान के रूप में देखा जा सकता है, जबकि ग्रीन न्यू डील पहले से ही दुनिया भर में राजनीतिक समर्थन और आकर्षण प्राप्त कर रही है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

वित्तीय सेवा संस्थान ब्यूरो

प्रिलिम्स के लिये:

कैबिनेट नियुक्ति समिति, वित्तीय सेवा संस्थान ब्यूरो, बैंक बोर्ड ब्यूरो (BBB), सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, वित्तीय संस्थान।

मेन्स के लिये:

बैंक बोर्ड ब्यूरो (BBB), वित्तीय सेवा संस्थान ब्यूरो, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 संबंधी मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

कैबिनेट नियुक्ति समिति (ACC) ने बैंक बोर्ड ब्यूरो (BBB) के स्थान पर वित्तीय सेवा संस्थान ब्यूरो (FSIB) की स्थापना के लिये एक सरकारी प्रस्ताव पारित किया है।

नए ढांँचे का प्रस्ताव वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग द्वारा किया गया था।

वित्तीय सेवा संस्थान ब्यूरो:

  • परिचय:
    • वित्तीय सेवा संस्थान ब्यूरो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और बीमा कंपनियों के प्रमुखों का चयन करेगा।
    • FSIB के पास दिशा-निर्देश जारी करने और राज्य द्वारा संचालित गैर-जीवन बीमा कंपनियों, सामान्य बीमाकर्त्ताओंं और वित्तीय संस्थानों के महाप्रबंधकों तथा निदेशकों का चयन करने का स्पष्ट अधिदेश होगा।
      • FSIB सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी और वित्तीय संस्थानों में पूर्णकालिक निदेशक और गैर-कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति के लिये सिफारिशें करने वाली एकल इकाई होगी।
    • वित्तीय सेवा विभाग पहले राष्ट्रीयकृत बैंक (प्रबंधन और विविध प्रावधान) योजना 1970/1980 (संशोधित) में आवश्यक संशोधन करेगा।
  • FSIB के अध्यक्ष: ACC ने FSIB के प्रारंभिक अध्यक्ष के रूप में दो साल के लिये भानु प्रताप शर्मा की नियुक्ति को मंज़ूरी दे दी है। वह BBB के पूर्व अध्यक्ष भी हैं।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSB):

  • यह एक ऐसा बैंक है जिसमें सरकार के शेयरों का एक बड़ा हिस्सा होता है।
    • उदाहरण के लिये भारतीय स्टेट बैंक एक सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक है, इस बैंक में सरकार की हिस्सेदारी लगभग 60% है।

 वित्तीय संस्थान (FI):

बैंक बोर्ड ब्यूरो (BBB):

  • पृष्ठभूमि:
    • देश के बैंकिग क्षेत्र की चुनौतियों को दूर करने के लिये वर्ष 2014 में पी.जे. नायक की सिफारिशों के आधार पर बैंक बोर्ड ब्यूरो (BBB) का गठन किया गया था।
  • गठन:
    • सरकार ने वर्ष 2016 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (Public Sector Banks- PSBs) और वित्तीय संस्थाओं (Financial Institution- FI) के निदेशक मंडल (पूर्णकालिक निदेशक और गैर-कार्यकारी अध्यक्ष) की नियुक्ति हेतु सिफारिशें करने के लिये BBB के गठन को मंज़ूरी दी।
      • BBB एक एक स्वायत्त संस्तुतिकर्त्ता संस्था के रूप में कार्य करती है।
    • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में परिभाषित बैंक बोर्ड ब्यूरो एक सार्वजनिक प्राधिकरण था।
    • वित्त मंत्रालय के पास प्रधानमंत्री कार्यालय के परामर्श से नियुक्तियों पर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार है।
  • कार्य:
    • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिये कर्मियों की सिफारिश करने के अलावा ब्यूरो को सरकारी स्वामित्व वाली बीमा कंपनियों में निदेशक के रूप में नियुक्ति हेतु कर्मियों की सिफारिश करने का काम भी सौंपा गया था।
    • इसे सभी PSB के निदेशक मंडल के साथ जुड़ने का काम भी सौंपा गया था ताकि उनके वृद्धि और विकास के लिये उपयुक्त रणनीति तैयार की जा सके।
  • चुनौतियाँ:
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, सामान्य बीमा कंपनियों के निदेशकों का चयन करने के लिये BBB की शक्ति को रद्द कर दिया था और सरकार ने BBB द्वारा चुने गए तत्कालीन सेवारत निदेशकों की सभी नियुक्तियों को रद्द करके पहले ही फैसले को लागू कर दिया था।
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2020 में फैसला सुनाया कि BBB राज्य द्वारा संचालित सामान्य बीमा कंपनियों के महाप्रबंधकों और निदेशकों का चयन नहीं कर सकता क्योंकि यह एक सक्षम निकाय नहीं था।
      • न्यू इंडिया एश्योरेंस, देश का सबसे बड़ा सामान्य बीमाकर्त्ता है, लगभग 100 दिनों से नियमित रूप से CMD के बिना काम कर रहा है।
      • कृषि बीमा कंपनी में CMD का पद भी खाली हो गया।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न

प्रश्न. सार्वजनिक क्षेत्रक बैंकों के अध्यक्षों का चयन कौन करता है?

A. बैंक बोर्ड ब्यूरो
B. भारतीय रिज़र्व बैंक
C. केंद्रीय वित्त मंत्रालय
D. संबंधित बैंक का प्रबंधन

उत्तर: A

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत का सबसे बड़ा फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट

प्रिलिम्स के लिये:

फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट, सौर पैनल्स

मेन्स के लिये:

फ्लोटिंग सोलर पैनल के लाभ और चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 100 मेगावाट की रामागुंडम फ्लोटिंग सोलर पीवी प्रोजेक्ट अर्थात् तैरती सौर ऊर्जा परियोजना के वाणिज्यिक संचालन की अंतिम 20 मेगावाट की घोषणा की गई है।

  • इसके साथ ही तेलंगाना में 100 मेगावाट की रामागुंडम फ्लोटिंग सोलर पीवी परियोजना को 1 जुलाई, 2022 से चालू घोषित किया गया है।
  • यह भारत में अपनी तरह की सबसे बड़ी परियोजना है।

फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट:

  • ये फोटोवोल्टिक (Photovoltaic-PV) मॉड्यूल होते हैं जो प्लेटफाॅर्मों पर लगे होते हैं तथा जलाशयों, झीलों पर तैरते हैं जहाँ की स्थितियाँ समुद्र और महासागर जैसी होती हैं।
  • इन प्लेटफॅार्मों को आमतौर पर तालाबों, झीलों या जलाशयों जैसे पानी के शांत निकायों पर लगाया जाता है।
  • इन सोलर पैनल का निर्माण अपेक्षाकृत जल्दी होता है और इन्हें स्थापित करने के लिये भूमि को समतल करने या वनस्पति को हटाने की आवश्यकता नहीं होती है।

Floating-Solar-Power-Project

रामागुंडम परियोजना की मुख्य विशेषताएँ:

यह उन्नत तकनीक और पर्यावरण के अनुकूल सुविधाओं से संपन्न है।

यह परियोजना जलाशय के 500 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई है जो 40 ब्लॉकों में विभाजित है तथा प्रत्येक ब्लॉक की क्षमता 2.5 मेगावाट है।

प्रत्येक ब्लॉक में एक फ्लोटिंग प्लेटफॉर्म और 11,200 सौर मॉड्यूल की एक सारणी होती है।

यह परियोजना जलाशय के 500 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई है जो 40 ब्लॉकों में विभाजित है तथा प्रत्येक ब्लॉक  की क्षमता 2.5 मेगावाट है।

  • संपूर्ण फ्लोटिंग सिस्टम को विशेष प्रकार के हाईमॉड्यूल्स पॉलीइथाइलीन (HMPE) रस्सी के माध्यम से संतुलित रूप से जलाशय में स्थापित किया गया है।
  • यह परियोजना इस मायने में अनूठी है कि इन्वर्टर, ट्रांसफॉर्मर, एचटी पैनल और पर्यवेक्षी नियंत्रण तथा डेटा अधिग्रहण (SCADA) सहित सभी विद्युत उपकरण फ्लोटिंग फेरो सीमेंटेड प्लेटफॉर्म पर ही उपलब्ध होते हैं

परियोजना के पर्यावरणीय लाभ:

  • सीमित भूमि की आवश्यकता:
    • पर्यावरणीय दृष्टिकोण से सबसे स्पष्ट लाभ भूमि की न्यूनतम आवश्यकता है जो ज़्यादातर संबद्ध निकासी व्यवस्था के लिये है।
  • कम जल वाष्पीकरण दर:
    • इसके अलावा फ्लोटिंग सौर पैनलों की उपस्थिति के साथ जल निकायों से वाष्पीकरण दर कम हो जाती है, इस प्रकार जल संरक्षण में मदद मिलती है।
    • लगभग 32.5 लाख घन मीटर जल को प्रिवर्ष वाष्पीकरण से बचाया जा सकता है।
  • CO2 उत्सर्जन कम करने में कुशल:
    • सौर मॉड्यूल के नीचे का जल निकाय उनके परिवेश के तापमान को बनाए रखने में मदद करता है, जिससे उनकी दक्षता और उत्पादन में सुधार होता है। इसी तरह प्रतिवर्ष 1,65,000 टन कोयले की खपत को रोका जा सकता है; जिससे प्रतिवर्ष 2,10,000 टन CO2 के उत्सर्जन से बचा जा सकता है।

संबंधित चुनौतियांँ:

  • स्थापित करने में महंँगा:
    • पारंपरिक पीवी सिस्टम की तुलना में फ्लोटिंग सोलर पैनल लगाने के लिये अधिक धन की आवश्यकता होती है।
    • मुख्य कारणों में से एक यह है कि प्रौद्योगिकी अपेक्षाकृत नई है, इसलिये विशेष ज्ञान और उपकरणों की आवश्यकता होती है।
      • हालाँकि जैसे-जैसे तकनीक आगे बढ़ती है, इसकी स्थापना लागत में भी कमी आने की उम्मीद होती है।
  • सीमित अनुप्रयोग:
    • कई अस्थायी सौर प्रतिष्ठान बड़े पैमाने पर हैं और वे बड़े समुदायों, कंपनियों या उपयोगिता कंपनियों को विद्युत प्रदान करते हैं।
    • इसलिये रूफटॉप इंस्टॉलेशन या ग्राउंड-माउंटेड सोलर चुनना अधिक व्यावहारिक है।
  • वाटर-बेड स्थलाकृति की समझ:
    • फ्लोटिंग सौर परियोजनाओं को विकसित करने के लिये वाटर-बेड टोपोग्राफी और फ्लोट्स हेतु लंगर स्थापित करने की उपयुक्तता की गहन समझ की आवश्यकता होती है।

अन्य सौर ऊर्जा पहल:

  • सौर पार्क योजना:
    • कई राज्यों में लगभग 500 मेगावाट की क्षमता वाले कई सौर पार्क बनाने की योजना है।
  • रूफटॉप सौर योजना:
    • घरों की छतों पर सोलर पैनल लगाकर सौर ऊर्जा का दोहन करना।
  • अटल ज्योति योजना (AJAY):
    • अटल ज्योति योजना (AJAY) अजय योजना सितंबर 2016 में उन राज्यों में सौर स्ट्रीट लाइटिंग (SSL) सिस्टम की स्थापना के लिये शुरू की गई थी, जहाँ ग्रिड पावर 50% से कम घरों (2011 की जनगणना के अनुसार) को उपलब्ध हो पाई थी।

स्रोत: पी.आई.बी.


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