टुवार्ड्स डीकार्बोनाइजिंग ट्रांसपोर्ट 2023 | 09 Feb 2024

प्रिलिम्स के लिये:

नीति आयोग, यूरोपियन यूनियन, G20, डीकार्बोनाइजिंग ट्रांसपोर्ट, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHG), राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC), शुद्ध-शून्य प्रतिज्ञाएँ, IPCC की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC), COP26, ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन, जलमार्ग, इलेक्ट्रिक वाहन, स्मार्ट सिटी मिशन, फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (FAME), परिवहन क्षेत्र के डिकार्बोनाइज़ेशन के लिये फोरम, हरित हाइड्रोजन केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA)।

मेन्स के लिये:

डीकार्बोनाइजिंग ट्रांसपोर्ट की दिशा में नीति आयोग की रिपोर्ट 2023, डीकार्बोनाइजिंग ट्रांसपोर्ट की आवश्यकता, ट्रांसपोर्ट डीकार्बोनाइजेशन में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्य, NDC के बाहर राष्ट्रीय परिवहन-संबंधी लक्ष्य, ट्रांसपोर्ट डीकार्बोनाइजेशन को सक्षम करने में G20 देशों की भूमिका, ऊर्जा परिवर्तन के लिये भारत द्वारा की गई प्रमुख पहल, परिवहन परिवर्तन के लिये प्रमुख सिफारिशें।

हाल ही में नीति आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसका शीर्षक है- टुवार्ड्स डीकार्बोनाइजिंग ट्रांसपोर्ट 2023

  • यह रिपोर्ट G20 देशों और उनकी जलवायु प्रतिबद्धताओं पर ध्यान केंद्रित करने के साथ, परिवहन क्षेत्र में वर्तमान स्थिति तथा विकास का आकलन करने के लिये एक व्यापक संसाधन के रूप में कार्य करती है।

डीकार्बोनाइजिंग ट्रांसपोर्ट क्या है?

डीकार्बोनाइजिंग ट्रांसपोर्ट से तात्पर्य परिवहन क्षेत्र से जुड़े कार्बन उत्सर्जन को कम करने या समाप्त करने की प्रक्रिया से है। लक्ष्य कार्बन फुटप्रिंट को कम करके परिवहन को अधिक पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ बनाना है।

इसमें कई प्रमुख रणनीतियाँ शामिल हैं:

  • स्वच्छ ऊर्जा में संक्रमण: डीकार्बोनाइजिंग ट्रांसपोर्ट में अक्सर गैसोलीन और डीज़ल जैसे जीवाश्म ईंधन से सौर विद्युत, हाइड्रोजन या जैव ईंधन जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में स्थानांतरण शामिल होता है।
  • ईंधन दक्षता में सुधार: एक अन्य दृष्टिकोण पारंपरिक आंतरिक दहन इंजन वाहनों को अधिक ईंधन-कुशल बनाना है, जिससे प्रति मील यात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन की मात्रा कम हो।
  • सार्वजनिक परिवहन और सक्रिय परिवहन: सार्वजनिक परिवहन, पैदल चलने और साइकिल चलाने के उपयोग को बढ़ावा देने से सड़क पर व्यक्तिगत वाहनों की संख्या कम हो सकती है, जिससे उत्सर्जन कम हो सकता है। 
  • मल्टी-मॉडल परिवहन: परिवहन साधनों के संयोजन को प्रोत्साहित करना, जैसे कि सार्वजनिक परिवहन के साथ साइकिल चलाना, यात्रा के समग्र कार्बन पदचिह्न को कम कर सकता है।
  • बुनियादी ढांँचे का विकास: स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन का समर्थन करने के लिये इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशनों, हाइड्रोजन ईंधन भरने और वैकल्पिक ईंधन विकल्पों के लिये बुनियादी ढाँचे का निर्माण महत्त्वपूर्ण है।
  • नीति और विनियमन: उत्सर्जन मानकों को निर्धारित करना, स्वच्छ ऊर्जा वाहनों के लिये प्रोत्साहन प्रदान करना और अधिक टिकाऊ परिवहन विकल्पों को प्रोत्साहित करने हेतु भीड़भाड़ मूल्य निर्धारण को लागू करना।

 आवश्यकता:

  • ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य से काफी नीचे रखने की वैश्विक कार्रवाई के बावजूद, परिवहन उत्सर्जन में वृद्धि जारी है, यही कारण है कि इस क्षेत्र को डीकार्बोनाइज करने के लिये G20 देशों के प्रयास इतने महत्त्वपूर्ण हैं।
  • वैश्विक स्तर पर परिवहन क्षेत्र ईंधन दहन से होने वाले CO₂ उत्सर्जन में लगभग 25% और ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में 15% योगदान देता है।
    • द इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट फोरम की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक परिवहन से CO₂ उत्सर्जन 16% बढ़ जाएगा, भले ही आज की राजनीतिक प्रतिबद्धताएँ पूरी तरह से लागू हो जाएँ।
  • परिवहन मांग में मज़बूत वृद्धि से नीति-आधारित उत्सर्जन कटौती की भरपाई होने की उम्मीद है।

ट्रांसपोर्ट डीकार्बोनाइजेशन में वर्तमान राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्य क्या हैं?

वैश्विक प्रतिबद्धताएँ:

  • शून्य-उत्सर्जन कारें: औद्योगिक और उभरती दोनों अर्थव्यवस्थाओं के हस्ताक्षरकर्त्ता वर्ष 2035-2040 तक 100% शून्य-उत्सर्जन कारों तथा वैन को प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
  • परिवहन के लिये शुद्ध-शून्य प्रतिज्ञाएँ: COP26 के परिणामस्वरूप ट्रांसपोर्ट से संबंधित अभूतपूर्व संख्या में शुद्ध-शून्य प्रतिज्ञाएँ और प्रतिबद्धताएँ प्राप्त हुईं, जिसमें 100% शून्य-उत्सर्जन कारों तथा वैन में संक्रमण को तेज़ करने की घोषणा भी शामिल है।
  • NDC में परिवहन लक्ष्य: दूसरी पीढ़ी के 41% NDC में परिवहन-संबंधी लक्ष्य शामिल हैं, जो ग्रीनहाउस गैस (GHG) शमन लक्ष्यों और गैर-GHG उद्देश्यों दोनों को कवर करते हैं।
  • उल्लेखनीय G20 क्रियाएँ:
    • जापान ने परिवहन क्षेत्र (वर्ष 2030 तक 2013 के स्तर से 46% की कमी) के लिये एक विशिष्ट GHG उत्सर्जन लक्ष्य निर्धारित किया है।
    • यूरोपियन यूनियन ने सभी सदस्य देशों पर लागू होकर सड़क परिवहन के लिये उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य स्थापित किये।
    • कनाडा ने सड़क वाहन उत्सर्जन को संबोधित करने की अपनी प्रतिबद्धता में 100% शून्य-उत्सर्जन वाहनों की आवश्यकता निर्धारित की है।
    • चीन का लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक सभी नए वाहनों में से 40% स्वच्छ ऊर्जा से संचालित हों और उसकी योजना वर्ष 2020 के स्तर की तुलना में रेलवे की कार्बन उत्सर्जन तीव्रता को 10% तक कम करने की है।
    • तेरह G20 देश अपने NDC में विशिष्ट परिवहन-संबंधी उपायों का उल्लेख करते हैं।
  • विविध परिवहन शमन क्रियाएँ:
    • कई देश यात्री और माल परिवहन दोनों को सड़क से रेल की ओर स्थानांतरित करने का इरादा रखते हैं।
  • ऊर्जा दक्षता पर ध्यान: चीन और अर्जेंटीना जैसे कई G20 सदस्य, लेबलिंग के माध्यम से वाहन ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने की योजना बना रहे हैं, जबकि चीन, अमेरिका तथा कनाडा का लक्ष्य ऊर्जा दक्षता मानकों में सुधार करना है।
  • सड़क परिवहन का विद्युतीकरण: विश्व स्तर पर अधिकांश नई NDC जलवायु रणनीतियाँ, न कि केवल G20 में,  सड़क परिवहन के विद्युतीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया है। दूसरी पीढ़ी के लगभग 52% NDC में ई-मोबिलिटी-संबंधी गतिविधियाँ शामिल हैं।

NDC के बाहर राष्ट्रीय परिवहन-संबंधित लक्ष्य

  • महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय नीतियाँ:
    • यूरोपियन यूनियन के बाहर के चार देशों अर्थात् अर्जेंटीना, कनाडा, यूके और दक्षिण अफ्रीका ने अपनी राष्ट्रीय रणनीतियों या कानून में परिवहन क्षेत्र के लिये मात्रात्मक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य निर्धारित किये हैं।
    • ऑस्ट्रेलिया का लक्ष्य 2000 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक यात्री सड़क परिवहन क्षेत्र में 50% कार्बन उत्सर्जन को कम करना है।
    • जापान और दक्षिण कोरिया का लक्ष्य वर्ष 2035 तक यात्री वाहनों हेतु ईंधन दक्षता को 35 किमी./लीटर तथा 2040 तक भारी वाहनों के लिये 7.5 किमी./लीटर तक बढ़ाना है।
  • मॉडल शिफ्ट आकांक्षाएँ:
    • भारत ने वर्ष 2030 में 45% का लक्ष्य रखते हुए रेल माल ढुलाई में पर्याप्त वृद्धि की कल्पना की है।
    • यूरोपीय यूनियन और भारत ने जलमार्गों के लिये मॉडल शिफ्ट लक्ष्य निर्धारित किये हैं, यूरोपीय यूनियन ने वर्ष 2030 तक 25% अधिक हिस्सेदारी का लक्ष्य रखा है तथा भारत ने वर्ष 2025 तक मौजूदा 6% हिस्सेदारी को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है।
  • बुनियादी ढाँचा विस्तार लक्ष्य:
    • ऑस्ट्रेलिया का लक्ष्य 1,749 किलोमीटर हाई-स्पीड रेल का निर्माण करना है।
    • भारत ने वर्ष 2051 तक 7,987 किलोमीटर के हाई-स्पीड रेल नेटवर्क विस्तार की कल्पना की है।
  • इलेक्ट्रिक वाहन (EV) परिनियोजन लक्ष्य:
    • अर्जेंटीना और सऊदी अरब को छोड़कर सभी G20 देशों ने इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये तैनाती लक्ष्य (Deployment Targets) निर्धारित किये थे।
    • भारत ने वर्ष 2030 तक यात्री लाइट-ड्यूटी वाहन (LDV) की बिक्री में 30% EV हिस्सेदारी का लक्ष्य रखा है।

वैश्विक शुद्ध-शून्य प्रतिज्ञाएँ:

  • कई देशों ने वर्ष 2020 और 2021 में शुद्ध-शून्य प्रतिज्ञाएँ कीं, ये राजनीतिक प्रतिबद्धताएँ अक्सर 2022 में अद्यतन NDC या दीर्घकालिक रणनीतियों (LTS) में परिलक्षित होती हैं।
  • क्लाइमेट वॉच के शुद्ध-शून्य ट्रैकर के अनुसार, 83 देशों और 73.3% वैश्विक GHG उत्सर्जन का प्रतिनिधित्व करने वाली 76 पार्टियों ने शुद्ध-शून्य लक्ष्य की घोषणा की है।
  • वर्ष 2017 में स्वीडन कानून में शुद्ध-शून्य लक्ष्य को शामिल करने वाला पहला देश बन गया, जिसका लक्ष्य वर्ष 2045 तक जलवायु तटस्थता हासिल करना है।
    • यूके ने वर्ष 2019 में वर्ष 2050 शुद्ध-शून्य लक्ष्य के साथ पीछा किया।
    • ग्रीस, हंगरी, आइसलैंड और स्पेन में शुद्ध-शून्य कानून (Net Zero Laws) हैं।
    • जर्मनी ने वर्ष 2045 के लिये शुद्ध-शून्य लक्ष्य निर्धारित किया है।
    • फिनलैंड ने वर्ष 2035 का सबसे पहला कानूनी रूप से बाध्यकारी शुद्ध-शून्य लक्ष्य स्थापित किया।
  • कई शहर और कंपनियाँ शुद्ध-शून्य प्रतिज्ञाएँ भी कर रही हैं:
    • मुंबई की वर्ष 2050 तक जलवायु तटस्थ होने की योजना है।
    • सीमेंस (Siemens) जैसे वैश्विक निगमों का लक्ष्य वर्ष 2030 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का है।

ट्रांसपोर्ट डीकार्बोनाइजेशन में G20 देशों का क्या महत्त्व है?

  • प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक सहयोगकर्त्ता:
    • G20 देशों में 4.7 अरब से अधिक लोग रहते हैं, जो वैश्विक आबादी का 62% है। वर्ष 2050 तक, दुनिया की लगभग आधी आबादी G20 देशों में रहने की उम्मीद है।
    • G20 देश सामूहिक रूप से विश्व की लगभग दो-तिहाई आबादी, वैश्विक आर्थिक उत्पादन का लगभग 80%, वैश्विक निर्यात का लगभग 75% और वर्तमान वैश्विक CO₂ उत्सर्जन का 80% से अधिक के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  •  अधिक शहरीकरण:
    • G20 देश अत्यधिक शहरीकृत हैं, जिनकी आबादी का एक बड़ा प्रतिशत शहरों में रहता है। G20 देशों में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन महत्त्वपूर्ण है और वैश्विक उत्सर्जन पर इसका असमानुपातिक प्रभाव जारी रहेगा।
    • उदाहरण के लिये, अर्जेंटीना में, 92% आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है।
    • G20 सामूहिक रूप से वैश्विक आर्थिक उत्पादन का लगभग 80%, वैश्विक निर्यात का लगभग 75% उत्पादन करता है और वर्तमान वैश्विक CO₂ उत्सर्जन के 80% से अधिक के लिये ज़िम्मेदार है।
  • प्रमुख कार्बन उत्सर्जक:
    • G20 देश दुनिया भर में लगभग 70% परिवहन उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं, जो ईंधन दहन से लगभग 5.8 बिलियन मीट्रिक टन CO₂ उत्सर्जित करते हैं।
    • परिवहन उत्सर्जन का आर्थिक समृद्धि, लोगों और वस्तुओं की आवाजाही से गहरा संबंध है तथा यह लगातार एक चुनौती बनी हुई है। वैश्विक स्तर पर, परिवहन क्षेत्र ईंधन दहन से होने वाले CO₂ उत्सर्जन में लगभग 25% और ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में 15% योगदान देता है।
    • वर्ष 1990 के बाद से , CO₂ उत्सर्जन में  वे दो-तिहाई योगदान देते हैं।
    • उत्सर्जन पर COVID-19 महामारी के प्रभाव के बावजूद, इसने पिछले वर्षों की तुलना में परिवहन उत्सर्जन के समग्र हिस्से में महत्त्वपूर्ण बदलाव नहीं किया।
  • परिवहन उत्सर्जन में वृद्धि:
    • परिवहन उत्सर्जन में पर्याप्त वृद्धि देखी गई है, वर्ष 1990 के बाद से G20 देशों में 64% की वृद्धि और दुनिया भर में 79% की वृद्धि हुई है।
    • वर्ष 2015 और 2019 के बीच, G20 देशों ने परिवहन-संबंधी उत्सर्जन में 6% की वृद्धि देखी गयी, जो इस क्षेत्र में उत्सर्जन ह्रास की चुनौती का संकेत देता है।

ट्रांसपोर्ट डीकार्बोनाइजेशन को प्राप्त करने में व्यक्तिगत G20 सदस्यों के सामने की चुनौतियाँ:

  • बुनियादी ढाँचा और निवेश
    • इलेक्ट्रिक वाहनों (electric vehicles - EVs) जैसे परिवहन के टिकाऊ और कम कार्बन वाले तरीकों का समर्थन करने के लिये परिवहन बुनियादी ढाँचे के विकास तथा उन्नयन के लिये सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों एवं टिकाऊ शहरी नियोजन स्टेशनों को चार्ज करने या ईंधन भरने में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है।
  • प्रौद्योगिकी अंगीकरण: 
    • इलेक्ट्रिक वाहनों जैसी स्वच्छ और अधिक कुशल परिवहन प्रौद्योगिकियों को अपनाने को प्रोत्साहित करना, उच्च प्रारंभिक लागत, सीमित उपलब्धता तथा पारंपरिक जीवाश्म-ईंधन वाले वाहनों से स्विच करने के लिये उपभोक्ता की अनिच्छा जैसे कारकों से बाधित हो सकता है।
  • नियामक ढाँचे
    • स्वच्छ परिवहन विकल्पों को प्रोत्साहित करने और उच्च उत्सर्जन वाले वाहनों को दंडित करने के लिये प्रभावी नीतियों, विनियमों की स्थापना व कार्यान्वयन को अक्सर उद्योग हितधारकों के विरोध का सामना करना पड़ता है एवं इसके लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति तथा सार्वजनिक समर्थन की आवश्यकता होती है।
    • G20 सदस्यों को विशेष रूप से परिवहन क्षेत्र के पुनर्निर्माण में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन प्राप्त करने में प्रतिस्पर्धी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
  • ऊर्जा संक्रमण
    • परिवहन के लिये स्वच्छ ऊर्जा या टिकाऊ जैव ईंधन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में संक्रमण मौजूदा बुनियादी ढाँचे और जीवाश्म ईंधन में निहित स्वार्थों के कारण चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जिससे व्यापक ऊर्जा संक्रमण योजनाओं को विकसित करना आवश्यक हो जाता है।
    • ऊर्जा क्षेत्र का नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन विशेष रूप से वाहन विनिर्माण जैसे मुख्य आर्थिक क्षेत्रों के संबंध में चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: 
    • भू-राजनीतिक तनाव और अलग-अलग राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के कारण उत्सर्जन मानकों, सीमा पार परिवहन तथा सामंजस्यपूर्ण नीतियों जैसे मुद्दों पर अन्य देशों के साथ सहयोग करना मुश्किल हो सकता है।
    • भू-राजनीति में बदलते परिवेश के कारण उभरती अर्थव्यवस्थाओं और औद्योगिक देशों के बीच अधिक आर्थिक प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है।
  • व्यवहारिक परिवर्तन
    • लोगों को अधिक टिकाऊ यात्रा व्यवहार, जैसे– कारपूलिंग, सार्वजनिक परिवहन या सक्रिय परिवहन अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना, सांस्कृतिक मानदंडों और जीवनशैली प्राथमिकताओं के कारण चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • चीन, भारत और इंडोनेशिया में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अपेक्षाकृत कम है, लेकिन परिवहन-संबंधी उत्सर्जन में उल्लेखनीय वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है।

G20 देशों में स्थायी परिवहन के सकारात्मक रुझान:

  • इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) में वृद्धि:
    • हाल के वर्षों में इलेक्ट्रिक वाहनों के बाज़ार में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। G20 देशों में, EV बेड़े का वर्ष 2015 से 2020 तक लगभग आठ गुना विस्तार हुआ, जो 8.4 मिलियन वाहनों तक पहुँच गया।
    • G20 देशों में इलेक्ट्रिक वाहन की नई बिक्री वर्ष 2020 में 1.6 मिलियन तक पहुँच गई।
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) परिदृश्यों में चीन, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ के लिये संचयी EV स्टॉक बेड़े में 123 मिलियन से 195 मिलियन EVs तक महत्त्वपूर्ण वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
  • चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर:
    • वर्ष 2020 तक G20 देशों में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध चार्जिंग बुनियादी ढाँचे में 5,60,000 धीमे चार्जिंग पॉइंट और 3,30,000 फास्ट चार्जिंग पॉइंट थे, प्रति सार्वजनिक चार्जिंग पॉइंट पर लगभग 10 इलेक्ट्रिक वाहनों का औसत अनुपात था।
    • डेटा सीमाएँ मौजूद हैं क्योंकि केवल 14 देश इलेक्ट्रिक कारों के लिये नवीनतम जानकारी प्रदान करते हैं और यहाँ तक ​​कि बहुत कम देश बसों, वैन या दो-से-तीन पहिया वाहनों के लिये वर्तमान डेटा प्रदान करते हैं।
  • स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन:
    • G20 देशों में डीकार्बोनाइज़ेशन की ओर एक स्पष्ट रुझान दिखाई दे रहा है, G20 देशों में नवीकरणीय ऊर्जा की औसत हिस्सेदारी वर्ष 2019 में लगभग 28% (टेरावाट घंटे में संबंधित कुल विद्युत उत्पादन के साथ भारित होने पर लगभग 25%) और लगभग 5 प्रतिशत अंक बढ़ रही है।

दीर्घकालिक नुकसान से बचते हुए परिचालन परिवहन प्रणालियों को बनाए रखने के लिये देशों को परिवहन के स्वच्छ, नवीकरणीय और कुशल तरीकों में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिये।

ऊर्जा परिवर्तन के लिये भारत द्वारा की गई प्रमुख पहल क्या हैं?

  • G20 अध्यक्षता:
    • भारत के पास वर्ष 2023 में G20 की अध्यक्षता है और उसका लक्ष्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के परिप्रेक्ष्य से वैश्विक जलवायु एजेंडे को आकार देना है।
    • G20 की अध्यक्षता के लिये भारत का आदर्श वाक्य "वसुधैव कुटुंबकम" है, जो "एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य" पर ज़ोर देता है। इसके छह प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में से एक "स्वच्छ, टिकाऊ, न्यायसंगत, सस्ती और समावेशी ऊर्जा संक्रमण" बनाना है।
  • भारत का अद्यतन NDC:
    • भारत ने COP26 से अपने जलवायु कार्रवाई तत्त्वों को शामिल करते हुए, अगस्त 2022 में UNFCCC को अपना अद्यतन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) प्रस्तुत किया।
    • भारत के NDC के प्रमुख लक्ष्यों में वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करना (वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में), वर्ष 2030 तक 50% गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित विद्युत क्षमता हासिल करना और जीवन जीने के स्थायी तरीके को बढ़ावा देना शामिल है।
  • COP26 घोषणा:
    • COP26 घोषणा का लक्ष्य वर्ष 2040 तक 100% शून्य-उत्सर्जन कारों और वैन में परिवर्तन करना है।
  • परिवहन और उत्सर्जन:
    • अपनी मज़बूत विकास दर के बावजूद, भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन G20 में सबसे कम 0.25 मीट्रिक टन CO₂ है।
    • भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक माल परिवहन में रेल की हिस्सेदारी को 45% तक बढ़ाना है और वर्ष 2030 तक इलेक्ट्रिक लाइट-ड्यूटी वाहन (LDV) की बिक्री में 30% हिस्सेदारी का लक्ष्य है।
    • राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति और स्मार्ट सिटी मिशन जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रमों का उद्देश्य वाहन यातायात को कम करना तथा परिवहन दक्षता में वृद्धि करना है।
  • उत्सर्जन कम करने वाले ईंधन और ऊर्जा भंडारण:
    • भारत ने उत्सर्जन कम करने के लिये पेट्रोल को 20% इथेनॉल के साथ मिश्रित करने जैसी पहल शुरू की है। लक्ष्य वर्ष 2030 से बढ़ाकर वर्ष 2025 कर दिया गया।
    • भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के ग्रिड एकीकरण को बढ़ाने के लिये ऊर्जा भंडारण प्रणालियों हेतु एक विस्तृत योजना बनाई है, जिसमें ईंधन सेल इस परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
  • भारत में विद्युत गतिशीलता:
    • भारत का EV बाज़ार तेज़ी से विकसित हो रहा है, वर्ष 2021 में लगभग 0.32 मिलियन वाहन बेचे गए, जो वर्ष-दर-वर्ष 168% की वृद्धि दर्शाता है।
    • भारत सरकार विद्युत गतिशीलता को बढ़ावा देने के लिये नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान 2020 (NEMMP), इलेक्ट्रिक वाहनों के विनिर्माण को तेज़ी से अपनाने (FAME) चरण-I और चरण-II जैसी पहल शुरू करने और EV की मांग को प्रोत्साहित करने तथा चार्जिंग बुनियादी ढाँचे को विकसित करने  के लिये पर्याप्त धनराशि निर्धारित करने में सक्रिय रही है। 
    • नीति आयोग ने हितधारकों की भागीदारी को बढ़ावा देने, नीतिगत कार्रवाई को प्रोत्साहित करने और अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान आदान-प्रदान की सुविधा के लिये वर्ष 2021 में डीकार्बोनाइजिंग ट्रांसपोर्ट हेतु फोरम लॉन्च किया।
  • हरित ऊर्जा की ओर संक्रमण:
    • भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित किया है जिसके अंतर्गत 5,630 गीगावॉट सौर क्षमता निर्माण, वर्ष 2040 तथा वर्ष 2060 के बीच कोयले के उपयोग में 99% की कमी एवं वर्ष 2050 व 2070 के बीच कच्चे तेल की खपत में 90% की गिरावट करना शामिल है।
    • भारत में विभिन्न तंत्र नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देते हैं, जैसे– नवीकरणीय खरीद दायित्व (Renewable Purchase Obligations- RPO) जो संस्थाओं को अपनी कुल ऊर्जा खपत का न्यूनतम हिस्सा नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त करने के लिये बाध्य करता है।
    • "सौर शहर" कार्यक्रम का लक्ष्य भारत में प्रत्येक राज्य के कम-से-कम एक शहर को पूर्ण रूप से सौर ऊर्जा के माध्यम से संचालित करने लिये परिवर्तित करना है।
  • परमाणु ऊर्जा:
    • भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के माध्यम से वर्ष 2014 से कुल विद्युत उत्पादन में लगभग 3 से 3.5% का योगदान मिलता है।
    • मार्च 2022 तक भारत की कुल संस्थापित परमाणु ऊर्जा क्षमता 6,780 मेगावाट थी, जिसे अपने बुनियादी ढाँचे के विकास कार्यक्रम के हिस्से के रूप में वर्ष 2031 तक 22,480 मेगावाट तक बढ़ाने की योजना है।
  • हरित हाइड्रोजन तथा ऊर्जा स्वतंत्रता:
    • भारत का लक्ष्य वर्ष 2047 तक ऊर्जा-स्वतंत्र राष्ट्र बनना है तथा वह हरित हाइड्रोजन को जीवाश्म-आधारित उत्पादों के विकल्प के रूप में प्रयोग करने पर बल देता है।
    • वर्ष 2020 में भारत की हाइड्रोजन की मांग 6 मिलियन टन प्रति वर्ष थी तथा भारत ने वर्ष 2070 तक उद्योग की कुल आवश्यकताओं का 19% हरित हाइड्रोजन के माध्यम से पूरा करने की योजना की है।
    • भारत जापान, दक्षिण कोरिया तथा यूरोप जैसे देशों में हाइड्रोजन निर्यातक की भूमिका निभाना चाहता है।
  • ऊर्जा भंडारण:
    • भारत ऊर्जा क्षेत्र में भंडारण को बढ़ावा देने के लिये एक व्यापक नीति ढाँचे पर कार्य कर रहा जिसका लक्ष्य बड़े पैमाने पर भंडारण प्रणाली विकसित करना है।
    • सरकार का तात्कालिक लक्ष्य राष्ट्रीय ग्रिड में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के एकीकरण को बढ़ावा देने के लिये 4,000 मेगावाट बैटरी भंडारण क्षमता का निर्माण करना है।
    • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority- CEA) के अनुसार वर्ष 2029-30 तक 27,000 मेगावाट/108,000 मेगावाट बैटरी भंडारण क्षमता (अथवा 4 घंटे के भंडारण) स्थापित करने का अनुमान है।

परिवहन के क्षेत्र में परिवर्तन से संबंधित प्रमुख अनुशंसाएँ क्या हैं?

  • सतत् आवागमन की ओर संक्रमण:
    • परिवहन के क्षेत्र में सफल परिवर्तन हेतु आवागमन के साधनों में विविधता तथा ऊर्जा स्रोतों के संक्रमण की आवश्यकता है।
    • "परिवहन में के क्षेत्र में ऊर्जा स्रोतों के संक्रमण" का उद्देश्य उत्सर्जन में कमी करते हुए आवागमन की मांगों को कुशलतापूर्वक पूरा करने के लिये प्रौद्योगिकी को बदलना है।

  • ऊर्जा-कुशल परिवहन के प्रयोग को बढ़ावा देना:
    • यात्री तथा माल परिवहन हेतु ऊर्जा-कुशल विकल्पों में निवेश बढ़ाकर उपभोक्ता मांग को निम्न-कार्बन उत्सर्जन समाधानों की ओर स्थानांतरित कर सकते हैं।
    • इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बेहतर ऊर्जा दक्षता प्रदान करते हैं जो आंतरिक दहन इंजन की तुलना में लगभग 20% कम CO₂ उत्सर्जित करते हैं।
    • ग्रिडकार्स द्वारा समर्थित ऑडी और जैगुआर जैसी निजी कंपनियाँ दक्षिण अफ्रीका में सार्वजनिक ईवी चार्जिंग स्टेशन संस्थापित कर रही हैं।
    • भारत में दोपहिया तथा तिपहिया वाहन व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले परिवहन के साधन हैं तथा देश ने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये इन साधनों के लिये वर्ष 2030 विद्युतीकरण लक्ष्य निर्धारित किया है।
  • अधिक महत्त्वाकांक्षी कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता:
    • पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने तथा COP26 प्रतिबद्धताओं का अनुपालन करने के लिये परिवहन क्षेत्र में और अधिक महत्त्वाकांक्षी प्रयासों की आवश्यकता है।
    • वर्ष 2019 में कई देशों में नीतिगत सुधारों को प्रोत्साहित करने के बावजूद, वार्षिक आधार पर परिवहन क्षेत्र के उत्सर्जन में मामूली गिरावट (-0.15%) दर्ज की गई।
    • वर्ष 2015 तथा वर्ष 2019 के बीच G20 देशों में कुल परिवहन उत्सर्जन में लगभग 6% की वृद्धि हुई।
  • परिवहन मांग को कम करने हेतु नीतिगत उपाय:
    • परिवहन मांग को कम करने वाली नीतियों की आवश्यकता है तथा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसी आधुनिक संचार प्रौद्योगिकियाँ एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने हेतु परिवहन की आवश्यकता को समाप्त कर संबद्ध कार्य के उद्देश्य प्राप्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • परिवहन मांग को कम करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने हेतु विश्वसनीय, उच्च गति संचार बुनियादी ढाँचे तक निर्बाध पहुँच आवश्यक है।
  • हल्के वाहनों के साथ दक्षता संयोजन: 
    • हल्के वाहनों की ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के प्रयासों के साथ-साथ छोटे, हल्के वाहनों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • विद्युतीकरण के लिये नवीकरणीय ऊर्जा:
    • परिवहन क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली विद्युत नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त की जानी चाहिये।
    • विद्युतीकरण अथवा पावर-टू-एक्स प्रौद्योगिकियों से संबंधित सहायक नीतियों को नवीकरणीय ऊर्जा आवश्यकताओं से जोड़ा जाना चाहिये।
    • थल-आधारित परिवहन में डीकार्बोनाइज़ेशन करने तथा विमानन एवं नौवहन में पावर-टू-एक्स ईंधन के प्रयोग को प्रभावी बनाने के लिये इनका स्रोत नवीकरणीय ऊर्जा पर आधारित होना चाहिये।
  • ग्रिड उत्सर्जन कारक तथा ऊर्जा संक्रमण:
    • ग्रिड उत्सर्जन कारक G20 देशों में विद्युत क्षेत्र के ऊर्जा संक्रमण में प्रगति को दर्शाते हैं।
    • हालाँकि अधिकांश देशों में ग्रिड उत्सर्जन कारकों के संबंध में मध्यम सुधार दर्ज किया गया किंतु ब्राज़ील, इंडोनेशिया, जापान और दक्षिण अफ्रीका में वर्ष 1990 की तुलना में प्रति kWh GHG उत्सर्जन अधिक है।
  • डीकार्बोनाइज़ेशन के लिये पावर-टू-एक्स ईंधन:
    • लंबी दूरी की विमानन तथा समुद्री नौवहन वर्तमान समय में भी ऊर्जा-सघन ईंधन पर निर्भर है।
    • G20 के सदस्य देशों को महत्त्वाकांक्षी नीतियों के कार्यान्वन, वित्तपोषण बढ़ाकर तथा देशों के बीच सहयोग को प्रोत्साहन प्रदान कर पावर-टू-एक्स ईंधन के प्रयोग को बढ़ावा देने का नेतृत्व करना चाहिये।
      • "पावर-टू-एक्स", नवीकरणीय विद्युत ऊर्जा को परिवर्तित करने, संग्रहीत करने तथा उपयोग करने की सुविधा प्रदान करने वाली तकनीकों एवं माध्यमों की एक शृंखला को संदर्भित करता है।
  • जीवाश्म-ईंधन सब्सिडी को समाप्त करना:
    • भारत सहित कई देशों ने जीवाश्म-ईंधन सब्सिडी कम करना शुरू कर दिया है।
    • जीवाश्म-ईंधन सब्सिडी से कार्बन-सघन परिवहन साधनों को बढ़ावा मिलता है जिससे बाज़ार प्रभावित होता है।
    • इन सब्सिडी को खत्म करने से सार्वजनिक परिवहन, विद्युतीकरण तथा शून्य-कार्बन ईंधन के लिये संसाधन जुटाने में सहायता प्राप्त होगी।
  • एकीकृत प्रणाली दृष्टिकोण की आवश्यकता:
    • परिवहन क्षेत्र का विद्युतीकरण तथा डिजिटलीकरण जैसे अन्य क्षेत्रों के साथ एकीकरण किया जाना आवश्यक है।
    • G20 को एकीकरण को बढ़ावा देने वाले उपायों की पहचान करने तथा डीकार्बोनाइज़ेशन का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु परिवहन के क्षेत्र में परिवर्तन करने के लिये समर्पित एक कार्य धारा स्थापित करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

इस प्रकार मात्र ईंधन मानकों तथा विद्युतीकरण जैसे वाहन प्रौद्योगिकी पर ज़ोर देने से कार्बन उत्सर्जन के निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति में मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। इस चुनौती का व्यापक रूप से समाधान करने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसके तहत परिवहन के कुशल, निम्न कार्बन-गहन माध्यमों के उपयोग को बढ़ावा देने के साथ-साथ एक एकीकृत प्रणाली दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये।

एकीकृत प्रणाली दृष्टिकोण के तहत ग्रिड उत्सर्जन कारकों को संबोधित करना, पावर-टू-एक्स ईंधन में निवेश करना तथा जीवाश्म-ईंधन सब्सिडी को समाप्त किया जाना चाहिये कयोंकि ये सभी ऊर्जा संक्रमण को आगे बढ़ाने एवं परिवहन क्षेत्र के भीतर डीकार्बोनाइज़ेशन का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं।