भारतीय अर्थव्यवस्था: एक समीक्षा (भाग - II) | 20 Mar 2024
मानव संसाधन: क्षमतावान कल्याण के साथ विकास का संतुलन
कल्याण के लिये नए दृष्टिकोण
- सामाजिक क्षेत्र के खर्च की बढ़ती उत्पादकता:
- वित्त वर्ष 2012 और वित्त वर्ष 2013 के दौरान सामाजिक सेवाओं पर केंद्र सरकार का व्यय 5.9% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ा है।
- इसी अवधि में सामाजिक सेवाओं पर पूंजीगत व्यय में 8.1% CAGR की वृद्धि हुई है, जो सामाजिक संपत्तियों के निर्माण का संकेत देता है।
- बुनियादी सुविधाओं तक सार्वभौमिक पहुँच:
- उज्ज्वला योजना, PM-जन आरोग्य योजना, PM-जल जीवन मिशन और PM-आवास योजना जैसे कार्यक्रम बुनियादी सुविधाओं तक सार्वभौमिक पहुँच पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- यह दृष्टिकोण भविष्य के लिये सामाजिक बुनियादी ढाँचे का निर्माण करता है और व्यक्तियों को अपने जीवन स्तर में सुधार करने के लिए सशक्त बनाता है।
- निगरानी फ्रेमवर्क के साथ लक्ष्य-आधारित बजटीय आवंटन:
- प्रमुख केंद्रीय क्षेत्र और केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिये एक आउटपुट-आउटकम मॉनिटरिंग फ्रेमवर्क FY20 से लागू किया गया है।
- प्रमुख योजनाओं में उपयोगकर्त्ता के अनुकूल डैशबोर्ड व प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS) पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाते हैं।
- राजकोषीय दक्षता और रिसाव का न्यूनतमकरण:
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) योजना और जन धन योजना-आधार-मोबाइल (JAM) त्रिमूर्ति राजकोषीय दक्षता को बढ़ाती है एवं रिसाव को कम करती है।
- 'वन नेशन वन राशन कार्ड' कार्यक्रम कल्याण में डिजिटल वस्तुओं को संस्थागत बनाता है, जिससे राज्यों में राशन कार्डों की निर्बाध पोर्टेबिलिटी की अनुमति मिलती है।
- सामाजिक समर्थकों को प्राथमिकता देना:
- बाल टीकाकरण और स्वच्छता में निवेश के सकारात्मक बाह्य पहलू हैं, जिससे सबसे कम विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को लाभ होता है तथा दीर्घकालिक स्वास्थ्य एवं कल्याण में सुधार होता है।
- असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिये सस्ती सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ:
- अटल पेंशन योजना (APY), PM जीवन ज्योति योजना (PMJJY) और PM सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY) असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती है।
- इन योजनाओं की सफलता उनके बढ़ते ग्राहक आधार में परिलक्षित होती है, दिसंबर 2023 तक APY का ग्राहक आधार 6.1 करोड़ था।
- बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा विकास:
- बुनियादी ढाँचे के विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन का पिरामिड के निचले स्तर पर रोज़गार पर कई गुना प्रभाव पड़ता है।
- डिजिटल, ऊर्जा और परिवहन बुनियादी ढाँचे में निवेश वृद्धि एवं विकास के बीच संबंध को मज़बूत करता है।
- संकट के प्रति नपी-तुली प्रतिक्रिया:
- कोविड-19 संकट के दौरान, सरकार ने कमज़ोर वर्गों के लिये सुरक्षा जाल के साथ चरणबद्ध प्रतिक्रिया का विकल्प चुना।
- प्रतिक्रिया ने विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित किया, जैसे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, सड़क विक्रेताओं के लिये ऋण प्रदान करना और लौटने वाले प्रवासियों के लिये रोज़गार पैदा करना, जबकि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को अलग-अलग गति से ठीक होने की अनुमति देना।
नए कल्याण दृष्टिकोण का प्रभाव: एक समीक्षा
- जीवन की गुणवत्ता में समग्र सुधार:
- नए कल्याणकारी दृष्टिकोण से भारत में जीवन की गुणवत्ता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- भारत का 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना एक दशक पहले की तुलना में आम लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव का संकेत है।
- बहुआयामी गरीबी में कमी:
- नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015-16 और 2019-21 के बीच 13.5 करोड़ भारतीय बहुआयामी गरीबी से बच गए हैं।
- यह सकारात्मक प्रवृत्ति विशेष रूप से ग्रामीण भारत और सबसे पिछड़े क्षेत्रों में स्पष्ट है, जो "अंत्योदय" के सिद्धांत को दर्शाती है।
- बुनियादी सुविधाओं में सुधार:
- वर्ष 2019-21 के लिये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण डेटा बिजली, पेयजल, स्वच्छता और स्वच्छ ईंधन जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच में लगातार प्रगति पर प्रकाश डालता है।
- ये सुधार समग्र रूप से बेहतर जीवन स्तर में योगदान करते हैं।
- स्वास्थ्य व्यय में गिरावट:
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य खातों के आँकड़ों से पता चलता है कि स्वयं के स्वास्थ्य व्यय में लगातार गिरावट आ रही है, जो वित्त वर्ष 2015 में कुल स्वास्थ्य व्यय (THE) के 62.6% से घटकर वित्त वर्ष 2020 में THE का 47.1% हो गया है।
- यह कमी व्यक्तियों पर महत्त्वपूर्ण वित्तीय बोझ डाले बिना स्वास्थ्य सेवा तक बेहतर पहुँच का प्रतीक है।
- स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार:
- मातृ मृत्यु अनुपात वर्ष 2014-16 में 130 प्रति लाख जीवित शिशुओं के जन्म से घटकर वर्ष 2018-20 में 97 प्रति लाख जीवित जन्म हो गया है, जो मातृ स्वास्थ्य में प्रगति का संकेत देता है।
- अन्य स्वास्थ्य संकेतक, जैसे मातृ मृत्यु दर में गिरावट, सार्वजनिक स्वास्थ्य पर कल्याणकारी पहल के सकारात्मक प्रभाव में योगदान करते हैं।
- उच्च शिक्षा में लैंगिक समानता:
- वित्त वर्ष 2018 से उच्च शिक्षा में महिला सकल नामांकन अनुपात (GER) पुरुष GER से आगे निकल गया है।
- यह बदलाव समावेशी विकास के लक्ष्यों के अनुरूप, उच्च शिक्षा तक पहुँच में लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति का संकेत देता है।
- आर्थिक असमानता में कमी:
- कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से राजकोषीय हस्तांतरण आर्थिक असमानता को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जैसा कि CEA कार्यालय द्वारा हाल ही में निबंधों के संग्रह से प्रामाणित है।
- यह अधिक समतापूर्ण समाज बनाने पर कल्याणकारी नीतियों के व्यापक प्रभाव को प्रदर्शित करता है।
- सशक्तीकरण कल्याण पहल का विस्तार:
- पिछले दशक में, "सशक्त कल्याण" का दायरा काफी बढ़ गया है।
- यह विस्तार विविध आवश्यकताओं और जनसांख्यिकी की आपूर्ति करते हुए कल्याण के लिये एक व्यापक तथा समावेशी दृष्टिकोण का प्रतीक है।
महिला नेतृत्व आधारित विकास
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व के माध्यम से सशक्तीकरण:
- वर्ष 2023 में महिला आरक्षण विधेयक [नारी शक्ति वंदन अधिनियम (NSVA)] का उद्देश्य बेहतर संस्थानों और अखंडता से जुड़ी सरकार में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाना है।
- वर्ष 1991 में पंचायतों में महिलाओं के लिये एक तिहाई आरक्षण को संवैधानिक बनाने के परिणामस्वरूप 46% निर्वाचित प्रतिनिधि महिलाएँ थीं।
- शोध से संकेत मिलता है कि इस तरह के आरक्षण से सार्वजनिक वस्तुओं, विशेष रूप से पेय जल और सार्वजनिक सड़कों जैसी महिलाओं की चिंताओं से संबंधित में निवेश बढ़ता है।
- समावेशी विकास और बुनियादी ज़रूरतें:
- महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास को साकार करने के लिये समान अवसर और बुनियादी ज़रूरतों की पूर्व शर्तों को पूरा करना आवश्यक है।
- महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने और कार्यबल में उनकी उत्पादक भागीदारी को सक्षम करने के लिये पहल शुरू की गई है।
- वित्तीय समावेशन:
- वित्तीय सेवाओं तक पहुँच, जिसका उदाहरण PM जन धन योजना की सफलता है, घरेलू संसाधनों पर महिलाओं का नियंत्रण बढ़ाती है।
- बैंक खातों वाली महिलाओं का अनुपात वर्ष 2015-16 में 53% से बढ़कर वर्ष 2019-21 में 78.6% हो गया है।
- स्वयं सहायता समूह (SHG) और आर्थिक सशक्तीकरण:
- महिलाओं के नेतृत्व वाले SHG आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सशक्तीकरण पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं, वित्तीय निर्णय एवं आजीविका विविधीकरण को प्रभावित करते हैं।
- दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) 83 लाख SHG के माध्यम से लगभग नौ करोड़ महिलाओं को सशक्त बनाती है।
- कौशल विकास और उद्यमिता:
- कौशल भारत मिशन, स्टार्ट-अप और स्टैंड-अप इंडिया जैसी पहलों के माध्यम से मानव पूंजी निर्माण में महिला भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाता है।
- PM कौशल विकास योजना के तहत 59 लाख से अधिक महिलाओं को प्रामाणित किया गया है, PM मुद्रा योजना के तहत महिला उद्यमियों को महत्त्वपूर्ण ऋण स्वीकृत किये गए हैं।
- बुनियादी ढाँचे का विकास:
- 'स्वच्छ भारत मिशन', 'उज्ज्वला योजना' और 'जल जीवन मिशन' जैसी पहलों ने जीवन बदल दिया है, महिलाओं पर कठिन परिश्रम व देखभाल का बोझ कम किया है।
- आवास और संपत्ति का स्वामित्व:
- PM आवास योजना (ग्रामीण) के कारण 26.6% पूर्ण मकान केवल महिलाओं के नाम पर हो गए हैं, जिससे निर्णय लेने में उनकी भागीदारी बढ़ गई है।
- बालिकाओं का स्वास्थ्य और शिक्षा:
- "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" और सुकन्या समृद्धि योजना जैसी पहल बालिकाओं की बचत, शिक्षा एवं वित्तीय योजना पर केंद्रित हैं।
- माध्यमिक विद्यालयों में लड़कियों का बढ़ा हुआ सकल नामांकन अनुपात (GER) प्रगति का प्रतीक है।
- आर्थिक प्रभाव और प्रगति:
- इन पहलों ने वर्ष 2022-23 में महिला श्रम बल भागीदारी दर को 37% तक बढ़ाने में योगदान दिया है।
- सकारात्मक रुझानों में जन्म के समय बेहतर लिंगानुपात (वर्ष 2022-23 में 933) और मातृ मृत्यु दर में कमी (वर्ष 2018-20 में 97/लाख जीवित जन्म) शामिल हैं।
दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य पर फोकस
- रिपोर्ट मानव विकास में लगातार चुनौतियों का समाधान करने के लिये व्यापक सामाजिक दृष्टिकोण अपनाते हुए निरंतर और रणनीतिक प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। फोकस के दो प्रमुख क्षेत्र रेखांकित हैं:
- कुपोषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य:
- जनसांख्यिकीय लाभांश को साकार करने में कुपोषण को एक बाधा के रूप में पहचानते हुए, पोषण के दृष्टिकोण को स्वच्छता, स्वच्छ पेयजल, बुनियादी दवाएँ, आवास और कुपोषण में कमी के लिये जीवन चक्र दृष्टिकोण को शामिल करने हेतु व्यापक बनाया गया है।
- मिशन सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण 2.0 जैसी पहल अकेले कैलोरी पर्याप्तता पर ध्यान केंद्रित करने से आगे बढ़ते हुए, सूक्ष्म पोषक तत्त्व पर्याप्तता के माध्यम से बेहतर स्वास्थ्य, कल्याण एवं प्रतिरक्षा को प्राथमिकता देती है।
- पोषण अभियान के तहत, POSHAN ट्रैकर के माध्यम से प्रौद्योगिकी-आधारित निगरानी, व्यवहार परिवर्तन और कार्यक्रम अभिसरण जैसी लागत प्रभावी रणनीतियों को लागू किया जा रहा है।
- सकारात्मक परिणाम स्पष्ट हैं, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2015-16 से वर्ष 2019-21 तक 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग (Stunting) 38.4% से घटकर 35.5%, वेस्टिंग (Wasting ) 21% से घटकर 19.3% और कम वज़न का प्रसार 35.8% से घटकर 32.1% हो गया है।
- शिक्षा और मानव पूंजी विकास:
- प्रारंभिक शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुँच प्राप्त करने के बाद, विकसित India@100 के लिये उपयुक्त मानव संसाधन-निर्माण हेतु अधिगम के परिणामों को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित हो गया है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति को एक मूक क्रांति के रूप में अभिनिर्धारित किया जाता है, जो अधिगम पर कोविड-19 के प्रभाव, स्कूलों में गुणवत्ता सुधार और शिक्षक प्रशिक्षण, सामुदायिक भागीदारी तथा शिक्षाशास्त्र में सुधार जैसे मुद्दों का हल करती है।
- राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण- 2021 के परिणाम राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उल्लिखित चल रहे प्रयासों के महत्त्व पर बल देते हुए शिक्षा की गुणवत्ता को उन्नत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं।
- कुपोषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य:
पिछले दशक में रोज़गार की स्थिति
- बेरोज़गारी के रुझान और LFPR:
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के अनुसार, भारत में बेरोज़गारी दर वर्ष 2017-18 में 6 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2022-23 में 3.2 प्रतिशत हो गई है।
- यह सकारात्मक प्रवृत्ति लैंगिक और ग्रामीण-शहरी विभाजनों में देखी गई है।
- ग्रामीण महिला LFPR में वृद्धि के कारण श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) वर्ष 2017-18 में 49.8 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 57.9 प्रतिशत हो गई है।
- संगठित क्षेत्र नौकरी बाज़ार:
- कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के लिये पेरोल डेटा वर्ष 2018-19 से पेरोल अतिरिक्त में साल-दर-साल लगातार वृद्धि का संकेत देता है।
- EPFO में शुद्ध पेरोल परिवर्द्धन वर्ष 2018-19 में 61 लाख से तीन गुना से अधिक होकर वर्ष 2022-23 में 139 लाख हो गया।
- आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना (ABRY) ने महामारी के बाद संगठित क्षेत्र के नौकरी बाज़ार की तेज़ी से रिकवरी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- नियमित वेतन वाली नौकरियाँ और कार्यबल वृद्धि:
- नियमित वेतन वाले लोगों के प्रतिशत में गिरावट (वित्त वर्ष 2018 में 22.8% से वित्त वर्ष 23 में 20.9% तक) के बावजूद, इसी अवधि के दौरान इस श्रेणी में श्रमिकों की कुल संख्या में लगभग 15 मिलियन की वृद्धि हुई।
- यह इस गलत धारणा को चुनौती देता है कि प्रतिशत में गिरावट का मतलब नौकरियों की कुल संख्या में कमी है।
- गिग इकोनॉमी और रोज़गार सृजन:
- नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, गिग इकोनॉमी में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जिसमें वित्त वर्ष 2011 में 77 लाख श्रमिकों को रोज़गार मिला है।
- किफायती इंटरनेट पहुँच और स्मार्टफोन ने गिग इकॉनमी को बढ़ावा दिया है, विशेष कर टियर-2 तथा टियर-3 शहरों में।
- गिग इकॉनमी नौकरी के अभ्यर्थियों के लिये एक प्रवेश बिंदु के रूप में कार्य करती है, लचीलापन प्रदान करती है और बेहतर वेतन वाली नौकरियों के संभावित मार्ग के रूप में कार्य करती है।
- समग्र सकारात्मक परिवर्तन:
- पिछले एक दशक में भारत में रोज़गार की स्थिति में सकारात्मक बदलाव आया है।
- उपलब्धियों में औपचारिकीकरण, कौशल विकास, उद्यमिता, उद्योग विविधीकरण और समावेशी विकास शामिल हैं।
- तकनीकी उन्नति और बुनियादी ढाँचे के विकास के प्रति प्रतिबद्धता भारत को वैश्विक नौकरी बाज़ार में एक गतिशील एवं समुत्थानशील भागीदार के रूप में स्थापित करती है।
- निरंतर चुनौतियाँ:
- सकारात्मक रुझानों के बावजूद, चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जैसे बढ़ती कार्यबल को औपचारिक बनाना और कृषि से श्रमिकों को अवशोषित करने वाले क्षेत्रों में नौकरियाँ सृजन करना।
- नियमित वेतन/वेतनभोगी रोज़गार वाले लोगों के लिये सामाजिक सुरक्षा लाभ सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है, PLFS वर्ष 2022-23 के अनुसार, 53 प्रतिशत लोग किसी भी सामाजिक सुरक्षा लाभ के लिये पात्र नहीं हैं।
- भविष्य का दृष्टिकोण:
- जैसे-जैसे भारत 21वीं सदी की चुनौतियों और अवसरों का सामना कर रहा है, इसके उभरते रोज़गार परिदृश्य के सकारात्मक पहलू निरंतर आर्थिक विकास एवं सामाजिक प्रगति के लिये शुभ संकेत हैं।
- रोज़गार परिदृश्य में निरंतर सकारात्मक विकास के लिये चुनौतियों से निपटने हेतु सतत् प्रतिबद्धता आवश्यक होगी।
युवाओं का बढ़ता रोज़गार
- युवा बेरोज़गारी रुझान:
- समग्र गिरावट: भारत में युवा बेरोज़गारी दर वर्ष 2017-18 में 17.8 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2022-23 में 10 प्रतिशत हो गई है।
- समग्र बेरोज़गारी के साथ तुलना: उल्लेखनीय अंतर हैं, 15-29 आयु वर्ग में बेरोज़गारी दर 10 प्रतिशत है, जबकि कुल बेरोज़गारी दर 3.2 प्रतिशत है, जो युवा बेरोज़गारी में तेज़ गिरावट को दर्शाता है।
- जनसंख्या वृद्धि बनाम रोज़गार वृद्धि: इस आयु वर्ग में 17 मिलियन की जनसंख्या वृद्धि के बावजूद, कार्यशील जनसंख्या अनुपात (WPR) 31.4 प्रतिशत से बढ़कर 40.1 प्रतिशत हो गया है, जो अतिरिक्त 35 मिलियन लोगों को रोज़गार मिलने का संकेत देता है।
- राज्य-स्तरीय प्रभाव:
- युवा आबादी वाले राज्यों का नेतृत्व: युवा आबादी की महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी वाले उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्य युवा रोज़गार में सकारात्मक बदलाव में सबसे आगे रहे हैं।
- राज्य-वार गिरावट: उदाहरण के लिये उत्तर प्रदेश में युवा बेरोज़गारी दर वर्ष 2017-18 में 16.7% से गिरकर वर्ष 2022-23 में 7% हो गई है।
- LFPR के साथ सहसंबंध: इन राज्यों में युवा बेरोज़गारी में गिरावट के साथ-साथ युवा श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में वृद्धि हुई है, जिसका उदाहरण उत्तर प्रदेश में 33.7% से बढ़कर 41.4% हो गया है।
- रोज़गार परिदृश्य पर प्रभाव:
- सकारात्मक कथा: संकुचित होते नौकरी बाज़ार के बारे में चिंताओं के विपरीत, डेटा एक सकारात्मक कथा को दर्शाता है, जो 15-29 आयु वर्ग की आबादी के सापेक्ष श्रमिकों की संख्या में सबसे बड़ी वृद्धि को दर्शाता है।
- जनसंख्या-रोज़गार गतिशीलता: निहित कथा युवाओं के लिये घटती नौकरी के अवसरों की धारणा को चुनौती देती है, पिछले दशक में युवा रोज़गार में अनुकूल प्रवृत्ति पर ज़ोर देती है।
- राष्ट्रीय आर्थिक निहितार्थ:
- आर्थिक योगदानकर्त्ताओं के रूप में युवा: युवा रोज़गार दरों में वृद्धि का अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ता है, बढ़ती कामकाजी उम्र की आबादी आर्थिक विकास में सकारात्मक योगदान दे रही है।
- जनसांख्यिकीय परिवर्तन सफलता: उच्च युवा बेरोज़गारी दर से गिरावट और LFPR में वृद्धि सकारात्मक आर्थिक संकेतकों के साथ संरेखित, जनसांख्यिकीय परिवर्तन के प्रबंधन में सफलता का संकेत देती है।
पिछले दशक में भारत में युवा रोज़गार में महत्त्वपूर्ण सुधार देखा गया है, जिसमें बेरोज़गारी दर में गिरावट, LFPR में वृद्धि और आबादी वाले राज्यों में सकारात्मक रुझान, युवाओं के लिये कम होते नौकरी बाज़ार की चुनौतीपूर्ण चिंताएँ शामिल हैं।
बढ़ती महिला श्रम बल भागीदारी दर
- भारत में बढ़ती महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) एक महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति है और कई कारक इस सकारात्मक बदलाव में योगदान करते हैं।
- डेटा और सांख्यिकी:
- FLFPR में गिरावट: नई सहस्राब्दी में, भारत का FLFPR वर्ष 1999-2000 में 34.1% से घटकर वर्ष 2017-18 में 23.3% हो गया।
- हालिया वृद्धि: हालाँकि हाल के वर्षों में प्रवृत्ति उलट गई है, "सामान्य स्थिति" अवधारणा के अनुसार, FLFPR वर्ष 2017-18 में 23.3% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 37.0% हो गया है।
- शहरी बनाम ग्रामीण: जबकि शहरी FLFPR में भी वृद्धि हुई है, ग्रामीण FLFPR में तेज़ वृद्धि देखी गई है, जो वर्ष 2017-18 में 24.6% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 36.6% हो गई है।
- वृद्धि में योगदान देने वाले कारक:
- बेहतर शिक्षा: जबकि FLFPR में प्रारंभिक गिरावट शिक्षा में महिला नामांकन में वृद्धि के अनुरूप है, इससे आने वाले समय में कार्यबल की भागीदारी बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि युवा समूह गोल्डिन के यू-वक्र सिद्धांत (Goldin's U-Curve Theory) के अनुरूप अपनी शिक्षा पूरी करेंगे।
- ग्रामीण रोज़गार वृद्धि: FLFPR में हालिया वृद्धि मुख्य रूप से ग्रामीण महिलाओं के कार्यबल में प्रवेश करने से प्रेरित है, जिसमें उनके बीच स्वरोज़गार और कृषि कार्य में वृद्धि हुई है।
- योगदान देने वाले कारक:
- कृषि उत्पादन में वृद्धि: यह संभावित रूप से कृषि में महिलाओं के लिये अधिक अवसर उत्पन्न करता है।
- बुनियादी सुविधाओं तक बेहतर पहुँच: घरेलू कामों पर कम समय खर्च करने से महिलाओं के पास भुगतान वाले काम के लिये समय बच सकता है।
- पुरुष कार्यबल का स्थानांतरण: जैसे-जैसे पुरुष गैर-कृषि कार्यों की ओर बढ़ रहे हैं, महिलाएँ कृषि गतिविधियों में उनकी जगह ले सकती हैं।
- ग्रामीण महिला कार्यबल में संरचनात्मक बदलाव:
- कुशल कृषि श्रम में वृद्धि: कुशल महिला कृषि श्रमिकों का अनुपात बढ़ रहा है (वर्ष 2018-19 में 48% से वर्ष 2022-23 में 59.4% तक), जो अधिक उत्पादक और संभावित लाभकारी कार्यों की ओर बदलाव का संकेत देता है।
- शारीरिक श्रम पर निर्भरता में कमी: शारीरिक रूप से कठिन कृषि कार्यों में लगी महिला श्रमिकों की हिस्सेदारी घट रही है (उसी अवधि में 23.4% से 16.6% तक), जो कामकाजी परिस्थितियों में संभावित सुधार का संकेत देती है।
- आगे के विचार हेतु बिंदु:
- हालाँकि बढ़ती FLFPR एक सकारात्मक प्रवृत्ति है, इन नौकरियों की गुणवत्ता, घरों के भीतर आय और सौदेबाज़ी की शक्ति पर उनके प्रभाव तथा इस प्रवृत्ति की दीर्घकालिक स्थिरता का विश्लेषण करना महत्त्वपूर्ण है।
- डेटा कृषि के संभावित नारीकरण (Feminization) का सुझाव देता है, जिसके लिये कृषि क्षेत्र के भीतर लैंगिक गतिशीलता पर इसके प्रभाव के संबंध में आगे की जाँच की आवश्यकता है।
कुल मिलाकर FLFPR में वृद्धि, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, सकारात्मक और संभावित दोनों चुनौतियों के साथ एक जटिल तस्वीर प्रस्तुत करती है। इस घटना की बारीकियों को समझने तथा भारत के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में इसके स्थायी व न्यायसंगत योगदान को सुनिश्चित करने के लिये आगे के शोध और विश्लेषण आवश्यक हैं।
कौशल विकास और उद्यमिता
- सरकारी पहल: भारत सरकार ने तेज़ी से बदलती वैश्विक अर्थव्यवस्था में कुशल कार्यबल के महत्त्व को पहचाना है। वर्ष 2014 में एक केंद्रीय मंत्रालय की स्थापना की गई, जिससे राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन तथा कौशल विकास एवं उद्यमिता पर राष्ट्रीय नीति की शुरुआत हुई।
- शैक्षिक सुधार: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर ज़ोर देती है, जिसका लक्ष्य व्यावसायिक शिक्षा को सामान्य शिक्षा के साथ एकीकृत करना तथा इसे मुख्यधारा में लाना है। इसे देश की शिक्षा प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण सुधार के रूप में देखा जा रहा है।
- कौशल भारत मिशन: वर्ष 2015 में शुरू किया गया कौशल भारत मिशन युवाओं के रोज़गार और कौशल विकास में सहायक रहा है। PM कौशल विकास योजना ने वर्ष 2015 से लगभग 1.4 करोड़ उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया है। स्किल इंडिया डिजिटल प्लेटफॉर्म की हालिया शुरुआत कौशल अधिग्रहण, शिक्षा, रोज़गार और उद्यमिता का समर्थन करती है।
- कौशल विकास में प्रगति: बड़े पैमाने पर कौशल विकास पर ज़ोर देने के सकारात्मक परिणाम मिले हैं, जो विश्व कौशल प्रतियोगिताओं में भारत की बढ़ती स्थिति में परिलक्षित होता है। इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2023 के अनुसार, अंतिम वर्ष और प्री-फाइनल वर्ष के छात्रों की रोज़गार क्षमता वर्ष 2014 में 33.9% से बढ़कर वर्ष 2024 में 51.3% हो गई है।
- शिक्षा-कौशल सातत्य: रिपोर्ट राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उल्लिखित शिक्षा पाठ्यक्रम में कौशल को मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। इसके अतिरिक्त, औपचारिक/अनौपचारिक व्यावसायिक/तकनीकी प्रशिक्षण के बिना पर्याप्त प्रतिशत को ध्यान में रखते हुए, मौजूदा कार्यबल के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से को भविष्य-प्रासंगिक कौशल में कुशल बनाने का आह्वान किया गया है।
- सुधार हेतु अवसर: प्रगति के बावजूद, विशेष रूप से दस या अधिक वर्षों की स्कूली शिक्षा वाले व्यक्तियों के लिये शिक्षा-कौशल निरंतरता में सुधार की गुंजाइश है। रिपोर्ट में युवाओं की क्षमता का दोहन करने हेतु रोज़गार के लिये फिनिशिंग स्कूलों की स्थापना का सुझाव दिया गया है।
- भविष्य में इसका प्रभाव: कौशल विकास पहल के माध्यम से मानव पूंजी में सरकार के निवेश से विभिन्न क्षेत्रों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है, जो आर्थिक समृद्धि और सामाजिक विकास में योगदान देगा।
भारत का बाहरी क्षेत्र: अनिश्चितताओं के माध्यम से सुरक्षित रूप से नेविगेट करना
वस्तु व्यापार में लचीलेपन को दर्शाया गया है
- निर्यात प्रदर्शन:
- भारत के व्यापारिक निर्यात में पिछले एक दशक में 50% से अधिक की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो वित्त वर्ष 23 में 451.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया है।
- इसी अवधि में 120% की वृद्धि के साथ सेवा निर्यात में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और सॉफ्टवेयर सेवाओं में लगातार कुल सेवा निर्यात का लगभग आधा हिस्सा शामिल है।
- व्यापार संतुलन में सुधार:
- वित्त वर्ष 2024 में व्यापारिक निर्यात को प्रभावित करने वाले भू-राजनीतिक तनाव और कमज़ोर वैश्विक मांग के बावजूद, भारत के व्यापारिक व्यापार संतुलन में उल्लेखनीय सुधार हुआ। आयात में गिरावट के कारण व्यापार घाटा अप्रैल-नवंबर 2022 में 189.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर वर्ष 2023 की समान अवधि में 166.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- विविधीकरण प्रयास:
- जबकि वाणिज्यिक जानकारी एवं सांख्यिकी महानिदेशालय (DGCI & S) का प्रमुख वस्तु वर्गीकरण अपेक्षाकृत स्थिर बना हुआ है, भारत की निर्यात बास्केट में प्रगतिशील विविधीकरण है। मौजूदा क्षमताओं का लाभ उठाते हुए निर्यात में अधिक गुणवत्ता और जटिलता जोड़ने के लिये तथा विविधीकरण की संभावना है।
- सेवा क्षेत्र का लचीलापन:
- भारत ने स्वयं को एक ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित किया है, जिसमें सॉफ्टवेयर सेवाएँ सेवा निर्यात क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
- वित्त वर्ष 2012 के बाद से व्यावसायिक सेवाओं और वित्तीय सेवाओं में दोहरे अंक की वृद्धि देखी गई है, जो महामारी के बाद लचीलेपन को दर्शाती है।
- निर्यात प्रोत्साहन के लिये नीतिगत उपाय:
- सरकार वर्ष 2030 तक 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का लक्ष्य हासिल करने के लक्ष्य के साथ उत्पादन क्षमता बढ़ाने और निर्यात को बढ़ावा देने के प्रयासों में सक्रिय रूप से लगी हुई है।
- निर्यात प्रोत्साहन को प्रोत्साहित करने के लिये सुविचारित नीतिगत उपाय और व्यापार सुविधा पहल मौजूद हैं। इसमें निर्यात लक्ष्य निर्धारित करना, निगरानी करना और पाठ्यक्रम सुधार शामिल है।
- निर्यात ऋण बीमा सेवाएँ, MSME निर्यातकों के लिये किफायती और पर्याप्त निर्यात ऋण तथा नए बाज़ारों की खोज एवं प्रतिस्पर्द्धी रूप से उत्पादों में विविधता लाने हेतु प्रोत्साहन जैसे उपाय लागू किये जा रहे हैं।
चालू खाते पर पर्याप्त बैलेंस
- भारत के चालू खाते पर आरामदायक संतुलन के लिये कई कारक ज़िम्मेदार हैं:
- सेवा निर्यात और प्रेषण वृद्धि:
- सेवा निर्यात में वित्त वर्ष 12 से वित्त वर्ष 23 तक 7.1% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) का अनुभव हुआ।
- इसी अवधि के दौरान प्रेषण 4.5% की CAGR से बढ़ा।
- इन विकास दरों के संयुक्त प्रभाव ने आरामदायक चालू खाता संतुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- चालू खाता घाटा में सुधार:
- वित्त वर्ष 24 की पहली छमाही (H1) के लिये चालू खाता घाटा (CAD) काफी कम हो गया, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 48.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 17.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो 64.1% की उल्लेखनीय गिरावट को दर्शाता है।
- यह सुधार व्यापारिक व्यापार और अदृश्य वस्तुओं (सेवाओं, स्थानांतरण, आदि) दोनों में व्यापक-आधारित संवर्द्धन द्वारा प्रेरित था।
- प्रेषण और उच्च-कुशल रोज़गार बदलाव:
- भारत वैश्विक स्तर पर श्रमिक प्रेषण का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता है, जिसने वर्ष 2023 में 125 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त किये।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और पूर्वी एशिया जैसे उच्च आय वाले देशों में उच्च-कुशल नौकरियों की ओर भारतीय प्रवासियों के रोज़गार पैटर्न में संरचनात्मक बदलाव ने प्रेषण में वृद्धि में योगदान दिया।
- भारत के लगभग 36% प्रेषण का श्रेय इन शीर्ष उच्च-आय वाले गंतव्यों में उच्च-कुशल प्रवासियों को दिया जाता है।
- निजी स्थानांतरण रसीदें:
- निजी हस्तांतरण प्राप्तियाँ, मुख्य रूप से प्रेषण का प्रतिनिधित्व करती हैं, पिछले वर्ष की तुलना में 26.2% की उल्लेखनीय वृद्धि के साथ, वित्त वर्ष 2023 में 112.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गईं।
- अप्रैल-सितंबर 2023 के दौरान, निजी हस्तांतरण प्राप्तियाँ 55.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर थीं, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 4.1% की वृद्धि दर्शाती है।
- सेवा निर्यात और प्रेषण वृद्धि:
पूंजी खाता
- पूंजी खाता:
- वित्त वर्ष 24 की पहली छमाही में पूंजी खाते में सालाना आधार पर 88.2% की वृद्धि दर्ज की गई।
- यह वृद्धि मुख्य रूप से भारत में विदेशी निवेश (प्रत्यक्ष और पोर्टफोलियो) के उच्च अंतर्वाह के फलस्वरूप हुई।
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI):
- रुपए की स्थिरता और वैश्विक कारकों के परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2024 की पहली छमाही में भारतीय बाज़ारों में 28.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का FPI दर्ज किया गया।
- इसके विपरीत वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही में 7.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का बहिर्वाह/बहिर्गमन हुआ।
- FPI से संबंधित नियामक व्यवस्था के सरलीकरण जैसे उपायों के माध्यम से निवेश में यह वृद्धि संभव हुई।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI):
- संबद्ध विषय के संबंध में वैश्विक परिदृश्य में गिरावट के बावजूद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हेतु भारत एक पसंदीदा गंतव्य बना हुआ है।
- इसके कारकों में युवा कार्यबल, मध्यम वर्ग की बड़ी आबादी और बाज़ार के अधिकांश क्षेत्रों में 100% FDI जैसे उदार उपाय शामिल हैं।
- FY05-FY14 में संचयी FDI अंतर्वाह 305.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 2.2%) और FY15-FY23 में 596.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 2.5%) था।
- रुपए का विनिमय दर और विदेशी ऋण:
- समष्टि आर्थिक स्थिरता और विदेशी क्षेत्र में बेहतर स्थिति के कारण वित्त वर्ष 2024 के दौरान भारतीय रुपए में स्थिरता आई।
- 29 दिसंबर, 2023 तक विदेशी मुद्रा भंडार 623.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (दस माह से अधिक का आयात) था।
- सितंबर 2023 के अंत तक विदेशी ऋण 635.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जिसे सहज माना जाता है।
- सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में बाह्य ऋण 22.4% (मार्च 2013) से घटकर 18.6% (सितंबर 2023) हो गया।
बाह्य/विदेशी क्षेत्र के लिये आगे की राह
- निर्यात विविधीकरण: वैश्विक मांग में मंदी के कारण वित्त वर्ष 2024 के लिये सकल घरेलू उत्पाद में निर्यात की हिस्सेदारी में अनुमानित गिरावट हुई जिसमें सुधार करने की आवश्यकता है। पारंपरिक बाज़ारों में कम मांग के प्रभाव को कम करने के लिये निर्यात पोर्टफोलियो में विविधता लाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
- FDI सुधार: FDI नीति में निरंतर सुधारों के परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि हुई। विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये भारत की क्षमता के साथ संरेखित करते हुए नीतिगत सुधारों को जारी रखने की आवश्यकता है।
- आधारभूत अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स में सुधार: आधारभूत अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स में सुधार के प्रयासों को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है क्योंकि इसे निर्यात को बढ़ावा देने और निवेश आकर्षित करने में इनकी अहम भूमिका होती है। आपूर्ति शृंखला दक्षता बढ़ाने के लिये परियोजनाओं का समय पर कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- FPI का विश्वास: भारतीय अर्थव्यवस्था और बाज़ारों की संभावनाओं के फलस्वरूप विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) का भारत पर विश्वास बढ़ा है जिससे निवेश में वृद्धि हुई। विदेशी मुद्रा भंडार और विदेशी ऋण की स्थिति में स्थिरता बनाए रखकर इस वृद्धि को बनाए रखने हेतु किये जाने वाले निरंतर प्रयास जारी रहने चाहिये।
- विप्रेषण वृद्धि: विप्रेषण प्राप्ति में अपेक्षित 8% की वृद्धि के साथ वर्ष 2024 में इसका मूल्य 135 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक होने की संभावना है। आर्थिक स्थिरता और विकास के लिये इस सकारात्मक प्रवृत्ति की निगरानी कर इसका ईष्टतम उपयोग किया जाना चाहिये।
- भू-राजनीतिक जोखिम प्रबंधन: वर्तमान के भू-राजनीतिक तनाव और शिपिंग लागत में हाल की वृद्धि से होने वाले संभावित जोखिमों की पहचान करने की आवश्यकता है। व्यापार में व्यवधानों को कम करने के लिये इन जोखिमों को सक्रिय रूप से प्रबंधित करने और उनका समाधान करने के लिये नीतियों के कार्यान्वन की आवश्यकता है।
- ऊर्जा लागत प्रबंधन: शिपिंग लागत में हाल की वृद्धि के कारण विशेष रूप से ऊर्जा लागत के संबंध में मुद्रास्फीति बढ़ने की आशंका है। बढ़ी हुई ऊर्जा लागत को प्रबंधित करने के लिये दीर्घकालिक अनुबंधों पर वार्ता अथवा वैकल्पिक परिवहन विधियों की खोज करना जैसी नीतियाँ विकसित की जानी चाहिये।
जलवायु कार्रवाई
समुत्थान शक्ति के निर्माण की दिशा में भारत की जलवायु कार्रवाई
- समुत्थान शक्ति के निर्माण की दिशा में भारत की जलवायु कार्रवाई एक व्यापक और महत्त्वाकांक्षी दृष्टिकोण पर आधारित है। इसमें निम्नलिखित प्रमुख बिंदु शामिल हैं:
- उच्च समुत्थानिक विकास और समावेशी आजीविका:
- इसके तहत प्राथमिक उद्देश्य सभी के लिये सतत् और समावेशी आजीविका विकल्प सुनिश्चित करते हुए उच्च समुत्थानिक वृद्धि हासिल करना है।
- विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये ऊर्जा तक पहुँच को महत्त्वपूर्ण माना गया है, जिसमें उद्योग को सशक्त बनाना, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा को सक्षम बनाना तथा समग्र सामाजिक एवं आर्थिक कल्याण में वृद्धि करना शामिल है।
- कम ऐतिहासिक योगदान के बावजूद वैश्विक ज़िम्मेदारी:
- भारत UNFCCC और पेरिस समझौते के ढाँचे के भीतर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये सभी देशों की सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता को स्वीकार करता है।
- हालाँकि वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में भारत का योगदान कम रहा है किंतु यह अपने उत्तरदायित्व को स्वीकारते हुए अनुकूलन, समुत्थान शक्ति के निर्माण और शमन कार्यों को संबोधित करने के लिये कार्य करता है।
- राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC):
- भारत ने वर्ष 2015 में अपने पहले NDC की घोषणा की जिसमें उत्सर्जन की तीव्रता को कम करने, गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने और वनीकरण के माध्यम से अतिरिक्त कार्बन सिंक का निर्माण करने जैसे लक्ष्य शामिल थे।
- इसकी उपलब्धियों में गैर-जीवाश्म ईंधन-संस्थापित विद्युत क्षमता, उत्सर्जन तीव्रता में कमी और कार्बन सिंक निर्माण जैसे लक्ष्यों की प्राप्ति शामिल है।
- NDC को वर्ष 2022 में अधिक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ अद्यतन किया गया जो जलवायु कार्रवाई के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC):
- उद्दिनांकित NAPCC में नौ मिशन शामिल हैं जो सौर ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, जल, सतत् कृषि जैसे और अन्य विशिष्ट क्षेत्रों पर केंद्रित हैं।
- जलवायु परिवर्तन के लिये राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (National Adaptation Fund for Climate Change- NAFCC) कृषि, जल, वानिकी, पशुधन और पारिस्थितिकी तंत्र बहाली से संबंधित परियोजनाओं के अतिरिक्त अनुकूलन कार्यों हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता में तीव्र वृद्धि:
- जलवायु लक्ष्यों की प्राप्ति में भारत की सफलता का श्रेय गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता के महत्त्वाकांक्षी विस्तार को दिया जाता है जिसमें विगत नौ वर्षों में दोगुना से अधिक वृद्धि हुई है।
- संस्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जिससे गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता की कुल वृद्धि में योगदान मिला।
- ऊर्जा दक्षता उपाय:
- कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये ऊर्जा दक्षता को एक महत्त्वपूर्ण उपाय के रूप में मान्यता दी गई।
- परफॉर्म अचीव एंड ट्रेड (PAT) योजना के परिणामस्वरूप ऊर्जा की पर्याप्त बचत हुई और CO2 उत्सर्जन कम हुआ।
- कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (CCTS) की शुरुआत ऊर्जा-बचत उपायों को और अधिक प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु की गई थी।
- नीतिगत प्रोत्साहन और योजनाएँ:
- वर्ष 2014 के बाद शुरू की गई योजनाओं सहित नीतिगत प्रोत्साहनों ने नवीकरणीय/अक्षय ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ावा देने और ऊर्जा दक्षता में सुधार करने में अहम भूमिका निभाई है।
- सोलर पार्क, रूफटॉप सोलर और ऊर्जा संरक्षण कार्यक्रमों जैसी विभिन्न योजनाओं ने गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने में योगदान दिया है।
- हाल की प्रमुख योजनाओं में PM-कुसुम, उजाला और PMUY शामिल हैं जो LPG कनेक्शन, LED वितरण तथा स्ट्रीट लाइट संस्थापन के माध्यम से ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देती हैं।
- LiFE अभियान:
- वर्ष 2021 में शुरू किया गया LiFE अभियान, पर्यावरण संरक्षण के लिये वैयक्तिक और सामुदायिक कार्यों को प्रोत्साहित करता है। ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम (GCP) और इकोमार्क जैसी पहल पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को प्रोत्साहित करती हैं।
- वित्तीय क्षेत्र का समुत्थान:
- सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग और ग्रीन फाइनेंस फ्रेमवर्क सहित नियामक उपाय, वित्तीय क्षेत्र में जलवायु संबंधी विचारों के एकीकरण पर प्रकाश डालते हैं।
- वैश्विक पहल:
- भारत अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), आपदा-रोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI), द्वीपीय देशों के लिये सर्व-सक्षम अवसंरचना (Infrastructure for Resilient Island States- IRIS) और LeadIT जैसी अंतर्राष्ट्रीय पहलों में सक्रिय रूप से भाग लेता है जो वैश्विक जलवायु चुनौतियों को समाधान करने तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में इसके नेतृत्व का प्रदर्शन करता है।
- शुद्ध शून्य एवं उन्नत NDC लक्ष्य:
- भारत सरकार की जलवायु कार्रवाई का मूल उद्देश्य विकासा संबंधी प्राथमिकताओं को पूरा करना है।
- भारत वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रयासरत है और नीति, विनियामक उपायों एवं प्रोत्साहनों की एक विविध शृंखला के माध्यम से वर्ष 2030 के लिये NDC लक्ष्यों को विस्तारित करता है।
- मिशन LiFE, अनुचित और विनाशकारी उपभोग प्रथाओं की रोकथाम कर सचेत तथा उपयुक्त उपयोग के साथ उत्पादन एवं उपभोग पैटर्न को संरेखित करने में सहायक है।
- जलवायु कार्रवाई में अग्रणी के रूप में भारत:
- भारत की महत्त्वपूर्ण जलवायु कार्रवाइयों के परिणामस्वरूप वर्ष 2030 से पूर्व इसके NDC को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति हुई है जो भारत को जलवायु कार्रवाई के संबंध में एक अग्रणी नेता के रूप में स्थापित करता है।
- भारत को जलवायु कार्रवाई में अपने उचित योगदान की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने वाले एकमात्र G20 राष्ट्र के रूप में मान्यता प्राप्त है जो वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने की इसकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।
- उच्च समुत्थानिक विकास और समावेशी आजीविका:
आउटलुक
- आर्थिक विकास एवं सुधार:
- पिछले दस वर्षों में भारत ने आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, यह 3.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (अनुमानित वित्तीय वर्ष 2024) की GDP के साथ 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।
- इस यात्रा को ठोस एवं वृद्धिशील सुधारों द्वारा चिह्नित किया गया है जिन्होंने आर्थिक प्रगति तथा लचीलेपन में योगदान दिया है।
- सरकार को अगले तीन वर्षों में 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की GDP के साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान है।
- भावी विकास हेतु सुधार:
- निरंतर सुधारों से भारत को वर्ष 2047 तक 'विकसित देश' बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता प्राप्त होने की आशा है।
- राज्य सरकारों की पूर्ण भागीदारी महत्त्वपूर्ण है और साथ ही नागरिक-अनुकूल एवं छोटे व्यवसाय-अनुकूल उपायों पर ध्यान देने के साथ, सुधारों को ज़िला, ब्लॉक तथा गाँव स्तर पर शासन तक विस्तारित किया जाना चाहिये।
- राज्यों की सक्रिय भागीदारी के साथ स्वास्थ्य, शिक्षा, भूमि तथा श्रम जैसे विभिन्न क्षेत्रों में निरंतर विकास पर ज़ोर दिया गया है।
- विकास में योगदान करने वाले कारक:
- निजी उपभोग एवं निवेश से प्रेरित घरेलू मांग के कारण पिछले तीन वर्षों में विकास दर 7 प्रतिशत से अधिक रही है।
- भौतिक एवं डिजिटल बुनियादी ढाँचे में निवेश के साथ-साथ विनिर्माण को बढ़ावा देने के उपायों ने अर्थव्यवस्था के आपूर्ति पक्ष को मज़बूत किया है।
- त्वरित वृद्धि की संभावना:
- तीव्रता से बुनियादी ढाँचे के विकास, मज़बूत बैलेंस शीट, डिजिटल बुनियादी ढाँचे के विस्तार, तकनीकी प्रगति एवं अनुकूल निवेश वातावरण जैसे कारकों द्वारा समर्थित, सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर वर्ष 2030 तक 7 प्रतिशत से ऊपर बढ़ने की क्षमता है।
- संरचनात्मक सुधार एवं वैश्विक संदर्भ:
- GST को अपनाने से घरेलू बाज़ार एकीकृत हो गए हैं, बड़े पैमाने पर उत्पादन को प्रोत्साहन मिला है और लॉजिस्टिक्स लागत में कमी भी आई है।
- मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में आरबीआई की विश्वसनीयता एक स्थिर ब्याज दर वातावरण में योगदान करती है।
- सुस्त वैश्विक आर्थिक पृष्ठभूमि के बावजूद वर्ष 2014 से वर्ष 2019 के बीच 7.4 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के साथ, भारतीय अर्थव्यवस्था ने आंतरिक शक्तियों का प्रदर्शन किया है।
- भविष्य की चुनौतियाँ एवं सुधार:
- भू-राजनीतिक संघर्ष विकास हेतु संभावित जोखिम उत्पन्न करते हैं।
- भविष्य के सुधारों के लिये प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में कौशल, सीखने के परिणाम, स्वास्थ्य, ऊर्जा सुरक्षा, MSME हेतु अनुपालन बोझ में कमी एवं श्रम बल में लिंग संतुलन शामिल हैं।
- भविष्य के लिये आकांक्षाएँ:
- मुद्रास्फीति के अंतर एवं विनिमय दर के संबंध में उचित धारणाओं के अंर्तगत भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है, जो अपने लोगों के जीवन की गुणवत्ता तथा जीवन स्तर में सुधार की आकांक्षा को दर्शाता है।