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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में गिग इकोनॉमी का उदय

  • 14 Jan 2023
  • 9 min read

यह एडिटोरियल 10/01/2023 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Making the ‘gig’ work” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में ‘गिग इकॉनमी’ और उससे संबद्ध चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत में ‘गिग इकॉनमी’ (Gig Economy) से अभिप्राय लोगों द्वारा प्रायः उबर, ओला, स्विगी और ज़ोमैटो जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से अस्थायी या लचीली प्रकृति की नौकरियों से है। हाल के वर्षों में इस प्रकार के कार्य की लोकप्रियता बढ़ी है क्योंकि यह कर्मियों के लिये अधिक लचीलापन एवं स्वतंत्रता प्रदान करता है और व्यवसायों के लिये एक लागत प्रभावी समाधान हो सकता है।

  • हालाँकि, गिग इकॉनमी कर्मियों के लिये नौकरी की सुरक्षा और लाभों की कमी को लेकर चिंताएँ भी मौजूद हैं। अनुमान है कि भारत में भविष्य में गिग इकॉनमी का और विस्तार होगा और इसलिये इसे कर्मियों के अधिकारों की रक्षा और उनके प्रति उचित व्यवहार सुनिश्चित करने के लिये सरकारी नियमों एवं नीतियों द्वारा समर्थित होना चाहिये।

गिग इकॉनमी क्या है?

  • गिग इकॉनमी एक मुक्त बाज़ार प्रणाली है जिसमें आम रूप से अस्थायी कार्य अवसर मौजूद होते हैं और विभिन्न संगठन अल्पकालिक संलग्नताओं के लिये स्वतंत्र कर्मियों के साथ अनुबंध करते हैं।
    • ‘गिग वर्कर’: वह व्यक्ति जो गिग कार्य व्यवस्था में भाग लेता है या कार्य करता है और पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंध के बाहर ऐसी गतिविधियों से आय अर्जित करता है।
  • ‘बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के गिग कार्यबल में सॉफ्टवेयर, साझा सेवाओं और पेशेवर सेवाओं जैसे उद्योगों में कार्यरत 15 मिलियन कर्मचारी शामिल हैं।

GIG-Workforce-in-India

भारत में गिग इकॉनमी के विकास चालक कौन-से हैं?

  • इंटरनेट और मोबाइल प्रौद्योगिकी का उदय: स्मार्टफोन का व्यापक इस्तेमाल और हाई-स्पीड इंटरनेट की उपलब्धता ने कर्मियों एवं व्यवसायों के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जुड़ना आसान बना दिया है, जिससे गिग इकॉनमी के विकास में मदद मिली है।
  • आर्थिक उदारीकरण: भारत सरकार की आर्थिक उदारीकरण संबंधी नीतियों ने प्रतिस्पर्द्धा एवं अधिक खुले बाज़ार को बढ़ावा दिया है, जिसने गिग इकॉनमी के विकास को प्रोत्साहित किया है।
  • लचीले कार्य की बढ़ती मांग: गिग इकॉनमी भारतीय कामगारों के लिये विशेष रूप से आकर्षक है जो लचीली कार्य व्यवस्था (Flexible Work Arrangements) की मांग रखते हैं जहाँ उन्हें अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन को संतुलित करने का अवसर मिलता है।
  • जनसांख्यिकी संबंधी कारक: गिग इकॉनमी युवा, शिक्षित एवं महत्त्वाकांक्षी भारतीयों की बड़ी और बढ़ती संख्या से भी प्रेरित है, जो अतिरिक्त आय सृजन के साथ अपनी आजीविका में सुधार की इच्छा रखते हैं।
  • ई-कॉमर्स का विकास: भारत में ई-कॉमर्स के तेज़ी से विकास के कारण डिलीवरी एवं लॉजिस्टिक्स सेवाओं की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसके कारण इन क्षेत्रों में गिग इकॉनमी का विकास हुआ है।

भारत में गिग इकॉनमी से संबद्ध प्रमुख मुद्दे

  • नौकरी और सामाजिक सुरक्षा का अभाव: भारत में कई तरह के गिग कामगार श्रम संहिता के दायरे में नहीं आते हैं और स्वास्थ्य बीमा एवं सेवानिवृत्ति योजनाओं जैसे लाभों तक उनकी पहुँच नहीं है।
    • इसके अतिरिक्त, गिग कामगारों को प्रायः आघात या बीमारी की स्थिति में पारंपरिक कर्मचारियों के समान उस स्तर की सुरक्षा प्राप्त नहीं होती है।
  • ‘डिजिटल डिवाइड’: गिग इकॉनमी व्यापक रूप से टेक्नोलॉजी और इंटरनेट एक्सेस पर निर्भर करती है, जो फिर उन लोगों के लिये एक बाधा उत्पन्न करती है जिनके पास इन संसाधनों तक पहुँच नहीं है और यह आय असमानता (income inequality) को और बढ़ा देता है।
  • डेटा की कमी: भारत में गिग इकॉनमी के संबंध में डेटा और शोध की कमी है जिससे नीति निर्माताओं के लिये इसके आकार, दायरे तथा अर्थव्यवस्था एवं कार्यबल पर इसके प्रभाव को समझना कठिन हो जाता है।
  • कंपनियों द्वारा शोषण: भारत में गिग कर्मियों को प्रायः पारंपरिक कर्मचारियों की तुलना में कम भुगतान किया जाता है और वे उनकी तरह कानूनी सुरक्षा से भी वंचित होते हैं।
    • कुछ कंपनियाँ देयता (liability) और करों के भुगतान से बचने के लिये गिग कर्मियों को स्वतंत्र ठेकेदारों के रूप में गलत तरीके से वर्गीकृत कर उनका शोषण कर सकती हैं।
  • सामाजिक अलगाव: गिग कर्मी पारंपरिक कर्मचारियों के समान सामाजिक संबंध और समर्थन प्रणाली से वंचित हो सकते हैं, क्योंकि वे प्रायः स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं और भौतिक कार्यस्थल का अभाव रखते हैं।

आगे की राह

  • स्पष्ट विनियमन: भारत सरकार को गिग इकॉनमी के लिये स्पष्ट विनियम एवं नीतियाँ स्थापित करनी चाहिये ताकि गिग कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो और कंपनियों को जवाबदेह ठहराया जा सके।
  • सामाजिक सुरक्षा आवरण: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि गिग कर्मियों की पेंशन योजनाओं और स्वास्थ्य बीमा जैसे सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों तक पहुँच हो ताकि वृद्धि कर्मियों के लिये वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
    • इसके साथ ही, गिग कर्मियों को पारंपरिक कर्मचारियों के ही समान श्रमिक अधिकार प्रदान किये जाने चाहिये जिनमें संगठित होने और संघ का निर्माण करने का अधिकार भी शामिल हो।
  • शिक्षा और प्रशिक्षण: सरकार को गिग कर्मियों के कौशल में सुधार और उनकी आय अर्जन क्षमता को बढ़ाने के लिये शिक्षा एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिये।
  • निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा और नवाचार को प्रोत्साहित करना: सरकार निष्पक्ष व्यापार अभ्यासों को प्रवर्तित कर और ऐसे नियम बनाकर निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित कर सकती है जो कंपनियों द्वारा कर्मियों को स्वतंत्र ठेकेदारों के रूप में गलत रूप से वर्गीकृत किये जाने पर अंकुश लगाए।
    • इसके अलावा, सरकार नए व्यापार मॉडल एवं प्रौद्योगिकियों का सृजन करने वाली कंपनियों को कर प्रोत्साहन, धन और अन्य सहायता प्रदान कर गिग इकॉनमी में नवाचार को प्रोत्साहित कर सकती है।
  • महिला सशक्तिकरण को गिग इकॉनमी से संबद्ध करना: गिग कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी का समर्थन करने वाले उपयुक्त भौतिक एवं सामाजिक बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना भी गिग इकॉनमी के विकास में दीर्घकालिक योगदान कर सकेगा।

अभ्यास प्रश्न: पारंपरिक श्रम बाज़ार पर गिग इकॉनमी के प्रभाव का विश्लेषण करें और भारत में गिग कामगारों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों की चर्चा करें।

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