घरेलू प्रवासन पर EAC-PM रिपोर्ट | 09 Jan 2025

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद, 400 मिलियन ड्रीम्स!, आंतरिक प्रवासन, जनगणना, जनगणना 2011, निर्माण, विनिर्माण, किफायती आवास, प्रतिभा पलायन, रोज़गार के अवसर, सामाजिक सुरक्षा, लैंगिक-संवेदनशील नीतियाँ, सामाजिक कल्याण योजनाएँ, कौशल विकास, विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) 

मेन्स के लिये:

भारत में प्रवासन प्रवृत्तियों का महत्त्व, कारण और प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) ने "400 मिलियन ड्रीम्स!" रिपोर्ट जारी की।

  • यह अभूतपूर्व विश्लेषण भारत में आंतरिक प्रवासन को समझने में मौजूद अंतराल को दूर करने के लिये उच्च आवृत्ति, विस्तृत डेटा का उपयोग करता है।

रिपोर्ट के बारे में

  • शीर्षक और फोकस: "400 मिलियन ड्रीम्स!" शीर्षक वाली यह रिपोर्ट, जनगणना जैसे पारंपरिक डेटा स्रोतों से परे अद्यतन जानकारी प्रदान करने के लिये नए डेटासेट का उपयोग करके भारत में घरेलू प्रवासन की मात्रा और पैटर्न की जाँच करती है।
  • एजेंसियाँ ​​और योगदानकर्त्ता: इसे EAC-PM के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय और भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी देवी प्रसाद मिश्रा ने लिखा है।
    • EAC-PM वर्किंग पेपर शृंखला के अंतर्गत जारी यह रिपोर्ट प्रवासन के सामाजिक-आर्थिक आयामों को समझने के लिये सहयोगात्मक प्रयासों को प्रतिबिंबित करती है।
    • विचारणीय अवधि: अध्ययन में वर्ष 2011 के बाद की जनगणना अवधि के आँकड़ों का विश्लेषण किया गया है, जिसमें वर्ष 2024 तक के रुझानों को शामिल किया गया है, तथा अंतर-दशवर्षीय प्रवासन पैटर्न पर नज़र रखने के लिये उच्च आवृत्ति डेटासेट का उपयोग किया गया है।
  • डेटा स्रोत: यह रिपोर्ट प्रवासन संबंधी जानकारी में अंतर को कम करने के लिये तीन उच्च आवृत्ति डेटासेट पर निर्भर करती है:
  • भारतीय रेलवे UTS डेटा: ब्लू-कॉलर श्रमिकों के लिये किफायती यात्रा विकल्पों का प्रतिनिधित्व करते हुए, अनारक्षित टिकट बिक्री के माध्यम से प्रवासन प्रवाह को दर्शाता है।
    • ट्राई रोमिंग डेटा: मौसमी और अस्थायी प्रवासन को ट्रैक करता है, शहरी कार्यबल के उतार-चढ़ाव में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
    • ज़िला स्तरीय बैंकिंग सांख्यिकी: यह रिपोर्ट धन प्रेषण अंतर्वाह और मूल क्षेत्रों पर वित्तीय प्रभावों की एक झलक प्रस्तुत करती है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • प्रवासन दर में कमी: वर्ष 2011 की जनगणना के बाद से भारत में घरेलू प्रवासन दर में 11.78% की कमी आई है, जिससे प्रवासी आबादी लगभग 40 करोड़ (400 मिलियन) हो गई है, जो कुल जनसंख्या का 28.88% है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर जीवन स्थितियाँ और बढ़ते आर्थिक अवसर इस गिरावट में योगदान देने वाले प्रमुख कारक हैं।
  • अध्ययन से अतिरिक्त मुख्य बिंदु: वर्ष 2023 तक भारत में प्रवासियों की अनुमानित संख्या 40,20,90,396 है, जो वर्ष 2011 की जनगणना के 45,57,87,621 के आँकड़ों से लगभग 11.78% कम है। प्रवासन दर वर्ष 2011 में 37.64% से घटकर वर्ष 2023 में 28.88% हो गई है।
    • यह अनुमान लगाया गया है कि प्रवासन में गिरावट उन क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, बुनियादी ढाँचे और आर्थिक अवसरों तक बेहतर पहुँच के परिणामस्वरूप हुई है जो परंपरागत रूप से प्रवासन के प्रमुख स्रोत थे।
  • स्थानिक आयाम: दूसरा वाक्य इस बात पर प्रकाश डालता है कि अनुमानित प्रवासन प्रवाह का 75% से अधिक भाग मूल से 500 किमी की परिधि के भीतर घटित होता है, जो प्रवासन में "गुरुत्वाकर्षण प्रभाव" की अवधारणा के अनुरूप है।
    • प्रमुख मूल ज़िले दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बंगलूरू और कोलकाता जैसे शहरी क्षेत्रों के आसपास स्थित हैं।
    • प्रवासन में गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से पता चलता है कि गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के समान ही दूरी, आर्थिक अवसर और सामाजिक संबंधों जैसे कारकों के कारण लोगों के निकटवर्ती स्थानों की ओर जाने की अधिक संभावना होती है।
  • प्राप्तकर्त्ता राज्यों में बदलती गतिशीलता: शीर्ष पाँच प्राप्तकर्त्ता राज्यों की संरचना बदल गई है, पश्चिम बंगाल और राजस्थान नए प्रवेशकों के रूप में उभरे हैं, जबकि आंध्र प्रदेश और बिहार रैंक में निचले स्थान पर आ गए हैं।
    • यहाँ तक ​​कि इन शीर्ष राज्यों में भी प्रवासियों का प्रतिशत कम हो गया है, जो संभवतः प्रवासन के व्यापक स्थानिक प्रसार का संकेत देता है।
  • वृद्धि और गिरावट के रुझान: पश्चिम बंगाल, राजस्थान और कर्नाटक जैसे राज्यों में आने वाले प्रवासियों की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
    • इसके विपरीत, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में कुल प्रवासियों के प्रतिशत हिस्से में गिरावट देखी गई है।
  • प्रमुख प्रवासन मार्ग: राज्य-स्तरीय प्रवासन मार्गों में उत्तर प्रदेश से दिल्ली, गुजरात से महाराष्ट्र, तेलंगाना से आंध्र प्रदेश और बिहार से दिल्ली शामिल हैं।
    • ज़िला-स्तरीय लोकप्रिय युग्म (Dyads) मुर्शिदाबाद से कोलकाता, पश्चिम बर्धमान से हावड़ा, वलसाड से मुंबई, चित्तूर से बंगलूरू शहरी और सूरत से मुंबई हैं।
  • मौसमी प्रवासन अंतर्दृष्टि: अप्रैल-जून (बुवाई/कटाई के मौसम के साथ संरेखित) और नवंबर-दिसंबर (त्योहार और शादी का मौसम)।
    • महामारी के बाद, यहाँ तक ​​कि अप्रैल-मई जैसे उच्च महीनों में भी वर्ष 2012 में महामारी-पूर्व स्तर की तुलना में यात्रियों की संख्या में 6.67% की कमी देखी गई।
  • प्रवासन दूरी: 75% से अधिक प्रवासन प्रवाह उद्गम के 500 किमी के भीतर होता है, जो रेवेनस्टीन के मानव प्रवासन के सिद्धांत के अनुरूप है, जो प्रवासन निर्णयों में निकटता पर ज़ोर देता है।
  • प्रवासन के आर्थिक कारण: रोज़गार इसका एक प्रमुख कारण है, 45 मिलियन लोग आर्थिक कारणों से प्रवासन करते हैं, जो शहरी केंद्रों में ब्लू-कॉलर कार्यबल की मांग का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
    • प्रवासन में मौसमी वृद्धि कृषि चक्रों और त्यौहारों के साथ संरेखित है, जैसा कि रेलवे टिकटों की बिक्री और रोमिंग सिम डेटा में वृद्धि से पता चलता है।
  • जेंडर-विशिष्ट प्रवृत्ति: रोज़गार-संबंधी प्रवासन में पुरुष प्रवासियों की संख्या अधिक है, जबकि विवाह, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, महिला प्रवासन का प्रमुख कारण बना हुआ है। 
    • एक उल्लेखनीय प्रवृत्ति यह है कि शहरी कार्यबल प्रवासन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है, हालाँकि यह सामाजिक बाधाओं के कारण सीमित है।
  • उद्गम और गंतव्य पर आर्थिक प्रभाव: धन विप्रेषण से ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ीकरण होता है, उत्तर प्रदेश और बिहार के ज़िलों में विप्रेषण का अंतर्वाह सर्वाधिक है।
    • बैंकिंग डेटा के अनुसार उच्च उत्प्रवास वाले ज़िलों में बचत और निवेश में वृद्धि हुई, जो प्रवासी परिवारों के बीच बेहतर वित्तीय साक्षरता को दर्शाता है।
    • शहरी क्षेत्रों में कुशल और अकुशल श्रमिकों की निरंतर आपूर्ति होती है, जिससे आर्थिक विकास को मदद मिलती है, लेकिन बुनियादी ढाँचे पर दबाव बढ़ता है।

रिपोर्ट में प्रवासन हेतु किन प्रमुख कारणों का उल्लेख किया गया हैं?

  • रोज़गार के अवसर: बेहतर रोज़गार की संभावनाओं की तलाश में 45 मिलियन से अधिक व्यक्ति प्रवासन करते हैं, जिनमें दिल्ली NCR, मुंबई और बंगलुरु जैसे शहरी केंद्र प्रमुख गंतव्य हैं।
    • प्रवासी मुख्य रूप से निर्माण, विनिर्माण और घरेलू सेवाओं जैसे श्रम-गहन क्षेत्रों में श्रमिकों की कमी को पूरा करते हैं
  • शिक्षा: शिक्षा के लिये प्रवासन अभी भी महत्त्वपूर्ण बना हुआ है, दिल्ली, पुणे और चेन्नई जैसे शहरों में छोटे शहरों के छात्र आकर्षित होते हैं।
    • उक्त रिपोर्ट में इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया है कि उच्च शिक्षा संस्थानों तक पहुँच से प्रायः युवाओं के बीच प्रवासन की प्रवृत्ति निर्धारित होती है।
  • विवाह: महिलाओं के बीच प्रवासन का एक प्रमुख कारण, विशेषकर ग्रामीण भारत में, 50% से अधिक महिला प्रवासन इसके कारण होता है।
    • यह प्रवासन प्रायः आर्थिक प्रवास के साथ-साथ होता है, क्योंकि महिलाएँ गंतव्य क्षेत्रों में कार्यबल में भागीदारी के लिये एकीकृत हो जाती हैं।
  • पारिवारिक पुनर्वस्थापन: परिवारों के पुनर्वस्थापन से होने वाले स्थानांतरण, विशेष रूप से बेहतर जीवन स्तर की तलाश में निम्न आय वर्ग, की प्रवासन में अहम भूमिका है।
  • ऋतुनिष्ठ कारक: विशेष रूप से कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में कटाई, बुवाई और त्यौहार के मौसम के लिये अस्थायी प्रवासन महत्त्वपूर्ण है।
    • रेलवे से प्राप्त उच्च आवृत्ति डेटा, आवागमन में होने वाली इन आवधिक वृद्धियों को रेखांकित करता है।

रिपोर्ट में किन चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है?

  • डेटा की सीमाएँ: जनगणना और अनियमित सर्वेक्षण जैसे परंपरागत डेटासेट प्रकाशित होने तक पुराने हो जाते हैं, जिससे वास्तविक समय नीति हस्तक्षेप के लिये उनकी उपयोगिता सीमित हो जाती है।
    • उच्च आवृत्ति डेटासेट में, यद्यपि विस्तृत जानकारी होती है, लेकिन प्रायः उनमें आयु, जेंडर और प्रवासन के कारण जैसे जनसांख्यिकीय विवरणों का अभाव होता है।
  • शहरी बुनियादी ढाँचे पर दबाव: दिल्ली, मुंबई और बंगलुरु जैसे उच्च आप्रवास वाले शहरों को पर्याप्त आवास, परिवहन और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • तीव्र शहरीकरण के कारण मलिन बस्तियाँ और अनौपचारिक बस्तियाँ विकसित हो रही हैं, जिससे नगर निगम के संसाधनों पर दबाव पड़ रहा है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे मूल क्षेत्रों में श्रमिकों की कमी, कृषि उत्पादकता में कमी और उच्च प्रवासन के कारण "प्रतिभा पलायन" होता है।
    • विकास दर असमान बना हुआ है तथा गंतव्य राज्यों को प्रवासन-प्रेरित आर्थिक योगदान से अनुपातहीन रूप से लाभ प्राप्त हो रहा है।
  • लैंगिक असमानताएँ: महिला प्रवासियों को, जिन्हें प्रायः "विवाह" के लिये प्रवासन करने वाली श्रेणी में रखा जाता है, गंतव्य क्षेत्रों में रोज़गार के अवसरों और सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • सामाजिक एकीकरण: प्रवासियों को प्रायः गंतव्य शहरों में भेदभाव और हाशियाकरण का सामना करना पड़ता है, जिससे सामाजिक एकजुटता में बाधा उत्पन्न होती है।
    • भाषायी बाधाएँ और सांस्कृतिक भिन्नताओं से स्थानीय समुदायों के साथ स्वांगीकरण में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
  • नीतिगत अंतराल: पोर्टेबल सामाजिक कल्याण योजनाओं की कमी से राज्यों के बीच आवागमन के दौरान प्रवासियों की आवश्यक सेवाओं तक पहुँच सीमित हो जाती है।
    • द्वितीयक शहरों पर अपर्याप्त ध्यान देने से प्रथम श्रेणी के शहरों पर अत्यधिक बोझ पड़ता है, जबकि छोटे शहरी केंद्र उपेक्षित हो जाते हैं।

आगे की राह

  • रियल टाइम प्रवासन ट्रैकिंग व्यवस्था का विकास: नीति निर्माताओं को रियल टाइम प्रवासन प्रवृत्तियों को ट्रैक करने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से रेल, दूरसंचार और बैंकिंग डेटा को एकीकृत करने हेतु एक केंद्रीकृत डेटा प्लेटफॉर्म स्थापित किया जाना चाहिये।
    • समय पर नीतिगत हस्तक्षेप के लिये नियमित अद्यतन और विश्लेषण-संचालित अंतर्दृष्टि आवश्यक है।
  • शहरी बुनियादी ढाँचे का सुदृढ़ीकरण: शहरों में बढ़ती जनसंख्या को समायोजित करने हेतु उच्च प्रवासन वाले राज्यों में संवहनीय आवासन, सार्वजनिक परिवहन और स्वास्थ्य सेवा में निवेश करने की आवश्यकता है।
    • प्रवासियों, विशेषकर अनौपचारिक क्षेत्रों में नियोजित व्यक्तियों को सहायता देने के लिये सामाजिक सुरक्षा संजाल का विस्तार करने की आवश्यकता है।
  • मूल क्षेत्रों में अवसरों का सृजन: संकटपूर्ण प्रवासन में कमी लाने हेतु ग्रामीण रोज़गार योजनाएँ शुरू की जानी चाहिये।
    • स्थानीय श्रम बल को बनाए रखने के लिये क्षेत्रीय उद्योगों के अनुरूप कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • पोर्टेबल लाभ और सहायता प्रणालियाँ: प्रवासियों को राज्य की सीमाओं के पार स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और राशन लाभ तक पहुँच सुनिश्चित करते हुए पोर्टेबल सामाजिक कल्याण योजनाओं का कार्यान्वन किया जाना चाहिये।
    • विधिक, वित्तीय और सामाजिक एकीकरण में सहायता प्रदान करने के लिये शहरी क्षेत्रों में प्रवासी सहायता केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये।
  • जेंडर-सेंसिटिव नीतियाँ: कार्यबल भागीदारी और सामाजिक सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए महिला प्रवासियों को सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से पहलों की रूपरेखा तैयार की जानी चाहिये।
    • शहरी क्षेत्रों में प्रवासन करने वाली महिलाओं के लिये रोज़गारपरक प्रशिक्षण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • द्वितीयक शहरों पर ध्यान केंद्रित किया जाना: उद्योगों को टियर-2 और टियर-3 शहरों में परिचालन स्थापित करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान कर इन शहरों में विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।