उत्तराखंड Switch to English
38वें राष्ट्रीय खेलों के लिये अवसंरचना का विकास
चर्चा में क्यों?
राजीव गाँधी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम को रायपुर और देहरादून के बीच जोड़ने वाली सड़कों को अधिक प्रभावी ढंग से यातायात प्रबंधन के लिये चौड़ा किया जाएगा।
- यह निर्णय 38वें राष्ट्रीय खेलों के उद्घाटन समारोह के दौरान उत्पन्न हुए गंभीर यातायात जाम के पश्चात लिया गया है।
मुख्य बिंदु
- भविष्य के आयोजनों पर विचार: चूँकि भविष्य में स्टेडियम में और अधिक खेल आयोजन आयोजित किये जाएँगे, इसलिये सरकार का लक्ष्य अवसंरचना (इंफ्रास्ट्रक्चर) में सुधार और यातायात प्रबंधन को सुव्यवस्थित करना है।
- राष्ट्रीय खेल समापन समारोह: समापन समारोह 14 फरवरी, 2025 को निर्धारित है।
- राष्ट्रीय खेल 2025:
- 38वें संस्करण में, राष्ट्रीय खेल, जो कि ओलंपिक से प्रेरित भारत का बहु-खेल आयोजन है, में 28 राज्यों, आठ केंद्र शासित प्रदेशों और सेना खेल नियंत्रण बोर्ड (SSCB) के खिलाड़ी 32 विभिन्न खेलों में पदक के लिये प्रतिस्पर्द्धा करेंगे।
- वर्ष 2025 के राष्ट्रीय खेलों की शुरुआत 26 जनवरी को ट्रायथलॉन स्पर्द्धाओं के साथ हुई।
- राष्ट्रीय खेलों के प्रत्येक संस्करण के समग्र विजेता को राजा भलिंद्र सिंह ट्रॉफी से सम्मानित किया जाता है।
- चैंपियन राज्य का निर्धारण, प्रतियोगिताओं में अंतिम स्थान के आधार पर अर्जित अंकों के आधार पर किया जाता है।
- राष्ट्रीय खेल 2025 में भारत के कुछ शीर्ष एथलीट भाग लेंगे, जिनमें ओलंपिक पदक विजेता लवलीना बोरगोहेन (मुक्केबाज़ी), स्वप्निल कुसाले, सरबजोत सिंह और विजय कुमार (निशानेबाज़ी) शामिल हैं।
राजस्थान Switch to English
लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण हेतु वेब पोर्टल
चर्चा में क्यों?
राजस्थान उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण के लिये एक वेब पोर्टल शुरू करने का निर्देश दिया है।
मुख्य बिंदु
- आदेश का कारण: कई लिव-इन जोड़ों को परिवार और समाज से धमकियों का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप वे अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर कर अनुच्छेद 21 के तहत सुरक्षा की मांग करते हैं।
- अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों को यह अधिकार प्रदान करता है कि यदि किसी नागरिक के अधिकारों और स्वतंत्रता का उल्लंघन होता है तो वे सरकारी संस्था के विरुद्ध मुकदमा दायर कर सकते हैं।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय को किसी भी व्यक्ति या प्राधिकारी को आदेश और रिट जारी करने की व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं।
- न्यायालय ने कहा कि हालाँकि भारतीय कानून में लिव-इन रिश्तों को स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं किया गया है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने खुशबू बनाम कन्नैअम्मल (2010), लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2006) और इंदिरा शर्मा बनाम वी.के. शर्मा (2013) जैसे कई मामलों में निर्णय दिया है कि ऐसे रिश्ते आपराधिक नहीं हैं और अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत आते हैं।
- विनियमित करने की आवश्यकता: न्यायालय ने लिव-इन संबंधों को विनियमित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला तथा कहा कि इनमें सामाजिक स्वीकृति का अभाव है तथा ये कानूनी जटिलताएँ उत्पन्न कर सकते हैं, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के लिये।
- प्राधिकरण की स्थापना: जब तक कानून नहीं बन जाता, न्यायालय ने प्रत्येक ज़िले में एक सक्षम प्राधिकरण के गठन का आदेश दिया है, जो लिव-इन जोड़ों की शिकायतों को पंजीकृत करेगा और उनका समाधान करेगा।
- सरकार को 1 मार्च, 2025 तक एक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी, जिसमें उठाए गए कदमों की रूपरेखा होगी।
- विवाहित व्यक्तियों पर कानूनी स्पष्टीकरण: न्यायालय ने इस मुद्दे को बड़ी पीठ को भेज दिया कि क्या बिना तलाक लिये लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले विवाहित व्यक्ति सुरक्षा की मांग कर सकते हैं।
- लिव-इन जोड़ों के लिये नया कानूनी प्रारूप:
- न्यायालय के आदेश में एक औपचारिक पंजीकरण प्रारूप तैयार करना भी शामिल था जिसे लिव-इन रिलेशनशिप में प्रवेश करने वाले सभी जोड़ों को पूरा करना होगा। दस्तावेज़ के अनुसार जोड़ों को ऐसे रिश्ते में प्रवेश करने से पहले विशिष्ट शर्तों पर सहमत होना होगा। प्रारूप में मुख्य प्रावधान निम्नलिखित होंगे:
- बाल सहायता: दोनों भागीदारों को एक "बाल योजना" पर सहमत होने के लिये बाध्य किया जाएगा, जिसमें संबंध से पैदा होने वाले किसी भी बच्चे की शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामान्य पालन-पोषण के लिये उनकी संबंधित ज़िम्मेदारियों को रेखांकित किया जाएगा।
- भरण-पोषण: पुरुष साथी को अनर्जक (गैर-कमाऊ) महिला साथी और संबंध से उत्पन्न बच्चों की आर्थिक सहायता करने तथा उनकी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी होगी।
- न्यायालय के आदेश में एक औपचारिक पंजीकरण प्रारूप तैयार करना भी शामिल था जिसे लिव-इन रिलेशनशिप में प्रवेश करने वाले सभी जोड़ों को पूरा करना होगा। दस्तावेज़ के अनुसार जोड़ों को ऐसे रिश्ते में प्रवेश करने से पहले विशिष्ट शर्तों पर सहमत होना होगा। प्रारूप में मुख्य प्रावधान निम्नलिखित होंगे:
संवैधानिक नैतिकता को कायम रखने वाले ऐतिहासिक निर्णय
- लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2006):
- अंतर्जातीय और अंतरधार्मिक जोड़ों को उत्पीड़न और हिंसा से सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया गया।
- एस. खुशबू बनाम कन्नियाम्मल एवं अन्य (2010):
- विवाह के बाहर वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए यौन संबंधों को कानूनी और गोपनीयता के अधिकार के अंतर्गत घोषित किया गया।
- नाज़ फाउंडेशन बनाम दिल्ली सरकार (2009):
- भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को अधिकारों का उल्लंघन घोषित करते हुए, वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया।
- जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (2018):
- व्यभिचार को अपराध से मुक्त कर दिया गया तथा इसे समानता, सम्मान, गोपनीयता और स्वायत्तता के अधिकारों का उल्लंघन घोषित किया गया।
- नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018):
- LGBTQ+ व्यक्तियों के अपने यौन रुझान और पहचान को सम्मान के साथ व्यक्त करने के अधिकारों की पुष्टि की गई।
- शफीन जहाँ बनाम अशोकन के.एम. (2018):
- किसी भी धर्म या जाति की परवाह किये बिना अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के अधिकार को मान्यता दी गई, जिससे हिंदू-मुस्लिम विवाह के निरसन को अमान्य कर दिया गया।
- शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ (2018):
- अंतर्जातीय और अंतरधार्मिक जोड़ों के विरुद्ध हिंसा और सम्मान के नाम पर हत्या की निंदा की गई तथा रोकथाम और सुरक्षा के लिये दिशा-निर्देश जारी किये गए।
हरियाणा Switch to English
यमुना जल को ज़हरीला बताने के विरुद्ध मामला दर्ज
चर्चा में क्यों?
हरियाणा सरकार ने राजनीतिक पार्टी के नेता के विरुद्ध सोनीपत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत मामला दर्ज किया, क्योंकि उन्होंने दावा किया था कि हरियाणा से आने वाले यमुना के जल में "ज़हर" है।
मुख्य बिंदु
- शिकायत दर्ज की गई:
- धारा 54, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005: आपदाओं के संबंध में गलत चेतावनी देने पर सज़ा (1 वर्ष तक की कैद या ज़ुर्माना)।
- भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 353 और 356: सार्वजनिक शरारत और मानहानि।
- भारत निर्वाचन आयोग की संलिप्तता: भारत निर्वाचन आयोग ने दावे के संबंध में तथ्यात्मक और कानूनी आधार मांगते हुए साक्ष्य मांगे।
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
- परिचय:
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 को भारत सरकार ने वर्ष 2005 में आपदाओं और इससे जुड़े अन्य मामलों के कुशल प्रबंधन के लिये पारित किया था। हालाँकि, यह जनवरी 2006 में लागू हुआ।
- उद्देश्य:
- आपदाओं का प्रबंधन करना, जिसमें शमन रणनीतियों की तैयारी, क्षमता निर्माण शामिल है।
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 2 (D) में “आपदा” की परिभाषा यह है कि आपदा का अर्थ है “किसी क्षेत्र में प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से उत्पन्न होने वाली तबाही, दुर्घटना, विपत्ति या गंभीर घटना।”
- आपदाओं का प्रबंधन करना, जिसमें शमन रणनीतियों की तैयारी, क्षमता निर्माण शामिल है।
- अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ:
- नोडल एजेंसी: अधिनियम गृह मंत्रालय को समग्र राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के संचालन के लिये नोडल मंत्रालय के रूप में नामित करता है।
- संस्थागत संरचना: यह राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर संस्थाओं की एक व्यवस्थित संरचना स्थापित करता है।
- राष्ट्रीय स्तर की महत्त्वपूर्ण संस्थाएँ:
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): इसका कार्य आपदा प्रबंधन नीतियाँ बनाना तथा समय पर एवं प्रभावी प्रतिक्रिया तंत्र सुनिश्चित करना है।
- राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (NEC): इसका गठन अधिनियम की धारा 8 के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को उसके कार्यों के निष्पादन में सहायता करने के लिये किया गया है।
- NEC पूरे देश के लिये राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना तैयार करने तथा यह सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार है कि इसकी वार्षिक समीक्षा की जाए तथा इसे अद्यतन किया जाए।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM): यह प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन के लिये प्रशिक्षण और क्षमता विकास कार्यक्रमों हेतु एक संस्थान है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF): यह प्रशिक्षित पेशेवर इकाइयों को संदर्भित करता है जिन्हें आपदाओं के लिये विशेष प्रतिक्रिया के लिये बुलाया जाता है।
मध्य प्रदेश Switch to English
स्थानांतरण नीति (संशोधन), 2025
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश में राज्य और ज़िला स्तर पर तबादलों पर फिलहाल रोक है। सरकार ने 24 जून, 2021 को इन स्तरों के लिये स्थानांतरण नीति (संशोधन), 2025 जारी की थी।
- मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में महेश्वर में हुई कैबिनेट बैठक में इस संशोधन को मंज़ूरी दी गई।
मुख्य बिंदु
- राज्य सरकार ने अब स्थानांतरण नीति (संशोधन), 2025 की धारा 9 में संशोधन किया है, ताकि मंत्रियों को असाधारण परिस्थितियों में स्थानांतरण करने की अनुमति मिल सके।
- सामान्य प्रशासन विभाग ने स्थानांतरण नीति (संशोधन), 2025 जारी की।
- स्थानांतरण के लिये मंत्रिस्तरीय प्राधिकार:
- अब उच्च प्राथमिकता वाले मामलों के लिये मुख्यमंत्री कार्यालय से प्रशासनिक अनुमोदन के बाद सचिव स्तर पर अनुमोदन किया जा सकेगा।
- विभागीय विवेकाधिकार:
- ऐसे मामलों में जहाँ विभागीय नीति के अनुसार स्थानांतरण अनुचित माना जाता है, विभाग सचिव को विभाग के मंत्री से अनुमोदन प्राप्त करना होगा।
- इसके बाद स्थानांतरण प्रस्ताव को अंतिम अनुमोदन के लिये स्थानांतरण के कारणों सहित अतिरिक्त मुख्य सचिव/प्रधान सचिव को भेजा जाएगा।
- स्थानांतरण की शर्तें:
- स्थानांतरण केवल विशेष परिस्थितियों में ही हो सकता है, जैसे:
- स्वास्थ्य कारण: कैंसर, स्ट्रोक, दिल का दौरा आदि जैसी गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों के कारण स्थानांतरण प्रदान किया जा सकता है।
- न्यायालय के आदेश: यदि न्यायालय के आदेश द्वारा अनिवार्य किया गया हो, तो स्थानांतरण की प्रक्रिया की जाएगी, बशर्ते कि कर्मचारी के विरुद्ध कोई विभागीय कार्रवाई लंबित न हो।
- गंभीर शिकायतें या अनियमितताएँ: यदि किसी सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध गंभीर शिकायतें या लापरवाही पाई जाती है तथा विभाग द्वारा अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई है।
- आपराधिक मामले: यदि कर्मचारी लोकायुक्त या पुलिस द्वारा दर्ज किसी आपराधिक मामले में संलिप्त है और जाँच में कोई बाधा नहीं है, तो स्थानांतरण किया जा सकता है।
- रिक्ति पूर्ति: ऐसे मामलों में जहाँ किसी कर्मचारी का पद निलंबन, त्यागपत्र, सेवानिवृत्ति या मृत्यु के कारण रिक्त हो जाता है और विभाग उस पद को भरना आवश्यक समझता है, तो स्थानांतरण का आदेश दिया जा सकता है।
- स्थानांतरण केवल विशेष परिस्थितियों में ही हो सकता है, जैसे:
- संशोधन का महत्त्व:
- स्थानांतरण नीति का उद्देश्य प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना तथा विशेष परिस्थितियों पर विचार करते हुए निष्पक्षता सुनिश्चित करना है।
- यह संशोधन स्वास्थ्य संबंधी स्थानांतरण या शिकायतों और आपराधिक मुद्दों जैसे अत्यावश्यक और गंभीर मामलों को निपटाने में अधिक अनुकूलता प्रदान करता है।
- यह सुनिश्चित करके कि स्थानांतरित पद पर रिक्तियाँ आनुपातिक हैं, नीति का उद्देश्य विभागों और स्थानों में संतुलन बनाए रखना है।
- स्थानांतरण नीति में यह संशोधन यह सुनिश्चित करेगा कि स्थानांतरण उचित परिश्रम के साथ किये जाएँ, खासकर जब स्वास्थ्य समस्याओं, कानूनी मामलों या विभागीय अनियमितताओं जैसे संवेदनशील मुद्दों को संबोधित किया जाता है। यह सरकारी संसाधनों के कुशल प्रबंधन की भी अनुमति देता है, जबकि तत्काल या विशेष मामलों के लिये अनुकूलता प्रदान करता है।
उत्तर प्रदेश Switch to English
महाकुंभ 2025 में मची भगदड़
चर्चा में क्यों?
प्रयागराज में त्रिवेणी संगम (गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम) पर उस समय दुखद भगदड़ मच गई, जब हज़ारों श्रद्धालु महाकुंभ में मौनी अमावस्या 'अमृत स्नान' के लिये एकत्र हुए थे।
- भारी भीड़ के कारण हालात बिगड़ गए और भगदड़ मच गई, जिससे कई लोगों की जान चली गई और कई घायल हो गए।
मुख्य बिंदु
- अमृत स्नान का महत्त्व:
- मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान महाकुंभ 2025 का सबसे महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान है तथा यह आयोजन 'त्रिवेणी योग' के दुर्लभ खगोलीय संरेखण के कारण और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है, जो प्रत्येक 144 वर्षों में एक बार होता है।
- अमृत स्नान से एक दिन पहले ही करीब पाँच करोड़ श्रद्धालु पहुँच चुके थे और संभावना है कि उसी दिन यह संख्या 10 करोड़ तक पहुँच जाएगी।
- मौनी अमावस्या:
- परिचय:
- मौनी अमावस्या, जिसे माघी अमावस्या या माघ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्त्वपूर्ण दिन है जो माघ महीने के दौरान अमावस्या (अमावस्या) पर आता है।
- आध्यात्मिक रूप से महत्त्वपूर्ण यह दिन उत्तर भारतीय कैलेंडर की परंपराओं में गहराई से निहित है।
- यह पवित्र अनुष्ठानों के माध्यम से आत्मनिरीक्षण, मौन और आत्मा शुद्धि द्वारा चिह्नित है, जिसमें गंगा नदी में पवित्र स्नान इसकी सबसे प्रमुख प्रथाओं में से एक है।
- मौनी अमावस्या 2025 का महत्त्व:
- मौनी शब्द संस्कृत शब्द “मौन” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “चुप्पी या न बोलने की स्थिति”।
- इस दिन मौन व्रत रखना भक्तों के बीच एक आम प्रथा है, जो आध्यात्मिक अनुशासन और आंतरिक शांति को बढ़ावा देती है।
- मौन को आत्म-शुद्धिकरण और आध्यात्मिक विकास हेतु एक शक्तिशाली साधन माना जाता है।
- ऐसा माना जाता है कि कुंभ मेले के दौरान त्रिवेणी संगम में पवित्र डुबकी लगाने से भक्तों के पाप धुल जाते हैं और वे मोक्ष की ओर अग्रसर होते हैं।
- इसके अतिरिक्त, मौनी अमावस्या पर पूर्वजों के सम्मान हेतु अनुष्ठान करने से खुशी और आशीर्वाद प्राप्त होता है, साथ ही पितृ दोष को कम करने में सहायता मिलती है, जिससे पैतृक कर्म असंतुलन का सामना करने वालों को राहत मिलती है।
- परिचय: