राजस्थान
राजस्थान हाईकोर्ट ने ट्रांसजेंडर OBC आरक्षण पर नोटिस जारी किया
- 24 Jan 2025
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चर्चा में क्यों?
राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक याचिका के उत्तर में राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। एक ट्रांसजेंडर महिला ने सार्वजनिक शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण के लिये ट्रांसजेंडर लोगों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में वर्गीकृत करने के सरकार के निर्णय को चुनौती दी है।
मुख्य बिंदु
- याचिकाकर्त्ता: राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल के रूप में शामिल होने वाली पहली ट्रांसवुमन गंगा कुमारी ने याचिका दायर की।
- मुद्दे का परिचय: राजस्थान सरकार के जनवरी 2023 के परिपत्र में ट्रांसजेंडर लोगों को आरक्षण के लिये OBC के तहत वर्गीकृत किया गया है, जिसके बारे में याचिकाकर्त्ता का तर्क है कि इससे OBC और ट्रांसजेंडर दोनों से संबंधित लाभों से बहिष्कार हो सकता है।
- कानूनी आधार: याचिकाकर्त्ता का कहना है कि यह वर्गीकरण सर्वोच्च न्यायालय के राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ (2014) के निर्णय का उल्लंघन करता है, जिसमें ट्रांसजेंडर लोगों को आरक्षण के लिये पात्र एक अलग समूह के रूप में माना जाता है, लेकिन जरूरी नहीं कि वे OBC श्रेणी में ही हों।
- नालसा निर्णय: वर्ष 2014 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने सरकारों को ट्रांसजेंडर लोगों को "सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा" मानते हुए आरक्षण देने का निर्देश दिया।
- हालाँकि, इस बात पर अस्पष्टता है कि क्या इसका तात्पर्य OBC जैसी मौजूदा सामाजिक-आर्थिक श्रेणियों में समावेशन या ट्रांसजेंडर लोगों के लिये क्षैतिज आरक्षण से है।
- न्यायालय की व्याख्या: मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों ने NALSA निर्णय की व्याख्या ट्रांसजेंडरों को OBC श्रेणी में रखने के रूप में की है, जबकि कर्नाटक, मद्रास और कलकत्ता जैसे राज्यों ने क्षैतिज आरक्षण को बरकरार रखा है।
ट्रांसजेंडर
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जिसका लिंग जन्म के समय निर्धारित लिंग से मेल नहीं खाता है।
- इसमें 'इंटरसेक्स भिन्नता वाले व्यक्ति' और 'ट्रांसजेंडर व्यक्ति' जैसे शब्दों को स्पष्ट किया गया है, ताकि सर्जरी या थेरेपी की परवाह किये बिना ट्रांस पुरुषों और महिलाओं को इसमें शामिल किया जा सके।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019
- भेदभाव न करना: शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य देखभाल और सार्वजनिक सुविधाओं में भेदभाव को प्रतिबंधित करता है, तथा आवागमन, संपत्ति और कार्यालय के अधिकारों की पुष्टि करता है।
- पहचान प्रमाण पत्र: यह कानून स्वयं-अनुभूत लिंग पहचान का अधिकार प्रदान करता है तथा जिला मजिस्ट्रेटों को बिना मेडिकल परीक्षण के प्रमाण-पत्र जारी करने की आवश्यकता बताता है।
- चिकित्सा देखभाल: HIV निगरानी, चिकित्सा देखभाल तक पहुँच, लिंग पुनर्निर्धारण सर्जरी और बीमा कवरेज के साथ चिकित्सा सुनिश्चित करता है।
- राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर व्यक्ति परिषद: सरकार को सलाह देने और शिकायतों का समाधान करने के लिये स्थापित।
- अपराध और दंड: बलपूर्वक श्रम, दुर्व्यवहार और अधिकारों से वंचित करने जैसे अपराधों के लिये कारावास (6 महीने से 2 वर्ष) और ज़ुर्माने का प्रावधान है।