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सामाजिक न्याय

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकार और संबंधित चिंताएँ

  • 06 Jan 2025
  • 14 min read

प्रीलिम्स के लिये:

उच्च न्यायालय, उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019, उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020, लैगिंक डिस्फोरिया, आधार कार्ड, जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1969, अनुच्छेद 21, ट्रांसजेंडर पहचान पत्र 

मेन्स के लिये:

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कल्याण पर न्यायिक रुख, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों संबंधी सुधार

स्रोत: IE

चर्चा में क्यों?

सुश्री X बनाम कर्नाटक राज्य, 2024 मामले में, कर्नाटक उच्च न्यायालय (HC) ने अभिनिर्धारित किया, ट्रांसजेंडर व्यक्ति जन्म प्रमाण पत्र पर अपने नाम और लिंग में परिवर्तन कर सकते हैं

सुश्री X बनाम कर्नाटक राज्य, 2024 मामले संबंधी मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • पृष्ठभूमि: याचिकाकर्ता को लैगिंक डिस्फोरिया था और इस कारण से उसने अपना लिंग परिवर्तन कराने हेतु सर्जरी कराई और तत्पश्चात् अपने आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट पर विधिक रूप से अपने नाम एवं लिंग में परिवर्तन कराया।
    • हालाँकि, जन्म प्रमाण पत्र पर उसके लिंग और नाम में परिवर्तन किये जाने का अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया।
    • लैगिंक डिस्फोरिया का तात्पर्य उस मनोवैज्ञानिक स्थिति से है जिसमें संबद्ध व्यक्ति का जन्म के समय निर्धारित लिंग उसकी लिंग पहचान से मेल नहीं खाता।
  • विधिक आपत्ति: जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1969 की धारा 15 के तहत जन्म प्रमाण-पत्र में परिवर्तन की अनुमति केवल तभी प्रदान की जाती है, जब रजिस्टर में जन्म की सूचना गलत हो या कपटपूर्वक या अनुचित तौर पर दर्ज की गई हो।
    • जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र प्रदान करने को नियंत्रित करता है।
  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 की धारा 15 की प्रतिबंधात्मक प्रकृति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान के साथ जीवन जीने के उसके अधिकार का उल्लंघन करती है।
    • उन्होंने यह भी दावा किया कि अलग-अलग पहचान दर्शाने वाले दस्तावेज़ों से दोहरी पहचान बनती है, जिससे उत्पीड़न और भेदभाव की संभावना बढ़ जाती है।
  • उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019: इसमें कहा गया है कि ट्रांसजेंडर लोगों को उनकी पहचान के प्रमाण के रूप में "पहचान का प्रमाण पत्र" जारी किया जा सकता है (धारा 6) जिसे संशोधित किया जा सकता है यदि वे सेक्स-रीअसाइनमेंट सर्जरी (धारा 7) का विकल्प चुनते हैं।
    • कानून में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इस प्रमाण पत्र के अनुसार  ट्रांसजेंडर व्यक्ति का लिंग “सभी आधिकारिक दस्तावेज़ों में दर्ज किया जाएगा।”
  • कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय: न्यायालय ने कहा कि 1969 का अधिनियम एक “सामान्य अधिनियम” है और इसे ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 का अनुपालन करना चाहिये जो एक “विशेष अधिनियम” है।
    • इसने "जेनरेलिया स्पेशलिबस नॉन-डिरोगेंट " के कानूनी सिद्धांत को लागू किया, जिसका अनुवाद है "विशेष सामान्य पर प्रभावी होगा"।
    • न्यायालय ने निर्णय दिया कि रजिस्ट्रार को ट्रांसजेंडर प्रमाण पत्र को स्वीकार करना होगा तथा 1969 के अधिनियम में संशोधन होने तक संशोधित जन्म प्रमाण पत्र जारी करना होगा।
    • सामान्य अधिनियम व्यापक रूप से लागू होते हैं, जैसे 1969 अधिनियम, जबकि विशेष कानून विशिष्ट मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं , जैसे ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम।
  • महत्त्व: यह निर्णय सामान्य कानूनों की तुलना में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिये विशेष रूप से बनाए गए कानूनों की सर्वोच्चता पर ज़ोर देता है।
    • यह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये सभी आधिकारिक दस्तावेज़ों में लैंगिक पहचान की मान्यता का मार्ग प्रशस्त करता है।

नोट: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में ट्रांसजेंडर की कुल जनसंख्या लगभग 4.88 लाख है।

  • सबसे अधिक ट्रांसजेंडर आबादी वाले शीर्ष 3 राज्य उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र हैं।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये सुधारों की समय-सीमा

  • चुनाव आयोग का निर्देश (वर्ष 2009): पंजीकरण फॉर्म को "अन्य" विकल्प शामिल करने के लिये अद्यतन किया गया, जिससे ट्रांससेक्सुअल व्यक्तियों को पुरुष या महिला की पहचान से बचने की अनुमति मिल गई।
  • उच्चतम न्यायालय का निर्णय (वर्ष 2014): राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ मामले, 2014 में, उच्चतम न्यायालय ने ट्रांसजेंडर लोगों को "थर्ड जेंडर" के रूप में मान्यता दी, तथा इसे मानवाधिकार मुद्दा बताया।
  • विधायी प्रयास: ट्रांसजेंडर अधिकारों की रक्षा के लिये  ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 लागू किया गया।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • ट्रांसजेंडर: ट्रांसजेंडर से तात्पर्य उस व्यक्ति से है जिसका लिंग जन्म के समय उसे दिये गए लिंग से मेल नहीं खाता है।
    • इसमें 'इंटरसेक्स भिन्नता वाले व्यक्ति' और 'ट्रांसजेंडर व्यक्ति' जैसे शब्दों को स्पष्ट किया गया है, ताकि सर्जरी या थेरेपी की परवाह किये बगैर ट्रांस मेल/पुरुष और फीमेल/महिलाओं को इसमें शामिल किया जा सके।
  • भेदभाव न करना: शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य देखभाल और सार्वजनिक सुविधाओं में भेदभाव को प्रतिबंधित करता है, और आवागमन, संपत्ति एवं कार्यालय के अधिकारों की पुष्टि करता है।
  • पहचान प्रमाण पत्र: यह विधेयक स्वानुभूत लैंगिक पहचान का अधिकार प्रदान करता है तथा ज़िला मजिस्ट्रेटों को बिना मेडिकल परीक्षण के प्रमाण पत्र जारी करने की आवश्यकता बताता है।
  • चिकित्सा देखभाल: HIV की निगरानी, चिकित्सा देखभाल तक पहुँच, लैंगिक पुनर्निर्धारण सर्जरी तथा बीमा कवरेज़ के साथ चिकित्सा सुनिश्चित करता है।
  • राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर व्यक्ति परिषद्: सरकार को सलाह देने और शिकायतों का समाधान करने के लिये स्थापित।
  • अपराध और दंड: बलपूर्वक श्रम, दुर्व्यवहार और अधिकारों से वंचित करने जैसे अपराधों के लिये कारावास (6 माह से 2 वर्ष) और ज़ुर्माने का प्रावधान है।

भारत में ट्रांसजेंडरों के सामने क्या समस्याएँ हैं?

  • सामाजिक सुभेद्यता: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समाज से बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक भागीदारी के सीमित अवसर, आत्मसम्मान की कमी और अलगाव देखने को मिलता है। 
    • सार्वजनिक स्थान, जैसे शौचालय और आश्रय स्थल, अक्सर ट्रांसजेंडर लोगों को स्थान देने में असफल रहते हैं, जिससे उन्हें उत्पीड़न, हमले और हाशिये पर धकेला जाता है।
  • शिक्षा में भेदभाव: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शिक्षा में उत्पीड़न और बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी पढ़ाई छोड़ने की दर अधिक होती है अर्थात्  उनकी साक्षरता दर 46% है, जबकि राष्ट्रीय औसत 74% है।
  • बेघर होना: परिवारों द्वारा अस्वीकार किये जाने और आवास विकल्पों की कमी के कारण कई ट्रांसजेंडर युवा सड़कों पर रहने को मज़बूर होते हैं, उन्हें दुर्व्यवहार, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और मादक दवाओं के उपयोग का सामना करना पड़ता है।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अक्सर सामाजिक असहिष्णुता और ट्रांसफोबिया के कारण हिंसा, उत्पीड़न और भेदभाव का सामना करना पड़ता है ।
  • ट्रांसफोबिया का तात्पर्य ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण, भय, घृणा या पूर्वाग्रह से है।
  • मनोवैज्ञानिक संकट: ट्रांसजेंडरों के लिये सहायक प्रणालियों की कमी के कारण इनके समक्ष चिंता, अवसाद एवं आत्महत्या के विचारों सहित मनोवैज्ञानिक संकट का जोखिम रहता है।
  • सार्वजनिक प्रतिनिधित्व: मीडिया एवं सार्वजनिक पटल पर ट्रांसजेंडरों के नकारात्मक चित्रण से रूढ़िवादिता के साथ इनके प्रति सामाजिक अस्वीकृति एवं हिंसा को बढ़ावा मिलता है।

आगे की राह

  • सशक्तीकरण एवं विधिक सुधार: सरकार को नीति-निर्माण में अधिक समावेशी दृष्टिकोण अपनाने के साथ यह सुनिश्चित करना चाहिये कि ट्रांसजेंडरों को निर्णय निर्माण प्रक्रिया से  बाहर न रखा जाए।
    • इस समावेशन से उनकी शिकायतों का समाधान करने तथा उनकी सार्वजनिक भागीदारी के अवसर बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
  • शिक्षा तक पहुँच: स्कूलों को विशेष रूप से ट्रांसजेंडर छात्रों को लक्ष्य करते हुए उत्पीड़न-रोधी एवं रैगिंग-रोधी नीतियाँ अपनानी चाहिये ताकि इनके प्रति बहिष्कार तथा उत्पीड़न की घटनाओं में कमी लाई जा सके।
  • सामाजिक सरोकारों पर ध्यान देना: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि इनके लिये निशुल्क विधिक सहायता, सहायक शिक्षा एवं सामाजिक अधिकार जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुँच उपलब्ध हो।
  • आर्थिक अवसर: उदार ऋण सुविधाएँ और वित्तीय सहायता प्रदान करने से ट्रांसजेंडरों को अपना व्यवसाय शुरू करने या उद्यमी के रूप में कॅरियर बनाने में मदद मिलेगी।
  • जागरूकता अभियान: सार्वजनिक शिक्षा अभियानों का उद्देश्य सामाजिक असहिष्णुता को कम करने तथा ट्रांसजेंडर संबंधी मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के साथ नकारात्मक रूढ़ियों को चुनौती देना होना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में ट्रांसजेंडरों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिये ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों पर चर्चा कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में, विधिक सेवा प्रदान करने वाले प्राधिकरण (Legal Services Authorities) निम्नलिखित में से किस प्रकार के नागरिकों को नि:शुल्क विधिक सेवाएँ प्रदान करते हैं?

  1. 1,00,000 रुपए से कम वार्षिक आय वाले व्यक्ति को
  2. 2,00,000 रुपए से कम वार्षिक आय वाले ट्रांसजेंडर को
  3. 3,00,000 रुपए से कम वार्षिक आय वाले अन्य पिछडे़ वर्ग (OBC) के सदस्य को
  4. सभी वरिष्ठ नागरिकों को

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 1 और 4

उत्तर: (a)

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