बिहार के लिये विशेष श्रेणी का दर्जा | बिहार | 24 Mar 2025
चर्चा में क्यों?
बिहार के मुख्यमंत्री ने 16वें वित्त आयोग के समक्ष राज्य को विशेष श्रेणी का दर्ज़ा (SCS) दिये जाने की लंबे समय से चली आ रही मांग को दोहराया, जिससे राज्य को केंद्र से मिलने वाले कर राजस्व में वृद्धि होगी।
मुख्य बिंदु
- विशेष श्रेणी का दर्जा:
- ऐतिहासिक एवं संरचनात्मक चुनौतियाँ: बिहार को महत्त्वपूर्ण आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें औद्योगिक विकास का अभाव एवं सीमित निवेश के अवसर शामिल हैं।
- राज्य के विभाजन के परिणामस्वरूप अधिकांश उद्योग झारखंड में स्थानांतरित हो गए, जिससे बिहार में रोज़गार एवं आर्थिक विकास की समस्याओं में वृद्धि हुई है।
- प्राकृतिक आपदाएँ: राज्य उत्तरी क्षेत्र में बाढ़ तथा दक्षिणी भाग में गंभीर सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहा है।
- इन आपदाओं की पुनरावृत्ति से कृषि गतिविधियाँ बाधित होती हैं, विशेषकर सिंचाई सुविधाओं के मामले में और साथ जल आपूर्ति भी अपर्याप्त रहती है जिससे आजीविका एवं आर्थिक स्थिरता प्रभावित होती है।
- बुनियादी ढाँचे का अभाव: बिहार का अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा राज्य के समग्र विकास में बाधा उत्पन्न करता है, जिसमें अव्यवस्थित सड़क नेटवर्क, सीमित स्वास्थ्य सेवा पहुँच एवं शैक्षणिक सुविधाओं का अभाव आदि चुनौतियाँ शामिल हैं।
- वर्ष 2013 में केंद्र द्वारा गठित रघुराम राजन समिति ने बिहार को "अल्प विकसित श्रेणी" में रखा।
- निर्धनता तथा सामाजिक विकास: बिहार में निर्धनता दर उच्च है तथा यहाँ बड़ी संख्या में परिवार गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं।
- नीति आयोग के एक सर्वेक्षण के अनुसार बिहार, निर्धन राज्यों की श्रेणी में शीर्ष स्थान पर है, जहाँ वर्ष 2022-23 में बहुआयामी निर्धनता 26.59% थी, जो राष्ट्रीय औसत 11.28% की तुलना में अत्यधिक है।
- बिहार की प्रतिव्यक्ति GDP वर्ष 2022-23 के लिये राष्ट्रीय औसत 1,69,496 रुपए की तुलना में मात्र 60,000 रुपए है।
विशेष श्रेणी का दर्ज़ा
- परिचय:
- विशेष श्रेणी का दर्ज़ा (SCS) केंद्र द्वारा भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों के विकास में सहायता के लिये प्रदान किया जाने वाला एक वर्गीकरण है।
- संविधान SCS के लिये प्रावधान नहीं करता है और यह वर्गीकरण बाद में 1969 में पाँचवें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर किया गया था।
- प्रथमतः वर्ष 1969 में जम्मू-कश्मीर, असम और नगालैंड को यह दर्ज़ा प्रदान किया गया था। तेलंगाना भारत का नवीनतम राज्य है जिसे यह दर्ज़ा प्राप्त हुआ है।
- SCS, विशेष स्थिति से भिन्न है जो कि उन्नत विधायी तथा राजनीतिक अधिकार प्रदान करता है, जबकि SCS केवल आर्थिक एवं वित्तीय पहलुओं से संबंधित है।
- उदाहरण के लिये अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से पहले जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्ज़ा प्राप्त था।
- दर्ज़ा प्राप्त करने के मापदंड (गाडगिल सिफारिश पर आधारित):
- पहाड़ी इलाका
- कम जनसंख्या घनत्व और/या जनजातीय जनसंख्या का बड़ा हिस्सा
- पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर सामरिक स्थिति
- आर्थिक तथा आधारभूत संरचना में पिछड़ापन
- राज्य के वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति
- लाभ:
- अन्य राज्यों के मामले में 60% या 75% की तुलना में केंद्र प्रायोजित योजना में आवश्यक निधि का 90% विशेष श्रेणी के राज्यों को भुगतान किया जाता है, जबकि शेष निधि राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की जाती है।
- वित्तीय वर्ष में अव्ययित निधि व्यपगत नहीं होती है और इसे आगे बढ़ाया जाता है।
- इन राज्यों को उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क, आयकर एवं निगम कर में महत्त्वपूर्ण रियायतें प्रदान की जाती हैं।
- केंद्र के सकल बजट का 30% विशेष श्रेणी के राज्यों को प्रदान किया जाता है।
नगर निगम बनेंगे सोलर सिटी | उत्तर प्रदेश | 24 Mar 2025
चर्चा में क्यों?
13 मार्च 2025 को गोरखपुर में आयोजित राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत हुई नेशनल कॉन्फ्रेंस में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के सभी 17 नगर निगमों को सोलर सिटी के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया।
मुख्य बिंदु
- मुद्दे के बारे में:
- इस पहल के तहत नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा, जिससे ऊर्जा आत्मनिर्भरता और पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित हो सके।
- सरकार सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना, सौर स्ट्रीट लाइट्स और सौर जल-तापन प्रणाली जैसी योजनाओं को लागू करेगी।
- इस योजना से ऊर्जा लागत में कमी आएगी और हरित ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा।
- यह पहल प्रधानमंत्री मोदी द्वारा वर्ष 2070 तक 'नेट-ज़ीरो' लक्ष्य को प्राप्त करने मे सहायक होगी।
- उत्तर प्रदेश में निम्नलिखित ज़िलों में नगर निगम हैं:
क्रमांक
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नगर निगम
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क्रमांक
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नगर निगम
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1
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कानपुर
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10
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मुरादाबाद
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2
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लखनऊ
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11
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सहारनपुर
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3
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गाज़ियाबाद
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12
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गोरखपुर
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4
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आगरा
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13
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फिरोज़ाबाद
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5
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वाराणसी
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14
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मथुरा
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6
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प्रयागराज
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15
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अयोध्या
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7
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मेरठ
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16
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झाँसी
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8
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बरेली
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17
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शाहजहाँपुर
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9
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अलीगढ़
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- सोलर सिटी
- यह एक ऐसा शहर होता है, जो अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को मुख्य रूप से सौर ऊर्जा से पूरा करता है। इसमें बिजली उत्पादन, परिवहन, जल आपूर्ति और अन्य बुनियादी सेवाएँ सौर ऊर्जा पर निर्भर होती हैं। इस अवधारणा का मुख्य उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का अधिकतम उपयोग करना और कार्बन उत्सर्जन को कम करना है।
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP):
- परिचय: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) का उद्देश्य सभी हितधारकों को शामिल करके और आवश्यक कार्रवाई सुनिश्चित कर वायु प्रदूषण को व्यवस्थित रूप से संबोधित करना है।
- NCAP के तहत शहर विशिष्ट कार्य योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये 131 शहरों की पहचान की गई है।
- लक्ष्य: समयबद्ध कमी के लक्ष्य के साथ वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये एक राष्ट्रीय ढाँचा तैयार करने का यह देश में पहला प्रयास है।
- इसका लक्ष्य अगले पाँच वर्षों (तुलना के लिये आधार वर्ष- 2017) में मोटे (PM10) और महीन कणों (PM2.5) की सांद्रता में कम-से-कम 20% की कमी करना है।
- निगरानी: MoEFCC द्वारा "प्राण" पोर्टल भी लॉन्च किया गया है:
- NCAP के कार्यान्वयन की निगरानी करना।
- शहरों की कार्य योजनाओं और कार्यान्वयन की स्थिति की निगरानी करना।
- शहरों द्वारा अपनाई गई सर्वोत्तम प्रथाओं को दूसरों के अनुकरण के लिये साझा करना।
भूमि प्रशासन पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला | हरियाणा | 24 Mar 2025
चर्चा में क्यों?
24 से 29 मार्च, 2025 तक पंचायती राज मंत्रालय, हरियाणा लोक प्रशासन संस्थान (HIPA) के सहयोग से, हरियाणा के गुरुग्राम में HIPA परिसर में “भूमि प्रशासन पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला” की मेज़बानी कर रहा है।
मुख्य बिंदु
- वैश्विक भागीदारी और फोकस क्षेत्र:
- कार्यशाला में अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया के 22 देशों के प्रतिनिधि भाग लेंगे।
- प्रतिभागी विश्व भर में भूमि प्रशासन की चुनौतियों के समाधान के लिये नवीन समाधान तलाशेंगे।
- भारत की अग्रणी स्वामित्व योजना, जो ग्रामीण बसे हुए क्षेत्रों का मानचित्रण करने और कानूनी संपत्ति स्वामित्व दस्तावेज़ प्रदान करने के लिये ड्रोन तकनीक का उपयोग करती है, का प्रदर्शन किया जाएगा।
- तकनीकी एवं क्षेत्र सत्र:
- सत्रों में ड्रोन आधारित भूमि सर्वेक्षण तकनीक, उच्च-रिज़ॉल्यूशन मानचित्रण और बेहतर भूमि प्रशासन के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों को शामिल किया जाएगा।
- प्रतिभागियों को ड्रोन सर्वेक्षण विधियों, डाटा प्रसंस्करण, भू-सत्यापन और GIS (भौगोलिक सूचना प्रणाली) एकीकरण के व्यावहारिक प्रदर्शन में भाग लेना होगा।
- भारतीय सर्वेक्षण विभाग व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने के लिये एक गाँव में लाइव ड्रोन सर्वेक्षण प्रदर्शन आयोजित करेगा।
- क्षेत्रीय दौरे और प्रदर्शनियों से आधुनिक भूमि प्रशासन प्रौद्योगिकियों के बारे में वास्तविक जानकारी मिलेगी।
- दस ड्रोन विक्रेता ड्रोन आधारित भूमि मानचित्रण और सर्वेक्षण तकनीकों में नवाचारों को प्रदर्शित करने वाले स्टॉल लगाएंगे।
- उद्योग जगत के नेताओं की भागीदारी:
- ज्ञान साझेदारों में भारतीय सर्वेक्षण विभाग, राज्य भूमि राजस्व विभाग, राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र, जियो-स्पेशियल वर्ल्ड, हेक्सागन, ट्रिम्बल, एरेओ, मार्वेल जियोस्पेशियल, आइडिया फोर्ज़ टेक और एडब्ल्यूएस शामिल हैं।
- कक्षा प्रदर्शन में निम्नलिखित शामिल होंगे:
- भूमि प्रशासन में ड्रोन के उपयोग के मामले।
- ऑर्थो-रेक्टीफाइड इमेजिंग और फीचर-एक्सट्रेक्टेड मैपिंग।
- उच्च-रिज़ॉल्यूशन मानचित्रण और संपत्ति कार्ड को अंतिम रूप देने के लिये ग्राउंड सत्यापन प्रौद्योगिकियाँ।
- वैश्विक भूमि प्रशासन चुनौती का समाधान:
- विश्व बैंक की 2017 की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक आबादी के केवल 30% लोगों के पास कानूनी रूप से पंजीकृत भूमि स्वामित्व है।
- भारत की स्वामित्व योजना वैश्विक भूमि प्रशासन के लिये एक मॉडल प्रदान करती है, जो 1:500 रिज़ॉल्यूशन पर 5 सेमी सटीकता मानचित्रण प्रदान करती है।
- कार्यशाला का उद्देश्य भाग लेने वाले देशों को भारत के मॉडल से सीख लेकर भूमि अधिकारों से संबंधित सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने में सहायता करना है।
स्वामित्व योजना
- परिचय:
- स्वामित्व का तात्पर्य है गाँवों का सर्वेक्षण और ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत प्रौद्योगिकी के साथ मानचित्रण।
- यह एक केंद्र क्षेत्र की योजना है जिसे 24 अप्रैल 2021 को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय स्तर पर लॉन्च किया गया था।
- उद्देश्य:
- ग्रामीण भारत के लिये एकीकृत संपत्ति सत्यापन समाधान प्रदान करना।
- विशेषताएँ:
- ग्रामीण आवासीय क्षेत्रों का सीमांकन ड्रोन सर्वेक्षण और CORS (निरंतर प्रचालन संदर्भ स्टेशन) नेटवर्क का उपयोग करके किया जाएगा, जो 5 सेमी की मानचित्रण सटीकता प्रदान करता है।
- इससे गाँवों के बसे हुए ग्रामीण क्षेत्रों में मकान रखने वाले ग्रामीण परिवार स्वामियों को 'अधिकारों का अभिलेख' उपलब्ध हो सकेगा।
- यह 2021-2025 के दौरान पूरे देश के लगभग 6.62 लाख गाँवों को कवर करेगा।
भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम
- वर्ष 1964 में शुरू किया गया ITEC कार्यक्रम 160 साझेदार देशों तक फैला हुआ है, जो विविध विषयों में अल्पकालिक प्रशिक्षण प्रदान करता है।
- पाठ्यक्रम में इंजीनियरिंग, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य और महिला सशक्तीकरण जैसे क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जो वैश्विक स्तर पर समग्र कौशल संवर्द्धन में योगदान देते हैं।
गिवअप अभियान | राजस्थान | 24 Mar 2025
चर्चा में क्यों?
राजस्थान में ‘गिवअप अभियान’ के तहत 13 लाख से ज्यादा सक्षम लाभार्थियों ने स्वेच्छा से खाद्य सुरक्षा योजना से अपना नाम हटाया, जिससे सरकार पर 246 करोड़ रुपये का वित्तीय भार कम हुआ।
मुख्य बिंदु
- गिवअप अभियान के बारे में:
- राजस्थान सरकार द्वारा ‘गिवअप अभियान’ की शुरुआत नवंबर 2024 में की गई थी, जिसका उद्देश्य सक्षम एवं अपात्र लोगों को खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ स्वेच्छा से छोड़ने के लिये प्रेरित करना था।
- यह अभियान उन लोगों को लक्षित करता है जो गरीबी रेखा से ऊपर उठ चुके हैं और अब इस योजना की पात्रता नहीं रखते।
- अब तक इस अभियान के तहत 13 लाख 58 हज़ार 498 लोगों ने स्वेच्छा से खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ छोड़ दिया है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (NFSA): यह खाद्य सुरक्षा के प्रति दृष्टिकोण में एक आमूलचूल परिवर्तन को इंगित करता है जहाँ अब यह कल्याण (welfare) के बजाए अधिकार-आधारित दृष्टिकोण (rights-based approach) में बदल गया है।
- NFSA निम्नलिखित माध्यमों से ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% को दायरे में लेता है:
- अंत्योदय अन्न योजना: इसमें निर्धनतम आबादी को दायरे में लिया गया है जो प्रति परिवार प्रति माह 35 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त करने के हकदार हैं।
- प्राथमिकता वाले परिवार (Priority Households- PHH):PHH श्रेणी के अंतर्गत शामिल परिवार प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त करने के हकदार हैं।
- NFSA निम्नलिखित माध्यमों से ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% को दायरे में लेता है:
- राशन कार्ड जारी करने के मामले में परिवार की 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की सबसे बड़ी आयु की महिला का घर की मुखिया होना अनिवार्य किया गया है।
- इसके अलावा, अधिनियम में 6 माह से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये विशेष प्रावधान किया गया है, जहाँ उन्हें एकीकृत बाल विकास सेवा (Integrated Child Development Services- ICDS) केंद्रों (जिन्हें आंँगनवाड़ी केंद्रों के रूप में भी जाना जाता है) के व्यापक नेटवर्क के माध्यम से निःशुल्क पौष्टिक आहार प्रदान करना सुनिश्चित किया गया है
अंत्योदय अन्न योजना
- ‘अंत्योदय अन्न योजना’ की शुरुआत दिसंबर 2000 में की गई थी।
- इस योजना का उद्देश्य ‘गरीबी रेखा’ से नीचे रह रही आबादी की खाद्यान्न की कमी को पूरा करना था।
- शुरुआत में इस योजना के तहत लाभार्थी परिवार को प्रतिमाह 25 किग्रा. खाद्यान्न दिये जाने का प्रावधान था जिसे अप्रैल 2002 में बढ़ाकर 35 किग्रा. कर दिया गया।
किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) के अंतर्गत जायद फसलें | उत्तर प्रदेश | 24 Mar 2025
चर्चा में क्यों?
19 मार्च, 2025 को उत्तर प्रदेश सरकार ने जायद की 9 फसलों को किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के अंतर्गत शामिल करने का निर्णय लिया।
मुख्य बिंदु
- जायद फसलों के बारे में:
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जायद फसलें वे फसलें होती हैं, जो रबी और खरीफ मौसम के बीच की अवधि में उगाई जाती हैं। इन फसलों में तेज गर्मी और शुष्क हवाएँ सहन करने की क्षमता अधिक होती है।
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जायद की प्रमुख फसलों में खीरा, कद्दू, करेला, तरबूज, ककड़ी, गन्ना और मूँगफली जैसी फसलें शामिल हैं।
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उत्तर भारत में जायद की फसल आमतौर पर मार्च-अप्रैल में बोई जाती है।
- किसान अब मूंगफली, मक्का, मूंग, उड़द, पपीता, लीची, तरबूज, खरबूज और आंवला जैसी फसलों के लिये KCC और फसल बीमा योजना का लाभ उठा सकेंगे।
- इससे उन्हें कृषि कार्यों के लिये आसान ऋण और प्राकृतिक आपदाओं से फसल क्षति पर क्षतिपूर्ति मिलेगी।
- KCC के तहत किसानों को उनकी जरूरत के अनुसार कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है। यदि किसान समय पर ऋण चुकता करते हैं तो 3% तक ब्याज में छूट भी दी जाती है।
- PMFBY के तहत यदि किसी किसान की फसल अकाल, अत्यधिक बारिश या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण नष्ट हो जाती है, तो उसे सरकार द्वारा बीमा राशि के रूप में मुआवजा दिया जाता है। इससे किसान आर्थिक संकट से बच सकते हैं।
किसान क्रेडिट कार्ड:
- परिचय:
- किसान क्रेडिट कार्ड योजना की शुरुआत वर्ष 1998 में की गई थी। किसानों की ऋण आवश्यकताओं (कृषि संबंधी खर्चों) की पूर्ति के लिये पर्याप्त एवं समय पर ऋण की सुविधा प्रदान करना, साथ ही आकस्मिक खर्चों के अलावा सहायक कार्यकलापों से संबंधित खर्चों की पूर्ति करना। यह ऋण सुविधा एक सरल कार्यविधि के माध्यम से यथा- आवश्यकता के आधार पर प्रदान की जाती है।
- वर्ष 2004 में इस योजना को किसानों की निवेश ऋण आवश्यकता जैसे संबद्ध और गैर-कृषि गतिविधियों के लिये आगे बढ़ाया गया था।
- बजट-2018-19 में सरकार ने मत्स्य पालन और पशुपालन किसानों को उनकी कार्यशील पूंजी की ज़रूरतों को पूरा करने में मदद के लिये किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) की सुविधा के विस्तार की घोषणा की।
- कार्यान्वयन एजेंसियाँ:
- उद्देश्य:
- फसलों की खेती के लिये अल्पकालिक ऋण आवश्यकताओं को पूरा करना।
- विपणन ऋण का उत्पादन करना।
- किसान परिवारों की खपत आवश्यकताएँ।
- कृषि संपत्ति और कृषि से संबद्ध गतिविधियों के रखरखाव के लिये कार्यशील पूंजी।
- कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिये निवेश ऋण की आवश्यकता।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY):
- परिचय:
- PMFBY को वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया तथा इसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रशासित किया जा रहा है।
- इसने राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (NAIS) और संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (MNAIS) को परिवर्तित कर दिया।
- पात्रता:
- अधिसूचित क्षेत्रों में अधिसूचित फसल उगाने वाले पट्टेदार/जोतदार किसानों सहित सभी किसान कवरेज के लिये पात्र हैं।
- उद्देश्य:
- प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और रोगों या किसी भी तरह से फसल के खराब होने की स्थिति में एक व्यापक बीमा कवर प्रदान करना ताकि किसानों की आय को स्थिर करने में मदद मिल सके।
- खेती में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये किसानों की आय को स्थिर करना।
- किसानों को नवीन और आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
- कृषि क्षेत्र के लिये ऋण का प्रवाह सुनिश्चित करना।
- बीमा किस्त:
- इस योजना के तहत किसानों द्वारा दी जाने वाली निर्धारित बीमा किस्त/प्रीमियम- खरीफ की सभी फसलों के लिये 2% और सभी रबी फसलों के लिये 1.5% है।
- वार्षिक वाणिज्यिक तथा बागवानी फसलों के मामले में बीमा किस्त 5% है।