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सूरजकुंड मेला 2025
चर्चा में क्यों?
सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला 7 से 23 फरवरी 2025 के बीच फरीदाबाद में आयोजित किया जाएगा। अधिकारियों द्वारा मरम्मत कार्य पर लगभग 1.50 करोड़ रुपए खर्च किये जाने की संभावना है।
मुख्य बिंदु
- सूरजकुंड मेला:
- यह हमारे शिल्पकारों को कला प्रेमियों से जोड़ने का एक प्रभावी मंच है। यह मेला एक कला प्रदर्शनी और एक व्यापार केंद्र दोनों है।
- यह मेला भारत की हस्तशिल्प, हथकरघा और सांस्कृतिक विरासत की समृद्धि और विविधता को प्रदर्शित करता है।
- विभाग 2025 में मेला क्षेत्र का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिसमें कारीगरों और प्रतिभागियों के लिये झोपड़ियों की संख्या बढ़ाने पर ज़ोर दिया जाएगा।
- वर्ष 2024 में, प्राधिकारियों ने लगभग 1,150 झोपड़ियाँ उपलब्ध कराईं, जिनमें 1,500 से अधिक स्वदेशी और 250 विदेशी शिल्पकारों को रहने की सुविधा दी गई।
- अतिरिक्त झोपड़ियों की संख्या अभी निर्धारित नहीं की गई है और यह खुली जगह की उपलब्धता पर निर्भर करेगी।
- मेले की बढ़ती लोकप्रियता और भागीदारी के चलते बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये मौसम प्रतिरोधी डिज़ाइन वाली अतिरिक्त झोपड़ियों की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
- प्राधिकारियों ने टिकट और पार्किंग सुविधाओं के लिये दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं।
- साझेदार राष्ट्र और विषय:
- बिम्सटेक देश (बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्याँमार, थाईलैंड, नेपाल और श्रीलंका) इस आयोजन के भागीदार राष्ट्र बने रहेंगे।
- आगामी मेले के लिये थीम राज्य की घोषणा अभी की जानी है, हालाँकि असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा और मिज़ोरम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों पर कला और शिल्प के प्रदर्शन के लिये विशेष ध्यान दिया जाएगा।
बिम्सटेक
- बिम्सटेक एक क्षेत्रीय संगठन है जिसमें 7 सदस्य देश शामिल हैं- बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्याँमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड।
- इसकी स्थापना 1997 में बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के देशों के बीच बहुमुखी तकनीकी और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
- बिम्सटेक द्वारा कवर किया गया क्षेत्र लगभग 1.5 बिलियन लोगों का घर है, जिसका संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 3.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
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हरियाणा और उत्तर प्रदेश में कम जलापूर्ति
चर्चा में क्यों?
हिमाचल प्रदेश के ऊपरी पहाड़ी इलाकों में वर्षा की कमी के कारण यमुना का जलस्तर काफी कम हो गया है, जिससे हरियाणा और उत्तर प्रदेश में जलापूर्ति में भारी कमी आ गई है।
मुख्य बिंदु
- हथिनीकुंड बैराज में जल स्तर:
- हथिनीकुंड बैराज में जल स्तर बढ़ गया, लेकिन वृद्धि के बावजूद, वर्तमान आपूर्ति मांग से काफी कम है, जिससे सिंचाई, पेयजल आपूर्ति और जल विद्युत उत्पादन प्रभावित हो रहा है।
- पश्चिमी यमुना नहर (WJC) की कमी:
- WJC की जल मांग 9,000 क्यूसेक है, लेकिन केवल 1,756 क्यूसेक ही छोड़ा गया।
- यह नहर दिल्ली को पेयजल उपलब्ध कराती है तथा दक्षिणी हरियाणा में फसलों की सिंचाई करती है तथा दोनों ही क्षेत्र जल की कमी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
- पूर्वी यमुना नहर (EJC) की कमी:
- उत्तर प्रदेश को आपूर्ति करने वाली EJC को 1,500 क्यूसेक पानी की आवश्यकता है, लेकिन उसे केवल 182 क्यूसेक ही प्राप्त हुआ।
- नदी में प्रवाह कम होने के कारण EJC को जलापूर्ति रोक दी गई, जिससे जलस्तर घटकर 1,142 क्यूसेक रह गया।
- जलविद्युत परियोजनाओं पर प्रभाव:
- यमुना में जल की कमी के कारण नैनो वाली, भूडकलां, बेगमपुर और दादुपुर गाँवों में जलविद्युत परियोजनाएँ प्रभावित हुई हैं।
यमुना नदी
- परिचय:
- यमुना नदी उत्तरी भारत में गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है।
- यह यमुना-गंगा मैदान का एक अभिन्न हिस्सा है, जो दुनिया के सबसे विस्तृत जलोढ़ मैदानों में से एक है।
- स्रोत:
- इसका स्रोत निचली हिमालय पर्वतमाला में बंदरपूछ शिखरों के दक्षिण-पश्चिमी किनारे पर 6,387 मीटर की ऊँचाई पर यमुनोत्री ग्लेशियर में है।
- बेसिन:
- यह नदी उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली से होकर बहने के बाद उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संगम (जहाँ कुंभ मेला आयोजित होता है) पर गंगा से मिलती है।
- महत्त्वपूर्ण बाँध:
- लखवार-व्यासी बाँध (उत्तराखंड), ताजेवाला बैराज बाँध (हरियाणा) आदि।
- महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ: चंबल, सिंध, बेतवा और केन।
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यूरिया-कुशल गेहूँ की किस्में
चर्चा में क्यों?
भारतीय और जापानी संस्थान जैविक नाइट्रीकरण अवरोध (BNI) प्रौद्योगिकी का उपयोग करके भारत की पहली गेहूँ किस्म विकसित करने के लिये सहयोग कर रहे हैं, जो सतत् कृषि की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- इस परियोजना में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)- केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (CSSRI), करनाल शामिल है।
मुख्य बिंदु
- उद्देश्य:
- इन किस्मों का उद्देश्य यूरिया पर निर्भरता को कम करना, पर्यावरणीय स्थिरता, कृषि उत्पादकता और यूरिया सब्सिडी के वित्तीय बोझ जैसी चुनौतियों का समाधान करना है।
- सहयोगात्मक प्रयास:
- यह परियोजना भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR), भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) और बोरलॉग दक्षिण एशिया संस्थान (BISA) की संयुक्त पहल है।
- यह जापान अंतर्राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अनुसंधान केंद्र (JIRCAS) के सहयोग से किया जाता है तथा जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (JICA) द्वारा वित्त पोषित होता है।
- BNI की परिवर्तनकारी क्षमता:
- CSSRI के वैज्ञानिकों के अनुसार, BNI प्रौद्योगिकी उपज या गुणवत्ता से समझौता किये बिना नाइट्रोजन उर्वरक की मांग को कम कर सकती है।
- उन्होंने कहा कि BNI भूजल में नाइट्रोजन रिसाव को न्यूनतम करके सतत् कृषि का समर्थन करता है, जिससे मृदा की उर्वरता और जल संसाधनों का संरक्षण होता है।
- आशाजनक परिणाम:
- IIWBR के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि प्रारंभिक प्रयोगों में यूरिया के उपयोग में 15-20% की कमी आई, लेकिन इससे उपज या गुणवत्ता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
- BNI-सक्षम गेहूँ किस्मों के विकास के लिये प्रजनन रणनीति अच्छी तरह से आगे बढ़ रही है।
- भविष्य के निहितार्थ:
- भारत और जापान के बीच यह महत्त्वपूर्ण सहयोग गेहूँ की खेती में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा, यूरिया पर निर्भरता कम करेगा और वैश्विक कृषि चुनौतियों का समाधान करेगा।
जैविक नाइट्रीकरण अवरोध (BNI)
- यह एक प्राकृतिक पादप प्रक्रिया है जो कृषि प्रणालियों में नाइट्रीकरण को विनियमित करने और नाइट्रोजन-उपयोग दक्षता में सुधार करने में मदद कर सकती है।
- इससे सतत् कृषि प्रणालियों को विकसित करने में सहायता मिल सकती है जो उत्पादक तो होंगी लेकिन पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुँचाएंगी।
- नाइट्रीकरण के उच्च स्तर से नाइट्रोजन निक्षालन, विनाइट्रीफिकेशन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन हो सकता है।
यूरिया पर सब्सिडी
- भारत में यूरिया सबसे ज़्यादा उत्पादित, आयातित, उपभोग किया जाने वाला और शारीरिक रूप से विनियमित उर्वरक है। इसमें केवल कृषि उपयोग के लिये सब्सिडी दी जाती है।
- केंद्र सरकार प्रत्येक संयंत्र में उत्पादन लागत के आधार पर उर्वरक निर्माताओं को यूरिया पर सब्सिडी का भुगतान करती है और इकाइयों को सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उर्वरक बेचना होता है।