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लद्दाख में प्राचीन जलवायु रहस्य का अनावरण

  • 01 Jun 2023
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विहिमनदन, मानसून, अंतः उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ), अल नीनो, हिमालयी क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन

मेन्स के लिये:

जलवायु अनुसंधान में लद्दाख का महत्त्व

चर्चा में क्यों?  

वैज्ञानिकों ने लगभग 19.6 से 6.1 हज़ार वर्ष पहले अंतिम विहिमनदन अवधि के दौरान जलवायु परिवर्तन को समझने में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है।  

  • लद्दाख में सिंधु नदी घाटी में प्राचीन झीलों से तलछट जमाव का अध्ययन करके वैज्ञानिकों ने जलवायु रिकॉर्ड का पुनर्निर्माण किया है तथा इस क्षेत्र के जलवायु इतिहास पर प्रकाश डाला है।

शोध के प्रमुख निष्कर्ष:  

  •  अनुसंधान क्रियाविधि:  
    • वैज्ञानिकों ने सिंधु नदी के किनारे 3287 मीटर की ऊँचाई पर पाई गई 18 मीटर मोटी तलछट जमाव के नमूने लिये।
    • शोधकर्त्ताओं ने रंग, बनावट, कण का आकार, कण की संरचना, कुल ऑर्गेनिक कार्बन और चुंबकीय मापदंडों जैसी भौतिक विशेषताओं की जाँच करते हुए नमूनों का सावधानीपूर्वक प्रयोगशाला में गहन विश्लेषण किया।
      • इन मापदंडों का उपयोग पैलियोलेक तलछट जमाव से पिछली जलवायु स्थितियों के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिये किया गया था।
  • जलवायु विकास से संबंधित प्रमुख निष्कर्ष: 
    • 19.6 से 11.1 हज़ार वर्ष पहले के बीच पश्चिमी परिसंचरण के प्रभाव के कारण ठंडी शुष्क जलवायु इस क्षेत्र पर हावी थी
    • 11.1 से 7.5 हज़ार वर्ष पहले मानसूनी दबाव जलवायु का प्राथमिक चालक बन गया जिस कारण मानसून की एक मज़बूत अवधि देखी गई।
    • बाद में कक्षीय रूप से नियंत्रित सौर आतपन ने इंटर ट्रॉपिकल कन्वर्ज़ेंस ज़ोन (ITCZ) की स्थिति और वायुमंडलीय परिसंचरण की परिवर्तनशीलता को प्रभावित करके जलवायु को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • मध्य-होलोसीन (7.5 से 6.1 हजार वर्ष पूर्व) के दौरान पछुआ हवाओं ने ताकत हासिल कर ली, जो घटते सूर्यातप, कमज़ोर मानसून और अल नीनो गतिविधियों में वृद्धि के साथ मेल खाता था।
    • यह अध्ययन उच्च रेज़ोल्यूशन और सटीकता के साथ पुरातन जलवायु विविधताओं (पृथ्वी की जलवायु में अतीत में होने वाले भू-वैज्ञानिक परिवर्तन) के पुनर्निर्माण के लिये तलछट के विविध भौतिक मापदंडों का उपयोग करने की क्षमता को भी प्रदर्शित करता है।

जलवायु अनुसंधान में लद्दाख का महत्त्व:

  • उच्च ऊँचाई वाला वातावरण: ट्रांस-हिमालय में स्थित लद्दाख क्षेत्र उत्तरी अटलांटिक और मानसून बलों के बीच एक पर्यावरणीय सीमा के रूप में कार्य करता है।
    • यह क्षेत्र अत्यधिक तापमान, कम ऑक्सीजन स्तर और शुष्क परिस्थितियों की विशेषता है।
    • जलवायु की गतिशीलता और ऐसे उच्च ऊँचाई वाले वातावरण में परिवर्तन का अध्ययन करने से वैज्ञानिकों को दुनिया भर में समान क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है।
  • वायुमंडलीय परिसंचरण का अध्ययन करने हेतु आदर्श:  इसकी भौगोलिक स्थिति इसे पश्चिमी हवाओं और भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून सहित वायुमंडलीय परिसंचरण में विविधताओं का अध्ययन करने के लिये आदर्श बनाती है।
    • ग्लोबल वार्मिंग और क्षेत्रीय जलवायु पैटर्न के लिये इसके प्रभाव के संदर्भ में इन वायुमंडलीय परिसंचरणों की परिवर्तनशीलता को समझना महत्त्वपूर्ण है।
    • तलछटी साक्ष्य : इस क्षेत्र में तलछटी साक्ष्य बड़ी मात्रा में मौजूद हैं जिनका उपयोग प्राचीन जलवायु को समझने के लिये किया जा सकता है। 
  • दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन:  
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि झीलों में निरंतर अवसादन दर देखी जाती है और तलछट की भौतिक एवं रासायनिक विशेषताओं को संरक्षित करती है जो पिछले पर्यावरणीय परिस्थितियों को दर्शाती हैं। 
  • ग्लेशियल रिट्रीट/हिमनद का पीछे हटना: लद्दाख सहित हिमालयी क्षेत्र कई हिमनदों का घर है जो सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के लिये ताज़े जल के महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करते हैं।   
    • जलवायु परिवर्तन से इन हिमनदों के पीछे हटने (निवर्तन) में तेज़ी लाई है, जिससे जल सुरक्षा, नदी के प्रवाह पैटर्न में बदलाव एवं स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र तथा समुदायों पर संभावित प्रभावों के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं। 
      • लद्दाख हिमनद परिवर्तनों की निगरानी और ग्लेशियल रिट्रीट के परिणामों का अध्ययन करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करता है। 
    • इसके अलावा एक हिमनद से अंतर-हिमनदी जलवायु अवधि में संक्रमण बड़े पैमाने पर जलवायु पुनर्गठन पर ज़ोर देता है। इस संक्रमणकालीन चरण के दौरान गतिशीलता को समझना जलवायु विकास को समझने के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
      • लद्दाख जैसे पहाड़ी क्षेत्र विशेष रूप से अपनी अनूठी भू-आकृति संबंधी विशेषताओं के कारण इन परिवर्तनों के लिये अतिसंवेदनशील हैं।

पश्चिमी परिसंचरण:

  • यह दोनों गोलार्द्धों के मध्य अक्षांशों में प्रबल पवनों के पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाह को संदर्भित करता है।
  • यह पृथ्वी के घूर्णन तथा भूमध्य रेखा और ध्रुवों के बीच तापमान के अंतर के कारण होता है। पश्चिमी पवनें मौसम पैटर्न तथा क्षेत्रों में गर्मी, नमी एवं प्रदूषकों के परिवहन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

कक्षीय रूप से नियंत्रित सौर आतपन: 

  • यह सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा में परिवर्तन के कारण पृथ्वी पर प्राप्त होने वाले सौर विकिरण की मात्रा में भिन्नता को संदर्भित करता है।
  • ये कक्षीय विविधताएँ दीर्घावधि (जैसे दसियों हज़ार वर्ष) में होती हैं तथा जलवायु पैटर्न को प्रभावित कर सकती हैं।

अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र:

  • ITCZ भूमध्य रेखा के पास एक निम्न दबाव क्षेत्र है जहाँ उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध से आने वाली व्यापारिक पवनें मिलती हैं।
  • यह प्रचुर वर्षा की विशेषता है और उष्णकटिबंधीय वर्षावनों तथा मानसून प्रणालियों के निर्माण के लिये ज़िम्मेदार है।
    • ITCZ बदलते मौसम के साथ सूर्य की चरम स्थिति के बाद उत्तर और दक्षिण की ओर पलायन करता है।

अल-नीनो गतिविधियाँ: 

  • अल-नीनो एक जलवायु घटना है जो उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में होती है। इसमें समुद्र की सतह के तापमान का गर्म होना, वायुमंडलीय परिसंचरण और मौसम प्रणालियों के सामान्य पैटर्न को बाधित करना शामिल है।
  • अल-नीनो की घटनाओं के दौरान व्यापारिक पवनें कमज़ोर हो जाती हैं और पश्चिमी प्रशांत महासागर से गर्म जल पूर्व की ओर बहता है जिससे वैश्विक स्तर पर वर्षा के पैटर्न में बदलाव होता है। अल-नीनो का मौसम, कृषि, मत्स्य पालन तथा पारिस्थितिक तंत्र पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित ‘इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (2017)

  1. IOD परिघटना, उष्णकटिबंधीय पश्चिमी हिंद महासागर एवं उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर के बीच सागर पृष्ठ तापमान के अंतर से विशेषित होती है।
  2. IOD परिघटना मानसून पर अल-नीनो के असर को प्रभावित कर सकती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b) 


प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2019) 

  हिमनद         नदी

बंदरपूँछ          : यमुना
2. बारा शिग्री   : चेनाब
3. मिलाम       : मंदाकिनी
4. सियाचिन     : नुब्रा
5. जेमू          : मानस

उपर्युक्त में से कौन-से युग्म सही सुमेलित हैं?

(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2 और 5   
(d) केवल 3 और 5

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • हिमालय के गढ़वाल मंडल में यमुना नदी द्रोणी का एक महत्त्वपूर्ण हिमनद है, जिसे बंदरपूँछ के नाम से जाना जाता है। यह हिमनद बंदरपूँछ पश्चिम, खतलिंग चोटी और बंदरपूँछ चोटी के उत्तरी ढलानों पर 12 किमी. तक विस्तृत है, यह हिमनद तीन हिमगह्वर (सर्क) द्वारा निर्मित होता है जो बाद में यमुना नदी में मिलता है। अत: युग्म 1 सही सुमेलित है।
  • बारा शिग्री हिमाचल प्रदेश की चंद्र घाटी के लाहौल स्पीति क्षेत्र में स्थित सबसे बड़ा हिमनद है। जो कि लगभग 30 किलोमीटर तक विस्तृत है एवं गंगोत्री के बाद हिमालय का दूसरा सबसे विस्तृत हिमनद है। इसका प्रवाह उत्तर की ओर है और यह चिनाब नदी को जल प्रदान करता है। अतः युग्म 2 सही सुमेलित  है।
  • उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले के मुनस्यारी में मिलम हिमनद गोरी गंगा नदी का स्रोत है, न कि मंदाकिनी नदी का। गोरी गंगा भी काली नदी की एक महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है। अतः युग्म 3 सही सुमेलित नहीं है।
  • लगभग 5,400 मीटर (17,700 फीट) की ऊँचाई पर कश्मीर में अवस्थित सियाचिन हिमनद एक निषिद्ध क्षेत्र है। अत्यधिक कम ऊँचाई पर इस हिमनद का प्रभाव सौम्य है: यह नुब्रा नदी का स्रोत है, जो सिंधु नदी की एक सहायक नदी है, जो कि पाकिस्तान में प्रवाहित होती हुई अरब सागर में  मिलती है। अतः युग्म 4 सही सुमेलित है।
  • ज़ेमू हिमनद सिक्किम में अवस्थित है एवं पूर्वी हिमालय का सबसे बड़ा हिमनद है। यह कंचनजंगा के आधार पर अवस्थित है और मानस नदी के स्रोतों में से एक है, न कि तीस्ता नदी का। तीस्ता ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी है। अतः युग्म 5 सही सुमेलित नहीं है।

मेन्स:

प्रश्न. विश्व की प्रमुख पर्वत शृंखलाओं के संरेखण का संक्षिप्त उल्लेख कीजिये तथा उनके स्थानीय मौसम पर पड़े प्रभावों का सोदाहरण वर्णन कीजिये। (2021) 

प्रश्न. असामान्य जलवायवी घटनाओं में से अधिकांश अल नीनो प्रभाव के परिणाम के तौर पर स्पष्ट की जाती हैं। क्या आप सहमत हैं? (2014) 

स्रोत: पी.आई.बी.

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