उत्तराखंड Switch to English
10वाँ विश्व आयुर्वेद कॉन्ग्रेस और आरोग्य एक्सपो
चर्चा में क्यों?
हाल ही में देहरादून में 10वें विश्व आयुर्वेद कॉन्ग्रेस (WAC 2024) और आरोग्य एक्सपो का उद्घाटन किया गया। यह एक महत्त्वपूर्ण मोड़ है जहाँ विभिन्न विचारधाराओं, संस्कृतियों और नवाचारों की धाराएँ मिलती हैं।
मुख्य बिंदु
- "देश का प्रकृति संरक्षण अभियान" का शुभारंभ:
- 9वें आयुर्वेद दिवस (29 अक्तूबर, 2024) के अवसर पर केंद्रीय आयुष मंत्री ने राष्ट्रव्यापी अभियान "देश का प्रकृति परीक्षण अभियान" का शुभारंभ किया।
- इसका उद्देश्य आयुर्वेद सिद्धांतों का उपयोग करके 1 करोड़ से अधिक व्यक्तियों की प्रकृति का आकलन करना है।
- नागरिकों को इस महान पहल में सक्रिय रूप से भाग लेने और योगदान देने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
- आयुष ग्रिड और वैश्विक निवेश:
- आयुष ग्रिड आयुष क्षेत्र को डिजिटल बनाने और पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को बढ़ावा देने के लिये आयुष मंत्रालय की एक परियोजना है।
- इसके लाभों में नवाचारों के साथ स्वास्थ्य सेवा में क्रांति लाना, प्रभावशीलता, सुरक्षा और सामर्थ्य में वृद्धि करना शामिल है।
- आयुर्वेद से संबंधित पहलों को समर्थन देने के लिये वैश्विक साझेदारों की ओर से 1.3 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश प्रस्तावित है।
- WAC 2024:
- विश्व आयुर्वेद फाउंडेशन (WAF) द्वारा आयोजित, जो विज्ञान भारती की एक पहल है।
- इस कार्यक्रम के लिये 5500 से अधिक भारतीय प्रतिनिधियों और 54 देशों के 350 से अधिक प्रतिनिधियों ने पंजीकरण कराया।
- इस कार्यक्रम में 150 से अधिक वैज्ञानिक सत्र और 13 सहयोगी कार्यक्रम शामिल हैं, जिनमें पूर्ण चर्चाएँ भी शामिल हैं।
- इसका विषय है "Digital Health: An Ayurveda Perspectiveअर्थात् डिजिटल स्वास्थ्य: आयुर्वेद परिप्रेक्ष्य" जो आयुर्वेद को आगे बढ़ाने के लिये आधुनिक प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने पर केंद्रित है।
- विचार-विमर्श:
- डिजिटल उपकरणों के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा वितरण को बढ़ाना।
- अनुसंधान पद्धतियों को पुनः परिभाषित करना।
- आयुर्वेद को वैश्विक स्वास्थ्य परिदृश्य में एकीकृत करना।
- आयुष मंत्रालय की भूमिका:
- आयुष मंत्रालय विश्व आयुर्वेद कॉन्ग्रेस के आयोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो विश्व स्तर पर आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।
- योगदान:
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से आयुर्वेद ज्ञान, अनुसंधान और प्रथाओं को आगे बढ़ाना।
- आयुर्वेद की वैश्विक प्रासंगिकता और भविष्य के विकास पर चर्चा करने के लिये विशेषज्ञों, चिकित्सकों और नीति निर्माताओं को शामिल करना।
- WAC 2024 का महत्त्व:
- आयुर्वेद की समृद्ध विरासत का जश्न मनाता है और वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में इसके भविष्य की कल्पना करता है।
- पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक प्रौद्योगिकी के साथ जोड़ना, यह सुनिश्चित करना कि आयुर्वेद एक स्थायी और समग्र स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के रूप में विकसित हो।
- WAC 2024 आयुर्वेद को वैश्विक स्वास्थ्य सेवा में परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण आयोजन है।
विश्व आयुर्वेद फाउंडेशन (WAF)
- यह एक ऐसा संगठन है जो विश्व स्तर पर आयुर्वेद को बढ़ावा देता है और आयुर्वेद से संबंधित अनुसंधान, स्वास्थ्य कार्यक्रमों और अन्य गतिविधियों का समर्थन करता है।
- यह विज्ञान भारती की एक पहल है जिसकी स्थापना वर्ष 2011 में हुई थी। WAF के उद्देश्यों में शामिल हैं:
- अनुसंधान का समर्थन
- शिविरों, क्लीनिकों और सेनेटोरियम के माध्यम से स्वास्थ्य कार्यक्रमों का समर्थन करना
- सेमिनार, प्रदर्शनियाँ और अध्ययन समूहों का आयोजन
- आयुर्वेद के लिये नीति और योजना में नेतृत्व प्रदान करना
- WAF विश्व आयुर्वेद कॉन्ग्रेस (WAC) का आयोजन करता है, जो एक ऐसा आयोजन है जिसमें वैज्ञानिक सत्र, स्वास्थ्य मंत्रियों के सम्मेलन और अन्य गतिविधियाँ शामिल होती हैं।
- WAC का उद्देश्य इस बात पर चर्चा करना है कि आयुर्वेद विभिन्न स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकता है।
बिहार Switch to English
बिहार के गंगा के मैदानों में पानी के कारण कैंसर का खतरा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महावीर कैंसर संस्थान, पटना के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि पानी में मैंगनीज़ (Mn) प्रदूषण बिहार के गंगा के मैदानी इलाकों में कैंसर का कारण बन रहा है।
मुख्य बिंदु
- बिहार में कैंसर के मामलों में वृद्धि
- पिछले कुछ दशकों में बिहार में कैंसर के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- कैंसर के लिये अनेक योगदानकर्त्ता, जिनमें मैंगनीज़ विषाक्तता को कार्सिनोजेनेसिस को प्रभावित करने वाले एक ट्रेस तत्त्व के रूप में रेखांकित किया गया है।
- अध्ययन के निष्कर्ष:
- नमूना आकार: पटना, वैशाली, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, सीवान और सारण में 1,146 कैंसर रोगियों के रक्त के नमूने।
- लिंग वितरण: 67% महिलाएँ, 33% पुरुष, आयु 2-92 वर्ष।
- कैंसर के प्रकार:
- स्तन कैंसर: 33.25%
- हेपेटोबिलरी और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर: 26.96%
- गर्भाशय ग्रीवा कैंसर: 5.58%
- अन्य कैंसर (मौखिक, नाक, आदि): 34.78%
- कैंसर वर्गीकरण:
- कार्सिनोमा: 84.8%
- ल्यूकेमिया: 9.86%
- लिम्फोमा: 3%
- सारकोमा: 2.27%
- अवलोकन:
- कैंसर रोगियों के रक्त के नमूनों में Mn संदूषण पाया गया, जिसका स्तर गंभीर मामलों में 6,022 µg/L तक पहुँच गया।
- घरेलू हैंडपंप के पानी में बढ़े हुए Mn स्तर ने रोगियों के रक्त में Mn के साथ दृढ़ संबंध दर्शाया।
- हैंडपंप के पानी में मैंगनीज़:
- 84.8% नमूने भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) की निर्धारित सीमा (100 µg/L) के भीतर थे।
- 15.2% नमूने स्वीकार्य स्तर से अधिक थे, जिनमें से कुछ 400 µg/L से भी अधिक थे।
- भू-स्थानिक विश्लेषण:
- मध्य गंगा के मैदान और दक्षिण-पश्चिमी-उत्तरपूर्वी बिहार में उच्च Mn स्तर पाया गया।
- भू-मानचित्रण से जल में मैग्नीशियम की सांद्रता और कैंसर की घटनाओं के बीच संबंध पर प्रकाश डाला गया है।
- मैंगनीज़ की विषाक्तता:
- मैंगनीज़ शरीर के होमियोस्टेसिस के लिये महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इसकी अधिकता से यह विषाक्त हो सकता है।
- जोखिम के स्रोत तलछटी या आग्नेय चट्टान जमा, औद्योगिक प्रदूषण आदि हो सकते हैं।
- भारत में पहला मामला 1957 में महाराष्ट्र के खनिकों में दर्ज किया गया था, जिसमें कमज़ोरी, भावनात्मक अस्थिरता और चलने-फिरने में कठिनाई जैसे लक्षण थे।
- अन्य प्रभावित क्षेत्र पश्चिम बंगाल, कर्नाटक तथा विश्व स्तर पर नाइजीरिया, बांग्लादेश और चीन जैसे देश हैं।
भारी धातु प्रदूषण
- भारी धातु (Heavy Metals):
- भारी धातुओं को ऐसे तत्त्वों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिनकी परमाणु संख्या 20 से अधिक और परमाणु घनत्व 5 ग्राम सेमी -3 से अधिक हो और जिनमें धातु जैसी विशेषताएँ होनी चाहिये। उदाहरण: आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, तांबा, सीसा, मैंगनीज़, पारा, निकल, यूरेनियम आदि।
- भारी धातु प्रदूषण:
- तेज़ी से बढ़ते कृषि और धातु उद्योग, अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन, उर्वरकों और कीटनाशकों के भारी उपयोग के परिणामस्वरूप हमारी नदियों, मिट्टी और पर्यावरण में भारी धातु प्रदूषण हुआ है।
- कृषि और औद्योगिक कार्य, लैंडफिलिंग, खनन और परिवहन भूजल में भारी धातुओं के प्राथमिक स्रोत हैं।
- कृषि जल के माध्यम से भारी धातुएँ नदी तक पहुँचती हैं।
- उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट जल (जैसे चमड़े का कारखाना उद्योग, जो क्रोमियम भारी धातुओं का एक बड़ा स्रोत है) को सीधे नदी निकायों में छोड़े जाने से भारी धातु प्रदूषण की गंभीरता बढ़ गई है।
- भारी धातुओं में पौधों, जानवरों और पर्यावरण में लंबे समय तक बने रहने का गुण होता है।
हरियाणा Switch to English
महिला श्रम बल भागीदारी दर में वृद्धि
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) ने बताया कि वर्ष 2017-18 और 2022-23 के बीच भारत के लगभग सभी राज्यों में महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में वृद्धि हुई है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक वृद्धि देखी गई है।
मुख्य बिंदु
- महिला LFPR पर मुख्य निष्कर्ष:
- क्षेत्रीय विविधताएँ:
- बिहार, पंजाब और हरियाणा में लगातार बहुत कम महिला LFPR की सूचना दी गई।
- सबसे अमीर राज्यों में शामिल होने के बावजूद, पंजाब और हरियाणा में महिला LFPR कम है, जबकि सबसे गरीब राज्य बिहार भी पीछे है।
- विकास:
- ग्रामीण क्षेत्रों में महिला LFPR वर्ष 2017-18 से 2022-23 के दौरान 24.6% से बढ़कर 41.5% हो गई।
- इसी अवधि के दौरान शहरी क्षेत्रों में महिला LFPR 20.4% से बढ़कर 25.4% हो गई।
- समग्र प्रवृत्ति यह है कि अवैतनिक पारिवारिक श्रमिकों या घरेलू सहायकों को हटाने के बाद भी वृद्धि स्थिर बनी रही।
- अन्य रुझान:
- वैवाहिक स्थिति:
- विवाहित पुरुष विभिन्न राज्यों और आयु समूहों में उच्च LFPR प्रदर्शित करते हैं।
- विवाह से महिला LFPR में उल्लेखनीय कमी आती है, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में।
- आयु गतिशीलता:
- महिला LFPR एक घंटीनुमा वक्र बनाती है, जो 30-40 वर्ष की आयु में चरम पर होती है तथा उसके बाद तेज़ी से घटती है।
- पुरुष LFPR 30-50 वर्ष की आयु के बीच लगभग 100% रहता है और उसके बाद धीरे-धीरे कम होता जाता है।
- राज्यवार अवलोकन:
- उत्तरी राज्य: पंजाब और हरियाणा में महिला LFPR कम दर्ज की गई।
- पूर्वी राज्य: ग्रामीण बिहार में LFPR सबसे कम था, लेकिन इसमें सुधार हुआ, विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के मामले में।
- पूर्वोत्तर राज्य: ग्रामीण क्षेत्रों में प्रगति देखी गई, जिसमें नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश अग्रणी रहे।
- सरकारी योजनाओं का प्रभाव:
- मुद्रा ऋण
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- ये योजनाएँ महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास पर ज़ोर देती हैं, जो कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने की सरकार की मंशा को दर्शाती हैं।
- महिला LFPR में वृद्धि, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, रोज़गार प्रवृत्तियों में उल्लेखनीय परिवर्तन को रेखांकित करती है। इस वृद्धि को बनाए रखने और बढ़ाने के लिये आगे का विश्लेषण और सरकारी सहायता आवश्यक होगी।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM)
- यह एक गैर-संवैधानिक, गैर-सांविधिक, स्वतंत्र निकाय है जिसका गठन भारत सरकार, विशेष रूप से प्रधान मंत्री को आर्थिक और संबंधित मुद्दों पर सलाह देने के लिये किया गया है।
- यह परिषद तटस्थ दृष्टिकोण से भारत सरकार के समक्ष प्रमुख आर्थिक मुद्दों को उजागर करने का कार्य करती है।
- यह मुद्रास्फीति, माइक्रोफाइनेंस और औद्योगिक उत्पादन जैसे आर्थिक मुद्दों पर प्रधानमंत्री को सलाह देता है।
- प्रशासनिक, संभार-तंत्र, योजना और बजटीय उद्देश्यों के लिये नीति आयोग EAC-PM के लिये नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
- आवधिक रिपोर्ट:
- वार्षिक आर्थिक परिदृश्य
- अर्थव्यवस्था की समीक्षा