कृषि
उर्वरक उपयोग में बदलता परिदृश्य
- 13 Dec 2024
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:उर्वरक, उर्वरक सब्सिडी, यूरिया, DAP, पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी (NBS) योजना मेन्स के लिये:उर्वरक उद्योग और उर्वरक सब्सिडी से संबंधित मुद्दे और आगे की राह |
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रबी फसलों के लिये एक प्रमुख उर्वरक, डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) उर्वरकों की बिक्री में अप्रैल से अक्तूबर वित्त वर्ष 25 के दौरान 25.4% की उल्लेखनीय गिरावट आई है, जबकि इसी अवधि में NPKS (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और सल्फर) उर्वरकों की बिक्री में 23.5% की वृद्धि हुई है।
- यह बदलाव मुख्य रूप से DAP के आयात में कमी और उच्च लागत के कारण हुआ है, जिससे किसान NPKS जैसे विकल्पों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित हो रहे हैं, जो अधिक संतुलित मृदा पोषण प्रदान करते हैं।
उर्वरक उपयोग वरीयता में बदलाव को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं?
- DAP के उपयोग में गिरावट: यह बदलाव मुख्य रूप से DAP से जुड़ी बढ़ती लागत और आपूर्ति शृंखला के मुद्दों से हुआ है, जो किसानों को विकल्प तलाशने के लिये प्रेरित करता है।
- रूस-यूक्रेन संघर्ष और बेलारूस प्रतिबंधों जैसी वैश्विक चुनौतियों ने पोटाश बाज़ारों को बाधित किया, जिससे वित्त वर्ष 23 में म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) की कीमतों में वृद्धि हुई। ये देश विश्व में पोटाश के प्रमुख उत्पादकों में से हैं।
- फारस की खाड़ी संकट के कारण DAP की बिक्री 30% घटकर 2.78 मिलियन टन रह गई, जिसके कारण शिपिंग में विलंब हुआ, तथा पारगमन का समय सामान्यतः 20-25 दिनों से बढ़कर लगभग 45 दिन का हो गया।
- इसके कारण सितंबर 2024 में DAP की कीमतें बढ़कर लगभग 632 अमेरिकी डॉलर प्रति टन हो गईं।
- उर्वरक वरीयताओं में बदलाव: किसान तेज़ी से NPKS उर्वरकों की ओर रुख कर रहे हैं, जिन्हें संतुलित पोषक तत्त्व संरचना के कारण DAP की तुलना में अधिक फायदेमंद माना जाता है। 20:20:0:13 NPKS ग्रेड, जो नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और सल्फर की संतुलित मात्रा प्रदान करता है, की बिक्री में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
नोट: उन्नत उर्वरक उपयोग से भारतीय मृदा में NPK अनुपात बढ़कर खरीफ 2024 में 9.8:3.7:1 हो गया, जो खरीफ 2023 में 10.9:4.9:1 था, हालाँकि यह अभी भी भारतीय उर्वरक संघ (FAI) द्वारा अनुशंसित आदर्श 4:2:1 अनुपात से कम है।
NPKS उर्वरक के उपयोग के क्या लाभ हैं?
- संतुलित पोषक तत्त्व आपूर्ति: NPKS उर्वरक आवश्यक पोषक तत्त्वों - नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P), पोटेशियम (K), और सल्फर (S) की व्यापक आपूर्ति प्रदान करते हैं - जो पौधों की वृद्धि के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, और फसलों के समग्र स्वास्थ्य और उत्पादकता को बढ़ाते हैं।
- यह संतुलन सुनिश्चित करता है कि पौधों को वानस्पतिक से लेकर प्रजनन अवस्था तक, विभिन्न विकास चरणों के लिये पर्याप्त पोषक तत्त्व प्राप्त हों।
- उन्नत मृदा स्वास्थ्य और सतत् कृषि: सल्फर, एक आवश्यक पोषक तत्त्व है जिसकी प्रायः मृदा में कमी पाई जाती है, यह जड़ों के विकास, एंजाइम सक्रियण और रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार करता है।
- सल्फर को शामिल करके, NPKS उर्वरक मृदा के स्वास्थ्य और उर्वरता को बढ़ाते हैं, जिससे पौधों द्वारा पोषक तत्त्वों का अधिक कुशलतापूर्वक अवशोषण होता है।
- फसल की उपज में वृद्धि: यह प्रकाश संश्लेषण में सुधार, पौधों की प्रतिरक्षा को मज़बूत करने और बेहतर पुष्पन, फलन और बीज निर्माण को बढ़ावा देकर फसल की उपज बढ़ाने में मदद करता है। इससे उत्पादकता बढ़ती है, जो खाद्य सुरक्षा के लिये विशेष रूप से लाभदायक है।
- इष्टतम पादप वृद्धि: इसे पौधों की समग्र वृद्धि को समर्थन देने, जड़ और तने के विकास में सुधार लाने, क्लोरोफिल उत्पादन में वृद्धि करने और सूखा प्रतिरोधकता को बढ़ाने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जिससे फसलों को विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में पनपने में मदद मिलती है।
कृषि में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न प्रकार के रासायनिक उर्वरक क्या हैं?
- नाइट्रोजन युक्त उर्वरक: यूरिया (46% नाइट्रोजन), अमोनियम सल्फेट (21% नाइट्रोजन, 24% सल्फर) और कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट (26% नाइट्रोजन) जैसे नाइट्रोजन युक्त उर्वरक पौधों की वृद्धि, प्रोटीन संश्लेषण को बढ़ाने, क्लोरोफिल निर्माण और तीव्र विकास के लिये आवश्यक हैं।
- फॉस्फेटिक उर्वरक: ये जड़ के विकास, पुष्पन और बीज निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, इनमें सिंगल सुपर फॉस्फेट (16-20% P2O5, कैल्शियम और सल्फर) और डायमोनियम फॉस्फेट (46% फॉस्फोरस, 18% नाइट्रोजन) शामिल हैं, जो मृदा की उर्वरता और पौधों की वृद्धि को बढ़ाते हैं।
- पोटाश उर्वरक: ये जल विनियमन, एंजाइम सक्रियण और रोग प्रतिरोध के लिये आवश्यक हैं, इसमें MOP (60% पोटेशियम) शामिल है, जिसका उपयोग आमतौर पर भारत में किया जाता है, और सल्फेट ऑफ पोटाश (50% पोटेशियम, 18% सल्फर), जो तंबाकू, फलों और सब्जियों जैसी क्लोराइड-संवेदनशील फसलों के लिये अनुशंसित है।
- जटिल उर्वरक: कई प्राथमिक पोषक तत्त्वों के साथ तैयार किये गए जटिल उर्वरकों में संतुलित पोषण के लिये NPK उर्वरक (जैसे, 10:26:26, 12:32:16), NPKS (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और सल्फर युक्त) और अमोनियम फॉस्फेट सल्फेट (Ammonium Phosphate Sulfate- APS) शामिल हैं, जो सल्फर, फास्फोरस और नाइट्रोजन से भरपूर है, जो सल्फर की कमी वाली मृदा के लिये उपयुक्त है।
उर्वरकों से संबंधित सरकारी पहल क्या हैं?
भारत में उर्वरक उपयोग से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- उर्वरक उपयोग में असंतुलन: भारत का वास्तविक NPK अनुपात (खरीफ 2024 में 9.8:3.7:1) अनुशंसित 4:2:1 अनुपात से काफी विचलित है, जिससे पोषक तत्त्वों की कमी और मिट्टी का क्षरण हो रहा है।
- अत्यधिक नाइट्रोजन और अपर्याप्त फास्फोरस तथा पोटेशियम के कारण यह असंतुलन, पोषक तत्त्वों की कमी, मृदा क्षरण एवं फसल की पैदावार में कमी का कारण बनता है।
- नाइट्रोजन उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग: भारत चीन के बाद विश्व में यूरिया का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है, लेकिन इसके अत्यधिक उपयोग से मिट्टी का क्षरण, जल प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है। सब्सिडी उर्वरक बाज़ार को विकृत करती है तथा अकुशलता को बढ़ावा देती है।
- कम उत्पादन और उच्च खपत: उर्वरकों के उत्पादन में वर्ष 2014-15 में 385.39 LMT से वर्ष 2023-24 में 503.35 LMT तक मामूली वृद्धि के बावजूद, देश की मांग को पूरी तरह से पूरा करने के लिये घरेलू उर्वरक उत्पादन अपर्याप्त बना हुआ है।
- वर्ष 2020-21 में उर्वरकों की कुल खपत लगभग 629.83 LMT थी।
- आयात पर निर्भरता: भारत अपनी आवश्यकता का लगभग 20% यूरिया, 50-60% डायमोनियम फॉस्फेट (DAP) और 100% म्यूरिएट पोटाश (MOP) उर्वरक चीन, रूस, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, ईरान और मिस्र जैसे देशों से आयात करता है।
- इससे भारत प्रमुख उर्वरक पोषक तत्त्वों के लिये वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर अत्यधिक निर्भर हो जाता है तथा वैश्विक मूल्य में उतार-चढ़ाव और आपूर्ति में अस्थिरता के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
आगे की राह
- संतुलित उर्वरक उपयोग : NPKS (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और सल्फर) पर जोर देने के साथ संतुलित उर्वरक उपयोग को बढ़ावा देने से NPK अनुपात में असंतुलन को दूर करने, मृदा स्वास्थ्य को बढ़ाने और यूरिया जैसे नाइट्रोजन-प्रधान उर्वरकों पर निर्भरता कम करने में मदद मिल सकती है।
- जैविक और जैव-उर्वरकों को बढ़ावा देना: जैविक खेती और जैव-उर्वरकों को प्रोत्साहित करने से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम हो सकती है, मिट्टी की उर्वरता बढ़ सकती है और सिंथेटिक उर्वरकों के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- कुशल उर्वरक वितरण: लक्षित दृष्टिकोण के माध्यम से उर्वरक सब्सिडी और वितरण को सुव्यवस्थित करने से अकुशलताएँ कम होंगी तथा संतुलित, लागत प्रभावी उर्वरक उपयोग को बढ़ावा मिलेगा।
- घरेलू उत्पादन क्षमता विस्तार: प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे में निवेश के साथ फॉस्फेटिक तथा पोटाशिक उर्वरकों के घरेलू उत्पादन का विस्तार करने से भारत की आयात पर निर्भरता कम होगी एवं आपूर्ति शृंखला लचीलापन मज़बूत होगा।
- सतत् उर्वरक नीतियाँ: सरकार को ऐसी नीतियाँ बनानी चाहिये जो क्षेत्रीय मिट्टी के प्रकार और फसल-विशिष्ट पोषक तत्त्वों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उर्वरकों के विवेकपूर्ण उपयोग को प्रोत्साहित करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में उर्वरक उपयोग की चुनौतियों पर चर्चा कीजिये तथा संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने तथा घरेलू उत्पादन बढ़ाने के उपाय सुझाइये। |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत सरकार कृषि में 'नीम-लेपित यूरिया' (Neem-coated Urea) के उपयोग को क्यों प्रोत्साहित करती है? (2016) (a) मृदा में नीम तेल के निर्मुक्त होने से मृदा सूक्ष्मजीवों द्वारा नाइट्रोजन यौगिकीकरण बढ़ता है उत्तर: (b) |