स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण की प्रगति की समीक्षा | मध्य प्रदेश | 12 Dec 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण (SBM-G) को दृढ़ करने के लिये पंजाब, मध्य प्रदेश और बिहार के ग्रामीण स्वच्छता के लिये ज़िम्मेदार राज्य मंत्रियों के साथ एक उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक की।
- इस सत्र का उद्देश्य प्रगति का आकलन करना, चुनौतियों से निपटना तथा ग्रामीण भारत में स्थायी स्वच्छता परिणाम सुनिश्चित करने के लिये रणनीतियों को कारगर बनाना था।
मुख्य बिंदु
- केंद्रीय मंत्री ने स्वच्छता को एक व्यवहारिक मिशन बताया जो ग्रामीण समुदायों के स्वास्थ्य और सम्मान के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- उन्होंने सामूहिक प्रयासों के माध्यम से स्वच्छ एवं स्वस्थ भारत के निर्माण के महत्त्व को रेखांकित किया तथा कहा कि प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश की अपनी अलग-अलग चुनौतियाँ हैं, लेकिन स्वच्छ भारत प्राप्त करने का लक्ष्य उनका समान है।
- राज्यवार प्रगति:
- मध्य प्रदेश:
- 99% गाँव खुले में शौच मुक्त (ODF) प्लस स्थिति वाले हैं, जिनमें से 95% ने ODF प्लस मॉडल का दर्जा प्राप्त कर लिया है।
- राज्य ने RRDA भोपाल के साथ समझौता ज्ञापन सहित नवीन प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन पहल को क्रियान्वित किया।
- उत्तर प्रदेश:
- 98% गाँव ODF प्लस हैं। SBM-G उद्देश्यों के लिये 1 लाख से अधिक कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया है।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिये अपशिष्ट से ऊर्जा मॉडल और स्क्रैप डीलर संपर्क पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- बिहार:
- 92% गाँव ODF प्लस हैं। ग्रे वाटर मैनेजमेंट कवरेज 91% है और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन 80% है।
- प्रयास कम प्रदर्शन करने वाले ज़िलों में परिणामों को बेहतर बनाने पर केंद्रित हैं।
- पंजाब:
- 98% गाँव ODF प्लस हैं, जिनमें से 87% ने ग्रे वाटर प्रबंधन संतृप्ति प्राप्त कर ली है।
- उन्नत प्रणालियाँ विकसित की जा रही हैं।
- सामूहिक कार्रवाई के लिये मंत्री का मार्गदर्शन:
- ODF प्लस स्थिरता: ODF प्लस मॉडल गाँवों को सत्यापित करने और बनाए रखने के लिये मज़बूत निगरानी तंत्र स्थापित करना।
- अपशिष्ट प्रबंधन अंतराल : घरेलू स्तर के समाधानों को प्राथमिकता देकर ठोस और धूसर जल प्रबंधन में अंतराल को दूर करना।
- सामुदायिक स्वच्छता: सामुदायिक स्वच्छता परिसरों की कार्यक्षमता और परिसंपत्ति प्रबंधन को मज़बूत करना।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन: पुनर्चक्रणकर्त्ताओं के साथ साझेदारी बनाना और विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) ढाँचे का उपयोग करना।
- EPR उत्पादकों को उनके उत्पादों के जीवन चक्र के दौरान उनके पर्यावरणीय प्रभावों के लिये ज़िम्मेदार बनाता है। इसका उद्देश्य बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देना और नगर पालिकाओं पर बोझ कम करना है।
- व्यवहार में परिवर्तन: लक्षित IEC (सूचना शिक्षा और संचार) अभियानों के माध्यम से शौचालय के निरंतर उपयोग और अपशिष्ट पृथक्करण को बढ़ावा देना।
- समुदाय-नेतृत्व वाले दृष्टिकोण: राज्यों को समुदाय-नेतृत्व वाले स्वच्छता प्रयासों को बढ़ावा देने के लिये महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों, स्थानीय नेताओं और निजी क्षेत्र के उद्यमों को शामिल करना होगा।
- व्यापक दृष्टिकोण और वैश्विक संरेखण:
स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण (SBM-G)
- परिचय:
- इसे वर्ष 2014 में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा सार्वभौमिक स्वच्छता कवरेज प्राप्त करने के प्रयासों में तेज़ी लाने और स्वच्छता पर ध्यान केंद्रित करने के लिये लॉन्च किया गया था।
- इस मिशन को एक राष्ट्रव्यापी अभियान/जनआंदोलन के रूप में क्रियान्वित किया गया जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में शौच को समाप्त करना था।
- स्वच्छ भारत मिशन (G) चरण-I:
- 2 अक्तूबर, 2014 को SBM (G) के शुभारंभ के समय देश में ग्रामीण स्वच्छता कवरेज 38.7% बताया गया था।
- मिशन के शुभारंभ के बाद से 10 करोड़ से अधिक व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप, सभी राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों ने 2 अक्तूबर, 2019 तक खुद को ODF घोषित कर दिया है।
- SBM (G) चरण-II:
- यह चरण-I के अंतर्गत उपलब्धियों की स्थिरता पर ज़ोर देता है तथा ग्रामीण भारत में ठोस/तरल एवं प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (SLWM) के लिये पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करता है।
- इसे वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक मिशन मोड में कार्यान्वित किया जाएगा, जिसका कुल परिव्यय 1,40,881 करोड़ रुपए होगा।
- ODF प्लस के SLWM घटक की निगरानी 4 प्रमुख क्षेत्रों के आउटपुट-आउटकम संकेतकों के आधार पर की जाएगी:
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन
- जैवनिम्नीकरणीय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (पशु अपशिष्ट प्रबंधन सहित)
- ग्रेवाटर (घरेलू अपशिष्ट जल) प्रबंधन
- मल-कीचड़ प्रबंधन।
GeM प्लेटफॉर्म को पूर्णत: अपनाने वाला पहला राज्य- उत्तर प्रदेश | उत्तर प्रदेश | 12 Dec 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर प्रदेश गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GeM) प्लेटफॉर्म को पूरी तरह से एकीकृत करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है, जिससे सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता और दक्षता बढ़ेगी।
इस कदम से प्रतिवर्ष 2,000 करोड़ रुपए की बचत होने का अनुमान है, साथ ही निष्पक्ष व्यवहार को बढ़ावा मिलेगा और छोटे व्यवसायों को सशक्त बनाया जाएगा।
मुख्य बिंदु
गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GeM) प्लेटफॉर्म
- GeM विभिन्न सरकारी विभागों/संगठनों/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा अपेक्षित सामान्य उपयोग की वस्तुओं और सेवाओं की ऑनलाइन खरीद की सुविधा प्रदान करता है।
- यह पहल वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा अगस्त 2016 में शुरू की गई थी।
- GeM का वर्तमान संस्करण अर्थात GeM 3.0, 26 जनवरी, 2018 को लॉन्च किया गया था।
- यह सरकारी उपयोगकर्त्ताओं की सुविधा के लिये ई-बिडिंग, रिवर्स ई-नीलामी और मांग एकत्रीकरण के उपकरण प्रदान करता है, जिससे उनके पैसे का सर्वोत्तम मूल्य प्राप्त होता है और सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता, दक्षता और गति को बढ़ाया जाता है।
कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद | उत्तर प्रदेश | 12 Dec 2024
चर्चा में क्यों?
भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद पर सुनवाई करने वाली है।
- यह भारत के सबसे पुराने मंदिर-मस्जिद विवादों में से एक है, जिसमें हिंदू अपने पूजा स्थलों को पुनः प्राप्त करने की मांग कर रहे थे, उनका आरोप है कि मुस्लिम शासकों के आक्रमणों के दौरान उन्हें मस्जिदों में बदल दिया गया था।
मुख्य बिंदु
- विवाद की पृष्ठभूमि:
- भगवान कृष्ण की जन्मस्थली माने जाने वाले मथुरा में 1618 में एक मंदिर का निर्माण किया गया था।
- हिंदू पक्ष का आरोप है कि मुगल शासक औरंगज़ेब ने शाही ईदगाह मस्जिद बनाने के लिये 1670 में मंदिर को ध्वस्त कर दिया था।
- हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद में हिंदू धार्मिक प्रतीक और विशेषताएँ हैं, जिनमें कमल के आकार का स्तंभ और देवता शेषनाग की छवि शामिल है।
- यह भी कहा गया है कि मस्जिद श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की 13.37 एकड़ भूमि के एक हिस्से पर बनाई गई थी और मस्जिद को स्थानांतरित करने के लिये मुकदमा दायर किया गया है।
- शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी और UP सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड का तर्क है कि मस्जिद विवादित भूमि पर नहीं है।
- प्रमुख घटनाक्रम:
- न्यायालय द्वारा निगरानी सर्वेक्षण:
- 14 दिसंबर, 2023 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शाही ईदगाह मस्जिद का न्यायालय की निगरानी में सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया।
- न्यायालय ने सर्वेक्षण की देखरेख के लिये एक आयुक्त की नियुक्ति की, जो इस दावे पर आधारित था कि मस्जिद परिसर में अतीत में हिंदू मंदिर होने के संकेत मौजूद हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप:
- ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह की प्रबंधन समिति ने सर्वेक्षण के लिये उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की।
- 16 जनवरी, 2024 को सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू पक्ष के आवेदन में अस्पष्टता का उल्लेख करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश पर सर्वेक्षण के लिये रोक लगा दी।
- तर्क:
- हिंदू पक्ष की स्थिति:
- उन्होंने मांग की कि उच्च न्यायालय बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले की तरह ही मूल सुनवाई की जाए।
- हिंदू पक्ष ने सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया है कि वह उच्च न्यायालय को आयोग के सर्वेक्षण की रूपरेखा निर्धारित करने की अनुमति दी जाए।
- मस्जिद समिति की स्थिति:
- समिति का तर्क है कि सर्वेक्षण के लिये उच्च न्यायालय का आदेश अवैध है, क्योंकि यह मुकदमा उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के तहत वर्जित है, जो 15 अगस्त, 1947 के धार्मिक स्थलों के स्वरूप में परिवर्तन को रोकता है।
- समिति ने उच्च न्यायालय के 26 मई, 2023 के आदेश को भी चुनौती दी है, जिसमें विवाद से संबंधित सभी मामलों को मथुरा अदालत से अपने पास स्थानांतरित कर दिया गया था।
राजस्थान में खोजे गए अंधकार युग के सिक्के | राजस्थान | 12 Dec 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राजस्थान के पुरातात्विक स्थलों से 600 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व के पंच-मार्क सिक्कों का खज़ाना मिला है।
- यह भारतीय इतिहास के "अंधकार युग (Dark Age)" के संबंध में जानकारी प्रदान करता है जो सिंधु घाटी सभ्यता के पतन से लेकर भगवान बुद्ध के युग तक फैला हुआ है। इतिहासकार 1900 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व तक के इस काल को अंधकार युग कहते हैं।
मुख्य बिंदु
- परिचय:
- राजस्थान की पुरातात्विक खोजें इस क्षेत्र की प्राचीन व्यापारिक गतिविधियों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में महत्त्वपूर्ण भूमिका को उजागर करती हैं।
- ये निष्कर्ष भारत के लुप्त ऐतिहासिक काल को उजागर करने के लिये इन कलाकृतियों के संरक्षण और अध्ययन के महत्त्व को रेखांकित करते हैं।
- राष्ट्रीय मुद्राशास्त्र सम्मेलन में प्रस्तुति:
- राजस्थान पुरातत्व एवं संग्रहालय विज्ञान विभाग के एक सेवानिवृत्त मुद्राशास्त्री ने 5 दिसंबर, 2024 को मेरठ में राष्ट्रीय मुद्राशास्त्र सम्मेलन में पंच-मार्क सिक्कों पर अपना शोध प्रस्तुत किया।
- संग्रहालय विज्ञान संग्रहालयों और उनमें की जाने वाली गतिविधियों का अध्ययन है।
- इसमें संग्रहालयों के इतिहास, समाज में उनकी भूमिका और उनके द्वारा की जाने वाली गतिविधियों, जैसे संरक्षण, शिक्षा और सार्वजनिक कार्यक्रम आदि का अध्ययन शामिल है।
- मुद्राशास्त्री वह व्यक्ति होता है जो मुद्रा और धन के रूप में प्रयोग की जाने वाली अन्य वस्तुओं का अध्ययन, संग्रह और विश्लेषण करता है।
- उन्होंने अहार (उदयपुर), कालीबंगा (हनुमानगढ़), विराटनगर (जयपुर), और जानकीपुरा (टोंक) जैसी साइटों की खोजों पर प्रकाश डाला, जिसमें एक संपन्न प्राचीन व्यापार नेटवर्क के साक्ष्य प्रदर्शित किये गए।
- खोजें और महत्त्व:
- व्यापक सिक्का अध्ययन:
- सिक्कों पर सूर्य, षड्चक्र और पर्वत/मेरु जैसे प्रतीक अंकित थे।
- चाँदी और ताँबे से बने इन सिक्कों का मानक वजन 3.3 ग्राम है तथा ये सिक्के पेशावर से कन्याकुमारी तक पूरे भारत में पाए जाने वाले सिक्कों से समानता दर्शाते हैं।
- प्रमुख निष्कर्ष:
- उल्लेखनीय खोजों में 1935 में टोंक में मिले 3,300 सिक्के और 1998 में सीकर में मिले 2,400 सिक्के शामिल हैं।
- इन क्षेत्रों के धातुकर्म उपकरण महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पेशावर में पाए जाने वाले औजारों से मिलते जुलते हैं, जो राजस्थान को एक व्यापक सांस्कृतिक और व्यापारिक नेटवर्क से जोड़ते हैं।
- ऐतिहासिक संदर्भ और पुरातात्विक साक्ष्य:
- चीनी यात्रियों द्वारा दस्तावेज़ीकरण:
- चीनी यात्री फा-हियान (399-414 ई.), सुनयान (518 ई.) और ह्वेन-त्सांग (629 ई.) ने इन क्षेत्रों में खंडहरों का दस्तावेज़ीकरण किया, जो उनके ऐतिहासिक महत्त्व की ओर संकेत करते हैं।
- उनके विवरण, पुरातात्विक साक्ष्यों के साथ मिलकर, राजस्थान की प्राचीन व्यापार और सांस्कृतिक विरासत की समझ को समृद्ध करते हैं।
- व्यापक व्यापार संबंध:
- राजस्थान का व्यापार इतिहास सिल्क रूट के समान ही महत्त्वपूर्ण है, जिसका समर्थन गुप्त वंश, मालव और जनपदों के सिक्कों की खोज से होता है।
- ये निष्कर्ष प्राचीन भारत में राजस्थान की महत्त्वपूर्ण आर्थिक और सांस्कृतिक भूमिका पर ज़ोर देते हैं।
- खजाना संग्रह:
- राजस्थान पुरातत्व विभाग ने राजस्थान खज़ाना नियम, 1961 के तहत संग्रहित 2.21 लाख से अधिक प्राचीन सिक्के एकत्र किये हैं, जिनमें 7,180 पंच-मार्क नमूने भी शामिल हैं।
- ये सिक्के राज्य की ऐतिहासिक और आर्थिक प्रमुखता के बारे में अमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता
- परिचय:
- भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) के जन्म से शुरू होता है, जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।
- यह लगभग 2,500 ईसा पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी क्षेत्र, वर्तमान पाकिस्तान और पश्चिमी भारत में विकसित हुआ।
- सिंधु घाटी मिस्र, मेसोपोटामिया, भारत और चीन की चार प्राचीन शहरी सभ्यताओं में से सबसे बड़ी सभ्यता का घर थी।
- 1920 के दशक में भारतीय पुरातत्व विभाग ने सिंधु घाटी में खुदाई की, जिसमें दो पुराने शहरों, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के खंडहरों का पता चला।
- 1924 में, ASI के महानिदेशक जॉन मार्शल ने दुनिया के सामने सिंधु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।
- पतन:
- सिंधु घाटी सभ्यता का पतन लगभग 1800 ई.पू. हुआ, जिसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन और प्रवास था।
- इसके दो प्रमुख शहर, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा लुप्त हो गये, जिससे सभ्यता का अंत हो गया।
- हड़प्पा को अक्सर इस सभ्यता के नाम के साथ जोड़ा जाता है क्योंकि यह आधुनिक पुरातत्वविदों द्वारा खोजा गया पहला शहर था।
पटना में मौर्य साम्राज्य का उत्खनन | बिहार | 12 Dec 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने कुम्हरार में '80 स्तंभों वाले सभा भवन' की खुदाई शुरू की है, जिसे भारतीय उपमहाद्वीप में मौर्य सम्राटों की स्थापत्य उपलब्धियों का एकमात्र जीवित साक्ष्य माना जाता है।
मुख्य बिंदु
- कुम्हरार में मौर्य महल का अनावरण:
- ASI के अनुसार, 1 दिसंबर, 2024 को पटना के कुम्हरार संरक्षित स्थल पर खुदाई शुरू हुई, जिसमें अशोकन सभा घर पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- इसका प्राथमिक उद्देश्य दफन मौर्य पत्थर स्तंभों की वर्तमान स्थिति का आकलन करना है।
- जल स्तर मापने के लिये केंद्रीय भूजल बोर्ड के साथ सहयोग सहित विस्तृत वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाएगा।
- निष्कर्षों के आधार पर, सभी 80 स्तंभों को उजागर करने की संभावना पर विचार किया जाएगा।
- ऐतिहासिक संदर्भ और विगत उत्खनन:
- मौर्यकालीन हॉल, जिसके बारे में माना जाता है कि इसका उपयोग सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में तृतीय बौद्ध संगीति के लिये किया था, पहली बार 1912-1915 और 1951-1955 के बीच खुदाई के दौरान सामने आया था।
- चुनौतियाँ:
- 1990 के दशक के अंत में भूजल रिसाव के कारण खंडहरों में जलभराव हो गया, जिससे संरचना को नुकसान पहुँचा।
- आगे और अधिक गिरावट को रोकने के लिये, वर्ष 2004 में इस स्थल को मृदा और रेत से ढक दिया गया।
- शुरुआत में, स्थिति के आकलन के लिये कुछ स्तंभों को उजागर किया जाएगा। यदि स्थिति अनुमति देती है, तो और भी स्तंभों को जनता के सामने लाया जा सकता है।
- कुम्हरार का महत्त्व:
- पटना में स्थित कुम्हरार में मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र के प्राचीन शहर के अवशेष मौजूद हैं।
- कुम्हरार में 600 ईसा पूर्व की पुरातात्विक खोजें, अजातशत्रु, चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक जैसे शासकों के इतिहास की जानकारी प्रदान करती हैं।
- इस स्थल में 600 ईसा पूर्व से लेकर 600 ईसवी तक की चार ऐतिहासिक अवधियों की कलाकृतियाँ शामिल हैं, जो इसके ऐतिहासिक महत्त्व को उजागर करती हैं।
मौर्य राजवंश
- चंद्रगुप्त मौर्य (321-297 ईसा पूर्व): मौर्य साम्राज्य के प्रवर्तक, जिन्होंने नंद वंश का अंत किया और हिंदू कुश जैसे क्षेत्रों पर कब्ज़ा करके साम्राज्य का विस्तार किया।
- 305-303 ईसा पूर्व में, उन्होंने सेल्यूकस निकेटर के साथ एक संधि की, जिससे उन्हें अतिरिक्त क्षेत्र प्राप्त हुए। बाद के जीवन में, चंद्रगुप्त जैन धर्म के अनुयायी बन गए।
- चाणक्य, चंद्रगुप्त मौर्य (322 ईसा पूर्व- 297 ईसा पूर्व) और उनके उत्तराधिकारी बिंदुसार के शासनकाल में प्रधानमंत्री थे। साम्राज्य की सफलता में चाणक्य ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- बिंदुसार (298-272 ई.पू.): साम्राज्य का विस्तार दक्कन तक किया, जिसे "अमित्रघात" (शत्रुओं का नाश करने वाला) के नाम से जाना जाता है। आजीविक संप्रदाय को अपनाया। डेमाकस उनके दरबार में एक यूनानी राजदूत था।
- अशोक (272-232 ईसा पूर्व): कलिंग युद्ध के बाद, जिसमें बड़े पैमाने पर जनहानि हुई, उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और अपने धम्म (नैतिक कानून) के माध्यम से शांति को बढ़ावा दिया। उन्होंने तीसरी बौद्ध परिषद का आयोजन किया और बौद्ध धर्म को वैश्विक स्तर पर प्रसारित किया।
- दशरथ (232-224 ईसा पूर्व): शाही शिलालेख जारी करने वाले अंतिम मौर्य शासक। क्षेत्रीय नुकसान का सामना करना पड़ा।
- सम्प्रति (224-215 ईसा पूर्व): विघटित क्षेत्रों पर मौर्य नियंत्रण पुनः स्थापित किया और जैन धर्म को बढ़ावा दिया।
- शालिशुक (215-202 ईसा पूर्व): एक झगड़ालू शासक के रूप में जाना जाता था जिसकी नकारात्मक प्रतिष्ठा थी।
- देववर्मन (202-195 ईसा पूर्व): संक्षिप्त शासनकाल, पुराणों में उल्लेखित।
- शतधन्वन (195-187 ईसा पूर्व): बाहरी आक्रमणों के कारण खोए हुए क्षेत्र।
- बृहद्रथ (187-185 ईसा पूर्व): अंतिम मौर्य सम्राट, पुष्यमित्र शुंग द्वारा हत्या, मौर्य राजवंश के अंत का प्रतीक।