उत्तर प्रदेश Switch to English
कुंभ मेला 2025 के लिये डिजिटल टिकट बुकिंग
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रेलवे ने कुंभ मेला 2025 से पहले यात्रियों के लिये टिकट बुकिंग को डिजिटल बनाने हेतु स्वयंसेवकों के लिये QR स्कैनर युक्त जैकेट पेश किये हैं।
मुख्य बिंदु
- अधिकारियों की तैनाती:
- प्रयागराज मंडल के उत्तर मध्य रेलवे के अधिकारी पीछे QR कोड लगे फ्लोरोसेंट हरे रंग के जैकेट पहनेंगे।
- भक्तजन अनारक्षित टिकट प्रणाली (UTS) मोबाइल ऐप तक पहुँचने के लिये QR कोड को स्कैन कर सकते हैं।
- यह ऐप यात्रियों को लंबी कतारों से बचाकर डिजिटल रूप से अनारक्षित टिकट बुक करने की सुविधा देता है।
- इस आयोजन के दौरान रेलवे 10,000 से अधिक नियमित ट्रेनें और 3,000 से अधिक विशेष ट्रेनें चलाएगा।
- प्रयागराज मंडल के उत्तर मध्य रेलवे के अधिकारी पीछे QR कोड लगे फ्लोरोसेंट हरे रंग के जैकेट पहनेंगे।
- महाकुंभ रेल सेवा 2025 ऐप:
- रेलवे ने ट्रेनों की समय-सारिणी, गेस्ट हाउस की जानकारी, हेल्पलाइन नंबर आदि जानकारी देने के लिये एक ऐप और पोर्टल लॉन्च किया है।
- 1.3 लाख श्रद्धालुओं की क्षमता वाले 28 अतिथि गृहों में आगंतुकों के लिये व्यवस्था की जाएगी।
- 1 नवंबर, 2024 से एक टोल-फ्री नंबर 1800-4199-139 सक्रिय हो गया है।
- 1 जनवरी, 2025 से यह हेल्पलाइन 24x7 संचालित होगी, जिसमें ओडिया, तमिल, तेलुगु, मराठी और बंगाली में कुशल बहुभाषी कॉल ऑपरेटर होंगे।
- रेलवे की घोषणाएँ हिंदी, अंग्रेज़ी, गुजराती, मराठी, तमिल, कन्नड़, तेलुगु, मलयालम, बंगाली, ओडिया, पंजाबी और असमिया सहित 12 भाषाओं में की जाएँगी।
कुंभ मेला
- परिचय:
- यह धरती पर तीर्थयात्रियों का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है, जिसके दौरान प्रतिभागी पवित्र नदी में स्नान या डुबकी लगाते हैं। यह समागम 4 अलग-अलग जगहों पर होता है, अर्थात्-
- हरिद्वार में, गंगा के तट पर।
- उज्जैन में, शिप्रा के तट पर।
- नासिक में, गोदावरी (दक्षिण गंगा) के तट पर।
- प्रयागराज में, गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती के संगम पर।
- कुंभ के विभिन्न प्रकार:
- कुंभ मेला 12 वर्षों में 4 बार मनाया जाता है।
- हरिद्वार और प्रयागराज में, अर्द्ध-कुंभ मेला हर छठे वर्ष आयोजित किया जाता है।
- महाकुंभ मेला 144 वर्षों (12 'पूर्ण कुंभ मेलों' के बाद) के बाद प्रयाग में मनाया जाता है।
- प्रयागराज में हर साल माघ (जनवरी-फरवरी) महीने में माघ कुंभ मनाया जाता है।
उत्तर प्रदेश Switch to English
महाकुंभ का डिजिटल परिवर्तन
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार महाकुंभ 2025 में तीर्थयात्रियों की संख्या पर नज़र रखने के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सक्षम कैमरों, रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) रिस्टबैंड और मोबाइल ऐप ट्रैकिंग का उपयोग करने जा रही है।
मुख्य बिंदु
- महाकुंभ 2025 का अवलोकन:
- सरकार को उम्मीद है कि महाकुंभ के दौरान लगभग 450 मिलियन श्रद्धालु आएँगे, जो कि UNESCO द्वारा मान्यता प्राप्त मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत है।
- यह विश्व का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है, जहाँ तीर्थयात्री नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं।
- महाकुंभ का डिजिटल परिवर्तन:
- डिजिटल और AI-आधारित पहल:
- कार्यक्रम की जानकारी के लिये एक समर्पित वेबसाइट और ऐप का शुभारंभ।
- AI-संचालित चैटबॉट 11 भाषाओं में उपलब्ध है।
- लोगों और वाहनों के लिये QR कोड-आधारित पास।
- आगंतुकों के लिये बहुभाषी डिजिटल खोया-पाया केंद्र।
- डिजिटल और AI-आधारित पहल:
- ICT और निगरानी प्रणालियाँ:
- सफाई और टेंट आवास के लिये ICT निगरानी।
- भूमि एवं सुविधा आवंटन और बहुभाषी डिजिटल साइनेज के लिये सॉफ्टवेयर।
- स्वचालित राशन आपूर्ति प्रणाली और ड्रोन आधारित निगरानी एवं आपदा प्रबंधन।
- 530 परियोजनाओं के लिये वास्तविक समय निगरानी सॉफ्टवेयर और एक इन्वेंट्री ट्रैकिंग प्रणाली।
- सभी आयोजन स्थलों को गूगल मानचित्र पर एकीकृत करना।
- बुनियादी ढाँचा और सुविधाएँ:
- भक्तों के लिये घाट
- स्नान की सुविधा के लिये 35 स्थायी घाट और नौ नये घाटों का निर्माण किया गया।
- सभी 44 घाटों पर 12 किलोमीटर क्षेत्र में हवाई पुष्प वर्षा की योजना बनाई गई है।
- उन्नत आगंतुक अनुभव:
- भीड़ प्रबंधन और सुविधा बढ़ाने के लिये बहुभाषी डिजिटल साइनेज और अन्य तकनीकी सहायताएँ।
रेडियो फ्रीक्वेंसी पहचान (RFID)
- RFID एक प्रकार की निष्क्रिय वायरलेस तकनीक है जो किसी वस्तु या व्यक्ति की ट्रैकिंग या मिलान की अनुमति देती है।
- इस प्रणाली के दो मूल भाग हैं: टैग और रीडर।
- रीडर रेडियो तरंगें छोड़ता है और RFID टैग से सिग्नल प्राप्त करता है, जबकि टैग अपनी पहचान और अन्य जानकारी संप्रेषित करने के लिये रेडियो तरंगों का उपयोग करता है।
- टैग को कई फीट की दूरी से पढ़ा जा सकता है और उसे ट्रैक करने के लिये रीडर की सीधी दृष्टि रेखा के भीतर होना आवश्यक नहीं है।
- इस प्रौद्योगिकी को 1970 के दशक से पहले ही मंज़ूरी मिल गई थी, लेकिन वैश्विक आपूर्ति शृंखला प्रबंधन और पालतू जानवरों की माइक्रोचिपिंग जैसी चीजों में इसके उपयोग के कारण हाल के वर्षों में यह काफी प्रचलित हो गई है।
उत्तर प्रदेश Switch to English
NMCG की 59वीं कार्यकारी समिति की बैठक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) की 59वीं कार्यकारी समिति (EC) की बैठक में गंगा नदी के संरक्षण और पुनरुद्धार के लिये समर्पित कई महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई।
- इन पहलों का उद्देश्य नदी की स्वच्छता, सतत् विकास तथा पर्यावरणीय एवं सांस्कृतिक महत्त्व के संरक्षण को बढ़ावा देना है।
मुख्य बिंदु
- उत्तर प्रदेश में परियोजनाएँ:
- चंदौली परियोजना:
- हाइब्रिड एन्युटी मॉडल का उपयोग करते हुए 45 मिलियन लीटर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) का निर्माण।
- इसमें सहायक बुनियादी ढाँचा शामिल है तथा 15 वर्षों के लिये परिचालन एवं रखरखाव (O&M) सुनिश्चित किया जाता है।
- चंदौली परियोजना:
- मानिकपुर परियोजना:
- 15 मिलियन लीटर मल-कीचड़ उपचार संयंत्र और 35 किलोवाट सौर ऊर्जा संयंत्र का विकास।
- पर्यावरण अनुकूल अपशिष्ट प्रबंधन और 5 वर्षों के लिये प्रभावी संचालन के लिये डिज़ाइन किया गया।
- बिहार में नदी संरक्षण:
- बक्सर परियोजना:
- 50 मिलियन लीटर क्षमता वाले STP और सहायक संरचना का निर्माण।
- इसमें प्रकृति आधारित 1 मिलियन लीटर क्षमता वाला STP, तीन इंटरसेप्शन पंपिंग स्टेशन और 8.68 किमी. सीवर नेटवर्क शामिल है।
- 15 वर्षों के लिये सुदृढ़ प्रचालन एवं रखरखाव सुनिश्चित करना तथा स्थायी नदी संरक्षण प्रयासों को आगे बढ़ाना।
- बक्सर परियोजना:
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG)
- परिचय:
- 12 अगस्त, 2011 को NMCG को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत एक सोसायटी के रूप में सूचीबद्ध किया गया।
- यह राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NGRBA) की कार्यान्वयन शाखा के रूप में कार्य करता है, जिसका गठन पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (EPA), 1986 के प्रावधानों के तहत किया गया था।
- NGRBA को वर्ष 2016 में निरस्त कर दिया गया और उसके स्थान पर राष्ट्रीय गंगा पुनरुद्धार, संरक्षण एवं प्रबंधन परिषद का गठन किया गया।
- उद्देश्य:
- NMCG का उद्देश्य प्रदूषण को कम करना और गंगा नदी का पुनर्जीवन सुनिश्चित करना है।
- नमामि गंगे, गंगा की सफाई के लिये NMCG के प्रतिष्ठित कार्यक्रमों में से एक है।
- इसे व्यापक योजना एवं प्रबंधन के लिये अंतर-क्षेत्रीय समन्वय को बढ़ावा देकर तथा नदी में न्यूनतम पारिस्थितिक प्रवाह को बनाए रखकर प्राप्त किया जा सकता है, जिसका उद्देश्य जल की गुणवत्ता और पर्यावरणीय रूप से सतत् विकास सुनिश्चित करना है।
- NMCG का उद्देश्य प्रदूषण को कम करना और गंगा नदी का पुनर्जीवन सुनिश्चित करना है।
Switch to English