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गूगल स्ट्रीट व्यू: राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति

  • 30 Jul 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का भू-स्थानिक क्षेत्र, रिमोट सेंसिंग, जीआईएस (भौगोलिक सूचना प्रणाली), जीएनएसएस (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम), 3 डी मॉडलिंग, भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र के लिये नए दिशा-निर्देश।

मेन्स के लिये:

भारत का भू-स्थानिक क्षेत्र - चुनौतियाँ और अवसर, भू-स्थानिक क्षेत्र में उदारीकरण का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

गूगल स्ट्रीट व्यू को राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति (NGP), 2021 के दिशा-निर्देशों के तहत भारत के दस शहरों में लॉन्च किया गया है।

  • NGP, 2021 भारतीय कंपनियों को मैप संबंधी आँकड़े एकत्र करने और दूसरों को लाइसेंस देने की सुविधा देती है।

गूगल स्ट्रीट व्यू:

  • परिचय:
    • गूगल स्ट्रीट व्यू, शहर की सड़कों पर घूमने वाले डेटा संग्राहकों द्वारा वाहनों या बैकपैक्स पर लगे विशेष कैमरों का उपयोग करके कैप्चर किये गए स्थान का 360-डिग्री दृश्य है।
    • फिर छवियों को 360-डिग्री दृश्य बनाने के लिये एक साथ किया जाता है जिसे उपयोगकर्त्ता स्थान का विस्तृत दृश्य प्राप्त करने के लिये उपयोग कर सकते हैं।
      • यह एप का उपयोग करके या वेब व्यूअर के रूप में एंड्रॉइड और आईओएस पर देखने के लिये उपलब्ध है।
  • प्रतिबंध:
    • भारत में सरकारी संपत्तियों, रक्षा प्रतिष्ठानों और सैन्य क्षेत्रों जैसे प्रतिबंधित क्षेत्रों के लिये सड़क दृश्य/स्ट्रीट व्यू की अनुमति नहीं है।
    • इसका मतलब है कि दिल्ली जैसी जगह पर छावनी क्षेत्र स्ट्रीट व्यू कीे सीमा से बाहर होगा।
  • स्ट्रीट व्यू के साथ समस्याएँ:
    • पिछले कुछ वर्षों में स्ट्रीट व्यू के संबंध में बहुत सारी गोपनीयता और अन्य मुद्दों को उठाया गया है।
    • इनमें से बहुत से लोगों के चेहरे और अन्य पहचाने जाने योग्य पहलुओं, जैसे कार नंबर प्लेट और घर का नंबर, कैमरे द्वारा विभिन्न तरीकों से कैप्चर किये जा रहे हैं तथा उनका दुरुपयोग किया जाता हैं।
    • विशेष रूप से संवेदनशील स्थानों के संबंध में इस तरह के दृश्य उपलब्ध होने से सुरक्षा संबंधी चिंताएँ भी बढ़ गई हैं।
    • गूगल को भारत, ऑस्ट्रिया, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जैसे देशों में स्थानीय अधिकारियों के साथ समस्याएँ हैं

राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति 2021:

  • परिचय:
    • राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति, 2021 भू-स्थानिक क्षेत्र को उदार बनाती है और सार्वजनिक वित्त के उपयोग से उत्पन्न डेटासेट का लोकतंत्रीकरण करती है।
    • यह नीति नागरिकों और उद्यमों को देश के विकास संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये भू-स्थानिक डेटा एवं सूचना का उपयोग करने तथा सुरक्षा हितों की रक्षा करने हेतु सशक्त बनाने का प्रयास करती है।
    • यह भू-स्थानिक ज्ञान सृजन, कौशल सेट और विशेषज्ञता आदि को प्रोत्साहित करके देश के साथ-साथ विश्व स्तर पर भू-स्थानिक पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने का प्रावधान करती है।
  • मुख्य विशेषताएँ:
    • भारतीय सर्वेक्षण स्थलाकृतिक आँकड़ों को व्यापक रूप से और आसानी से सुलभ बनाएगा।
    • राष्ट्रीय डेटा साझाकरण और अभिगम्यता नीति (2012) के अनुसार सार्वजनिक धन का उपयोग करके उपलब्ध भू-स्थानिक डेटा संबंधी जानकारी साझा की जाएगी।
    • भू-स्थानिक डेटा के भंडारण स्वरूपों को मानकीकृत करने का प्रयास किया जाएगा ताकि यह एक इंटरऑपरेबल मशीन द्वारा पढ़े जाने केे रूप में उपलब्ध हो सके।
    • भू-स्थानिक डेटा शिक्षा के लिये एक मानकीकृत पाठ्यक्रम विकसित किया जाएगा।
    • सर्वेक्षणकर्त्ताओं जैसे पेशेवरों की प्रथाओं की समीक्षा करने और भू-स्थानिक शिक्षा में पाठ्यक्रमों के पूरा होने पर व्यक्तियों को प्रमाणित करने हेतु एक प्रमाणित निकाय का गठन किया जाएगा।
  • आवश्यकता:
    • विभिन्न सरकारी एजेंसियाँ अक्सर भू-स्थानिक डेटा का डिज़िटलीकरण और संग्रहण का कार्य करती हैं। अक्सर प्रयासों का दोहराव तब होता है जब कई एजेंसियां ऐसे डेटा को संग्रहीत करती हैं तो संसाधनों की बर्बादी होती है।
    • भू-स्थानिक डेटा भंडारण और प्रसार के प्रारूपों को मानकीकृत करके इस अपव्यय को कम करने की आवश्यकता है
    • यद्यपि लगभग 200 विश्वविद्यालयों/संस्थानों में भू-स्थानिक शिक्षा प्रदान की जाती है, लेकिन इसके पाठ्यक्रम में कोई मानकीकरण नहीं है।
    • व्यवसायों और व्यक्तियों दोनों सहित गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा भू-स्थानिक डेटा तक पहुँच प्रतिबंधित है।
    • सरकार द्वारा साझा किया गया डेटा अक्सर मशीन द्वारा पठनीय नहीं होता है।

भारत में भू-स्थानिक पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति:

  • सांख्यिकी:
    • भारतीय भू-स्थानिक अर्थव्यवस्था का मूल्य वर्तमान में 38,972 करोड़ रुपए है जिसमे लगभग 4.7 लाख लोग कार्यरत हैं।
    • वर्ष 2021 में भू-स्थानिक बाज़ार में रक्षा और खुफिया (14.05%) क्षेत्र, शहरी विकास (12.93%) एवं यूटिलिटीज़ सेगमेंट,(11%) का वर्चस्व रहा जिसका कुल भू-स्थानिक बाज़ार में 37.98% का योगदान था।
  • क्षेत्र का महत्त्व:
    • एक संभावित क्षेत्र: 'भारत भू-स्थानिक अर्थ रिपोर्ट-2021’ के अनुसार, इस क्षेत्र में वर्ष 2025 के अंत तक 12.8% की दर से 63,100 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी होने की क्षमता है।
    • रोज़गार: अमेज़न, ज़ोमेटो जैसी निजी कंपनियाँ अपने वितरण कार्यों को सुचारू रूप से संचालित करने हेतु इस तकनीक का उपयोग करती हैं, जिससे आजीविका सृजन में मदद मिलती है।
    • योजनाओं का क्रियान्वयन: गति शक्ति कार्यक्रम जैसी योजनाओं को भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करके सुचारू रूप से लागू किया जा सकता है।
    • मेक इन इंडिया: इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने से भारतीय कंपनियाँ गूगल मैप्स के भारतीय संस्करण की तरह स्वदेशी एप विकसित कर सकती हैं।
    • भूमि अभिलेखों का प्रबंधन: प्रौद्योगिकी का उपयोग कर बड़ी संख्या में जोत से संबंधित डेटा को उचित रूप से टैग और डिजिटाइज़ किया जा सकता है।
      • यह न केवल बेहतर लक्ष्यीकरण में मदद करेगा बल्कि न्यायालयों में भूमि विवादों की संख्या को भी कम करेगा।
    • संकट प्रबंधन: कोविड-19 टीकाकरण अभियान के दौरान भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का काफी बेहतरीन प्रयोग किया गया था।
    • इंटेलीजेंट मैप और मॉडल: भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग इंटेलीजेंट मैप और मॉडल बनाने हेतु किया जा सकता है, जिसे STEM (विज्ञान प्रौद्योगिकी इंजीनियरिंग और गणित) के अनुप्रयोग में वांछित परिणाम प्राप्त करने हेतु अंतःक्रियात्मक रूप से या सामाजिक जाँच एवं नीति-आधारित अनुसंधान की वकालत करने हेतु उपयोग किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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