विविध
अगस्त 2019
- 25 Sep 2019
- 148 min read
पीआरएस की प्रमुख हाइलाइट्स
- समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास
- 2019-20 की पहली तिमाही में जीडीपी में वृद्धि
- पॉलिसी रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में कमी
- 2019-20 की पहली तिमाही में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि
- गृह मामले
- जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द
- जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019
- NRC अपीलों के लिये समय सीमा में वृद्धि
- वित्त
- RBI बोर्ड ने मौजूदा कैपिटल फ्रेमवर्क की समीक्षा के लिये समिति के सुझावों को मंजूर किया
- सरकार ने कई सरकारी बैंकों के विलय, पूंजी समर्थन की घोषणा की
- चिट फंड्स (संशोधन) विधेयक
- ऑफशोर रूपी मार्केट्स पर गठित टास्क फोर्स की रिपोर्ट सौंपी
- वित्त मंत्रालय ने टैक्स डिपार्टमेंट्स में अपील की मौद्रिक सीमा को बढ़ाया
- RBI ने रेगुलेटरी सैंडबॉक्स के लिये एनेबलिंग फ्रेमवर्क जारी किया
- ऑन-लेंडिंग वाले एनबीएफसीज़ के बैंक ऋण प्राथमिक क्षेत्र में वर्गीकृत
- कॉरपोरेट मामले
- इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) विधेयक, 2019
- कॉम्पिटिशन लॉ रिव्यू कमिटी ने रिपोर्ट सौंपी
- CSR पर उच्च स्तरीय कमिटी की रिपोर्ट
- वाणिज्य और उद्योग
- राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान (संशोधन) विधेयक, 2019
- विभिन्न क्षेत्रों में FDI नीति की समीक्षा के प्रस्ताव को मंज़ूरी
- रक्षा
- रक्षा खरीद प्रक्रिया की समीक्षा के लिये कमिटी के गठन को मंज़ूरी
- एकल पिता सैन्यकर्मियों के लिये बच्चों की देखभाल हेतु अवकाश लाभ में वृद्धि
- सेना मुख्यालय के पुनर्गठन को मंज़ूरी
- विधि और न्याय
- उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2019
- ई-कॉमर्स से संबंधित मसौदा दिशानिर्देश
- आर्बिट्रेशन और कंसीलियेशन (संशोधन) विधेयक, 2019
- गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) संशोधन विधेयक, 2019
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019
- सर्वोच्च न्यायालय (जजों की संख्या) संशोधन विधेयक, 2019
- रिपीलिंग और संशोधन विधेयक, 2019 संसद में पारित
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019
- एनडीएमसी अधिनियम के अंतर्गत अपीलीय अथॉरिटी का गठन
- श्रम
- वेतन संहिता, 2019 संसद में पारित
- मसौदा कर्मचारी प्रोविडेंटफंड्स और विविध प्रावधान (संशोधन) विधेयक, 2019
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण
- राष्ट्रीय मेडिकल आयोग विधेयक, 2019
- सेरोगेसी (विनियमन) विधेयक
- सड़क परिवार और राजमार्ग
- मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2019
- नागरिक उड्डयन
- भारतीय एयरपोर्ट इकोनॉमिक अथॉरिटी (संशोधन) विधेयक, 2019
- आवास और शहरी मामले
- सार्वजनिक परिसर (अनाधिकृत कब्ज़ा करने वालों की बेदखली) संशोधन विधेयक, 2019
- जल शक्ति
- अंतर्राष्ट्रीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019
- बांध सुरक्षा विधेयक, 2019
- कंपोजिट वॉटर मैनेजमेंट इंडेक्स , 2019
- शिक्षा
- 20 संस्थानों को उत्कृष्ट संस्थानों का दर्जा देने का सुझाव
- कृषि
- वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिये चीनी पर निर्यात सब्सिडी को मंज़ूरी
- वर्ष 2018-19 के लिये प्रमुख फसलों के उत्पादन का चौथा अग्रिम अनुमान
- अनुबंध कृषि को अनिवार्य वस्तु अधिनियम के कुछ प्रतिबंधों से छूट
- ऊर्जा
- बदहाल थर्मल पावर परियोजनाओं पर उच्च स्तरीय समिति के सुझाव
- बिजली के लिये रियल-टाइम मार्केट हेतु फ्रेमवर्क प्रस्तावित
- ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉप सोलर प्रोग्राम के चरण II के कार्यान्वयन के दिशानिर्देश
- समुद्री ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में घोषित
- स्टेट रूफटॉप सोलर अट्रैक्टिव इंडेक्स (सरल)
- खनन
- खनन का काम बंद करने के मापदंडों में छूट
- सामरिक खनिजों के लिये विदेशों में खनन हेतु संयुक्त उपक्रम
- स्टील
- लौह और इस्पात क्षेत्र के लिये मसौदा सुरक्षा संहिता
- संस्कृति
- जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) विधेयक, 2019
- दूरसंचार
- ट्राई ने इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर श्रेणी- I के पंजीकरण के दायरे की समीक्षा पर सुझावों को आमंत्रित किया
- सूचना और प्रसारण
- ट्राई ने प्रसारण और केबल सेवाओं के लिये टैरिफ संबंधी मुद्दों पर सुझावों को आमंत्रित किया
- विदेशी मामले
- प्रधानमंत्री फ्राँस दौरे पर
- विदेश मंत्री ने चीन का दौरा किया
समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास
2019-20 की पहली तिमाही में जीडीपी में वृद्धि
- पिछले वर्ष की पहली तिमाही के मुकाबले 2019-20 में इसी अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) (2011-12 की स्थिर कीमत पर) 5% की दर से बढ़ा। विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में GDP वृद्धि को सकल मूल्य संवर्द्धन (GVA) में मापा जाता है।
- वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही के मुकाबले, 2019-20 की पहली तिमाही में सभी क्षेत्रों में संयुक्त GVA 7.7% से कम हो गई। बिजली और खनन को छोड़कर सभी क्षेत्रों में GVA की वृद्धि दर में गिरावट देखी गई।
- बिजली क्षेत्र में यह 6.7% से बढ़कर 8.6% और खनन क्षेत्र में 0.4% से बढ़कर 2.7% हो गई। उल्लेखनीय है कि मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में यह वर्ष 2018-19 ( पहली तिमाही) में 12.1% से गिरकर 2019-20 में (तिमाही 1) 0.6% हो गई।
पॉलिसी रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में कमी
(Policy Repo Rate and Reverse Repo Rate)
मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee-MPC) ने 2019-20 का तीसरा द्विमासिक मौद्रिक नीतिगत वक्तव्य जारी किया। पॉलिसी रेपो रेट (जिस दर पर RBI बैंकों को ऋण देता है) 5.75% से गिरकर 5.4% हो गया। MPC के अन्य निर्णयों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- रिवर्स रेपो रेट (जिस दर पर RBI बैंकों से उधार लेता है) 5.5% से गिरकर 5.15% हो गया।
- मार्जिनल स्टैंडिंग फेसिलिटी (जिस दर पर बैंक अतिरिक्त धन उधार ले सकते हैं) और बैंक रेट (जिस दर पर RBI बिल्स ऑफ एक्सचेंज को खरीदता या रीडिस्काउंट करता है) 6% से गिरकर 5.65% हो गया।
- MPC ने मौद्रिक नीति के समायोजन के रुख को बरकरार रखने का फैसला किया।
2019-20 की पहली तिमाही में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि
वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के मुकाबले 2019-20 की पहली तिमाही में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Index of Industrial Production-IIP) 3.6% बढ़ गया।
- बिजली क्षेत्र में सर्वाधिक 7.2% की बढ़ोतरी हुई, इसके बाद मैन्यूफैक्चरिंग में 3.1% और खनन में 3% की वृद्धि हुई।
गृह मामले
जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द
अनुच्छेद 370 के अंतर्गत जम्मू और कश्मीर को मिला विशेष दर्जा केंद्र सरकार द्वारा रद्द कर दिया गया। अनुच्छेद के अनुसार, जम्मू और कश्मीर के संबंध में संसद को रक्षा, विदेशी मामलों, संचार और केंद्रीय चुनावों के लिये कानून बनाने की शक्ति प्राप्त थी। हालाँकि राष्ट्रपति राज्य सरकार की सहमति से दूसरे केंद्रीय कानून का विस्तार कर सकते थे।
- संसद द्वारा अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निष्प्रभावी बनाने का सुझाव देते हुए एक प्रस्ताव मंजूर किया गया और कहा गया कि संविधान के सभी प्रावधान जम्मू और कश्मीर पर लागू होंगे। इस प्रस्ताव के आधार पर राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने के लिये एक अधिसूचना जारी की।
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 (Jammu and Kashmir Reorganisation Bill, 2019) को संसद में पारित कर दिया गया। यह विधेयक जम्मू और कश्मीर राज्य को जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश और लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश में पुनर्गठित करने का प्रावधान करता है। विधेयक के मुख्य प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- जम्मू और कश्मीर का पुनर्गठन: विधेयक जम्मू और कश्मीर राज्य को निम्नलिखित में पुनर्गठित करता है:
- विधानसभा के साथ जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश
- विधानसभा के बिना लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश। लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश में कारगिल और लेह ज़िले होंगे तथा जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश में मौजूदा जम्मू और कश्मीर राज्य का शेष प्रदेश आएगा।
- उपराज्यपाल/लेफ्टिनेंट गवर्नर: जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश को राष्ट्रपति द्वारा प्रशासित किया जाएगा। इसके लिये राष्ट्रपति लेफ्टिनेंट गवर्नर नामक एक प्रशासक की नियुक्ति करेगा। लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश को राष्ट्रपति द्वारा प्रशासित किया जाएगा। इसके लिये भी राष्ट्रपति लेफ्टिनेंट गवर्नर के रूप में एक प्रशासक की नियुक्ति करेगा।
- जम्मू और कश्मीर की विधानसभा: विधेयक जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश के लिये एक विधानसभा का प्रावधान करता है। विधानसभा में कुल 107 सीटें होंगी। इनमें जम्मू और कश्मीर के पाकिस्तानी कब्ज़े वाले कुछ क्षेत्रों की 24 सीटें रिक्त होंगी। विधानसभा जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश के किसी हिस्से के लिये कानून बना सकती है जो कि निम्नलिखित हो सकते हैं:
- ‘पुलिस’ और ‘पब्लिक ऑर्डर’ को छोड़कर संविधान की राज्य सूची में निर्दिष्ट कोई भी मामला
- केंद्रशासित प्रदेश पर लागू समवर्ती सूची में आने वाला कोई भी मामला।
इसके अतिरिक्त संसद के पास यह शक्ति होगी कि वह जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश के किसी भी मामले के संबंध में कानून बनाए।
- कानून का विस्तार: अनुसूची में 106 केंद्रीय कानून हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित तिथि से जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश तथा लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश पर लागू किया जाएगा। इनमें आधार अधिनियम 2016, भारतीय दंड संहिता 1860 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 शामिल हैं। इसके अतिरिक्त यह विधेयक जम्मू और कश्मीर राज्य के 153 कानूनों को रद्द करता है। विधेयक कहता है कि 166 राज्य कानून प्रभावी बने रहेंगे और सात कानूनों को संशोधनों के साथ लागू किया जाएगा। पहले सिर्फ जम्मू और कश्मीर के स्थायी निवासियों को ही लैंड लीज पर दी जा सकती थी। अब संशोधन के द्वारा यह पाबंदी हटा दी गई है।
NRC अपीलों के लिये समय सीमा में वृद्धि
नागरिकता (नागरिकता के पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र) नियम [Citizenship (Registration of Citizenship and National Identity Card) Rules], 2003 के अंतर्गत, असम के लिये राष्ट्रीय भारतीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Indian Citizens-NRC) को तैयार किया गया है।
- कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसका नाम NRC में दर्ज होने से छूट गया है या गलत नाम शामिल हो गया है, तो वह नागरिक पंजीकरण स्थानीय रजिस्ट्रार के पास शिकायत दर्ज करा सकता है। इससे पूर्व रजिस्ट्रार के फैसले के खिलाफ 60 दिनों के भीतर विदेशी (अधिकरण) आदेश, 1964 के अंतर्गत गठित अधिकरण में अपील की जा सकती थी। इन नियमों को संशोधित किया गया ताकि अपील की समय-सीमा को 60 दिनों से बढ़ाकर 120 दिन किया जा सके। उल्लेखनीय है कि असम में 31 अगस्त, 2019 को NRC प्रकाशित किया गया। इस सूची में 19,06,657 लोग शामिल नहीं हैं।
वित्त
RBI बोर्ड ने मौजूदा कैपिटल फ्रेमवर्क की समीक्षा के लिये समिति के सुझावों को मंजूर किया
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने केंद्र सरकार की सलाह से मौजूदा इकोनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क (Current Economic Capital Framework) की समीक्षा के लिये नवंबर, 2018 में एक समिति (अध्यक्ष: बिमल जालान) का गठन किया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। इकोनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क वह तरीका बताता है जिससे RBI अधिनियम, 1934 के सेक्शन 47 के अंतर्गत उपयुक्त स्तर के जोखिमों और लाभ वितरण का निर्धारण किया जा सके। समिति के संदर्भ की शर्तों में यह निर्धारित करना शामिल है कि क्या RBI अधिशेष/घाटे में रिज़र्व रख रहा है। साथ ही उपयुक्त अधिशेष वितरण नीति को प्रस्तावित करना भी इसमें शामिल है। इस संबंध में समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिये:
- केंद्रीय बैंक के इकोनॉमिक कैपिटल में उसकी रियलाइज़्ड इक्विटी (Realised Equity) और रीवैल्यूएशन बैलेंस (Revaluation Balance) शामिल होता है। रियलाइज़्ड इक्विटी में निम्नलिखित शामिल होते हैं:
- आकस्मिकता राशि जिसमें अप्रत्याशित आकस्मिकता के लिये प्रावधान शामिल हैं।
- परिसंपत्ति विकास कोष, जो कि सबसिडियरीज में निवेश और आंतरिक पूंजीगत व्यय में निवेश के लिये अलग रखी गई राशि होती है।
- कैपिटल और रिज़र्व फंड। विनिमय दर, सोने की कीमतों या ब्याज की दरों के उतार-चढ़ाव से होने वाला मुनाफा या नुकसान रीवैल्यूएशन बैंलेंस होता है।
मौजूदा अधिशेष वितरण नीति का लक्ष्य केवल कुल इकोनॉमिक कैपिटल है। समिति ने सुझाव दिया कि लक्ष्य में रियलाइज़्ड इक्विटी भी शामिल होनी चाहिये। CRB के रूप में रियलाइज़्ड इक्विटी का आकार RBI की बैलेंस शीट के 5.5% से 6.5% के बीच बरकरार रहना चाहिये (मौजूदा लक्ष्य 3% से 4% के बीच है)।
कुल इकोनॉमिक कैपिटल बैलेंस शीट के 20.8% से 25.4% के बीच बरकरार रहना चाहिये (मौजूदा लक्ष्य 28.1% से 29.1% के बीच है)। 30 जून, 2018 तक केंद्रीय बैंक के लिये सीआरबी और कुल इकोनॉमिक कैपिटल बैलेंस शीट का क्रमशः 7.2% और 26.8% है।
- अगर रियलाइज़्ड इक्विटी अपेक्षित स्तर से अधिक है तो RBI की पूरी शुद्ध आय सरकार को हस्तांतरित हो जाएगी। अगर यह कम है तो जोखिम प्रावधानीकरण ज़रूरी सीमा तक किया जाएगा और केवल शेष शुद्ध आय को हस्तांतरित किया जाएगा। इस फ्रेमवर्क की हर 5 वर्षों में समीक्षा की जा सकती है।
RBI बोर्ड ने समिति के सभी सुझावों को मंजूर कर लिया। वर्ष 2018-19 के खातों के आधार पर उपलब्ध रियलाइज़्ड इक्विटी बैलेंस शीट के 6.8% पर रही। यह समिति द्वारा सुझाई गई सीमा से अधिक था। बोर्ड ने रियलाइज़्ड इक्विटी के स्तर को बैलेंस शीट के 5.5% पर बरकरार रखने का फैसला किया और 52,637 करोड़ रुपए के जोखिम बफर को केंद्र सरकार को हस्तांतरित किया।
संशोधित फ्रेमवर्क के अनुसार, RBI का इकोनॉमिक कैपिटल (30 जून, 2019) बैलेंस शीट के 23.3% पर रहा, जो कि समिति द्वारा सुझाई गई सीमा में था। इस प्रकार बोर्ड ने वर्ष 2018-19 की समूची शुद्ध आय, जो कि 1,23,414 करोड़ रुपए है, को सरकार को हस्तांतरित करने का फैसला किया।
सरकारी बैंकों के विलय तथा पूंजी समर्थन की घोषणा
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) से संबधित अनेक उपायों की घोषणा की। इसमें 10 बैंकों के विलय से चार बैंक बनाना शामिल है ताकि ऋण देने के उनके स्तर और क्षमता को बढ़ाया जा सके। जिन बैंकों का विलय किया गया, उनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- पंजाब नेशनल बैंक, ऑरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को मिलाकर एक बैंक बनाया जाएगा तथा इनमें पंजाब नेशनल बैंक एंकर बैंक (बड़ा बैंक जिसमें बाकी के बैंकों को मिला दिया जाएगा) होगा। परिणामस्वरूप अस्तित्व में आने वाला बैंक देश में दूसरा सबसे बड़ा पीएसबी होगा जिसका कुल कारोबार 17.94 लाख करोड़ रुपए होगा।
- केनरा बैंक (एंकर बैंक) और सिंडिकेट बैंक का विलय एक बैंक में किया जाएगा। यह बैंक चौथा सबसे बड़ा पीएसबी होगा (कुल कारोबार 15.2 लाख करोड़ रुपए)।
- यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (एंकर बैंक), आंध्र बैंक और कॉरपोरेशन बैंक का विलय एक बैंक में हो जाएगा और यह बैंक पाँचवाँ सबसे बड़ा पीएसबी होगा (कुल कारोबार 14.59 लाख करोड़ रुपए)।
- इंडियन बैंक (एंकर बैंक) और इलाहाबाद बैंक का विलय हो जाएगा और यह सातवाँ सबसे बड़ा पीएसबी होगा (कुल 8.08 लाख करोड़ रुपए का कारोबार)।
10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 55,250 करोड़ रुपए की पूंजी डालने की घोषणा भी की गई । इसमें पंजाब नेशनल बैंक में 16,000 करोड़ रुपए, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में 11,700 करोड़ रुपए, और बैंक ऑफ बड़ौदा में 7,000 करोड़ रुपए शामिल हैं।
चिट फंड्स (संशोधन) विधेयक
[Chit Fund (amendment) Bill)]
चिट फंड्स (संशोधन) विधेयक, 2019 को लोकसभा में पेश किया गया। विधेयक चिट फंड्स अधिनियम, 1982 में संशोधन का प्रयास करता है। विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- चिट फंड का नाम: अधिनियम ऐसे विभिन्न नाम विनिर्दिष्ट करता है जिनका इस्तेमाल चिट फंड के लिये किया जा सकता है। इनमें चिट, चिट फंड और कुरी शामिल है। विधेयक इस सूची में ‘मैत्री फंड’ (फ्रेटरनिटी फंड) तथा ‘आवर्ती बचत और प्रत्यय संस्था’ (Roatating Savings and Credit Institution) को जोड़ता है।
- वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये सबस्क्राइबरों की उपस्थिति: अधिनियम विनिर्दिष्ट करता है कि कम-से-कम दो सबस्क्राइबरों की उपस्थिति में चिट निकाली जाएगी। विधेयक इन सबस्क्राइबरों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये उपस्थित होने की अनुमति देने का प्रयास करता है।
- फोरमैन का आयोग: अधिनियम के अंतर्गत चिट फंड को चलाने की ज़िम्मेदारी ‘फोरमैन’ की है। वह चिट की कुल राशि का अधिकतम 5% आयोग के तौर पर पाने के लिये अधिकृत है। विधेयक इस कमीशन को बढ़ाकर 7% करने का प्रयास करता है। इसके अतिरिक्त विधेयक सबस्क्राइबर्स के क्रेडिट बैलेंस पर फोरमैन के वैध अधिकार की अनुमति देता है।
- चिट्स की अधिकतम राशि: अधिनियम के अंतर्गत चिट्स फर्म्स, संगठन या व्यक्तियों द्वारा चलाए जा सकते हैं। अधिनियम चिट् फंड्स की अधिकतम राशि को विनिर्दिष्ट करता है जिन्हें जमा किया जा सकता है। ये सीमाएँ हैं: (i) व्यक्तियों द्वारा चलाए जाने वाले चिट्स तथा चार से कम पार्टनर्स वाली फर्म या संगठन में प्रत्येक व्यक्ति द्वारा चलाए जाने वाले चिट्स के लिये एक लाख रुपए और (ii) चार या उससे अधिक पार्टनर्स वाली फर्म्स के लिये छह लाख रुपए। विधेयक इस सीमा को क्रमशः तीन लाख रुपए और 18 लाख रुपए करता है।
- अधिनियम का एप्लीकेशन: वर्तमान में अधिनियम निम्न पर लागू नहीं होता: (i) अधिनियम लागू होने से पहले शुरू किये गए किसी चिट पर और (ii) किसी ऐसे चिट (या एक ही फोरमैन द्वारा चलाए जाने वाले कई चिट्स) पर जिसकी राशि 100 रुपए से कम है। विधेयक 100 रुपए की सीमा को हटाता है और राज्य सरकार को आधार राशि तय करने की अनुमति देता है जिससे अधिक की रकम होने पर अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे।
ऑफशोर रूपी मार्केट्स (Offshore Rupee Markets) पर गठित टास्क फोर्स ने रिपोर्ट सौंपी
ऑफशोर रूपी पर गठित टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसे RBI ने फरवरी 2019 में गठित किया था ताकि ऑफशोर रूपी मार्केट्स से संबंधित मुद्दों, एक्सचेंज रेट पर उसके असर की समीक्षा की जा सके और उपयुक्त नीतिगत उपायों का सुझाव दिया जा सके।
ऑफशोर मार्केट्स भागीदारों को नॉन-कन्वर्टिबल करेंसी (Non Convertable Currency) में व्यापार करने का मौका देता है और इस प्रकार वे घरेलू अथॉरिटीज़ के दायरे के बाहर व्यापार करते हैं। RBI की नीति का उद्देश्य गैर-निवासियों को घरेलू बाज़ार में आने के लिये प्रोत्साहित करना है। हालाँकि हाल के वर्षों में ऑफशोर रूपी मार्केट्स में तेज़ी से वृद्धि हुई है जिसका मुद्रा स्थिरता पर असर हुआ है। टास्क फोर्स के मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- वर्तमान में ऑफशोर मार्केट में कारोबार सुबह 9 से शाम 5 बजे तक होता है। टास्क फोर्स ने कहा कि घरेलू बाज़ार उस समय बंद होता है, जब कुछ विशेष क्षेत्रों, जैसे यूएसए में अधिकतर प्रयोक्ता काम करते हैं। इससे ऑफशोर मार्केट्स में उनका जाना स्वाभाविक है। उसने सुझाव दिया कि ऑनशोर मार्केट के काम के घंटों को बढ़ाया जाए ताकि ऑफशोर मार्केट की फ्लेक्सिबिलिटी की बराबरी की जा सके और गैर निवासी ऑनशोर मार्केट में आने को प्रोत्साहित हों।
- टास्क फोर्स ने सुझाव दिया कि ऐसे उपाय किये जाने चाहिये ताकि गैर-निवासी ऑनशोर मार्केट में विदेशी मुद्रा को हेज करने को प्रोत्साहित हों, जैसे (i) एक केंद्रीय क्लियरिंग और सेटेलमेंट तंत्र स्थापित करना (ii) वित्तीय बाज़ारों में केंद्रीयकृत केवाईसी की ज़रूरत और (iii) भारत में कर क्षेत्र और अंतर्राष्ट्रीयवित्तीय केंद्रों के बीच अंतराल को कम करना।
- जोखिमों को स्थापित करने की ज़रूरत के बिना प्रयोक्ताओं को ओटीसी करेंसी डेरिवेटिव मार्केट (ऑफ एक्सचेंज ट्रेडिंग मार्केट, जिसमें प्रतिभागी एक दूसरे से सीधे व्यापार करते हैं) में 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक विदेशी मुद्रा लेनदेन की अनुमति।
- भारत में अंतर्राष्ट्रीयवित्तीय सेवा केंद्रों में रूपी डेरिवेटिव्स (विदेशी करेंसी में सेटेल्ड) को व्यापार की अनुमति।
वित्त मंत्रालय ने टैक्स डिपार्टमेंट्स में अपील की मौद्रिक सीमा को बढ़ाया
वित्त मंत्रालय ने सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज़ और सेंट्रल बोर्ड ऑफ इनडायरेक्ट टैक्सेज़ एंड कस्टम्स में अपील दायर करने की मौद्रिक सीमा को बढ़ा दिया है। अपीलीय अधिकरण, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों में अपील दायर करने के लिये ये सीमाएँ लागू हैं। इस सीमा को मुकदमेबाज़ी में सुधार के उद्देश्य से बढ़ाया गया है ताकि इन डिपार्टमेंट्स को पर्याप्त मूल्य के मुकदमे पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिले। तालिका 2 में प्रदर्शित किया गया है कि विभिन्न अपीलीय मंचों के समक्ष विभागीय अपील करने की संशोधित सीमाएँ क्या हैं।
सेंट्रल बोर्ड ऑफ इनडायरेक्ट टैक्सेज़ एंड कस्टम्स की स्थिति में संशोधित सीमा केंद्रीय उत्पाद और सेवा शुल्क से संबंधित अपीलों पर लागू होगी (सभी लंबित मामलों सहित)। इसके अतिरिक्त ये सीमाएँ उन मामलों पर लागू नहीं होंगी, जिसमें कोई कानूनी अड़चन होगी। इनमें ऐसे मामले शामिल हैं जहाँ: (i) किसी अधिनियम या नियम के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है, और (ii) अधिसूचना, आदेश, निर्देश, या सर्कुलर को गैर कानूनी या अधिकार क्षेत्र से बाहर माना गया है।
RBI ने रेगुलेटरी सैंडबॉक्स के लिये एनेबलिंग फ्रेमवर्क जारी किया
भारतीय रिज़र्व बैंक ने रेगुलेटरी सैंडबॉक्स के लिये एनेबलिंग फ्रेमवर्क जारी किया। RBI ने 2016 में वित्तीय तकनीकी क्षेत्र में रेगुलेटरी फ्रेमवर्क की समीक्षा के लिये अंतर-रेगुलेटरी वर्किंग ग्रुप का गठन किया था। उसने रेगुलेटरी सैंडबॉक्स के लिये फ्रेमवर्क को प्रस्तावित करने का सुझाव दिया था ताकि रेगुलेटरी दिशा-निर्देश दिये जा सकें, कार्य क्षमता बढ़ाई जा सके, जोखिमों का प्रबंधन किया जा सके और उपभोक्ताओं के लिये नए अवसरों का सृजन किया जा सके।
सैंडबॉक्स एक ऐसा परिवेश प्रदान करता है जिसमें प्रतिभागियों को ग्राहकों के साथ एक नियंत्रित परिवेश में नए उत्पादों, सेवाओं या कारोबारी मॉडल का परीक्षण करने का मौका मिलता है। सैंडबॉक्स का उद्देश्य वित्तीय सेवाओं में नवाचार को पोषित करना, कार्य कुशलता को बढ़ावा देना और उपभोक्ताओं को लाभ पहुँचाना है। फ्रेमवर्क की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- पात्रता: सैंडबॉक्स के केंद्र में फिनटेक कंपनियों में नवाचार को बढ़ावा देना होगा, जहाँ (क) प्रशासनिक विनियमन मौजूद नहीं हैं, (ख) विनियमन खत्म करने से प्रस्तावित नवाचार को बढ़ावा मिले या (ग) प्रस्तावित नवाचार से वित्तीय सेवा की डिलिवरी आसान होती हो।
- इसके मद्देनज़र मसौदा फ्रेमवर्क ने उत्पादों, सेवाओं और तकनीक की एक सूची चिन्हित की है जिन पर सैंडबॉक्स के अंतर्गत परीक्षण के लिये विचार किया जा सकता है। इसमें रिटेल पेमेंट, मनी ट्रांसफर सेवाएँ, मोबाइल तकनीक आवेदक, डेटा एनालिटिक्स, वित्तीय सलाहकार सेवाएँ, वित्तीय समावेश और साइबर सुरक्षा उत्पाद शामिल हैं।
- फ्रेमवर्क में यह प्रावधान भी है कि फिनटेक कंपनियों को रेगुलेटरी सैंडबॉक्स में भाग लेने के लिये भारत में निगमित किया जाना चाहिये। इसमें सांविधिक तरीके से स्थापित वित्तीय संस्थान भी पात्र होंगे। इसके अतिरिक्त संस्था का न्यूनतम शुद्ध मूल्य उसकी हालिया ऑडिटेड बैलेंस शीट के अनुसार पच्चीस लाख रुपए होना चाहिये।
- समय सीमा: सैंडबॉक्स प्रक्रिया के 5 चरण होंगे और यह 27 हफ्ते तक चलेगी। इन चरणों में उत्पाद की प्रारंभिक स्क्रीनिंग, टेस्ट डिज़ाइन, आवेदनों का आकलन, परीक्षण और मूल्यांकन शामिल है। प्रतिभागी कंपनियों को प्रदान की गई छूट इस अवधि के अंत में समाप्त हो जाएगी।
- इस कार्यान्वयन पर RBI की फिनटेक यूनिट नज़र रखेगी। अगर कोई संस्था अपेक्षित उद्देश्य को हासिल नहीं कर पाती या वह रेगुलेटरी शर्तों को पूरा नहीं कर पाती तो RBI सैंडबॉक्स टेस्टिंग को बंद कर सकती है।
ऑन-लेंडिंग वाले एनबीएफसीज़ के बैंक ऋण प्राथमिक क्षेत्र में वर्गीकृत
बैंक पंजीकृत नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों (एनबीएफसीज़) को कुछ विशेष क्षेत्रों में ऑन-लेंडिग हेतु ऋण देते हैं। अब इन ऋणों को प्राथमिक क्षेत्र के ऋण (प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग) के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा। भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इन क्षेत्रों में कृषि, सूक्ष्म और लघु उद्यम और आवास शामिल हैं।
- कृषि क्षेत्र हेतु टर्म लेंडिंग के लिये एनबीएफसी द्वारा ऑन-लेंडिंग 10 लाख रुपए प्रति उधारकर्त्ता की अनुमति है।
- सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये एनबीएफसीज़ द्वारा ऑन-लेडिंग के लिये 20 लाख रुपए प्रति उधारकर्त्ता की अनुमति है।
- आवास के लिये एनबीएफसीज़ द्वारा ऑन-लेंडिंग हेतु मौजूदा सीमाओं को प्राथमिक क्षेत्र में वर्गीकृत किया गया है और उसे 10 लाख रुपए से दोगुना करके 20 लाख रुपए किया गया है।
ऑन-लेंडिंग के लिये एनबीएफसीज़ के कुल बैंक ऋण की रकम बैंक के कुल प्राथमिक क्षेत्र के ऋण के 5% से अधिक नहीं होनी चाहिये। ये दिशा-निर्देश 31 मार्च, 2020 तक वैध हैं।
उल्लेखनीय है कि ये परिवर्तन उन एनबीएफसीज़ पर लागू नहीं हैं जो लघु वित्त संस्थान हैं (एनबीएफसी-एमएफआई)। एनबीएफसी-एमएफआई ऐसी नॉन-डिपॉज़िट नॉन बैंकिंग कंपनियाँ होती हैं जिनका न्यूनतम शुद्ध मूल्य 5 करोड़ रुपए होता है और उनकी 85% या उससे अधिक की परिसंपत्तियाँ ऋण के रूप में होती हैं जो कि कुछ शर्तों को पूरा करती हैं, जैसे 1 लाख रुपए की वार्षिक आय वाले ग्रामीण परिवारों को दिये गए ऋण और 1.6 लाख रुपए से कम वार्षिक आय वाले अर्द्ध-शहरी या शहरी परिवारों को दिये गए ऋण।
कॉर्पोरेट मामले
इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) विधेयक, 2019
इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) विधेयक, 2019 को राज्यसभा में पारित कर दिया गया। यह इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता, 2016 में संशोधन करती है। संहिता कंपनियों और व्यक्तियों के बीच इनसॉल्वेंसी को रिज़ॉल्व करने के लिये एक समयबद्ध प्रक्रिया प्रदान करती है। विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया की शुरुआत: संहिता के अंतर्गत फाइनेंशियल क्रेडिटर इनसॉल्वेंसी के रेज़ोल्यूशन की प्रक्रिया की शुरुआत करने के लिये राष्ट्रीय कंपनी कानून अधिकरण (एनसीएलटी) में आवेदन कर सकता है। एनसीएलटी को 14 दिनों के अंदर डिफॉल्ट का पता लगाना होगा। अपने निष्कर्षों के आधार पर एनसीएलटी आवेदन को मंजूर या नामंजूर कर सकता है। विधेयक कहता है कि अगर एनसीएलटी को डिफॉल्ट होने का पता नहीं चलता और वह 14 दिनों के अंदर आदेश जारी नहीं करता तो उसे लिखित में इसके कारण बताने होंगे।
- रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया की समय सीमा: संहिता कहती है कि इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया को 180 दिनों में पूरा होना चाहिये जिसे 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है। विधेयक कहता है कि रेज़ोल्यूशन की प्रक्रिया को 330 दिनों में पूरा होना चाहिये। इसमें रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया की बढ़ी हुई अवधि और कानूनी कार्यवाही में लगने वाला समय भी शामिल होगा। विधेयक के लागू होने पर, अगर कोई मामला 330 दिनों तक लंबित है, तो विधेयक के अनुसार, उसे 90 दिनों में निपटाया जाना चाहिये।
- रेज़ोल्यूशन प्लान: संहिता के अनुसार रेज़ोल्यूशन प्लान में यह सुनिश्चित होना चाहिये कि ऑपरेशनल क्रेडिटर्स को लिक्विडेशन की स्थिति में प्राप्त होने वाली राशि से अधिक राशि प्राप्त हो। विधेयक इसमें संशोधन करता है और प्रावधान करता है कि ऑपरेशनल क्रेडिटर्स को (i) लिक्विडेशन के अंतर्गत प्राप्त होने वाली राशि, तथा (ii) रेज़ोल्यूशन प्लान के अंतर्गत प्राप्त होने वाली राशि, अगर वह राशि वरीयता क्रम के अनुसार (लिक्विडेशन के समय) वितरित की गई है, के बीच अधिक राशि चुकाई जाए।
- फाइनेंशियल क्रेडिटर्स के प्रतिनिधि: संहिता विनिर्दिष्ट करती है कि कुछ मामलों , जैसे जब एक निर्दिष्ट संख्या से अधिक क्रेडिटर्स का ऋण बकाया है तो फाइनेंशियल क्रेडिटर्स का अधिकृत प्रतिनिधि समिति ऑफ क्रेडिटर्स में उनका प्रतिनिधित्व करेगा। यह प्रतिनिधि फाइनेंशियल क्रेडिटर्स के निर्देशानुसार उसकी ओर से वोट करेगा। विधेयक कहता है कि यह प्रतिनिधि लेनदारों के बहुमत से लिये गए निर्णय के आधार पर वोट करेगा।
कॉम्पिटिशन लॉ रिव्यू कमिटी
(Competition Law Review Committee)
कॉम्पिटिशन लॉ रिव्यू समिति (अध्यक्ष : इंजेती श्रीनिवास) ने प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 में संशोधन हेतु अपनी रिपोर्ट सौंपी। अधिनियम प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने, गैर-प्रतिस्पर्द्धी कार्य पद्धतियों को रोकने और उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण के लिये भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commison Of India) की स्थापना करता है। समिति के मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- गवर्निंग बॉडी: समिति ने सुझाव दिया कि गवर्निंग बॉडी के प्रावधान के लिये अधिनियम में संशोधन किये जाएँ जिससे सीसीआई की जवाबदेही को बढ़ाया जा सके। गवर्निंग बॉडी में एक अध्यक्ष, छह पूर्णकालिक सदस्य और छह अर्द्धकालिक सदस्य होंगे। गवर्निंग बॉडी अर्द्ध विधायी कार्य करेगी, नीतिगत फैसले लेगी और निरीक्षणात्मक भूमिका निभाएगी।
- अपीलीय अथॉरिटी: समिति ने कहा कि अधिनियम के अंतर्गत सीसीआई के आदेशों के खिलाफ राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय अधिकरण में सुनवाई की जाती है। लेकिन यह पाया गया कि अधिकरण के पास बहुत अधिक मामले हैं। इसलिये यह सुझाव दिया गया कि अधिनियम के अंतर्गत अपीलों की सुनवाई के लिये अलग से एक खंडपीठ बनाई जाए।
- निपटारा: समिति ने कहा कि यूरोपीय संघ जैसे कुछ न्यायिक क्षेत्रों में अविश्वास से संबंधित विवादों का निपटारा किया जाता है। ये उपाय निपटारे और प्रतिबद्धताओं के रूप में हो सकते हैं। निपटारे आम-तौर पर कार्टेल्स के लिये उपलब्ध होते हैं और उनके लिये पक्षों की तरफ से अपराध की स्वीकृति ज़रूरी होती है। प्रतिबद्धताएँ अन्य सभी मामलों पर लागू होती हैं और उनके लिये अपराध की स्वीकृति की ज़रूरत नहीं होती। समिति ने सुझाव दिया कि सीसीआई को सशक्त करने के लिये अधिनियम में संशोधन किये जाएँ ताकि प्रतिस्पर्द्धा विरोधी अनुबंधों (जैसे विशेष आपूर्ति का समझौता) और प्रभुत्व के दुरुपयोग जैसे मामलों में निपटारे और प्रतिबद्धता की अनुमति दी जा सके।
- ग्रीन चैनल संबंधी अधिसूचना: अधिनियम के अंतर्गत विशेष सीमा के परे कॉम्बिनेशंस के लिये सीसीआई की अनुमति की ज़रूरत होती है। समिति ने सुझाव दिया कि विशेष विलय और एकीकरण के उन मामलों में सीसीआई की स्वतः अनुमति के लिये एक ‘ग्रीन चैनल’ रूट होना चाहिये जहाँ प्रतिस्पर्द्धा पर कोई प्रतिकूल असर होने की बड़ी चिंता न हो। इसमें इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता के अंतर्गत आने वाले मामले शामिल हो सकते हैं। उल्लेखनीय है कि ग्रीन चैनल कॉम्बिनेशन से संबंधित अधिसूचना को जारी किया गया है।
- विलय के मूल्यांकन की समय-सीमा: अधिनियम के अंतर्गत अधिसूचित कॉम्बिनेशन रेगुलेशंस के लिये सीसीआई को यह प्रारंभिक सलाह देने, कि क्या कॉम्बिनेशन का प्रतिकूल असर प्रतिस्पर्द्धा पर पड़ेगा, के लिये 30 दिनों का समय दिया गया है।
CSR पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट
कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी पर उच्च स्तरीय समिति (अध्यक्ष: इंजेती श्रीनिवास) ने अपनी रिपोर्ट सौंपी। कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत जिन कंपनियों का विशिष्ट शुद्ध मूल्य, कारोबार या लाभ एक सीमा से अधिक है, उन्हें अपने पिछले तीन वित्तीय वर्षों के दौरान कमाए गए औसत शुद्ध लाभ का 2% CSR नीति पर खर्च करना होगा। समिति ने मौजूदा CSR फ्रेमवर्क के संबंध में अनेक सुझाव दिये जिनमें परिचालनगत पद्धतियों पर उनकी एप्लीकेबिलिटी भी शामिल है। मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- CSR की एप्लीकेबिलिटी: वर्तमान में सिर्फ कंपनियों को CSR रेगुलेशंस के अनुपालन की ज़रूरत होती है। समिति ने सुझाव दिया कि CSR बाध्यताओं को लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप और बैंकों जैसे अन्य व्यापार पर भी लागू होना चाहिये।
- CSR समिति : अधिनियम के अंतर्गत CSR की सभी पात्र कंपनियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे CSR समिति बनाएंगी। परिचालनगत सुविधा के लिये समिति ने सुझाव दिया कि 50 लाख रुपए से कम के CSR फंड्स को इस शर्त से छूट दी जानी चाहिये।
- CSR गतिविधियों पर टैक्स में छूट: CSR संबंधी व्यय को बढ़ावा देने के लिये CSR व्यय को कंपनी की कर योग्य आय से घटाया जाना चाहिये।
- CSR इम्पेक्ट स्टडीज़: समिति ने सुझाव दिया कि पिछले तीन वित्तीय वर्षों में 5 करोड़ रुपए से अधिक के CSR फंड्स वाली कंपनियों को हर तीन साल में एक बार अपने CSR प्रोजेक्ट्स के लिये इंपैक्ट एसेसमेंट स्टडी करनी चाहिये और अपनी बोर्ड रिपोर्ट में इसका खुलासा करना चाहिये।
- CSR ऑडिट: समिति ने कंपनी के वित्तीय वक्तव्यों में CSR व्यय के खुलासे के जरिये CSR को सांविधिक वित्तीय ऑडिट के दायरे में लाने का सुझाव दिया।
- व्यय न करने की स्थिति में जुर्माना: समिति ने इस संबंध में सुझाव दिया कि कंपनियों को खर्च न होने वाले CSR फंड्स को अलग खाते में ट्रांसफर करना होगा और उस फंड्स को 3 से 5 वर्षों में खर्च करना होगा। ऐसा न करने पर कंपनी को जुर्माना भरना पड़ सकता है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में पारित कंपनी अधिनियम, 2019 में इन संशोधनों को शामिल किया गया है और इसके अतिरिक्त जुर्माना लगाया गया है।
वाणिज्य और उद्योग
राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान (संशोधन) विधेयक, 2019
(The National Institute of Design (Amendment) Bill, 2019)
राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान (संशोधन) विधेयक, 2019 को राज्यसभा में पारित कर दिया गया और विधेयक लोकसभा में लंबित है। विधेयक राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान अधिनियम, 2014 में संशोधन करता है जो कि अहमदाबाद स्थित राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान को राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान घोषित करता है।
- विधेयक आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, असम और हरियाणा में चार अन्य राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थानों को राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान घोषित करने का प्रयास करता है।
- वर्तमान में ये चारों संस्थान सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत सोसायटी के रूप में पंजीकृत हैं और इन्हें डिग्री या डिप्लोमा देने का अधिकार नहीं है। राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान घोषित होने के बाद चारों संस्थानों को डिग्री और डिप्लोमा देने की शक्ति मिल जाएगी।
विभिन्न क्षेत्रों में FDI नीति की समीक्षा के लिये प्रस्ताव को मंज़ूरी
केंद्रीय कैबिनेट ने विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) नीति में कुछ संशोधनों को मंज़ूरी दी है। नीति में मुख्य परिवर्तनों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- कोयला खनन: वर्तमान में ऑटोमैटिक रूट से 100% FDI की निम्नलिखित में मंज़ूरी है: (i) बिजली, सीमेंट और लोहा एवं इस्पात संयंत्रों द्वारा कैप्टिव उपभोग के लिये कोयले और लिग्नाइट का खनन तथा (ii) कोयला प्रसंस्करण (हालाँकि खुले बाज़ार में कोयला बिक्री की अनुमति नहीं है)। कैबिनेट ने कोयले की बिक्री, कमर्शियल कोयला खनन, और संबंधित प्रसंस्करण की गतिविधियों, जैसे कोयले की धुलाई, क्रशिंग और हैंडलिंग में ऑटोमैटिक रूट से 100% FDI की अनुमति दे दी है।
- कॉन्ट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरिंग: मौजूदा नीति में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में ऑटोमैटिक रूट से 100% FDI की अनुमति है। भारत में मैन्यूफैक्चरिंग संबंधी गतिविधियाँ या तो निवेशक संस्था द्वारा की जाती हैं या कॉन्ट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरिंग के ज़रिये। हालाँकि FDI नीति में कॉन्ट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरिंग के लिये विशिष्ट प्रावधान नहीं हैं। इस संबंध में कॉन्ट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरिंग के लिये ऑटोमैटिक रूट से 100% FDI की अनुमति दी जाएगी।
- सिंगल ब्रांड रिटेल ट्रेडिंग: वर्तमान में 51% से अधिक की FDI वाले सिंगल ब्रांड रिटेलर्स को बेचे जाने वाले उत्पादों की 30% वैल्यू स्थानीय स्तर पर सोर्स करनी पड़ती है। इन संशोधनों के बाद भारत में की गई खरीद को स्थानीय सोर्सिंग माना जाना चाहिये, भले ही उत्पाद भारत में बेचे गए हों अथवा उनका निर्यात किया गया हो। इसके अतिरिक्त वर्तमान नीति में सभी सिंगल ब्रांड रिटेलर्स से यह अपेक्षित है कि वे ई-कॉमर्स के ज़रिये ट्रेडिंग शुरू करने से पहले पारंपरिक स्टोर के माध्यम से काम करना शुरू करेंगे। इसे संशोधित किया गया है ताकि पारंपरिक स्टोर शुरू करने से पहले ऑनलाइन रिटेल ट्रेडिंग की अनुमति दी जा सके। हालाँकि रिटेलर्स को अपने ऑनलाइन कामकाज को शुरू करने के दो साल के भीतर स्टोर खोलना होगा।
- डिजिटल मीडिया: वर्तमान में न्यूज और करेंट अफेयर्स की ब्रॉडकास्टिंग करने वाले टीवी चैनलों से अप-लिंकिंग हेतु अप्रूवल रूट से 49% FDI की अनुमति है। संशोधनों में डिजिटल मीडिया के ज़रिये न्यूज़ और करेंट अफेयर्स की अपलोडिंग और स्ट्रीमिंग के लिये अप्रूवल रूट से 26% FDI की अनुमति दी गई है।
रक्षा
रक्षा खरीद प्रक्रिया (Defence Procurement Procedure) की समीक्षा के लिये समिति के गठन को मंजूरी
रक्षा मंत्रालय ने रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी), 2016 और रक्षा खरीद मैन्यूअल (डीपीएम), 2009 की समीक्षा के लिये समिति के गठन को मंज़ूरी दी। समिति का लक्ष्य रक्षा उपकरणों की उत्तम खरीद प्रक्रिया को सुनिश्चित करने वाली प्रक्रियाओं में संशोधन करना और उन्हें श्रेणीबद्ध करना तथा ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को मज़बूत करना है। समिति के संदर्भ की शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- डीपीपी 2016 और डीपीएम 2009 की प्रक्रियाओं को संशोधित करना, ताकि प्रक्रियागत अवरोधों को दूर किया जा सके और रक्षा अधिग्रहण में तेज़ी लाई जा सके।
- डीपीपी 2016 और डीपीएम 2009 के प्रावधानों को श्रेणीबद्ध और मानकीकृत किया जा सके ताकि उपकरणों के लिये अधिक- से-अधिक लाइफ साइकिल सपोर्ट किया जा सके।
- घरेलू उद्योग में अधिक भागीदारी बढ़ाने के लिये नीतियों और प्रक्रियाओं का सरलीकरण।
- नई अवधारणाओं की जाँच और उन्हें शामिल करना, जैसे-लाइफ साइकिल कॉस्टिंग, प्रदर्शन आधारित लॉजिस्टिक्स और लीज कॉन्ट्रैक्टिंग।
- ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को समर्थन देने और भारतीय स्टार्ट -अप्स को बढ़ावा देने के प्रावधानों को शामिल करना।
एकल पिता सैन्यकर्मियों के लिये बच्चों की देखभाल हेतु अवकाश लाभ में वृद्धि
- रक्षा मंत्रालय ने सिंगल पुरुष सैन्यकर्मियों के लिये बच्चों की देखभाल हेतु अवकाश लाभ को बढ़ाने की मंज़ूरी दे दी है। वर्तमान में रक्षा बलों में सिर्फ महिला अधिकारियों को यह अवकाश मिलता है।
- 40% विकलांगता वाले बच्चों के मामले में बाल देखभाल अवकाश का लाभ उठाने के लिए 22 वर्ष की आयु सीमा निर्धारित की गई थी। इस प्रतिबंध को अब हटा दिया गया है। इसके अलावा जिस अवधि में बाल देखभाल अवकाश का लाभ उठाया जा सकता है, उसकी न्यूनतम अवधि को 15 दिन से घटाकर 5 दिन कर दिया गया है।
सेना मुख्यालय के पुनर्गठन को मंज़ूरी
रक्षा मंत्रालय ने थलसेना प्रमुख के अंतर्गत एक सतर्कता प्रकोष्ठ बनाने को मंज़ूरी दी है। प्रकोष्ठ में तीनों सेनाओं (थलसेना, वायुसेवा और नौसेना) के प्रतिनिधि शामिल होंगे (प्रत्येक के कर्नल स्तर के अधिकारी)। वर्तमान में थलसेना प्रमुख के अंतर्गत सतर्कता के लिये कोई सिंगल एजेंसी नहीं है।
- इसके अतिरिक्त थलसेना के उप प्रमुख के अंतर्गत एक विशेष मानवाधिकार प्रकोष्ठ भी बनाया जाएगा जो कि मानवाधिकार से संबंधित मामलों पर ध्यान केंद्रित करेगा। इस प्रकोष्ठ के प्रमुख अवर महानिदेशक होंगे (मेजर जनरल रैंक के अधिकारी), जो कि प्रत्यक्ष रूप से थलसेना उप प्रमुख के अंतर्गत होंगे। मानवाधिकार उल्लंघन की किसी भी रिपोर्ट के लिये यह नोडल प्वाइंट होगा।
विधि और न्याय
उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2019
(Consumer Protection Bill, 2019)
उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2019 संसद में पारित हो गया। विधेयक उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का स्थान लेता है। विधेयक की मुख्य विशेषतओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- उपभोक्ताओं के अधिकार : विधेयक में उपभोक्ताओं के छह अधिकारों को स्पष्ट किया गया है जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं : (i) ऐसी वस्तुओं और सेवाओं की मार्केटिंग के खिलाफ सुरक्षा जो जीवन और संपत्ति के लिये जोखिमकारक हैं, (ii) वस्तुओं या सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और मूल्य की जानकारी प्राप्त होना, (iii) प्रतिस्पर्द्धात्मक मूल्यों पर वस्तु और सेवा उपलब्ध होने का आश्वासन प्राप्त होना और (iv) अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार की स्थिति में मुआवज़े की मांग करना।
- केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अथॉरिटी: केंद्र सरकार उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, उनका संरक्षण और उन्हें लागू करने के लिये केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अथॉरिटी (Central Consumer Protection Authority) का गठन करेगी। यह अथॉरिटी उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार और भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों को रेगुलेट करेगी।
- भ्रामक विज्ञापनों के लिये जुर्माना : सीसीपीए झूठे या भ्रामक विज्ञापन के लिये मैन्यूफैक्चरर या एन्डोर्सर पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगा सकती है। दोबारा अपराध की स्थिति में यह जुर्माना 50 लाख रुपए तक बढ़ सकता है। मैन्यूफैक्चरर को दो वर्ष तक की कैद की सज़ा भी हो सकती है जो हर बार अपराध करने पर 5 वर्ष तक बढ़ सकती है।
- उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (सीडीआरसी) : ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों (Consumer Disputes Redressal Commission-CDRCs) का गठन किया जाएगा। एक उपभोक्ता निम्नलिखित के संबंध में आयोग में शिकायत दर्ज करा सकता है : (i) अनुचित और प्रतिबंधित तरीके का व्यापार, (ii) दोषपूर्ण वस्तु या सेवाएँ, (iii) अधिक कीमत वसूलना या गलत तरीके से कीमत वसूलना और (iv) ऐसी वस्तुओं या सेवाओं को बिक्री के लिये पेश करना, जो जीवन और सुरक्षा के लिये जोखिमकारक हो सकती हैं। अनुचित कॉन्ट्रैक्ट के खिलाफ शिकायत केवल राज्य और राष्ट्रीय सीडीआरसीज़ में फाइल की जा सकती हैं। ज़िला सीडीआरसी के आदेश के खिलाफ राज्य सीडीआरसी में सुनवाई की जाएगी। राज्य सीडीआरसी के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय सीडीआरसी में सुनवाई की जाएगी। अंतिम अपील का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को होगा।
- उत्पाद की ज़िम्मेदारी (Product Libility): उत्पाद की ज़िम्मेदारी का अर्थ है, उत्पाद के मैन्यूफैक्चरर, सर्विस प्रोवाइडर या विक्रेता की ज़िम्मेदारी। यह उसकी ज़िम्मेदारी है कि वह किसी खराब वस्तु या दोषपूर्ण सेवा के कारण होने वाले नुकसान या चोट के लिये उपभोक्ता को मुआवज़ा दे। मुआवज़े का दावा करने के लिये उपभोक्ता को विधेयक में स्पष्ट खराबी या दोष से जुड़ी कम-से-कम एक शर्त को साबित करना होगा। इसमें किसी उत्पाद की मैन्यूफैक्चरिंग या डिज़ाइन में दोष या उपभोक्ता को सेवा प्रदान करने में लापरवाही शामिल है।
ई-कॉमर्स से संबंधित मसौदा दिशा-निर्देश
उपभोक्ता मामलों के विभाग ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिये ई-कॉमर्स पर मसौदा दिशा-निर्देश जारी किये हैं। अनुचित व्यापार को रोकने और ई-कॉमर्स में उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिये मसौदा दिशा-निर्देश मॉडल फ्रेमवर्क के रूप में मसौदा दिशा-निर्देशों को जारी किया गया है। ये दिशा-निर्देश बी टू सी (बिज़नेस टू कंज़्यूमर) ई-कॉमर्स व्यापार पर लागू होंगे। मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- व्यापार करने की स्थितियाँ: ई-कॉमर्स संस्थाओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे दिशा-निर्देशों की अधिसूचना की तारीख से 90 दिनों के भीतर कुछ शर्तों का पालन करें। इन शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) संस्था को भारत में कानूनी संस्था के रूप में पंजीकृत होना चाहिये, (ii) प्रमोटरों या मुख्य प्रबंधकों को पिछले 5 वर्षों के दौरान किसी अपराध में दोषी नहीं होना चाहिये और (iii) विक्रेताओं के ज़रूरी विवरण, जैसे उनके व्यापार का वैध नाम, उनके द्वारा बेचे जाने वाले उत्पाद और उनसे संपर्क की जानकारी वेबसाइट पर प्रदर्शित होनी चाहिये।
- ई-कॉमर्स संस्थाओं की ज़िम्मेदारियाँ: ई-कॉमर्स संस्थाओं को निम्नलिखित कार्य नहीं करना चाहिये: (i) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मूल्य को प्रभावित नहीं करना चाहिये और एक लेवल प्लेइंग फील्ड बरकरार रखना चाहिये, (ii) अनुचित या भ्रामक तरीके से कार्य नहीं करना चाहिये जो कि उपभोक्ताओं के फैसलों को प्रभावित कर दें और (iii) स्वयं को उपभोक्ता के तौर पर नहीं दिखाना चाहिये तथा वस्तुओं एवं सेवाओं की क्वालिटी और विशेषताओं का गलत विवरण या समीक्षा पोस्ट नहीं करनी चाहिये।
- ई-कॉमर्स संस्थाओं की अन्य ज़िम्मेदारियों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) उनमें और विक्रेताओं के बीच अनुबंध की शर्तों को प्रदर्शित करना, (ii) यह सुनिश्चित करना कि वस्तुओं और सेवाओं के विज्ञापन उनकी वास्तविक विशेषताओं से मेल खाते हों, और (iii) यह सुनिश्चित करना कि ग्राहकों को व्यक्तिगत रूप से चिन्हित करने योग्य सूचना संरक्षित है और उसके प्रयोग में कानूनी प्रावधानों का अनुपालन किया जाता है।
- विक्रेताओं की ज़िम्मेदारियाँ: विक्रेताओं (जो ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स का विज्ञापन करते हैं या उसे बेचते हैं) की ज़िम्मेदारियों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) उत्पादों की बिक्री से जुड़े सभी शुल्कों, जैसे-डिलीवरी चार्ज और टैक्स को प्रदर्शित करना, (ii) शिपिंग, एक्सचेंज, रिटर्न, रिफंड और वारंटी से संबंधित नीतियों को अग्रिम करना और (iii) डिस्प्ले तथा उत्पादों की बिक्री के सांविधिक प्रावधानों का अनुपालन।
- शिकायत निवारण: ई-कॉमर्स संस्थाओं से निम्नलिखित अपेक्षित है: (i) शिकायत निवारण प्रक्रिया और शिकायत निवारण अधिकारी के विवरणों को वेबसाइट पर पब्लिश करना, (ii) फोन, ईमेल और वेबसाइट के ज़रिये शिकायत दर्ज कराने की सुविधा प्रदान करना, (iii) एक महीने में शिकायतों का निवारण करना और (iv) सरकार की शिकायत निवारण प्रक्रिया (National Consumer Helpline) के कन्वर्जेंस को आसान बनाना।
मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) विधेयक, 2019
[Arbitration and Conciliation (Amendment) Bill, 2019]
आर्बिट्रेशन और कंसीलियेशन (संशोधन) विधेयक, 2019 संसद में पारित हो गया। यह विधेयक आर्बिट्रेशन और कंसीलियेशन अधिनियम, 1996 में संशोधन करता है। अधिनियम में घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय आर्बिट्रेशन से संबंधित प्रावधान हैं और यह सुलह प्रक्रिया को संचालित करने से संबंधित कानून को स्पष्ट करता है। विधेयक की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
- भारतीय आर्बिट्रेशन परिषद: विधेयक आर्बिट्रेशन, मीडिएशन, कंसीलियेशन और विवाद निपटाने के दूसरे तरीकों को बढ़ावा देने के लिये एक स्वतंत्र संस्था भारतीय आर्बिट्रेशन परिषद (Arbitration Council of India) की स्थापना करने का प्रयास करता है। परिषद के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) आर्बिट्रल संस्थानों की ग्रेडिंग के लिये नीतियाँ बनाना और आर्बिट्रेटर्स को एक्रेडेट करने संबंधी फैसले लेना, (ii) विवाद निवारण के सभी वैकल्पिक मामलों में एक समान पेशेवर मानदंडों की स्थापना, संचालन और रखरखाव के लिये नीतियाँ बनाना तथा (iii) भारत और विदेशों में आर्बिट्रेशन से संबंधित फैसलों की डिपोज़िटरी (भंडार) का रखरखाव करना।
- आर्बिट्रेटर्स की नियुक्ति: 1996 के अधिनियम के अंतर्गत विभिन्न पक्ष आर्बिट्रेटर्स को नियुक्त करने के लिये स्वतंत्र होते हैं। किसी नियुक्ति पर मतभेद होने पर वे पक्ष सर्वोच्च न्यायालय या संबंधित उच्च न्यायालय या उस न्यायालय द्वारा नामित व्यक्ति या संस्थान से आर्बिट्रेटर की नियुक्ति का आग्रह कर सकते हैं।
- विधेयक के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय आर्बिट्रलर संस्थानों को नामित कर सकते हैं। आर्बिट्रेटर्स की नियुक्ति के लिये विभिन्न पक्ष उनसे संपर्क कर सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय कमर्शियल आर्बिट्रेशन के लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नामित संस्थान नियुक्तियाँ करेगा। आर्बिट्रेशन के घरेलू मामलों में संबंधित उच्च न्यायालय नामित संस्थानों द्वारा नियुक्तियाँ करेगा। अगर कोई आर्बिट्रेशन संस्थान मौजूद न हों तो संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आर्बिट्रेटर्स का एक पैनल बना सकता है जो कि आर्बिट्रेशन संस्थानों का काम करेगा।
- समय सीमा में राहत: 1996 के अधिनियम के अंतर्गत आर्बिट्रेशन अधिकरणों से यह अपेक्षा की गई है कि वे सभी कार्यवाहियों पर 12 महीने के अंदर फैसला ले लें। विधेयक ने अंतर्राष्ट्रीय कमर्शियल आर्बिट्रेशंस में इस समय-सीमा को हटा दिया है। विधेयक यह भी कहता है कि अधिकरणों को अंतर्राष्ट्रीय आर्बिट्रेशन के मामलों को 12 महीने के भीतर निपटाने का प्रयास करना चाहिये।
गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) संशोधन विधेयक, 2019
[Unlawful Activities (Prevention) Amendment Bill, 2019]
गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) संशोधन विधेयक, 2019 संसद में पारित कर दिया गया। यह विधेयक गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम, 1967 में संशोधन करता है। अधिनियम आतंकवादी गतिविधियों पर काबू पाने के लिये विशेष प्रक्रियाओं का प्रावधान करता है। विधेयक के मुख्य प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- आतंकवाद कौन फैला सकता है: अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार किसी संगठन को आतंकवादी संगठन निर्दिष्ट कर सकती है, अगर वह (i) आतंकवादी कार्रवाई करता है या उसमें भाग लेता है, (ii) आतंकवादी घटना को अंजाम देने की तैयारी करता है, (iii) आतंकवाद को बढ़ावा देता है या (iv) अन्यथा आतंकवादी गतिविधि में शामिल है। विधेयक सरकार को अधिकार देता है कि वह समान आधार पर व्यक्तियों को भी आतंकवादी निर्दिष्ट कर सकती है।
- संपत्ति की ज़ब्ती के लिये मंज़ूरी: अधिनियम के अंतर्गत जाँच अधिकारी को उन संपत्तियों को ज़ब्त करने से पहले पुलिस महानिदेशालय से मंज़ूरी लेनी होती है, जो आतंकवाद से संबंधित हो सकती हैं। विधेयक के अनुसार, अगर राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency) के अधिकारी द्वारा जाँच की जा रही है तो ऐसी संपत्ति की ज़ब्ती से पहले एनआईए के महानिदेशक से पूर्व मंज़ूरी लेनी होगी।
- जाँच: अधिनियम के अंतर्गत मामलों की जाँच पुलिस डिप्टी सुपरिटेंडेंट या असिस्टेंट कमीशनर या उससे ऊँचे पद के अधिकारियों द्वारा की जाएगी। विधेयक अतिरिक्त रूप से मामलों की जाँच के लिये एनआईए के इंस्पेक्टर या उससे ऊँचे पद के अधिकारियों को अधिकृत करता है।
- संधियों की अनुसूची में प्रविष्टि: अधिनियम के अंतर्गत नौ संधियाँ हैं, जैसे कन्वेंशन फॉर द सप्रेशन ऑफ टेरेरिस्ट बॉम्बिंग्स (1997) और कन्वेंशन अगेंस्ट टेकिंग ऑफ होस्टेजेज़ (1979)। इन संधियों में कुछ गतिविधियाँ प्रतिबंधित हैं। विधेयक के अनुसार, इन गतिविधियों को आतंकवादी गतिविधि माना जाएगा। विधेयक इस सूची में एक और संधि को शामिल करता है। यह संधि है, द इंटरनेशनल कन्वेंशन फॉर सप्रेशन ऑफ अधिनियम्स ऑफ न्यूक्लियर टेरेरिज़्म (2005)।
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019
(The Protection of Children from Sexual Offences (Amendment) Bill, 2019)
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 को संसद में पेश और पारित किया गया। यह विधेयक यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 में संशोधन करता है। यह अधिनियम यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से बच्चों के संरक्षण का प्रयास करता है।
- पेनेट्रेटिव यौन हमला: अधिनियम के अंतर्गत अगर किसी व्यक्ति ने (i) किसी बच्चे के वेजाइना, मुँह, यूरेथ्रा या एनस में अपने पेनिस को डाला (पेनेट्रेट किया) है या (ii) वह बच्चे से ऐसा करवाता है, या (iii) बच्चे के शरीर में कोई वस्तु डालता है तो उसे ‘पेनेट्रेटिव यौन हमला’ कहा जाता है। ऐसे अपराधों के लिये सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा भुगतनी पड़ सकती है और जुर्माना भरना पड़ सकता है। विधेयक इसमें न्यूनतम सज़ा को सात से दस वर्ष तक करता है। इसके अतिरिक्त विधेयक कहता है कि अगर कोई व्यक्ति 16 वर्ष से कम आयु के बच्चे पर पेनेट्रेटिव यौन हमला करता है तो उसे 20 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा भुगतनी पड़ सकती है और जुर्माना भरना पड़ सकता है।
- गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमला: अधिनियम कुछ एक्शंस को ‘गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमला’ कहता है। इसमें ऐसे मामले शामिल हैं जब पुलिस अधिकारी, सशस्त्र सेनाओं के सदस्य या पब्लिक सर्वेंट बच्चे पर पेनेट्रेटिव यौन हमला करें। विधेयक गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमले की परिभाषा में दो आधार और जोड़ता है। इनमें (i) हमले के कारण बच्चे की मौत और (ii) प्राकृतिक आपदा के दौरान किया गया हमला या हिंसा की अन्य समान स्थितियाँ शामिल हैं।
- वर्तमान में गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमले की सज़ा 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास और जुर्माना है। विधेयक न्यूनतम कारावास को 10 वर्ष से 20 वर्ष करता है और अधिकतम सज़ा मृत्युदंड है।
- गंभीर यौन हमला: अधिनियम के अंतर्गत ‘यौन हमले’ में वे एक्शंस शामिल हैं, जिनमें कोई व्यक्ति पेनेट्रेशन के बिना किसी बच्चे के वेजाइना, पेनिस, एनस या ब्रेस्ट को छूता है। ‘गंभीर यौन हमले’ में ऐसे मामले शामिल हैं, जिनमें अपराधी बच्चे का संबंधी होता है या जिनमें बच्चे के सेक्सुअल ऑर्गन्स घायल हो जाते हैं, इत्यादि। विधेयक गंभीर यौन हमले में दो स्थितियों को और शामिल करता है। इनमें (i) प्राकृतिक आपदा के दौरान किया गया हमला और (ii) जल्दी यौन परिपक्वता लाने के लिये बच्चे को हार्मोन या कोई दूसरा रासायनिक पदार्थ देना या दिलवाना शामिल है।
सर्वोच्च न्यायालय (जजों की संख्या) संशोधन विधेयक, 2019
[Supreme Court (Number of Judges) Amendment Bill, 2019]
सर्वोच्च न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) संशोधन विधेयक, 2019 संसद में पारित कर दिया गया। विधेयक सर्वोच्च न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) अधिनियम, 1956 में संशोधन करता है। अधिनियम सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की अधिकतम संख्या 30 निर्धारित करता है (भारत के मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर)। विधेयक इस संख्या को 30 से 33 करता है।
निरसन और संशोधन विधेयक, 2019
(Repealing and Amending Bill, 2019)
निरसन और संशोधन विधेयक, 2019 संसद में पारित हो गया। विधेयक 68 अधिनियमों को पूरी तरह से रद्द करता है और दो अन्य कानूनों में संशोधन करता है। विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- कुछ कानूनों को पूरी तरह से रद्द करना: विधेयक पहली अनुसूची में सूचीबद्ध 58 कानूनों को रद्द करता है। इनमें 12 प्रिंसिपल अधिनियम और 46 संशोधन अधिनियम शामिल हैं। रिपील होने वाले प्रिंसिपल अधिनियमों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बीड़ी श्रमिक कल्याण निधि, 1976 और (ii) म्यूनिसिपल टैक्सेशन अधिनियम, 1881। उल्लेखनीय है कि संशोधन अधिनियमों को रिपील करने से उन पर बहुत अधिक असर नहीं होता क्योंकि संशोधन अधिनियम पहले से ही प्रिंसिपल अधिनियमों में शामिल होते हैं।
- कुछ कानूनों में संशोधन: विधेयक दो अधिनियमों में मामूली संशोधन करता है। इसमें कुछ शब्दों को बदला गया है। ये अधिनियम हैं: (i) इनकम टैक्स अधिनियम, 1961 और (ii) इंडियन इंस्टीट्यूट्स ऑफ मैनेजमेंट अधिनियम, 2017।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019
[Transgender (Protection of Rights) Bill, 2019]
ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 लोकसभा में पारित और राज्यसभा में लंबित है। विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति की परिभाषाः विधेयक कहता है कि ट्रांसजेंडर वह व्यक्ति है जिसका लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाता। इसमें ट्रांसमेन (परा-पुरुष) और ट्रांस-विमेन (परा-स्त्री), इंटरसेक्स भिन्नताओं वाले व्यक्ति और जेंडर क्वीर आते हैं। इसमें सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति, जैसे किन्नर, हिंजड़ा, भी शामिल हैं। इंटरसेक्स भिन्नताओं वाले व्यक्तियों की परिभाषा में ऐसे लोग शामिल हैं जो जन्म के समय अपनी मुख्य यौन विशेषताओं, बाहरी जननांगों, क्रोमोसम्स या हारमोन्स में पुरुष या महिला शरीर के आदर्श मानकों से भिन्नता का प्रदर्शन करते हैं।
- भेदभाव पर प्रतिबंध: विधेयक ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से भेदभाव पर प्रतिबंध लगाता है जिसमें निम्नलिखित के संबंध में सेवा प्रदान करने से इनकार करना या अनुचित व्यवहार करना शामिल हैः (i) शिक्षा, (ii) रोज़गार, (iii) स्वास्थ्य सेवा, (iv) सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध उत्पादों, सुविधाओं और अवसरों तक पहुँच तथा उनका उपभोग, (v) कहीं भी आने-जाने (मूवमेंट) का अधिकार (vi) किसी प्रॉपर्टी में निवास करने, उसे किराये पर लेने, स्वामित्व हासिल करने या अन्यथा उसे कब्ज़े में लेने का अधिकार, (vii) सार्वजनिक या निजी पद ग्रहण करने का अवसर और (viii) किसी सरकारी या निजी प्रतिष्ठान तक पहुँच जिसकी देखभाल या निगरानी किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति द्वारा की जाती है।
- स्वास्थ्य सेवा: सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिये कदम उठाएगी जिसमें अलग एचआईवी सर्विलेंस सेंटर, सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी इत्यादि शामिल है। सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के स्वास्थ्य से जुड़े मामलों को संबोधित करने के लिये चिकित्सा पाठ्यक्रम की समीक्षा करेगी और उन्हें समग्र चिकित्सा बीमा योजनाएँ प्रदान करेगी।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की आइडेंटिटी से जुड़ा सर्टिफिकेट: एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति ज़िला मजिस्ट्रेट को आवेदन कर सकता है कि ट्रांसजेंडर के रूप में उसकी आइडेंटिटी से जुड़ा सर्टिफिकेट जारी किया जाए। संशोधित सर्टिफिकेट तभी हासिल किया जा सकता है, अगर उस व्यक्ति ने पुरुष या महिला के तौर पर अपना लिंग परिवर्तन करने के लिये सर्जरी कराई है।
एनडीएमसी अधिनियम के अंतर्गत अपीलीय अथॉरिटी का गठन
केंद्र सरकार ने नई दिल्ली म्यूनिसिपल अधिनियम, 1994 (Delhi Municipal Act, 1994) के अंतर्गत अपीलों पर फैसला लेने हेतु अपीलीय अधिकरण की स्थापना की है। अधिनियम नई दिल्ली म्यूनिसिपल काउंसिल की स्थापना और उसे गवर्न करता है। अधिनियम के अंतर्गत काउंसिल विभिन्न मामलों पर आदेश जारी कर सकती हैं जिनमें ले-आउट प्लान्स को मंज़ूरी देना या काम रोकना या काम करना शामिल है। काउंसिल के कुछ फैसले (जैसे मंज़ूरी को रद्द करना, या किसी इमारत को तोड़ना) के खिलाफ अपीलीय अथॉरिटी में अपील की जा सकती है।
श्रम
कोड ऑन वेजेज़, 2019
(The Code on Wages, 2019 )
कोड ऑन वेजेज़, 2019 संसद में पारित हो गया। यह कोड उन सभी रोज़गारों में वेतन और बोनस भुगतान को रेगुलेट करता है जहाँ कोई उद्योग चलाया जाता है, व्यापार किया जाता है या मैन्यूफैक्चरिंग की जाती है। कोड निम्नलिखित चार कानूनों का स्थान लेता है (i) वेतन का भुगतान अधिनियम, 1936, (ii) न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948, (iii) बोनस का भुगतान अधिनियम, 1965 और (iv) समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976,
- कवरेज: कोड सभी कर्मचारियों पर लागू होता है। केंद्र सरकार रेलवे, खनन और तेल क्षेत्रों इत्यादि से जुड़े रोज़गार के वेतन संबंधी फैसले लेगी। राज्य सरकारें अन्य रोज़गारों के लिये फैसले लेंगी।
- फ्लोर वेज: कोड के अनुसार, केंद्र सरकार श्रमिकों के जीवन स्तर को ध्यान में रखते हुए एक फ्लोर वेज नियत करेगी। इसके अतिरिक्त वह विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिये भिन्न-भिन्न फ्लोर वेज तय कर सकती है।
- मिनिमम वेज का निर्धारण: कोड नियोक्ताओं को मिनिमम वेज से कम वेतन चुकाने से प्रतिबंधित करता है। मिनिमम वेज को केंद्र या राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाएगा। यह समय या उत्पादित वस्तु की संख्या इत्यादि पर आधारित होगा। केंद्र या राज्य सरकारें प्रत्येक 5 वर्षों में मिनिमम वेज की समीक्षा या उसमें संशोधन करेंगी। मिनिमम वेज निर्धारित करने के दौरान केंद्र या राज्य सरकारें निम्नलिखित कारकों पर ध्यान देंगी: (i) श्रमिकों की दक्षता और (ii) कार्य की कठिनाई।
- सलाहकार बोर्ड: केंद्र और राज्य सरकारें अपने सलाहकार बोर्डों का गठन करेंगी। बोर्ड निम्नलिखित पहलुओं पर संबंधित सरकारों को सलाह देगा : (i) न्यूनतम वेतन का निर्धारण और (ii) महिलाओं के लिये रोज़गार अवसरों को बढ़ाना।
मसौदा कर्मचारी प्रोविडेंट फंड्स और विविध प्रावधान (संशोधन) विधेयक, 2019
[Draft Employees' Provident Funds & Miscellaneous Provisions (Amendment) Bill, 2019]
श्रम और रोज़गार मंत्रालय ने कर्मचारी प्रोविडेंट फंड्स और विविध प्रावधान (संशोधन) विधेयक, 2019 का मसौदा जारी किया। विधेयक कर्मचारी प्रोविडेंट फंड्स और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 में संशोधन करता है। अधिनियम फैक्टरियों और दूसरे इस्टैबलिशमेंट्स के कर्मचारियों के लिये पेंशन फंड का प्रावधान करता है। मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- विधेयक अधिनियम में ‘बेसिक वेजेज़’ की परिभाषा में परिवर्तन करता है ताकि यह परिभाषा संसद में 2 अगस्त, 2019 को पारित कोड ऑन वेजेज़ के अनुरूप हो जाए। अधिनियम में वेजेज़ में कर्मचारियों को चुकाए जाने वाले सभी मुआवज़े शामिल हैं लेकिन इसमें निम्नलिखित शामिल नहीं हैं: (i) फूड कंसेशंस, (ii) डियरनेस अलाउंस और (iii) नियोक्ता द्वारा दिये गए उपहार। विधेयक बेसिक पे, डियरनेस अलाउंस और रीटेनिंग अलाउंस को शामिल करने के लिये वेजेज़ की परिभाषा में परिवर्तन करता है। हालाँकि इसमें निम्नलिखित शामिल नहीं हैं:(i) बोनस, (ii) आवास, (iii) कर्मचारी का पेंशन योगदान, (iv) कन्वेंस अलाउंस, (v) ओवरटाइम अलाउंस और (vi) कमीशन इत्यादि। विधेयक यह शर्त रखता है कि अगर वेतन में शामिल न होने वाले भुगतानों की राशि नियोक्ता द्वारा दिये गए 50% पारिश्रमिक से अधिक होती है तो उसे वेतन में शामिल किया जाएगा।
- वर्तमान में किसी इस्टैबलिशमेंट में अधिनियम की एप्लीकेबिलिटी से संबंधित जाँच शुरू करने और अधिनियम के अंतर्गत किसी कर्मचारी की देय राशि को निर्धारित करने की कोई समय-सीमा नहीं है। विधेयक जाँच शुरू करने के लिये 5 वर्ष की समय-सीमा प्रस्तावित करता है। इसके अतिरिक्त यह दो वर्ष की समय-सीमा तय करता है जिसमें जाँच समाप्त हो जानी चाहिये।
- विधेयक कुछ जुर्मानों को दस गुना तक बढ़ाता है। उदाहरण के लिये वर्तमान में बार-बार अपराध करने पर 25,000 रुपए तक का जुर्माना है। विधेयक इसे 2.5 लाख रुपए करता है। इसके अतिरिक्त विधेयक सुझाव देता है कि अपराधों को कंपाउंडेबल बनाया जाना चाहिये जिसमें कंपनियों के अपराध भी शामिल हैं।
- वर्तमान में कर्मचारी प्रोविडेंट में योगदान की दर कर्मचारी और नियोक्ता के लिये 10% से 12% है। इसके अतिरिक्त संबंधित सरकार एक विशिष्ट अवधि और एक निश्चित सीमा तक मासिक आय वाले कर्मचारियों के लिये योगदान की विभिन्न दरें विनिर्दिष्ट कर सकती है। नियोक्ताओं के योगदान में कोई परिवर्तन प्रस्तावित नहीं किया गया।
- विधेयक प्रस्ताव रखता है कि कर्मचारी प्रोविडेंट फंड (EPF) सब्सक्राइबर अधिनियम के अंतर्गत लाभ हासिल करने के लिये राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (National Pension Scheme) को भी चुन सकते हैं। एनपीएस पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी द्वारा रेगुलेटेड स्वैच्छिक पेंशन योजना है। इसके अतिरिक्त विधेयक प्रस्तावित करता है कि एनपीएस सबस्क्राइबर किसी भी समय ईपीएफ से वापस होने का विकल्प भी चुन सकता है।
- विधेयक अधिनियम में संशोधन करता है और उन इस्टैबलिशमेंट्स को छूट देने की अनुमति देता है जिन्होंने छूट के लिये आवेदन किया है तथा जो संबंधित अथॉरिटी द्वारा निर्धारित मानदंडों पर खरे उतरते हैं।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण
राष्ट्रीय मेडिकल आयोग विधेयक, 2019
(The National Medical Commission Bill, 2019)
राष्ट्रीय मेडिकल आयोग विधेयक, 2019 को संसद में पारित कर दिया गया। विधेयक भारतीय मेडिकल काउंसिल अधिनियम, 1956 को निरस्त करने और ऐसी मेडिकल शिक्षा प्रणाली प्रदान करने का प्रयास करता है, जो निम्नलिखित को सुनिश्चित करती हों : (i) पर्याप्त और उच्च क्वालिटी वाले मेडिकल प्रोफेशनल्स की उपलब्धता, (ii) मेडिकल प्रोफेशनल्स द्वारा नवीनतम मेडिकल अनुसंधानों का उपयोग, (iii) मेडिकल संस्थानों का नियत समय पर आकलन और (iv) एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली। विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं :
- राष्ट्रीय मेडिकल आयोग का गठन: विधेयक राष्ट्रीय मेडिकल आयोग (National Medical Council) का गठन करता है। विधेयक के पारित होने के तीन वर्षों के भीतर राज्य सरकारों को राज्य स्तर पर राज्य मेडिकल काउंसिलों का गठन करना होगा। एनएमसी में 33 सदस्य होंगे जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
- एनएमसी के सदस्यों में निम्नलिखित शामिल होंगे: (i) अध्यक्ष (जिसे मेडिकल प्रैक्टिशनर होना चाहिये), (ii) अंडर-ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड, पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड के प्रेसीडेंट, (iii) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक, (v) भारतीय मेडिकल रिसर्च काउंसिल का महानिदेशक और (vi) नौ सदस्य (पार्ट टाइम), जिन्हें विधेयक के अंतर्गत निर्धारित क्षेत्रों से पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर्स द्वारा स्वयं में से दो वर्षों के लिये चुना जाएगा।
- राष्ट्रीय मेडिकल आयोग के कार्य: एनएमसी के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं : (i) मेडिकल संस्थानों और मेडिकल प्रोफेशनल्स को रेगुलेट करने के लिये नीतियाँ बनाना, (ii) स्वास्थ्य सेवा से संबंधित मानव संसाधनों और इंफ्रास्ट्रक्चर की ज़रूरत का आकलन करना, (iii) यह देखना कि राज्य मेडिकल काउंसिल विधेयक में दिये गए निर्देशों का पालन कर रही हैं अथवा नहीं, (iv) विधेयक के अंतर्गत रेगुलेट होने वाले प्राइवेट मेडिकल संस्थानों और मानद (डीम्ड) विश्वविद्यालयों की अधिकतम 50% सीटों की फीस तय करने के लिये दिशा-निर्देश बनाना।
- स्वायत्त बोर्ड्स: विधेयक एनएमसी की निगरानी में स्वायत्त बोर्ड्स का गठन करता है। प्रत्येक स्वायत्त बोर्ड में प्रेसीडेंट और चार सदस्य होंगे, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। ये बोर्ड हैं : (i) अंडर-ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड और पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड, (ii) मेडिकल एसेसमेंट और रेटिंग बोर्ड और (iii) एथिक्स और मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड।
सेरोगेसी (रेगुलेशन) विधेयक, 2019
[The Surrogacy (Regulation) Bill, 2019]
सेरोगेसी (रेगुलेशन) विधेयक, 2019 को लोकसभा में पारित कर दिया गया और विधेयक राज्यसभा में लंबित है। विधेयक सेरोगेसी को ऐसे कार्य के रूप में पारिभाषित करता है जिसमें कोई महिला किसी इच्छुक दंपत्ति के लिये बच्चे को जन्म देती है और जन्म के बाद उस इच्छुक दंपत्ति को बच्चा सौंप देती है। विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- सरोगेसी का रेगुलेशन: विधेयक कमर्शियल सेरोगेसी को प्रतिबंधित करता है लेकिन निस्वार्थ सेरोगेसी की अनुमति देता है। निस्वार्थ सेरोगेसी में सेरोगेट माता को गर्भावस्था के दौरान दिये जाने वाले मेडिकल खर्चे और बीमा कवरेज के अतिरिक्त कोई मौद्रिक मुआवज़ा शामिल नहीं है। कमर्शियल सेरोगेसी में सेरोगेसी या उससे संबंधित प्रक्रियाओं के लिये बुनियादी मेडिकल खर्चे और बीमा कवरेज की सीमा से अधिक मौद्रिक लाभ या पुरस्कार (नकद या किसी वस्तु के रूप में) लेना शामिल है।
- इच्छुक दंपत्ति के लिये योग्यता का मानदंड : इच्छुक दंपत्ति के पास समुचित अथॉरिटी द्वारा जारी ‘अनिवार्यता का प्रमाणपत्र’ और ‘योग्यता का प्रमाणपत्र’ होना चाहिये। अनिवार्यता का प्रमाणपत्र निम्नलिखित स्थितियाँ होने पर ही जारी किया जाएगा (i) अगर इच्छुक दंपत्ति में एक या दोनों सदस्यों की प्रामाणित इनफर्टिलिटी का सर्टिफिकेट ज़िलामेडिकल बोर्ड द्वारा जारी किया गया हो, (ii) मजिस्ट्रेट की अदालत ने सेरोगेट बच्चे के पेरेंट्स और कस्टडी से संबंधित आदेश जारी किया हो और (iii) 16 महीने की अवधि के लिये बीमा कवरेज सेरोगेट माता की प्रसव उपरांत जटिलताओं को कवर करता हो।
- योग्यता का प्रमाणपत्र इच्छुक दंपत्ति द्वारा निम्नलिखित शर्तें पूरी करने पर ही जारी किया जाएगा : (i) अगर वे भारतीय नागरिक हों और उन्हें विवाह किये हुए कम से कम 5 वर्ष हो गए हों, (ii) अगर उनमें से 23 से 50 वर्ष के बीच की महिला (पत्नी) और 26 से 55 वर्ष का पुरुष (पति) हो, (iii) उनका कोई जीवित बच्चा (बायोलॉजिकल, गोद लिया हुआ या सेरोगेट) न हो, इसमें ऐसे बच्चे शामिल नहीं हैं जो मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग हैं या जीवन को जोखिम में डालने वाली या प्राणघातक बीमारी से ग्रस्त हैं और (iv) कोई ऐसी स्थिति जिसे रेगुलेशनों द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।
- सेरोगेट माता के लिये योग्यता का मानदंड : समुचित अथॉरिटी से योग्यता का प्रमाणपत्र हासिल करने के लिये सेरोगेट माता को निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना चाहिये : (i) उसे इच्छुक दंपत्ति का निकट संबंधी होना चाहिये, (ii) उसे विवाहित होना चाहिये और उसका अपना बच्चा होना चाहिये, (iii) उसे 25 से 35 वर्ष के बीच होना चाहिये, (iv) उसने पहले सेरोगेसी न की हो और (v) उसके पास सेरोगेसी करने के लिये मेडिकल और मनोवैज्ञानिक फिटनेस का सर्टिफिकेट हो।
सड़क, परिवहन और राजमार्ग
मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2019
(Motor Vehicles (Amendment) Bill, 2019 )
मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2019 संसद में पारित हो गया। यह विधेयक सड़क सुरक्षा प्रदान करने के लिये मोटर वाहन अधिनियम, 1988 में संशोधन का प्रयास करता है। यह अधिनियम मोटर वाहनों से संबंधित लाइसेंस और परमिट देने, मोटर वाहनों के लिये मानक और इन प्रावधानों का उल्लंघन करने के लिये दंड का प्रावधान करता है। विधेयक में वाहनों को रिकॉल करने, दुर्घटना की स्थिति में नेक व्यक्तियों को कानूनी प्रक्रियाओं से छूट देने, टैक्सी एग्रीगेटरों के रेगुलेशन और विभिन्न अपराधों में सज़ा बढ़ाने से संबंधित प्रावधान हैं। विधेयक की अन्य मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- सड़क दुर्घटना के पीड़ितों को मुआवज़ा: विधेयक में प्रावधान है कि केंद्र सरकार ‘गोल्डन आवर’ (स्वर्णिम घंटे) के दौरान सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों का कैशलेस उपचार करने की एक योजना विकसित करेगी। विधेयक के अनुसार ‘गोल्डन आवर’ घातक चोट के बाद की एक घंटे की समयावधि होती है जब तुरंत मेडिकल देखभाल से मौत को मात देने की संभावना सबसे ज़्यादा होती है। केंद्र सरकार थर्ड पार्टी इंश्योरेंस के अंतर्गत मुआवज़े का दावा करने वालों को अंतरिम राहत देने के लिये एक योजना भी बना सकती है।
- अनिवार्य बीमा: विधेयक में केंद्र सरकार से मोटर वाहन दुर्घटना कोष बनाने की अपेक्षा की गई है। यह कोष भारत में सड़क का प्रयोग करने वाले सभी लोगों को अनिवार्य बीमा कवर प्रदान करेगा। इसे निम्नलिखित स्थितियों के लिये उपयोग किया जाएगा: (i) गोल्डन आवर योजना के अंतर्गत सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों का उपचार, (ii) हिट और रन मामलों में मौत का शिकार होने वाले लोगों के प्रतिनिधियों को मुआवज़ा देना, (iii) हिट और रन मामलों में गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को मुआवज़ा देना और (iv) केंद्र सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट किये गए व्यक्तियों को मुआवज़ा देना। इस कोष में निम्नलिखित के माध्यम से धन जमा कराया जाएगा: (i) उस प्रकृति का भुगतान जिसे केंद्र सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए, (ii) केंद्र सरकार द्वारा अनुदान या ऋण, (iii) क्षतिपूर्ति कोष में शेष राशि (हिट और रन मामलों में मुआवज़ा देने के लिये अधिनियम के अंतर्गत गठित मौजूदा कोष) या (iv) केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अन्य कोई स्रोत।
- सड़क सुरक्षा बोर्ड: विधेयक में एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड का प्रावधान है जिसे केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना के ज़रिये बनाया जाएगा। बोर्ड सड़क सुरक्षा एवं यातायात प्रबंधन के सभी पहलुओं पर केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देगा। इनमें निम्नलिखित से संबंधित सलाह शामिल है: (i) मोटर वाहनों का स्टैंडर्ड, (ii) वाहनों का रजिस्ट्रेशन और लाइसेंसिंग, (iii) सड़क सुरक्षा के मानदंड और (iv) नए वाहनों की प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना।
नागरिक उड्डयन
भारतीय एयरपोर्ट इकोनॉमिक अथॉरिटी (संशोधन) विधेयक, 2019
[The Airports Economic Regulatory Authority of India (Amendment) Bill, 2019]
भारतीय एयरपोर्ट्स इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी (संशोधन) विधेयक, 2019 को संसद में पारित किया गया। यह विधेयक भारतीय एयरपोर्ट्स इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी अधिनियम, 2008 में संशोधन करता है। यह अधिनियम भारतीय एयरपोर्ट्स इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी (एयरा) की स्थापना करता है। एयरा उन सिविलियन एयरपोर्ट्स की एयरोनॉटिकल सेवाओं के लिये टैरिफ और दूसरे शुल्क रेगुलेट करता है जिनका वार्षिक ट्रैफिक 15 लाख यात्रियों से अधिक होता है। यह अथॉरिटी इन एयरपोर्ट्स में सेवाओं के प्रदर्शन मानकों का भी निरीक्षण करती है।
- मुख्य एयरपोर्ट्स की परिभाषा: अधिनियम के अंतर्गत मुख्य एयरपोर्ट्स में ऐसे एयरपोर्ट्स आते हैं जिनका वार्षिक यात्री ट्रैफिक 15 लाख से अधिक होता है या ऐसे एयरपोर्ट्स जिन्हें केंद्र सरकार ने अधिसूचित किया हो। विधेयक वार्षिक यात्री ट्रैफिक की सीमा को बढ़ाकर 35 लाख से अधिक करता है।
- एयरा द्वारा टैरिफ तय करना : अधिनियम के अंतर्गत एयरा निम्नलिखित को निर्धारित करती है : (i) हर 5 वर्षों में विभिन्न एयरपोर्ट्स की एयरोनॉटिकल सेवाओं का टैरिफ, (ii) मुख्य एयरपोर्ट्स की डेवलपमेंट फीस और (iii) पैसेंजर्स की सर्विस फीस। अथॉरिटी टैरिफ तय करने और टैरिफ संबंधी दूसरे कार्य करने, जिसमें बीच की अवधि में टैरिफ में संशोधन करना शामिल है, के लिये ज़रूरी सूचनाओं की मांग भी कर सकती है।
- विधेयक कहता है कि एयरा निम्नलिखित को निर्धारित नहीं करेगी : (i) टैरिफ, (ii) टैरिफ का स्ट्रक्चर और (iii) कुछ मामलों में डेवलपमेंट फीस। जैसे जब टैरिफ की राशि बिड डॉक्यूमेंट (बोली लगाने वाले दस्तावेज़) का हिस्सा हो जिसके आधार पर एयरपोर्ट ऑपरेशन का काम सौंपा गया हो। इन दस्तावेज़ों में टैरिफ को शामिल करने से पहले कनसेशनिंग अथॉरिटी को एयरा से सलाह लेनी होगी और उस टैरिफ को अधिसूचित करना होगा।
आवास और शहरी मामले
सार्वजनिक परिसर (अनाधिकृत कब्ज़ा करने वालों की बेदखली) संशोधन विधेयक, 2019
[The Public Premises (Eviction of Unauthorised Occupants) Amendment Bill, 2019]
सार्वजनिक परसर (अनाधिकृत कब्ज़ा करने वालों की बेदखली) संशोधन विधेयक, 2019 को संसद में पारित कर दिया गया। विधेयक सार्वजनिक परिसर (अनाधिकृत कब्ज़ा करने वालों की बेदखली) अधिनियम, 1971 में संशोधन करता है। इस अधिनियम में कुछ मामलों में अनाधिकृत कब्ज़ा करने वालों की सार्वजनिक परिसरों से बेदखली का प्रावधान है।
निवास स्थान: विधेयक ‘निवास स्थान पर कब्ज़ा’ को पारिभाषित करते हुए कहता है कि इसका अर्थ किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक स्थान पर कब्ज़ा किया जाना है जिसे उस कब्जे के लिये अधिकृत किया गया (लाइसेंस दिया गया) हो। यह लाइसेंस किसी निश्चित अवधि के लिये होना चाहिये या उस अवधि के लिये जब तक कि वह व्यक्ति पद पर बना हुआ है। इसके अतिरिक्त केंद्र, राज्य या केंद्रशासित प्रदेश की सरकार या किसी संवैधानिक अथॉरिटी (जैसे संसदीय सचिवालय, या केंद्र सरकार की कोई संस्था या राज्य सरकार) द्वारा बनाए गए नियम के तहत इस कब्जे की अनुमति होनी चाहिये।
बेदखली का नोटिस: विधेयक निवास स्थान से बेदखली के लिये एक प्रक्रिया बनाए जाने की बात कहता है। विधेयक में यह अपेक्षा की गई है कि अगर किसी व्यक्ति ने किसी निवास स्थान पर अनाधिकृत कब्ज़ा किया है तो एस्टेट ऑफिसर (केंद्र सरकार का एक अधिकारी) उसे लिखित नोटिस जारी करेगा। नोटिस में उस व्यक्ति से तीन कार्य दिनों के भीतर कारण बताने की अपेक्षा की जाएगी कि उसे बेदखली का आदेश क्यों न दिया जाए। इस लिखित नोटिस को निवास स्थान के विशिष्ट हिस्से पर लगाया जाना चाहिये।
बेदखली का आदेश: कारण बताओ नोटिस पर विचार करने और दूसरी जाँच के बाद एस्टेट ऑफिसर बेदखली का आदेश देगा। अगर कोई व्यक्ति आदेश नहीं मानता तो एस्टेट ऑफिसर उसे निवास स्थान से बेदखल कर सकता है और उस स्थान को अपने कब्जे में ले सकता है। इसके लिये एस्टेट ऑफिसर ज़रूरी ताकत का प्रयोग कर सकता है।
नुकसान की भरपाई: अगर निवास स्थान में अनाधिकृत कब्ज़ा करने वाला व्यक्ति अदालत के बेदखली के आदेश को चुनौती देता है, तो उसे कब्जे की वजह से हर महीने होने वाले नुकसान की भरपाई करनी होगी।
जल शक्ति
अंतर्राष्ट्रीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019
[The Inter-State River Water Disputes (Amendment) Bill, 2019]
अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019 को लोकसभा में पारित कर दिया गया और विधेयक राज्यसभा में लंबित है। विधेयक अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 में संशोधन करता है। अधिनियम राज्यों के बीच नदियों और नदी घाटियों से संबंधित विवादों में अधिनिर्णय का प्रावधान करता है।
- अधिनियम के अंतर्गत राज्य सरकार केंद्र सरकार से आग्रह कर सकती है कि वह अंतर्राज्यीय नदी विवाद को अधिनिर्णय के लिये अधिकरण को सौंपे। अगर केंद्र सरकार को ऐसा लगता है कि बातचीत से विवाद का निवारण नहीं हो सकता तो वह शिकायत प्राप्त करने के एक साल के अंदर जल विवाद अधिकरण स्थापित कर सकती है। विधेयक इस व्यवस्था को बदलने का प्रयास करता है।
- विवाद निवारण समिति: विधेयक के अंतर्गत अगर राज्य किसी जल विवाद के संबंध में अनुरोध करता है तो केंद्र सरकार उस विवाद को सौहार्दपूर्ण तरीके से हल करने के लिये विवाद निवारण समिति (डीआरसी) की स्थापना कर सकती है। डीआरसी में एक अध्यक्ष और विशेषज्ञ होंगे। विशेषज्ञों को संबंधित क्षेत्रों में कम से कम 15 वर्षों का अनुभव होना चाहिये और उन्हें केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाएगा। समिति में उन राज्यों का एक-एक सदस्य होगा (संयुक्त सचिव स्तर का) जो विवाद का पक्ष हैं। इन सदस्यों को भी केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाएगा।
- डीआरसी एक साल के अंदर विवादों को हल करने का प्रयास करेगी (इस अवधि को छह महीने तक और बढ़ाया जा सकता है) तथा केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। अगर डीआरसी द्वारा विवाद का निपटारा नहीं होता तो केंद्र सरकार इस मामले को अंतर्राज्यीय नदी विवाद अधिकरण को भेज सकती है। ऐसा डीआरसी रिपोर्ट के प्राप्त होने के तीन महीने के अंदर होना चाहिये।
- अधिकरण: केंद्र सरकार जल विवादों पर फैसला देने के लिये अंतर्राज्यीय नदी विवाद अधिकरण की स्थापना करेगी। इस अधिकरण की अनेक खंडपीठ हो सकते हैं। सभी मौजूदा अधिकरणों को भंग कर दिया जाएगा और उन अधिकरणों में निर्णय लेने के लिये जो मामले लंबित पड़े होंगे, उन्हें नए अधिकरण में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
- अधिकरण की संरचना: अधिकरण में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन न्यायिक सदस्य तथा तीन विशेषज्ञ होंगे। उन्हें सलेक्शन समिति की सलाह से केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाएगा। अधिकरण की खंडपीठ में एक अध्यक्ष या उपाध्यक्ष, एक न्यायिक सदस्य और एक विशेषज्ञ होगा।
बांध सुरक्षा विधेयक, 2019
(The Dam Safety Bill, 2019)
बांध सुरक्षा विधेयक को लोकसभा में पारित किया गया और यह राज्यसभा में लंबित है। विधेयक देश भर में निर्दिष्ट बांधों की चौकसी, निरीक्षण, परिचालन और रखरखाव संबंधी प्रावधान करता है। विधेयक इन बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये संस्थागत प्रणाली का भी प्रावधान करता है। विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- विधेयक किन बांधों पर लागू होता है: विधेयक देश के सभी निर्दिष्ट बांधों पर लागू होता है। इन बांधों में निम्नलिखित शामिल हैं : (i) 15 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले या (ii) 10 से 15 मीटर के बीच की ऊँचाई वाले केवल वही बांध जिनके डिज़ाइन और स्ट्रक्चर विधेयक में निर्दिष्ट विशेषताओं वाले हों।
- राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति: विधेयक राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति की स्थापना का प्रावधान करता है। समिति के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बांध सुरक्षा मानदंडों से संबंधित नीतियाँ एवं रेगुलेशंस बनाना तथा बांधों में टूट को रोकना और (ii) बड़े बांधों में टूट के कारणों का विश्लेषण करना।
- राष्ट्रीय बांध सुरक्षा अथॉरिटी: विधेयक राष्ट्रीय बांध सुरक्षा अथॉरिटी का प्रावधान करता है। अथॉरिटी के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति द्वारा निर्मित नीतियों को लागू करना और (ii) राज्य बांध सुरक्षा संगठनों (State Dam Safety Athority) के बीच तथा एसडीएसओ एवं उस राज्य के किसी बांध मालिक के बीच विवादों को सुलझाना।
- राज्य बांध सुरक्षा संगठन (State Dam Safety Organisations): विधेयक के अंतर्गत राज्य सरकारों द्वारा राज्य बांध सुरक्षा संगठनों (एसडीएसओज़) की स्थापना की जाएगी। राज्य में स्थित सभी विनिर्दिष्ट बांध उस राज्य के एसडीएसओ के क्षेत्राधिकार में आएंगे। हालाँकि कुछ मामलों में राष्ट्रीय बांध सुरक्षा अथॉरिटी एसडीएसओ के रूप में कार्य करेगी। इन मामलों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) अगर बांध पर किसी एक राज्य का स्वामित्व है लेकिन वह दूसरे राज्य में स्थित है, (ii) अनेक राज्यों में फैला हुआ है या (iii) उस पर केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम का स्वामित्व है। एसडीएसओज़ के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बांधों की निरंतर चौकसी एवं निरीक्षण करना और उनके परिचालन एवं रखरखाव पर निगरानी रखना, (ii) सभी बांधों का डेटाबेस रखना और (iii) बांध मालिकों को सुरक्षा संबंधी सुझाव देना।
- राज्य बांध सुरक्षा समिति: विधेयक राज्य सरकारों द्वारा राज्य बांध सुरक्षा समिति के गठन का प्रावधान करता है। समिति के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) एसडीएसओ के कार्यों की समीक्षा करना, (ii) बांध की सुरक्षा जाँच के आदेश देना, (iii) अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम, दोनों तरह के बांधों के संभावित प्रभावों का आकलन करना।
- बांध मालिकों की बाध्यताएँ: विधेयक में बांध मालिकों से यह अपेक्षा की गई है कि वे प्रत्येक बांध के लिये एक सुरक्षा इकाई बनाएंगे। यह इकाई निम्नलिखित स्थितियों में बांधों का निरीक्षण करेगी: (i) बारिश के मौसम से पहले और बाद में और (ii) हर भूकंप, बाढ़ या दूसरी प्राकृतिक आपदा या संकट की आशंका के दौरान और उसके बाद।
कंपोजिट वॉटर मैनेजमेंट इंडेक्स , 2019
(Composite Water Management Index 2019)
नीति आयोग ने जल प्रबंधन घटकों पर राज्यों के प्रदर्शन की जानकारी देने हेतु कंपोज़िट वॉटर मैनेजमेंट इंडेक्स 2019 का दूसरा संस्करण तैयार किया है। अपनी रिपोर्ट में उसने कहा है कि वर्तमान में लगभग 82 करोड़ लोग पानी का संकट झेल रहे हैं और पर्याप्त रूप से सुरक्षित जल उपलब्ध न होने के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग दो लाख लोग मौत के शिकार हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त 2030 तक देश में जल की मांग आपूर्ति से दोगुनी होने का अनुमान है इसका अर्थ पानी का गंभीर संकट है जिससे देश की जीडीपी को 6% का नुकसान होगा।
कंपोज़िट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स के ज़रिये नीति आयोग ने: (i) उन राज्यों को चिन्हित किया है जो उच्च या अल्प प्रदर्शक हैं और (ii) उन क्षेत्रों की पहचान की है जिनमें अधिक निवेश एवं संलग्नता की ज़रूरत है। सूचकांक का उद्देश्य जल प्रयोग तथा संरक्षण के क्षेत्र में विभिन्न राज्यों के बीच प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाना एवं जल हेतु राष्ट्रीय डेटा प्रबंधन प्लेटफॉर्म को विकसित करना है। रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्षों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- 2030 तक भारत की जनसंख्या 5 बिलियन से अधिक हो जाएगी। इस बढ़ती आबादी के लिये पानी की कमी के साथ खाद्य सुरक्षा का लक्ष्य हासिल करना और अधिक कठिन हो जाता है। कई प्रधान फसलें पानी से संबंधित समस्याओं से प्रभावित हो रही हैं। उदाहरण के लिये गेहूँ की खेती वाले लगभग 74% क्षेत्र और चावल की खेती वाले 65% क्षेत्र पानी की भारी कमी से जूझ रहे हैं।
- शहरों में पानी: पानी के कमी वाले दुनिया के 20 सबसे बड़े शहरों में से 5 शहर भारत में हैं। 2014 में कोई भी भारतीय शहर अपनी पूरी शहरी आबादी को 24x7 पानी की आपूर्ति नहीं कर रहा था और भारत में केवल 35% शहरी घरों में पाइप का पानी उपलब्ध था।
- आर्थिक जोखिम: अनुमान बताते हैं कि 2005 और 2030 के बीच औद्योगिक क्षेत्र में पानी की आवश्यकता चार गुना बढ़ जाएगी। पानी की कमी औद्योगिक कामकाज में बाधा उत्पन्न कर सकती है, जो कि राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 30% हिस्सा है।
- जैव विविधता का जोखिम: भारत की जैव विविधता अतिरिक्त जल स्रोतों को बनाने के लिये शुरू की गई मानवीय गतिविधियों से प्रभावित होती है। इन गतिविधियों में बांध निर्माण और नदी की धारा को मोड़ना शामिल है जो जल प्रवाह, लवणता स्तर और मानसून पैटर्न में बदलाव ला सकता है।
- कुल मिलाकर राज्य का प्रदर्शन: पिछले तीन वर्षों में लगभग 80% राज्यों ने भूजल स्रोतों में वृद्धि और पानी से संबंधित डेटा की रिपोर्टिंग जैसे जल प्रबंधन मानदंडों में सुधार प्रदर्शित किया है। हालाँकि, 16 राज्यों (जैसे कि झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान) ने 50% से कम स्कोर किया। इन राज्यों में 48% जनसंख्या बसती है, यहाँ देश की 40% कृषि उपज और 35% आर्थिक उत्पादन होता है।
शिक्षा
20 संस्थानों को उत्कृष्ट संस्थानो का दर्जा देने का सुझाव
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने हाल ही में 20 उच्च शिक्षण संस्थानों को ‘उत्कृष्ट संस्थान’ का दर्जा देने का सुझाव दिया। इन 20 संस्थानों में 10 सार्वजनिक क्षेत्र के और शेष निजी क्षेत्र के हैं। इन संस्थानों को एम्पावर्ड एक्सपर्ट समिति (अध्यक्ष: एन. गोपालास्वामी) के सुझावों के आधार पर चुना गया है।
फरवरी 2018 में यूजीसी ने 10 सार्वजनिक और 10 निजी क्षेत्र के शैक्षणिक संस्थानों को विश्व स्तरीय शिक्षण और शोध संस्थानों के रूप में उभरने, यानी उत्कृष्ट संस्थान बनाने में सक्षम बनाने के लिये एम्पावर्ड एक्सपर्ट समिति का गठन किया था। इन संस्थानों को विदेशी छात्रों को दाखिला देने, फीस तय करने और विदेशी फैकल्टी को नौकरी देने से संबंधित मामलों में अधिक स्वायत्तता दी जाएगी। इसके अतिरिक्त प्रत्येक सार्वजनिक उच्च शिक्षण संस्थान को 5 साल की अवधि के लिये 1,000 करोड़ रुपए तक की वित्तीय सहायता मिलेगी।
उल्लेखनीय है कि यूजीसी द्वारा सुझाए गए 20 संस्थानों में से छह संस्थानों को जुलाई 2018 में उत्कृष्ट संस्थान घोषित किया गया है।
कृषि
कैबिनेट ने वर्ष 2019-20 के लिये चीनी पर निर्यात सब्सिडी को मंजूरी दी
(Export Subsidy for Sugar for the 2019-20)
केंद्रीय कैबिनेट ने वर्ष 2019-20 में चीनी हेतु 10,448 रुपए प्रति मीट्रिक टन (एमटी) की निर्यात सब्सिडी को मंज़ूरी दी है। निर्यात सब्सिडी में चीनी मिलों की हैंडलिंग सहित मार्केटिंग, अपग्रेडिंग, प्रोसेसिंग और परिवहन की लागत शामिल होगी। 60 लाख एमटी तक चीनी पर सब्सिडी देने के लिये 6,268 करोड़ रुपए के व्यय को मंजूर किया गया है। यह चीनी के अधिशेष स्टॉक को कम करने के उद्देश्य से यह किया गया है जो कि 2019-20 के अंत में 162 लाख एमटी अनुमानित है (142 लाख एमटी के ओपनिंग स्टॉक से शुरू)।
मिलों को चुकाई जाने वाली सब्सिडी की राशि सीधे गन्ना किसानों को दी जाएगी और यह मिलों पर किसानों के बकाये के तौर पर दी जाएगी। अगर कोई शेष राशि होगी तो वह मिलों को दे दी जाएगी।
सब्सिडी देने के लिये 6,268 करोड़ रुपए का व्यय मंजूर किया गया है।
वर्ष 2018-19 के लिये प्रमुख फसलों के उत्पादन का चौथा अग्रिम अनुमान जारी
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2018-19 के लिये प्रमुख खाद्यान्नों और कमर्शियल फसलों के उत्पादन का चौठा अग्रिम अनुमान जारी किया। तालिका-3 वर्ष 2017-18 के अंतिम अनुमानों की तुलना वर्ष वर्ष 2018-19 के चौथे अग्रिम अनुमानों से करती है। मुख्य झलकियाँ निम्नलिखित हैं:
- वर्ष 2018-19 में खाद्यान्न उत्पादन 2017-18 के अंतिम अनुमान की तुलना में समान स्तर पर रहने का अनुमान है। खाद्यान्न में अनाज के उत्पादन में वर्ष 2018-19 में 0.8% की मामूली वृद्धि का अनुमान है, जबकि दालों के उत्पादन में 7.9% की गिरावट का अनुमान है।
- वर्ष 2017-18 के अंतिम अनुमानों की तुलना में वर्ष 2018-19 में चावल और गेहूँ का उत्पादन क्रमशः 3.2% और 2.3% बढ़ने का अनुमान है। मोटे अनाज के उत्पादन में 8.6% गिरावट का अनुमान है।
- वर्ष 2017-18 की तुलना में वर्ष 2018-19 में तिलहन के उत्पादन में 2.5% की वृद्धि का अनुमान है। जबकि सोयाबीन के उत्पादन में 26% की वृद्धि का अनुमान है, मूंगफली के उत्पादन में 28% की गिरावट अनुमानित है।
- वर्ष 2018-19 में कपास के उत्पादन में 12.5% की गिरावट का अनुमान है। इस वर्ष गन्ने का उत्पादन 5.3% बढ़कर 400.2 मिलियन टन होने का अनुमान है
अनुबंध खेती को अनिवार्य वस्तु अधिनियम के कुछ प्रतिबंधों से छूट दी गई
उपभोक्ता मामलों के विभाग ने कॉन्ट्रैक्ट खेती के अंतर्गत खरीदे गए कृषि उत्पाद को अनिवार्य वस्तु अधिनियम, 1955 (Essential Commodities Act, 1955) में विनिर्दिष्ट कुछ स्टॉक प्रतिबंधों से छूट दे दी है। अनिवार्य वस्तु अधिनियम, 1955 कुछ विशेष वस्तुओं, जैसे कुछ खाद्य सामग्री, बीज और दवाओं के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण और व्यापार पर नियंत्रण का प्रावधान करता है।
कॉन्ट्रैक्ट खेती के अंतर्गत क्रेता और उत्पादक के बीच फसल पूर्व समझौते के आधार पर उत्पादन किया जाता है। फसल उत्पादन के बाद उत्पादक क्रेता को समझौते की शर्तों और नियमों के अनुसार उत्पाद बेचता है। विभाग ने अधिनियम के अंतर्गत किसी भी आदेश में विनिर्दिष्ट स्टॉक लिमिट के प्रावधान से कॉन्ट्रैक्ट खेती को छूट दी है। यह छूट उन क्रेताओं पर लागू है जो कि कॉन्ट्रैक्ट खेती से जुड़े राज्य कानूनों के अंतर्गत पंजीकृत हैं। हालाँकि इन क्रेताओं द्वारा खरीदे गए उत्पाद उस अधिकतम सीमा के अधीन बने रहेंगे जिसे संबंधित राज्य कानूनों में निर्दिष्ट किया गया है।
ऊर्जा
बदहाल थर्मल पावर परियोजनाओं पर उच्च स्तरीय समिति के सुझाव लागू
(Thermal Power Projects Implemented)
ऊर्जा मंत्रालय ने जुलाई 2018 में स्ट्रेस्ड थर्मल पावर एसेट्स से संबंधित समस्याओं को हल करने के लिये उच्च स्तरीय एम्पावर्ड समिति का गठन किया था। केंद्रीय कैबिनेट ने मार्च 2019 में समिति के कुछ सुझावों को मंजूर किया। मंत्रालय ने इन सुझावों के कार्यान्वयन संबंधी विवरण जारी किये हैं।
स्ट्रेस्ड थर्मल प्रोजेक्ट्स की डेट सर्विसिंग
मंत्रालय ने यह सुनिश्चित करने के लिये एक प्रणाली को मंज़ूरी दी है कि स्ट्रेस्ड थर्मल पावर प्रोजेक्ट्स के ऋणों को प्राथमिकता के आधार पर चुकाया जाए। यह शक्ति नीति के अंतर्गत कोल लिंकेज का प्रयोग करने वाले प्रोजेक्ट्स पर लागू होगा। शक्ति नीति पारदर्शी तरीके से ऊर्जा क्षेत्र में कोल लिंकेज के आवंटन का प्रावधान करती है। समिति ने सुझाव दिया कि स्ट्रेस्ड पावर प्रॉजेक्ट के डेवलपर द्वारा उत्पादन शुद्ध अधिशेष का उपयोग ऋण चुकाने के लिये किया जाए (परिचालनगत व्यय पूरा करने के बाद)।
इस व्यवस्था के अनुसार, प्रॉजेक्ट के राजस्व को ट्रस्ट एंड रिटेंशन एकाउंट (Trust and Retention Account) में जमा किया जाएगा। ऋणदाता द्वारा एक कैश फ्लो मॉनिटरिंग एजेंसी को वास्तविक नकदी प्रवाह और परियोजना की लागत को सत्यापित करने के लिये नियुक्त किया जाएगा। टीआरए के व्यय के लिये प्राथमिकता का क्रम इस प्रकार होगा: (i) वैध भुगतान, जिसमें वे कर और शुल्क शामिल हैं जो सरकारी बकाया है, (ii) ईंधन की लागत, (iii) ट्रांसमिशन की लागत, (iv) परिचालनगत और रखरखाव संबंधी व्यय, (v) ऋणदाताओं का ब्याज भुगतान और (vi) ऋणदाताओं को मुख्य भुगतान।
अल्पावधि के कोल लिंकेज की नीलामी
मंत्रालय ने अल्पावधि के लिये शक्ति नीति के अंतर्गत कोल लिंकेज की नीलामी के लिये एक मसौदा पद्धति को जारी किया है। अल्पावधि के लिंकेज की नीलामी का उद्देश्य यह है कि अल्पावधि और डे-अहेड मार्केट में ज़रूरतों और मांग को पूरा किया जा सके।
जिन पावर प्रोजेक्ट्स के पास पावर पर्चेज एग्रीमेंट (Power Purchase Agreement) नहीं है, वे नीलामी में हिस्सा लेने के लिये पात्र होंगे। लिंकेज की अवधि न्यूनतम तीन महीने और अधिकतम एक वर्ष होगी। यह नीलामी निरंतर अंतराल पर की जाएगी (वर्ष में कम से कम दो बार)। इन कोल लिंकेज के अंतर्गत उत्पादित बिजली को: (i) पावर एक्सचेंज के ज़रिये डे-अहेड मार्केट और इंट्राडे मार्केट में और (ii) डिस्कवरी ऑफ एफिशियंट एनर्जी प्राइज (Discovery of Efficient Energy Price-DEEP) पोर्टल का प्रयोग करते हुए पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया के ज़रिये अल्पावधि के लिये बेचा जाएगा। डीप पोर्टल वितरण कंपनियों द्वारा बिजली की अल्पावधि आपूर्ति की खरीद के लिये एक ई-बिडिंग और ई-रिवर्स ऑक्शन पोर्टल है।
बिजली के लिये रियल-टाइम मार्केट हेतु फ्रेमवर्क प्रस्तावित
(Framework for a real-time market for electricity)
केंद्रीय बिजली रेगुलेटरी आयोग (Central Electricity Regulatory Commission) ने बिजली व्यापार के लिये रियल टाइम मार्केट हेतु एक फ्रेमवर्क प्रस्तावित किया है। 5 सितंबर, 2019 तक मसौदा रेगुलेशन पर टिप्पणियाँ आमंत्रित हैं।
वर्तमान में 25 वर्ष तक के दीर्घावधि के अनुबंधों के ज़रिये अधिकतर खरीद की जाती है। शेष खरीद मध्यम अवधि (5 वर्ष तक) या अल्पावधि (डे-अहेड मार्केट) के अनुबंधों के ज़रिये की जाती है। सीईआरसी ने किसी अतिरिक्त इंट्राडे ज़रूरतों और सिस्टम असंतुलन को दूर करने के लिये कुछ व्यवस्था की है। पावर एक्सचेंज निरंतर व्यापार के आधार पर इंट्राडे एनर्जी मार्केट में काम करते हैं।
प्रस्तावित बाज़ार की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- रियल टाइम मार्केट आधे घंटे का बाज़ार होगा। क्रेता और विक्रेताओं के पास आधे घंटे के बाज़ार में प्रत्येक 15 मिनट के समय के ब्लॉक के लिये बोलियों के आधार पर खरीदने/बेचने का विकल्प होगा।
- प्राइज़ डिस्कवरी एक समान कीमत के साथ दोतरफा बंद नीलामी के माध्यम से होगी। दोतरफा नीलामी में व्यापार उस मूल्य से आगे बढ़ता है जहाँ विक्रेता द्वारा मांगा गया और क्रेता का मूल्य मैच होता है। बंद बोली वह होती है जहाँ एक प्रतिभागी नीलामी प्रक्रिया के दौरान अन्य प्रतिभागियों की बोलियों के बारे में नहीं जानता है। यूनिफॉर्म प्राइज़ ऑक्शन एक मल्टी यूनिट ऑक्शन है जिसमें समरूप वस्तुओं की समान इकाइयों को एक निश्चित संख्या में बेचा जाता है। एक बोली में वांछित इकाइयों की संख्या और प्रति इकाई की इच्छित कीमत, दोनों शामिल होते हैं।
- नीलामी पर गेट क्लोज़र का कॉन्सेप्ट लागू होगा। इसका अर्थ यह है कि एक निश्चित समय के बाद बोली में किसी परिवर्तन की अनुमति नहीं होगी।
ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉप सोलर प्रोग्राम के चरण II के कार्यान्वयन के दिशा-निर्देश
(Grid-connected Rooftop Solar Programme)
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉप सोलर प्रोग्राम के चरण दो के लिये परिचालनगत दिशा-निर्देशों की घोषणा की।
प्रोग्राम के चरण- II का उद्देश्य वर्ष 2022 तक रूफटॉप सोलर के माध्यम से 38,000 मेगावाट की ऊर्जा उत्पादन करना है। इसमें 4,000 मेगावाट की क्षमता को केंद्रीय वित्तीय सहायता के साथ आवासीय क्षेत्र में उत्पादित किया जाएगा। बाकी 34,000 मेगावाट सामाजिक, सरकारी, शैक्षिक, सार्वजनिक उपक्रमों और उद्योगों सहित अन्य क्षेत्रों के माध्यम से उत्पादित की जाएगी। आवासीय के अलावा अन्य क्षेत्रों के मामले में केंद्रीय वित्तीय सहायता प्रदान नहीं की जाएगी।
समुद्री ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में घोषित
समुद्री ऊर्जा में टाइडल एनर्जी, वेव एनर्जी, ओशन थर्मल एनर्जी कनवर्ज़न और मरीन करेंट एनर्जी आती है और अब इसे नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में मान्यता दी गई है। इसी प्रकार समुद्री ऊर्जा के विभिन्न रूपों द्वारा उत्पादित ऊर्जा नॉन-सोलर रीन्यूएबल पर्चेज़ ऑब्लिगेशंस (Renewable Purchase Obligations) का पात्र होगी। आरपीओ कुछ संस्थाओं की बाध्यताओं को संदर्भित करता है जिन्हें नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा का उपयोग करके अपनी बिजली संबंधी कुछ ज़रूरतों को पूरा करना होता है।
टाइडल एनर्जी की कुल चिन्हित क्षमता लगभग 12,455 मेगावाट है। वेव एनर्जी और ओशन थर्मल एनर्जी कनवर्जन की कुल क्षमता क्रमशः 40,000 मेगावाट और 1,80,000 मेगावाट है।
स्टेट रूफटॉप सोलर अट्रैक्टिव इंडेक्स
(State Rooftop Solar Attractive Index)
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने स्टेट रूफटॉप सोलर अट्रैक्टिव इंडेक्स (सरल) की शुरुआत की है। यह रूफटॉप सोलर डिप्लॉयमेंट से संबंधित उपाय करने पर राज्यों को अंक देगा। यह राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न करके रूफटॉप सोलर डिप्लॉयमेंट को प्रोत्साहित करेगा। सरल राज्य में रूफटॉप सोलर डिप्लॉयमेंट के विकास के निम्नलिखित पहलुओं का मूल्यांकन करेगा: (i) नीति ढाँचे की मज़बूती, (ii) कार्यान्वयन का परिवेश, (iii) निवेश का माहौल, (iv) उपभोक्ताओं के अनुभव और (v) कारोबार करने का इकोसिस्टम।
इस महीने घोषित रैंकिंग में, कर्नाटक ने पहला स्थान हासिल किया है। तेलंगाना, गुजरात और आंध्र प्रदेश ने क्रमशः दूसरा,तीसरा और चौथा स्थान हासिल किया है।
खनन
खनन का काम बंद करने के मापदंडो में छूट
खनिज संरक्षण और विकास नियम, 2017 (The Mineral Conservation and Development Rules, 2017) खनन पट्टा धारकों को सतत् खनन की पद्धतियों को इस्तेमाल करने के लिये बाध्य करता है। सतत् खनन तटवर्ती और अपतटीय खनिजों तथा ऊर्जा संसाधनों के विकास को कहते हैं जो खनन के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करते हुए आर्थिक और सामाजिक लाभों को अधिकतम करता है।
- सतत् खनन की पद्धतियों को अपनाने के लिये खनन मंत्रालय ने खनन पट्टा धारकों के लिये एक सतत् विकास ढाँचा निर्धारित किया है। इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस (आईबीएम) हर साल इस ढांचे के क्रियान्वयन के लिये पट्टे पर दी गई खदानों को एक से 5 तक के स्टार्स की रेटिंग देता है। वर्ष 2017 के नियमों के अनुसार, आईबीएम उन खदानों में खनन का काम बंद कर सकता है जिन्होंने अपना काम शुरू करने के दो सालों के अंदर कम-से-कम चार स्टार न हासिल किये हों।
- खनन मंत्रालय ने 2017 के नियमों में संशोधन किया है ताकि न्यूनतम रेटिंग चार स्टार से तीन स्टार की जा सके। अपेक्षित रेटिंग की अवधि चार वर्ष कर दी गई है जो कि 27 फरवरी, 2017 से लागू होगी।
सामरिक खनिजों के लिये विदेशों में खनन हेतु संयुक्त उपक्रम
खनन मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के तीन केंद्रीय उद्यमों की भागीदारी के साथ खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड ( Khanij Bidesh India Limited) नामक एक संयुक्त उद्यम (Joint Venture-JV) की स्थापना की है। ये हैं-नेशनल एल्युमीनियम कंपनी लिमिटेड (National Aluminium Company Limited-NALCO), हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (Hindustan Copper Limited-HCL) और मिनरल एक्सप्लोरेशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एमईसीएल)।
- ‘काबिल, का उद्देश्य घरेलू बाज़ार के लिये सामरिक खनिजों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करना और आयात प्रतिस्थापन की दिशा में काम करना है। सामरिक खनिज वे हैं जो किसी देश की अर्थव्यवस्था और रक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन व्यावसायिक रूप से पर्याप्त मात्रा में उस देश में उपलब्ध नहीं हैं। भारत ने लिथियम, कोबाल्ट, टिन, टंगस्टन और सेलेनियम सहित 12 ऐसे खनिजों की पहचान की है।
- यह वाणिज्यिक खनिजों के लिये विदेशों में सामरिक खनिजों की पहचान, अन्वेषण, विकास, खनन और प्रसंस्करण तथा इन खनिजों की भारत की आवश्यकता को पूरा करेगा।
- निम्नलिखित तरीकों से खनिजों को प्राप्त किया जाएगा: (i) व्यापारिक अवसरों का निर्माण, (ii) उत्पादक देशों के साथ सरकार का सहयोग और (iii) स्रोत देशों में खनन परिसंपत्तियों की खोज हेतु रणनीतिक अधिग्रहण या निवेश।
स्टील
लौह और इस्पात क्षेत्र के लिये मसौदा सुरक्षा संहिता
इस्पात मंत्रालय ने लौह और इस्पात क्षेत्र के लिये मसौदा सुरक्षा संहिता (Draft Safety Code) प्रकाशित की। सुरक्षा संहिता का उद्देश्य क्षेत्र में समान सुरक्षा मापदंड विकसित करना है। इसका लक्ष्य कार्यस्थल पर व्यवसायगत सुरक्षा के मुद्दों के बेहतर प्रबंधन की सुविधा के लिये एक बुनियादी ढाँचा प्रदान करना है।
सुरक्षा संहिता में क्षेत्र के कामकाज के निम्नलिखित विभिन्न पहलू शामिल हैं:
- अग्नि सुरक्षा
- बिजली सुरक्षा
- सामग्री और उपकरणों की हैंडलिंग
- कटिंग और वेल्डिंग
- काम की कठिन स्थितियाँ, जिनमें ऊँचाई पर काम करना, छोटे से स्पेस में काम करना और खुदाई शामिल है।
सुरक्षा संहिता निम्नलिखित प्रकार की संस्थाओं पर लागू होगी:
- एकीकृत इस्पात संयंत्र: ऐसे संयंत्र जिनमें हर प्रकार की गतिविधि शामिल होती है, जैसे कच्चा माल प्राप्त करने से लेकर अंतिम उत्पाद का डिस्पैच और बिजली संयंत्र एवं ऑक्सीजन संयंत्र जैसी सहायक सुविधाएँ,
- छोटे इस्पात संयंत्र/प्रोसेसिंग इकाइयाँ: इनमें भट्ठियाँ, स्पॉन्ज आयरन प्लांट, स्टील फाउंड्री और फॉर्ज, अलॉय प्लांट, इत्यादि शामिल हैं, और
- लौह और इस्पात उद्योग में प्रॉजेक्ट/निर्माण गतिविधियाँ।
संस्कृति
जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) विधेयक, 2019
जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) विधेयक, 2019 [Jallianwala Bagh National Memorial (Amendment) Bill, 2019] को लोकसभा में पारित किया गया और यह विधेयक राज्यसभा में लंबित है। विधेयक जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक अधिनियम, 1951 में संशोधन करता है। 1951 का अधिनियम अमृतसर स्थित जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को मारे गए और घायल लोगों की स्मृति में राष्ट्रीय स्मारक के निर्माण का प्रावधान करता है। इसके अतिरिक्त अधिनियम राष्ट्रीय स्मारक के प्रबंधन के लिये एक ट्रस्ट बनाता है।
- ट्रस्टीज़ का संयोजन: 1951 के अधिनियम के अंतर्गत स्मारक के ट्रस्टीज़ में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, (ii) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष, (iii) संस्कृति मंत्री, (iv) लोकसभा में विपक्ष का नेता, (v) पंजाब का गवर्नर, (vi) पंजाब का मुख्यमंत्री और (vii) केंद्र सरकार द्वारा नामित तीन प्रख्यात व्यक्ति। विधेयक इस प्रावधान में संशोधन करता है और ट्रस्टी के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष को हटाता है। इसके अतिरिक्त विधेयक स्पष्ट करता है कि जब लोकसभा में विपक्ष का कोई नेता नहीं होगा, तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को ट्रस्टी बनाया जाएगा।
- अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा नामित तीन प्रख्यात व्यक्तियों का कार्यकाल 5 वर्ष होगा और उन्हें दोबारा नामित किया जा सकता है। विधेयक प्रावधान करता है कि केंद्र सरकार कोई कारण बताए बिना कार्यकाल खत्म होने से पहले नामित ट्रस्टी को हटा सकती है।
दूरसंचार
ट्राई ने इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर श्रेणी- I के पंजीकरण के दायरे की समीक्षा पर सुझावों को आमंत्रित किया
- भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India-TRAI) ने इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर श्रेणी-I (Infrastructure Provider Category I-IP:I) पंजीकरण के दायरे की समीक्षा पर एक परामर्श-पत्र जारी किया है। इस पत्र के संदर्भ में 16 सितंबर, 2019 तक टिप्पणियाँ आमंत्रित हैं।
- इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर (Infrastructure Providers) ऐसी संस्थाएँ होती हैं जो कि टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करते हैं, उन्हें मेनटेन करते हैं और उनके स्वामी होते हैं तथा उन्हें टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स (Telecom Service Providers (TSPs) को इन्हें लीज पर देते हैं, किराए पर देते हैं या बेचते हैं। टेलीकॉम टावर कंपनियाँ इस श्रेणी के अंतर्गत पंजीकृत हैं। वर्तमान में IP-I कंपनियों को पैसिव इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदान करने की अनुमति है।
- पैसिव इंफ्रास्ट्रक्चर शेयरिंग (Passive Infrastructure Sharing) के अंतर्गत टेलीकॉम नेटवर्कों के नॉन इलेक्ट्रिकल और सिविल इंजीनियरिंग इलिमेंट्स की शेयरिंग आती है। इनमें राइट ऑफ वे, टावर साइट्स, टावर्स, पोल्स, उपकरणों को रखना, पावर सप्लाई और एयर कंडीशनिंग सुविधाएँ शामिल हैं।
- परामर्श-पत्र इसके दायरे को बढ़ाने का प्रयास करता है और शेयरेबल अधिनियमित इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रावधान की अनुमति देता है तथा TSPs को पट्टे पर दी गई लाइनों के माध्यम से एंड-टू-एंड बैंडविड्थ प्रदान करता है। ऐसा प्रतिस्पर्द्धी कीमतों पर सक्रिय बुनियादी ढाँचे के एलिमेंट्स को तेज़ी से रोलआउट करने की सुविधा देने के लिये किया गया है। अधिनियमित इंफ्रास्ट्रक्चर शेयरिंग में इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क एलिमेंट्स की शेयरिंग आती है। इसमें बेस स्टेशन, एक्सेस नोड स्विचेज़, एंटीना और फाइबर नेटवर्क्स की प्रबंधन प्रणाली शामिल है।
सूचना और प्रसारण
ट्राई ने प्रसारण और केबल सेवाओं के लिये टैरिफ संबंधी मुद्दों पर सुझावों को आमंत्रित किया
- ट्राई ने प्रसारण और केबल सेवाओं के लिये टैरिफ-संबंधी मुद्दों के संदर्भ में एक परामर्श पत्र प्रकाशित किया है। पत्र पर 16 सितंबर, 2019 तक टिप्पणियाँ आमंत्रित हैं।
- 2017 में पेश किये गए फ्रेमवर्क के अनुसार, उपभोक्ता एक नेटवर्क क्षमता शुल्क (Network Capacity Fee-NCF) का भुगतान करते हैं, जो कनेक्शन के लिये एक निश्चित न्यूनतम शुल्क है और बदले में उन्हें सौ फ्री टू एयर चैनल मिलते हैं। 80 पे चैनलों के लिये सब्सक्रिप्शन मॉडल में ब्रॉडकास्टर अपने पे चैनल की पेशकश डिस्ट्रीब्यूटेड प्लेटफॉर्म ऑपरेटर्स (Distributed Platform Operators-DPOs) के रूप में निम्नलिखित प्रकार से करता है:
- एकल चैनल, जिसे अ-ला-कार्ते चैनल कहा जाता है।
- चैनलों का एक समूह, जिसे बुके कहा जाता है।
- डीपीओ प्रसारण और केबल सेवा वितरक हैं। वे उपभोक्ताओं को सब्सक्रिप्शन के लिये चैनल की पेशकश कर सकते हैं: (i) अ-ला-कार्ते चैनल, (ii) ब्रॉडकास्टर का बुके और (iii) डीपीओ का खुद का बुके जिसमें एक या अधिक प्रसारकों के चैनल शामिल हैं।
- इस फ्रेमवर्क का उद्देश्य उपभोक्ताओं को चैनल चुनने की फ्लेक्सिबिलिटी और स्वतंत्रता देना है। हालाँकि, ब्रॉडकास्टरों द्वारा बुके पर दिये जाने वाले भारी डिस्काउंट के कारण उपभोक्ताओं को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है : (i) उपभोक्ताओं के अ-ला-कार्ते चैनलों के विकल्प पर प्रतिकूल प्रभाव, (ii) बुके के रूप में अवांछित चैनलों का थोपा जाना, और (iii) अन्य ब्रॉडकास्टरों के लिये नॉन लेवल प्लेइंग फील्ड।
- परामर्श-पत्र में मुख्य रूप से बुके पर छूट, बुके में शामिल करने के लिये चैनलों की सीलिंग प्राइज़, ब्रॉडकास्टरों और डीपीओ द्वारा बुके तैयार करने की आवश्यकता, NCF और दीर्घकालिक सदस्यता योजनाओं पर छूट से संबंधित मुद्दे शामिल हैं।
विदेशी मामले
प्रधानमंत्री फ्राँस दौरे पर
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने फ्राँस का दौरा किया। दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में चार समझौतों पर हस्ताक्षर किये जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण में सहयोग, (ii) सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना, (iii) समुद्री डोमेन में जागरूकता पैदा करने में सहयोग देना और (iv) इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना मंत्रालय तथा फ्राँस की आईटी कंपनी एटीओएस के बीच सहयोग।
विदेश मंत्री ने चीन का दौरा किया
विदेश मंत्री श्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने चीन का दौरा किया। दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में 5 समझौतों पर हस्ताक्षर किये, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) द्विपक्षीय संबंधों में सहयोग, (ii) खेल संबंधी प्रशासन और (iii) पारंपरिक चिकित्सा।