शासन व्यवस्था
NRC की अंतिम सूची
- 22 Aug 2019
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चर्चा में क्यों?
31 अगस्त, 2019 को प्रकाशित होने वाला अंतिम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens-NRC) देश में चर्चा का महत्त्वपूर्ण विषय बना हुआ है।
अंतिम NRC संबंधी प्रमुख बिंदु:
- इस संदर्भ में गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि असम में NRC की अंतिम सूची में शामिल नहीं होने वाले लोगों को विदेशी अधिकरण (Foreigners’ Tribunal) में उनके बहिष्कार के खिलाफ अपील करने के लिये 120 दिन का समय दिया जाएगा।
- इस संदर्भ में NRC नियमों के तहत ट्रिब्यूनल के समक्ष अपील करने के लिये सिर्फ 60 ही दिन का समय दिया गया है, परंतु अब गृह मंत्रालय इन नियमों में संशोधन पर विचार कर रहा है।
- विदेशी अधिनियम 1946 (Foreigners Act 1946) और विदेशी (ट्रिब्यूनल) के आदेश 1964 (Foreigners (Tribunals) Order 1964) के प्रावधानों के तहत केवल विदेशी ट्रिब्यूनल को ही किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित करने का अधिकार है।
- अतः सिर्फ NRC में किसी व्यक्ति का नाम शामिल न होने से यह आवश्यक नहीं हो जाता कि वह व्यक्ति विदेशी है।
- हालाँकि NRC का अंतिम प्रकाशन भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India-ECI) के लिये एक बड़ी कानूनी चुनौती होगी।
- वर्ष 1997 में ECI ने राज्य की मतदाता सूची को संशोधित करते हुए असम के मतदाताओं की एक नई श्रेणी ‘डी वोटर’ (D Voter) का निर्माण किया था।
- डी वोटर असम में मतदाताओं की वह श्रेणी है जिनकी नागरिकता या तो संदिग्ध है या विवादास्पद स्थिति में है।
- असम के मतदाताओं की डी वोटर श्रेणी में मौजूद लोग तब तक वहाँ के चुनाव में मतदान नहीं कर सकते जब तक कि इस संदर्भ में विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा आदेश न सुना दिया जाए।
विदेशी अधिकरण
(Foreigners’ Tribunal):
- विदेशी अधिकरण एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जिसका निर्माण इस विषय पर अपनी राय प्रस्तुत करना है कि क्या कोई व्यक्ति विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत विदेशी है या नहीं है।
- विदेशी अधिकरण का निर्माण उपरोक्त प्रश्न पर विचार करने हेतु आवश्यकतानुसार केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा किया जाता है।
- विदेशी अधिकरण से संपर्क स्थापित करने के लिये एक व्यक्ति को सक्षम बनाने हेतु विदेशी (ट्रिब्यूनल) के आदेश 1964 को वर्ष 2019 में संशोधित किया गया था। इससे पूर्व केवल राज्य प्रशासन ही किसी संदिग्ध के विरुद्ध विदेशी अधिकरण में याचिका दायर कर सकता था।
कैसे निर्धारित की जाती है नागरिकता?
- नागरिकता किसी व्यक्ति और राज्य के बीच संबंध को दर्शाती है। किसी भी राज्य की सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था के तहत केवल उन्ही लोगों को मौलिक अधिकार प्राप्त होते हैं जो उस राज्य के नागरिक होते हैं।
- विश्व में नागरिकता प्रदान करने के प्रमुखतः दो सिद्धांत होते हैं - 1) जन्म स्थान के आधार पर नागरिकता और 2) रक्त संबंधों के आधार पर नागरिकता। भारतीय नेतृत्व सदैव ही जन्म स्थान के आधार पर नागरिकता देने के पक्ष में रहा है, वहीं रक्त संबंधों के आधार पर नागरिकता देने के विचार को भारतीय संविधान सभा ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह भारतीय लोकनीति (Indian Ethos) के विरुद्ध है।
- नागरिकता संविधान के तहत संघ सूची का विषय है और संसद के विशिष्ट क्षेत्राधिकार के तहत आता है।
- भारतीय संविधान ‘नागरिकता’ शब्द को परिभाषित नहीं करता, परंतु संविधान के अनुच्छेद 5 से 11 तक भारतीय नागरिकता प्राप्त करने योग्य लोगों की विभिन्न श्रेणियों का विवरण दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि संविधान के अन्य प्रावधानों (जो कि 26 जनवरी, 1950 को लागू हुए) के विपरीत उपरोक्त अनुच्छेदों (5 से 11) को संविधान निर्माण के साथ यानी 26 नवंबर, 1949 को ही लागू कर दिया गया था।
- संविधान लागू होने के पश्चात् दिसंबर 1955 में नागरिकता अधिनियम, 1955 पारित किया गया जो सरकार को उन व्यक्तियों की नागरिकता निर्धारित करने का अधिकार देता है जिनके विषय में कोई संदेह है।
- नागरिकता अधिनियम में अब तक कुल चार बार (वर्ष 1986, 2003, 2005 और 2015) संशोधन किया जा चुका है।
भारतीय नागरिक का निर्धारण
- अनुच्छेद 5 - यह अनुच्छेद संविधान के प्रारंभ में प्रत्येक व्यक्ति की नागरिकता निर्धारित करने हेतु बनाया गया था। इसके तहत भारत में पैदा हुए सभी लोगों को भारतीय नागरिकता दी गई थी, यहाँ तक कि जो लोग भारत में बसे थे परंतु यहाँ पैदा नहीं हुए थे, उन्हें भी भारत का नागरिक माना गया, क्योंकि उनके माता-पिता भारत में पैदा हुए थे। इसके अलावा वे लोग जो कम-से-कम पाँच वर्षों से भारत में रह रहे थे उन्हें भी भारतीय नागरिकता का हकदार बनाया गया था।
- अनुच्छेद 6 - आज़ादी के पश्चात् हुए विभाजन के कारण कई लोग पाकिस्तान से आकर भारत में बस गए थे। संविधान का अनुच्छेद 6 इस बात की व्यवस्था करता है कि यदि कोई व्यक्ति, जिसके माता-पिता या फिर दादा-दादी भारत में पैदा हुए थे, 19 जुलाई, 1949 से पहले पाकिस्तान से आकर भारत में बसा है तो उसे स्वतः ही भारतीय नागरिकता प्राप्त हो जाएगी।
- अनुच्छेद 7 - यह अनुच्छेद इस बात की व्यवस्था करता है कि जो लोग 1 मार्च, 1947 के बाद पाकिस्तान चले गए थे, परंतु बाद में पुनर्वास परमिट पर वापस आ गए उन्हें भारतीय नागरिकता मिल सके। यह अधिनियम उन लोगों के लिये अधिक सहानुभूतिपूर्ण था जो लोग विभाजन के बाद पाकिस्तान तो चले गए, परंतु उन्होंने जल्द ही लौटने का निर्णय कर लिया था।
- अनुच्छेद 8 - भारत के बाहर रहने वाले भारतीय मूल का कोई भी व्यक्ति, जिसके माता-पिता या दादा-दादी भारत में पैदा हुए थे, खुद को भारतीय भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता देने के लिये पंजीकृत कर सकता है।
- अनुच्छेद 9 - यदि किसी व्यक्ति ने स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता ग्रहण कर ली है तो उपरोक्त अनुच्छेदों के आधार पर मिली उसकी भारतीय नागरिकता समाप्त हो जाएगी।
क्या कहता है नागरिकता अधिनियम 1955?
- यह अधिनियम मुख्यतः एक ऐसे अवैध प्रवासी को परिभाषित करता है, जिसने एक वैध पासपोर्ट के बिना भारत में प्रवेश किया हो या वीज़ा परमिट की समाप्ति के बाद देश में रह रहा हो।
- यह अधिनियम अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने से रोकता है।
- इस अधिनियम के अंतर्गत किसी व्यक्ति के भारत का नागरिक बनने के लिये योग्यता संबंधी कुछ मानदंड निर्धारित किये गए हैं: -
- नागरिकता के आवेदन से पहले व्यक्ति ने लगातार कम-से-कम 12 महीनों तक भारत में निवास किया हो।
- 12 महीने की अवधि से पहले भी बीते 14 सालों में से 11 साल तक व्यक्ति भारत में रहा हो।
नागरिकता अधिनियम के प्रमुख संशोधन
- 1986 का संशोधन - नागरिकता अधिनियम में इस बात की व्यवस्था की गई थी कि जो भी लोग भारत में जन्मे हैं वे भारतीय नागरिक होंगे, परंतु 1986 के संशोधन में यह निर्धारित किया गया कि भारतीय नागरिक वे होंगे जो 26 जनवरी, 1950 के बाद तथा 1 जुलाई, 1987 से पहले भारत में पैदा हुए हैं।
- 2003 का संशोधन - बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन सरकार ने उपरोक्त नियमों को और अधिक कठोर बना दिया था। संशोधन के तहत इस बात की व्यवस्था की गई थी कि 4 दिसंबर, 2004 को या उसके बाद पैदा हुए लोगों के लिये उनके स्वयं के जन्म के अलावा, उनके माता-पिता दोनों या किसी एक का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है। इस प्रतिबंधात्मक संशोधन के साथ भारत लगभग रक्त संबंधों के आधार पर नागरिकता देने के सिद्धांत की ओर अग्रसर हो गया था।
क्या है नागरिकता (संशोधन) विधेयक?
- नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करने वाले इस नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 में पड़ोसी देशों (बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान) से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई अल्पसंख्यकों (मुस्लिम शामिल नहीं) को नागरिकता प्रदान करने की बात कही गई है, चाहे उनके पास ज़रूरी दस्तावेज़ हों या नहीं।
- प्रस्तावित विधेयक के माध्यम से नागरिकता अधिनियम की अनुसूची 3 में संशोधन का प्रस्ताव भी किया गया है ताकि वे 11 वर्षों के बजाय 6 वर्ष पूरे होने पर नागरिकता के पात्र हो सकें। इससे वे ‘अवैध प्रवासी’ की परिभाषा से बाहर हो जाएंगे।
- यह संशोधन पड़ोसी देशों से आने वाले मुस्लिम लोगों को ही ‘अवैध प्रवासी’ मानता है, जबकि लगभग अन्य सभी लोगों को इस परिभाषा के दायरे से बाहर कर देता है।
असम के विवाद की जड़ क्या है?
- 80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (All Assam Students Union-AASU) ने अवैध तरीके से असम में रहने वाले लोगों की पहचान करने तथा उन्हें वापस भेजने के लिये एक आंदोलन शुरू किया। AASU के 6 साल के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौते (Assam Accord) पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- तदनुसार, असम समझौते के तहत 1986 में नागरिकता अधिनियम में संशोधन कर उसमें एक नई धारा (6A) जोड़ी गई।
- इस समझौते के तहत 1951 से 1961 के बीच असम आए सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और वोट का अधिकार देने का फैसला हुआ।
- 1961 से 1971 के बीच आने वाले लोगों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार दिये गए, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया।
- इस समझौते का पैरा 5.8 कहता है: 25 मार्च, 1971 या उसके बाद असम में आने वाले विदेशियों को कानून के अनुसार निष्कासित किया जाएगा।
- असम विवाद पुनः चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को अपडेट किया जा रहा है ताकि 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी लोगों को वापस भेजा जा सके।
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर
(National Register of Citizens-NRC)
- NRC वह रजिस्टर है जिसमें सभी भारतीय नागरिकों का विवरण शामिल है। इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। रजिस्टर में उस जनगणना के दौरान गणना किये गए सभी व्यक्तियों के विवरण शामिल थे।
- इसमें केवल उन भारतीयों के नामों को शामिल किया जा रहा है जो कि 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं। उसके बाद राज्य में पहुँचने वालों को बांग्लादेश वापस भेज दिया जाएगा।
- NRC उन्हीं राज्यों में लागू होती है जहाँ से अन्य देश के नागरिक भारत में प्रवेश करते हैं। NRC की रिपोर्ट ही बताती है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं।