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आवश्यक वस्तु अधिनियम से कृषि उत्पादों को हटाने का सुझाव

  • 30 Aug 2017
  • 4 min read

चर्चा में क्यों ?

सरकार के प्रमुख थिंक टैंक नीति आयोग ने कृषि उत्पादों को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से पूरी तरह से बाहर निकालने की हिमायत की है।

 इससे क्या होगा

  • दरअसल आयोग एक ऐसे संगठित व्यापार व्यवस्था की वकालत कर रहा है, जिसमें बाज़ार में पर्याप्त पूंजी वाले चुनिन्दा व्यापारियों का दबदबा हो।   
  • इससे कृषि उत्पादों के संचालन लागत में कमी आएगी, कारोबार की व्यापकता बढ़ेगी, कीमतों में कमी आएगी और किसानों की आय में भी वृद्धि होगी।   
  • केंद्र सरकार ने इस बारे में उच्च स्तर पर चर्चा की है और जल्द ही ऐसे प्रावधानों के लिये वह राज्यों से संपर्क कर सकती है।
  • इसके लिये वह पहले उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के साथ विचार-विमर्श करेगी।

आयोग की राय

  • नीति आयोग का मानना है कि कृषि उत्पादों के भंडारण से पाबंदियाँ हटाने से संगठित व्यापार को बढ़ावा मिलेगा, कृषि कारोबार में व्यापकता आएगी और माल के ढुलाई में आसानी होगी। 
  • इससे इस क्षेत्र में निवेश भी बढ़ेगा।
  • आयोग का तर्क है कि नियमों और स्टॉक सीमा में बार-बार बदलाव से व्यापारियों को भंडारण संरचना में निवेश करने में कोई फायदा नज़र नहीं आता है।

खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की समस्या

  • कृषि उत्पादों के स्टॉक सीमा से खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के काम-काज पर असर पड़ता है। उन्हें अपना कार्य सुचारू रूप से ज़ारी रखने के लिये अधिक स्टॉक रखने की आवश्यकता होती है।
  • इस सीमा के हटने से खाद्य प्रसंस्करण एवं शीत भंडारण गृहों में बड़ी संख्या में निजी निवेश हो सकेगा तथा किसानों को उनकी उपज की बेहतर कीमत प्राप्त हो सकेगी।

सीमाएँ

  • नीति आयोग के इस प्रस्ताव का उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने विरोध करते हुए कहा कि व्यापारियों की संख्या सीमित होने पर कीमतों में जोड़-तोड़ होने का जोखिम पैदा होगा तथा जमाखोरी और कालाबाज़ारी को बढ़ावा मिलेगा।   
  • जानकारों की राय में यह विचार तो अच्छा है लेकिन एक साथ दो नीतियाँ कैसे चल सकती हैं, अर्थात यदि हम आवश्यक वस्तु अधिनियम से कृषि उत्पादों को बाहर रखने की कोशिश करते हैं तो उनके लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य तय नहीं किया जा सकेगा।    

आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955

  • आवश्यक वस्तुओं या उत्पादों की आपूर्ति सुनिश्चित करने तथा उन्हें जमाखोरी एवं कालाबाज़ारी से रोकने के लिये वर्ष 1955 में आवश्यक वस्तु अधिनियम बनाया गया था।
  • आवश्यक वस्तुओं में दवाएँ, उर्वरक, दलहन और खाद्य तेल, पेट्रोलियम इत्यादि शामिल हैं।
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