जैव विविधता और पर्यावरण
पर्सपेक्टिव: यमुना पुनरुद्धार योजना
- 21 Mar 2025
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:यमुना नदी, गंगा, संसदीय स्थायी समिति, यमुना-गंगा मैदान, हिमालय पर्वतमाला, चंबल, सिंध, बेतवा, केन, बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड, रासायनिक ऑक्सीजन मांग (COD), फेकल कोलीफॉर्म (FC), भारी धातु, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), सीवेज उपचार संयंत्र (STP), कीटनाशक, उर्वरक, कृषि रसायन मेन्स के लिये:यमुना नदी: प्रदूषण, कारण और शमन उपाय। |
चर्चा में क्यों?
यमुना नदी (एक प्रमुख जल स्रोत तथा गंगा की एक प्रमुख सहायक नदी) में अत्यधिक प्रदूषण होने से यह विश्व की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक बन गई है।
- जल संसाधन पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट से पता चला है कि दिल्ली में यमुना नदी "वस्तुतः अस्तित्वहीन" है।
यमुना नदी के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय:
- यमुना नदी उत्तरी भारत में गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है। यह यमुना-गंगा मैदान का एक अभिन्न अंग है, जो विश्व के सबसे व्यापक जलोढ़ मैदानों में से एक है।
- उद्गम: इसका उद्गम निम्न हिमालय पर्वतमाला में बंदरपूछ शिखरों के दक्षिण-पश्चिमी किनारे पर 6,387 मीटर की ऊँचाई पर यमुनोत्री ग्लेशियर से हुआ है।
- बेसिन: यह नदी उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली से होकर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संगम (जहाँ कुंभ मेला आयोजित होता है) पर गंगा से मिलती है।
- प्रमुख बाँध: लखवार-व्यासी बाँध (उत्तराखंड), ताजेवाला बैराज बाँध (हरियाणा) आदि।
- महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ: चंबल, सिंध, बेतवा और केन।
- यमुना का गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्र: दिल्ली में यमुना 48 किमी तक विस्तारित है लेकिन इसका सबसे प्रदूषित क्षेत्र 22 किमी (वज़ीराबाद से ओखला बैराज) है।
- यह प्रदूषित क्षेत्र नदी की कुल लंबाई का केवल 2% है, लेकिन इससे प्रदूषण की गंभीर समस्या पर प्रकाश पड़ता है।
- यमुना के जल की गुणवत्ता की वर्तमान स्थिति:
- उच्च प्रदूषण संकेतक: नदी के जल में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD), केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (COD) और फेकल कोलीफॉर्म (FC) का उच्च स्तर मिलता है, जो गंभीर प्रदूषण का संकेतक हैं।
- घुलनशील ठोस पदार्थ और भारी धातुएँ: विषाक्त भारी धातुओं और उच्च घुलनशील ठोस पदार्थों की उपस्थिति से जलीय जीवन एवं मानव स्वास्थ्य दोनों के लिये खतरा पैदा होता है, जिससे गंभीर पारिस्थितिक जोखिम उत्पन्न होता है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा किये गए जल गुणवत्ता आकलन के अनुसार, जनवरी 2021 से मई 2023 के बीच, यमुना नदी के किनारे 33 स्थानों में से 23 स्थान (जिनमें हरियाणा के छह, दिल्ली के छह और उत्तर प्रदेश के 11 स्थान शामिल हैं) स्नान हेतु अनुपयुक्त हैं।
- यमुना नदी के संरक्षण हेतु सरकारी पहल:
नोट
- CPCB के प्राथमिक जल गुणवत्ता मानदंडों के अनुसार स्नान हेतु नदी का जल निम्नलिखित मानकों के अनुसार होना चाहिये:
- घुलित ऑक्सीजन (DO): 5 मिलीग्राम/लीटर या अधिक
- जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (BOD): 3 मिलीग्राम/लीटर या उससे कम
- फेकल कोलीफॉर्म: 2,500 MPN/100 ml से कम
- इन मापदंडों के अनुरूप न होने से यमुना का जल मानव संपर्क तथा जलीय जीवन के लिये असुरक्षित हो गया है।
यमुना नदी में प्रदूषण के स्रोत क्या हैं?
- घरेलू सीवेज: बड़ी संख्या में अनधिकृत कॉलोनियों में उचित सीवेज प्रणाली का अभाव है। शहरों (विशेष रूप से दिल्ली) से अनुपचारित या आंशिक रूप से उपचारित सीवेज का एक प्रमुख भाग नदी में चला जाता है, जिससे कार्बनिक तथा रासायनिक प्रदूषकों का स्तर उच्च हो जाता है।
- सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP): दिल्ली में 38 STP हैं लेकिन उनमें से कई कुशलतापूर्वक संचालित नहीं होते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि अनुपचारित या आंशिक रूप से उपचारित सीवेज यमुना में बहा दिया जाता है।
- औद्योगिक अपशिष्ट: यमुना के किनारे स्थित उद्योगों (विशेष रूप से सोनीपत, पानीपत और दिल्ली में) से खतरनाक रसायन, भारी धातुएँ (सीसा, तांबा, जस्ता, क्रोमियम, आदि) एवं विषाक्त अपशिष्ट नदी में मिलते हैं।
- कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (CETP): लगभग 30 CETP को विभिन्न इकाइयों से निकलने वाले औद्योगिक अपशिष्ट जल को उपचारित करने हेतु डिज़ाइन किया गया है। हालाँकि, इनमें से कई प्लांट अपनी क्षमता से कम पर कार्य करते हैं या खतरनाक प्रदूषकों को प्रभावी ढंग से हटाने में विफल रहते हैं, जिससे औद्योगिक अपशिष्ट द्वारा नदी दूषित होती है।
- कृषि अपवाह: कृषि भूमि से कीटनाशक, उर्वरक और अन्य कृषि रसायन बहकर नदी में आ जाते हैं, जिससे पोषक तत्वों का स्तर बढ़ जाने से सुपोषण (यूट्रोफिकेशन) की स्थिति हो जाती है।
- ठोस अपशिष्ट एवं प्लास्टिक प्रदूषण: घरेलू अपशिष्ट, प्लास्टिक और मलबे को सीधे नदी में प्रवाहित करने से जल प्रवाह अवरुद्ध हो जाने के साथ जल की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
- स्वच्छ जल के प्रवाह में कमी: सिंचाई एवं पीने के प्रयोजनों हेतु अत्यधिक जल निकासी तथा वजीराबाद जैसे बैराजों पर जल का मार्ग बदलने से नदी की प्रदूषकों को हटाने की क्षमता सीमित हुई है।
यमुना नदी में प्रदूषण को कम करने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- सीवेज उपचार संयंत्र (STP) प्रबंधन: मौजूदा STP को उन्नत करने एवं उपचार क्षमता का विस्तार करने के साथ यह सुनिश्चित करना चाहिये कि अपवाह से पहले सभी अपशिष्ट जल का उपचार किया जाए।
- विकेंद्रीकृत STP या माइक्रो-STP (1 मिलियन लीटर प्रति दिन या इससे कम क्षमता वाले) अनाधिकृत कॉलोनियों से यमुना नदी में सीधे सीवेज अपवाह को रोकने हेतु आवश्यक हैं।
- प्रभावी औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन: CETP के लिये नियमों को मज़बूत करने एवं सख्त अनुपालन लागू करने के साथ अनुपचारित अपशिष्ट को जल में बहाने वाले उद्योगों को दंडित करना चाहिये।
- स्वच्छ जल के प्रवाह को सुनिश्चित करना: पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने हेतु ऊपरी स्रोतों से पर्याप्त स्वच्छ जल के प्रवाह को सुनिश्चित करना चाहिये।
- ठोस अपशिष्ट एवं प्लास्टिक प्रबंधन: कठोर अपशिष्ट निपटान नियमों एवं जागरूकता अभियानों के माध्यम से नदी में प्लास्टिक और मलबे को फेंकने से रोकना चाहिये।
- कृषि अपवाह नियंत्रण: नदी में रासायनिक अपवाह को कम करने के लिये जैविक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के कम उपयोग जैसी पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना चाहिये।
- नदी तल की ड्रेजिंग एवं सफाई: नदी तल से गाद एवं भारी धातुओं के जमाव को हटाने के क्रम में समय-समय पर ड्रेजिंग की जानी चाहिये।
- जल पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग को बढ़ावा देना: स्वच्छ जल पर निर्भरता कम करने के क्रम में सिंचाई, भवन निर्माण और औद्योगिक शीतलन जैसे गैर-पेय प्रयोजनों हेतु उपचारित अपशिष्ट जल के उपयोग को प्रोत्साहित करना चाहिये।
निष्कर्ष
यमुना नदी में प्रदूषण का खतरनाक स्तर, मानव स्वास्थ्य और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र दोनों के लिये ही गंभीर खतरा है। इस संकट से निपटने हेतु बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें कुशल सीवेज उपचार, सख्त औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन तथा धारणीय कृषि पद्धतियाँ शामिल हैं। स्वच्छ जल के प्रवाह तथा जल पुनर्चक्रण को बढ़ावा देने से जल की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में और भी मदद मिल सकती है। यमुना को पुनर्जीवित करने तथा इसकी पारिस्थितिकी स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु सरकारी एजेंसियों, उद्योगों एवं नागरिकों के सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं।
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