यमुना नदी प्रदूषण और भविष्य के लिये स्थायी समाधान
- 07 Mar, 2025

यमुना नदी प्रदूषण और भविष्य के लिये स्थायी समाधान यमुना नदी भारत की सबसे पवित्र और ऐतिहासिक नदियों में से एक है। उत्तर भारत के लाखों लोगों के लिये यह नदी न केवल जल का स्रोत है, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि आधुनिक विकास, शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण यमुना नदी विश्व की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक बन गई है। यमुना के बढ़ते प्रदूषण के गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी परिणाम देखने को मिल रहे हैं। यह न केवल जलचरों के लिये खतरा है, बल्कि इसके कारण जलजनित बीमारियों में भी वृद्धि हुई है। पिछले दशक यमुना का प्रदूषण एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बनकर भी उभरा है और हाल ही में संपन्न हुए दिल्ली चुनाव में इसे जीत-हार के लिये एक प्रमुख मुद्दे के रूप में देखा गया।
यमुना नदी – परिचय एवं वर्तमान स्थिति
यमुना नदी भारत की चौथी सबसे लंबी नदी है (लगभग 1,376 किलोमीटर) और गंगा की एक प्रमुख सहायक नदी है। यह यमुनोत्री ग्लेशियर (उत्तराखंड) से निकलती है और प्रयागराज में गंगा से मिल जाती है। यह उत्तर भारत की कृषि, औद्योगिक और घरेलू जल आवश्यकताओं की पूर्ति में एक प्रमुख भूमिका निभाती है।
यमुना नदी का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व
यमुना का उल्लेख वेदों और महाभारत एवं रामायण जैसे महाकाव्यों में मिलता है। हिंदू धर्म में इसे गंगा के समान ही पवित्र माना गया है। मथुरा एवं वृंदावन जैसे तीर्थस्थल इस नदी के तट पर बसे हैं, जहाँ हर साल लाखों श्रद्धालुओं का आगमन होता है। इसके अलावा, यमुना ऐतिहासिक रूप से कई महत्त्वपूर्ण शहरों और सभ्यताओं का केंद्र रही है। मुगल शासकों ने इसके किनारे कई भव्य स्मारकों का निर्माण कराया, जिनमें आगरा का प्रसिद्ध ताजमहल भी शामिल है।
यमुना नदी की वर्तमान स्थिति एवं प्रदूषण स्तर
हाल के दशकों में यमुना का जल अत्यधिक प्रदूषित हो गया है। दिल्ली में यमुना का 22 किलोमीटर क्षेत्र सर्वाधिक प्रदूषित माना जाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की हालिया रिपोर्टों के अनुसार, इस हिस्से का जल जैविक उपयोग और जलीय जीवन के लिये अनुपयुक्त हो चुका है। वर्तमान में यमुना का जल स्तर कई स्थानों पर इतना अधिक प्रदूषित हो चुका है कि उसमें घुलित ऑक्सीजन (DO) की मात्रा शून्य तक पहुँच गई है। घुलित ऑक्सीजन की अनुपस्थिति के कारण नदी में जलीय जीवन समाप्त हो रहा है। इसके अतिरिक्त, जैव-रासायनिक ऑक्सीजन मांग (BOD) का स्तर सुरक्षित सीमा से कई गुना अधिक दर्ज किया गया है, जिससे जल की गुणवत्ता कम हो गई है। हाल ही में लिये गए नमूनों में अमोनिया और फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की अत्यधिक मात्रा पाई गई। फरवरी 2025 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, अमोनिया का स्तर 8 PPM तक पहुँच चुका है, जबकि मानक सीमा 1 PPM से अधिक नहीं होनी चाहिये। उच्च अमोनिया स्तर के कारण जल उपचार संयंत्रों की कार्यक्षमता प्रभावित हो रही है, जिससे दिल्ली जैसे शहरों में जल आपूर्ति का संकट बढ़ सकता है। यमुना नदी में झाग की मोटी परत बनना भी एक प्रमुख समस्या बन गई है। इस झाग में फॉस्फेट और अन्य रसायनों की अधिकता होती है, जो डिटर्जेंट और औद्योगिक कचरे से उत्पन्न होते हैं। इसके कारण जल की पारदर्शिता घटती जा रही है और नदी के जैविक संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
यमुना नदी के प्रदूषण के प्रमुख कारण
यमुना नदी का प्रदूषण एक गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक समस्या बन चुका है। यह समस्या कई कारणों से उत्पन्न हुई है, जिनमें औद्योगिक अपशिष्ट, घरेलू अपशिष्ट, कृषि रसायन, धार्मिक गतिविधियाँ और शहरीकरण प्रमुख हैं।
- औद्योगिक प्रदूषण: यमुना के किनारे बसे दिल्ली, फरीदाबाद और आगरा जैसे शहरों में स्थित विभिन्न औद्योगिक इकाइयाँ नदी को प्रदूषित करने में बड़ी भूमिका निभाती हैं। रासायनिक फैक्ट्रियाँ, चमड़ा उद्योग, टेक्सटाइल मिलें और अन्य औद्योगिक प्रतिष्ठान बिना उपचार किये भारी मात्रा में अपशिष्ट जल एवं ज़हरीले रसायन का नदी में प्रवाह करते हैं। इन उद्योगों से निकलने वाले सीसा, पारा, कैडमियम और अन्य ज़हरीले तत्त्व जल की गुणवत्ता को कम कर देते हैं।
- घरेलू और सीवेज अपशिष्ट: यमुना में प्रदूषण का एक बड़ा कारण घरेलू एवं सीवेज अपशिष्ट है। दिल्ली, मथुरा, आगरा और कानपुर जैसे शहरों में कई छोटे-बड़े नाले प्रत्यक्ष रूप से यमुना में प्रवाहित किये जाते हैं। रिपोर्टों के अनुसार, दिल्ली में 22 बड़े नाले सीधे यमुना में मिलते हैं, जिनमें घरेलू अपशिष्ट, गंदा जल और प्लास्टिक सामग्री मौजूद होते हैं। अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि और अनियंत्रित शहरीकरण के कारण नगर निगमों के पास पर्याप्त सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) उपलब्ध नहीं हैं। अधिकांश शहरों में जल शोधन प्रणाली कमज़ोर होने के कारण बड़ी मात्रा में अनुपचारित जल नदी में प्रवाहित किया जाता है।
- कृषि से संबंधित प्रदूषण: यमुना नदी के किनारे बसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर कृषि की जाती है। किसान अधिक उत्पादन के लिये भारी मात्रा में उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। वर्षा और सिंचाई के दौरान ये रसायन मिट्टी के साथ बहकर नदी में मिल जाते हैं। ये नाइट्रेट, फॉस्फेट और अन्य ज़हरीले तत्त्व नदी जल की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। इससे जल में शैवाल की अत्यधिक वृद्धि (eutrophication) की स्थिति उत्पन्न होती है, जो जलीय जीवों के लिये घातक है।
- धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियाँ: भारत में नदियों को पवित्र माना जाता है और यमुना भी धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नदी है। मथुरा, वृंदावन और अन्य धार्मिक स्थलों पर लोग पूजा-पाठ के बाद फूल, कपड़े, प्लास्टिक एवं अन्य सामग्रियाँ नदी में बहा देते हैं। त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान बड़ी संख्या में मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है, जिनमें प्लास्टर ऑफ पेरिस, रसायनिक रंग और अन्य हानिकारक तत्त्व मौजूद होते हैं।
- अतिक्रमण और शहरीकरण: यमुना तट पर अनियंत्रित शहरीकरण और अतिक्रमण नदी के प्रदूषण को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अवैध निर्माण कार्यों के कारण नदी के प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है। निर्माण कार्यों से उत्पन्न अपशिष्ट नदी में डाल दिया जाता है, जिससे उसकी गहराई और चौड़ाई प्रभावित होती है। यमुना के किनारे अवैध बस्तियों और झुग्गी-झोपड़ियों के प्रसार से भी नदी के प्रदूषण की वृद्धि होती है, क्योंकि यहाँ उचित जल निकासी और अपशिष्ट निपटान प्रणाली नहीं पाई जाती।
यमुना नदी प्रदूषण के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव
यमुना नदी का प्रदूषण न केवल पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ रहा है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी गंभीर प्रभाव उत्पन्न कर रहा है। जल संकट, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ, जैवविविधता की क्षति, कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव और आर्थिक हानि इसके कुछ प्रमुख प्रभाव हैं।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: यमुना का जल पीने योग्य नहीं रह गया है। नदी के प्रदूषित जल में हानिकारक बैक्टीरिया, वायरस और रसायन पाए जाते हैं, जो जलजनित बीमारियों को बढ़ावा देते हैं। टाइफाइड, डायरिया, हैज़ा, हेपेटाइटिस और त्वचा रोग जैसी बीमारियाँ बढ़ रही हैं। वैज्ञानिक शोधों के अनुसार यमुना के जल में सीसा और आर्सेनिक जैसे ज़हरीले तत्त्व पाए गए हैं, जो दीर्घकालिक रूप से कैंसर जैसी बीमारियों को जन्म दे सकते हैं।
- पारिस्थितिकीय प्रभाव: यमुना के प्रदूषित जल में ऑक्सीजन का स्तर खतरनाक रूप से कम हो गया है। यह स्थिति जल में रहने वाले जीवों के लिये गंभीर रूप से चिंताजनक है। नदी के कई हिस्सों में मछलियों की कई प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। डॉल्फिन और कछुए जैसे जलीय जीवों की संख्या भी तेज़ी से घट रही है।
- कृषि पर प्रभाव: यमुना का जल खेतों की सिंचाई के लिये भी उपयोग किया जाता है। लेकिन अत्यधिक प्रदूषण के कारण यह जल फसलों के लिये हानिकारक होता जा रहा है। प्रदूषित जल में मौजूद भारी धातु और विषैले रसायन मृदा उर्वरता को नष्ट कर रहे हैं। इससे फसलों की उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे किसानों को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है।
- आर्थिक प्रभाव: यमुना के प्रदूषण से पर्यटन उद्योग को भी हानि हो रही है। आगरा में ताजमहल और दिल्ली के कई ऐतिहासिक स्थलों के आस-पास प्रवाहित गंदी एवं बदबूदार यमुना पर्यटकों को आकर्षित करने के बजाय उन्हें निराश कर रही है। इसके अलावा, जल की खराब गुणवत्ता के कारण पेयजल शुद्धिकरण लागत बढ़ गई है। सरकार को जल शुद्धिकरण और स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक व्यय करना पड़ रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है।
यमुना नदी का प्रदूषण रोकने के लिये सरकार की नीतियाँ और प्रयास
यमुना नदी के बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिये सरकार ने विभिन्न स्तरों पर कई योजनाएँ और विनियमन लागू किये हैं। हालाँकि इन प्रयासों की सफलता सीमित रही है।
- विधिक ढाँचा और पर्यावरणीय नियम: सरकार ने जल प्रदूषण को रोकने के लिये कई प्रयास किये हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
- जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 – इस कानून के तहत केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB और SPCB) स्थापित किये गए, जो जल स्रोतों की निगरानी और प्रदूषण नियंत्रण के लिये उत्तरदायी हैं।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 – यह कानून सरकार को जल स्रोतों की सुरक्षा के लिये कठोर नियम लागू करने का अधिकार देता है।
- राष्ट्रीय जल नीति (2012) – इस नीति में जल संसाधनों के सतत् विकास पर बल दिया गया है।
- यमुना एक्शन प्लान (YAP): यमुना एक्शन प्लान सरकार द्वारा शुरू की गई सबसे महत्त्वपूर्ण परियोजना है। इसे तीन चरणों में लागू किया गया:
- यमुना एक्शन प्लान – I (1993-2003): इस चरण में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) स्थापित करने और जल निकासी व्यवस्था सुधारने पर ध्यान दिया गया।
- यमुना एक्शन प्लान – II (2003-2011): इस चरण में जल पुनर्चक्रण और जन-जागरूकता कार्यक्रमों पर कार्य किया गया।
- यमुना एक्शन प्लान – III (2013-वर्तमान): इस चरण में दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश में जल शुद्धिकरण कार्यों को और प्रभावी बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
- दिल्ली सरकार की पहल: दिल्ली सरकार ने भी यमुना की सफाई के लिये कुछ परियोजनाएँ क्रियान्वित की हैं:
- ‘मिशन मोड’ कार्यक्रम: इसके तहत वर्ष 2025 तक यमुना को साफ करने का लक्ष्य रखा गया है।
- सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) का विस्तार: पुराने STP को अपग्रेड किया जा रहा है और नए प्लांट स्थापित किये जा रहे हैं।
- नालों पर नियंत्रण: दिल्ली में बहने वाले नालों की निगरानी करने और उनका जल पुनः उपयोग में लाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
- सरकारी प्रयासों में निहित चुनौतियाँ: नीतियों का सही क्रियान्वयन नहीं होता, जहाँ कई योजनाएँ केवल कागज़ों तक ही सीमित रह जाती हैं।
- बजट और वित्तपोषण की कमी – नदी सफाई के लिये पर्याप्त धनराशि नहीं मिल पाती है।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी – नदी प्रदूषण के मुद्दे पर लंबे समय से राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी दिखती रही है।
- जनभागीदारी की कमी – आम जनता और उद्योग जगत के सहयोग के बिना सरकार के लिये नदी प्रदूषण की समस्या से निपटना आसान नहीं है।
यमुना को पुनर्जीवित करने के लिये स्थायी समाधान
यमुना को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त बनाने के लिये केवल सरकारी प्रयास ही पर्याप्त नहीं होंगे। इसके लिये एक समग्र और दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता है, जिसमें वैज्ञानिक, सामाजिक और प्रशासनिक पहलुओं को शामिल किया जाए।
- आधुनिक जल शुद्धिकरण तकनीक अपनाना
- सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का विस्तार और अपग्रेड करना।
- अधिक क्षमता वाले आधुनिक STP स्थापित करने होंगे।
- छोटे और स्थानीय स्तर के STP को विकसित करना होगा ताकि हर क्षेत्र में जल शुद्धिकरण हो सके।
- बायो-रीमेडिएशन तकनीक
- जल की गुणवत्ता सुधारने के लिये जैविक प्रक्रियाओं के माध्यम से तकनीकों को अपनाया जाना चाहिये।
- विशेष रूप से आर्टिफिशियल वेटलैंड्स और नैनो टेक्नोलॉजी आधारित जल शुद्धिकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- औद्योगिक अपशिष्ट नियंत्रण
- उद्योगों के लिये सख्त जल उपचार नियम लागू किये जाएँ।
- प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर भारी ज़ुर्माना लगाया जाए।
- इको-फ्रेंडली औद्योगिक प्रक्रियाएँ अपनाने के लिये सब्सिडी और प्रोत्साहन प्रदान किये जाएँ।
- सामुदायिक भागीदारी और जन-जागरूकता
- आम लोगों को यमुना की स्वच्छता में भागीदारी के लिये प्रेरित किया जाए।
- धार्मिक अनुष्ठानों में नदी को प्रदूषित करने वाले तत्त्वों के उपयोग को रोका जाए।
- स्कूलों और कॉलेजों में यमुना संरक्षण पर जागरूकता अभियान चलाए जाएँ।
- कृषि क्षेत्र में सुधार
- जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए ताकि रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम हो।
- ड्रिप इरिगेशन और अन्य आधुनिक सिंचाई तकनीकों का प्रयोग किया जाए।
- अतिक्रमण और अवैध निर्माण पर नियंत्रण
- यमुना के किनारे बसी अवैध बस्तियों को नियंत्रित किया जाए।
- नदी तटों पर वृक्षारोपण किया जाए ताकि भूमि कटाव रोका जा सके।
- नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बहाल करना
- बाँधों और बैराजों का वैज्ञानिक प्रबंधन किया जाए।
- जल के प्रवाह को संतुलित किया जाए ताकि नदी का स्वयं को शुद्ध करने का प्राकृतिक गुण बना रहे।
- प्रौद्योगिकी आधारित निगरानी और डेटा विश्लेषण
- सैटेलाइट मॉनिटरिंग और स्मार्ट सेंसर का उपयोग कर नदी की गुणवत्ता पर लगातार नज़र रखी जाए।
- प्रदूषण फैलाने वाले क्षेत्रों की पहचान कर त्वरित कार्रवाई की जाए।