परिप्रेक्ष्य: 24वाँ SCO शिखर सम्मेलन | 12 Jul 2024

प्रिलिम्स के लिये:

शंघाई सहयोग संगठन (SCO), ऊर्जा, व्यापार, सूचना-सुरक्षा, आतंकवाद का मुकाबला, अलगाववाद, नशीली दवाओं के विरुद्ध रणनीति, पारिस्थितिकी पर्यटन, सीमा-पार आतंकवाद, आतंकवाद का वित्तपोषण, भारत मध्य-पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), चाबहार परियोजना, INSTC, जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढाँचा, हरित ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन शमन, E20 कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर राष्ट्रीय रणनीति, ‘AI फॉर ऑल’, क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS), बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, अवैध नशीली दवाओं का व्यापार

मेन्स के लिये:

भारत के सामरिक हितों के संदर्भ में SCO का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने कज़ाकिस्तान के अस्ताना में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद की 24वीं बैठक में भाग लिया।

  • SCO के सदस्यों के साथ SCO शिखर सम्मेलन के दौरान द्विपक्षीय बैठकें भी आयोजित की गईं।

24वें SCO शिखर सम्मेलन के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • नई सदस्यता: बेलारूस SCO का 10वाँ सदस्य देश बन गया है। द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करने के लिये भारतीय विदेश मंत्री ने बेलारूसी समकक्ष से मुलाकात की।
  • अस्ताना घोषणा: अस्ताना में 24वें SCO शिखर सम्मेलन में अस्ताना घोषणा को अपनाया गया तथा ऊर्जा, सुरक्षा, व्यापार, वित्त एवं सूचना सुरक्षा पर 25 रणनीतिक समझौतों को स्वीकृति दी गई।
  • SCO विकास रणनीति: SCO के सदस्यों ने 2035 तक SCO विकास रणनीति को अपनाया, जिसमें आतंकवाद, अलगाववाद और उग्र्वाद का मुकाबला, नशीली दवाओं के विरुद्ध रणनीति, ऊर्जा सहयोग, आर्थिक विकास तथा संरक्षित क्षेत्रों एवं पारिस्थितिकी पर्यटन में सहयोग पर प्रस्ताव शामिल हैं।
    • प्रतिबद्धताओं में अवैध मादक पदार्थों की तस्करी से निपटने के लिये एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर करना तथा अंतर्राष्ट्रीय सूचना सुरक्षा मुद्दों पर एक संपर्क योजना भी शामिल थी।

SCO शिखर सम्मेलन, 2024 में भारत द्वारा संबोधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • बढ़ते तनाव एवं वैश्विक चिंताएँ:
    • विश्व में चल रहे संघर्ष और बढ़ते तनाव अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित करते हैं, जैसे रूस-यूक्रेन संघर्ष तथा इस संदर्भ में भारत, चीन एवं रूस जैसे SCO सदस्यों द्वारा अपनाए गए अलग-अलग रुख SCO जैसे मंचों पर विचार-विमर्श करना मुश्किल बनाते हैं। 
    • भारत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि दुनिया को साझा आधार एवं सहयोग खोजने के माध्यम से परिणामों को कम करने का लक्ष्य रखना चाहिये।
  • आतंकवाद का मुकाबला:
    • SCO की प्राथमिकताओं में से एक सीमा-पार आतंकवाद, का मुकाबला करना है क्योंकि अनियंत्रित आतंकवाद वैश्विक एवं क्षेत्रीय शांति के लिये बड़ा खतरा है।
    • भारत ने इस बात पर ज़ोर  दिया है कि किसी भी रूप में आतंकवाद को उचित नहीं ठहराया जा सकता है तथा आतंकवादियों को सहयोग करने वाले देशों को अलग-थलग किया जाना चाहिये।
    • भारत ने क्षेत्र में सीमा पार आतंकवाद, आतंकवाद के वित्तपोषण, एवं युवाओं के कट्टरपंथ का मुकाबला करने पर ज़ोर दिया। उदाहरण के लिये: इन मुद्दों से निपटने के लिये समन्वय एवं सूचना साझा करने के लिये शंघाई सहयोग संगठन (RATS-SCO) तंत्र की क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS) का उपयोग किया जाना चाहिये।
  • जलवायु परिवर्तन पर चर्चा:
    • भारत ने उत्सर्जन को कम करने एवं जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढाँचे को अपनाने की प्रतिबद्धता दोहराई। उदाहरण के लिये: आपदा रोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (CDRI) जैसे मंचों का उपयोग जलवायु एवं आपदा जोखिमों के लिये बुनियादी ढाँचे की प्रणालियों का लचीलापन बढ़ाने के लिये किया जाना चाहिये, जिससे क्षेत्र में सतत् विकास सुनिश्चित हो सके।
    • शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के हरित विकास मंच का उद्देश्य हरित ऊर्जा, हरित उद्योग, जलवायु परिवर्तन शमन और पारिस्थितिकी संरक्षण में SCO देशों के मध्य सहयोग बढ़ाना है, तथा हरित विकास पर एक दृढ़ सामान्य सहमति बनाना है, जिससे वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन एवं भारत की E20 पहल को बढ़ावा देने में सहायता मिल सकती है।
  • कनेक्टिविटी एवं बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना:
    • भारत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि आर्थिक विकास और विश्वास निर्माण के लिये मज़बूत कनेक्टिविटी आवश्यक है।
    • कनेक्टिविटी एवं बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर SCO के अंदर गंभीर विचार-विमर्श की आवश्यकता है क्योंकि ये संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ पारस्परिक सम्मान के लिये आवश्यक हैं।
  • सामाजिक प्रगति हेतु प्रौद्योगिकी का उपयोग:
    • 21वीं सदी की विशेषता तकनीकी प्रगति है, इसलिये समूह को सामाजिक कल्याण एवं प्रगति के लिये प्रौद्योगिकी को लागू करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • SCO के साथ सांस्कृतिक जुड़ाव:
    • लोगों के बीच कूटनीति SCO देशों के मध्य सहयोग में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है और विविध संस्कृतियों तथा सभ्यताओं को विकसित एवं समृद्ध करने व लोक परंपराओं को संरक्षित करने के अवसर प्रदान करके राष्ट्रों के मध्य एक सेतु का काम करती है।
    • उदाहरण के लिए:
      • SCO सचिवालय में आयोजित कार्यक्रम में SCO के सौ से अधिक प्रतिभागियों ने योग का अभ्यास किया।
      • SCO युवा उद्यमी मंच के माध्यम से उद्यमशीलता गतिविधियों में युवाओं की भागीदारी भी सदस्य देशों के मध्य सहयोग को गहरा करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
      • लोगों के मध्य आपसी संपर्क बढ़ाने के लिये वर्ष 2023 में SCO के मेज़बान के रूप में भारत ने SCO बाजरा खाद्य महोत्सव, SCO फिल्म महोत्सव एवं SCO सूरजकुंड शिल्प मेला का आयोजन किया।

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) क्या है?

  • परिचय:
    • SCO की उत्पत्ति 1996 में गठित "शंघाई फाइव" से हुई थी, जिसमें चीन, रूस, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान एवं ताजिकिस्तान शामिल थे। 
    • SCO की स्थापना 2001 में शंघाई में हुई थी, जिसमें उज़्बेकिस्तान को छठे सदस्य के रूप में जोड़ा गया था। 
    • SCO राजनीति, व्यापार और अर्थव्यवस्था, अनुसंधान तथा प्रौद्योगिकी एवं संस्कृति में प्रभावी सहयोग को बढ़ावा देने के लिये एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है।
    • यह एक राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य संगठन है जिसका लक्ष्य क्षेत्र में शांति, सुरक्षा एवं स्थिरता बनाए रखना है।
    • SCO चार्टर पर 2002 में हस्ताक्षर किये गए थे तथा यह 2003 में लागू हुआ था।
    • इस समूह का विस्तार 2017 में किया गया जब भारत एवं पाकिस्तान इसके सदस्य बने।
    • ईरान 2023 में समूह में शामिल हुआ तथा बेलारूस 10वाँ एवं सबसे नया सदस्य है।
    • SCO सचिवालय बीजिंग में स्थित है।
  • गठन:
    • राष्ट्राध्यक्ष परिषद: सर्वोच्च SCO निकाय जो इसके आंतरिक कार्यप्रणाली और अन्य राष्ट्रों तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ इसके संपर्क का निर्णय लेता है एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार करता है।
    • सरकारी प्रमुख परिषद: बजट को स्वीकृति देती है, SCO के अंतर आर्थिक क्षेत्रों से संबंधित मुद्दों पर विचार करती है तथा निर्णय लेती है।
    • विदेश मामलों के मंत्रिपरिषद: दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों से संबंधित मुद्दों पर विचार करती है।
    • क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS): आतंकवाद, अलगाववाद एवं उग्रवाद का मुकाबला करने के लिये स्थापित।
  • प्रासंगिकता:
    • SCO वैश्विक आबादी के 40%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 30% एवं यूरेशिया के 60% क्षेत्र को शामिल करता है। 
    • भौगोलिक महत्त्व के कारण SCO की एशिया में रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण भूमिका है- यह इसे मध्य एशिया को नियंत्रित करने एवं क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को सीमित करने में सक्षम बनाता है। 
    • भारत के लिये महत्त्व:
      • SCO भारत को एक ऐसे मंच में भाग लेने के लिये एक मंच प्रदान करता है जो मध्य एशियाई देशों के साथ सहयोग के अपनी परिधि को बढ़ाता है। 
      • यह RATS के माध्यम से आम सुरक्षा मुद्दों पर क्षेत्र के प्रमुख देशों के साथ संचार बनाए रखने में भी सहायता करता है जो SCO के अंदर एक स्थायी संरचना है। 
      • मध्य एशिया यूरेनियम एवं हरित ऊर्जा स्रोतों का भंडार होने के कारण, SCO भारत को ऊर्जा सुरक्षा के लिये सहयोग को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करता है।

SCO

SCO से संबद्ध चुनौतियाँ क्या हैं?

  • भू-राजनीतिक चुनौतियाँ: वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में जब भू-राजनीति अव्यवस्थित है, SCO में ऐसे देशों का गठबंधन है, जिनके सदस्यों में मतभेद हैं, इसकी प्रासंगिकता पर प्रश्न उठ रहे हैं। 
  • चीन-पाकिस्तान-रूस कोण: SCO में चीन एवं पाकिस्तान की उपस्थिति भारत के लिये संभावित कठिनाइयाँ उत्पन्न करती है।
    • भारत ने हमेशा बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का विरोध किया है, क्योंकि उसका कहना है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भारत की क्षेत्रीय अखंडता एवं संप्रभुता का उल्लंघन करता है।
    • भारत की स्वयं को मुखर करने की क्षमता सीमित होगी तथा उसे दूसरे स्थान पर रहना पड़ सकता है क्योंकि चीन एवं रूस SCO और इसकी प्रमुख शक्तियों के सह-संस्थापक हैं।
  • विस्तार: यदि कोई मंच विस्तार करता है तो समूह का मूल अधिदेश कमज़ोर हो जाता है क्योंकि नए सदस्य अपनी प्राथमिकताएँ लेकर आते हैं।
  • आतंकवाद का मुकाबला: SCO के अधिदेशों में से एक के रूप में आतंकवाद का मुकाबला करने के बावजूद इसने सीमा पार आतंकवाद एवं अवैध नशीली दवाओं के व्यापार का मुकाबला करने में बहुत कम सफलता प्राप्त की है।
    • गोल्डन क्रीसेंट में अफगानिस्तान, ईरान एवं पाकिस्तान के पर्वतीय क्षेत्र शामिल हैं तथा हाल ही में तालिबान द्वारा बढ़ा हुआ अवैध मादक पदार्थ व्यापार इस क्षेत्र के लिये चुनौती बन गया है।
  • SCO की पश्चिम विरोधी छवि: भारत को या तो पश्चिम के साथ अपनी बढ़ती साझेदारी को कम करना होगा या एक संवेदनशील संतुलन बनाने का प्रयत्न करना होगा क्योंकि SCO ने पारंपरिक रूप से पश्चिम विरोधी रुख अपनाया है।
    • इसके अतिरिक्त, कुछ SCO सदस्य देशों ने अफगानिस्तान और तालिबान का प्रयोग पश्चिम के विरुद्ध तथा एक-दूसरे के विरुद्ध अपने भू-आर्थिक एवं भू-रणनीतिक हितों के लिये किया।

आगे की राह

  • भू-राजनीतिक चुनौतियों का समाधान: वसुधैव कुटुम्बकम् के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, भारत वैश्विक एवं क्षेत्रीय सहयोग के लिये इन भावनाओं को मूर्त रूप देने पर ज़ोर देता रहा है।
  • आपसी सहयोग: SCO के सदस्यों को अपने द्विपक्षीय मुद्दों को अनदेखा करके आतंकवाद, अवैध नशीली दवाओं के व्यापार, लोगों के बीच संपर्क एवं आर्थिक हितों की सुरक्षा के मुद्दों पर सहयोग करने की आवश्यकता है। 
  • विस्तार: SCO के विस्तार को देखते हुए यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि समूह का मूल अधिदेश कमज़ोर न हो तथा सदस्यों को समूह के लक्ष्यों एवं प्राथमिकताओं पर सहयोग करना चाहिये।
  • आतंकवाद निरोधक तंत्र को सशक्त करना: पूर्ण सदस्य के रूप में अपनी स्थापना के समय से ही भारत ने न केवल आतंकवाद एवं कट्टरपंथ पर SCO के मुख्य एजेंडे को सशक्त करने का समर्थन किया है, बल्कि सदस्यों से ऐसे राष्ट्रों की निंदा करने में संकोच न करने का आग्रह किया है तथा इन महत्त्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने में निरंतरता के महत्व पर ज़ोर दिया है। 
  • संगठन का विकास: किसी भी संगठन का विकास आवश्यकता एवं समय के अनुसार होना आवश्यक है ताकि निरर्थकता से बचा जा सके। इस तथ्य को देखते हुए SCO को क्षेत्र एवं उसके सदस्यों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये विकसित होना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक 

प्रश्न. 'क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी' शब्द अक्सर समाचारों में उन देशों के समूह के मामलों के संदर्भ में दिखाई देता है जिन्हें इस नाम से जाना जाता है? (2016)

(a) G20 
(b) ASEAN
(c) SCO 
(d) SAARC

उत्तर: (b)


मुख्य:

प्रश्न. एस० सी० ओ० के लक्ष्यों और उद्देश्यों का विश्लेषणात्मक परीक्षण कीजिये। भारत के लिये इसका क्या महत्त्व है? (2021)