इकोनॉमिक सूत्र: आर्थिक आँकड़ों का उपयोग और दुरुपयोग | 28 Jun 2023
प्रिलिम्स के लिये:पर्यावरणीय, सामाजिक और शासकीय (ESG) मानदंड, सतत् विकास लक्ष्य मेन्स के लिये:ESG की भूमिका, आर्थिक आँकड़ों के फायदे और नुकसान |
संदर्भ
आर्थिक आँकड़े (डेटा) नीति निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि ये नीति निर्माताओं को अर्थव्यवस्था के बारे में आवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं। ये अर्थव्यवस्था के वर्तमान प्रदर्शन का आकलन करने, सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों की पहचान करने तथा प्रभावी नीतियों को तैयार करने में मदद करते हैं।
हालाँकि, यदि आर्थिक डेटा गलत या असामयिक हो या भारत जैसे देश की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप न हो तो चुनौतियाँ भी उत्पन्न हो सकती हैं। सूचित निर्णय लेने और समावेशी एवं सतत् विकास को बढ़ावा देने वाली नीतियों का निर्माण सुनिश्चित करने के लिये इन चुनौतियों को संबोधित करना आवश्यक होता है।
नीति निर्माण में आर्थिक डेटा के क्या फायदे हैं?
- नीति नियमन हेतु जानकारी: आर्थिक डेटा नीति निर्माताओं को अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करता है, जिसमें सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि, मुद्रास्फीति, रोज़गार दर, व्यापार संतुलन और राजकोषीय घाटे जैसे कारक शामिल होते हैं।
- यह जानकारी नीति निर्माताओं को प्रमुख चुनौतियों की पहचान करने, प्राथमिकताएँ निर्धारित करने और आर्थिक मुद्दों के समाधान हेतु उचित नीतियाँ बनाने में मदद करती है।
- नीति के प्रभाव का आकलन: यह नीति निर्माताओं को मौजूदा नीतियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने में सक्षम बनाता है। विभिन्न आर्थिक संकेतकों पर डेटा का विश्लेषण करके, नीति निर्माता यह निर्धारित कर सकते हैं कि उनकी नीतियाँ वांछित परिणाम प्राप्त कर रही हैं अथवा नहीं और तद्नुसार वे आवश्यक समायोजन या सुधार कर सकते हैं।
- उभरते रुझानों और चुनौतियों की पहचान: आर्थिक डेटा नीति निर्माताओं को अर्थव्यवस्था के उभरते रुझानों, चुनौतियों और अवसरों की पहचान करने में मदद करता है।
- उदाहरण के लिये, जनसांख्यिकीय परिवर्तन, तकनीकी प्रगति, या वैश्विक आर्थिक परिवर्तनों पर डेटा उन क्षेत्रों के संदर्भ में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है, जिन पर नीतिगत रूप से ध्यान की आवश्यकता है जैसे कौशल विकास, नवाचार, या व्यापार नीति सुधार आदि।
- नीतिगत लक्ष्यों की दिशा में प्रगति की निगरानी: नीति निर्माताओं को नीतिगत हस्तक्षेपों की प्रगति एवं उनके प्रभावों के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है। प्रासंगिक संकेतकों पर नियमित रूप से ध्यान केंद्रित करके नीति निर्माता यह आकलन कर सकते हैं कि नीतियाँ अपने इच्छित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये सही पथ पर अग्रसर हैं अथवा नहीं और इस आधार पर वे समायोजन या कार्यप्रणाली में सुधार के विषय में सूचित निर्णय ले सकते हैं।
- साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने की सुविधा: आर्थिक डेटा निष्पक्ष एवं विश्वसनीय जानकारी प्रदान करता है ताकि नीति निर्माताओं को साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने में सहायता मिल सके। केवल उपख्यानात्मक साक्ष्य या व्यक्तिगत राय पर भरोसा करने के बजाय, नीति निर्माता डेटा का उपयोग विविध नीति विकल्पों के संभावित परिणामों का आकलन करने और अधिक सूचित विकल्प का चयन करने हेतु सकते हैं।
- पारदर्शिता और जवाबदेहिता में वृद्धि: प्रासंगिक डेटा को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराकर, नीति निर्माता स्पष्टता/खुलेपन की संस्कृति (Culture of openness) को बढ़ावा दे सकते हैं।
- संसाधन आवंटन में मार्गदर्शन: नीति निर्माता लक्षित समर्थन या निवेश की आवश्यकता वाले क्षेत्रकों, क्षेत्रों या जनसांख्यिकीय समूहों संबंधी डेटा का विश्लेषण करके, संसाधन आवंटन में प्राथमिकता निर्धारित कर सकते हैं तथा समावेशी एवं सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाली नीतियों को अभिकल्पित कर सकते हैं।
इस संबंध में कुछ उदाहरण
- कोविड-19 प्रतिक्रिया और प्रोत्साहन पैकेज: कोविड-19 महामारी के दौरान, आर्थिक डेटा ने नीतिगत प्रतिक्रिया तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सरकार ने प्रभावित उद्योगों और आबादी के कमज़ोर वर्गों के लिये प्रोत्साहन पैकेज तथा समर्थनकारी उपायों को अभिकल्पित करने के लिये GDP वृद्धि, बेरोज़गारी दर और क्षेत्रीय प्रदर्शन से संबंधित आँकड़ों पर भरोसा किया।
- डेटा विश्लेषण ने लक्षित नीतिगत हस्तक्षेप को सक्षम करते हुए महामारी से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करने में मदद की।
- कृषि सुधार: वर्ष 2020 में, भारत ने कृषि क्षेत्र में बदलाव लाने के उद्देश्य से महत्त्वपूर्ण कृषि सुधार लागू किये। इसमें भी आर्थिक डेटा (किसानों की आय के स्तर, बाज़ार की अक्षमताओं और मूल्य रुझानों सहित) ने किसानों के समक्ष आने वाली चुनौतियों एवं सुधारों की आवश्यकता के विषय में अंतर्दृष्टि प्रदान की।
- डेटा-संचालित विश्लेषण ने कृषि कानूनों, बाज़ार उदारीकरण तथा बाज़ारों एवं प्रौद्योगिकी तक किसानों की पहुँच बढ़ाने संबंधी नीतिगत निर्णयों को आकार देने में मदद की।
- व्यापार सुगमता में सुधार: विश्व बैंक की व्यापार सुगमता/ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग (वर्ष 2021 के बाद प्रकाशन बंद) ने भारत में नीतिगत निर्णयों को प्रभावित किया है। व्यवसाय शुरू करने, अनुमति/परमिट प्राप्त करने, अनुबंध लागू करने और दिवालियेपन का समाधान करने जैसे कारकों से संबंधित आर्थिक डेटा ने नीति निर्माताओं को व्यावसायिक परिदृश्य में सुधार हेतु विभिन्न उपायों को लागू करने में मदद की है।
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) सुधार: वर्ष 2017 में वस्तु एवं सेवा कर (GST) की शुरूआत का उद्देश्य भारत की जटिल अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को सरल बनाना तथा आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना था। कर राजस्व संग्रह, अनुपालन दर और क्षेत्रीय प्रभाव संबंधी आर्थिक डेटा ने GST फ्रेमवर्क की रूपरेखा और उसका पूर्ण विवरण तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- डेटा विश्लेषण से नीति निर्माताओं को दर समायोजन की आवश्यकता वाले क्षेत्रों की पहचान करने, प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने तथा कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियों का समाधान करने में मदद मिली।
- अवसंरचना विकास: भारत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के साधन के रूप में अवसंरचना/बुनियादी ढाँचे के विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। ऐसे में अवसंरचना की कमी, निवेश आवश्यकताओं और परियोजना कार्यान्वयन की प्रगति से संबंधित आर्थिक डेटा नीति निर्माताओं को प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान कर उसके अनुरूप संसाधन आवंटित करने में सहायता करता है।
आर्थिक डेटा से जुड़े नुकसान
- सटीकता और विश्वसनीयता: आर्थिक डेटा संग्रह में विभिन्न पद्धतियाँ, सर्वेक्षण और अनुमान तकनीक शामिल हैं। डेटा संग्रह, प्रसंस्करण और विश्लेषण के दौरान त्रुटियाँ हो सकती हैं, जिसके चलते डेटा के सटीक न होने की संभावनाएँ भी हो सकती हैं। नमूनाकरण संबंधी त्रुटियाँ, गैर-प्रतिक्रिया (प्रतिभागियों से) पूर्वाग्रह, माप संबंधी त्रुटियाँ और डेटा हेरफेर जैसे कारक आर्थिक डेटा की सटीकता और विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकते हैं।
- डेटा अंतराल और समयबद्धता: समयबद्ध और व्यापक जानकारी की अनुपलब्धता के कारण आर्थिक डेटा में भिन्नता हो सकती है। कुछ क्षेत्रकों या क्षेत्रों में डेटा कवरेज़ सीमित हो सकता है, जिससे उन क्षेत्रों के संबंध में पूर्ण विवरण तैयार करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इसके अतिरिक्त, डेटा को जारी करने में देरी हो सकती है, यह नीति निर्माताओं द्वारा बदलती आर्थिक स्थितियों पर त्वरित प्रतिक्रिया देने की क्षमता को बाधित कर सकता है।
- विषयपरकता और प्रस्तुतीकरण: आर्थिक डेटा प्रस्तुतीकरण में धारणाएँ बनाना, मॉडल का चयन करना और सांख्यिकीय तकनीकों को लागू करना शामिल होता है। अलग-अलग अर्थशास्त्री या विश्लेषक एक ही डेटा को अलग-अलग तरीके प्रस्तुत कर सकते हैं परिणामस्वरूप उनके निष्कर्ष भी एक-दूसरे से भिन्न हो सकते हैं। डेटा के प्रस्तुतीकरण में शामिल विषयपरकता के परिणामस्वरूप कभी-कभी नीति अनुशंसाओं में भी भिन्नता हो सकती है।
- विवरण का अभाव: आर्थिक डेटा प्रायः सामूहिक रूप में जानकारी प्रदान करता है, जो विस्तृत स्तर पर नीति निर्माण के लिये इसकी उपयोगिता को सीमित कर सकता है। नीति निर्माताओं को विशिष्ट क्षेत्रकों, क्षेत्रों या जनसांख्यिकीय समूहों को समझने और तदनुसार नीतियाँ तैयार करने के लिये अधिक विस्तृत डेटा की आवश्यकता हो सकती है। ऐसे में सीमित विवरण विशिष्ट मुद्दों के सटीक समाधान को चुनौतीपूर्ण बना देता है।
- डेटा प्रासंगिकता और कवरेज: इसमें न तो अर्थव्यवस्था के सभी प्रासंगिक पहलुओं को शामिल किया जा सकता है और न ही उभरते क्षेत्रों या घटनाओं को पर्याप्त रूप से शामिल किया जा सकता है। जिस प्रकार से अर्थव्यवस्थाएँ विकसित होती हैं ठीक उसी प्रकार से नए उद्योगों, व्यवसाय मॉडल और आर्थिक गतिविधियों के रूपों को पारंपरिक डेटा स्रोतों में पर्याप्त रूप से प्रतिबिंबित नहीं किया जा सकता है। इससे उभरते रुझानों और प्रौद्योगिकियों के प्रभाव का सटीक आकलन करना मुश्किल हो सकता है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप और पूर्वाग्रह: आर्थिक डेटा राजनीतिक दबाव या हेरफेर के अधीन हो सकता है, जिसके चलते उपलब्ध सूचना पक्षपातपूर्ण अथवा विकृत हो सकती है। कुछ मामलों में, सरकारें अधिक अनुकूल आर्थिक स्थिति प्रस्तुत करने के लिये डेटा रिपोर्टिंग को प्रभावित कर सकती हैं। इस तरह के पूर्वाग्रह आर्थिक डेटा की विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं।
- डेटा निजता और गोपनीयता: इसमें प्रायः व्यक्तियों, व्यवसायों या संगठनों के बारे में संवेदनशील जानकारी शामिल होती है। विश्लेषण के लिये डेटा को सुलभ बनाते हुए उसकी निजता और गोपनीयता सुनिश्चित करना एक चुनौती होती है। सार्वजनिक विश्वास को बनाए रखने के लिये डेटा के खुलेपन/उपलब्धता और निजता की सुरक्षा के बीच सही संतुलन स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है।
संबंधित बाधाओं को नियंत्रित करने में ESG किस प्रकार सहायक हो सकता है?
- पर्यावरणीय, सामाजिक और शासकीय (ESG) मानदंडों का उपयोग अक्सर विभिन्न क्षेत्रकों, उद्योगों और संगठनों की स्थिरता एवं दीर्घकालिक व्यवहार्यता का आकलन करने के लिये नीति निर्माण में आर्थिक डेटा विश्लेषण के एक भाग के रूप में किया जाता है। ESG नीति निर्माण में उपयोग किये जाने वाले आर्थिक डेटा से विभिन्न तरीकों से संबंधित है, जिसमें शामिल हैं:
- SDGs के साथ अनुरूपता: संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य गरीबी, जलवायु परिवर्तन और असमानता सहित अन्य वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिये देशों को एक रूपरेखा प्रदान करते हैं। ESG डेटा पर्यावरणीय प्रभाव, सामाजिक कल्याण और शासकीय प्रथाओं पर जानकारी प्रदान करके इन लक्ष्यों की दिशा में प्रगति का आकलन करने में मदद कर सकता है।
- नीति निर्माता इस डेटा का उपयोग अपनी नीतियों एवं पहलों को SDG के साथ संरेखित करने और अपने हस्तक्षेपों के प्रभाव की निगरानी करने के लिये कर सकते हैं।
- निवेश निर्णय: निवेशकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा निवेश निर्णय लेने के लिये ESG डेटा का तेज़ी से उपयोग किया जा रहा है। नीति निर्माता सतत् विकास उद्देश्यों के अनुरूप ज़िम्मेदार निवेश आकर्षित करने के महत्त्व को मान्यता देते हैं। आर्थिक डेटा विश्लेषण में ESG कारकों को शामिल करके, नीति निर्माता उन क्षेत्रों और कंपनियों की पहचान कर कर निवेश प्रवाह को प्रोत्साहित कर सकते हैं जो सतत्/संधारणीय प्रथाओं के साथ जुड़ रहे हैं।
- जोखिम मूल्यांकन और प्रबंधन: ESG डेटा विभिन्न क्षेत्रकों औव र उद्योगों के संभावित जोखिमों और सुभेद्यताओं के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है। उदाहरण के लिये, किसी कंपनी के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने से नीति निर्माताओं को जलवायु परिवर्तन या संसाधन की कमी से संबंधित संभावित जोखिमों की पहचान करने में मदद मिल सकती है। ESG डेटा को आर्थिक डेटा विश्लेषण के साथ एकीकृत करके, नीति निर्माता उन क्षेत्रों की पहचान कर सकते हैं जिनमें जोखिमों को कम करने और सतत् आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिये नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
- हितधारक सहभागिता और पारदर्शिता: ESG डेटा कर्मचारियों, समुदायों और पर्यावरण सहित विभिन्न हितधारकों पर कंपनी के प्रभाव के बारे में जानकारी प्रदान करके हितधारक जुड़ाव/सहभागिता और पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। नीति निर्माता इस डेटा का उपयोग हितधारकों के साथ जुड़ने, उनकी चिंताओं का आकलन करने और ऐसी नीतियों को अभिकल्पित करने के लिये कर सकते हैं जो सामाजिक एवं पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान प्रभावी तरीके से करें।
- विनियामक फ्रेमवर्क: ESG विचारों को विनियामक ढाँचों में तेज़ी से एकीकृत किया जा रहा है। ESG डेटा का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में उत्तरदायी प्रथाओं को प्रोत्साहित करने वाले नियमों व मानकों के विकास को सूचित करने के लिये किया जा सकता है। इसमें उत्सर्जन मानक स्थापित करना, सतत् आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ावा देना या शासन संबंधी आवश्यकताओं का संस्थापन शामिल हो सकता है।
ESG डेटा को आर्थिक डेटा विश्लेषण में शामिल करके नीति निर्माता आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कारकों की अधिक व्यापक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं जो नीति परिणामों को प्रभावित करते हैं। यह समन्वय अधिक समग्र एवं संधारणीय/सतत् नीतियाँ बनाने में मदद करता है जो दीर्घकालिक आर्थिक विकास, सामाजिक कल्याण तथा पर्यावरणीय प्रबंधन का समर्थन करते हैं।
ESG लक्ष्य क्या हैं?
- ESG लक्ष्य किसी कंपनी के संचालन के लिये मानकों का एक सेट है जो कंपनियों को बेहतर प्रशासन, नैतिक प्रथाओं, पर्यावरण-अनुकूल उपायों तथा सामाजिक उत्तरदायित्वों का पालन करने के लिये विवश करता है।
- पर्यावरणीय (Environmental) मानदंड इस बात पर विचार करते हैं कि कोई कंपनी प्रकृति के प्रबंधक के रूप में कैसा प्रदर्शन करती है।
- सामाजिक (Social) मानदंड इस बात का परीक्षण करते हैं कि कंपनी कर्मचारियों, आपूर्तिकर्त्ताओं, ग्राहकों तथा जिस स्थान पर वह संचालित हो रही है वहाँ के समुदायों के साथ संबंधों का प्रबंधन किस प्रकार करती है।
- शासन (Governance) कंपनी के नेतृत्व, कार्यकारी वेतन, ऑडिट, आंतरिक नियंत्रण और शेयरधारक अधिकारों से संबंधित है।
- यह निवेश निर्णयों को निर्देशित करने के लिये एक माप के रूप में गैर-वित्तीय कारकों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें अब निवेशकों का एकमात्र उद्देश्य वित्तीय रिटर्न को बढ़ाना नहीं है।
- वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र के प्रिंसिपल फॉर रिस्पॉन्सिबल इन्वेस्टमेंट अर्थात् ज़िम्मेदार निवेश सिद्धांतों (UNPRI) की शुरुआत के बाद से, ESG फ्रेमवर्क को आधुनिक व्यवसायों की एक अटूट कड़ी के रूप में मान्यता दी गई है।
निष्कर्ष
नीति निर्माण में आर्थिक डेटा की शक्ति को कम करके नहीं आँका जा सकता। यह एक मार्गदर्शक प्रकाश और दोधारी तलवार दोनों है। डेटा के सटीक संग्रह, विश्लेषण और व्याख्या के महत्त्व को पहचानना सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के लिये समान रूप से महत्त्वपूर्ण है। आर्थिक डेटा की संपूर्ण क्षमता का दोहन तथा इसकी सीमाओं को संबोधित करके, हम साक्ष्य-आधारित नीतियों का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं जो सतत् आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देती हैं और भारत तथा उसके बाहर लोगों के जीवन में सुधार ला सकती हैं। भविष्य सकारात्मक परिवर्तन के लिये एक शक्तिशाली साधन के रूप में आर्थिक डेटा को उपयोग करने की हमारी क्षमता में निहित है।