भारतीय अर्थव्यवस्था
अधिकतम राजस्व, न्यूनतम कर
- 01 Aug 2019
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line, Livemint आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण शामिल है। इस आलेख में भारत की कर राजस्व नीति की चर्चा की गई है, साथ ही अधिक राजस्व संग्रहण के लिये उपाय भी सुझाए गए हैं तथा आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
बजट 2019-20 में व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट, दोनों ही प्रत्यक्ष करों में एक बड़ा परिवर्तन लाया गया है। संभावना है कि वर्ष 2020-21 का बजट प्रस्तुत होने से पूर्व ही सरकार प्रत्यक्ष कर संहिता रिपोर्ट को स्वीकार कर ले और उत्पाद शुल्क की ही तरह प्रत्यक्ष कर भी बजट से बाहर हो जाए। बजट में 400 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली सभी कंपनियों के लिये कॉर्पोरेट कर दर (CTR) को 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया है। पूर्व में 25 प्रतिशत की यह सीमा 250 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली कंपनियों पर लागू थी। वित्त मंत्री ने कहा कि भारत की 99.3 प्रतिशत कंपनियाँ अब इसके दायरे में होंगी। यद्यपि यह स्पष्ट नहीं है कि इन 99.3 प्रतिशत कंपनियों का कुल कॉर्पोरेट कर में कितने प्रतिशत का योगदान होगा लेकिन अटकलें लगाई जा रही हैं कि यह महज़ 10 प्रतिशत होगा।
आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) की रिपोर्ट
कर की दरों को लेकर हमेशा चर्चा और बहस की स्थिति बनती है, इस बार इस पर अधिक चर्चा की जा रही है। वर्ष 2018 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के लिये कॉर्पोरेट कर की दर (CTR) को 35 प्रतिशत से घटाकर 21 प्रतिशत कर दिया था। चार्ट से ज्ञात होता है कि है कि ट्रंप ने निम्न कर दर का उपयुक्त निर्धारण किया है क्योंकि यह इष्टतम कर दर के निकट है।
आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) ने हाल में लगभग 100 अर्थव्यवस्थाओं में कॉर्पोरेट करों पर विस्तृत आँकड़े जारी किये हैं। आँकड़ों से उस चिंता की पुष्टि होती है जिसकी लंबे समय से आशंका थी कि भारत में कॉर्पोरेट कर की दर विश्व के देशों की उच्चतम कर की दरों में से एक है। OECD के अनुसार, भारत में प्रभावी कॉर्पोरेट कर दर (Effective Corporate Tax Rate- ECTR) भी उच्चतम है और अन्य अर्थव्यवस्थाओं से एक बड़े अंतर से अधिक है। ओईसीडी ने भारत के लिये ECTR को 44 प्रतिशत बताया है।
प्रभावी कॉर्पोरेट कर
(Effective Corporate Tax Rate- ECTR)
प्रभावी कॉर्पोरेट कर में कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा विभिन्न देशों में चुकाए गए सभी प्रकार के कर (जैसे कॉर्पोरेट कर, लाभांश कर, पूंजीगत लाभ कर) शामिल हैं।
दूसरी उच्चतम प्रभावी कर दर अर्जेंटीना की है जो भारत के कर दर से 9 प्रतिशत अंक कम है और तीसरे स्थान पर फ्राँस है जिसकी प्रभावी कर दर भारत से 11 प्रतिशत अंक कम है। चीन की प्रभावी कॉर्पोरेट कर दर 23.6 प्रतिशत है और यह भारत की दर से 20 प्रतिशत अंक कम है। क्या यह भी एक कारण है कि चीन भारत से अधिक निवेश और विकास पाता रहा है?
ऊपर दिये गए लाफर वक्र पर एक सरसरी नज़र डालने मात्र से कई बातों का खुलासा हो जाता है।
- ओईसीडी का वर्ष 2017 के लिये विभिन्न देशों का तुलनात्मक आँकड़ा उलटे U-आकार के वक्र से स्पष्ट प्रकट होता है और यह उलटा U-आकार लगभग एक सामान्य वितरण को उजागर करता है (चार्ट में लाल रेखा से निरूपित)।
- कर (डॉलर में) का न्यूनतम उछाल भारत में नज़र आता है, यह संभवतः इसलिये है क्योंकि कर दरों का निर्धारण अधिकतम राजस्व प्राप्त करने के बजाय नैतिकता के आधार पर किया गया है। भारत में 3.5 प्रतिशत कर राजस्व (सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में) के लिये हम 44 प्रतिशत की दर से करारोपण करते हैं। दक्षिण कोरिया, इज़राइल एवं अन्य कई देश इतना ही राजस्व भारत के कराधान स्तर के आधे से ही प्राप्त कर लेते हैं। जैसा कि चार्ट में नज़र आता है, वह कर दर स्तर जिस पर अधिकतम राजस्व प्राप्त होता है, 23 प्रतिशत है। यह भारत के कर स्तर का आधा ही है।
लाफर वक्र (Laffer curve)
कर दर और कर राजस्व (सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में) के बीच का अरैखिक संबंध लाफर वक्र (Laffer curve) द्वारा उद्घाटित होता है- शून्य कर दर से शून्य कर राजस्व की प्राप्ति और 100 प्रतिशत कर दर से शून्य कर राजस्व की प्राप्ति। तर्कसंगत रूप से उचित कर की दरें अधिकतम राजस्व वृद्धि को प्रदर्शित करती हैं लेकिन यदि कर की दरें अत्यधिक ऊँची या कम हों तो कर राजस्व में उसी अनुपात में कमी आने लगती है।
आर्थिक वृद्धि एवं उपाय
वैश्वीकरण के युग में कोई भी देश एक अलग इकाई नहीं है। प्रतिस्पर्द्धा पर कर दरों, ब्याज दरों, विनिमय दरों और श्रम लागतों का प्रभाव पड़ता है। मौजूदा समय में मुद्रा के अवमूल्यन उपाय से समृद्धि की ओर बढ़ना एक सफल दृष्टिकोण नहीं रह गया है। वर्ष 1990-2010 के दो दशकों में ऐसे भारी अवमूल्यन से चीन ने बहुत लाभ उठाया। मुद्रा में ऐसे हस्तक्षेप के चलते चीन की सफलता से यह सुनिश्चित हुआ कि आगे पश्चिमी शक्तियाँ इसकी अनुमति किसी अन्य देश को नहीं प्रदान करेंगी। ट्रंप प्रशासन का व्यापार युद्ध कहीं-न-कहीं चीन की विनिमय नीतियों का ही परिणाम माना जा सकता है।
व्यापार युद्ध
जब एक देश दूसरे देश के प्रति संरक्षणवादी रवैया अपनाता है यानी वहाँ से आयात होने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर शुल्क बढ़ाता है, तो दूसरा देश भी जवाबी कार्रवाई करता है। ऐसी संरक्षणवादी नीतियों के प्रभाव को व्यापार युद्ध (Trade War) कहते हैं। इसकी शुरुआत तब होती है, जब किसी देश को दूसरे देश की व्यापारिक नीतियाँ अपने हितों के विपरीत प्रतीत होती हैं या वह देश रोज़गार सृजन हेतु घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये आयातित वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाता है। जब दो देशों के बीच व्यापार युद्ध छिड़ता है तो उसका असर अन्य देशों पर भी पड़ता है।
प्रश्न है कि अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार के लिये विभिन्न देश अब क्या कर सकते हैं? वे अपने पूंजी लागत को कम कर सकते हैं, श्रम और उद्योग को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बना सकते हैं और अपने ‘एनीमल स्प्रिट्स’ को पुनः जागृत कर सकते हैं।
एनीमल स्प्रिट्स (Animal Sprits)
एनीमल स्प्रिट्स पदावली का प्रयोग John Maynard Keynes ने वर्ष 1936 में लिखी अपनी किताब ‘The General Theory of Employment, Interest and Money’ में पहली बार अर्थशास्त्र के संदर्भ में किया था। इसका अभिप्राय कठिन समय में उपभोक्ताओं व कारोबारों द्वारा प्रदर्शित आत्मविश्वास व आशा से है।
पूंजी लागत में कमी और श्रम व उद्योग में प्रतिस्पर्द्धा के क्षेत्र में नवीनतम बजट सही दिशा में आगे बढ़ा है। संप्रभु बॉण्ड (Sovereign Bond) ऋण के विचार पर अमल का भी उपयुक्त समय आ गया है, भले ही कुछ विशेषज्ञ इसका विरोध करते हों। मुद्रास्फीति का डर भारत सहित विश्व से अब समाप्त हो चुका है। कुछ अर्थशास्त्री एवं विशेषज्ञ अभी भी रेपो दर में कटौती को सही नहीं मानते हैं। किंतु वर्ष 2004-2011 के मध्य भारत में आर्थिक संवृद्धि की दर सबसे अच्छी रही थी एवं तत्कालीन दरें मौजूदा समय से भी कम थीं। ऐसे में रेपो दरों को कम करके GDP की गति को बढ़ाया जा सकता है। आरबीआई के गवर्नर की नियुक्ति के पश्चात् आरबीआई तथा बैंकों के मध्य संवाद में उल्लेखनीय सुधार आया है और नीति दरों में धीरे-धीरे कमी आई है। हालाँकि वास्तविक रेपो दर को अभी और कम किये जाने की आवश्यकता है। संप्रभु बॉण्ड का जारी होना इसमें सहायता कर सकता है, यद्यपि जीडीपी विकास में किसी त्वरित तेज़ी की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिये। विनिमय दर में परिवर्तन अब कार्यान्वित नहीं हो रहा है और मुद्रा नीति अपने कार्यान्वयन और प्रभाव में सुस्त है। इस प्रकार, भारतीय नीति निर्माताओं के पास विकास के लिये एकमात्र विकल्प यह है कि अंतर्राष्ट्रीय रूप से प्रतिस्पर्द्धी स्तरों पर कर दरों में कटौती करें। सभी कंपनियों के लिये कॉर्पोरेट कर दर (CTR) को 22 प्रतिशत तक नीचे लाकर इस उद्देश्य की पूर्ति हो सकती है।
आयकर वृद्धि कितनी कारगर
नवीनतम बजट में व्यक्तिगत आयकर (PIT) की दर में वृद्धि की गई है। विकसित देशों के स्तर तक इस दर को बढ़ाना उपयुक्त कदम नहीं माना जा सकता। ऐसा प्रतीत होता है कि राजस्व के अधिकतम संग्रहण के बजाय अमीरों पर अधिक करारोपण की पुरानी नैतिकता की ओर ही सरकार की कर नीति जाती हुई दिख रही है। इस उपाय से सरकार अमीरों से अधिकतम 5,000 करोड़ रुपए और वसूल कर सकती है, जबकि बजट में 5 लाख करोड़ रुपए व्यक्तिगत आयकर संग्रहण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। साथ ही यह भी संभव है कि इस लक्ष्य को पूरा नहीं किया जा सके क्योंकि कर परिहार (Tax Evasion) व्यक्तिगत आयकर वसूली में कमी ला सकता है। सामान्यतः कर दरों का निर्धारण कर राजस्व को अधिकतम करने के लिये किया जाता है तथा कर राजस्व आय और कर अनुपालन, दोनों पर निर्भर करता है। कर अनुपालन का अभिप्राय है कि अधिकाधिक कंपनियाँ कर जमा करा रही हैं या अपने वास्तविक आय का लगभग पूर्ण खुलासा कर रही हैं। मात्र कर अनुपालन में सुधार लाकर कराधान के माध्यम से वृहत संसाधन संग्रहण सुनिश्चित किया जा सकता है और इसके लिये कर दर में वृद्धि की भी आवश्यकता नहीं होगी, साथ ही वस्तुतः कर दरों में कमी लाकर इसे अधिक प्रेरित ही किया जा सकता है।
भारत में प्रभावी कर दर इतनी अधिक क्यों है?
भारत में कंपनियों को एक कॉर्पोरेट कर चुकाना होता है, जिसके साथ एक अधिभार (Surcharge) और अतिरिक्त 15 प्रतिशत लाभांश वितरण कर (DDT) भी चुकाना होता है। कॉर्पोरेट कर से प्राप्त समग्र कर राजस्व की तुलना में लाभांश वितरण कर से जुटाया गया राजस्व मामूली ही होता है। आकलन बताते हैं कि लाभांश वितरण कर से संग्रहीत राजस्व कुल कॉर्पोरेट कर राजस्व का मात्र 8 प्रतिशत है। 15 प्रतिशत का अनुपयुक्त लाभांश वितरण कर कंपनियों को शेयरधारकों के बीच लाभांश वितरण के प्रति हतोत्साहित करता है। इसके साथ ही दोहरे कराधान की भी समस्या है जहाँ नैतिकता आधारित (अमीरों पर कर) एक अन्य कर आरोपित है। यदि कोई व्यक्ति लाभांश आय के रूप में 10 लाख रुपए से अधिक पाता है तो उसे अतिरिक्त 10 प्रतिशत कर चुकाना होता है। इस प्रकार एक ही आय पर भारत में तीन बार कर आरोपित है और ऐसा विश्व में सिर्फ भारत में ही होता है।
निष्कर्ष
सतत दीर्घावधिक विकास के लिये बजट और आर्थिक सर्वेक्षण, दोनों निजी निवेश के सुधार पर केंद्रित है। निवेश को बढ़ाकर और भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में सहायता के लिये कर दरों में कटौती की आवश्यकता है। कर की दरों में वृद्धि करने की अपेक्षा राजस्व संग्रहण पर अधिक ज़ोर देने की ज़रूरत है। कर की अधिक दरें एक सीमा तक ही कर में वृद्धि करने में सक्षम हो सकती हैं जैसा कि लाफर वक्र में इंगित है कि इस सीमा के पश्चात् कर संग्रहण में कमी आने लगती है। इससे कर संग्रहण तो कम होता ही है, साथ ही निवेश में भी कमी आती है एवं उद्योग जगत भी नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है। यदि सरकार धीरे-धीरे OECD रिपोर्ट के अनुसार करों का तार्किकीकरण करती है तो इससे आने वाले समय में निवेश में वृद्धि होगी जिससे अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी एवं कर राजस्व में भी वृद्धि होगी।
प्रश्न: क्या कर राजस्व को अधिकतम करने के लिये कर की दरों में वृद्धि एक कारगर उपाय है? चर्चा कीजिये।