भारतीय अर्थव्यवस्था
कृषि आय को दोगुना करने का लक्ष्य
- 16 Feb 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने स्वीकार किया कि वर्ष 2013 से देश में कृषि आय का वास्तविक मूल्यांकन नहीं किया गया है।
- भारत सरकार ने वित्तीय वर्ष 2016-17 के केंद्रीय बजट में वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का नीतिगत लक्ष्य निर्धारित किया था।
प्रमुख बिंदु:
परिचय:
- कृषि, भारत की आधी से अधिक आबादी के लिये आजीविका का मुख्य साधन है। रोज़गार, आय और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होने के कारण इतनी कम अवधि में किसानों की आय दोगुनी करना प्रशासनिक अधिकारियों, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के लिये एक मुश्किल काम है।
- कुल उत्पादन में वृद्धि, बाज़ार में बेहतर कीमत वसूली, उत्पादन लागत में कमी, उपज विविधीकरण, कुशल पोस्ट-हार्वेस्ट प्रबंधन, मूल्य संवर्द्धन आदि के माध्यम से किसानों की आय दोगुनी करना संभव है।
भारतीय किसानों से संबंधित डेटा:
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- संस्थागत सुधार:
- उत्पादन बढ़ाने और लागत कम करने के लिये: प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड और परंपरागत कृषि विकास योजना।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना: फसल और आय हानि की स्थिति में बीमा प्रदान करने और खेती में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये।
- नदियों को जोड़ना - उत्पादन और कृषि आय बढ़ाने के लिये।
- ऑपरेशन ग्रीन्स: जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं जैसे- टमाटर, प्याज और आलू (TOP) की मूल्य अस्थिरता को संबोधित करने हेतु।
- पीएम किसान संपदा योजना: खाद्य प्रसंस्करण को समग्र रूप से बढ़ावा देने हेतु।
- तकनीकी सुधार:
- ई-नाम (E-NAM) की शुरुआत: राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (eNAM) एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल है, जो कृषि उत्पादों के लिये एकीकृत राष्ट्रीय बाज़ार बनाने हेतु मौजूदा कृषि उपज विपणन समिति (APMC) मंडियों को एक नेटवर्क से जोड़ता है।
- कपास प्रौद्योगिकी मिशन: इसका उद्देश्य कपास उत्पादकों को प्रौद्योगिकी का व्यवस्थित हस्तांतरण सुनिश्चित कर कृषि लागत में कमी और प्रति हेक्टेयर उपज बढ़ाते हुए उत्पादकों की आय में वृद्धि करना है।
- तिलहन, दलहन और मक्के पर प्रौद्योगिकी मिशन (TMOPM): TMOPM के तहत लागू कुछ योजनाएँ- तिलहन उत्पादन कार्यक्रम (ओपीपी), राष्ट्रीय दलहन विकास परियोजना (एनपीडीपी) आदि हैं।
- एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH): यह फलों, सब्जियों, कंद-मूल फसलों, मशरूम, मसाले, फूल, सुगंधित पौधों, नारियल, काजू, कोको और बाँस को शामिल करने वाले बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास की एक योजना है।
- चीनी प्रौद्योगिकी मिशन (Sugar Technology Mission): इसका उद्देश्य उत्पादकता में वृद्धि, ऊर्जा संरक्षण और पूंजी उत्पादन अनुपात में सुधार जैसे कदमों के माध्यम से चीनी की उत्पादन लागत को कम करना और चीनी की गुणवत्ता में सुधार करना है।
- राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन: इसका उद्देश्य भारतीय कृषि के दस प्रमुख आयामों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अनुकूलन उपायों की एक श्रृंखला के माध्यम से स्थायी कृषि को बढ़ावा देना है, इसमें शामिल प्रमुख आयामों में से कुछ निम्नलिखित हैं: 'संवर्द्धित बीज, पशुधन और मछली पालन ', 'जल उपयोग दक्षता', 'कीट प्रबंधन', 'बेहतर कृषि पद्धति', 'पोषक प्रबंधन', 'कृषि बीमा', 'ऋण सहायता', 'बाज़ार', 'सूचना तक पहुँच' और आजीविका विविधीकरण।
- इसके अतिरिक्त वृक्षारोपण (हर मेड़ पर पेड़), मधुमक्खी पालन, डेयरी और मत्स्य पालन से संबंधित योजनाएँ भी लागू की जाती हैं।
आवश्यकता और चुनौतियाँ: वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये आर्थिक सर्वेक्षण 2021 में कुछ बुनियादी चुनौतियों को रेखांकित किया गया है, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है:
- सिंचाई सुविधाओं का विस्तार:
- एक प्रभावी जल संरक्षण तंत्र सुनिश्चित करते हुए सिंचाई सुविधाओं के विस्तार की आवश्यकता है।
- कृषि ऋण में सुधार:
- कृषि ऋण के क्षेत्र में व्याप्त क्षेत्रीय वितरण की विषमता के मुद्दे को संबोधित करने के लिये कृषि ऋण के एक समावेशी दृष्टिकोण को अपनाया जाना आवश्यक है।
- भूमि सुधार:
- चूँकि भारत में छोटी और सीमांत जोतों का अनुपात काफी बड़ा है, ऐसे में भूमि बाज़ार के उदारीकरण जैसे भूमि सुधार उपायों से किसानों को अपनी आय में सुधार करने में सहायता मिल सकती है।
- संबद्ध क्षेत्रों को बढ़ावा:
- कृषि से जुड़े लोगों (विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों) के लिये रोज़गार और आय का एक सुनिश्चित द्वितीयक स्रोत प्रदान करने हेतु संबद्ध क्षेत्रों जैसे- पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- फार्म मशीनीकरण:
- भारत में अल्प कृषि मशीनीकरण (मात्र 40%) के मुद्दे को भी संबोधित करने की आवश्यकता है जो चीन (लगभग 60%) और ब्राज़ील (लगभग 75%) की तुलना में काफी कम है।
- खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में सुधार:
- पोस्ट हार्वेस्ट क्षति और कृषि उत्पाद के लिये अतिरिक्त बाज़ार के निर्माण में खाद्य प्रसंस्करण की महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए इस क्षेत्र पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
- पिछले छह वर्षों (वित्तीय वर्ष 2017-18 के बाद) में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र 5% से अधिक की औसत वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है।
- पोस्ट हार्वेस्ट क्षति और कृषि उत्पाद के लिये अतिरिक्त बाज़ार के निर्माण में खाद्य प्रसंस्करण की महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए इस क्षेत्र पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
- वैश्विक बाज़ार में संभावनाओं की तलाश:
- वर्तमान में भारत में अधिशेष कृषि उपज के लिये बाज़ार का एक अतिरिक्त स्रोत उपलब्ध कराने हेतु वैश्विक बाज़ारों की खोज पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
- श्रमिकों का पुन: आवंटन:
- वर्तमान में कृषि क्षेत्र से जुड़े श्रम संसाधनों को अन्य क्षेत्रों में भी पुनः आवंटित करने की आवश्यकता है।
- यद्यपि संरचनात्मक परिवर्तनों के तहत कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की संख्या को कम करना और सेवा क्षेत्र के रोज़गार की हिस्सेदारी में वृद्धि करना शामिल था, परंतु बड़ी संख्या में उपलब्ध श्रमिकों को उपयुक्त रोज़गार उपलब्ध कराने के लिये विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार अवसरों के विकास हेतु और अधिक कार्य करने की आवश्यकता है।
- अन्य मुद्दे:
- कृषि में निवेश, बीमा कवरेज, जल संरक्षण, बेहतर कृषि पद्धतियों के माध्यम से उन्नत पैदावार, बाज़ार तक पहुँच, संस्थागत ऋण की उपलब्धता, कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच संबंधों को बढ़ाने जैसे मुद्दों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
आगे की राह:
- किसानों की आय का निम्न स्तर और इसमें प्रतिवर्ष होने वाला उतार-चढ़ाव कृषि क्षेत्र की चिंताओं का एक प्रमुख कारण है।
- कृषि के भविष्य को सुरक्षित करने और भारत की आधी आबादी की आजीविका में सुधार करने के लिये किसानों की स्थिति में सुधार तथा कृषि आय बढ़ाने पर पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है।
- किसानों की क्षमता (प्रौद्योगिकी अपनाने और जागरूकता) को बढ़ाने पर सक्रिय ध्यान देने के साथ ही किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों को संगठित करना आवश्यक है।
- कृषि परिवारों पर राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय का आखिरी सर्वेक्षण वर्ष 2013 में आयोजित किया गया था। इसके बाद से किसानों की आय का कोई अन्य आकलन नहीं किया गया है। इसलिये किसानों की प्रगति का सटीक आँकड़ा प्राप्त करने हेतु तत्काल उचित कार्यक्रमों के संचालन की आवश्यकता है।