प्रारंभिक परीक्षा
प्रिलिम्स फैक्ट्स: 31 जुलाई, 2021
- 31 Jul 2021
- 16 min read
जनजातीय संस्कृति को बढ़ावा देने की पहल
Initiatives to Promote Tribal Culture
जनजातीय मामलों का मंत्रालय "आदिवासी अनुसंधान संस्थान के समर्थन" से आदिवासी महोत्सव, अनुसंधान, सूचना और जन शिक्षा संबंधी योजनाओं का संचालन कर रहा है, जिसके माध्यम से आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु विभिन्न गतिविधियाँ संचालित की गई हैं।
- इन योजनाओं का उद्देश्य अनुसंधान कार्यों, उनका मूल्यांकन, अध्ययन, प्रशिक्षण, आदिवासियों के मध्य जागरूकता पैदा करना, भाषाओं, आवासों और खेती एवं उत्पादन प्रथाओं सहित समृद्ध जनजातीय विरासत के प्रदर्शन में गुणवत्ता व एकरूपता सुनिश्चित करना है।
प्रमुख बिंदु
जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के लिये संग्रहालय:
- जनजातीय लोगों की वीरता और उनके देशभक्तिपूर्ण कार्यों को स्वीकार करने हेतु मंत्रालय ने 10 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय स्थापित करने की मंज़ूरी दी है।
स्वदेशी प्रथाओं का प्रलेखन:
- आदिवासी चिकित्सकों, औषधीय पौधों, आदिवासी भाषाओं, कृषि प्रणाली, नृत्य और पेंटिंग आदि द्वारा स्वदेशी प्रथाओं के अनुसंधान एवं प्रलेखन को बढ़ावा देना।
डिजिटल भंडार/ रिपोज़िटरी:
- समृद्ध जनजातीय सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देने तथा अन्य लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिये अनुसंधान योग्य डिजिटल भंडार विकसित किया गया है।
जनजातीय त्योहारों को अनुदान:
- मंत्रालय राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर आदि महोत्सवों व उत्सवों के आयोजन हेतु ट्राइफेड (भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ) को वित्त सुविधा उपलब्ध कराता है।
आदिवासियों से संबंधित अन्य पहलें:
- जनजातीय स्कूलों का डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन: पहले चरण में 250 एकलव्य मॉडल रेज़िडेंशियल स्कूलों (EMRS) को माइक्रोसॉफ्ट द्वारा अपनाया गया है, जिनमें से 50 EMRS को गहन प्रशिक्षण दिया जाएगा जिसमें 500 मास्टर प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाना शामिल है।
- PVTGs का विकास: इसमें 75 विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTGs) को उनके व्यापक सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये शामिल किया गया है।
- प्रधानमंत्री वन धन योजना: यह बाज़ार से जुड़ा हुआ जनजातीय उद्यमिता विकास कार्यक्रम है जो आदिवासी स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का गठन कर उन्हें जनजातीय उत्पादक कंपनियों के रूप में आधार प्रदान करता है।
ट्राइफेड
- यह एक राष्ट्रीय स्तर का शीर्ष संगठन है जो जनजातीय मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है।
- ट्राइफेड जनजातियों को अपना उत्पाद बेचने हेतु एक सुविधा प्रदाता और सेवा प्रदाता के रूप में कार्य करता है।
- ट्राइफेड का उद्देश्य है जनजातीय लोगों को जानकारी, उपकरण और सूचनाओं से सशक्त करना ताकि वे अपने कार्यों को अधिक क्रमबद्ध एवं वैज्ञानिक तरीके से कर सकें।
- यह जनजातीय उत्पादकों के आधार के विस्तार हेतु राज्यों/ज़िलों/गांँवों में सोर्सिंग स्तर पर नए कारीगरों और नए उत्पादों की पहचान करने के लिये जनजातीय शिल्प मेलों का आयोजन करता है।
- यह ट्राइफूड और लघु वनोत्पाद योजनाओं हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण में भी भूमिका निभाता है।
आमागढ़ फोर्ट: राजस्थान
(Amagarh Fort: Rajasthan)
जयपुर स्थित ‘आमागढ़ फोर्ट’ (राजस्थान) आदिवासी मीणा समुदाय और स्थानीय हिंदू समूहों के बीच संघर्ष के केंद्र बन गया है।
- मीणा समुदाय के सदस्यों का कहना है कि ‘आमागढ़ किला’ जयपुर में राजपूत शासन से पहले एक मीणा शासक द्वारा बनाया गया था और सदियों से उनका पवित्र स्थल रहा है।
- उन्होंने हिंदू समूहों पर आदिवासी प्रतीकों को हिंदुत्व में शामिल करने की कोशिश करने और ‘अंबा माता’ का नाम बदलकर ‘अंबिका भवानी’ करने का आरोप लगाया है।
मीणा समुदाय
- मीणा, जिन्हें मेव या मेवाती के नाम से भी जाना जाता है, पश्चिमी और उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में रहने वाली एक जनजाति है।
- मीणा समुदाय ने वर्तमान पूर्वी राजस्थान के अधिकांश हिस्सों पर शासन किया था, जिस क्षेत्र को इस समुदाय द्वारा ‘मिंदेश’ (मीणाओं का देश) भी कहा जाता है। बाद में उन्हें राजपूतों द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया, जिसमें कछवाहा राजपूत भी शामिल हैं, जिन्होंने अंबर राज्य की स्थापना की, इसे बाद में जयपुर के नाम से जाना गया।
- राजस्थान में इस समुदाय का काफी प्रभाव है। अनुसूचित जनजाति (ST) के लिये आरक्षित 25 विधानसभा सीटों (कुल 200) में से अधिकांश का प्रतिनिधित्व मीणा विधायकों द्वारा किया जाता है।
- नौकरशाही में भी इस समुदाय का बेहतर प्रतिनिधित्व है। इसके आलावा वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य की जनसंख्या में अनुसूचित जनजाति की आबादी 13.48% है।
- साथ ही राज्य भर में बिखरी हुई आबादी के कारण यह समुदाय अनारक्षित सीटों पर भी चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकता है।
प्रमुख बिंदु
आमागढ़ फोर्ट
- आमागढ़ किले के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 18वीं शताब्दी में जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा किया गया था।
- यह माना जाता रहा है कि जय सिंह द्वितीय द्वारा किले के निर्माण से पहले भी इस स्थान पर कुछ संरचनाएँ मौजूद थीं।
- दावे के मुताबिक, यह नदला गोत्र (जिसे अब बड़गोती मीणा के नाम से जाना जाता है) के एक मीणा सरदार द्वारा बनवाई गई थी।
- कछवाहा राजवंश के राजपूत शासन से पहले जयपुर और उसके आस-पास के क्षेत्रों में मीणा समुदाय का शासन एवं राजनीतिक नियंत्रण था।
- गौरतलब है कि मीणा समुदाय के सरदारों ने लगभग 1100 ईस्वी तक राजस्थान के बड़े हिस्से पर शासन किया।
महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय (1693-1744):
- वह एक महान योद्धा और खगोलशास्त्री थे, जो अपने पिता महाराजा बिशन सिंह की मृत्यु के पश्चात् सत्ता में आए थे।
- वह मुगलों के सामंत थे, जिन्हें औरंगज़ेब ने ‘सवाई’ की उपाधि प्रदान की थी, जिसका अर्थ है एक-चौथाई, यह उपाधि ‘जय सिंह’ के सभी वंशजों को प्राप्त थी।
- उन्हें कला, विज्ञान, दर्शन और सैन्य मामलों में सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों एवं विद्वानों द्वारा प्रशिक्षित किया गया था।
- ‘जय सिंह’ मूलतः कछवाहा राजपूत वंश के थे, जो 12वीं शताब्दी में सत्ता में आए थे।
- उन्होंने दिल्ली, जयपुर, वाराणसी, उज्जैन और मथुरा में खगोल विज्ञान वेधशालाओं का निर्माण किया जिन्हें जंतर मंतर के नाम से जाना जाता है।
- ‘जयपुर’ शहर को अपना नाम उन्हीं से प्राप्त हुआ है। हाल ही में ‘जयपुर’ शहर को यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
बायोटेक-प्राइड
Biotech-PRIDE
हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा बायोटेक-प्राइड (डेटा एक्सचेंज के माध्यम से अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना-Biotech-PRIDE) हेतु दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।
- इसके अलावा भारतीय जैविक डेटा केंद्र (IBDC) की एक वेबसाइट भी लॉन्च की गई।
प्रमुख बिंदु
बायोटेक-प्राइड दिशा-निर्देश:
- इन दिशा-निर्देशों में अन्य मौजूदा जैविक डेटासेट/डेटा केंद्रों को IBDC के साथ जोड़ने की परिकल्पना की गई है, जिसे बायो-ग्रिड (Bio-Grid) कहा जाएगा।
- यह बायो-ग्रिड जैविक ज्ञान, सूचना और डेटा हेतु एक राष्ट्रीय भंडार होगा।
- साथ ही बायो-ग्रिड अपने एक्सचेंज को सक्षम करने, डाटासेट के लिये सुरक्षा मानकों और गुणवत्तापूर्ण उपाय विकसित करने तथा डेटा तक पहुंँच सुनिशित करने हेतु विस्तृत तौर-तरीके स्थापित करने के लिये ज़िम्मेदार होगा।
- इन दिशा-निर्देशों को भारतीय जैविक डेटा केंद्र (Indian Biological Data Centre- IBDC) के माध्यम से लागू किया जाएगा।
- वर्तमान में जैविक डेटाबेस में योगदान करने वाले शीर्ष 20 देशों में भारत चौथे स्थान पर है।
बायो-ग्रिड की आवश्यकता और इसके लाभ:
- 135 करोड़ से अधिक की आबादी और देश के विषम स्वरूप के साथ भारत को भारतीय अनुसंधान और समाधान हेतु अपने स्वयं के विशिष्ट डेटाबेस की आवश्यकता है।
- इस स्वदेशी डेटाबेस में भारतीय नागरिकों के लाभ के लिये युवा वैज्ञानिकों और शोधकर्त्ताओं द्वारा डेटा के आदान-प्रदान एवं कार्यान्वयन हेतु एक विशाल सक्षम तंत्र होगा।
- बड़े पैमाने पर डेटा की एक विस्तृत शृंखला साझा करना आणविक और जैविक प्रक्रियाओं की समझ को बढ़ाने में सहायक है।
- यह मानव स्वास्थ्य, कृषि, पशुपालन, मौलिक अनुसंधान में योगदान देगा और इस प्रकार सामाजिक लाभों तक विस्तारित होगा।
- डीएनए अनुक्रमण और अन्य उच्च-प्रवाह क्षमता प्रौद्योगिकियों में प्रगति के साथ-साथ डीएनए अनुक्रमण लागत में आई महत्त्वपूर्ण कमी ने सरकारी एजेंसियों को जैव-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में जैविक डेटा के सृजन की दिशा में अनुसंधान के वित्तपोषण में सक्षम बनाया है।
बायोटेक से संबंधित महत्त्वपूर्ण योजनाएंँ और नीतियांँ:
- बायोटेक-किसान कार्यक्रम
- अटल जय अनुसंधान बायोटेक मिशन - राष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक प्रौद्योगिकी नवाचार (UNaTI) का उपक्रम
- डीएनए प्रौद्योगिकी विधेयक, 2019
- जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट
भारत इंडोनेशिया समन्वित गश्ती का 36वाँ संस्करण
36th India-Indonesia CORPAT
भारत और इंडोनेशिया की नौसेनाओं के बीच समन्वित गश्ती-कॉरपेट (India-Indonesia Coordinated Patrol (India-Indonesia CORPAT) के 36वें संस्करण का आयोजन किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु:
नौसैनिक अभ्यास:
- भारत और इंडोनेशिया समुद्री सहयोग को मज़बूत करने के लिये वर्ष 2002 से प्रतिवर्ष दो बार अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (International Maritime Boundary Line- IMBL) पर समन्वित गश्ती कर रहे हैं।
- भारतीय नौसेना का जहाज़ (INS) सरयू, एक स्वदेश निर्मित अपतटीय गश्ती पोत है, जो 36वें संस्करण में समुद्री गश्ती विमान के साथ हिंद-प्रशांत में दोनों देशों के बीच संबंधों को मज़बूत बनाने के लिये भाग ले रहा है।
उद्देश्य:
- क्षेत्र में नौवहन और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- कॉरपेट अभ्यास नौसेनाओं के बीच समझ और अंतरसंचालनीयता का निर्माण करने में मदद करते हैं साथ ही गैर कानूनी, बिना कोई लेखा-जोखा रखे एवं अनियमित ढंग से संचालित मछली पकड़ने, मादक पदार्थों की तस्करी करने, समुद्री आतंकवाद, सशस्त्र डकैती तथा समुद्री डकैती जैसी गतिविधियों को रोकने के लिये संस्थागत ढाँचे के निर्माण की सुविधा प्रदान करते हैं।
SAGAR मिशन के अनुरूप:
- भारत सरकार के ‘सागर’ (Security And Growth for All in the Region- SAGAR) दृष्टिकोण के अंतर्गत, भारतीय नौसेना हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के साथ समन्वित गश्त, विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone- EEZ) निगरानी में सहयोग, मार्ग अभ्यास (Passage Exercises)और द्विपक्षीय/बहुपक्षीय अभ्यासों के लिये सक्रिय रूप से संलग्न है।
- इसका मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा को मज़बूत करना है।
इंडोनेशिया के साथ अन्य सैन्य अभ्यास:
- समुद्र शक्ति: एक द्विपक्षीय समुद्री अभ्यास।
- गरुड़ शक्ति: एक संयुक्त सैन्य अभ्यास।