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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जीनोम इंडिया इनिशिएटिव

  • 05 Aug 2019
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?

भारत अपनी पहली मानव जीनोम मैपिंग परियोजना (Human Genome Mapping Project) शुरू करने की योजना बना रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • इस परियोजना में कैंसर जैसे रोगों के उपचार के लिये नैदानिक परीक्षणों और प्रभावी उपचारों हेतु (अगले पाँच वर्षों में) 20,000 भारतीय जीनोम की स्कैनिंग (Scanning) करने का विचार है।
  • इस परियोजना को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology-DBT) द्वारा लागू किया जाना है।

जीनोम

Genome

  • आणविक जीव विज्ञान और आनुवंशिकी के अनुसार जीन जीवों का आनुवंशिक पदार्थ है, जिसके माध्यम से जीवों के गुण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचते हैं।
  • किसी भी जीव के डीएनए में विद्यमान समस्त जीनों का अनुक्रम जीनोम (Genome) कहलाता है।
  • मानव जीनोम में अनुमानतः 80,000-1,00,000 तक जीन होते हैं।
  • जीनोम के अध्ययन को जीनोमिक्स कहा जाता है।

जीनोम अनुक्रमण क्या होता है?

  • जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing) के तहत डीएनए अणु के भीतर न्यूक्लियोटाइड के सटीक क्रम का पता लगाया जाता है।
  • इसके अंतर्गत डीएनए में मौज़ूद चारों तत्त्वों- एडानीन (A), गुआनीन (G), साइटोसीन (C) और थायामीन (T) के क्रम का पता लगाया जाता है।
  • DNA अनुक्रमण विधि से लोगों की बीमारियों का पता लगाकर उनका समय पर इलाज करना और साथ ही आने वाली पीढ़ी को रोगमुक्त करना संभव है।

Road to future

इस परियोजना को दो चरणों में लागू किया जाना है:

  • परियोजना के पहले चरण में 10,000 स्वस्थ भारतीयों के पूर्ण जीनोम का अनुक्रमण किया जाएगा।
  • दूसरे चरण में 10,000 रोगग्रस्त व्यक्तियों का जीनोम अनुक्रमण किया जाएगा।
  • जैविक डाटा संग्रहण, डेटा तक पहुँच और इसके साझाकरण की नीति में परिकल्पित राष्ट्रीय जैविक डेटा केंद्र (National Biological Data Centre) के माध्यम से मानव अनुक्रमण (Human Sequencing) पर तैयार डेटा शोधकर्त्ताओं के लिये सुलभ होगा।
  • नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंसेज (National Centre for Cell Sciences) मानव आंत (Human gut) से माइक्रोबायोम (Microbiome) के नमूने एकत्र करेगा।

नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंसेज

National Centre for Cell Science

  • यह सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय परिसर (महाराष्ट्र) में स्थित एक राष्ट्रीय स्तर का जैव प्रौद्योगिकी, टिसू/ऊतक इंजीनियरिंग (Tissue Engineering) और ऊतक बैंकिंग (Tissue Banking) अनुसंधान केंद्र है।
  • यह भारत के प्रमुख अनुसंधान केंद्रों में से एक है, जो सेल-कल्चर, सेल-रिपॉजिटरी (cell-repository), इम्यूनोलॉजी (immunology), क्रोमैटिन-रिमॉडलिंग (chromatin-remodelling) पर काम करता है।

जीनोम मैपिंग की आवश्यकता क्यों?

  • 2003 में मानव जीनोम को पहली बार अनुक्रमित किये जाने के बाद प्रत्येक व्यक्ति की अद्वितीय आनुवंशिक संरचना तथा रोग के बीच संबंध को लेकर वैज्ञानिकों को एक नई संभावना दिखाई दे रही है।
  • अधिकांश गैर-संचारी रोग, जैसे- मानसिक मंदता (Mental Retardation), कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, न्यूरोमस्कुलर डिसऑर्डर तथा हीमोग्लोबिनोपैथी (Haemoglobinopathy) कार्यात्मक जीन में असामान्य DNA म्यूटेशन के कारण होते हैं। चूँकि जीन कुछ दवाओं के प्रति असंवेदनशील हो सकते हैं, ऐसे में इन रोगों को आनुवंशिकी के दृष्टिकोण से समझने में सहायता मिल सकती है।

महत्त्व

  • स्वास्थ्य देखभाल: चिकित्सा विज्ञान में नई प्रगति (जैसे भविष्य कहनेवाला निदान और सटीक दवा, जीनोमिक जानकारी) और रोग प्रबंधन में जीनोम अनुक्रमण एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
    • जीनोम अनुक्रमण पद्धति के माध्यम से शोधकर्त्ता और चिकित्सक आनुवांशिक विकार से संबंधित बीमारी का आसानी से पता लगा सकते हैं।
  • जेनेटिक स्क्रीनिंग (Genetic Screening): जीनोम परियोजना जन्म से पहले की बीमारियों के लिये जेनेटिक स्क्रीनिंग की उन्नत तकनीकों को जन्म देगी।
  • विकास की पहेली: जीनोम परियोजना मानव DNA की प्राइमेट (Primate) DNA के साथ तुलना करके मानव के विकास संबंधी प्रश्नों के जवाब दे सकती है।

लाभ

  • जीनोम मैपिंग के माध्यम से यह पता लगाया जा सकता है कि किसको कौन सी बीमारी हो सकती है और उसके क्या लक्षण हो सकते हैं।
  • इससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि हमारे देश के लोग अन्य देश के लोगों से किस प्रकार भिन्न हैं और यदि उनमें कोई समानता है तो वह क्या है।
  • इससे पता लगाया जा सकता है कि गुण कैसे निर्धारित होते हैं तथा बीमारियों से कैसे बचा जा सकता है।
  • बीमारियों का पता समय रहते लगाया जा सकता है और उनका सटीक इलाज भी खोजा जा सकता है।
  • इसके माध्यम से उपचारात्मक और एहतियाती (Curative & Precautionary) चिकित्सा के स्थान पर Predictive चिकित्सा की जा सकती है।
    • इसके माध्यम से यह पता लगाया जा सकता है कि 20 साल बाद कौन सी बीमारी होने वाली है। वह बीमारी न होने पाए तथा इसके नुकसान से कैसे बचा जाए इसकी तैयारी पहले से ही शुरू की जा सकती है। इसे ही Predictive चिकित्सा कहा गया है।
  • इसके अलावा बच्चे के जन्म लेने से पहले उसमें उत्पन्न होने वाली बीमारियों के जींस का पता भी लगाया जा सकता है और आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं।

भारत में कैंसर की घटनाएँ

Cancer Incidence in India

  • अध्ययन के अनुसार, समय बढ़ने के साथ ही भारत में कैंसर के मामलों की संख्या प्रत्येक 20 वर्ष में दोगुनी हो जाएगी।
  • अगले 10-20 वर्षों में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड तथा ओडिशा पर कैंसर का बोझ सर्वाधिक होगा।
  • महामारी विज्ञान संक्रमण स्तर अवधारणा (Epidemiological Transition Level) के अनुसार, भारतीयों की जीवन प्रत्याशा बढ़ने के साथ ही कैंसर के रोगियों की संख्या बढ़ने लगती है।
  • उच्च ETL वाले राज्यों का विकास सूचकांक बेहतर है तथा यहाँ कैंसर के मामलों की दर भी उच्च है।
  • ETL केरल में सर्वाधिक तथा उत्तर प्रदेश में सबसे कम है।
  • सरकार को भोरे समिति और मुदलियार समिति द्वारा कैंसर पर प्रस्तुत रिपोर्ट के सुझावों पर विचार करना चाहिये जिसमें सभी मेडिकल कॉलेजों में एक बहु-विषयक कैंसर उपचार इकाई का निर्माण और एक कैंसर ऐसे अस्पताल की स्थापना शामिल है जो केवल कैंसर विशिष्ट उपचार को समर्पित हो।

चिंताएँ

  • पक्षपात: जीनोटाइप (Genotype) पर आधारित पक्षपात जीनोम अनुक्रमण का एक संभावित परिणाम है। उदाहरण के लिये, नियोक्ता कर्मचारियों को काम पर रखने से पहले उनकी आनुवंशिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यदि कोई कर्मचारी अवांछनीय कार्यबल के प्रति आनुवंशिक रूप से अतिसंवेदनशील पाया जाता है तो नियोक्ता द्वारा उसके जीनप्रारूप/जीनोटाइप (Genotype) के साथ पक्षपात किया जा सकता है।
  • स्वामित्व और नियंत्रण: गोपनीयता और गोपनीयता संबंधी मुद्दों के अलावा, आनुवंशिक जानकारी के स्वामित्व और नियंत्रण के प्रश्न अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
  • आनुवंशिक डेटा का उचित उपयोग: बीमा, रोज़गार, आपराधिक न्याय, शिक्षा, आदि के लिये महत्त्वपूर्ण है।

पृठभूमि

  • वर्ष 1988 में अमेरिकी ऊर्जा विभाग तथा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने मिलकर मानव जीनोम परियोजना (Human Genome Project-HGP) पर काम शुरू किया था और इसकी औपचारिक शुरुआत वर्ष 1990 में हुई थी।
  • HGP एक बड़ा, अंतर्राष्ट्रीय और बहु-संस्थागत प्रयास है जिसमें जीन अनुक्रमण की रूपरेखा तैयार करने में 13 साल [1990-2003] लगे और इस प्रोजेक्ट पर 2.7 बिलियन डॉलर खर्च हुए।
  • भारत इस परियोजना में शामिल नहीं था, लेकिन इस परियोजना की सहायता से भारत में मानव जीनोम से संबंधित कार्यक्रम शुरू किये जा रहे हैं और उन्हें आगे बढ़ाया जा रहा है।
  • HGP में 18 देशों की लगभग 250 प्रयोगशालाएँ सम्मिलित हैं।
  • इस परियोजना के प्रमुख लक्ष्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • मानव DNA के लगभग एक लाख जींस की पहचान करना।
    • मानव DNA बनाने वाले लगभग 3.20 अरब बेस पेयर्स का निर्धारण करना।
    • सूचनाओं को डेटाबेस में संचित करना।
    • अधिक तेज़ और कार्यक्षम अनुक्रमित प्रौद्योगिकी का विकास करना।
    • आँकड़ों के विश्लेषण के लिये संसाधन (Tools) विकसित करना।
    • परियोजना के नैतिक, विधिक व सामाजिक मुद्दों का निराकरण करना।

स्रोत: द हिंदू

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