अंतर्राष्ट्रीय संबंध
कच्चातीवू द्वीप: सामरिक क्षेत्र
- 04 Apr 2024
- 25 min read
यह एडिटोरियल 03/04/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Katchatheevu and beyond, islands and India’s new geopolitics” लेख पर आधारित है। इसमें चर्चा की गई है कि पिछले एक दशक की भारतीय विदेश नीति की समीक्षा से प्रकट होता है कि भारत के उभरते रणनीतिक परिदृश्य में द्वीप राज्यों एवं क्षेत्रों का महत्त्व बढ़ा है। लेख में हाल ही में चर्चा में आए कच्चातिवु द्वीप और भारत-श्रीलंका संबंधों के लिये इसके महत्त्व पर भी विचार किया गया है।
प्रिलिम्स के लिये:भारत-श्रीलंका संबंध, बौद्ध धर्म, नवीकरणीय ऊर्जा, हिंद महासागर, कच्चातीवू, इंडो-पैसिफिक, अगालेगा द्वीप समूह, क्वाड, मॉरीशस। मेन्स के लिये:भारत के लिये कच्चातीवू द्वीप समूह का महत्त्व तथा भविष्य पर प्रभाव। |
चाहे वह मालदीव हो (जो अब चीन के साथ बढ़ते समुद्री संघर्ष के बीच भारत के लिये अधिक महत्त्व रखने लगा है) या प्रशांत द्वीप समूहों में से संसाधन-संपन्न पापुआ न्यू गिनी के साथ भारत की नई संलग्नता, मॉरीशस के अगालेगा द्वीप पर अवसंरचना का संयुक्त विकास हो या पूर्वी हिंद महासागर के द्वीपों में ऑस्ट्रेलिया के साथ सहयोग या पूर्व में स्थित अंडमान, पश्चिम में स्थित लक्षद्वीप एवं श्रीलंका से सटे कच्चातिवु को विकसित करने पर सरकार का ध्यान—द्वीप क्षेत्र भारत की नई भू-राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण अंग बनकर उभरे हैं।
आसन्न लोकसभा चुनाव के परिदृश्य में एक बार फिर कच्चातिवु द्वीप चर्चा में आया है। तमिलनाडु के मतदाताओं को लुभाने के लिये यह एक उपयुक्त विषय प्रस्तुत कर रहा है, जहाँ श्रीलंका के साथ मछुआरों का मुद्दा लंबे समय से विमर्श में शामिल रहा है।
कच्चातिवु द्वीप:
- परिचय:
- कच्चातिवु द्वीप (Katchatheevu Islands) भारत के दक्षिण-पूर्वी तट (तमिलनाडु) और श्रीलंका के उत्तरी तट के बीच पाक जलडमरूमध्य (Palk Strait) में स्थित निर्जन द्वीपों की एक जोड़ी है।
- इनमें से बड़े द्वीप को कच्चातिवु, जबकि छोटे को इमरावन (Imaravan) के नाम से जाना जाता है। ये द्वीप अपनी रणनीतिक स्थिति और भारत एवं श्रीलंका दोनों की मत्स्यग्रहण गतिविधियों में उनके महत्त्व के कारण ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण रहे हैं।
- मछुआरों का मुद्दा:
- कच्चातिवु का स्वामित्व भारत और श्रीलंका के बीच विवाद का एक प्रमुख मुद्दा रहा है, विशेष रूप से आसपास के जल क्षेत्र में मछली पकड़ने के अधिकार को लेकर। तमिलनाडु के मछुआरे इससे विशेष रूप से प्रभावित हुए हैं, क्योंकि वे इस क्षेत्र में मछली पकड़ने के पारंपरिक अधिकारों का दावा करते हैं।
- कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंपे जाने के परिणामस्वरूप भारतीय मछुआरों के द्वीप के आसपास के पारंपरिक मत्स्यग्रहण क्षेत्रों तक पहुँच पर प्रतिबंध लग गया है। इसके कारण कई संघर्ष हुए और बार-बार श्रीलंकाई अधिकारियों द्वारा भारतीय मछुआरों को गिरफ़्तार किया गया है।
- राजनीतिक और कानूनी रुख:
- राजनीतिक रूप से कच्चातिवु के मुद्दे का इस्तेमाल भारत में विभिन्न दलों द्वारा इस मामले पर सरकार के रुख की आलोचना करने के लिये किया गया है। इस द्वीप को श्रीलंका को सौंपने वाले समझौतों की वैधता के संबंध में कानूनी चुनौतियाँ भी पेश की गई हैं।
- द्विपक्षीय चर्चाएँ:
- मुद्दे की विवादास्पद प्रकृति के बावजूद भारत और श्रीलंका दोनों तमिलनाडु के मछुआरों की चिंताओं को दूर करने के लिये द्विपक्षीय चर्चा में संलग्न रहे हैं। इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने के लिये संयुक्त गश्त और संयुक्त मत्स्यग्रहण क्षेत्र जैसे विभिन्न प्रस्तावों का सुझाव दिया गया है।
भारत-श्रीलंका संबंधों की वर्तमान स्थिति:
- ऐतिहासिक संबंध:
- भारत और श्रीलंका के बीच प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यापारिक संबंधों का एक सुदीर्घ इतिहास रहा है।
- दोनों देशों के बीच मज़बूत सांस्कृतिक संबंध हैं, जहाँ कई श्रीलंकाई लोग अपनी विरासत को भारत से जोड़कर देखते हैं। बौद्ध धर्म, जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई, श्रीलंका में भी एक महत्त्वपूर्ण धर्म है।
- भारत से वित्तीय सहायता:
- भारत ने श्रीलंका के अभूतपूर्व आर्थिक संकट के दौरान उसे लगभग 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता प्रदान की, जो देश को संकट से उबारने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई।
- विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी के कारण श्रीलंका वर्ष 2022 में एक विनाशकारी वित्तीय संकट की चपेट में आ गया था, जो उसके लिये वर्ष 1948 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता के बाद की सबसे संकटपूर्ण स्थिति थी।
- ऋण पुनर्गठन में भूमिका:
- श्रीलंका को उसके ऋण के पुनर्गठन में मदद करने के लिये भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और ऋणदाताओं के साथ सहयोग के निर्माण में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।
- भारत, चीन और जापान के बीच भारत पहला देश था जिसने श्रीलंका के वित्तपोषण एवं ऋण पुनर्गठन के लिये अपना समर्थन पत्र सौंपा था।
- कनेक्टिविटी के लिये संयुक्त दृष्टिकोण:
- दोनों देश एक संयुक्त दृष्टिकोण पर सहमत हुए हैं जो व्यापक कनेक्टिविटी पर बल देता है, जिसमें लोगों के परस्पर संपर्क (People to People connectivity), नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग, लॉजिस्टिक्स, बंदरगाह कनेक्टिविटी और बिजली व्यापार के लिये ग्रिड कनेक्टिविटी शामिल हैं।
- श्रीलंका बिम्सटेक (BIMSTEC) और सार्क (SAARC) जैसे समूहों का भी सदस्य है जिनमें भारत अग्रणी भूमिका निभाता है।
- दोनों देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को एकीकृत करने और विकास को बढ़ावा देने के लिये आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौते (Economic and Technology Cooperation Agreement- ETCA) की संभावना तलाश रहे हैं।
- बहु-उत्पाद पेट्रोलियम पाइपलाइन पर समझौता:
- भारत और श्रीलंका दोनों भारत के दक्षिणी भाग से श्रीलंका तक एक बहु-उत्पाद पेट्रोलियम पाइपलाइन (Multi-Product Petroleum Pipeline) स्थापित करने पर सहमत हुए हैं।
- इस पाइपलाइन का उद्देश्य श्रीलंका को ऊर्जा संसाधनों की सस्ती एवं विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करना है। आर्थिक विकास और प्रगति में ऊर्जा की महत्त्वपूर्ण भूमिका को चिह्नित करते हुए इस पेट्रोलियम पाइपलाइन की स्थापना को प्रेरित कर रही है।
- श्रीलंका द्वारा UPI का अंगीकरण:
- श्रीलंका ने भारत की UPI सेवा को अपनाया है, जो दोनों देशों के बीच फिनटेक कनेक्टिविटी बढ़ाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- व्यापार निपटान के लिये भारतीय रुपए के उपयोग से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को मदद मिल रही है। ये श्रीलंका के आर्थिक सुधार और वृद्धि में मदद के लिये कुछ ठोस कदम हैं।
- आर्थिक संबंध:
- अमेरिका और ब्रिटेन के बाद भारत श्रीलंका का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। श्रीलंका के 60% से अधिक निर्यात भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते (FTA) का लाभ उठाते हैं। भारत श्रीलंका में एक प्रमुख निवेशक भी है।
- भारत परंपरागत रूप से श्रीलंका के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों में से एक रहा है और श्रीलंका सार्क में भारत के सबसे बड़े व्यापार भागीदारों में से एक बना हुआ है। वर्ष 2021 में 5.45 बिलियन अमेरिकी डॉलर के समग्र द्विपक्षीय माल व्यापार के साथ भारत श्रीलंका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था।
- वर्ष 2022 में 100,000 से अधिक पर्यटकों के साथ भारत श्रीलंका के लिये पर्यटकों का सबसे बड़ा स्रोत था।
- रक्षा:
- भारत और श्रीलंका संयुक्त सैन्य (मित्र शक्ति) और नौसैन्य अभ्यास (SLINEX) आयोजित करते हैं।
कच्चातिवु द्वीप के संबंध में भारत-श्रीलंका संबंध किस प्रकार विकसित हुए हैं?
- औपनिवेशिक काल (19वीं सदी तक): श्रीलंका ने क्षेत्राधिकार के साक्ष्य के रूप में 1505 से 1658 ई. तक द्वीप पर पुर्तगालियों के नियंत्रण का हवाला देते हुए कच्चातिवु पर अपनी संप्रभुता का दावा किया।
- औपनिवेशिक युग में इस लघु द्वीप पर अंग्रेज़ों का शासन था। ऐतिहासिक रूप से, माना जाता है कि तमिलनाडु में रामनाड या वर्तमान रामनाथपुरम के राजा के पास इस द्वीप का स्वामित्व था, जो बाद में मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन गया।
- 20वीं सदी में परिवर्तन: श्रीलंका और भारत दोनों ने 1920 के दशक में कच्चातिवु पर मछली पकड़ने के विशेष अधिकार की तलाश की, जिससे लंबे समय तक विवाद चला। 1940 के दशक में दोनों देशों की स्वतंत्रता के बाद भी यह मुद्दा बना रहा। वर्ष 1968 में श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने भारत की यात्रा के दौरान कच्चातिवु पर श्रीलंका की संप्रभुता का दावा करते हुए आधिकारिक तौर पर इस मामले को उठाया।
- इसके बाद भारत और श्रीलंका के प्रधानमंत्रियों—इंदिरा गांधी और सिरीमावो भंडारनायके के बीच क्रमिक वार्ता के परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच वर्ष 1974 में एक समझौते (Agreement on the Boundary in Historic Waters) पर हस्ताक्षर किये गए।
- इस समझौते ने ऐतिहासिक साक्ष्यों, कानूनी सिद्धांतों और पूर्व-दृष्टांतों के आधार पर एक सीमा को परिभाषित किया, जो कच्चातिवु को श्रीलंका के पश्चिमी तट से एक मील की दूरी पर उसके अधिकार क्षेत्र में शामिल करता था।
- भारतीय मछुआरों के लिये महत्त्व: समझौते के अनुच्छेद 4 में यह निर्धारित किया गया है कि प्रत्येक राज्य के पास पाक जलडमरूमध्य और पाक खाड़ी में समुद्री सीमा के किनारे के जल, द्वीपों, महाद्वीपीय शेल्फ और उप-मृदा पर संप्रभुता एवं विशेष क्षेत्राधिकार और नियंत्रण प्राप्त होगा तथा कच्चातिवु द्वीप के बारे में माना गया कि यह श्रीलंकाई जलक्षेत्र में आता है।
- अगले अनुच्छेद में कहा गया है कि भारतीय मछुआरों एवं तीर्थयात्रियों को पहले की तरह द्वीप तक पहुँच प्राप्त होगी और इन उद्देश्यों के लिये श्रीलंका से यात्रा दस्तावेज़ या वीज़ा प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी।
विश्व में भारत के लिये कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र:
- हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific):
- हिंद-प्रशांत का विचार सर्वप्रथम जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे द्वारा वर्ष 2007 में भारतीय संसद में प्रस्तुत अपने भाषण में प्रस्तावित किया गया था। उन्होंने भारत से हिंद और प्रशांत “दो महासागरों के संगम” पर विचार करने का आग्रह किया था।
- वर्ष 2018 के ग्रीष्मकाल में सिंगापुर में आयोजित वार्षिक ‘शांगरी ला डायलॉग’ में प्रधानमंत्री मोदी के संभाषण में इसकी चर्चा के साथ ‘हिंद-प्रशांत’ के विचार को औपचारिक रूप से अपनाने में भारत को एक दशक से अधिक का समय लगा।
- चीन के साथ भारत के बिगड़ते संबंध (वर्ष 2013, 2014 और 2017 में सैन्य संकटों की एक शृंखला द्वारा चिह्नित) और अमेरिका के साथ बढ़ती रणनीतिक साझेदारी के परिप्रेक्ष्य में अंततः भारत ‘हिंद-प्रशांत’ के विचार की ओर आगे बढ़ा।
- हिंद-प्रशांत अब भारतीय विमर्श में सुस्थापित हो गया है। इसके संस्थागत लंगर के रूप में ‘क्वाड’ (Quad) भी आकार ले चुका है, जो ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका को एक साथ लाता है।
- यूरेशिया:
- जापान और अमेरिका ने हिंद-प्रशांत या ‘इंडो-पैसिफिक’ के विचार को लोकप्रिय बनाया तो रूस ने ‘यूरेशिया’ (Eurasia) के विचार को आगे बढ़ाया है। यूरोप और एशिया में विस्तृत एक बड़ी शक्ति के रूप में रूस विशाल यूरेशियाई भूभाग को अपने प्रभाव के नैसर्गिक क्षेत्र के रूप में देखता है।
- रूस और चीन द्वारा संयुक्त रूप से गठित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) ने यूरेशिया के विचार को संस्थागत अभिव्यक्ति प्रदान किया।
- महाद्वीपीय एशिया में भारत की हिस्सेदारी, रूस के साथ इसके दीर्घकालिक संबंध और एक बहुध्रुवीय विश्व की इसकी तलाश को देखते हुए, यूरेशिया कई पहलुओं में भारत के लिये अत्यंत महत्त्व रखता है।
- जापान और अमेरिका ने हिंद-प्रशांत या ‘इंडो-पैसिफिक’ के विचार को लोकप्रिय बनाया तो रूस ने ‘यूरेशिया’ (Eurasia) के विचार को आगे बढ़ाया है। यूरोप और एशिया में विस्तृत एक बड़ी शक्ति के रूप में रूस विशाल यूरेशियाई भूभाग को अपने प्रभाव के नैसर्गिक क्षेत्र के रूप में देखता है।
- नॉर्डिक क्षेत्र:
- नॉर्डिक क्षेत्र, नॉर्डिक-बाल्टिक गठबंधन और काकेशस भारत के लिये यूरोप में और इसके आसपास परिणाम के नए क्षेत्र के रूप में उभरे हैं। यूक्रेन ने हाल ही में उस मध्य यूरोप में युद्ध और शांति को आकार देने में भारत की संभावित भूमिका को रेखांकित किया है, जिसकी अशांत राजनीति ने दो विश्व युद्धों को जन्म दिया था और तीसरे को आमंत्रित करने का खतरा उत्पन्न कर रही है।
- भारत-मध्य पूर्व:
- मध्य-पूर्व के माध्यम से भारत एवं यूरोप को जोड़ने वाले एक आर्थिक गलियारे का प्रस्ताव, अब्राहम समझौते, गाज़ा में संघर्ष, अरब खाड़ी का बढ़ता प्रभाव, संयुक्त अरब अमीरात एवं सऊदी अरब के साथ भारत के मज़बूत होते संबंध, लाल सागर क्षेत्र में लगभग 20 भारतीय नौसैनिक जहाज़ों की तैनाती और अफ्रीका के साथ बढ़ते संबंध से मध्य-पूर्व, अफ्रीका, पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र और पश्चिमी हिंद महासागर का अधिक परस्पर-संबद्ध परिप्रेक्ष्य सामने आ रहा है।
- पहले उन्हें विशिष्ट क्षेत्र के रूप में देखा जाता था, लेकिन अब वे भारत के विकास पथ के लिये अपनी उल्लेखनीय प्रासंगिकता को उजागर करते हैं।
- मध्य-पूर्व के माध्यम से भारत एवं यूरोप को जोड़ने वाले एक आर्थिक गलियारे का प्रस्ताव, अब्राहम समझौते, गाज़ा में संघर्ष, अरब खाड़ी का बढ़ता प्रभाव, संयुक्त अरब अमीरात एवं सऊदी अरब के साथ भारत के मज़बूत होते संबंध, लाल सागर क्षेत्र में लगभग 20 भारतीय नौसैनिक जहाज़ों की तैनाती और अफ्रीका के साथ बढ़ते संबंध से मध्य-पूर्व, अफ्रीका, पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र और पश्चिमी हिंद महासागर का अधिक परस्पर-संबद्ध परिप्रेक्ष्य सामने आ रहा है।
भारत के लिये कच्चातिवु द्वीप की प्रासंगिकता:
- रणनीतिक महत्त्व:
- भू-राजनीतिक अवस्थिति: कच्चातिवु पाक जलडमरूमध्य में रणनीतिक अवस्थिति रखता है, जो बंगाल की खाड़ी को मन्नार की खाड़ी और हिंद महासागर से जोड़ने वाला एक महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग है।
- कच्चातिवु पर नियंत्रण भारत को जहाज़ों की आवाजाही और संभावित सुरक्षा खतरों सहित क्षेत्र में विभिन्न समुद्री गतिविधियों की निगरानी में रणनीतिक लाभ प्रदान कर सकता है।
- आर्थिक महत्त्व:
- मत्स्य संसाधन: कच्चातिवु के आसपास का जल क्षेत्र मछली एवं अन्य समुद्री खाद्य सहित समुद्री संसाधनों से समृद्ध है, जो तमिलनाडु के मछुआरों की आजीविका के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- वाणिज्यिक क्षमता: कच्चातिवु पर नियंत्रण से मत्स्यग्रहण, जलीय कृषि एवं पर्यटन जैसी वाणिज्यिक गतिविधियों के विकास में मदद मिल सकती है, जिससे क्षेत्र में आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व:
- ऐतिहासिक दावे: कच्चातिवु भारत के लिये ऐतिहासिक महत्त्व रखता है, जहाँ तमिलनाडु के मछुआरों द्वारा मछली पकड़ने के सदियों पुराने पारंपरिक अधिकारों का दावा किया जाता है।
- सांस्कृतिक संबंध: इस द्वीप का भारत और श्रीलंका में तमिल समुदायों के लिये ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व है, क्योंकि यह प्रसिद्ध तमिल संत तिरुवल्लुवर से संबद्ध है।
- कानूनी और राजनयिक निहितार्थ:
- राजनयिक संबंध: वर्ष 1974 और 1976 के समझौतों के माध्यम से कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंपे जाने के बावजूद, कच्चातिवु का मुद्दा भारत-श्रीलंका संबंधों के लिये निहितार्थ रखता है, जो प्रायः मछली पकड़ने के अधिकार और समुद्री सहयोग सहित विभिन्न मामलों पर द्विपक्षीय चर्चाओं एवं बातचीत को प्रभावित करता है ।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून: कच्चातिवु पर विवाद अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुप्रयोग, विशेष रूप से क्षेत्रीय संप्रभुता, समुद्री सीमाओं और तटीय राज्यों के अधिकारों के बारे में व्यापक प्रश्न उठाता है।
- प्रादेशिक जल: श्रीलंका द्वारा द्वीप पर नियंत्रण का भारत के प्रादेशिक जल और क्षेत्र में स्थापित विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) पर प्रभाव पड़ता है।
- मानवीय पहलू:
- मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ: श्रीलंका द्वारा कच्चातिवु के आसपास मत्स्यग्रहण गतिविधियों पर लगाए गए प्रतिबंधों ने विभिन्न मानवीय चिंताओं को जन्म दिया है, जिसमें भारतीय मछुआरों की गिरफ़्तारी, उत्पीड़न और जान के नुकसान की घटनाएँ शामिल हैं।
- समाधान की आवश्यकता: अपनी जीविका के लिये जल पर निर्भर मछुआरों और उनके परिवारों के कल्याण एवं सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये कच्चातिवु मुद्दे को संबोधित करना मानवीय दृष्टिकोण से आवश्यक है।
- सुरक्षा एवं तस्करी विरोधी अभियान:
- तस्करी गतिविधियाँ: कच्चातिवू की भारतीय तट से निकटता इसे हथियारों, मादक पदार्थों और प्रतिबंधित सामग्री सहित विभिन्न तस्करी गतिविधियों का एक संभावित केंद्र बनाती है।
- तस्करी गतिविधियों को रोकना: श्रीलंका द्वारा द्वीप पर नियंत्रण से क्षेत्र में ऐसी गतिविधियों की निगरानी करने और उन पर अंकुश लगाने की भारत की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है।
- भारत ने तस्करी एवं अन्य अवैध गतिविधियों के लिये कच्चातिवु के उपयोग पर चिंता व्यक्त की है जो सुरक्षा के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।
निष्कर्ष:
कच्चातिवु द्वीप अपने छोटे आकार के बावजूद अपनी रणनीतिक अवस्थिति, मछली पकड़ने के अधिकार पर प्रभाव और सांस्कृतिक महत्त्व के कारण भारत एवं श्रीलंका के बीच एक जटिल मुद्दा बना हुआ है। श्रीलंका को द्वीप के हस्तांतरण से द्विपक्षीय संबंध तनावपूर्ण बने हैं और यह एक व्यापक समाधान की आवश्यकता को उजागर करता है जो समुद्री सुरक्षा, मछुआरों की आजीविका संबंधी चिंताओं और दोनों देशों की ऐतिहासिक भावनाओं का सम्मान करे। क्षेत्र में सहयोग और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये निरंतर संवाद, आपसी समझ और नवीन संसाधन-साझाकरण तंत्र के माध्यम से लंबे समय से जारी इस विवाद को हल करना महत्त्वपूर्ण है।
अभ्यास प्रश्न: तमिलनाडु के मछुआरों के लिये कच्चातिवु समझौते के सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ और भारत-श्रीलंका संबंधों पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला एलीफेंट पास का उल्लेख निम्नलिखित में से किस मामले के संदर्भ में किया जाता है? (2009) (a) बांग्लादेश उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भारत-श्रीलंका के संबंधों के संदर्भ में विवेचना कीजिये कि किस प्रकार आतंरिक (देशीय) कारक विदेश नीति को प्रभावित करते हैं। (2013) प्रश्न. 'भारत, श्रीलंका का बरसों पुराना मित्र है।' पूर्ववर्ती कथन के आलोक में श्रीलंका के वर्तमान संकट में भारत की भूमिका की विवेचना कीजिये। (2022) |