भारत का विकसित अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण | 17 Jun 2024

यह एडिटोरियल 13/06/2024 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Developed country ambitions need deep structural reforms” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य और इसके लिये आवश्यक आर्थिक विकास एवं संरचनात्मक सुधारों की चर्चा की गई है। लेख में विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार सृजन, निर्यात विस्तार और राजकोषीय अनुशासन पर ध्यान केंद्रित करते हुए समावेशी विकास की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

विकसित देशों की मुख्य विशेषताएँ, सकल घरेलू उत्पाद, मानव विकास सूचकांक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, प्रधानमंत्री गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान, यूनिफाइड भुगतान इंटरफेस, लाल सागर और पनामा नहर संकट, बेरोज़गारी वृद्धि, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, इंडिया स्किल्स 2021, इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट, रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट

मेन्स के लिये:

भारत को विकसित अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने वाले प्रमुख विकास कारक, भारत के विकसित अर्थव्यवस्था के लक्ष्य में प्रमुख बाधाएँ।

भारत की प्रभावशाली आर्थिक संवृद्धि ने उम्मीद जगाई है कि देश अपनी स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष, यानी वर्ष 2047 तक ‘विकसित राष्ट्र’ का दर्जा प्राप्त कर सकता है। हालाँकि, इस आकांक्षा की  पूर्ति के लिये अगले 25 वर्षों के भीतर देश की प्रति व्यक्ति आय को वर्तमान 2,600 अमेरिकी डॉलर से पाँच गुना से अधिक बढ़ाकर 10,205 अमेरिकी डॉलर करने की कठिन यात्रा तय करनी होगी। इस महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य की प्राप्ति का अर्थ है प्रति व्यक्ति आय में 7.5% की वार्षिक वृद्धि दर के साथ इस अवधि में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर को 9% बनाए रखना

महज विकास को गति देना ही पर्याप्त नहीं है; समावेशिता भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है। हर साल कार्यबल में शामिल होने वाले चार मिलियन लोगों के लिये रोज़गार पैदा करना भी विद्यमान चुनौतियों में शामिल है। इस परिदृश्य में, विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में भारत की यात्रा के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। समावेशी विकास और एक मज़बूत निर्यात क्षेत्र को बढ़ावा देते हुए राजकोषीय एवं संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान करना इस महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य का मार्ग प्रशस्त करेगा।

‘विकसित राष्ट्र’ की क्या विशेषताएँ होती हैं?

  • परिचय: विकसित राष्ट्र से तात्पर्य है एक परिपक्व और उन्नत अर्थव्यवस्था वाला राष्ट्र, जो उच्च स्तर के औद्योगीकरण, प्रौद्योगिकीय अवसंरचना और समग्र सामाजिक कल्याण की विशेषता रखता है।
    • ‘विकसित’ (Developed) शब्द का प्रयोग ऐसे देशों को उन ‘विकासशील’ (Developing) या ‘अविकसित’ (Underdeveloped) देशों से पृथक करने के लिये किया जाता है, जो अभी भी आर्थिक एवं सामाजिक विकास की प्रक्रिया में हैं।
      • भारत—जो 3.42 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद के साथ विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, वर्तमान में एक ‘विकासशील राष्ट्र’ के रूप में वर्गीकृत है।
  • विकसित देशों की प्रमुख विशेषताएँ:
    • आर्थिक घटक
      • उच्च प्रति व्यक्ति आय (आमतौर पर 12,000 अमेरिकी डॉलर से 25,000 अमेरिकी डॉलर या उससे अधिक)
      • विविधीकृत और उन्नत औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र
      • मज़बूत आधारभूत संरचना, जिसमें परिवहन, संचार और उपयोगिता क्षेत्र शामिल हैं
      • स्थिर और कुशल वित्तीय बाज़ार
    • सामाजिक और मानव विकास घटक
      • शिक्षा और साक्षरता का उच्च स्तर
      • गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सेवाओं तक पहुँच
      • निम्न शिशु मृत्यु दर और उच्च जीवन प्रत्याशा दर
      • लोकतांत्रिक शासन के साथ मज़बूत विधिक एवं राजनीतिक संस्थाएँ
    • प्रौद्योगिकीय विकास और नवाचार
      • उन्नत प्रौद्योगिकीय अवसंरचना और क्षमताएँ
      • अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर विशेष बल
      • नवाचार और उत्पादकता का उच्च स्तर

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  • माप और संकेतक:
    • प्रति व्यक्ति आय: यह किसी देश की विकास की स्थिति को निर्धारित करने के लिये उपयोग किये जाने वाले प्राथमिक संकेतकों में से एक है
      • सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को कुल जनसंख्या से विभाजित कर इसकी गणना की जाती है
    • मानव विकास सूचकांक (HDI): संयुक्त राष्ट्र द्वारा किसी देश के समग्र कल्याण की माप करने के लिये उपयोग किया जाने वाला एक समग्र सूचकांक
      • इसके घटकों में जीवन प्रत्याशा, शिक्षा का स्तर और जीवन स्तर शामिल हैं
      • 0.8 से अधिक HDI स्कोर वाले देशों को आमतौर पर विकसित राष्ट्र माना जाता है
  • विकसित राष्ट्रों के उदाहरण:
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, विकसित देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि शामिल हैं।
      • एशिया में सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और हांगकांग विकसित देश में शामिल किये जाते हैं।

भारत को विकसित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर करने वाले प्रमुख विकास चालक कौन-से हैं?

  • सेवा क्षेत्र का उदय: भारत का सेवा क्षेत्र तेज़ी से विकास कर रहा है, जो सकल घरेलू उत्पाद में 50% से अधिक का योगदान करता है। यह क्षेत्र उच्च-मूल्यपूर्ण रोज़गार प्रदान करता है और विदेशी निवेश को आकर्षित करता है।
    • उदाहरण: भारत के आईटी और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) उद्योग वैश्विक स्तर पर अग्रणी स्थिति रखते हैं जो अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों को सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं।
      • सेवा क्षेत्र में यह वृद्धि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत के बढ़ते एकीकरण को दर्शाती है।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश: भारत में युवा और वृद्धिशील आबादी पाई जाती है, जिसकी औसत आयु 28.2 वर्ष (वर्ष 2023 में) है। मानव पूंजी का यह विशाल भंडार आर्थिक विकास को गति प्रदान कर सकता है, यदि इसे उपयुक्त कौशल और रोज़गार प्रदान किया जाए।
  • अवसंरचना विकास के लिये सरकारी पहलें: भारत सरकार ‘प्रधानमंत्री गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान’ जैसी पहलों के माध्यम से अवसंरचना विकास परियोजनाओं में सक्रिय रूप से निवेश कर रही है। 
    • इससे विभिन्न क्षेत्रों में कार्यकुशलता बढ़ेगी और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।
  • डिजिटल रूपांतरण और स्टार्टअप पारितंत्र: भारत इंटरनेट की बढ़ती पैठ (वर्ष 2023 में पिछले वर्ष की तुलना में 8% वृद्धि) के साथ ही ‘डिजिटल इंडिया पहल’ और एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) के लोकतंत्रीकरण के माध्यम से एक डिजिटल क्रांति से गुज़र रहा है।
    • डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ उद्योगों को रूपांतरित कर रही हैं और विकास के नए अवसर पैदा कर रही हैं।
  • वैश्विक मंदी के बावजूद आर्थिक प्रत्यास्थता: वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं, रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे भू-राजनीतिक तनावों, लाल सागर एवं पनामा नहर संकट से आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधानों और अमेरिका जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में वित्तीय दशाओं में कसाव के बावजूद भारत की घरेलू मांग ने सापेक्षिक प्रत्यास्थता प्रदर्शित की है।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को उम्मीद है कि वर्ष 2024-25 में भारत का वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद 7% की दर से वृद्धि करेगा।
  • नवाचार और उद्यमिता: भारत नवाचार और उद्यमिता की संस्कृति को बढ़ावा दे रहा है।
    • स्टार्टअप्स (763 ज़िलों में DPIIT द्वारा मान्यता प्राप्त 1,12,718 स्टार्टअप्स) और नई प्रौद्योगिकियों एवं समाधानों के विकास पर केंद्रित अनुसंधान संस्थानों की बढ़ती संख्या से इसकी पुष्टि होती है।
    • यह प्रौद्योगिकीय कौशल विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति ला सकता है और वैश्विक सहयोग को आकर्षित कर सकता है।

भारत के विकसित अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य में प्रमुख बाधाएँ कौन-सी हैं?

  • रोज़गारहीन विकास (Jobless Growth): भारत वित्त वर्ष 2023-24 में 7.8% की प्रभावशाली आर्थिक वृद्धि का दावा तो करता है, लेकिन इससे पर्याप्त रोज़गार सृजन नहीं हुआ है।
    • लाखों लोग निम्न उत्पादकता वाले कृषि क्षेत्र में फँसे हुए हैं (जो सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 15% योगदान करता है, लेकिन कार्यबल के 44% को नियोजित करता है)।
    • भारत को अपने बढ़ते कार्यबल को नियोजित करने के लिये वर्ष 2030 तक 115 मिलियन (11.5 करोड़) नौकरियाँ सृजित करने की आवश्यकता है।
  • निर्धनता-शिक्षा-कौशल का जाल: गुणवत्ताहीन प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा संज्ञानात्मक विकास को सीमित करती है और उच्च शिक्षा के संभावित लाभों को कम कर देती है।
    • इससे ऐसे कार्यबल का निर्माण होता है जो उच्च-कुशल नौकरियों के लिये कम तैयार है (150 मिलियन कुशल श्रमिकों की कमी)।
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के क्रियान्वयन के बावजूद भारत में शिक्षा प्रणाली उद्योग जगत की बदलती मांगों के अनुरूप उस गति से नहीं ढल पा रही है।
    • इससे स्नातकों में नियोक्ताओं की मांग के अनुरूप विशिष्ट कौशल की कमी उत्पन्न होती है, जिससे रोज़गार के अवसर और अधिक बाधित होते हैं । इंडिया स्किल्स रिपोर्ट, 2021 के अनुसार भारत के स्नातक युवाओं के लगभग आधे रोज़गार-योग्य नहीं थे।
  • उच्च सार्वजनिक ऋण: भारत का सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद का 81.9% है, जो राजकोषीय स्थिरता के बारे में चिंताएँ बढ़ाता है। इस उच्च ऋण बोझ के कारण उच्च ब्याज दरों की आवश्यकता होती है, जिससे निजी निवेश में कमी आती है और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
  • व्यापक आय असमानता: भारत में आय असमानता का स्तर अत्यंत उच्च है और जनसंख्या का एक बड़ा भाग गरीबी का सामना कर रहा है।
    • वर्ष 2022-23 में राष्ट्रीय आय का 22.6% भाग शीर्ष 1% लोगों के पास गया। यह आय असमानता समावेशी विकास और आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से के लिये बुनियादी सेवाओं तक पहुँच में बाधा उत्पन्न करती है।
    • वर्ष 2022 में भारत का HDI स्कोर 0.644 रहा और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा निर्धारित इस रैंकिंग में उसे 192 देशों में 134वें स्थान पर रखा गया।
  • ग्रामीण-शहरी अंतराल और असंतुलित विकास: जबकि भारत के शहरी केंद्रों ने आर्थिक विकास का अनुभव किया है, इसके ग्रामीण क्षेत्र गरीबी, अवसंरचना की कमी और बुनियादी सेवाओं तक सीमित पहुँच से जूझ रहे हैं।
    • ग्रामीण विकास की उपेक्षा और इस अंतराल को दूर करने की विफलता सामाजिक अशांति को जन्म दे सकती है, जिससे समग्र प्रगति बाधित हो सकती है।
  • जलवायु परिवर्तन संबंधी भेद्यताएँ: भारत का तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण पर्यावरणीय क्षरण की कीमत पर हुआ है, जिसमें वायु एवं जल प्रदूषण, निर्वनीकरण और जैव विविधता की हानि शामिल है।
    • इससे न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता पर असर पड़ता है, बल्कि आर्थिक विकास की संवहनीयता भी प्रभावित होती है।
    • यदि अनुकूलन एवं शमन उपायों को प्राथमिकता नहीं दी गई तो जलवायु परिवर्तन की आर्थिक एवं सामाजिक लागत भारत के विकास प्रक्षेपवक्र में व्यवधान उत्पन्न कर सकती है
      • भारतीय रिज़र्व बैंक ने आगाह किया है कि वर्ष 2030 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 4.5% तक जोखिम में पड़ सकता है।
  • अवसंरचनात्मक घाटा और वित्तपोषण संबंधी चुनौतियाँ: भारत का अवसंरचनात्मक अंतराल (विशेष रूप से परिवहन, बिजली और शहरी अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में) आर्थिक वृद्धि एवं विकास में बाधक के रूप में कार्य करता है।
    • विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार भारत का अवसंरचनात्मक अंतराल लगभग 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का हो सकता है।
    • भूमि अधिग्रहण, पर्यावरणीय मंज़ूरी एवं विनियामक बाधाओं की चुनौतियाँ इस समस्या को और जटिल बना देती हैं, जिससे परियोजना में देरी होती है और लागत बढ़ जाती है।

विकसित अर्थव्यवस्था की ओर प्रगति को गति प्रदान करने के लिये भारत कौन-से उपाय कर सकता है ?

  • कौशल विकास के माध्यम से जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाना: भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी और रोज़गार-योग्य कार्यबल के निर्माण के लिये व्यावसायिक शिक्षा, कौशल विकास कार्यक्रमों और प्रशिक्षुता पहलों में भारी निवेश करने की आवश्यकता है।
    • बाज़ार की मांग और AI, रोबोटिक्स एवं नवीकरणीय ऊर्जा जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों के अनुरूप पाठ्यक्रम तैयार करने के लिये औद्योगिक क्षेत्र के भागीदारों के साथ सहकार्यता स्थापित की जाए। भारत इस संबंध में ‘नॉर्वे मॉडल’ से प्रेरणा ग्रहण कर सकता है।
  • संतुलित क्षेत्रीय विकास और ग्रामीण रूपांतरण: ग्रामीण-शहरी अंतराल को दूर करने के लिये सड़क, विद्युतीकरण, स्वास्थ्य सुविधा और डिजिटल कनेक्टिविटी सहित ग्रामीण अवसंरचना में निवेश को प्राथमिकता दी जाए।
    • गैर-कृषि रोज़गार के अवसर सृजित करने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि प्रसंस्करण इकाइयों और विनिर्माण केंद्रों की स्थापना को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • ग्रामीण आय और खाद्य सुरक्षा की वृद्धि के लिये संवहनीय कृषि पद्धतियों, परिशुद्ध कृषि तकनीकों और संस्थागत ऋण एवं बीमा तक पहुँच को बढ़ावा देना आवश्यक है।
  • निवारक और वहनीय स्वास्थ्य सेवा: मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने देश को वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में स्वस्थ आबादी को एक बुनियादी आवश्यकता बताया था।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 की अनुशंसा के अनुरूप स्वास्थ्य सेवा पर सार्वजनिक व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 2.5% तक बढ़ाया जाए ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को सुदृढ़ किया जा सके और मानव विकास सूचकांक मापदंडों में बेहतर प्रदर्शन हो।
    • गैर-संचारी रोगों के बोझ को कम करने के लिये जागरूकता अभियान, शीघ्र पहचान (early detection) और जीवनशैली में हस्तक्षेप के माध्यम से निवारक स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा दिया जाए।
    • दूरदराज के क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में सुधार लाने और लागत कम करने के लिये टेलीमेडिसिन तथा ई-स्वास्थ्य पहल जैसी डिजिटल प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाया जाए।
  • नवोन्मेषी अवसंरचना वित्तपोषण और सार्वजनिक-निजी भागीदारी: परिसंपत्ति मुद्रीकरण, अवसंरचना परिसंपत्तियों का प्रतिभूतिकरण और अवसंरचना घाटे को दूर करने के लिये वैश्विक पूंजी बाज़ारों के उपयोग जैसे नवोन्मेषी वित्तपोषण मॉडलों की संभावना पर विचार किया जाए।
  • नवाचार और प्रौद्योगिकीय उन्नति को बढ़ावा देना: विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति 2020 द्वारा निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश को सकल घरेलू उत्पाद के कम-से-कम 2% तक बढ़ाया जाए
    • वैश्विक स्तर पर अग्रणी प्रौद्योगिकी कंपनियों को आकर्षित करने और एक जीवंत नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिये स्वच्छ प्रौद्योगिकी पार्क, इनक्यूबेशन सेंटर और चक्रीय-अर्थव्यवस्था ज़ोन स्थापित किया जाना चाहिये।
  • ब्लू इकॉनमी’ की क्षमता को साकार करना: टीय नौवहन, समुद्री पर्यटन, अपतटीय पवन ऊर्जा और गहन समुद्र खनन जैसी संवहनीय समुद्री गतिविधियों के माध्यम से भारत की विशाल तटरेखा एवं समुद्री संसाधनों का दोहन किया जाना चाहिये।
    • व्यापार, रोज़गार और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये विश्वस्तरीय जहाज़ मरम्मत अवसंरचना, लॉजिस्टिक्स केंद्रों और तटीय आर्थिक क्षेत्रों का विकास किया जाए।
    • बढ़ती वैश्विक मांग को पूरा करने के लिये समुद्री जैव प्रौद्योगिकी और मूल्यवर्द्धित समुद्री उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए।
  • अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाना और महानगरों से परे भी स्टार्टअप हब स्थापित करना: एक सुवाह्य सामाजिक सुरक्षा प्रणाली प्रवर्तित की जाए जो अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को विभिन्न नौकरियों में लाभ पा सकने का अवसर दे; औपचारिकरण को प्रोत्साहित किया जाए।
    • विविध क्षेत्रों में विघटनकारी नवाचार को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख महानगरीय क्षेत्रों से परे टियर-2 और टियर-3 शहरों में भी अच्छी तरह से वित्तपोषित स्टार्टअप हब का नेटवर्क विकसित किया जाए।
    • भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले MSMEs को भी बेहतर वित्तपोषण और विपणन योजनाओं के माध्यम से सहयोग देने की आवश्यकता है।
  • ‘ग्रीन कॉलर जॉब’ संबंधी क्रांति लाना: नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों, अपशिष्ट प्रबंधन और सतत अवसंरचना विकास के लिये आवश्यक कौशल के साथ कार्यबल को सुसज्जित करने के लिये उद्योग जगत की साझेदारी के साथ हरित रोज़गार प्रशिक्षण कार्यक्रमों को लागू किया जा सकता है।
    • हरित क्षेत्रों में श्रमिकों को नियुक्त करने और प्रशिक्षित करने वाली कंपनियों को कर में छूट एवं सब्सिडी प्रदान किया जाए ताकि हरित रोज़गार सृजन और कार्यबल संक्रमण (workforce transition) को बढ़ावा मिले।

अभ्यास प्रश्न: भारत के लिये विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त कर सकने की संभावना का मूल्यांकन कीजिये। इस संक्रमण को प्रभावित करने वाली प्रमुख चुनौतियों और अवसरों की चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: ‘आठ कोर उद्योग सूचकांक' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015) 

(a) कोयला उत्पादन
(b) विद्युत उत्पादन
(c) उर्वरक उत्पादन
(d) इस्पात उत्पादन

उत्तर: b 


निरपेक्ष और प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करती, यदि (2018)

(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
(d) निर्यात की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ते हैं। 

उत्तर: C 


प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत में कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखा अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर है, क्योंकि:(2019)

(a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है
(b) कीमत-स्तर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होता है
(c) सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होता है
(d) सार्वजनिक वितरण की गुणता अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न.1 "सुधार के बाद की अवधि में औद्योगिक विकास दर सकल-घरेलू-उत्पाद (जीडीपी) की समग्र वृद्धि से पीछे रह गई है" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हालिया बदलाव औद्योगिक विकास दर को बढ़ाने में कहाँ तक ​​सक्षम हैं? (2017)

प्रश्न.2 आम तौर पर देश कृषि से उद्योग और फिर बाद में सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो जाते हैं, लेकिन भारत सीधे कृषि से सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो गया। देश में उद्योग की तुलना में सेवाओं की भारी वृद्धि के क्या कारण हैं? क्या मज़बूत औद्योगिक आधार के बिना भारत एक विकसित देश बन सकता है? (2014)