खाड़ी देशों के साथ भारत का रणनीतिक सहयोग | 23 Dec 2024

यह एडिटोरियल 22/12/2024 को द हिंदू में प्रकाशित “India, Kuwait poised to transform relationship into strategic partnership” पर आधारित है। इस लेख में भारत और कुवैत के बीच उन्नत रणनीतिक साझेदारी का उल्लेख किया गया है, जो ऊर्जा व्यापार से आगे बढ़कर रक्षा, प्रौद्योगिकी एवं बुनियादी अवसंरचना को भी शामिल करता है। यह बदलाव खाड़ी में भारत के बढ़ते प्रभाव को उजागर करता है, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिये महत्त्वपूर्ण है।

प्रिलिम्स के लिये:

खाड़ी क्षेत्र, भारत और कुवैत, होर्मुज़ जलडमरूमध्य, अमेरिका और ईरान, यमन गृह युद्ध, पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन, भारत की कच्चे तेल की मांग, यूरोपीय संघ, वंदे भारत मिशन, भारत-फ्राँस- UAE हवाई युद्ध अभ्यास (डेज़र्ट नाइट), I2U2 (भारत-इज़रायल- UAE-यूएसए), हमास-इज़रायल युद्ध, गाज़ा में युद्ध विराम के लिये संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव, फिलिस्तीन मुद्दा, चीन की बेल्ट एंड रोड पहल 

मेन्स के लिये:

भारत के लिये खाड़ी क्षेत्र का महत्त्व, भारत और खाड़ी के बीच टकराव के प्रमुख क्षेत्र। 

भारत और कुवैत ने अपने सदियों पुराने संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी में बदल दिया है, जो चार दशकों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की कुवैत की पहली यात्रा है। यह साझेदारी पारंपरिक ऊर्जा व्यापार गतिशीलता से आगे निकल गई है, जिसमें कुवैत के पास वैश्विक तेल भंडार का 6.5% हिस्सा है और यह भारत का छठा सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्त्ता है, जिसमें रक्षा सहयोग, प्रौद्योगिकी अंतरण और बुनियादी अवसंरचना का विकास शामिल है। यह रणनीतिक उन्नयन खाड़ी क्षेत्र में व्यापक भू-राजनीतिक बदलावों को दर्शाता है, जहाँ भारत का बढ़ता आर्थिक और कूटनीतिक प्रभाव क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि के लिये तेजी से महत्त्वपूर्ण हो गया है। 

खाड़ी क्षेत्र क्या है? 

  • खाड़ी क्षेत्र के संदर्भ में: खाड़ी क्षेत्र, जिसे फारस की खाड़ी क्षेत्र या अरब की खाड़ी क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है, फारस की खाड़ी के आसपास के क्षेत्र को संदर्भित करता है, जो अरब प्रायद्वीप और दक्षिण-पश्चिमी ईरान के बीच स्थित हिंद महासागर का एक सीमांत सागर है।
  • खाड़ी क्षेत्र की मुख्य विशेषताएँ:
    • भूगोल: इसमें फारस की खाड़ी के सीमावर्ती देश शामिल हैं: बहरीन, ईरान, इराक, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE)
  • सामरिक महत्त्व: फारस की खाड़ी होर्मुज़ जलडमरूमध्य के माध्यम से ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जुड़ी हुई है, जो वैश्विक तेल परिवहन के लिये एक महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग है।
  • आर्थिक विविधीकरण के प्रयास: सऊदी अरब और UAE जैसे देश प्रौद्योगिकी, पर्यटन और नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश के माध्यम से तेल पर निर्भरता कम करने के लिये आर्थिक विविधीकरण योजनाओं (जैसे, सऊदी अरब का विज़न- 2030) का अनुसरण कर रहे हैं।
  • वैश्विक प्रभाव: खाड़ी देश पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC), G-20 और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में प्रभावशाली भागीदार हैं।
    • वे महत्त्वपूर्ण व्यापारिक एवं वित्तीय केंद्र (जैसे, दुबई, अबू धाबी, दोहा) हैं और वहाँ विशेष रूप से दक्षिण एशिया से बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक रहते हैं।

Gulf Region

भारत के लिये खाड़ी क्षेत्र का क्या महत्त्व है? 

  • ऊर्जा सुरक्षा: खाड़ी क्षेत्र भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है, जिसने सत्र 2022-23 में भारत की कच्चे तेल की मांग की 55.3% की पूर्ति की है और यूक्रेन युद्ध के बाद रूसी आयात में वृद्धि के कारण आई गिरावट से उबर रहा है।
    • हाल के समझौते, जैसे कि कतर के साथ वर्ष 2048 तक प्रतिवर्ष 7.5 मिलियन टन LNG आयात करने के लिये 78 बिलियन डॉलर का समझौता, आर्थिक विकास और ऊर्जा परिवर्तन को बनाए रखने के लिये खाड़ी संसाधनों पर भारत की निर्भरता को रेखांकित करते हैं।
  • व्यापार और आर्थिक संबंध: खाड़ी भारत का सबसे बड़ा क्षेत्रीय व्यापारिक साझेदार है, जिसने वित्त वर्ष 2022-23 में कुल व्यापार में 15.8% का योगदान दिया, जो यूरोपीय संघ के साथ व्यापार से अधिक है।
    • संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, तथा सऊदी अरब भारत के बुनियादी अवसंरचना और विनिर्माण क्षेत्रों में चौथे स्थान पर है। 
    • इन सहयोगों के परिणामस्वरूप विश्वास-निर्माण हुआ है, जिसका उदाहरण 44 बिलियन डॉलर की रत्नागिरी रिफाइनरी जैसी संयुक्त अवसंरचना परियोजनाएँ और क्षेत्रीय स्थिरता पर सक्रिय वार्ता है।
  • प्रवासी और धन प्रेषण: लगभग 8.8 मिलियन भारतीय खाड़ी देशों में रहते हैं, जो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं तथा भारत में प्रतिवर्ष लगभग 60 बिलियन डॉलर का धन प्रेषण करते हैं।
    • यह प्रवासी आबादी भारत-खाड़ी संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण सेतु का काम करती है, विशेषकर कोविड-19 महामारी जैसे संकट के दौरान, जब भारत ने वंदे भारत मिशन के तहत प्रत्यावर्तन की सुविधा प्रदान की थी।
  • सामरिक और रक्षा सहयोग: डेज़र्ट फ्लैग (UAE) जैसे द्विपक्षीय अभ्यास और भारत-फ्राँस- UAE हवाई युद्ध अभ्यास (डेज़र्ट नाइट) जैसे त्रिपक्षीय सहयोग के साथ रक्षा संबंध प्रगाढ़ हो रहे हैं।
    • प्रमुख समुद्री चौकियों से खाड़ी की निकटता, अदन की खाड़ी और अरब सागर की सुरक्षा के लिये भारत की "मिशन-आधारित नौसैनिक तैनाती" में इसके महत्त्व को सुनिश्चित करती है।
  • उभरते भू-आर्थिक फ्रेमवर्क: भारत कनेक्टिविटी बढ़ाने और व्यापार मार्गों में विविधता लाने के लिये भारत-इज़रायल- UAE-यूएसए (I2U2) और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (IMEC) जैसी पहलों में सक्रिय रूप से भाग ले रहा है।
    • हमास-इज़रायल युद्ध की चुनौतियों के बावजूद, ये रूपरेखाएँ क्षेत्र में भारत के बढ़ते भू-आर्थिक प्रभाव का प्रतीक हैं।
  • गैर-तेल व्यापार और प्रौद्योगिकी: भारत और खाड़ी क्षेत्र व्यापार में विविधता ला रहे हैं, जिसमें प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्र केंद्र बिन्दु के रूप में उभर रहे हैं।
    • उदाहरणों में 'मेड इन इंडिया' ऑटोमोबाइल का बढ़ता निर्यात और UAE का 15.3 बिलियन डॉलर का FDI शामिल है, जो इसे भारत में निवेश का 7वाँ सबसे बड़ा स्रोत बनाता है।
    • इसके अलावा, हाल ही में वर्ष 2024 IPL की नीलामी सऊदी अरब के जेद्दा में आयोजित की गई थी, जो पहली बार देश में इस पैमाने का क्रिकेट आयोजन आयोजित किया गया था। 

भारत और खाड़ी के बीच टकराव के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं? 

  • भू-राजनीतिक संरेखण और भिन्न हित: I2U2 (भारत-इज़रायल- UAE-USA) में भागीदारी और रक्षा सहयोग सहित इज़रायल के साथ भारत के बढ़ते संबंध, कभी-कभी फिलिस्तीन मुद्दे के प्रति संवेदनशील खाड़ी देशों के बीच असहजता उत्पन्न करते हैं।
    • जबकि भारत ने द्वि-राज्य समाधान का समर्थन किया है, विशेष रूप से वर्ष 2023 के हमास-इज़रायल युद्ध के दौरान खाड़ी देशों द्वारा इज़रायल की कार्रवाइयों की आलोचना, भारत के अधिक तटस्थ रुख के विपरीत है जिससे रणनीतिक तनाव उत्पन्न होने का खतरा है।
    • उदाहरण के लिये, भारत ने गाज़ा में युद्ध विराम के लिये संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया, इस निर्णय पर खाड़ी भागीदारों की ओर से मिली-जुली प्रतिक्रिया आई।
  • ऊर्जा आपूर्ति की कमज़ोरियाँ: यूक्रेन युद्ध के बाद भारत द्वारा तेल आयात में विविधता लाने से, जिसमें वर्ष 2024 में भारत के कच्चे तेल के आयात का 55% हिस्सा रूस द्वारा पूरा किया जा रहा है, खाड़ी देशों की हिस्सेदारी कम हो गई है।
  • व्यापार और FTA वार्ता में गतिरोध: वर्ष 2022 में खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के लिये वार्ता को पुनर्जीवित करने की घोषणाओं के बावजूद, टैरिफ कटौती और गैर-तेल व्यापार विविधीकरण पर असहमति के कारण प्रगति धीमी रही है।
    • GCC के साथ व्यापार भारत के कुल व्यापार का 15.8% है, लेकिन फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों को मूल्य निर्धारण नीतियों और बाज़ार अभिगम प्रतिबंधों सहित बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • समुद्री सुरक्षा और रणनीतिक अंतराल: जबकि भारत अरब सागर में समुद्री सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, समन्वित समुद्री डकैती विरोधी अभियानों और क्षेत्रीय नौसैनिक साझेदारियों में अंतराल बना हुआ है, जिसका आंशिक कारण खाड़ी देशों की अमेरिका के नेतृत्व वाली सुरक्षा रूपरेखा पर निर्भरता है।
    • लाल सागर और अदन की खाड़ी में तनाव के प्रत्युत्तर में वर्ष 2024 में भारतीय नौसेना द्वारा 12 जहाज़ों की तैनाती भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है, लेकिन क्षेत्रीय सुरक्षा नीतियों पर इसके सीमित प्रत्यक्ष प्रभाव को भी उजागर करती है।
    • संयुक्त अरब अमीरात और ओमान के साथ द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास जैसी पहल आगे की दिशा में उठाया गया कदम है, लेकिन यह पूरी तरह से एकीकृत खाड़ी-भारत समुद्री सुरक्षा सहयोग से पीछे है।

Red Sea

  • प्रवासी-संबंधी वीज़ा और रोज़गार नीतियाँ: खाड़ी देश सऊदी अरब के विज़न- 2030 और UAE के अमीरातीकरण जैसी राष्ट्रीयकरण नीतियों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिनका उद्देश्य भारतीयों सहित विदेशी श्रमिकों पर निर्भरता कम करना है।
    • इस बदलाव से 8.8 मिलियन भारतीय प्रवासियों की आजीविका को खतरा है, जिनके द्वारा प्रतिवर्ष भेजी जाने वाली धनराशि 60 बिलियन डॉलर है तथा जो भारत की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
    • उदाहरण के लिये, सऊदी अरब की निताकत नीति के कारण वीज़ा नियम कड़े हो गए हैं, जिसके कारण कुछ भारतीय कामगारों को या तो स्वदेश लौटना पड़ा है या कम वेतन वाली नौकरियाँ करनी पड़ी हैं।
    • इसके अलावा, वेतन में विलंब और असुरक्षित कार्य स्थितियों के मामलों ने, विशेष रूप से कतर में वर्ष 2022 फीफा विश्व कप के दौरान, घरेलू और वैश्विक छंटनी को जन्म दिया है।
  • आर्थिक गलियारा और संपर्क प्रतिद्वंद्विता: जबकि भारत, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) में एक प्रमुख भागीदार है, वहीं चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) पर खाड़ी देशों का ध्यान क्षेत्रीय संपर्क के लिये प्रतिस्पर्द्धात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न करता है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2024 में चीन के साथ सऊदी अरब का 50 बिलियन डॉलर का समझौता इसकी रणनीतिक धुरी को रेखांकित करता है, जो बीज़िंग के नेतृत्व वाली रूपरेखाओं से परे विविधीकरण की भारत की प्राथमिकता के विपरीत है।
    • इन प्रतिस्पर्द्धी गठबंधनों के कारण IMEC जैसी संयुक्त पहल कमज़ोर पड़ने और भू-राजनीतिक जटिलताओं के कारण कार्यान्वयन में विलंब होने का खतरा है।

India-Middle East-Europe Economic Corridor (IMEC)

  • सीमा सुरक्षा और अवैध व्यापार: यमन जैसे संघर्ष क्षेत्रों के साथ खाड़ी की निकटता के कारण भारत की समुद्री सीमाओं में अवैध हथियारों और मादक पदार्थों की तस्करी जैसी चुनौतियाँ उत्पन्न हो गई हैं।
    • समुद्री चौकियों की निगरानी में भारत के प्रयासों के बावजूद, वर्ष 2022 जैसी घटनाओं में, 10 चालक दल के सदस्यों को ले जा रही एक पाकिस्तानी नाव, हथियार, गोला-बारूद और 300 करोड़ रुपए मूल्य के 40 किलोग्राम मादक पदार्थों के साथ, गुजरात तट पर रोक दी गई, जिससे खाड़ी भागीदारों के साथ समन्वित सुरक्षा प्रयासों में हुई कमी पर प्रकाश डाला गया।
    • एक संरचित GCC-भारत तस्करी विरोधी फ्रेमवर्क की कमी इस क्षेत्र में कमज़ोरियों को और बढ़ा देती है।
  • खाद्य सुरक्षा और कृषि नीतियाँ: खाड़ी देश खाद्य आयात पर बहुत अधिक निर्भर हैं, लेकिन भारत द्वारा गेहूँ और चावल के निर्यात पर लगातार प्रतिबंध, जैसा कि वर्ष 2022 और 2023 के मुद्रास्फीति दबावों के दौरान देखा गया है, संबंधों में तनाव उत्पन्न करता है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2023 में गैर-बासमती चावल के निर्यात पर भारत के प्रतिबंध से खाड़ी बाज़ारों में व्यवधान उत्पन्न हो गया, जो अपनी खाद्य आपूर्ति शृंखलाओं के लिये भारतीय खाद्य वस्तुओं पर निर्भर हैं।
    • दीर्घकालिक, स्थिर खाद्य व्यापार समझौते का अभाव अनिश्चितताओं को जन्म देता है, जिसका प्रभाव खाड़ी उपभोक्ताओं और भारतीय किसानों दोनों पर पड़ता है।
  • साइबर सुरक्षा और डिजिटल शासन: खाड़ी देशों ने प्रायः पश्चिमी मानकों को अपनाते हुए या चीन की डिजिटल पहलों के साथ सहयोग करते हुए, विशेष रूप से संयुक्त अरब अमीरात ने साइबर सुरक्षा फ्रेमवर्क में काफी प्रगति की है जो भारत के स्वदेशी दृष्टिकोणों के साथ संघर्ष कर सकते हैं।
    • डेटा स्थानीयकरण कानूनों और डिजिटल पारिस्थितिकी प्रणालियों पर सख्त नियंत्रण के लिये भारत का प्रयास, वैश्विक व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिये खाड़ी देशों की मुक्त प्रणालियों पर निर्भरता के साथ टकराव उत्पन्न करता है।
    • उदाहरण के लिये, चीन के डिजिटल सिल्क रोड में संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी देशों सहित भारत को शामिल न करना, डिजिटल सहयोग में उभरते अंतराल को उजागर करता है।

खाड़ी देशों के साथ अपने संबंधों को बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • तेल से परे ऊर्जा सहयोग को गहन करना: क्रेता-विक्रेता संबंध से ध्यान हटाकर ऊर्जा में सह-विकास मॉडल पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जैसे कि हरित हाइड्रोजन, सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं में संयुक्त उद्यम।
    • उदाहरण के लिये, भारत खाड़ी देशों के साथ मिलकर हरित हाइड्रोजन सुविधाओं का विकास कर सकता है, जिससे उनकी वित्तीय पूंजी और सौर ऊर्जा में भारत की तकनीकी बढ़त का लाभ उठाया जा सके।
    • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन जैसी पहलों के तहत भारत के नवीकरणीय ऊर्जा बुनियादी अवसंरचना में निवेश करने के लिये संयुक्त अरब अमीरात के मुबाडाला और सऊदी अरब के PIF जैसे खाड़ी संप्रभु धन कोषों (SWF) को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • FTA के माध्यम से आर्थिक साझेदारी को मज़बूत करना: फार्मास्यूटिकल्स, खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में व्यापार क्षमता के लिये खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर वार्ता को गति दी जानी चाहिये।
    • मुख्य खाद्य व्यापार स्थिरता के लिये दीर्घकालिक रूपरेखा विकसित किया जाना चाहिये, चावल और गेहूँ जैसे भारतीय निर्यात पर निर्भर खाड़ी देशों के लिये निर्बाध आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
    • भारत संयुक्त अरब अमीरात के साथ अपने व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) का उपयोग अन्य खाड़ी देशों के साथ व्यापार संबंधों को बढ़ाने के लिये एक टेम्पलेट के रूप में कर सकता है।
  • समुद्री एवं रसद अवसंरचना का सह-विकास: भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) जैसी पहलों का लाभ उठाते हुए समुत्थानशील और कुशल समुद्री गलियारों के निर्माण पर खाड़ी देशों के साथ सहयोग किया जाना चाहिये।
    • आपूर्ति शृंखलाओं को सुव्यवस्थित करने तथा अफ्रीका और यूरोप से संपर्क बढ़ाने के लिये प्रमुख खाड़ी बंदरगाहों (जैसे, दुबई, जेद्दा) में संयुक्त लॉजिस्टिक्स केंद्र स्थापित किया जाना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, भारतीय IT विशेषज्ञता और खाड़ी पूंजी का उपयोग करके स्मार्ट बंदरगाहों का सह-विकास आर्थिक एवं रणनीतिक अंतरनिर्भरता को मज़बूत किया जा सकता है।
  • रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग को बढ़ाना: होर्मुज़ जलडमरूमध्य जैसे महत्त्वपूर्ण अवरोधक बिंदुओं की सुरक्षा करने तथा अदन की खाड़ी में समुद्री डकैती से निपटने के लिये संयुक्त नौसैनिक कार्य बलों की स्थापना करके समुद्री सुरक्षा पर सहयोग किया जाना चाहिये।
    • भारत की IT क्षमताओं और डिजिटल बुनियादी अवसंरचना में खाड़ी देशों के निवेश का लाभ उठाते हुए साइबर खतरों का संयुक्त रूप से मुकाबला करने के लिये साइबर सुरक्षा समझौते विकसित किया जाना चाहिये।
  • प्रवासी कूटनीति का लाभ उठाना: रोज़गार, धन प्रेषण और श्रम अधिकारों जैसे मुद्दों को सहयोगात्मक रूप से हल करने के लिये खाड़ी-भारत प्रवासी परिषद की स्थापना की जानी चाहिये।
    • कुशल श्रमिकों की गतिशीलता के लिये द्विपक्षीय समझौतों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, स्वास्थ्य सेवा और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों, जहाँ खाड़ी देशों को कमी का सामना करना पड़ रहा है, पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, भारत की ई-माइग्रेट प्रणाली का दायरा बढ़ाकर इसमें खाड़ी श्रम बाज़ार के पूर्वानुमानों को शामिल किया जाएगा, जिससे कुशल भारतीय श्रमिकों का सुगम प्रवाह संभव हो सकेगा।
  • स्वास्थ्य देखभाल और फार्मास्यूटिकल्स में सहयोग का विस्तार: खाड़ी देशों में फार्मा हब का सह-विकास किया जाना चाहिये, जिससे संयुक्त उत्पादन सुविधाओं के माध्यम से भारतीय जेनेरिक दवाओं और टीकों तक तेज़ी से पहुँच सुनिश्चित हो सके।
    • भारतीय औषधि निर्यात के लिये विनियामक अनुमोदन को सरल बनाया जाना चाहिये, खाड़ी-व्यापी स्वास्थ्य सेवा समझौते के तहत त्वरित मार्ग तैयार किया जाना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, भारत पश्चिम एशियाई और अफ्रीकी बाज़ारों की जरूरतों को पूरा करने के लिये खाड़ी देशों में वैक्सीन विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित कर सकता है।
  • खाद्य एवं जल सुरक्षा संबंधों को बढ़ाना: कृषि-तकनीक समाधानों पर साझेदारी करना, जैसे कि फसल विविधीकरण में भारतीय विशेषज्ञता का उपयोग करना तथा खाद्य उत्पादन एवं आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ाने के लिये खाड़ी देशों से वित्तपोषण प्राप्त किया जाना चाहिये।
    • जल की कमी की साझा चुनौतियों का समाधान करते हुए, अलवणीकरण और जल संरक्षण प्रौद्योगिकियों का सह-विकास किया जाना चाहिये।
    • भारत इन प्रयासों को अरब प्रायद्वीप जैसे क्षेत्रों में विस्तारित करने के लिये संयुक्त अरब अमीरात के जल गठबंधन के साथ सहयोग कर सकता है।
  • जलवायु लक्ष्यों और स्थिरता पर समन्वय: कार्बन कैप्चर, सौर विलवणीकरण और नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में सह-निवेश के लिये खाड़ी-भारत स्थिरता मंच का विकास किया जाना चाहिये।
    • भारत के ऊर्जा परिवर्तन और खाड़ी देशों की विविधीकरण रणनीतियों के साथ तालमेल बिठाते हुए, स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान, विशेष रूप से हाइड्रोजन और जैव ईंधन में पहल को संयुक्त रूप से बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, भारत वृक्षारोपण और रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने की प्रौद्योगिकियों के विस्तार के लिये सऊदी अरब की हरित पहल में उसके साथ साझेदारी कर सकता है।
  • बहुपक्षीय सहभागिता को सुदृढ़ बनाना: ऊर्जा मूल्य निर्धारण, जलवायु परिवर्तन और व्यापार में साझा हितों के समर्थन के लिये G20, संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) जैसे वैश्विक मंचों पर खाड़ी देशों के साथ दृढ समन्वय का निर्माण किया जाना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, भारत की 2023 G20 अध्यक्षता और वैश्विक ऊर्जा प्रशासन पर सऊदी अरब एवं UAE के साथ साझेदारी ने गहन बहुपक्षीय संबंधों की संभावना को प्रदर्शित किया।
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक कूटनीति - प्रमुख खाड़ी शहरों में BAPS हिंदू मंदिर अबू धाबी जैसे भारतीय सांस्कृतिक केंद्रों की स्थापना किया जाना चाहिये, ताकि त्योहारों, भाषा प्रशिक्षण और पर्यटन को बढ़ावा देने के माध्यम से लोगों के बीच संबंधों को गहरा किया जा सके।
    • खाड़ी देशों में भारतीय विश्वविद्यालयों की शाखाएँ खोलकर शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाया जाना चाहिये, जिससे भारतीय प्रवासियों और खाड़ी नागरिकों दोनों को लाभ मिल सके।
    • उदाहरण के लिये, STEM-केंद्रित शिक्षा कार्यक्रमों का सह-विकास खाड़ी अर्थव्यवस्थाओं में कौशल की कमी को दूर कर सकता है, साथ ही भारत की सॉफ्ट पावर को भी बढ़ा सकता है।

निष्कर्ष: 

भारत-कुवैत संबंधों का रणनीतिक उन्नयन भारत-खाड़ी संबंधों में एक परिवर्तनकारी चरण को दर्शाता है, जो समकालीन चुनौतियों और अवसरों का संतुलन बनाने के लिये सदियों पुराने संबंधों का लाभ उठाता है। ऊर्जा, व्यापार, रक्षा एवं प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करके, भारत और खाड़ी वैश्विक व क्षेत्रीय गतिशीलता के साथ अपनी पूरी क्षमता का लाभ उठा सकते हैं। जन-जन के बीच संबंधों को मज़बूत करना और साझा विकास लक्ष्यों को अपनाना उनकी साझेदारी में दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत के लिये खाड़ी क्षेत्र के महत्त्व पर चर्चा करें तथा क्षेत्रीय चुनौतियों के बीच इस साझेदारी को मजबूत करने के लिये रणनीति सुझाएँ

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न.  निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद् (गल्फ को-ऑपरेशन काउन्सिल)' का सदस्य नहीं है? (2016) 

(a) ईरान
(b) सऊदी अरब
(c) ओमान
(d) कुवेत

उत्तर: (a)


मेन्स  

प्रश्न.  भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017)