भारत में पोषण सुरक्षा | 08 Aug 2024

यह एडिटोरियल 07/08/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Counting the ‘poor’ having nutritional deficiency” लेख पर आधारित है। इसमें राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा आयोजित घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) 2022-23 के निष्कर्षों की चर्चा की गई है, जहाँ भारत में विभिन्न व्यय वर्गों के कैलोरी सेवन का विवरण दिया गया है और पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करने के लिये निर्धनतम वर्गों के लिये लक्षित पोषण योजनाओं की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय, घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-23, पोषण सुरक्षा, विश्व असमानता रिपोर्ट 2022, वैश्विक भूखमरी सूचकांक 2023, वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2021, शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) 2022, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24, मिशन पोषण 2.0, समेकित बाल विकास सेवा योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, मध्याह्न भोजन योजना

 मेन्स के लिये:

भारत की पोषण संबंधी चुनौतियाँ, पोषण सुरक्षा से संबंधित भारत सरकार की पहल।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO) द्वारा आयोजितघरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey- HCES) 2022-23 से भारत की गरीबी और पोषण परिदृश्य के बारे में महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्राप्त होती है। इस डेटा का उपयोग कर कैलोरी सेवन और व्यय के आधार पर गरीबी के स्तर का अनुमान लगाने के लिये एक विश्लेषण किया गया। अध्ययन में पाया गया कि स्वस्थ जीवन के लिये औसत दैनिक प्रति व्यक्ति कैलोरी की आवश्यकता ग्रामीण भारत में 2,172 किलो कैलोरी और शहरी भारत में 2,135 किलो कैलोरी है। लेकिन आबादी का निर्धनतम या सबसे गरीब 10% तबका ग्रामीण क्षेत्रों में औसत दैनिक सेवन महज 1,564-1,764 किलो कैलोरी और शहरी क्षेत्रों में 1,607-1,773 किलो कैलोरी के साथ इस स्तर से बहुत दूर है।

खाद्य और गैर-खाद्य व्यय दोनों पर विचार करते हुए संपन्न इस विश्लेषण से अनुमान लगाया गया कि ग्रामीण आबादी का 17.1% और शहरी आबादी का 14% ‘गरीब’ (poor) या ‘वंचित’ (deprived) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। समाज के सबसे गरीब वर्गों में पोषण की कमी लक्षित पोषण योजनाओं की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती है। जबकि सरकार ने खाद्य सुरक्षा के उद्देश्य से विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रम लागू किये हैं, सबसे कमज़ोर आबादी की पोषण स्थिति में सुधार करने के लिये विशेष रूप से डिज़ाइन की गई पहलों की तत्काल आवश्यकता है, ताकि वे स्वस्थ जीवन जी सकें।

पोषण सुरक्षा क्या है?

  • पोषण सुरक्षा (Nutritional Security) से तात्पर्य ऐसी स्थिति से है, जहाँ व्यक्तियों के किसी समूह को इतना पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक खाद्य उपलब्ध होता है, जो सक्रिय एवं स्वस्थ जीवन के लिये उनकी आहार संबंधी आवश्यकताओं और खाद्य प्राथमिकताओं को पूरा कर सके।
    • इसमें न केवल खाद्य की उपलब्धता एवं अभिगम्यता शामिल है, बल्कि इसकी गुणवत्ता और अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये व्यक्तियों द्वारा इसका प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकने की क्षमता भी शामिल है।

खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा क्यों आवश्यक है?

  • समग्र स्वास्थ्य परिणाम: पोषण सुरक्षा केवल कैलोरी सेवन तक सीमित नहीं रहती हुई उपभोग किये जाते पोषक तत्वों की गुणवत्ता और विविधता पर भी ध्यान केंद्रित करती है।
    • जबकि खाद्य सुरक्षा (Food Security) पर्याप्त कैलोरी की उपलब्धता एवं अभिगम्यता सुनिश्चित करती है, पोषण सुरक्षा शरीर की मैक्रो एवं माइक्रो पोषक तत्वों के संतुलित सेवन की आवश्यकता को पूरा करती है।
    • इससे यह तथ्य स्पष्ट होता है कि केवल कैलोरी की पर्याप्तता से ही सर्वोत्तम स्वास्थ्य परिणाम की गारंटी नहीं मिल जाती।
  • आर्थिक उत्पादकता: पोषण सुरक्षा प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक उत्पादकता को प्रभावित करती है। कुपोषण (Malnutrition) के कारण कार्य क्षमता में कमी आती है, स्वास्थ्य सेवा की लागत बढ़ती है और बीमारी के कारण उत्पादकता घटती है।
    • भारत में सूक्ष्मपोषक कुपोषण (micronutrient malnutrition) की अल्पकालिक आर्थिक लागत सकल घरेलू उत्पाद के 0.8% से 2.5% तक है।
    • इसलिये, पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना न केवल स्वास्थ्य के लिये अनिवार्य है, बल्कि एक आर्थिक आवश्यकता भी है, जो अधिक उत्पादक कार्यबल में योगदान देता है और स्वास्थ्य देखभाल के बोझ को कम करता है।
  • संज्ञानात्मक विकास और शिक्षा: पर्याप्त पोषण, विशेष रूप से आरंभिक बाल्यावस्था में, संज्ञानात्मक विकास और शैक्षिक परिणामों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • अध्ययनों से पता चलता है कि जिन बच्चों को उनके जीवन के पहले 1000 दिनों में उचित पोषण प्राप्त होता है, उनकी बौद्धिक क्षमता अधिक होती है, स्कूल में उनका प्रदर्शन बेहतर होता है और वयस्क होने पर उनमें अधिक अर्जन क्षमता होती है।
    • समाज खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित कर मानव पूंजी विकास को संवृद्ध कर सकता है और गरीबी एवं कुपोषण के अंतर-पीढ़ीगत चक्र को तोड़ सकता है।
  • रोगों के प्रति प्रत्यास्थता: पोषण सुरक्षा रोगों के प्रति प्रत्यास्थता के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • सुपोषित आबादी संक्रमणों से लड़ने और बीमारियों से उबरने के लिये बेहतर ढंग से तैयार होती है।
    • कोविड-19 महामारी ने इस पहलू को उजागर किया है, जहाँ अध्ययनों से पता चला कि खराब पोषण के कारण पहले से स्वास्थ्य संबंधी खतरे (जैसे मोटापा, मधुमेह) रखने वाले व्यक्ति कोविड-19 के गंभीर परिणामों के प्रति अधिक संवेदनशील थे।
    • इस प्रकार, पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये एक प्रमुख रणनीति है, जो स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर बोझ को कम करती है और समग्र जनसंख्या स्वास्थ्य में सुधार लाती है।
  • जैव विविधता और पोषण: पोषण सुरक्षा आहार विविधता को बढ़ावा देती है, जो फिर जैव विविधता संरक्षण का समर्थन करती है।
    • FAO की रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य के लिये 6,000 पादप प्रजातियों की खेती की जाती है, लेकिन केवल 9 प्रजातियाँ ही कुल फसल उत्पादन में 66% हिस्सेदारी रखती हैं।
    • पोषण सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने से उपेक्षित और कम उपयोग की जाने वाली प्रजातियों सहित विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों की खेती और उपभोग को बढ़ावा मिलता है।
    • इससे न केवल पोषण संबंधी परिणामों में सुधार होता है, बल्कि कृषि जैव विविधता, पारिस्थितिकी तंत्र प्रत्यास्थता और सांस्कृतिक खाद्य विरासत संरक्षण को भी बढ़ावा मिलता है।

भारत को लगातार पोषण संबंधी चुनौतियों का सामना क्यों करना पड़ रहा है?

  • आर्थिक असमानता – धन-पोषण अंतराल (Economic Disparity – The Wealth-Nutrition Gap): भारत के आर्थिक विकास के बावजूद धन का वितरण अत्यधिक असमान बना हुआ है।
    • वर्ष 2022 की विश्व असमानता रिपोर्ट (World Inequality Report) से पता चलता है कि शीर्ष 10% भारतीयों के पास राष्ट्रीय आय का 57% भाग पाया जाता है।
    • गरीब परिवारों को विविध एवं पोषक तत्वों से भरपूर आहार का खर्च उठाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है और वे प्रायः सस्ते एवं कैलोरी-युक्त लेकिन पोषक तत्वों से रहित खाद्य पदार्थों पर निर्भर रहते हैं, जैसा कि बेनेट के नियम (Bennett's Law) द्वारा रेखांकित किया गया है।
      • यह आर्थिक असमानता अप्रत्यक्ष रूप से पोषण संबंधी असमानता में परिणत हो जाती है।
    • हाल ही में जारी HCES 2022-23 के आँकड़े इसकी पुष्टि करते हैं, जिसमें दिखाया गया है कि सबसे गरीब 10% लोग अनुशंसित दैनिक कैलोरी सेवन से बहुत कम उपभोग करते हैं। यह गरीबी और कुपोषण के बीच लगातार बने रहे संबंध को उजागर करता है।
  • हरित क्रांति की मिश्रित विरासत: भारत की कृषि नीतियों ने, जो मुख्यतः हरित क्रांति से प्रभावित हैं, विविध एवं पोषक तत्वों से भरपूर फसलों की तुलना में मुख्य फसल उत्पादन (मुख्यतः गेहूँ और चावल) को प्राथमिकता दी है।
    • यद्यपि इस दृष्टिकोण ने कैलोरी उपलब्धता के संदर्भ में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की है, लेकिन इससे अनजाने में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो गई है।
    • वैश्विक भूखमरी सूचकांक (Global Hunger Index- GHI) 2023 में भारत को 125 देशों की सूची में 111वें स्थान पर रखा गया है, जो यह दर्शाता है कि केवल खाद्य की प्रचुर उपलब्धता से ही पोषण संबंधी चुनौतियों का समाधान नहीं हो जाता।
    • मोटे अनाज (millets) को बढ़ावा देने (जहाँ वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया गया था) जैसी हाल की पहलें सही दिशा में उठाए गए कदम हैं, लेकिन पोषण विविधता को संबोधित करने के लिये कृषि नीतियों में अधिक व्यापक आमूलचूल बदलाव की आवश्यकता है।
  • जलवायु परिवर्तन – पोषण सुरक्षा के लिये मंडराता खतरा (Climate Change – The Looming Threat to Nutritional Security): जलवायु परिवर्तन भारत की खाद्य सुरक्षा और पोषण के लिये एक बड़ा खतरा बन गया है।
    • अनियमित मौसम पैटर्न, सूखे एवं बाढ़ की बढ़ती आवृत्ति और बढ़ता तापमान फसल की पैदावार एवं पोषण गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
    • वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक (Global Climate Risk Index) 2021 ने भारत को जलवायु परिवर्तन प्रभावों से 7वाँ सर्वाधिक प्रभावित देश बताया।
    • ये पर्यावरणीय तनाव न केवल खाद्य उपलब्धता को कम करते हैं, बल्कि खाद्य कीमतों में भी वृद्धि करते हैं, जिससे कमज़ोर आबादी के लिये पौष्टिक आहार और भी अधिक अप्राप्य हो जाता है।
  • ज्ञान का अंतराल: साक्षरता दर में सुधार के बावजूद, भारत के कई हिस्सों में पोषण संबंधी जागरूकता कम है।
    • संतुलित आहार, आहार विविधता के महत्त्व और नवजात एवं छोटे बच्चों को उचित आहार देने की पद्धतियों के बारे में जानकारी का अभाव, खराब पोषण परिणामों में योगदान देता है।
    • शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual Status of Education Report- ASER) 2022 से पता चलता है कि स्कूल नामांकन में सुधार हुआ है, लेकिन अधिगम प्रतिफल (learning outcomes) अभी भी अपेक्षाकृत कम हैं।
    • शिक्षा और पोषण का यह संबंध महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि बेहतर शिक्षित व्यक्ति अधिक सूचना-संपन्न आहार विकल्प चुनने में सक्षम होते हैं तथा कुपोषण के पीढ़ी-दर-पीढ़ी चक्र को तोड़ पाते हैं।
      • भारत वास्तव में अधिक साक्षर हो रहा है, लेकिन खाद्य लेबल को समझने की क्षमता (जैसा कि हाल ही में बॉर्नविटा से ‘हेल्थ ड्रिंक’ का टैग को हटाने के विवाद से उजागर हुआ है) अब भी कम है, जो पोषण साक्षरता में एक महत्त्वपूर्ण अंतराल को रेखांकित करता है।
  • स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना – पोषण में लुप्त कड़ी (Healthcare Infrastructure – The Missing Link in Nutrition): भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, प्रायः पर्याप्त पोषण संबंधी हस्तक्षेप एवं सहायता प्रदान करने के लिये संघर्ष करती रही है।
    • कोविड-19 महामारी ने इन कमज़ोरियों को उजागर किया और इनकी वृद्धि की।
    • जबकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी योजनाओं ने स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में सुधार किया है, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) से पता चलता है कि केवल 77% बच्चों का ही पूर्ण टीकाकरण हो पाया है, जो बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं में अंतराल को दर्शाता है।
  • शहरीकरण – एक दोधारी तलवार (Urbanization-The Double – Edged Sword: भारत में तीव्र शहरीकरण पोषण के लिये अवसर और चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करता है।
    • जबकि शहरी क्षेत्रों में प्रायः विविध खाद्य पदार्थों तक बेहतर पहुँच होती है, उन्हें ‘फ़ूड डेज़र्ट’ (food deserts), प्रसंस्करित खाद्य पदार्थों पर अत्यधिक निर्भरता और गतिहीन जीवन शैली की समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सोशल मीडिया, स्क्रीन टाइम, निष्क्रिय आदतें और अस्वास्थ्यकर खाद्य एक ऐसे एक घातक मिश्रण का निर्माण करते हैं जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और उत्पादकता को कमज़ोर कर सकते हैं तथा भारत की आर्थिक क्षमता में कमी ला सकते हैं।
  • नीति क्रियान्वयन – मंशा और प्रभाव के बीच का अंतराल (Policy Implementation  – The Gap Between Intent and Impact): भारत में पोषण पर केंद्रित विभिन्न नीतियाँ और कार्यक्रम क्रियान्वित हैं, जैसे पोषण अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन)।
    • लेकिन नौकरशाही की अकुशलता, भ्रष्टाचार और विभिन्न सरकारी विभागों के बीच समन्वय की कमी के कारण इन नीतियों का कार्यान्वयन प्रायः अपूर्ण रह जाता है।
    • पोषण अभियान अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका और इसका एक मुख्य कारण कई मामलों में धन का कम उपयोग होना है।
      • मध्याह्न भोजन योजना में बच्चों को भोजन में अंडे देने के मामले को धार्मिक संवेदनशीलता के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप अंडा वितरण बंद करना पड़ा।
  • खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता – अनदेखा आयाम (Food Safety and Quality – The Overlooked Dimension): खाद्य सुरक्षा के मुद्दे भारत में पोषण संबंधी परिणामों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं।
    • मिलावट, संदूषण और खाद्य पदार्थों के प्रबंधन की अकुशल पद्धतियाँ न केवल स्वास्थ्य के लिये खतरा पैदा करती हैं, बल्कि खाद्य के पोषण मूल्य को भी कम करती हैं।
    • कर्नाटक में भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) की एक रिपोर्ट से उजागर हुआ कि राज्य में बेचे जा रहे पानी पूरी के लगभग 22% नमूने गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतर रहे थे।
  • खाद्य हानि और बर्बादी: भारत अपर्याप्त भंडारण, परिवहन और प्रसंस्करण सुविधाओं के कारण अपने खाद्य उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण भाग खो देता है।
    • संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि भारत में उत्पादित 40% से अधिक खाद्य उपभोक्ता तक पहुँचने से पहले ही बर्बाद हो जाता है।
    • इससे न केवल संभावित पोषण की हानि होती है, बल्कि खाद्य पदार्थों की कीमतें भी बढ़ जाती हैं, जिससे पौष्टिक आहार कम वहनीय हो जाते हैं।

पोषण संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिये भारत सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं?

पोषण अंतराल को दूर करने के लिये भारत कौन-से उपाय कर सकता है?

  • पोषण-एकीकृत सामाजिक सुरक्षा जाल: व्यापक पोषण घटकों को एकीकृत कर मौजूदा सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों को उन्नत बनाया जाए।
    • उदाहरण के लिये, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का विस्तार कर इसमें दाल, मोटे अनाज और फोर्टिफाइड तेलों जैसे पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल किया जाना चाहिये।
    • मनरेगा (MGNREGA) जैसी योजनाओं के अंतर्गत लाभ प्राप्त करने के लिये पोषण शिक्षा सत्र को एक पूर्व शर्त के रूप में शामिल किया जाना चाहिये।
    • सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत ‘पोषण क्रेडिट प्रणाली’ लागू की जाए, जहाँ लाभार्थी स्वास्थ्यवर्द्धक खाद्य विकल्प चुनने पर अतिरिक्त अंक अर्जित करेंगे, जिन्हें फिर स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं या उत्पादों के लिये भुनाया जा सकेगा।
  • लक्षित पोषण कूपन कार्यक्रम: कुपोषण से निपटने के लिये भारत लक्षित पोषण कूपन कार्यक्रम (Targeted Nutrition Coupon Program) लागू कर सकता है।
    • इस पहल के तहत कुपोषित या उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों और परिवारों को अनुकूलित खाद्य कूपन उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
    • इन कूपनों को स्थानीय बाज़ारों में और किसानों से मौसमी उपलब्धता के अनुसार विशिष्ट पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की खरीद के लिये भुनाया जा सकेगा।
    • तत्काल पोषण सहायता प्रदान करने और लाभार्थियों को स्वास्थ्यवर्धक खाद्य विकल्प चुनने में सशक्त बनाने के रूप में इस दृष्टिकोण का उद्देश्य गरीबी एवं कुपोषण के चक्र को तोड़ना है।
  • शैक्षिक संस्थानों को पोषण केंद्रों में परिणत करना: मध्याह्न भोजन योजना को एक व्यापक ‘स्कूल पोषण कार्यक्रम’ में पुनर्गठित किया जाए।
    • इसमें न केवल संतुलित भोजन उपलब्ध कराना शामिल होगा, बल्कि स्कूल उद्यानों की स्थापना करना, पाठ्यक्रम में पोषण शिक्षा को शामिल करना और छात्रों के लिये नियमित स्वास्थ्य जाँच एवं पोषण मूल्यांकन करना भी शामिल होगा।
    • माता-पिता को अपने बच्चों के शारीरिक और पोषण संबंधी स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करने के लिये शैक्षिक रिपोर्ट के साथ-साथ ‘खेल और पोषण रिपोर्ट कार्ड’ भी प्रस्तुत किये जाएँ।
  • न्यूट्री-प्रेन्योर कार्यक्रम (Nutri-Preneur Program): पोषण में सुधार पर केंद्रित व्यवसायों को समर्थन और प्रोत्साहन देने के लिये एक न्यूट्री-प्रेन्योर कार्यक्रम कार्यक्रम शुरू किया जाए।
    • इसमें नवोन्मेषी फोर्टिफाइड खाद्य उत्पाद विकसित करने वाली स्टार्ट-अप कंपनियाँ, निम्न लागतपूर्ण पोषण परीक्षण किट निर्माता कंपनियाँ या ताज़ा उपज के लिये कुशल कोल्ड चेन स्थापित करने वाले उद्यम शामिल हो सकते हैं।
    • इन पोषण-केंद्रित उद्यमियों को प्रारंभिक वित्तपोषण, मार्गदर्शन और बाज़ार संपर्क प्रदान किया जाए।
    • इस क्षेत्र में आशाजनक परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये, संभवतः सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के माध्यम से, एक विशेष ‘पोषण नवाचार निधि’ (Nutrition Innovation Fund) का सृजन किया जाए।
  • पोषण के लिये व्यवहारिक अर्थशास्त्र: लोगों को स्वास्थ्यवर्द्धक खाद्य विकल्पों की ओर प्रेरित करने के लिये व्यवहारिक अर्थशास्त्र के सिद्धांतों को लागू किया जाए।
    • इसमें खाद्य पैकेजिंग को पुनः डिज़ाइन करना शामिल हो सकता है ताकि पोषण संबंधी सूचना को अधिक प्रमुखता से और समझने योग्य भाषा में प्रकट किया जा सके तथा दुकानों में स्वास्थ्यप्रद विकल्पों को आसानी से नज़र आ सकने वाली जगहों पर रखा जाए।
    • विपणन विशेषज्ञों के साथ मिलकर ऐसे आकर्षक सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों का सृजन किया  जाए जो पौष्टिक आहार ग्रहण को आकांक्षापूर्ण बनाएँ।
  • एकीकृत पोषण निगरानी प्रणाली: एक ऐसी एकीकृत पोषण निगरानी प्रणाली (Integrated Nutrition Surveillance System) स्थापित की जाए जो पूरे देश में पोषण संकेतकों पर रियल-टाइम डेटा एकत्र करे।
    • डेटा संग्रहण के लिये मौजूदा स्वास्थ्य अवसंरचना, आँगनवाड़ी केंद्रों और मोबाइल प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया जा सकता है।
    • पोषण संबंधी रुझानों और संभावित संकट क्षेत्रों का पूर्वानुमान लगाने के लिये उन्नत विश्लेषण और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग किया जाए।
    • एक ‘पोषण आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल’ (Nutrition Emergency Response Protocol) लागू किया जाए जो किसी भी क्षेत्र में निश्चित पोषण सीमाओं का उल्लंघन होने पर तत्काल हस्तक्षेप शुरू करे।
    • यह प्रणाली उभरती पोषण संबंधी चुनौतियों के लिये त्वरित, डेटा-आधारित प्रतिक्रिया को सक्षम करेगी।
  • ‘फोर्टिफिकेशन प्लस’ – मुख्य खाद्य पदार्थों को उन्नत बनाना (Fortification Plus – Enhancing Staple Foods): राष्ट्रीय फूड फोर्टिफिकेशन कार्यक्रम का विस्तार और सुदृढ़ीकरण किया जाए।
    • चावल, गेहूँ का आटा और खाद्य तेल जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों को आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों (जैसे आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन A) से फोर्टिफाइ या सुदृढ़ करने पर ध्यान दिया जाए।
    • यह दृष्टिकोण आहार संबंधी आदतों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये बिना पोषण सेवन में सुधार करने के लिये मौजूदा खाद्य वितरण चैनलों का लाभ उठाता है।
  • ‘न्यूट्री-स्मार्ट’ कृषि (Nutri-Smart Agriculture): पोषण-कुशल या ‘न्यूट्री-स्मार्ट’ कृषि पहल की शुरुआत की जाए जो किसानों को अधिक विविध, पोषक तत्वों से भरपूर फसलों की खेती करने के लिये प्रोत्साहित करे।
    • पोषणयुक्त फसलों के लिये MSP में सुधार किया जाए। इसमें बायोफोर्टिफाइड किस्मों को उगाने के लिये सब्सिडी प्रदान करना, मृदा स्वास्थ्य एवं पोषक तत्वों की मात्रा में सुधार लाने वाली फसल चक्र प्रणालियों के लिये समर्थन देना और कम ज्ञात लेकिन पौष्टिक देशी फसलों के लिये बाज़ार संपर्क का निर्माण करना शामिल हो सकता है।
    • पोषण-संवेदनशील कृषि पद्धतियों के बारे में किसानों को शिक्षित करने के लिये मौजूदा कृषि विस्तार सेवाओं के साथ-साथ ‘पोषण विस्तार सेवा’ (Nutrition Extension Service) को क्रियान्वित किया जाए।
  • सामुदायिक पोषण चैंपियन (Community Nutrition Champions): सामुदायिक पोषण चैंपियन का एक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क स्थापित किया जाए, जिसमें आशा कार्यकर्ता शामिल हो सकती हैं, जो प्रशिक्षित स्थानीय स्वयंसेवक हैं और पोषण शिक्षा दाता के रूप में भूमिका निभाती हैं।
    • ये पोषण चैंपियन नियमित रूप से पोषण जागरूकता सत्र आयोजित करेंगे, स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पौष्टिक सामग्रियों का उपयोग कर कुकिंग डेमो देंगे और व्यक्तिगत पोषण परामर्श प्रदान करेंगे।
    • यह पीयर-टू-पीयर (P2P) दृष्टिकोण सांस्कृतिक बाधाओं को प्रभावी ढंग से दूर कर सकता है और ज़मीनी स्तर पर स्थायी आहार परिवर्तनों को बढ़ावा दे सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में पोषण सुरक्षा प्राप्त करने की राह की प्रमुख चुनौतियों की चर्चा कीजिये। जनसंख्या के लिये बेहतर पोषण परिणाम सुनिश्चित करने के लिये नीतिगत हस्तक्षेपों को किस प्रकार बेहतर बनाया जा सकता है?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)   

प्रारंभिक परीक्षा

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन- सा/से वह/वे सूचक है/हैं जिसका/जिनका IFPRI द्वारा वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) रिपोर्ट बनाने में उपयोग किया गया है? (2016)

  1. अल्प-पोषण शिशु 
  2. वृद्धिरोधन 
  3. शिशु मृत्यु-दर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

 (A) केवल 1
(B) केवल 2 और 3
(C) 1, 2 और 3
(D) केवल 1 और 3

 उत्तर: (C)


मेन्स: 

प्रश्न. आप इस विचार से कहाँ तक सहमत हैं कि भूख के मुख्य कारण के रूप में भोजन की उपलब्धता की कमी पर ध्यान भारत में अप्रभावी मानव विकास नीतियों से ध्यान हटाता है? ( 2018)