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जैव विविधता और पर्यावरण

सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल

  • 02 Jun 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल, ICAO, UNCCC, पेरिस  समझौता, शुद्ध-शून्य, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, CORSIA

मेन्स के लिये:

सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल, इसका महत्त्व और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत ने वर्ष 2050 के लक्ष्य के साथ सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (Sustainable Aviation Fuel- SAF) के लिये वैश्विक जनादेश पर आपत्ति व्यक्त की है और कहा है कि यह "बहुत जल्दी (Too Early)" है।

  • दक्षिण कोरिया में 41वीं अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) ने अंतर्राष्ट्रीय विमानन के लिये UNCCC पेरिस समझौते के समर्थन में वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन के दीर्घकालिक वैश्विक आकांक्षात्मक लक्ष्य ( Long-Term Global Aspirational Goal- LTAG) को अपनाया।

SAF जनादेश पर भारत का रुख:

  • भारत का मानना है कि प्रत्येक देश को अपनी राष्ट्रीय योजनाओं के अनुसार रणनीति विकसित करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • भारत ने विमानन क्षेत्र में यात्रियों की बढ़ती आकांक्षाओं को पूरा करने जैसे अन्य प्राथमिकताओं को संबोधित करते हुए अपने कार्बन नेट-शून्य लक्ष्यों को प्राप्त करने में ICAO से समर्थन मांगा है। 
  • LTAG की विचारधारा के साथ संरेखित करने के लिये वॉल्यूमेट्रिक शासनादेश लागू करने से पहले SAF उत्पादन, प्रमाणन और उपलब्धता सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।

सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल: 

  • परिचय: 
    • इसे बायो-जेट फ्यूल भी कहा जाता है, इसका उत्पादन राष्ट्रीय स्तर पर विकसित तकनीकों का उपयोग करके किया जाता है जिसमें खाना पकाने के तेल और उच्च तेल वाले पौधों के बीजों का इस्तेमाल किया जाता है।
    • ASTM इंटरनेशनल द्वारा ASTM D4054 प्रमाणीकरण के लिये आवश्यक मानकों को पूरा करने हेतु संस्थानों द्वारा उत्पादित इस ईंधन के नमूनों का संयुक्त राष्ट्र फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन क्लीयरिंग हाउस में उच्च परीक्षण किया जा रहा है।
      • ASTM प्रमाणन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी उत्पाद या सामग्री का परीक्षण तथा प्रासंगिक ASTM मानकों के खिलाफ मूल्यांकन किया जाता है। ASTM इंटरनेशनल उत्पादों और प्रक्रियाओं के लिये तकनीकी मानक विकसित करता है।
      • ASTM मानकों का उपयोग उद्योग, सरकारों और अन्य संगठनों द्वारा उत्पादों तथा प्रक्रियाओं में गुणवत्ता, सुरक्षा एवं विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये किया जाता है।
  • उत्पादन के स्रोत: 
    • वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (IIP) ने गैर-खाद्य और खाद्य तेलों के साथ-साथ कुकिंग ऑयल जैसे विभिन्न सामग्रियों का उपयोग करके ईंधन बनाया है।
    • उन्होंने इसके लिये पाम स्टीयरिन, सैपियम ऑयल, पाम फैटी एसिड डिस्टिलेट्स, शैवाल तेल, करंजा और जेट्रोफा सहित विभिन्न स्रोतों का उपयोग किया।
  • भारत में SAF स्केलिंग का महत्त्व:
    • भारत में SAF के उत्पादन और उपयोग को बढ़ाने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, वायु गुणवत्ता में सुधार, ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में रोज़गार सृजित करने और सतत् विकास को बढ़ावा देने सहित कई लाभ मिल सकते हैं।
    • यह विमानन उद्योग को अपने पर्यावरणीय लक्ष्यों को पूरा करने और जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान हेतु किये जा रहे वैश्विक प्रयासों में मदद कर सकता है।
    • विमानन के लिये जैव ईंधन को सामान्य जेट ईंधन के साथ मिलाकर उपयोग किया जा सकता है। पारंपरिक ईंधन की तुलना में इसमें सल्फर की मात्रा कम होती है जो वायु प्रदूषण को कम करके भारत के शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता कर सकता है।

SAF संबंधी चुनौतियाँ: 

  • उच्च लागत: 
    • SAF के लिये उत्पादन प्रक्रियाएँ (जैसे बायोमास या अपशिष्ट तेलों को ईंधन में बदलना) वर्तमान में अधिक महँगी हैं। इस लागत अंतर से एयरलाइंस के लिये SAF उत्पादन में निवेश करना और विशेष रूप से विमानन उद्योग की लाभांश-संवेदनशील प्रकृति को देखते हुए उपयोग करना आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • सीमित संसाधन उपलब्धता: 
    • SAF की पर्याप्त और विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु विमानन उद्योग को एक सुदृढ़ आपूर्ति शृंखला की आवश्यकता है। हालाँकि मौजूदा बुनियादी ढाँचा अच्छी तरह से विकसित नहीं है, जो SAF उत्पादन को बढ़ाने और बाज़ार में इसकी उपलब्धता में बाधा डालता है।
  • फीडस्टॉक की उपलब्धता: 
    • SAF का उत्पादन स्थायी फीडस्टॉक्स की उपलब्धता पर निर्भर करता है, जैसे कि कृषि अवशेष, शैवाल और अपशिष्ट तेल इत्यादि।
    • हालाँकि इन फीडस्टॉक्स की सीमित उपलब्धता है तथा खाद्य एवं कृषि जैसे अन्य उद्योगों के साथ संसाधनों को लेकर प्रतिस्पर्द्धा है। खाद्य सुरक्षा और अन्य आवश्यक ज़रूरतों को सुनिश्चित करते हुए स्थायी फीडस्टॉक्स की मांग को संतुलित बनाए रखना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
  • प्रमाणन प्रक्रिया: 
    • SAF के संबंध में सख्त गुणवत्ता और स्थायी मानदंड हैं जो प्रमाणन प्रक्रिया को अधिक जटिल और दीर्घकालिक बना सकते हैं।
    • विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त मानकों की कमी प्रमाणन प्रक्रिया को और जटिल बनाती है।

भारत की जलवायु प्रतिबद्धताएँ और वैश्विक प्रयास: 

  • भारत की नेट-ज़ीरो/शुद्ध-शून्य प्रतिबद्धता: 
    • भारत ने वर्ष 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने और वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था में कार्बन तीव्रता को 45% से कम करने का संकल्प लिया है।
    • इसके अतिरिक्त भारत ने विकसित देशों से जल्द-से-जल्द 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का जलवायु वित्त प्रदान करने का आग्रह किया है क्योंकि इन महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये भारत को विकसित देशों के समर्थन और संसाधनों की आवश्यकता है।
      • अप्रैल 2023 में यूरोपीय संघ यूरोप में एयरलाइनों के लिये बाध्यकारी लक्ष्य निर्धारित करने हेतु एक समझौते पर पहुँचा है जिसमें SAF के उपयोग को बढ़ाने की आवश्यकता थी।
        • यह समझौता अनिवार्य है क्योंकि यूरोपीय संघ के हवाई अड्डों पर वर्ष 2025 तक ईंधन की आपूर्ति का 2% SAF होगा जो वर्ष 2030 में 6%, वर्ष 2035 में 20% और वर्ष 2050 में 70% तक पहुँच जाएगा। 
  • भारतीय पहल:
  • वैश्विक प्रयास:

अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन: 

  • ICAO संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशेष एजेंसी है, जिसे वर्ष 1944 में स्थापित किया गया था, जिसने शांतिपूर्ण वैश्विक हवाई नौवहन के लिये मानकों और प्रक्रियाओं की नींव रखी।
    • अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन के कन्वेंशन पर 7 दिसंबर, 1944 को शिकागो में आमतौर पर 'शिकागो कन्वेंशन' के रूप में हस्ताक्षर किये गए थे।
    • इसने हवाई मार्ग से अंतर्राष्ट्रीय परिवहन की अनुमति देने वाले मूल सिद्धांतों की स्थापना की, और ICAO के निर्माण का भी नेतृत्त्व किया।
  • इसका एक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय हवाई परिवहन की योजना और विकास को बढ़ावा देना है ताकि वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन के सुरक्षित एवं व्यवस्थित विकास को सुनिश्चित किया जा सके।
  • भारत इसके 193 सदस्यों में शामिल है।
  • इसका मुख्यालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में है।

आगे की राह 

  • वैश्विक SAF जनादेश पर भारत का रुख जलवायु परिवर्तन से निपटने की अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, साथ ही इसकी राष्ट्रीय योजनाओं और विशेष परिस्थितियों पर भी विचार करता है।
  • भारत विमानन क्षेत्र में अन्य प्राथमिकताओं के साथ स्थिरता लक्ष्यों को संतुलित करने में ICAO से समर्थन चाहता है। जैसे-जैसे विश्व विमानन को कार्बन मुक्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, हवाई यात्रा के लिये एक स्थायी भविष्य प्राप्त करने हेतु साझा आधार तलाशना और साथ मिलकर काम करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
  • एयरलाइंस, ईंधन उत्पादकों और अनुसंधान संस्थानों सहित हितधारकों के बीच सहयोग से अधिक एकीकृत एवं कुशल SAF आपूर्ति शृंखला बनाने में मदद मिल सकती है।
  • SAF उत्पादन के लिये नए फीडस्टॉक स्रोत विकसित करने हेतु अनुसंधान में निवेश, जैसे- नगरपालिका ठोस अपशिष्ट एवं कृषि अपशिष्ट, फीडस्टॉक उपलब्धता बढ़ाने और अन्य उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्द्धा को कम करने में मदद कर सकता है। 

स्रोत: द हिंदू

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