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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वैश्विकवाद से क्षेत्रवाद की ओर परिवर्तन

  • 09 Apr 2025
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विकवाद, क्षेत्रवाद, लघुपक्षवाद, यूरोपीय संघ, आसियान, सार्क, बिम्सटेक, IORA, BBIN (बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल) और कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट, हिंद महासागर क्षेत्र, अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन, नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), नेबरहुड फर्स्ट पाॅलिसी

मेन्स के लिये:

दक्षिण एशिया में भारत का महत्त्व, दक्षिण एशिया में भारत की सक्रिय भागीदारी को बाधित करने वाले प्रमुख मुद्दे।

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

वैश्विक व्यवस्था सार्वभौमिक वैश्विकवाद से हित-संचालित क्षेत्रवाद और लघुपक्षवाद की ओर परिवर्तित हो रही है, क्योंकि राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र जैसी अप्रभावी बहुपक्षीय संस्थाओं की तुलना में छोटे गठबंधनों को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं।

विश्व वैश्विकवाद से क्षेत्रवाद की ओर कैसे परिवर्तित हो रहा है?

  • वैश्विक संघर्ष और संस्थागत निष्क्रियता: रूस-यूक्रेन संघर्ष और इज़रायल-गाज़ा संकट जैसे चल रहे संघर्षों ने वैश्विक शासन संरचनाओं की सीमित प्रभावकारिता को उज़ागर कर दिया है। 
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गतिरोध, जो प्रायः महाशक्तियों के बीच प्रतिद्वंद्विता के कारण होता है, ने बहुपक्षीय संघर्ष समाधान में विश्वास को कम कर दिया है।
  • क्षेत्रवाद और लघुपक्षवाद का उदय: क्षेत्रवाद की पहचान भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से संरेखित साझेदारियों से होती है, जबकि लघुपक्षवाद में केंद्रित सहयोग के लिये  क्वाड और I2U2 जैसे छोटे, हित-आधारित समूह शामिल होते हैं।
    • यूरोपीय संघ का विकास यूरोपीय आर्थिक समुदाय से हुआ है, तथा आसियान, सार्क, बिम्सटेक और IORA जैसी पहल क्षेत्रवाद को प्रतिबिंबित करती हैं, यद्यपि इनकी सफलता भिन्न-भिन्न रही है।
    • क्वाड, ब्रिक्स और IMEC जैसे उभरते लचीले गठबंधन सुरक्षा, प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों में रणनीतिक स्वायत्तता, तीव्र निर्णय लेने और लक्षित सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
  • राष्ट्रीय संप्रभुता की पुनर्स्थापना: कोविड-19 महामारी ने वैश्विक आपूर्ति शृंखला की कमज़ोरियों और असंगत वैक्सीन पहुँच को उज़ागर किया, जिससे इस विचार को बल मिला कि राष्ट्रीय तैयारी वैश्विक एकजुटता से बेहतर है।
    • देशों ने वैश्विक एकीकरण की तुलना में आत्मनिर्भरता, स्वास्थ्य संप्रभुता और आर्थिक लचीलेपन को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया।
  • ऐतिहासिक मोहभंग: भारत समेत विकासशील देशों ने विश्व व्यापार संगठन, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी वैश्विक संस्थाओं में असमान शक्ति गतिशीलता की आलोचना की है। सुधारों की कमी ने देशों को ब्रिक्स और AIIB जैसे वैकल्पिक प्लेटफार्मों की तलाश करने के लिये प्रेरित किया है।
  • भारत का रणनीतिक पुनर्मूल्यांकन: भारत बिम्सटेक और IORA जैसी क्षेत्रीय पहलों में सक्रिय रूप से शामिल हो रहा है, साथ ही लघु-पक्षीय संबंधों को भी मज़बूत कर रहा है।
    • यह विदेश नीति में आदर्शवादी बहुपक्षवाद से लेकर हित-संचालित क्षेत्रीय सहयोग और रणनीतिक साझेदारी की ओर एक व्यावहारिक बदलाव को रेखांकित करता है।

क्षेत्रीय एकीकरण में भारत की भूमिका क्या है?

  • क्षेत्रीय संपर्क का आधार: भारत दक्षिण एशिया में आर्थिक और भौतिक संपर्क में सुधार के लिये BBIN (बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल) और कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट जैसे सीमा पार बुनियादी ढाँचे और व्यापार गलियारों को बढ़ावा देने में केंद्रीय भूमिका निभाता है।
  • सुरक्षा प्रदाता और मानवीय प्रत्युत्तरदाता: हिंद महासागर क्षेत्र में नौसेना की उपस्थिति और ऑपरेशन मैत्री (नेपाल) तथा ऑपरेशन ब्रह्मा (म्याँमार) जैसे आपदा राहत मिशनों के माध्यम से एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका इसकी रणनीतिक विश्वसनीयता को मज़बूत करती है तथा क्षेत्रीय विश्वास को सुदृढ़ करती है।
  • व्यापार एवं निवेश केंद्र: दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में, भारत पड़ोसी देशों के लिये व्यापार एवं निवेश केंद्र के रूप में कार्य करता है, तथा तरजीही व्यापार व्यवस्थाएँ प्रदान करता है और साथ ही ऋण एवं विकास सहायता प्रदान करता है।
    • वर्ष 2023 में, ASEAN के साथ भारत का व्यापार लगभग 101.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो ASEAN के कुल व्यापार का 2.86% था।
  • साझा सांस्कृतिक और लोकतांत्रिक मूल्य: भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन, नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार और संघर्षोत्तर लोकतंत्रों को समर्थन जैसी पहलों के माध्यम से साझा सांस्कृतिक और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देता है, जिससे इसका सभ्यतागत प्रभुत्व प्रबलित होता है।
    • बौद्ध सर्किट और दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय जैसी परियोजनाओं से क्षेत्रीय सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा मिलता है, आपसी समझ में विस्तार होता है और पड़ोसी देशों में भारत विरोधी बयानों का प्रत्युत्तर करने में मदद मिलती है।

भारत के क्षेत्रीय एकीकरण प्रयासों के समक्ष कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ हैं?

  • आधिपत्य की धारणा: दक्षिण एशिया के छोटे राष्ट्रों के अनुसार भारत के प्रभुत्व की प्रकृति मनमाना है, जिसके कारण उनमें भारत के नेतृत्व वाली पहलों को अपनाने में अविश्वास और अनिच्छा जैसे कारक विद्यमान रहते हैं, जिससे क्षेत्रीय सहयोग की प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
  • द्विपक्षीय राजनीतिक तनाव: पाकिस्तान के साथ निरंतर जारी कश्मीर विवाद और चीन के साथ अनसुलझे सीमा तनाव, जैसे कि वर्ष 2020 का गलवान घाटी गतिरोध, से भारत के क्षेत्रीय संबंधों में तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है। 
    • ये संघर्ष प्रायः सैन्य टकराव और कूटनीतिक गतिरोध में परिणत होते हैं, जिससे सहयोगात्मक क्षेत्रीय विकास पहलों से ध्यान विचलित होता है। 
    • निरंतर जारी इस विद्वेष और तनावपूर्ण संबंधों से SAARC का प्रभुत्व कम हुआ है और क्षेत्रीय बहुपक्षवाद में बाधा उत्पन्न हुई है।
  • आर्थिक क्षमताओं में विषमता: दक्षिण एशिया की विशाल आर्थिक असमानताओं से नीतिगत संरेखण और न्यायसंगत एकीकरण में बाधा उत्पन्न होती है। अंतर-क्षेत्रीय व्यापार लगभग 5% पर बना हुआ है, जो ASEAN के 25% से बहुत कम है। 
    • भारत-पाकिस्तान तनाव के कारण SAARC अवरुद्ध हुआ, जबकि BBIN जैसी पहल और भारत-नेपाल पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना जैसी परियोजनाओं में अभी भी काफी देरी हो रही है।
  • चीन की रणनीतिक दृढ़ स्थिति: बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और बुनियादी ढाँचा कूटनीति के माध्यम से दक्षिण एशिया में चीन की बढ़ती उपस्थिति भारत के क्षेत्रीय नेतृत्व के लिये एक रणनीतिक प्रतिबल है, जो भारत के एकीकरण एजेंडे को जटिल बना रही है।

आगे की राह

  • क्षेत्रीय संस्थाओं में सुधार और पुन: प्रवर्तित किया जाना: भारत को नियमित शिखर सम्मेलनों, अधिक वित्त पोषण और कार्यात्मक सचिवालयों के माध्यम से BIMSTEC और IORA के संस्थागत पुनरोद्धार का नेतृत्व करना चाहिये और साथ ही व्यापार, ऊर्जा, आपदा प्रबंधन और डिजिटल कनेक्टिविटी में क्षेत्र-विशिष्ट सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये।
  • उप-क्षेत्रीय साझेदारी का सुदृढ़ीकरण: भारत को BBIN जैसे प्लेटफॉर्मों के माध्यम से साझेदारी में विस्तार करना चाहिये और विशेषकर SAARC में आम सहमति का अभाव होने की स्थिति में स्वास्थ्य, शिक्षा एवं हरित ऊर्जा पर केंद्रित कार्यात्मक मिनीलेटरल को बढ़ावा देना चाहिये।
  • क्षेत्रीय व्यापार और कनेक्टिविटी में सुधार: सरलीकृत सीमा शुल्क, साझा मानकों और एकीकृत परिवहन और डिजिटल बुनियादी ढाँचे के माध्यम से व्यापार को बढ़ाने से आर्थिक निर्भरता और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा मिल सकता है।
  • समावेशी सहभागिता को बढ़ावा देना: बाह्य शक्तियों के बढ़ते प्रभाव का सामना करने के लिये, भारत को पारदर्शी विकास सहायता, सांस्कृतिक कूटनीति और नेबरहुड फर्स्ट नीति के तहत जन-केंद्रित पहलों के साथ नेतृत्व करना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने तथा अपने राष्ट्रीय और पड़ोसी देशों के हितों की रक्षा के लिये रणनीतिक गठबंधन बनाने में भारत की उभरती भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत की “लुक ईस्ट पॉलिसी” के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2011) 

  1. भारत का उद्देश्य पूर्वी एशियाई मामलों में स्वयं को एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करना है। 
  2. भारत का उद्देश्य शीत युद्ध की समाप्ति से उत्पन्न शून्यता को भरना है। 
  3. भारत का उद्देश्य दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया में अपने पड़ोसियों के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को पुनर्स्थापित करना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 1 और 3 
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d)


मेन्स: 

प्रश्न. "चीन अपने आर्थिक संबंधों और सकारात्मक व्यापार अधिशेष को एशिया में संभाव्य सैनिक शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिये उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है"। इस कथन के प्रकाश में उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव की चर्चा कीजिये। (2017)

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