भारत में लाभोन्मुख अनुसंधान तथा अनुसंधान एवं विकास संबंधी चुनौतियाँ | 05 Dec 2024

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक नवाचार सूचकांक 2024, लार्ज लैंग्वेज मॉडल, चैट GPT, विश्व बौद्धिक संपदा संकेतक 2024, हरित हाइड्रोजन, राष्ट्रीय क्वांटम मिशन, 5G तकनीक, विज्ञान धारा योजना, राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (RVP)

मेन्स के लिये:

भारत के अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र में चुनौतियाँ, वैज्ञानिक अनुसंधान का व्यावसायीकरण, भारत में अनुसंधान और विकास की स्थिति 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

मई 2024 में गूगल डीपमाइंड (Google DeepMind) ने प्रोटीन संरचनाओं के पूर्वानुमान हेतु एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI) टूल, अल्फाफोल्ड 3 जारी किया। अपने पिछले ओपन-सोर्स संस्करणों के विपरीत, अल्फाफोल्ड 3 के सभी कोड को रोक दिया गया था, जिससे वैज्ञानिकों को इसकी कार्यप्रणाली को पूरी तरह से समझने या इसके परिणामों को दोहराने से रोका जा सका।

  • इस निर्णय से वैज्ञानिक अनुसंधान में लाभोन्मुख वित्तपोषण (लाभ चाहने वाले निवेशक) के बढ़ते प्रभाव, पारदर्शिता और बौद्धिक संपदा संरक्षण के बीच तनाव उत्पन्न होने तथा भारत के अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र में चुनौतियों पर प्रकाश डालने के संबंध में चर्चा शुरू हो गई है।

व्यावसायीकरण वैज्ञानिक अनुसंधान को कैसे प्रभावित करता है?

  • सकारात्मक प्रभाव:
    • वित्तपोषण और संसाधन: लाभ-प्राप्त करने वाली कंपनियाँ अनुसंधान को वित्तपोषण प्रदान करती हैं, उन्नत सुविधाओं तक पहुँच प्रदान कर नवाचार को बढ़ावा देती हैं, तथा भारत बायोटेक के इंट्रानेजल वैक्सीन जैसे फार्मास्युटिकल परीक्षणों में देखा गया है।
    • तीव्र विकास: व्यावसायिक प्रोत्साहन से प्रौद्योगिकी विकास में तेज़ी आती है, तथा शिक्षा जगत और उद्योग जगत के बीच सहयोग से CRISPR जैसी जीन संपादन प्रौद्योगिकियों में सफलता मिलती है, जिससे चिकित्सा एवं कृषि में प्रगति होती है।
    • व्यावहारिक अनुप्रयोग: वाणिज्यिक समर्थन के साथ अनुसंधान अक्सर वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों पर केंद्रित होता है, जिससे चिकित्सा संबंधी सफलता या  चैट GPT जैसे नए लार्ज लैंग्वेज मॉडल (large language models- LLM) के विकास जैसे ठोस लाभ प्राप्त होते हैं।
  • नकारात्मक प्रभाव:
    • अनुसंधान तक पहुँच में वैश्विक असमानता: समृद्ध संस्थानों को प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त प्राप्त है, जबकि कम वित्तपोषित शोधकर्त्ताओं को नवाचार संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
      • सीमित ओपन-सोर्स उपकरण कम संसाधन वाले परिवेश में पहुँच में बाधा डालते हैं।
    • शिक्षा जगत और उद्योग जगत के बीच अस्पष्ट रेखाएँ: निगमों तथा विश्वविद्यालयों के बीच बढ़ते सहयोग खुलेपन एवं स्वतंत्रता के पारंपरिक शैक्षणिक मानदंडों को चुनौती देते हैं।
      • कंपनियाँ अक्सर प्रतिबंधित खोजों को वैध बनाने के लिये अकादमिक मंचों का उपयोग करती हैं, जिससे निष्पक्षता तथा नैतिक प्रथाओं के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • विश्वास और वैज्ञानिक अखंडता: कार्यप्रणाली का ओपन साझाकरण मज़बूत परीक्षण तथा वैज्ञानिक परिणामों में विश्वास सुनिश्चित करता है, जबकि विवरण को रोके रखने से एक "ब्लैक बॉक्स" बनता है, जो वैज्ञानिक प्रगति की विश्वसनीयता और अपनाने से समझौता कर सकता है।
    • नैतिक चिंताएँ: वाणिज्यिक दबाव कभी-कभी अनैतिक प्रथाओं को बढ़ावा दे सकता हैं, जैसे बौद्धिक संपदा (Intellectual Property- IP) पेटेंट का शोषण करना, सार्वजनिक भलाई की अपेक्षा में लाभ को प्राथमिकता देना या अनुसंधान की अखंडता से समझौता करना।

वाणिज्यिक हितों के साथ पारदर्शिता को किस प्रकार संतुलित किया जा सकता है?

  • एंटरप्राइज़ संस्करणों के साथ ओपन-सोर्स मॉडल: शोधकर्त्ता उद्योग उपयोग हेतु उन्नत अनुप्रयोगों का व्यावसायीकरण करने के क्रम में मूलभूत खोजों को खुले तौर पर साझा कर सकते हैं (उदाहरण के लिये, मालिकाना हक को ध्यान में रखते हुए एल्गोरिदम को खुले तौर पर साझा किया जा सकता है)।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने से शोधकर्त्ताओं को उद्योग संसाधनों का लाभ उठाते हुए पारदर्शिता बनाए रखने में मदद मिलती है, जिसमें कंपनियाँ व्यापक शोध हेतु अप्रतिबंधित वित्तपोषण उपलब्ध कराने के साथ विशिष्ट वाणिज्यिक परियोजनाओं के लिये बौद्धिक संपदा सुरक्षा सुरक्षित रखने पर ध्यान केंद्रित करती हों।
  • उत्प्रेरक के रूप में सरकारी वित्तपोषण: सरकारी वित्तपोषण में वृद्धि के कारण निजी प्रायोजकों पर निर्भरता कम होने से अधिक पारदर्शी अनुसंधान संभव हो पाता है।
  • IP ​​कानून और गोपनीयता: वाणिज्यिक संरक्षण एवं वैज्ञानिक खुलेपन के बीच संतुलन स्थापित करने के लिये IP कानूनों में सुधार करने से नवाचार को सक्षम बनाया जा सकता है।
    • आवश्यक वाणिज्यिक उत्पादों (जैसे, कोविड-19 टीके) के लिये सब्सिडी से भी बौद्धिक संपदा संरक्षण को बनाए रखते हुए इस क्षेत्र में सामर्थ्य सुनिश्चित किया जा सकता है।
    • नीति निर्माताओं को बौद्धिक संपदा अधिकारों में खुलेपन को संतुलित करने के साथ पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिये दिशानिर्देश स्थापित करने चाहिये।
  • पारदर्शिता के लिये पुरस्कार: पारदर्शिता को प्राथमिकता देने वाले वैज्ञानिकों को संस्थागत समर्थन एवं वित्तपोषण मिलना चाहिये।

भारत में अनुसंधान एवं विकास (R&D) का वर्तमान परिदृश्य क्या है?

  • वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII): 133 अर्थव्यवस्थाओं के बीच GII 2024 में भारत का 39वाँ स्थान जैव प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष अन्वेषण, क्वांटम प्रौद्योगिकी एवं नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास के संदर्भ में देश की बढ़ती प्राथमिकता को रेखांकित करता है।
  • विश्व बौद्धिक संपदा संकेतक (WIPI): WIPI 2024 के अनुसार, भारत पेटेंट के लिये आवेदन करने में 6वें स्थान पर है, जो नवाचार में प्रगति को दर्शाता है।
  • वैज्ञानिक प्रकाशन: वर्ष 2022 तक भारत वैज्ञानिक प्रकाशनों एवं स्कॉलर आउटपुट में विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है (भारत का अनुसंधान आउटपुट वर्ष 2017 से 2022 के बीच 54% बढ़ा है), जो वैश्विक अनुसंधान में इसकी बढ़ती उपस्थिति को दर्शाता है।
  • जैव प्रौद्योगिकी: भारत ने कोवैक्सिन जैसे स्वदेशी टीकों के विकास के साथ कोविड-19 महामारी के दौरान अपनी अनुसंधान एवं विकास क्षमता का प्रदर्शन किया है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा (विशेष रूप से सौर और हरित हाइड्रोजन) प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है, जिसमें कायमकुलम फ्लोटिंग सौर ऊर्जा संयंत्र जैसी अग्रणी परियोजनाएँ शामिल हैं।
  • क्वांटम और सुपरकंप्यूटिंग प्रौद्योगिकियाँ: भारत राष्ट्रीय क्वांटम मिशन और PARAM सिद्धि-AI सुपरकंप्यूटर के विकास जैसी पहलों के साथ क्वांटम प्रौद्योगिकियों एवं सुपरकंप्यूटिंग के क्षेत्र में भी प्रगति कर रहा है।
  • दूरसंचार: भारत की अपनी 5G प्रौद्योगिकी (5Gi) एवं भारत 6G परियोजना, भारत को दूरसंचार अनुसंधान में अग्रणी के रूप में स्थापित कर रही है।

भारत के अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • कम बजट आवंटन: भारत में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 1% से भी कम हिस्सा (जो अमेरिका (2.8%) और चीन (2.1%) जैसे वैश्विक औसत से बहुत कम है) अनुसंधान एवं विकास पर खर्च होता है। इससे अनुसंधान अवसंरचना के विकास में बाधा आती है तथा उच्च प्रभाव वाली अनुसंधान क्षमता सीमित हो जाती है।
  • समावेशिता के मुद्दे: सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं और लैंगिक असमानताओं के कारण भारत की अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों में समावेशिता का अभाव रहा है। 
    • उदाहरण के लिये विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है तथा उन्हें अनुसंधान के अवसरों तक पहुँचने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। 
      • इससे न केवल प्रतिभा पूल सीमित होता है बल्कि अनुसंधान एवं नवाचार में बाधा आती है।
  • शिक्षा प्रणाली: भारत की शिक्षा प्रणाली में अनुसंधान एवं विकास की प्रगति कम Ph.D नामांकन और अपर्याप्त अनुसंधान परियोजना निगरानी के कारण बाधित है।
    • रट कर सिखने की शिक्षा (Rote Learning) पर ध्यान तथा शैक्षणिक एवं उद्योग की आवश्यकताओं के बीच विसंगति, अनुसंधान कौशल के विकास में बाधा डालती है।
  • गुणवत्ता बनाम मात्रा: भारत में कई शोध पत्र प्रकाशित होते हैं, लेकिन कम उद्धरण दर के कारण उनकी गुणवत्ता चिंता का विषय है।
  • प्रतिभा पलायन: भारत एक बड़े पैमाने पर "प्रतिभा पलायन (Brain Drain)" का सामना कर रहा है, जहाँ शीर्ष शोधकर्त्ता बेहतर अवसरों की तलाश में विदेश जा रहे हैं। 
    • भारत में प्रति दस लाख लोगों पर 216.2 शोधकर्त्ता हैं, जो चीन (1200) और अमेरिका (4300) से बहुत कम है, क्योंकि यहाँ कम वेतन, सीमित वित्तपोषण और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे के कारण अनुसंधान एवं विकास संबंधी प्रतिस्पर्द्धा में बाधा आ रही है।
  • अनुसंधान को प्रौद्योगिकी में परिवर्तित करना: भारत मौलिक अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करने, अविकसित उद्योग-अकादमिक संबंधों और अकुशल प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रणालियों के कारण मौलिक अनुसंधान को सफल प्रौद्योगिकियों में परिवर्तित करने के लिये संघर्ष करता है।

अनुसंधान एवं विकास से संबंधित भारत की पहल

आगे की राह:

  • वित्तीय सहायता: निजी क्षेत्र के निवेश, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), कर प्रोत्साहन और नवाचार समूहों की स्थापना के माध्यम से शैक्षिक संस्थानों में अनुसंधान के लिये स्थायी वित्तपोषण को प्रोत्साहित करना।
  • प्रतिभा पलायन की समस्या का समाधान: उत्कृष्ट कर्मियों को बनाए रखने के लिये "प्रतिकूल प्रतिभा पलायन/रिवर्स ब्रेन ड्रेन" पहल लागू करना तथा प्रतिस्पर्धात्मक रूप से भुगतान करना।
  • शिक्षा: बुनियादी और अनुप्रयुक्त अनुसंधान में निवेश बढ़ाने के लिये सरकारी धन का पुनः आवंटन, साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के उचित कार्यान्वयन से उच्च शिक्षा में अनुसंधान एवं नवाचार के लिये अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा मिलेगा।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार और नवप्रवर्तन संस्कृति में सुधार: उद्योग-अकादमिक संबंधों के कमज़ोर होने के कारण भारत के पेटेंट के उपयोग में कमी आती है। 
    • बौद्धिक संपदा अधिकार और विश्वविद्यालयों में अनुसंधान को बढ़ावा देकर अनुसंधान और व्यावहारिक अनुप्रयोगों के बीच के अंतर को कम किया जा सकता है।
  • लैंगिक समावेशिता को बढ़ावा देना: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (STEM) में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये विज्ञान ज्योति योजना, तथा पोषण के माध्यम से ज्ञान सहभागिता अनुसंधान उन्नयन (KIRAN) जैसे कार्यक्रमों एवं नीतियों को लागू करना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: अनुसंधान एवं विकास में भारत की प्रगति के आलोक में वैज्ञानिक अनुसंधान में सार्वजानिक कल्याण के साथ व्यावसायिक हितों को संतुलित करने के अवसरों और चुनौतियों के बारे में चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न.1 राष्ट्रीय नवप्रवर्तक प्रतिष्ठान-भारत (नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन इंडिया- एन.आई.एफ.) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)

  1. NIF केंद्र सरकार के अधीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक स्वायत्त संस्था है। 
  2. NIF अत्यंत उन्नत विदेशी वैज्ञानिक संस्थाओं के सहयोग से भारत की प्रमुख (प्रीमियर) वैज्ञानिक संस्थाओं में अत्यंत उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान को मज़बूत करने की एक पहल है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)


प्रश्न. 2 निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिये शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया जाता है? (2009)

(a) साहित्य 
(b) प्रदर्शन  
(c) विज्ञान 
(d) समाज सेवा

उत्तर: (c)