भारत में भ्रामक विज्ञापनों का विनियमन | 15 May 2024
प्रिलिम्स के लिये:भारत का सर्वोच्च न्यायालय, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019, भारतीय विज्ञापन मानक परिषद मेन्स के लिये:उपभोक्ता अधिकार और अनुचित व्यापार प्रथाओं की रोकथाम, भ्रामक विज्ञापनों और समर्थनों की रोकथाम, विज्ञापन नियम एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
उपभोक्ताओं को भ्रामक विज्ञापनों से बचाने के लिये भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विज्ञापनदाताओं को मीडिया में उत्पादों का प्रचार करने से पहले स्व-घोषणा प्रस्तुत करने के निर्देश जारी किये हैं।
- आगे के घटनाक्रम में केंद्र सरकार ने आयुष मंत्रालय के पत्र को वापस ले लिया है, जिसमें औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 170 को तत्काल प्रभाव से "लोपित" किया गया था।
नोट:
- नियम 170 लाइसेंसिंग अधिकारियों की मंज़ूरी के बिना आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी दवाओं के विज्ञापनों पर रोक लगाता है।
सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख निर्देश क्या हैं?
- स्व-घोषणा प्रस्तुत करना:
- मीडिया में उत्पादों का प्रचार करने से पूर्व विज्ञापनदाताओं को स्व-घोषणाएँ प्रस्तुत करनी होंगी।
- उपभोक्ताओं को गुमराह करने से रोकने के लिये विज्ञापनदाता अब यह घोषित करने के लिये बाध्य हैं कि उनके विज्ञापन उनके उत्पादों के बारे में भ्रामक या गलत जानकारी नहीं देते हैं।
- विज्ञापनदाताओं के लिये ऑनलाइन पोर्टल:
- TV विज्ञापन चलाने के इच्छुक विज्ञापनदाताओं को 'ब्रॉडकास्ट सेवा' पोर्टल पर घोषणाएँ अपलोड करनी होंगी, जो सूचना और प्रसारण मंत्रालय से प्रसारण-संबंधी गतिविधियों के लिये अनुमति, पंजीकरण एवं लाइसेंस का अनुरोध करने के लिये हितधारकों के लिये वन-स्टॉप सुविधा के रूप में कार्य करता है।
- प्रिंट विज्ञापनदाताओं के लिये एक समान पोर्टल स्थापित किया जाएगा।
- TV विज्ञापन चलाने के इच्छुक विज्ञापनदाताओं को 'ब्रॉडकास्ट सेवा' पोर्टल पर घोषणाएँ अपलोड करनी होंगी, जो सूचना और प्रसारण मंत्रालय से प्रसारण-संबंधी गतिविधियों के लिये अनुमति, पंजीकरण एवं लाइसेंस का अनुरोध करने के लिये हितधारकों के लिये वन-स्टॉप सुविधा के रूप में कार्य करता है।
- समर्थनकर्त्ताओं की ज़िम्मेदारी:
- सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, मशहूर हस्तियों और उत्पादों का समर्थन करने वाली सार्वजनिक हस्तियों को ज़िम्मेदारी से काम करना चाहिये।
- भ्रामक विज्ञापन से बचने के लिये विज्ञापनदाताओं को उन उत्पादों के बारे में पर्याप्त जानकारी होनी चाहिये, जिनका वे प्रचार करते हैं।
- सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, मशहूर हस्तियों और उत्पादों का समर्थन करने वाली सार्वजनिक हस्तियों को ज़िम्मेदारी से काम करना चाहिये।
- उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करना:
- उपभोक्ताओं के लिये भ्रामक विज्ञापनों की रिपोर्ट करने के लिये एक पारदर्शी प्रक्रिया स्थापित करना और सुनिश्चित करना कि उन्हें शिकायत की स्थिति एवं परिणामों पर अपडेट प्राप्त हो।
भ्रामक विज्ञापनों के हाल ही में कौन-से मामले सामने आए हैं?
- भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) की विज्ञापन निगरानी समिति ने पिछले छह महीनों में खाद्य व्यवसाय ऑपरेटरों (FBO) द्वारा भ्रामक दावों के 32 मामलों की पहचान की, जिससे ऐसे उल्लंघनों की कुल संख्या 170 हो गई।
- अपराधियों की विविधता: उल्लंघनकर्त्ता विभिन्न उत्पाद श्रेणियों तक अपनी पहुँच बनाए हुए हैं, जिनमें स्वास्थ्य पूरक, जैविक उत्पाद और स्टेपल (मूलभूत भोज्य पदार्थ) शामिल हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में भ्रामक विज्ञापन प्रसारित करने के लिये पतंजलि आयुर्वेद को फटकार लगाई, जिसके कारण इसकी मार्केटिंग गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने पतंजलि पर एलोपैथिक चिकित्सा को बदनाम करने और कोविड-19 के दौरान टीकों के बारे में गलत जानकारी फैलाने का आरोप लगाया।
- आरोपों के कारण ओषधि एवं चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के उल्लंघन का हवाला देते हुए कानूनी बहस हुई।
भ्रामक विज्ञापन नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन कैसे करते हैं?
- सत्यता का उल्लंघन: ईमानदारी और सच्चाई आवश्यक नैतिक सिद्धांत हैं, जिन्हें विज्ञापन सहित सभी व्यावसायिक प्रथाओं का मार्गदर्शन करना चाहिये।
- ये विज्ञापन उपभोक्ताओं की धारणाओं में हेरफेर करते हैं और व्यावसायिक लाभ के लिये उनकी कमज़ोरियों का लाभ उठाते हैं; वे व्यक्तियों को गलत आधार पर खरीदारी संबंधी निर्णय लेने के लिये प्रेरित करते हैं।
- निष्पक्षता और न्याय: भ्रामक विज्ञापन एक असमान क्षेत्र बनाते हैं, जिससे उन कंपनियों को अनुचित लाभ मिलता है जो नैतिक विज्ञापन को प्राथमिकता देने वाली कंपनियों की तुलना में भ्रामक गतिविधियों में संलग्न होती हैं।
- यह बाज़ार में निष्पक्षता और न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह ईमानदार प्रतिस्पर्धियों को हानि पहुँचाता है तथा उपभोक्ता के विश्वास को कमज़ोर करता है।
- उदाहरण: कंपनियाँ टिकाऊ उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये झूठे पर्यावरणीय दावे (ग्रीनवॉशिंग) कर रही हैं, जबकि उनके प्रतिस्पर्द्धी अपने उत्पादक के पर्यावरणीय प्रभाव का खुलासा करते हैं।
- उपभोक्ता हानि: भ्रामक विज्ञापनों से उन उपभोक्ताओं को वित्तीय हानि हो सकती है जो झूठे दावों के आधार पर उत्पाद या सेवाएँ खरीदते हैं, जिसके परिणामस्वरूप असंतोष उत्पन्न होता है।
- यदि विज्ञापित उत्पाद अथवा सेवाएँ संभावित रूप से हानिकारक या अप्रभावी हैं तो यह उपभोक्ताओं के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को भी हानि पहुँचा सकता है।
- विश्वास में कमी: भ्रामक विज्ञापनों के बार-बार संपर्क में आने से उत्पादों, बॉण्डों और विज्ञापनों में विश्वास कम हो जाता है, जिससे व्यापार के साथ-साथ समाज में अखंडता का नैतिक सिद्धांत भी कमज़ोर हो जाता है।
- जब उपभोक्ता ठगा हुआ महसूस करते हैं, तो उनका बाज़ार की अखंडता पर से विश्वास उठ जाता है, क्योंकि कथनी और करनी में अंतर स्पष्ट होने लगता है।
भारत में भ्रामक विज्ञापन कैसे नियंत्रित होते हैं?
- भ्रामक विज्ञापन की परिभाषा:
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2 (28) के तहत एक भ्रामक विज्ञापन को ऐसे किसी भी विज्ञापन के रूप में परिभाषित किया गया है, जो:
- किसी उत्पाद या सेवा का गलत विवरण प्रदान करता है;
- उपभोक्ताओं को गुमराह करने वाली झूठी गारंटी प्रदान करता है;
- व्यक्त प्रतिनिधित्व के माध्यम से एक अनुचित व्यापार अभ्यास;
- जानबूझकर उत्पाद के बारे में आवश्यक जानकारी प्रदान करता है।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2 (28) के तहत एक भ्रामक विज्ञापन को ऐसे किसी भी विज्ञापन के रूप में परिभाषित किया गया है, जो:
- केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण:
- केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA), उपभोक्ता मामले विभाग के अंतर्गत कार्य करता है।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 10 के तहत स्थापित, यह उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन और अनुचित व्यापार प्रथाओं से संबंधित मामलों को विनियमित करता है।
- यह अधिनियम CCPA को झूठे या भ्रामक विज्ञापनों को रोकने और उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का अधिकार देता है।
- दिशा-निर्देशों का प्रवर्तन:
- CCPA 'भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम और भ्रामक विज्ञापनों के लिये समर्थन हेतु दिशा-निर्देश, 2022' लागू करता है, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अनुसार जारी किये गए थे।
- दिशा-निर्देश का उद्देश्य:
- दिशानिर्देश यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि उपभोक्ताओं को अप्रमाणित दावों, अतिरंजित वादों, गलत सूचना और झूठे दावों से मूर्ख नहीं बनाया जा रहा है।
- ऐसे विज्ञापन उपभोक्ताओं के विभिन्न अधिकारों जैसे सूचना का अधिकार, चुनने का अधिकार तथा संभावित असुरक्षित उत्पादों एवं सेवाओं के विरुद्ध सुरक्षा के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
- दिशा-निर्देश के प्रावधान:
- दिशानिर्देश "चारा विज्ञापन", "सरोगेट विज्ञापन" तथा "निःशुल्क दावा विज्ञापन" को परिभाषित करते हैं।
- वे विज्ञापनों में बच्चों को अतिरंजित या अप्रमाणित दावों से बचाने के लिये प्रावधान भी रखते हैं।
- बच्चों को लक्षित करने वाले विज्ञापनों में उन उत्पादों के लिये खेल, संगीत या सिनेमा से जुड़ी हस्तियों को शामिल करने पर प्रतिबंध है, जिनके लिये स्वास्थ्य चेतावनी की आवश्यकता होती है अथवा जिन्हें बच्चों द्वारा नहीं खरीदा जा सकता है।
- विज्ञापनों में अस्वीकरणों में महत्त्वपूर्ण जानकारी नहीं छिपाई जानी चाहिये या भ्रामक दावों को सही करने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिये।
- दिशानिर्देश विज्ञापनों में अधिक पारदर्शिता एवं स्पष्टता लाने के लिये निर्माताओं, सेवा प्रदाताओं, विज्ञापनदाताओं के साथ ही विज्ञापन एजेंसियों के कर्त्तव्यों को भी रेखांकित करते हैं।
- इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को तथ्यों के आधार पर सूचित निर्णय लेने में सहायता प्रदान करना है।
- उल्लंघन होने पर ज़ुर्माना:
- CCPA भ्रामक विज्ञापनों के लिये विनिर्माताओं, विज्ञापनदाताओं तथा समर्थनकर्त्ताओं पर 10 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना लगा सकता है।
- इसके बाद उल्लंघन करने पर ज़ुर्माना 50 लाख रुपए तक का हो सकता है।
- प्राधिकरण किसी भ्रामक विज्ञापन के समर्थनकर्त्ता को 1 वर्ष तक के लिये कोई भी समर्थन करने से प्रतिबंधित कर सकता है और साथ ही बाद के उल्लंघनों के लिये निषेध को 3 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- CCPA भ्रामक विज्ञापनों के लिये विनिर्माताओं, विज्ञापनदाताओं तथा समर्थनकर्त्ताओं पर 10 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना लगा सकता है।
- भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI):
- भ्रामक विज्ञापन खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा-53 के अंतर्गत आता है, जो इसे दंडनीय प्रकृति का बनाता है। FSSAI विज्ञापनों को सच्चा, स्पष्ट और वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित होना अनिवार्य करता है।
- FSSAI खाद्य सुरक्षा और मानक (विज्ञापन एवं दावे) विनियम, 2018 का उपयोग करता है जो विशेष रूप से भोजन (संबंधित उत्पादों) से संबंधित है, जबकि CCPA के नियम वस्तुओं, उत्पादों एवं सेवाओं को कवर करते हैं।
- विज्ञापन को नियंत्रित करने वाले विधान:
- भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI):
- यह भारत में विज्ञापन नैतिकता लागू करने के लिये एक स्व-विनियमित तंत्र के रूप में स्थापित एक गैर-वैधानिक न्यायाधिकरण है।
- यह अपनी विज्ञापन संहिता के आधार पर विज्ञापनों का मूल्यांकन करता है, जिसे ASCI कोड भी कहा जाता है, जो भारत में देखे जाने वाले विज्ञापनों पर लागू होता है, भले ही वे भारत से बाहर के हों और भारतीय उपभोक्ताओं के लिये निर्देशित हों।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986:
- उपभोक्ताओं को वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा एवं कीमत के बारे में सूचित होने का अधिकार देता है।
- धारा 2(R) अनुचित व्यापार प्रथाओं की परिभाषा के तहत झूठे विज्ञापनों को शामिल करती है।
- भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध निवारण प्रदान करता है।
- उपभोक्ताओं को वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा एवं कीमत के बारे में सूचित होने का अधिकार देता है।
- केबल टेलीविज़न नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 और केबल टेलीविज़न संशोधन अधिनियम 2006:
- उन विज्ञापनों के प्रसारण पर रोक लगाता है जो निर्धारित विज्ञापन कोड के अनुरूप नहीं हैं।
- यह सुनिश्चित करता है कि विज्ञापन नैतिकता, शालीनता या धार्मिक संवेदनशीलता को ठेस न पहुँचाएँ।
- तंबाकू विज्ञापन पर प्रतिबंध:
- यह सभी प्रकार के मीडिया विज्ञापनों के लिये तंबाकू उत्पादों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाता है।
- सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, 2003 के तहत लागू।
- औषधि और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 तथा औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940:
- यह दवा विज्ञापनों को नियंत्रित करता है। दवाओं के विज्ञापन के लिये परीक्षण रिपोर्ट के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
- उल्लंघन करने पर दिये जाने वाले दंड में ज़ुर्माना और कारावास शामिल हैं।
- यह दवा विज्ञापनों को नियंत्रित करता है। दवाओं के विज्ञापन के लिये परीक्षण रिपोर्ट के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
- प्रसवपूर्व निदान तकनीक का विनियमन:
- गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के तहत प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण से संबंधित विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाता है।
- अल्पवय व्यक्ति (अपहानिकर प्रकाशन) अधिनियम, 1956 के तहत हानिकारक प्रकाशनों का विज्ञापन करना दंडनीय है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत विज्ञापनों की आपराधिकता:
- भारतीय दंड संहिता (IPC) अश्लील, मानहानिकारक या भड़काऊ विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाती है।
- हिंसा, आतंकवाद या अपराध भड़काने से संबंधित अपराध IPC प्रावधानों के तहत अवैध और दंडनीय हैं।
- भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI):
उपभोक्ता संरक्षण के लिये प्रमुख पहलें:
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में विज्ञापन प्रथाओं को नियंत्रित करने वाले विधायी ढाँचे का वर्णन कीजिये। विज्ञापन में नैतिक मानकों को बनाए रखने में ये कानून और संस्थान कैसे योगदान देते हैं? |
और पढ़ें: भ्रामक विज्ञापन पर पतंजलि मामला
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: भारत में कानून के प्रावधानों के तहत 'उपभोक्ताओं' के अधिकारों/विशेषाधिकारों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: c मेन्स:प्रश्न. 'सामाजिक संजाल स्थल' (Social Networking Sites) क्या होती हैं और इन स्थलों से क्या सुरक्षा उलझनें प्रस्तुत होती हैं? (2013) |