भारतीय राजव्यवस्था
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन
- 18 Feb 2025
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प्रारंभिक परीक्षा:राष्ट्रपति शासन, अनुच्छेद 356, कुकी-ज़ो-मार और मैतेई, अनुच्छेद 355, राज्यपाल, साधारण बहुमत, 44वाँ संशोधन अधिनियम 1978, राष्ट्रीय आपातकाल, निर्वाचन आयोग, राज्य समेकित निधि मुख्य परीक्षा:राष्ट्रपति शासन और न्यायिक व्याख्या से संबंधित संवैधानिक प्रावधान। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
केंद्र ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू किया है साथ ही मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद राज्य विधानसभा को भंग कर दिया है।
मणिपुर में हो रहे संघर्ष को सुलझाने में राष्ट्रपति शासन किस प्रकार सहायक हो सकता है?
- प्रशासन की तटस्थता: केंद्रीय प्रशासन जातीय हिंसा से निपटने में पक्षपातपूर्ण रवैये के आरोपों को हटा देगा, तथा कुकी-ज़ो-मार और मैतेई दोनों समुदायों को संरक्षित करेगा।
- राज्यपाल की निगरानी में केंद्रीय बल जातिगत हिंसा को रोक सकते हैं तथा राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रख सकते हैं।
- चुनावी स्थिरता: शासन के क्षरण को रोकने के लिये सत्तारूढ़ दल के आंतरिक विवादों को समाप्त करती है।
- पुनर्वास: 20 माह से अधिक समय से शिविरों में रह रहे 60,000 विस्थापित लोगों के लिये उचित राहत और पुनर्वास सुनिश्चित करना।
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राष्ट्रपति शासन क्या है?
- राष्ट्रपति शासन से तात्पर्य राज्य सरकार और उसकी विधानसभा को भंग करने से है, जिससे राज्य केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष नियंत्रण में आ जाता है।
- यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत लगाया गया है।
- संवैधानिक आधार: अनुच्छेद 355 केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने का अधिकार देता है कि प्रत्येक राज्य संविधान के अनुसार कार्य करे।
- यदि कोई राज्य सरकार संविधान के अनुसार कार्य करने में विफल रहती है तो केंद्र अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन लगाकर हस्तक्षेप कर सकता है।
- राष्ट्रपति शासन को राज्य आपातकाल या संवैधानिक आपातकाल के नाम से भी जाना जाता है।
उद्घोषणा के आधार:
- अनुच्छेद 356 : यदि राष्ट्रपति को लगता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि राज्य सरकार संविधान के अनुसार कार्य नहीं कर सकती तो वह राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं। ऐसा निम्न आधारों पर किया जा सकता है:
- राज्यपाल की सिफारिश पर
- राष्ट्रपति के विवेक पर, राज्यपाल की रिपोर्ट के बिना भी।
- अनुच्छेद 365: यदि कोई राज्य केंद्र के निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है, तो राष्ट्रपति यह घोषणा कर सकता है कि उसकी सरकार संवैधानिक रूप से कार्य नहीं कर सकती।
- संसदीय अनुमोदन: राष्ट्रपति शासन की घोषणा को दो माह के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिये।
- यदि राष्ट्रपति शासन की घोषणा लोकसभा के भंग होने पर की जाती है, या यदि लोकसभा बिना किसी अनुमोदन के दो महीने के भीतर भंग हो जाती है, तो यह लोकसभा के पुनः आहूत होने के 30 दिन बाद तक वैध रहती है, बशर्ते कि इस अवधि के दौरान राज्य सभा इसे अनुमोदित कर दे।
- राष्ट्रपति शासन को मंजूरी देने या बढ़ाने के लिये संसद में साधारण बहुमत (उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का बहुमत) की आवश्यकता होती है।
- अवधि: राष्ट्रपति शासन प्रारंभ में छह महीने तक रहता है, जिसे हर छह महीने में संसद की मंजूरी से 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है।
- 44वाँ संशोधन अधिनियम, 1978 राष्ट्रपति शासन को एक वर्ष से अधिक बढ़ाने की अनुमति केवल तभी देता है जब:
- राष्ट्रीय आपातकाल पूरे भारत में या राज्य के किसी भी हिस्से में लागू किया जा सकता है।
- चुनाव आयोग द्वारा प्रमाणित किया गया है कि कठिनाइयों के कारण राज्य विधानसभा के चुनाव नहीं कराए जा सकते।
- राष्ट्रपति शासन को 3 वर्ष से अधिक अवधि के लिये बढ़ाने हेतु संविधान संशोधन की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये 67वाँ संशोधन अधिनियम, 1990 और 68वाँ संशोधन अधिनियम, 1991 पंजाब में उग्रवाद के दौरान राष्ट्रपति शासन को 3 वर्ष से अधिक अवधि हेतु बढ़ाने के लिये लागू किया गया था।
- प्रभाव: राष्ट्रपति शासन लागू होने पर राष्ट्रपति को असाधारण शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं।
- कार्यकारी शक्तियाँ: राज्य के कार्यों का कार्यान्वयन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता हैं। राज्यपाल उनकी ओर से प्रशासन का कार्य करते हैं, तथा मुख्य सचिव और नियुक्त सलाहकार उनकी सहायता करते हैं।
- विधायी शक्तियाँ: राज्य विधानमंडल को निलंबित या भंग कर दिया जाता है, तथा संसद अपनी शक्तियों का प्रयोग करती है या राष्ट्रपति या किसी निर्दिष्ट निकाय को कानून बनाने का अधिकार सौंपती है।
- राष्ट्रपति शासन के दौरान बनाए गए कानून तब तक लागू रहते हैं जब तक कि राज्य विधानमंडल द्वारा उन्हें निरस्त नहीं कर दिया जाता।
- वित्तीय नियंत्रण: राष्ट्रपति राज्य समेकित निधि से व्यय को अधिकृत कर सकता है जब तक कि उसे संसद द्वारा अनुमोदित न कर दिया जाए।
- निरसन: राष्ट्रपति, संसदीय अनुमोदन के बिना भी किसी भी समय राष्ट्रपति शासन को निरस्त कर सकते हैं।
राष्ट्रपति शासन लगाने पर सर्वोच्च न्यायालय का रुख क्या है?
- एस.आर. बोम्मई केस, 1994: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि अनुच्छेद 356 न्यायिक समीक्षा के अधीन है, और राज्य सरकार की बर्खास्तगी राज्यपाल की राय पर नहीं, बल्कि फ्लोर टेस्ट के आधार पर होनी चाहिये।
- सर्बानंद सोनोवाल केस, 2005: अनुच्छेद 355 का दायरा बढ़ा दिया गया, जिससे संघ को राज्य शासन और संवैधानिक सिद्धांतों को बनाए रखने के लिये व्यापक कार्रवाई करने में सक्षम बनाया गया।
- रामेश्वर प्रसाद केस, 2006: सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार विधानसभा को बिना शक्ति परीक्षण के भंग करने की निंदा की तथा अनुच्छेद 356 के राजनीतिक दुरुपयोग की आलोचना की।
- अनुच्छेद 356 का उपयोग दलबदल जैसी सामाजिक बुराइयों से निपटने के लिए नहीं किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 361 के तहत अभिरक्षा न्यायालय को कार्यवाही की वैधता की समीक्षा करने से नहीं रोका गया है।
और पढ़ें: अनुच्छेद 356 का उचित और अनुचित उपयोग
राष्ट्रपति शासन लागू करने के संबंध में क्या सिफारिशें हैं?
- सरकारिया आयोग (1987): इसने अनुच्छेद 356 का संयमित प्रयोग करने की सिफारिश की तथा कहा कि इसका प्रयोग केवल अंतिम उपाय (जब राज्य की संवैधानिक विफलता को हल करने के लिए सभी विकल्प विफल हो जाएँ) के रूप में किया जाना चाहिये।
- पुंछी आयोग (2010): इसने अनुच्छेद 355 और 356 के तहत "स्थानीय आपातकालीन प्रावधानों" का प्रस्ताव रखा, जिसके तहत किसी ज़िले या उसके कुछ हिस्सों में 3 महीने तक के लिए राज्यपाल शासन की अनुमति दी गई।
- राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग (NCRWC, 2000): इसने कहा कि अनुच्छेद 356 को हटाया नहीं जाना चाहिये बल्कि इसका प्रयोग संयम से तथा केवल अंतिम उपाय के रूप में किया जाना चाहिये।
- यदि चुनाव नहीं हो सकते तो आपातकाल के बिना भी राष्ट्रपति शासन जारी रह सकता है। अनुच्छेद 356 में तदनुसार संशोधन किया जाना चाहिये।
- अंतर-राज्यीय परिषद (अनुच्छेद 263): राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करने वाली राज्यपाल की रिपोर्ट विस्तृत एवं व्याख्यात्मक होनी चाहिये।
- राष्ट्रपति शासन लागू करने से पहले संबंधित राज्य को चेतावनी दी जानी चाहिये।
- राष्ट्रपति शासन लगाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी देने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होगी।
और पढ़ें: सरकारिया आयोग, पुंछी आयोग, वेंकटचलैया आयोग (NCRWC)
निष्कर्ष
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू करने का उद्देश्य तटस्थ शासन सुनिश्चित करने के साथ कानून और व्यवस्था बनाए रखने एवं राजनीतिक संवाद को सुविधाजनक बनाकर स्थिरता बहाल करना है। हालाँकि, पिछले न्यायिक फैसलों और आयोग की सिफारिशों में राजनीतिक दुरुपयोग को रोकने तथा संघवाद को बनाए रखने के लिए अनुच्छेद 356 के सतर्क एवं कम उपयोग की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में राष्ट्रपति शासन लागू करने के संबंध में संवैधानिक प्रावधानों तथा न्यायिक व्याख्याओं पर चर्चा कीजिये। |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न: यदि भारत का राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 356 के अधीन यथा उपबंधित अपनी शत्तियों का किसी विशेष राज्य के संबंध में प्रयोग करता है, तो (2018) (a) उस राज्य की विधानसभा स्वत: भंग हो जाती है। उत्तर: (b) मेन्सQ. भारत के राष्ट्रपति द्वारा किन परिस्थितियों में वित्तीय आपातकाल की घोषणा की जा सकती है? जब ऐसी घोषणा लागू रहती है तो इसके क्या परिणाम होते हैं? (2018) |