भारतीय राजव्यवस्था
राज्यपाल की शक्तियाँ
यह एडिटोरियल 26/11/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Constitutional silences, unconstitutional inaction” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में राज्यपाल के पद से संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
जब संविधान सभा द्वारा संविधान को अंगीकृत किया गया तो इसके निर्माताओं ने इसमें जानबूझकर कुछ अंतराल छोड़ दिया था ताकि भविष्य में संसद लोगों की आकांक्षाओं और इच्छाओं के अनुरूप संविधान में आवश्यक सुधार एवं संशोधन कर सके। संविधान के इस अंतराल या मौन से समय के साथ भारतीय राजनीति में संघर्ष के कई बिंदु उत्पन्न हुए हैं।
- संविधान में मौजूद ऐसे मौन में से एक अनुच्छेद 200 में भी है जो जहाँ विधानसभा द्वारा भेजे गए विधेयकों को स्वीकृति प्रदान करने हेतु राज्यपाल के लिये समयसीमा निर्धारित नहीं की गई है। इसका उपयोग विभिन्न विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों के राज्यपालों द्वारा लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकारों के जनादेश को कुछ अप्रभावी करने के लिये किया गया है।
- इसलिये यह आवश्यक है कि राज्यपाल और राज्य विधानमंडल के बीच के अस्पष्ट क्षेत्रों का एक अलग दृष्टिकोण से परीक्षण किया जाए और राज्य स्तर पर शासन तंत्र में सुधार के लिये समाधानों की तलाश की जाए।
राज्यपाल पर कौन-से संवैधानिक प्रावधान लागू होते हैं?
- अनुच्छेद 153 में प्रत्येक राज्य के लिये एक राज्यपाल का प्रावधान किया गया है। किसी व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों के राज्यपाल के रूप में भी नियुक्त किया जा सकता है।
- राज्यपाल को राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर एवं मुहर सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त किया जाता है और वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है (अनुच्छेद 155 और 156)।
- अनुच्छेद 161 में कहा गया है कि राज्यपाल के पास क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्ति है।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया गया था कि किसी बंदी को क्षमा करने की राज्यपाल की संप्रभु शक्ति वास्तव में स्वयं उपभोग किये जाने के बजाय राज्य सरकार के साथ आम सहमति से प्रयोग की जाती है।
- अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल को अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिये एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री होगा।
- राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों में शामिल हैं:
- राज्य विधानमंडल में स्पष्ट बहुमत के अभाव में मुख्यमंत्री की नियुक्ति
- अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में
- राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता के मामले में (अनुच्छेद 356)
- राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों में शामिल हैं:
- अनुच्छेद 200 राज्यपाल को विधानसभा या विधानमंडल द्वारा पारित किसी विधेयक पर अनुमति देने, अनुमति रोकने अथवा उस विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित करने की शक्ति प्रदान करता है।
राज्यपाल से संबंधित मत-भिन्नता के क्षेत्र
- विधेयकों पर समयबद्ध विचार का अभाव: आलोचकों द्वारा आरोप लगाया जाता है कि राज्यपालों द्वारा विभिन्न अवसरों पर अनुच्छेद 200 का दुरुपयोग किया गया है। तमिलनाडु ऑनलाइन जुआ निषेध और ऑनलाइन खेलों के लिये नियमन विधेयक, 2022 (तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित) और केरल लोक आयुक्त (संशोधन) विधेयक, 2022 (केरल विधानसभा द्वारा पारित) इस क्रम में दो नवीन दृष्टांत हैं।
- अकेले तमिलनाडु में ही लगभग 20 विधेयक राज्यपाल की अनुमति के लिये प्रतीक्षारत हैं।
- शक्तियों के स्पष्ट सीमांकन का अभाव: यह स्पष्ट नहीं है कि मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करने के संवैधानिक अधिदेश को चांसलर के रूप में कार्य करने के वैधानिक प्राधिकार से पृथक करके कैसे देखा जाए। इसके परिणामस्वरूप राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच बारंबार संघर्ष की स्थिति बनती रही है।
- हाल ही में केरल के राज्यपाल ने सरकारी नामांकन को दरकिनार करते हुए एक विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति की।
- नियुक्ति संबंधी पूर्वाग्रह: आलोचकों का कहना है कि केंद्र सरकार ने राज्यपालों के रूप में राजनीतिक हस्तियों और विशेष राजनीतिक विचारधाराओं के साथ गठबंधन रखने वाले पूर्व नौकरशाहों को नियुक्त किया है, जो संवैधानिक रूप से निर्दिष्ट पद की तटस्थता की भावना का उल्लंघन है।
- केंद्र का एजेंट होने संबंधी आशंकाएँ: वर्ष 2001 में राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग (National Commission to Review the Working of the Constitution) ने माना था कि चूँकि राज्यपाल अपनी नियुक्ति और पद पर बने रहने के लिये केंद्र का आभारी होता है, इसलिये ये आशंकाएँ बनी रहती हैं कि वह केंद्रीय मंत्रिपरिषद द्वारा दिये गए निर्देशों का पालन करेगा।
- आलोचक मानते हैं कि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) के लिये राज्यपाल की अनुशंसा के पीछे यह एक प्रमुख कारण रहा है। यह हमेशा ही ‘तथ्यात्मक तत्व’ (Objective Material) पर आधारित नहीं रहा है, बल्कि राजनीतिक सनक या कल्पना पर निर्भर रहा है।
- पद से हटाने की कोई लिखित प्रक्रिया नहीं: राज्यपालों को कई बार मनमाने ढंग से हटाया गया है क्योंकि उन्हें हटाने के लिये कोई लिखित आधार या प्रक्रिया मौजूद नहीं है।
आगे की राह
- विधायिका की इच्छा का सम्मान: पुरुषोत्तमन नंबूदिरी बनाम केरल राज्य (वर्ष 1962) मामले में सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने स्पष्ट किया था कि संविधान कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं करता है जिसके भीतर राज्यपाल को विधेयकों को स्वीकृति दे देनी होगी।
- हालाँकि न्यायालय ने यह माना कि राज्यपाल को विधानमंडल की इच्छा का सम्मान करना चाहिये और उन्हें अपने मंत्रिपरिषद के साथ सद्भाव में ही कार्य करना चाहिये।
- विधेयकों पर विचार के लिये उपयुक्त समय: संवैधानिक मौन से असंवैधानिक निष्क्रियता के लिये अवसर का निर्माण नहीं होना चाहिये, न ही विधि के शासन में अराजकता के लिये कोई जगह छोड़नी चाहिये।
- ‘राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग’ 2000 ने अनुशंसा की थी कि ‘‘एक समय-सीमा होनी चाहिये, जैसे छह माह की अवधि, जिसके भीतर राज्यपाल को निर्णय ले लेना चाहिये कि विधेयक को अनुमति देना है या राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित रखना है।’’
- चांसलर पद पर पुनर्विचार: पुंछी आयोग ने सुझाव दिया था कि राज्यपाल द्वारा विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति या चांसलर के रूप में कार्य करने और उसके अन्य वैधानिक पद धारण करने की व्यवस्था को समाप्त कर दिया जाना चाहिये क्योंकि यह उसके पद को विवादों और सार्वजनिक आलोचना का शिकार बनाता है।
- कार्यकाल की सुरक्षा और निर्देशित विवेक: वेंकटचलैया आयोग के अनुसार, राज्यपालों को सामान्य रूप से अपने पाँच वर्ष के कार्यकाल को पूरा करने की अनुमति दी जानी चाहिये। इन्हें कार्यकाल के बीच पद से हटाने से पहले केंद्र सरकार को संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से सलाह लेनी चाहिये।
- इसके साथ ही, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने अनुशंसा की थी कि अंतर-राज्य परिषद को इस बारे में दिशानिर्देश तैयार करने चाहिये कि राज्यपाल अपनी विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग किस प्रकार कर सकते हैं।
अभ्यास प्रश्न: उन दृष्टांतों की चर्चा कीजिये जहाँ संवैधानिक मौन के परिणामस्वरूप असंवैधानिक निष्क्रियता की स्थिति बनी।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षाQ. किसी राज्य के राज्यपाल को निम्नलिखित में से कौन-सी विवेकाधीन शक्तियाँ दी गई हैं? (वर्ष 2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1 और 2 उत्तर: (B) मुख्य परीक्षाQ. क्या सुप्रीम कोर्ट का फैसला (जुलाई, 2018) उपराज्यपाल और दिल्ली की चुनी हुई सरकार के बीच राजनीतिक खींचतान को सुलझा सकता है? विवेचना कीजिये (वर्ष 2018) Q. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग के लिए आवश्यक शर्तों पर चर्चा करें। विधानमंडल के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुन: प्रख्यापन की वैधता पर चर्चा करें। (वर्ष 2022) |