भारतीय राजव्यवस्था
मणिपुर में आपातकालीन उपबंधों का प्रयोग और भारत की संघीय संरचना
- 17 Sep 2024
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स्रोत: TH
चर्चा में क्यों?
मणिपुर में हाल ही में हुई हिंसा ने केंद्र-राज्य संबंधों और मणिपुर के आंतरिक संकटों से निपटने में केंद्र की भूमिका पर बहस को फिर से छेड़ दिया है तथा ऐसी स्थितियों में आपातकालीन उपबंधों के प्रयोग पर प्रकाश डाला है।
राज्य की सुरक्षा के लिये केंद्र द्वारा आपातकालीन उपबंध क्या हैं?
- संवैधानिक आधार: भारतीय संविधान के भाग XVIII में स्थित अनुच्छेद 355 और 356 ( अनुच्छेद 352 से 360 तक) आपातकाल के दौरान केंद्र तथा राज्य सरकारों की भूमिकाओं को परिभाषित करते हैं।
- अनुच्छेद 355: यह अधिदेश जारी करता है कि केंद्र राज्यों को बाह्य और आंतरिक अशांति (आंतरिक संकट) से बचाव करते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्य सरकारें संवैधानिक रूप से कार्य करें।
- अनुच्छेद 356: किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की अनुमति देता है जब उसकी सरकार संविधान के अनुसार कार्य करने में असमर्थ हो, जिससे केंद्र को सीधे नियंत्रण संभालने में सक्षम बनाया जा सके।
नोट: भारत एक संघ है जिसमें केंद्र और राज्य सरकारें शामिल हैं। भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण करती है।
- भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत 'पुलिस' व 'लोक व्यवस्था' राज्य के विषय हैं और इसलिये अपराध को रोकना, उसका पता लगाना, अपराध को रजिस्टर करना, जाँच करना तथा अपराधियों पर मुकदमा चलाना राज्य सरकारों का प्राथमिक कर्त्तव्य है।
मणिपुर की स्थिति पर आपातकालीन उपबंध किस प्रकार लागू होता है?
- संकट की गंभीरता: मणिपुर में व्यापक हिंसा (जिसमें नागरिकों पर हमले और पुलिस शस्त्रागारों की लूट शामिल है) बताती है कि वहाँ स्थिति विधि-व्यवस्था की सामान्य स्थिति से भी अधिक गंभीर हो गई है।
- यह गंभीरता दर्शाती है कि इन परिस्थितियों में आपातकालीन उपबंधों को लागू करना उचित निर्णय हो सकता है।
- राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया जाना: हिंसा की गंभीर प्रकृति के बावजूद, अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू नहीं किया गया है।
- अनुच्छेद 356 का प्रयोग न किये जाने से यह चिंता उत्पन्न होती है कि क्या राजनीतिक कारक संकट से निपटने की प्रतिक्रिया को प्रभावित कर रहे हैं।
- अनुच्छेद 355 का अनुप्रयोग: केंद्र द्वारा अनुच्छेद 355 के तहत कदम उठाया रहा है, जिसमें यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि राज्यों को संवैधानिक रूप से संरक्षित और शासित किया जाए।
- हालाँकि आलोचकों का तर्क है कि अब तक की कार्रवाई संकट के पैमाने को प्रभावी ढंग से निपटने के लिये पर्याप्त नहीं हो सकती है।
- इस मामले में अनुच्छेद 355 का प्रयोग विधि-व्यवस्था पुनर्स्थापित करने तथा चल रही हिंसा से निपटने के लिये अधिक निर्णायक उपायों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
अनुच्छेद 355 और 356 के संबंध में क्या निर्णय हैं?
- ऐतिहासिक दुरुपयोग: भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माता डॉ. बी.आर. अंबेडकर को उम्मीद थी कि अनुच्छेद 355 और 356 अप्रयुक्त रहेंगे तथा ‘निरसित उपबंध’ बन जाएंगे।
- इस लक्ष्य के बावजूद, अनुच्छेद 356 का कई बार दुरुपयोग हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप राजनीतिक एजेंडा और विधि-व्यवस्था बनाए रखने की चिंताओं जैसे विभिन्न कारणों से निर्वाचित राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया है।
- एस.आर. बोम्मई मामला, 1994: भारत के सर्वोच्च न्यायालय के इस ऐतिहासिक निर्णय ने अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को बहुत हद तक प्रतिबंधित कर दिया। न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि राष्ट्रपति शासन केवल संवैधानिक तंत्र के विघटन की स्थिति में ही लागू किया जाना चाहिये, न कि केवल कानून और व्यवस्था के मुद्दों के लिये।
- इसने यह भी अभिनिर्धारित किया कि इस प्रकार के अध्यारोपण न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं, तथा यह सुनिश्चित किया गया कि अनुच्छेद 356 का प्रयोग राजनीतिक उद्देश्यों के लिये नहीं किया जाएगा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संवैधानिक तंत्र के असफल हो जाने का अर्थ है कि राज्य में प्रशासन का संचालन वास्तव में असंभव है, न कि कोई साधारण समस्या।
- अनुच्छेद 355 का विस्तार: अनुच्छेद 356 पर न्यायिक प्रतिबंध थे, जबकि अनुच्छेद 355 का दायरा बढ़ाया गया है। शुरू में सर्वोच्च न्यायालय की अनुच्छेद 355 की व्याख्या सीमित थी, जो प्रायः इसे अनुच्छेद 356 के प्रयोग से जोड़ती थी।
- हालाँकि नागा पीपुल्स मूवमेंट ऑफ ह्यूमन राइट्स बनाम भारत संघ, 1998, सर्बानंद सोनोवाल बनाम भारत संघ, 2005 और एच.एस. जैन बनाम भारत संघ, 1997 जैसे मामलों में न्यायालय ने निर्वचन को व्यापक बनाया।
- संशोधित दृष्टिकोण संघ को राज्यों की सुरक्षा के लिये व्यापक कार्रवाई करने तथा यह सुनिश्चित करने की अनुमति देता है कि उनका शासन संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप हो।
अनुच्छेद 355 और अनुच्छेद 356 के संबंध में क्या सिफारिशें हैं?
- सरकारिया आयोग (वर्ष 1987): न्यायमूर्ति रणजीत सिंह सरकारिया की अध्यक्षता वाले इस आयोग ने सिफारिश की थी कि अनुच्छेद 356 का प्रयोग बहुत सावधानी से किया जाना चाहिये, केवल अत्यंत दुर्लभ परिस्थितियों में तथा किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र के असफल हो जाने की स्थिति को हल करने और टालने के लिये सभी संभावित विकल्पों को समाप्त करने के बाद अंतिम उपाय के रूप में।
- संविधान के कार्यकरण की समीक्षा के लिये राष्ट्रीय आयोग (वर्ष 2002) और पुंछी आयोग (वर्ष 2010): आयोग ने राय दी है कि अनुच्छेद 355 संघ पर एक कर्त्तव्य अध्यारोपित करता है और उसे आवश्यक कार्रवाई करने की शक्ति प्रदान करता है तथा अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन अंतिम उपाय के रूप में प्रयोग किया जाना चाहिये।
- पुंछी आयोग ने अनुच्छेद 355 और 356 के अंतर्गत ‘स्थानीय आपातकालीन उपबंधों’ का प्रस्ताव रखा है, जिसके तहत पूरे राज्य के बजाय किसी ज़िले या उसके कुछ हिस्सों जैसे स्थानीय क्षेत्रों को राज्यपाल शासन के अधीन रखा जा सकता है। यह स्थानीय आपातकाल तीन महीने से अधिक नहीं चलना चाहिये।
राष्ट्रपति शासन और राष्ट्रीय आपातकाल में क्या अंतर है?
राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) |
राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) |
इसकी घोषणा तब की जा सकती है जब किसी राज्य की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं चल पाती है। इसका संबंध युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से नहीं है। |
राष्ट्रीय आपातकाल केवल तभी घोषित किया जा सकता है, जब भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा को युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से खतरा हो। |
इस दौरान, राज्य कार्यपालिका को बर्खास्त कर दिया जाता है और राज्य विधानमंडल को निलंबित या भंग कर दिया जाता है।
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इस दौरान, राज्य कार्यपालिका और विधायिका संविधान के प्रावधानों के तहत प्रदान की गई शक्तियों के अनुरूप कार्य करना जारी रखती हैं।
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इसके तहत संसद राज्य के लिये कानून बनाने की शक्ति राष्ट्रपति या किसी अन्य निर्दिष्ट प्राधिकारी को सौंप सकती है।
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संसद राज्य सूची के विषयों पर केवल स्वयं ही कानून बना सकती है तथा यह शक्ति किसी अन्य निकाय या प्राधिकरण को नहीं सौंप सकती। |
राष्ट्रपति शासन के लिये अधिकतम अवधि तीन वर्ष निर्धारित की गई है।
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राष्ट्रीय आपातकाल के लिये कोई अधिकतम अवधि निर्धारित नहीं है।
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इसके तहत केवल आपातकाल के दौरान राज्य का केंद्र के साथ संबंध संशोधित होता है। |
इसके तहत केंद्र और सभी राज्यों के बीच संबंधों में बदलाव किया किये जा सकते हैं। |
इसकी घोषणा या इसे जारी रखने का अनुमोदन संसद में केवल साधारण बहुमत से ही पारित किया जा सकता है। |
इसकी घोषणा या इसे जारी रखने का अनुमोदन संसद में विशेष बहुमत से ही पारित किया जा सकता है। |
इसका नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। |
इससे नागरिकों के मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं। |
इसे केवल राष्ट्रपति द्वारा ही निरस्त किया जा सकता है। |
लोकसभा इसके निरसन के लिये प्रस्ताव पारित कर सकती है। |
निष्कर्ष
मणिपुर में हुई हिंसा ने केंद्र-राज्य संबंधों और आपातकालीन प्रावधानों पर विवाद को सुर्खियों में ला दिया है। जबकि अनुच्छेद 355 केंद्र को संकट के समय कार्रवाई करने की अनुमति देता है, अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति शासन का प्रावधान करता है, लेकिन इसका प्रयोग सावधानी से किया जाना चाहिये। मणिपुर की स्थिति संवैधानिक दिशा-निर्देशों का सम्मान करते हुए गंभीर हिंसा से निपटने के लिये निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता को उजागर करती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. किसी राज्य की आंतरिक अशांति से निपटने के लिये संवैधानिक उपबंधों का परीक्षण कीजिये। मणिपुर में हाल ही में हुई हिंसा पर ये प्रावधान किस प्रकार लागू होते हैं? |
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित में कौन-सी लोक सभा की अनन्य शक्ति(याँ) है/हैं? (2022)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत के संविधान के सदंर्भ में सामान्य विधियों में अंतर्विष्ट प्रतिषेध अथवा निर्बंधन अथवा उपबंध, अनुच्छेद 142 के अधीन सांविधानिक शक्तियों पर प्रतिषेध अथवा निर्बंधन की तरह कार्य नहीं कर सकते। निम्नलिखित में से कौन-सा एक, इसका अर्थ हो सकता है? (2019) (a) भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करते समय लिये गए निर्णयों को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। उत्तर: (b) प्रश्न. भारत के राष्ट्रपति के निर्वाचन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. किन परिस्थितियों में भारत के राष्ट्रपति द्वारा वित्तीय आपातकाल की उद्घोषणा की जा सकती है? ऐसी उद्घोषणा के लागू रहने तक, इसके अनुसरण के क्या-क्या परिणाम होते हैं? (2018) |