पुद्दुचेरी में राष्ट्रपति शासन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रशासित प्रदेश पुद्दुचेरी में वी.नारायणस्वामी की नेतृत्व वाली काॅन्ग्रेस सरकार द्वारा विश्वास मत परीक्षण के दौरान पर्याप्त बहुमत न जुटा पाने के बाद उपराज्यपाल की सिफारिश पर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है।
- राष्ट्रपति इस बात से सहमत थे कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी जिसमें केंद्रशासित प्रदेश पुद्दुचेरी का प्रशासन केंद्रशासित प्रदेश अधिनियम (Government of Union Territories Act) 1963 के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता था।
प्रमुख बिंदु:
केंद्रशासित प्रदेशों का प्रशासन:
- भारतीय संविधान के भाग VIII के तहत अनुच्छेद 239 से लेकर अनुच्छेद 242 तक के प्रावधान केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन से संबंधित हैं।
- प्रत्येक केंद्रशासित प्रदेश को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रशासक द्वारा प्रशासित किया जाता है।
- केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासक राष्ट्रपति का एजेंट होता है तथा वह राज्यपाल की तरह राज्य का प्रमुख नहीं होता है।
- राष्ट्रपति एक प्रशासक के पदनाम को निर्दिष्ट कर सकता है; यह उपराज्यपाल या मुख्य आयुक्त या प्रशासक हो सकता है।
- केंद्रशासित प्रदेश पुद्दुचेरी (वर्ष 1963 में), दिल्ली (वर्ष 1992 में) और जम्मू-कश्मीर (वर्ष 2019 में) में एक विधानसभा और मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद का प्रावधान किया गया है।
- परंतु केंद्रशासित प्रदेशों में इस प्रकार की व्यवस्था राष्ट्रपति और संसद के सर्वोच्च नियंत्रण को कम नहीं करती है।
- संसद केंद्रशासित प्रदेशों के लिये तीनों अनुसूचियों (राज्य सूची सहित) के किसी भी विषय पर कानून बना सकती है।
संवैधानिक तंत्र की विफलता के मामले में प्रावधान (1963 के अधिनियम के अनुसार):
- यदि राष्ट्रपति,केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासक से रिपोर्ट प्राप्त करने पर या अन्यथा इस बात से संतुष्ट है कि -
- ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें संबंधित केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन को इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है, या
- केंद्रशासित प्रदेश के समुचित प्रशासन के लिये ऐसा करना आवश्यक या समुचित है,
- ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति, आदेश देकर एक निर्धारित अवधि (जितना वह उचित समझे) के लिये इस अधिनियम के सभी या किसी भी प्रावधान के संचालन को निलंबित कर सकता है, और
- ऐसे आकस्मिक और परिणामी प्रावधान कर सकता है जो अनुच्छेद 239 के प्रावधानों के तहत केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन के लिये आवश्यक या उचित प्रतीत हों।
एक राज्य में राष्ट्रपति शासन:
- अर्थ:
- राष्ट्रपति शासन का तात्पर्य राज्य सरकार के निलंबन और संबंधित राज्य में प्रत्यक्ष रूप से केंद्र का शासन लागू होने से है।
- इसे 'राज्य आपातकाल' या 'संवैधानिक आपातकाल’ के रूप में भी जाना जाता है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 356 के माध्यम से केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है।
- अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति शासन लगाने का अधिकार देता है, यदि राष्ट्रपति इस बात से आश्वस्त है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं चल सकती है। राष्ट्रपति, राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर या दूसरे ढंग से (राज्यपाल के विवरण के बिना) भी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकता है।
- संसदीय अनुमोदन और समयावधि:
- राष्ट्रपति शासन लागू करने की घोषणा को इसके जारी होने की तारीख से दो महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना अनिवार्य है।
- राष्ट्रपति शासन की घोषणा को मंज़ूरी देने वाला प्रत्येक प्रस्ताव किसी भी सदन द्वारा सामान्य बहुमत से पारित किया जा सकता है।
- यदि यह दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत हो तो राष्ट्रपति शासन छह माह तक रहता है, इसे अधिकतम तीन वर्ष की अवधि (प्रत्येक छह माह पर संसद की स्वीकृति के साथ ) के लिये बढ़ाया जा सकता है।
- राष्ट्रपति शासन का प्रभाव: राष्ट्रपति शासन लागू होने पर राष्ट्रपति को निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त होती हैं:
- वह राज्य सरकार के कार्यों को अपने हाथ में ले लेता है और उसे राज्यपाल तथा अन्य कार्यकारी अधिकारियों की शक्ति प्राप्त होती है।
- वह घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का प्रयोग/निर्वहन संसद द्वारा किया जाएगा।
- वह ऐसे सभी कदम उठा सकता है जिसमें राज्य के किसी भी निकाय या प्राधिकरण से संबंधित प्रावधानों को निलंबित करना शामिल है।
- निरसन:
- राष्ट्रपति किसी भी समय एक परिवर्ती घोषणा के माध्यम से राष्ट्रपति शासन को रद्द कर सकता है। इस तरह की उद्घोषणा के लिये संसदीय स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती।
- ऐसा तब होता है, जब किसी राजनीतिक दल का नेता विधानसभा में बहुमत के लिये आवश्यक न्यूनतम संख्या (या उससे अधिक) में सदस्यों के समर्थन के साथ सरकार बनाने के लिये अपना दावा प्रस्तुत करता है।
राष्ट्रपति शासन से जुड़ी सिफारिशें/निर्णय:
- प्रशासनिक सुधार आयोग (1968) द्वारा सिफारिश की गई कि राष्ट्रपति शासन के संबंध में राज्यपाल की रिपोर्ट उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिये और इस संबंध में राज्यपाल को अपने विवेक का प्रयोग करना चाहिये।
- राजमन्नार समिति (1971) ने भारत के संविधान से अनुच्छेद 356 और 357 को हटाने की सिफारिश की थी।
- सरकारिया आयोग (1988) ने सिफारिश की कि अनुच्छेद 356 का उपयोग बहुत ही दुर्लभ मामलों में किया जाना चाहिये, उदाहरण के लिये ऐसे मामलों में जब राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता को बहाल करने के लिये ऐसा करना अपरिहार्य हो जाए।
- एस.आर. बोम्मई फैसला (1994):
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उन स्थितियों को सूचीबद्ध किया जहाँ अनुच्छेद 356 के तहत प्रदत्त शक्तियों का उचित प्रयोग हो सकता है।
- ऐसी ही स्थिति 'त्रिशंकु विधानसभा’ की है, अर्थात् ऐसी स्थिति जब विधानसभा के आम चुनावों के बाद किसी भी दल को बहुमत नहीं प्राप्त हो पाता।
- न्यायमूर्ति वी. चेलैया आयोग (2002) ने सिफारिश की कि अनुच्छेद 356 का उपयोग पर्याप्त विचार-विमर्श के बाद/संयम से किया जाना चाहिये और इसे केवल अनुच्छेद 256, 257 और 355 के तहत सभी प्रावधानों के विफल रहने के बाद अंतिम उपाय के रूप में प्रयोग में लाना चाहिये।
- पुंछी आयोग (2007) ने अनुच्छेद 355 और 356 में संशोधन की सिफारिश की। इस आयोग ने केंद्र द्वारा इन अनुच्छेदों के दुरुपयोग पर अंकुश लगाते हुए राज्यों के हितों की रक्षा करने की मांग की।