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सामाजिक न्याय

भारत में महिलाओं के विरुद्ध क्रमिक हिंसा

  • 20 Aug 2024
  • 27 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय चिकित्सा संघ, पंद्रहवाँ वित्त आयोग, समवर्ती सूची, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, प्रथम सूचना रिपोर्ट, PoSH अधिनियम, विशाखा दिशा-निर्देश, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, उज्ज्वला योजना, निर्भया फंड

मेन्स के लिये:

भारत में महिला सुरक्षा और कानूनी सुधार, महिलाओं से संबंधित मुद्दे, सामाजिक मानदंडों की भूमिका और महिला सशक्तीकरण

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कोलकाता में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना ने महिला सुरक्षा को लेकर देश भर में चिंताएँ पैदा कर दी हैं और इससे स्वास्थ्य कर्मियों का विरोध प्रदर्शन तेज़ हो गया है, और यह अब अपनी सुरक्षा के लिये एक केंद्रीय कानून की मांग कर रहे हैं।

  • कड़े कानूनों के बावजूद महिलाओं के विरुद्ध अपराध जारी हैं, जिससे व्यापक सुधारों की तत्काल आवश्यकता रेखांकित होती है।

स्वास्थ्यकर्मियों की मांगें क्या हैं?

  • मांग:
    • केंद्रीय सुरक्षा अधिनियम: भारतीय चिकित्सा संघ (Indian Medical Association- IMA) स्वास्थ्य पेशेवरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एक राष्ट्रव्यापी कानून के कार्यान्वयन की वकालत कर रहा है, जो यूनाइटेड किंगडम की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (National Health Service- NHS) की शून्य-सहिष्णुता नीति और हमलों के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका की गुंडागर्दी (अपराध जो दंडनीय होने हेतु पर्याप्त गंभीर है) वर्गीकरण जैसे वैश्विक उदाहरणों के समान है।
      • अमेरिका में गंभीर अपराधों को उनकी अधिकतम जेल सज़ा के आधार पर श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है।
        • सबसे गंभीर श्रेणी A के अपराधों के लिये अधिकतम आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सज़ा का प्रावधान है, जबकि श्रेणी E के अपराधों हेतु अधिकतम 1 वर्ष से अधिक और 5 वर्ष से कम की सज़ा का प्रावधान है।
    • उन्नत सुरक्षा उपाय: अस्पतालों और चिकित्सा केंद्रों में बेहतर प्रकाश व्यवस्था, सुरक्षा गार्ड और निगरानी वाले सुरक्षा कैमरे की व्यवस्था।
      • डॉक्टरों के लिये सुरक्षित कार्य और रहने की स्थिति सुनिश्चित करना, जिसमें अच्छी रोशनी वाले गलियारे और सुरक्षित वार्ड शामिल हों।
      • स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में सुरक्षा प्रणालियों और आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र की स्थापना।
  • वर्तमान प्रावधान:
    • राज्य की ज़िम्मेदारियाँ: स्वास्थ्य और कानून-व्यवस्था मुख्य रूप से राज्य के विषय हैं, तथा केंद्र सरकार के पास चिकित्सा पेशेवरों पर हमलों के संबंध में केंद्रीकृत आँकड़ों का अभाव है।
      • पंद्रहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन.के. सिंह ने सुझाव दिया कि स्वास्थ्य को संविधान के अंतर्गत समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिये, क्योंकि वर्तमान में यह राज्य सूची में है।
    • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का आदेश: स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ किसी भी हिंसा के छह घंटे के भीतर FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
    • राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के निर्देश: मेडिकल कॉलेजों को सुरक्षित कार्य वातावरण और घटनाओं की समय पर रिपोर्टिंग के लिये नीतियाँ विकसित करने की आवश्यकता है।
  • मांगों पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया: स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि कोलकाता की घटना मौजूदा कानूनी प्रावधानों के अंतर्गत आती है और इसके लिये केंद्रीय संरक्षण अधिनियम अनावश्यक है, क्योंकि 26 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में पहले से ही स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिये कानून मौजूद हैं।
    • ये कानून स्वास्थ्य कर्मियों के विरुद्ध हिंसा को संज्ञेय और गैर-ज़मानती मानते हैं, जिनमें डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ भी शामिल हैं।

भारत में महिला सुरक्षा के बारे में अपराध के आँकड़े क्या बताते हैं?

  • बढ़ती अपराध दर: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) ने वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 445,256 मामले दर्ज किये।

  • लगातार बढ़ते बलात्कार के मामले: वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान गिरावट के अपवाद को छोड़कर, रिपोर्ट किये गए बलात्कारों की संख्या उच्च बनी हुई हैं।
    • वर्ष 2016 में हमले लगभग 39,000 तक पहुँच गए थे। वर्ष 2018 तक, देश भर में हर 15 मिनट में महिला बलात्कार की एक रिपोर्ट दर्ज की गई, जो इन अपराधों की चिंताजनक आवृत्ति को उजागर करती है।
    • वर्ष 2022 में 31,000 से अधिक बलात्कार के मामले दर्ज किये गए, जो इस मुद्दे की व्याप्त गंभीरता को दर्शाता है।
    • सख्त कानूनों के बावजूद, बलात्कार के लिये सजा की दर कम रही है, जिसमें वर्ष 2018 से 2022 तक दर में 27%-28% के बीच उतार-चढ़ाव होता रहा है।
  • महामारी का प्रभाव: कोविड-19 महामारी के कारण महिलाओं के प्रति हिंसा में वृद्धि हुई है, वर्ष 2020 में अपराध दर प्रति 100,000 महिलाओं पर 56.5 से बढ़कर वर्ष 2021 में 64.5 हो गई है। आर्थिक तनाव, सामाजिक अलगाव और रिवर्स माइग्रेशन जैसे कारकों से इसमें वृद्धि हुई है।
  • कार्यस्थल पर उत्पीड़न: यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण: POSH) अधिनियम, 2013 से महिलाओं के संरक्षण के अधिनियमन के बावजूद, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न एक चिंता का विषय बना हुआ है, जिसके मामले वर्ष 2018 के 402 से बढ़कर वर्ष 2022 में 422 हो गए हैं।
    • हालाँकि, संभावित रूप से सामाजिक पूर्वाग्रहों और नतीजों के डर के कारण इन संख्याओं की कम रिपोर्टिंग हुई है।
  • महिला सुरक्षा सूचकांक: जॉर्जटाउन इंस्टीट्यूट के महिला शांति और सुरक्षा सूचकांक- 2023 के अनुसार, भारत ने 1 में से 0.595 अंक प्राप्त किये जिससे महिलाओं के समावेश, न्याय और सुरक्षा के मामले में 177 देशों में भारत की रैंकिंग 128वें स्थान पर आ गई।
    • सूचकांक में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2022 में महिलाओं को निशाना बनाकर की जाने वाली राजनीतिक हिंसा के मामले में भारत शीर्ष 10 सबसे खराब देशों में शामिल है।

महिला सुरक्षा से संबंधित भारत की पहल क्या हैं?

  • कानून:
    • अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय: वर्ष 1993 में महिलाओं के विरूद्ध सभी स्‍वरूपों के भेदभाव के निवारण संबंधी अभिसमय (CEDAW) सहित प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय अभिसमयों को भारत द्वारा अनुमोदित किया गया।
      • भारत ने मेक्सिको कार्य योजना (1975) का भी समर्थन किया, जिसका उद्देश्य लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के साथ लैंगिक भेदभाव को पूर्णतः समाप्त करना है।
    • अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956: यह वेश्यावृत्ति के लिये वाणिज्यिक सेक्स वर्कर और मानव तस्करी पर प्रतिबंध लगाता है।
    • महिलाओं का अभद्र चित्रण अधिनियम, 1986: यह विज्ञापनों और प्रकाशनों में महिलाओं के अभद्र चित्रण पर प्रतिबंध लगाता है।
    • महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये राष्ट्रीय नीति (2001): इसका उद्देश्य महिलाओं की उन्नति और सशक्तीकरण, महिलाओं के प्रति हिंसा का निवारण एवं रोकथाम, सहायता और कार्रवाई के लिये तंत्र प्रदान करना है।
    • ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (वर्ष 2007-2012): महिलाओं के प्रति हिंसा (VAW) को एक प्रमुख मुद्दे के रूप में स्वीकार किया गया, जिसमें घरेलू हिंसा और बलात्कार पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005: घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिये अनिवार्य सुरक्षा अधिकारियों के साथ आश्रय और चिकित्सा सुविधाओं सहित सहायता प्रदान की जाती है।
    • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) (POSH) अधिनियम, 2013: POSH अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओं द्वारा सामना किये जाने वाले यौन उत्पीड़न पर कार्रवाई करता है, जिसका उद्देश्य सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित करना है।
      • यह यौन उत्पीड़न को अवांछित शारीरिक संपर्क या उसकी कोशिश, यौन संबधी मांगें या प्रस्ताव, यौन संबंधी टिप्पणी, अश्लील चित्र या पोर्नोग्राफी दिखाना, किसी और प्रकार का अवांछनीय यौन या कामुक भाव से किया गया शारीरिक, मौखिक,अमौखिक आचरण के रूप में परिभाषित करता है।
      • यह अधिनियम विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य मामले, 1997 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित विशाखा दिशानिर्देशों पर आधारित है, जो कार्यस्थल पर उत्पीड़न पर कार्रवाई करता है।
    • आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013: यौन अपराधों के खिलाफ प्रभावी कानूनी रोकथाम के लिये अधिनियमित।
      • इसके अलावा आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 को 12 वर्ष से कम उम्र की बालिका के साथ बलात्कार के मामले में मृत्युदंड सहित और भी अधिक कठोर दंड प्रावधानों को निर्धारित करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
    • जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (JNNURM): महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के लिये शहरी विकास में लैंगिक विचारों को शामिल करने की सिफारिश करता है।
    • लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012: बच्चों को यौन अपराधों से बचाता है, उनकी सुरक्षा के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करता है और अपराधियों के लिये सख्त दंड सुनिश्चित करता है।
  • रणनीतियाँ और उपाय:
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना: यह योजना लैंगिक भेदभाव को रोकने के साथ बालिकाओं के अस्तित्व की सुरक्षा एवं शिक्षा को सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
    • उज्जवला योजना: इसका उद्देश्य बाल तस्करी को रोकने के साथ व्यावसायिक यौन शोषण की पीड़ितों को बचाना और उनका पुनर्वास करना है।
    • निर्भया फंड: इसका उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा हेतु पहलों का समर्थन करना है, जिसमें आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली स्थापित करना तथा सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे में सुधार करना शामिल है।
    • महिला और बाल विकास मंत्रालय की पहल: स्वाधार गृह योजना जैसी योजनाओं का उद्देश्य कठिन परिस्थितियों में महिलाओं के लिए अल्पावधि आवास प्रदान करना तथा उनके लिये जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना है।
    • ट्रेनों में महिला सुरक्षा: 182 सुरक्षा हेल्पलाइन, महिला डिब्बों में सीसीटीवी कैमरे तथा आपात स्थिति हेतु 'आर-मित्र' मोबाइल ऐप की शुरुआत करना।
    • महिला पर्यटकों की सुरक्षा: इन उपायों में 'अतुल्य भारत हेल्पलाइन', सुरक्षित पर्यटन हेतु आचार संहिता तथा पर्यटकों के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने के क्रम में राज्य सरकारों को निर्देश देना शामिल हैं।
    • मेट्रो में महिलाओं की सुरक्षा: दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) ने महिलाओं के लिये विशेष कोच एवं आरक्षित सीटों के साथ सुरक्षा हेतु समर्पित केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के कर्मचारी रखे हैं।
    • सार्वभौमिक महिला हेल्पलाइन (फोन सहायता) योजना: यह प्रचारित हेल्पलाइन के माध्यम से 24 घंटे आपातकालीन और गैर-आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रदान करने पर केंद्रित है।
    • मोबाइल ऐप: 
      • सुरक्षा (Suraksha): इसे आपातकालीन स्थिति में महिलाओं को पुलिस से जुड़ने तथा अपनी लोकेशन भेजने के त्वरित एवं आसान तरीका प्रदान करने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
      • अमृता व्यक्तिगत सुरक्षा प्रणाली (APSS): यह परिवार एवं पुलिस के साथ संचार बनाए रखने में प्रभावी उपकरण है।
      • विथु (VithU): यह ऐप आपातकालीन स्थिति में कांटेक्ट लिस्ट में शामिल लोगों को अलर्ट भेजता है।

महिला सुरक्षा हेतु कानून एवं नियम अपर्याप्त क्यों हैं?

  • कार्यान्वयन का अभाव: वर्ष 2012 के निर्भया मामले के बाद बनाए गए सख्त कानून (जैसे कि दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013) विभिन्न क्षेत्रों एवं पुलिस अधिकार क्षेत्रों में लागू नहीं हो पाए हैं। 
    • संबंधित संगठनों में आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) की स्थापना जैसे विनियमों का कार्यान्वयन अपर्याप्त बना हुआ है। 
    • इसके अतिरिक्त वर्ष 2018 में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने सूचीबद्ध कंपनियों को यौन उत्पीड़न के मामलों की सालाना रिपोर्ट देने की आवश्यकता पर बल दिया, लेकिन इसका प्रभावी कार्यान्वयन नहीं हो पाया।
  • प्रणालीगत मुद्दे: कानून प्रवर्तन प्रणालियों में भ्रष्टाचार से महिलाओं के खिलाफ अपराधों को कम करने के प्रयासों में शिथिलता आती है।
    • प्रतिशोध के भय, कानून एवं व्यवस्था में विश्वास की कमी या कानूनी प्रक्रिया के अप्रभावी होने के कारण हिंसा की कई घटनाएँ रिपोर्ट नहीं की जाती हैं।
  • सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंड: रूढ़िवादी सामाजिक दृष्टिकोण एवं मानदंड से इनको प्राप्त विधिक सुरक्षा कमज़ोर होती है। इसके चलते कुछ समुदायों में महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा को सामान्य माना जा सकता है या गंभीरता से नहीं लिया जा सकता है।
    • रूढ़िवादी सांस्कृतिक दृष्टिकोण एवं कलंक के डर से अपराधों की रिपोर्ट करने या मदद मांगने में महिलाएँ हतोत्साहित हो सकती हैं।
  • विधिक चुनौतियाँ: पीड़ितों को अक्सर न्याय प्राप्त करने के लिये बहुत अधिक सबूतों को देना पड़ता है, जिससे सजा की दर में कमी आ सकती है। विधिक जटिलता से पीड़ितों को न्याय मिलने में देरी होती है।
    • न्यायिक प्रक्रिया बोझिल होने से पीड़ितों को न्याय मिलने में देरी हो सकती है। इससे पीड़ित अपराधों की रिपोर्ट करने से भी हतोत्साहित हो सकते हैं।
  • आर्थिक निर्भरता: आर्थिक कारक भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। जो महिलाएँ दुर्व्यवहार करने वालों पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं, उन्हें विधिक सुरक्षा के बावजूद भी रिश्ते तोड़ना मुश्किल हो सकता है।
  • परिवर्तन का प्रतिरोध: संस्थानों एवं नीति निर्माताओं द्वारा किये जाने वाले सुधार का प्रतिरोध करने से विधियों एवं विनियमों को बेहतर बनाने में बाधा आ सकती है।
    • हिंसा के उभरते रूपों या सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव के अनुरूप कानूनी ढाँचे पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हो पाते हैं।
  • जागरूकता एवं शिक्षा का अभाव: महिलाओं में अक्सर अपने विधिक अधिकारों और उपलब्ध सहायता सेवाओं के बारे में सीमित जानकारी होती है। जानकारी की यह कमी न्याय और सहायता पाने में महिलाओं के लिये बाधक हो सकती है।

महिला सुरक्षा को बढ़ावा देने हेतु अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण

  • प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय पहल:
    • अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस: महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा को रोकने के लिये प्रतिवर्ष 25 नवंबर को विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस (International Day for the Elimination of Violence against Women) मनाया जाता है।
    • संयुक्त राष्ट्र महिला सुरक्षित शहर और महिलाओं व बालिकाओं के लिये सुरक्षित सार्वजनिक स्थान: इसका उद्देश्य महिलाओं और बालिकाओं के लिये सुरक्षित एवं समावेशी सार्वजनिक स्थान बनाना है। यह मानता है कि सार्वजनिक स्थान समाज में महिलाओं की भागीदारी के लिये आवश्यक हैं, लेकिन वे भय और उत्पीड़न के स्थान भी हो सकते हैं। 
      • इसका उद्देश्य सुरक्षा रणनीतियों में लैंगिक दृष्टिकोण को एकीकृत करना, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा से निपटने के लिये उपकरण विकसित करना तथा शहरी नियोजन में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना है।
    • लिंग समावेशी शहर कार्यक्रम: यह महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को समाप्त करने के लिये कार्रवाई के समर्थन में संयुक्त राष्ट्र ट्रस्ट फंड द्वारा वित्तपोषित है।
      • इस पहल का उद्देश्य सार्वजनिक स्थानों तक समान पहुँच को बढ़ावा देकर दार-एस-सलाम, दिल्ली, रोसारियो और पेट्रोज़ावोडस्क जैसे शहरों में महिलाओं की सुरक्षा में सुधार करना है।
    • महिलाओं के लिये संयुक्त राष्ट्र विकास कोष (UNIFEM): यह लैंगिक समानता और महिला  सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिये वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय दृष्टिकोण:
    • यूनाइटेड किंगडम: लंदन अथॉरिटी की रणनीति सुरक्षित परिवहन टीमों को बढ़ावा देकर, जागरूकता अभियान चलाकर और प्रवर्तन को बढ़ाकर महिलाओं एवं बालिकाओं के खिलाफ हिंसा से निपटती है।
    • लैटिन अमेरिका: बोगोटा जैसे शहरों ने महिलाओं के लिये ही मेट्रो कार और पुलिस स्टेशन जैसी सुरक्षा रणनीतियाँ  विकसित की हैं।

आगे की राह

  • राष्ट्रव्यापी संरक्षण कानून: एक केंद्रीय संरक्षण अधिनियम का समर्थन करना जो ब्रिटेन की शून्य-सहिष्णुता नीति (हिंसा से सुरक्षा और हमलों के लिये धमकी) को प्रतिबिंबित करता है।
    • इस कानून से सभी कार्यरत पेशेवरों को समान सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिये तथा पूरे देश में सुसंगत एवं व्यापक सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिये।
    • PoSH अधिनियम, 2013 जैसे मौजूदा कानूनों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये निगरानी तंत्र को मज़बूत किया जाना चाहिये। प्रभावशीलता और अनुपालन पर नज़र रखने के लिये नियमित ऑडिट व रिपोर्ट अनिवार्य होनी चाहिये।
  • फास्ट-ट्रैक कोर्ट: जस्टिस वर्मा समिति की सिफारिश के अनुसार फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित करने के साथ बलात्कार जैसे गंभीर मामलों में सज़ा में वृद्धि की जानी चाहिये। न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाहिये।
  • स्थानीय सुरक्षा उपाय: महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को रोकने और उससे निपटने के लिये SHE टीम जैसी विशेष पुलिस इकाइयों का क्रियान्वयन करना चाहिये।
    • SHE टीम्स तेलंगाना पुलिस का एक प्रभाग है जो महिलाओं की सुरक्षा को बढ़ाने के लिये कार्य करता है। SHE टीम्स ने ऑनलाइन स्टॉकिंग से लेकर शारीरिक उत्पीड़न और हिंसा तक के अपराधों के लिये यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं की मदद करके उन्हें सफलतापूर्वक सुरक्षा तथा सहायता प्रदान की है।
  • सुरक्षित शहर डिज़ाइन: शहरी नियोजन में सुरक्षा सुविधाओं को एकीकृत करना जैसे कि बेहतर स्ट्रीट लाइटिंग और सुरक्षित सार्वजनिक स्थान।
  • सहायता प्रणाली: परामर्श सेवाओं और कानूनी सहायता सहित पीड़ितों के लिये सहायता प्रणाली को मज़बूत करना। सुनिश्चित करना कि पीड़ितों की अतिरिक्त बाधाओं के बिना संसाधनों तक पहुँच हो।
  • सार्वजनिक जागरूकता अभियान: मीडिया, शैक्षणिक संस्थानों और सामुदायिक संगठनों का उपयोग करके महिलाओं के अधिकारों, कार्यस्थल सुरक्षा एवं उपलब्ध कानूनी उपायों के विषय में जागरूकता बढ़ाने हेतु राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. मौजूदा कानूनी प्रावधानों के बावजूद, भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध जारी हैं। हिंसा की उच्च दरों के कारणों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये और इन मुद्दों को हल करने के लिये व्यापक सुधार सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स:

प्रश्न. हमें देश में महिलाओं के प्रति यौन-उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरुद्ध विद्यमान विधिक उपबन्धों के होते हुए भी, ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी उपाय सुझाइये। (2014)

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