निकोबार पत्तन योजना नो-गो ज़ोन से अनुमत क्षेत्र में परिवर्तित | 03 Aug 2024
प्रिलिम्स के लिये:ग्रेट निकोबार परियोजना, नीति आयोग, राष्ट्रीय हरित अधिकरण, अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट टर्मिनल, मलक्का जलडमरूमध्य, पर्यावरण प्रभाव आकलन, तटीय विनियमन क्षेत्र मेन्स के लिये:ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना, तटीय विनियमन क्षेत्र, संरक्षण से संबंधित महत्त्व और चिंताएँ |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
नीति आयोग (राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्था) की अगुआई में शुरू की गई ग्रेट निकोबार ‘समग्र विकास’ परियोजना चर्चा का विषय बन गई है। प्रारंभ में इस परियोजना को संभावित रूप से नो-गो ज़ोन के लिये चिह्नित किया गया था, लेकिन अब राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा नियुक्त एक उच्चस्तरीय समिति (HPC) ने इसे स्वीकार्यता प्रदान की है।
ग्रेट निकोबार ‘समग्र विकास’ परियोजना क्या है?
- परियोजना अवलोकन: वर्ष 2021 में प्रारंभ हुई, ग्रेट निकोबार द्वीप (GNI) परियोजना एक मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर पहल है, जिसका उद्देश्य अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के दक्षिणी छोर में बदलाव करना है।
- संबंधित घटक:
- ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट: एक अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट टर्मिनल (ICTT) से क्षेत्रीय और वैश्विक समुद्री अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलने की उम्मीद।
- ग्रीनफील्ड अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा: वैश्विक संपर्क को सुविधाजनक बनाना।
- टाउनशिप का विकास: नवीन शहरी विकास, जिसमें विशेष आर्थिक क्षेत्र भी शामिल हो सकता है।
- पॉवर प्लांट: 450 MVA गैस और सौर-आधारित पॉवर प्लांट का निर्माण।
- रणनीतिक स्थान: मलक्का जलडमरूमध्य के पास स्थित, हिंद महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ने वाला एक प्रमुख समुद्री मार्ग।
- परियोजना का उद्देश्य अतिरिक्त सैन्य बलों, बड़े युद्धपोतों, विमानों, मिसाइल बैटरियों और सैनिकों की तैनाती को सुविधाजनक बनाना है।
- मलक्का जलडमरूमध्य के नज़दीक यह परिवर्तन भारत के रणनीतिक हितों, विशेष रूप से इस क्षेत्र में बढ़ती चीनी उपस्थिति और प्रभाव, के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- पर्यावरण पर परियोजना का प्रभाव:
- वनोन्मूलन: इस परियोजना के तहत ग्रेट निकोबार के समृद्ध वर्षावनों में लगभग 8.5 लाख वृक्षों की कटाई शामिल है।
- वन्यजीवों का विस्थापन: गैलाथिया बे वन्यजीव अभयारण्य की अधिसूचना रद्द करना और गैलाथिया राष्ट्रीय उद्यान के लिये "ज़ीरो एक्सटेंट" पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र की घोषणा महत्त्वपूर्ण आवासों को खतरे में डालती है।
- पारिस्थितिकी विनाश: अद्वितीय और संकटग्रस्त उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन पारिस्थितिकी प्रणालियों का घर, निर्माण से द्वीप की जैव विविधता को अपरिवर्तनीय क्षति हो सकती है, जिसमें निकोबार मेगापोड और लेदरबैक कछुए जैसी स्थानिक प्रजातियाँ शामिल हैं।
- जैवविविधता संरक्षण: यह परियोजना वर्ष 2030 तक जैवविविधता की क्षति को रोकने और उच्च पारिस्थितिक महत्त्व के क्षेत्रों का संरक्षण करने के लिये जैवविविधता हेतु कन्वेंशन के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं का खंडन करती है।
- जनजातियों की चिंताएँ: द्वीप के मुख्य निवासी जिनमें शोम्पेन और निकोबारी जनजातियाँ शामिल हैं, महत्त्वपूर्ण विस्थापन तथा सांस्कृतिक व्यवधान का सामना कर रही हैं।
- आदिवासी हितों के संरक्षण के दावों के बावजूद, स्थानीय समुदायों को उनकी चिंताओं और पुनर्वास के अनुरोधों पर पर्याप्त प्रतिक्रिया नहीं मिली है।
- स्थानीय समुदायों ने नवंबर, 2022 में परियोजना के लिये अपनी सहमति वापस ले ली, जो इसके कार्यान्वयन के लिये आवश्यक है क्योंकि भूमि आदिवासी अभयारण्य का हिस्सा है।
- तकनीकी एवं वैधानिक मुद्दे:
- भूकंपीय जोखिम: ग्रेट निकोबार एक प्रमुख भ्रंश रेखा पर स्थित है, जहाँ भूकंप और सुनामी का खतरा अधिक है। इन प्राकृतिक खतरों के लिये कोई व्यापक जोखिम मूल्यांकन नहीं किया गया है।
- अपर्याप्त रिपोर्ट: पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) रिपोर्ट में संदर्भ की कई शर्तों का अनुपालन नहीं किया गया है, जो महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों को संबोधित करने में विफल है।
- वैधानिक चुनौतियाँ: वनों, आदिवासी अधिकारों और तटीय पारिस्थितिकी प्रणालियों की रक्षा करने वाले विभिन्न कानूनों के तहत प्रदत्त विभिन्न स्वीकृतियाँ एवं छूट न्यायालयों तथा न्यायाधिकरणों में वैधानिक चुनौतियों का सामना कर सकती हैं।
परियोजना को पहले नो-गो ज़ोन में क्यों चिह्नित किया गया था?
- प्रारंभिक सूचना: अंडमान और निकोबार तटीय प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार बंदरगाह, हवाई अड्डा एवं टाउनशिप द्वीप तटीय विनियमन क्षेत्र-IA (ICRZ-IA) में 7 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जहाँ बंदरगाह गतिविधियाँ प्रतिबंधित हैं।
- पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: ICRZ-IA क्षेत्र पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र हैं जिनमें मैंग्रोव, प्रवाल, प्रवाल भित्ति, रेत के टीले, मडफ्लैट्स, समुद्री पार्क, वन्यजीव आवास, लवणीय दलदल, कछुए और पक्षियों के निवास स्थान शामिल हैं।
- ICRZ-IA में अनुमत गतिविधियाँ: आवश्यक परमिट के साथ मैंग्रोव वॉक और प्राकृतिक पगडंडियाँ, रक्षा एवं सामरिक परियोजनाओं के लिये सड़कें, अवस्तंभ पर निर्मित सड़कें जैसी इको-टूरिज़्म गतिविधियाँ।
द्वीप तटीय विनियमन क्षेत्र (ICRZ) क्या है?
- केंद्र सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा लक्षद्वीप के कुछ तटीय हिस्सों को द्वीप संरक्षण क्षेत्र (IPZ) घोषित किया है।
- विभिन्न हितधारकों के अभ्यावेदन के प्रत्युत्तर में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने IPZ अधिसूचना, 2011 को संशोधित किया गया है, जिसमें उच्च ज्वार रेखा (HTL) के 500 मीटर के भीतर और खाड़ियों, मुहाना, बैकवाटर एवं ज्वार के उतार-चढ़ाव के अधीन नदियों के किनारे 100 मीटर के भीतर गतिविधियों को विनियमित करने के लिये द्वीप तटीय विनियमन क्षेत्र (ICRZ), 2011 की स्थापना की गई है।
- HTL का अर्थ है भूमि पर वह रेखा, जहाँ तक वृहत् ज्वार के दौरान सबसे ऊँची जल रेखा पहुँचती है। इसी तरह, निम्न ज्वार रेखा (LTL) का अर्थ है भूमि पर वह रेखा, जहाँ तक वृहद् ज्वार के दौरान सबसे कम जल रेखा पहुँचती है।
- ICRZ को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है और अधिसूचना ICRZ में उद्योगों या प्रसंस्करण संयंत्रों की स्थापना एवं विस्तार पर प्रतिबंध लगाती है।
- ICRZ- IA पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील तथा महत्त्वपूर्ण क्षेत्र जैसे: राष्ट्रीय उद्यान/सागरीय उद्यान, अभयारण्य, आरक्षित वन, जंगली आवास, मैंग्रोव, प्रवाल/प्रवाल भित्ति, मछली तथा अन्य समुद्री जीवन के प्रजनन तथा प्रजनन स्थानों के समीप क्षेत्र, उत्कृष्ट प्राकृतिक सौंदर्य वाले क्षेत्र, ऐतिहासिक तथा धरोहर स्थल, आनुवंशिक जैव विविधता से समृद्ध क्षेत्र, वैश्विक तापमान वृद्धि के परिणामस्वरूप समुद्र स्तर में वृद्धि के कारण जलमग्न होने की संभावना वाले क्षेत्र तथा ऐसे क्षेत्र जिन्हें प्राधिकारियों द्वारा घोषित किया जा सकता है।
- ICRZ-I: पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र तथा LTL और HTL के बीच के क्षेत्र।
- ICRZ-IB (अंतरज्वारीय क्षेत्र): निम्न ज्वार रेखा तथा उच्च ज्वार रेखा के बीच के क्षेत्र।
- LTL तथा HTL के बीच ऐसे क्षेत्र जो पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील नहीं हैं। इसमें निम्नलिखित की अनुमति दी जा सकती है: प्राकृतिक गैस अन्वेषण तथा निष्कर्षण; बायोस्फीयर रिज़र्व के भीतर रहने वाले पारंपरिक निवासियों के लिये बुनियादी सुविधाओं का निर्माण; समुद्री जल के सौर वाष्पीकरण द्वारा नमक संचयन; विलवणीकरण संयंत्र; अधिसूचित बंदरगाहों के भीतर खाद्य तेल, उर्वरक जैसे गैर-खतरनाक पदार्थ का भंडारण।
- ICRZ-II: वे क्षेत्र जो तटरेखा तक या उसके करीब पहले से ही विकसित हैं।
- ICRZ-III: अपेक्षाकृत अप्रभावित क्षेत्र जो CRZ-I या II में नहीं आते, जिनमें विकसित और अविकसित दोनों क्षेत्र शामिल हैं।
- ICRZ-IV: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप तथा छोटे द्वीपों में तटीय क्षेत्र, सिवाय उन द्वीपों के जिन्हें CRZ-I, II या III के रूप में नामित किया गया है।
नोट: तटीय विनियमन क्षेत्र (Coastal Regulation Zone- CRZ) ज्वारीय घटना से प्रभावित तटीय क्षेत्रों को कवर करता है, जो HTL से 500 मीटर तक विस्तृत है और इसमें LTL एवं HTL के बीच की भूमि शामिल है।
- ICRZ अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा लक्षद्वीप से संबंधित है, जो उनकी विशिष्ट पारिस्थितिक एवं विकासात्मक चुनौतियों से निपटता है।
किस वजह से पुनर्वर्गीकरण को अनुमति प्राप्त क्षेत्र में बदला गया?
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति (HPC) ने निष्कर्ष निकाला कि परियोजना का कोई भी हिस्सा ICRZ-IA क्षेत्र में नहीं आता है, जो कि सतत् तटीय प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय केंद्र (NCSCM) द्वारा किये गए "ग्राउंड-ट्रुथिंग एक्सरसाइज़" पर आधारित हो।
- NCSCM ने निष्कर्ष निकाला कि परियोजना का कोई भी हिस्सा ICRZ-IA क्षेत्र में नहीं आता है, जिससे यह पुष्टि होती है कि यह अनुमत द्वीप तटीय विनियमन क्षेत्र-IB (ICRZ-IB) क्षेत्र में है।
- HPC के निष्कर्ष और सिफारिशें:
- प्रवाल समूह: HPC ने 20,668 कोरल कॉलोनियों में से 16,150 को स्थानांतरित करने की भारतीय प्राणी सर्वेक्षण की सिफारिश से सहमति जताई। शेष 4,518 कॉलोनियों के लिये तलछट के निरंतर अवलोकन की सिफारिश की गई।
- आधारभूत डेटा संग्रह: HPC ने निर्धारित किया कि EIA अधिसूचना, 2006 के अनुसार, परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने के लिये एकल-ऋतु आधारभूत डेटा संग्रह (मानसून ऋतु को छोड़कर) पर्याप्त था।
- पर्यावरण अनुपालन: HPC के निष्कर्षों को अंडमान और निकोबार द्वीप एकीकृत विकास निगम (ANIIDCO) द्वारा NGT पीठ को प्रस्तुत किया गया।
- ANIIDCO ने आश्वासन दिया कि पर्यावरणीय मंज़ूरी की विशिष्ट और सामान्य शर्तों के अनुरूप ICRZ-IA क्षेत्र के भीतर कोई गतिविधि प्रस्तावित नहीं है।
- ANIIDCO ने परियोजना की रक्षा और रणनीतिक प्रकृति का हवाला देते हुए HPC की बैठकों के विवरण का खुलासा नहीं किया।
नोट:
ANIIDCO को द्वीपों के तेज़ी से आर्थिक विकास के लिये कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत वर्ष 1988 में शामिल किया गया था। निगम का मुख्य उद्देश्य क्षेत्र के संतुलित और पर्यावरण अनुकूल विकास के लिये प्राकृतिक संसाधनों का विकास एवं व्यावसायिक रूप से दोहन करना है।
परियोजना के प्रति हितधारकों की प्रतिक्रियाएँ क्या हैं?
- NGT की भूमिका: NGT की एक विशेष पीठ ने पर्यावरणविदों द्वारा उठाई गई चिंताओं को संबोधित करते हुए परियोजना की पर्यावरणीय मंज़ूरी पर पुनर्विचार करने के लिये HPC का गठन किया।
- कार्यकर्त्ताओं की याचिका: पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं ने ICRZ-IA से परियोजना के संचालन को हटाने तथा HPC की सिफारिशों और बैठक के विवरण को सार्वजनिक करने के लिये याचिका दायर की।
- सरकारी प्रतिक्रिया: अंडमान एवं निकोबार प्रशासन ने परियोजना के स्थान में परिवर्तन तथा ICRZ क्षेत्रों में इसके विस्तार के बारे में भिन्न-भिन्न जानकारी से संबंधित प्रश्नों का अभी तक उत्तर नहीं दिया है।
- राजनीतिक और सार्वजनिक आक्रोश: राजनीतिक नेताओं ने भूमि वर्गीकरण में परिवर्तन पर सवाल उठाया और नई जानकारी के बारे में पारदर्शिता की मांग की जिसके कारण यह बदलाव आया।
- प्रस्तावित परियोजनाओं की संबंधित संसदीय समितियों सहित पूर्ण निष्पक्ष समीक्षा की मांग की जा रही है।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण
- NGT की स्थापना राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत स्थापित एक विशिष्ट निकाय है, इसका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों का प्रभावी शीघ्र निपटान करना है।
- न्यायाधिकरण सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया से आबद्ध नहीं होगा, अपितु प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होगा।
- न्यायाधिकरण को आवेदनों या अपीलों का अंतिम रूप से निपटान करने का अधिकार है, जो कि दाखिल होने के 6 महीने के भीतर किया जाना चाहिये।
- NGT की बैठक का आयोजन पाँच स्थानों पर किया जाता है, जिसमें नई दिल्ली (मुख्यालय) बैठक आयोजित करने का प्रमुख स्थान है और अन्य चार स्थानों में भोपाल, पुणे, कोलकाता व चेन्नई शामिल हैं।
आगे की राह
- परियोजना के संपूर्ण पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों का आकलन करने के लिये एक स्वतंत्र निकाय द्वारा एक व्यापक एवं पारदर्शी पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) आयोजित किया जाना चाहिये।
- परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम करने के लिये प्रभावी उपाय, जैसे आवास पुनर्स्थापन, कार्बन प्रतिसंतुलन और वन्यजीव संरक्षण लागू किये जाने चाहिये।
- शोम्पेन और निकोबारी जनजातियों को शामिल करते हुए एक सहभागी दृष्टिकोण आवश्यक है। निष्पक्ष और न्यायसंगत पुनर्वास योजनाएँ विकसित की जानी चाहिये।
- विश्वास स्थापित करने के लिये नियमित सार्वजनिक परामर्श और परियोजना संबंधी जानकारी का प्रकाशन महत्त्वपूर्ण है।
- ऐसे वैकल्पिक विकास मॉडल खोजना जो स्थिरता को प्राथमिकता दें और पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम करें।
- परियोजना के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों पर नज़र रखने के लिये एक मज़बूत निगरानी प्रणाली स्थापित करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. ग्रेट निकोबार परियोजना के उद्देश्यों और जैवविविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके पर्यावरणीय प्रभावों का विश्लेषण कीजिये तथा शमन उपाय बताइए। |
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में मैंग्रोव वन, सदाबहार वन और पर्णपाती वन का संयोजन है? (2015) (a) उत्तर तटीय आंध्र प्रदेश उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित में से किनमें प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं (2014)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनें: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित में से किस स्थान पर शोम्पेन जनजाति पाई जाती है? (2009) (a) नीलगिरि पहाड़ियाँ उत्तर: (b) प्रश्न. राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 भारत के संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान के अनुरूप बनाया गया था? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) |