शिक्षा मंत्रालय द्वारा NILP के तहत साक्षरता की परिभाषा | 04 Sep 2024
प्रिलिम्स के लिये:न्यू इंडिया साक्षरता कार्यक्रम (NILP), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, सतत् विकास लक्ष्य, PARAKH, NIPUN, साक्षर भारत कार्यक्रम, जनगणना- 2011, आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मक मूल्यांकन परीक्षण (FLNAT)। मेन्स के लिये:NILP के तहत साक्षरता और पूर्ण साक्षरता की परिभाषा, भारत में साक्षरता से संबंधित चुनौतियाँ, शिक्षा में सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों का महत्त्व |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में शिक्षा मंत्रालय (MoE) ने नव भारत साक्षरता कार्यक्रम (New India Literacy Programme- NILP) के तहत वयस्क साक्षरता पर अपने नए केंद्र बिंदु रूप में ‘साक्षरता’ और ‘पूर्ण साक्षरता प्राप्त करने का क्या मतलब है’, को परिभाषित किया है।
नव भारत साक्षरता कार्यक्रम (NILP) क्या है?
- परिचय:
- नव भारत साक्षरता कार्यक्रम (NILP) एक केंद्र प्रायोजित पहल है, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के साथ संरेखित है।
- इसे समाज में सभी के लिये आजीवन सीखने की समझ (ULLAS) नव भारत साक्षरता कार्यक्रम (पहले वयस्क शिक्षा के रूप में जाना जाता था) के रूप में भी जाना जाता है।
- विज़न/दृष्टि:
- इस योजना का विज़न भारत को ‘जन जन साक्षर’ बनाना है और यह ‘कर्त्तव्य बोध’ (कर्त्तव्य) की भावना पर आधारित है तथा इसे स्वैच्छिकता के माध्यम से लागू किया जा रहा है।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य ऑनलाइन शिक्षण, अधिगम और मूल्यांकन प्रणाली (OTLAS) के माध्यम से प्रति वर्ष 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के 1 करोड़ निरक्षरों को शिक्षित करना है।
- OTLAS एक कंप्यूटर एप्लीकेशन है जिसे राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) द्वारा विकसित ULLAS के तहत वेब पोर्टल/मोबाइल ऐप में सन्निहित किया गया है।
- इसे 1037.90 करोड़ रुपए के वित्तीय परिव्यय के साथ वित्त वर्ष 2022-23 से 2026-27 तक 5 वर्षों के दौरान कार्यान्वयन के लिये लॉन्च किया गया था।
- इसका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास (UNSDG) लक्ष्य 4.6 (यह सुनिश्चित करना कि सभी युवा और वयस्क वर्ष 2030 तक आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता प्राप्त करें) को प्राप्त करना है।
- इसका उद्देश्य ऑनलाइन शिक्षण, अधिगम और मूल्यांकन प्रणाली (OTLAS) के माध्यम से प्रति वर्ष 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के 1 करोड़ निरक्षरों को शिक्षित करना है।
- योजना के प्रमुख घटक:
- आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता मूल्यांकन परीक्षण (FLNAT)
- महत्त्वपूर्ण जीवन कौशल
- व्यावसायिक कौशल विकास
- बुनियादी शिक्षा
- सतत् शिक्षा
- लाभार्थी पहचान:
- लाभार्थियों की पहचान मोबाइल ऐप के माध्यम से डोर-टू-डोर सर्वेक्षण के माध्यम से की जाती है और गैर-साक्षर लोग भी ऐप के माध्यम से स्वयं पंजीकरण कर सकते हैं।
- अन्य प्रमुख पहलू:
- यह योजना शिक्षण और अधिगम के लिये स्वयंसेवा पर बहुत अधिक निर्भर करती है तथा स्वयंसेवक इस कार्यक्रम के तहत मोबाइल ऐप के माध्यम से पंजीकरण करा सकते हैं।
- NILP का क्रियान्वयन मुख्यतः ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जाता है तथा इसमें प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाता है।
- शैक्षिक सामग्री और संसाधन NCERT के दीक्षा प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराए गए हैं, जिन्हें मोबाइल ऐप के माध्यम से सुलभ बनाया गया है।
- बुनियादी साक्षरता और अंकगणित कौशल के प्रसार के लिये टीवी, रेडियो एवं सामाजिक चेतना केंद्र सहित विभिन्न माध्यमों का उपयोग किया जाता है।
NILP के अंतर्गत साक्षरता की परिभाषा क्या है?
- साक्षरता की परिभाषा: शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, साक्षरता को अब इस प्रकार परिभाषित किया जाएगा, "पढ़ने, लिखने और समझ के साथ गणना करने की क्षमता, यानी पहचान करने, समझने, व्याख्या करने तथा बनाने की क्षमता, साथ ही डिजिटल साक्षरता, वित्तीय साक्षरता आदि जैसे महत्त्वपूर्ण जीवन कौशल आदि।"
- पूर्ण साक्षरता: किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश (UT) को पूर्ण साक्षर तब माना जाता है जब वह 95% साक्षरता दर प्राप्त कर लेता है।
- साक्षरता प्रमाणन हेतु मानदंड: NILP के तहत यदि कोई गैर-साक्षर व्यक्ति FLNAT उत्तीर्ण कर लेता है तो उसे साक्षर माना जाता है।
- बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक मूल्यांकन परीक्षा (FLNAT):
- यह बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक कौशल का मूल्यांकन करने के लिये तीन विषयों- पढ़ना, लिखना तथा संख्यात्मकता का मूल्यांकन करता है।
- यह परीक्षा प्रत्येक भाग लेने वाले राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के सभी ज़िलों में ज़िला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों (DIET) तथा सरकारी/सहायता प्राप्त स्कूलों में आयोजित की जाएगी।
- इसका उद्देश्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के अनुरूप गैर-साक्षर शिक्षार्थियों को प्रामाणित करना और क्षेत्रीय भाषाओं में परीक्षा आयोजित करके बहुभाषावाद को बढ़ावा देना है।
- FLNAT सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद किसी व्यक्ति को साक्षर घोषित किया जाता है।
- वर्ष 2023 में FLNAT में भाग लेने वाले 39,94,563 वयस्क शिक्षार्थियों में से 36,17,303 को साक्षर के रूप में प्रमाणित किया गया। हालाँकि वर्ष 2024 में FLNAT में केवल 85.27% को ही साक्षर के रूप में प्रमाणित किया गया।
भारत में साक्षरता से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- निम्न साक्षरता स्तर: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के 25.76 करोड़ निरक्षर व्यक्ति थे (9.08 करोड़ पुरुष और 16.68 करोड़ महिलाएँ)।
- साक्षर भारत कार्यक्रम (2009-10 से 2017-18) के माध्यम से हुई प्रगति के बावजूद, जिसके तहत 7.64 करोड़ लोगों को साक्षर प्रमाणित किया गया, अनुमानतः देश में 18.12 करोड़ वयस्क निरक्षर हैं, जो NILP की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- कम बजट आवंटन: न्यू इंडिया लिटरेसी प्रोग्राम (NILP) के लिये बजट आवंटन को वर्ष 2023-24 में 157 करोड़ रुपए से घटाकर संशोधित बजट अनुमान में 100 करोड़ रुपए कर दिया गया, जो वित्तीय बाधाओं को दर्शाता है।
- लैंगिक असमानता: साक्षरता दर में लैंगिक असमानता बहुत ज़्यादा है और महिलाओं को अक्सर शिक्षा तक कम पहुँच मिलती है। पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएँ, सांस्कृतिक मानदंड और आर्थिक कारक इस असमानता में योगदान करते हैं। कई क्षेत्रों में लड़कियों से अपेक्षा की जाती है कि वे शिक्षा की तुलना में घर के कार्यों को प्राथमिकता दें, जिसके कारण महिला छात्रों के नामांकन में कमी आती है और स्कूल छोड़ने की दर अधिक होती है।
- यह लैंगिक अंतर समाज में महिलाओं के समग्र विकास और सशक्तीकरण में बाधा डालता है।
- शिक्षा की गुणवत्ता: कई भारतीय स्कूलों में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, शिक्षा की गुणवत्ता अक्सर खराब होती है। शिक्षक प्रशिक्षण की अपर्याप्ता, पुराना पाठ्यक्रम और शिक्षण सामग्री की कमी सभी खराब शैक्षिक परिणामों की ओर ले जाती है। यहाँ तक कि प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पूरी करने वाले छात्रों में भी अक्सर बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक कौशल की कमी होती है, जो शिक्षा तक पहुँच और वास्तविक सीखने के बीच के अंतर को उजागर करती है।
- उच्च ड्रॉपआउट दरें: भारत में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और आर्थिक रूप से वंचित समूहों में उच्च ड्रॉपआउट दर का सामना करना पड़ता है। आर्थिक दबाव कई बच्चों को परिवार की आय में योगदान देने हेतु जल्दी स्कूल छोड़ने के लिये मज़बूर करता है।
- यह समस्या विशेष रूप से लड़कियों में अधिक पाई जाती है, जो कम उम्र में विवाह, घरेलू ज़िम्मेदारियों या स्कूल में सुरक्षा और पहुँच की चिंता के कारण स्कूल छोड़ देती हैं।
- आर्थिक बाधाएँ: भारत में साक्षरता के लिये गरीबी एक बड़ी बाधा है। कई परिवार अपने बच्चों को स्कूल भेजने में असमर्थ हैं, इसलिये वे शिक्षा के स्थान पर कार्य को प्राथमिकता देते हैं। यदि कुछ बच्चे स्कूल में प्रवेश ले भी लें तो यूनिफॉर्म, किताबों और परिवहन पर होने वाला खर्च बहुत अधिक होता है।
- आर्थिक बाधाएँ भी शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं क्योंकि अल्प वित्तपोषित स्कूल छात्रों को पर्याप्त संसाधन और सहायता प्रदान करने के लिये संघर्ष करते हैं।
शैक्षिक सुधारों से संबंधित सरकार की पहल क्या हैं?
आगे की राह
- समुदाय-केंद्रित साझेदारियाँ: हाशिये पर पड़ी आबादी की प्रभावी पहचान करने और उन्हें शामिल करने के लिये स्थानीय समुदायों, गैर सरकारी संगठनों और स्वयं सहायता समूहों (SHG) के साथ सहयोग करना चाहिये।
- लचीले शिक्षण मॉडल: विभिन्न कार्यक्रमों और प्राथमिकताओं को समायोजित करने के लिये शाम की कक्षाएँ, सप्ताहांत कार्यशालाएँ (Weekend Workshops) तथा ऑनलाइन पाठ्यक्रम जैसे विविध शिक्षण प्रारूपों को लागू करना चाहिये, जिससे पहुँच का विस्तार हो सके।
- प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: पाठ्यक्रम में डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण को एकीकृत करना, व्यक्तिगत निर्देश हेतु अनुकूली शिक्षण प्लेटफार्मों का उपयोग करना तथा पहुँच और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये मोबाइल शिक्षण अनुप्रयोगों का विकास करना चाहिये।
- प्रोत्साहन और सहकर्मी शिक्षण: सहभागिता को बढ़ाने और सहायता प्रदान करने के लिये सहकर्मी से सहकर्मी सीखने (peer-to-peer learning) को बढ़ावा दें, साथ ही शिक्षार्थियों को प्रेरित करने के लिये कौशल प्रमाणपत्र एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण के अवसर जैसे प्रोत्साहन प्रदान करना।
- जीवन कौशल प्रशिक्षण को एकीकृत करना: वित्तीय साक्षरता, स्वास्थ्य और कल्याण शिक्षा, एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण को पाठ्यक्रम में शामिल करना ताकि शिक्षार्थियों को बेहतर रोज़गार व निर्णय लेने के लिये आवश्यक जीवन कौशल प्रदान किया जा सके।
- भागीदारी को मज़बूत करना: संसाधनों का लाभ उठाने, विशेषज्ञता साझा करने और सर्वोत्तम पद्धतियों को लागू करने हेतु सरकारी एजेंसियों, निजी क्षेत्र के संगठनों एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के बीच प्रभावी सहयोग स्थापित करना।
- निगरानी और मूल्यांकन: कार्यक्रम की प्रभावशीलता में निरंतर सुधार सुनिश्चित करने हेतु नियमित मूल्यांकन और डेटा-संचालित निर्णय लेने पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक प्रभावी निगरानी एवं मूल्यांकन ढाँचा लागू करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में स्कूली शिक्षा प्रणाली में क्या समस्याएँ हैं? भारत में वर्तमान प्रणाली इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकती है और समावेशी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे सुनिश्चित कर सकती है? |
प्रिलिम्सप्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनें: (a)केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021) प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) |